श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(30)
विश्वास की डोर को प्रभु संग बाँधें !
274 जिन्हके हिय विश्वास दृढ़ , जैसे बाल समान।
503 तिन्हके हिय प्रगटत प्रभु , करत कृपा कै दान।।
बालक की तरह सरल विश्वास हुए बिना ईश्वर नहीं मिलते। माँ ने कह दिया वह तेरा 'भैया' है , बस उसको सोलह आना विश्वास हो गया कि यह मेरा भैया है। माँ ने कह दिया उस कमरे में 'हौआ ' रहता है, बालक ने पूरा विश्वास कर लिया कि उस कमरे में 'हौआ ' रहता है। इस तरह बालक के जैसा विश्वास देखने पर भगवान को दया आती है। सांसारिक विषय-बुद्धि के द्वारा वे नहीं मिलते।
273 जो चाहत हरि दरस तो , मन धर दृढ़ विश्वास।
502 जप ले हरि के नाम तु , सहित विवेक अरु आस।।
अगर तुम्हें ईश्वरलाभ करने की इच्छा हो तो दृढ़ विश्वास के साथ उनका नाम लेते जाओ और सत -असत का विवेक किया करो।
275 गुरु वचन विश्वास कर , चेला उतरे पार।
507 बिन विश्वास गुरुवर अपि , डूबत है मझधार।।
एक शिष्य को गुरु पर इतना विश्वास था कि वह 'गुरु , गुरु ' कहते हुए विश्वास के बल पर नदी पार हो गया। यह देखकर गुरु ने सोचा , ' तो सचमुच ही मुझमें इतनी शक्ति है ! मुझे तो अब तक यह पता ही नहीं था ! 'दूसरे दिन गुरु 'मैं , मैं ' कहते हुए नदी पार होने गए परन्तु पानी पर पैर रखते ही वे गिर पड़े और अपने को सम्हाल न पाकर डूब मरे ! विश्वास का परिणाम अद्भुत होता है। परन्तु अहंकार से विनाश ही होता है।
279 जाको जैसी भावना , ताको तैसी रूप।
514 जीव सोच जीव रहे , सोचत शिव शिव रूप।।
जो सोचता है 'मैं जीव हूँ ' [भेंड़ -मरणधर्मा शरीर हूँ '] वह जीव [भेंड़ ] ही रह जाता है ; जो सोचता है 'मैं शिव हूँ ' [सिंह शावक हूँ ! अजर -अमर अविनाशी आत्मा हूँ !] वह 'शिव' [बड़ा सिंह -मार्गदर्शक नेता ] बन जाता है। मनुष्य जैसी भावना करता है वैसा ही बन जाता है।
276 सेतु बांध श्री राम जी , उतरे सागर पार।
508 विश्वास बल हनुमान जी , उड़यो वारिधि पार।
स्वयं रामचन्द्रजी को समुद्र पार करने के लिए सेतु बाँधना पड़ा , परन्तु हनुमानजी केवल 'जय राम ' कहकर एक हीछलाँग में अनायास समुद्र लाँघ गए। विश्वास में कितनी सामर्थ्य है !
277 जिन्हके हिय विश्वास बल , जिन्हके प्रभु पर आस।
510 दुःख कोटि पथ सहज सहे , होत न मन हताश।।
पत्थर हजारों साल तक पानी में पड़ा रहे तो भी उसके भीतर एक बून्द पानी नहीं घुसता , परन्तु मिट्टी के ढेले में पानी लगते ही वह घुल जाता है। जिसके हृदय में विश्वास का बल है , वह हजारों बाधा-विघ्न की परीक्षा में से गुजकर भी हताश नहीं होता , परन्तु अविश्वासी व्यक्ति छोटी सी बात ही विचलित हो जाता है।
278 भ्रमर बने झींगुर कीट , सोच भ्रमर की बात।
511 तस मनवा आनन्द घन , सुमिरहु हरि दिन रात।
जो व्यक्ति जैसा चिन्तन करता है , वह वैसा ही बन जाता है। भ्र्मर का चिन्तन करते करते झींगुर भी भ्रमर ही बन जाता है। वेदान्त के इसी भ्रमर-कीट न्याय के अनुसार, निरन्तर सच्चिदानन्द (ब्रह्म) का चिन्तन करते रहने से मनुष्य सच्चिदानन्द (ब्रह्म) -स्वरूप ही हो जाता है।
यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं धिया । स्नेहाद् द्वेषाद् भयाद् वापि याति तत्तत्स्वरूपताम् ॥ (भागवत 11.9.22 )
280 जाको जैसी भावना , पावै फल अनुरूप।
512 पाप सोच पापी बने , आत्मा आत्मस्वरूप।।
2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया सर लेकिन नम्बरों लगातार क्यों नहीं है
जय गुरूदेव|जय भगवान श्री रामकृष्ण देव|जय माँ शारदा देवी|जय स्वामी जी|कृपा ही केवलम्!🙏
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