श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(28 -A)
*धर्मान्धता का कारण तथा उसे दूर करने का उपाय *
262 जो जस देखत गिरगिटहि, तस तस करहि बखान।
471 ते जानहि सत रंग सब , जे घर तरु धर ध्यान।।
263 जो देखत जस जस प्रभु , तस तस करत बखान।
471 सत सब रूप ते जानहि , जिन्हके उदित ज्ञान।।
दो आदमियों के बीच घोर विवाद छिड़ गया। एक ने कहा , ' उस खजूर के पेड़ पर एक सुन्दर लाल रंग का गिरगिट रहता है। ' दूसरा बोला , ' तुम भूल करते हो , वह गिरगिट लाल नहीं, नीला है।' विवाद करते हुए कुछ निश्चय न कर पाने के कारण अन्त में दोनों जन उस खजूर के पेड़ के नीचे जाकर वहाँ रहने वाले आदमी से मिले। उनमें से एक ने उससे पूछा , ' क्यों जी , तुम्हारे इस पेड़ पर लाल रंग का गिरगिट रहता है न ? वह आदमी बोला, ' जी हाँ।'
तब दूसरे ने कहा , 'अजी, क्या कहते हो ? वह गिरगिट लाल नहीं, नीला है। ' वह आदमी बोला, 'जी हाँ।' वह जानता था कि गिरगिट बहुरूपी होता है , सदा रंग बदलता रहता है। इसीलिये उसने दोनों की बात में हामी भरी।
सच्चिदानन्द भगवान के भी अनेक रूप हैं। जिस साधक ने जिस रूप का दर्शन किया है , वह उसी रूप को जानता है। परन्तु जिसने उनके बहुविध रूपों को देखा है , वही कह सकता है कि विविध रूप उस एक ही प्रभु के हैं। वे साकार हैं , निराकार हैं , तथा उनके और भी कितने प्रकार हैं -यह कोई नहीं जानता।
(B)
*विभिन्न धर्मों के प्रति उचित मनोभाव*
264 टेढ़ी सीधी खाइये , मिश्री सदा मिठास।
476 रीत अतीत तस हरिभजन , हरि को प्रिय हरिदास।।
भगवान का नाम और चिंतन तुम चाहे जिस रीति से करो , उससे कल्याण ही होगा। जैसे मिश्री की डली सीधी खाओ या टेढ़ी करके खाओ , वह मीठी ही लगेगी।
265 रूचि जान माँ परसहहि , भिन्न भिन्न आहार।
478 तस तस हरि प्रगटहिं रूप बहु , जिन्हके जस आधार।।
जिस प्रकार माँ अपने बच्चों के स्वास्थ्य के अनुसार किसी के लिए दालभात तो किसी के लिए साबूदाने की व्यवस्था करती है ; उसी प्रकार भगवान ने भी प्रत्येक मनुष्य के लिए उसके स्वभाव के अनुसार उपयुक्त साधना की व्यवस्था कर रखी है।
266 जस जानत निज धरमहि, सत्य प्राप्ति कर राह।
483 अपर धरम तस जानिए , रख श्रद्धा अथाह।।
267 बिन निंदा घृणा बिना , बिना तर्क विवाद।
483 निज धरम सम जान सब , भज रह निज मरजाद।।
यथार्थ साधक को यही भावना रखनी चाहिए कि दूसरों के धर्म भी सत्यप्राप्ति के भिन्न-भिन्न मार्ग हैं। दूसरे धर्मों के प्रति श्रद्धा का भाव रखना चाहिए।
(लेकिन ) हर एक व्यक्ति को अपने -अपने स्वधर्म का ही पालन करना चाहिए। ईसाई को ईसाई धर्म का , मुसलमान को मुस्लिम धर्म का पालन करना चाहिए। हिन्दुओं के लिए प्राचीन वैदिक ऋषियों का सनातन मार्ग ही श्रेयस्कर है !
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