शनिवार, 5 जून 2021

श्री रामकृष्ण दोहावली (35)~ * ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य पर विश्वास * गुरु के उपदेश - (तत्त्वमसि) पर विश्वास रखकर, साधना किये बिना शास्त्रों की अवधारणा नहीं होती*

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(35)

*साधना किये बिना शास्त्रों की अवधारणा नहीं होती* 

314 बिना मथे मक्खन नहिं , बिन पेरे नहीं तेल। 

582 तस मनवा बिन साधना , नहि भगवन से मेल।।

   तुम जो वस्तु प्राप्त करना चाहते हो उसके अनुरूप साधना करो , नहीं तो कैसे होगा ? 'दूध में मक्खन है ' कहकर सिर्फ चिल्लाने से मक्खन नहीं मिल जायेगा, यदि मक्खन चाहते हो तो दूध का दही जमाओ, उसे अच्छी तरह मथो , तभी मक्खन निकलेगा।  

    इसी तरह, यदि तुम ईश्वर दर्शन करना चाहते हो साधना करो [मनःसंयोग पद्धति से विवेकदर्शन का अभ्यास करो]  तभी उनके दर्शन पाओगे। 'ईश्वर , ईश्वर ' कहकर सिर्फ शोरगुल मचाने से क्या फायदा?  

[(14 सितंबर,1884) परिच्छेद ~ 90, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] What is the use of merely repeating, There is butter in the milk'? Turn the milk into curd and churn it. Only then will you get butter."  

                                     315 जस काई पानी ढके , तस ज्ञानहि अज्ञान। 

584 जो चाहत तू ज्ञान तो , कर ले जप तप ध्यान।।

कर्म चाहिए , तभी ईश्वर -दर्शन होते हैं। एक दिन मैंने भावावस्था में हालदार -पुकुर देखा। देखा , एक नीचीजाति  का आदमी काई हटाकर पानी भर रहा है , और बीचबीच में एक-एक बार हाथ में लेकर देख रहा है। मानो उसने [माँ जगदम्बा ने ] यह दिखया कि काई हटाए बिना पानी नहीं दिखाई देता - अर्थात कर्म किये बिना भक्ति नहीं होती , ईश्वरदर्शन नहीं होते।

 ध्यान-जप , यही कर्म है , उनका नामगुण -कीर्तन भी कर्म है , और दान , यज्ञ (निष्काम कर्म - Be and Make) ये सब भी कर्म ही हैं।  

* ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य पर विश्वास * 

313 जो चाहत हरिलाभ नर , जस उपदेश तस साध। 

580 विरथा वाद विवाद तज , धर धीरज अगाध।।

छिछले तालाब का पानी पीना हो तो उसे हिंडोले बिना ऊपर का निथरा पानी धीरे धीरे लेना चाहिए। ज्यादा खलबला देने से नीचे का कीचड़ ऊपर आकर सारा पानी गँदला हो जाता है। 

यदि तुम सच्चिदानन्द का लाभ करना चाहते हो तो गुरु के उपदेश - (तत्त्वमसि) पर विश्वास रखकर धीरज के साथ साधना किये चलो। वृथा शस्त्र-विचार या तर्क-वितर्क में मत पड़ो , नहीं तो तुम्हारी क्षुद्र बुद्धि गड़बड़ा जाएगी। 

316 एक आना उपदेश मम , जो पालहि चित्त लाई। 

588 वो पावहि मुक्ति निश्चय , कह ठाकुर गदाई।।

श्रीरामकृष्ण कहा करते थे - " क्या तुम मेरे आदेश का सोलहो आना पालन कर सकोगे ? मैं जो कहता हूँ उसका एक आना भी यदि यदि तुम कर सको तो तुम्हारी मुक्ति निश्चित है। " 

317 नाम शक्ति अमोल है , आवहिं भगवन खींच। 

590 कर विश्वास हरिनाम जप , भगति वारी सींच।। 

एक बार यदि किसी भी भगवन्नाम की शक्ति पर विश्वास हो जाये और वह सतत नाम जपने लगे तो फिर उसके लिए विवेक-विचार या अन्य किसी भी तरह के साधन-भजन की आवश्यकता नहीं रह जाती। उसके सब सन्देह दूर हो जाते हैं , चित्त शुद्ध हो जाता है , तथा नाम के सामर्थ्य से स्वयं नामी [ सच्चिदानन्द घन ठाकुरदेव ] का साक्षात्कार हो जाता है।  

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