शुक्रवार, 4 जून 2021

श्री रामकृष्ण दोहावली (19) " निवृत्ति मार्ग का अधिकारी कौन है ? " जो देखहि नारिहि मातु सम , कांचन माटी समान।"

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर 

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(19) 

 * संन्यासी का आदर्श * 

"  निवृत्ति मार्ग का अधिकारी कौन है ?  "  

185 ताड़ से निर्भय कूद सके , त्याग सके संसार। 

296 सोइ संन्यासी हो सके , कह श्री गुणागार।। 

संन्यास -ग्रहण का अधिकारी कौन है ? जो संसार को पूर्णरूपेण त्याग देता है, " कल क्या खाऊँगा, क्या पहनूँगा " -इसकी बिल्कुल फ़िक्र नहीं करता , वही ठीक-ठीक संन्यासी बनने लायक है।" जो ताड़ के पेड़ पर से निर्भय होकर नीचे कूद सकता है' वही ठीक ठीक संन्यास ग्रहण करने का योग्य अधिकारी है। 

[जो व्यक्ति 10 लाख का F.D. करा  लेने के बाद, संन्यासी बनता है, उसे निवृत्ति मार्ग का योग्य अधिकारी नहीं कह सकते !] 

186 सन्यासी अरु साँप , दोउ न बनावत निज गृह। 

 297 रहत सदा पर गृह में , हो निरभय निस्पृह।।

योगी और संन्यासी सर्प के समान होते हैं। सर्प अपना बिल कभी नहीं बनाता , वह सदा चूहे के बिल में रहता है। एक बिल नष्ट हो जाये , तो दूसरे में चला जाता है। योगी-संन्यासी लोग भी , इसी तरह , अपने लिये घर नहीं बनाते। वे दूसरों के यहाँ रहते हैं - आज यहाँ तो कल वहाँ , इस तरह दिन बिताते हैं।  

187 कल की चिन्ता जिसे नहीं , नहिं जिसका निज गृह। 

297 सोइ सन्यासी हो सके , जो सदा निस्पृह।। 

 जिसे किसी प्रकार का लोभ या लालसा न हो, उसे ही निस्पृह कहते हैं ,  सच्चे साधु-संत निस्पृह होते हैं। संन्यासी  कल के बारे में कुछ नहीं सोचता , कल के लिए कुछ भी नहीं बचाता।  जैसे वृक्ष अपना सबकुछ परहित में दान कर देता है , साधु भी क्या होगा कल ? इस  बारे में कुछ कभी नहीं  सोचता है । 

188 जैसे सफेद वस्त्र में , छोटे काला जंग। 

299 तस साधु के दोष लघु , दिखे बड़ा बेढंग।।

सफ़ेद धोती , सफ़ेद कुर्ता पर अगर थोड़ा सा भी काला लग जाये तो वह बहुत भद्दा दीखता है। साधुओं का या धर्मप्रचारक "नेता " का छोटा सा दोष भी बड़ा भारी मालूम होता है। 

189 देखहि नारिहि मातु सम , कांचन माटी समान। 

305 जीव हिय शिव देखहहिं , साधु कर पहचान।।

भक्त - सच्चे साधु की क्या पहचान है ?  

श्रीरामकृष्ण - जिसका मन, प्राण , अन्तरात्मा पूरी तरह ईश्वर (जनता जनार्दन की सेवा ) में ही समर्पित हो , वही सच्चा साधु/नेता है। सच्चा साधु कामिनी-कांचन का सम्पूर्ण त्याग कर देता है। वह स्त्रियों की ओर ऐहिक दृष्टि से नहीं देखता। वह सदा स्त्रियों से दूर रहता है , और यदि उसके पास कोई स्त्री आ जाये , तो वह उसे माता के समान देखता है। वह सदा ईश्वर-चिंतन में मग्न रहता है। और सर्वभूतों में ईश्वर विराजमान हैं , यह जानकर , सब की सेवा करता है। ये सच्चे साधुओं के कुछ साधारण लक्षण हैं

    जो साधु/नेता मंतर पढ़ के दवाई देता हो , झाड़- फूँक करता हो , पैसे लेता हो और भभूत रमाकर या माला-तिलक आदि बाह्य चिन्हों का आडम्बर रचकर,  मानो 'साईनबोर्ड ' लगाकर लोगों के सामने अपने साधुगिरी/गुरुगिरि/ नेतागिरी का प्रदर्शन करता हो , उस पर कभी विश्वास मत करना।  

190 परहित में जो रत रहे, करे न एक अहित। 

307 क्षमाशील स्वभाव है , सन्यासी का गीत।। 

'क्षमाशीलता' ही संन्यासी का स्वभाव है !  

===========

कोई टिप्पणी नहीं: