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शनिवार, 5 जून 2021

$*Acid turns the Milk into Curd* श्री रामकृष्ण दोहावली (68) ~ *परमहंस बालक सम , नहि नर-नारी भेद* *To set an ideal before world be careful with Kamini*परमहंस नर-नारी में भेद नहीं करता ,तथापि कामिनी से सावधान* सिद्ध पुरुष अच्छे और बुरे के पार होते हैं, परन्तु फिर भी संसार के सामने आदर्श रखने के लिए उसे कामिनी से सावधानी बरतनी चाहिए।

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(68)

*परमहंस नर-नारी में भेद नहीं करता ,तथापि कामिनी से सावधान*  

496 परमहंस बालक सम , नहि नर-नारी भेद। 

662 काम बोध नहिं एक तेहि , जीत्यो दुर्ग अभेद।।

परमहंस ^ की अवस्था बालक जैसी होती है। पांच वर्ष के बालक की तरह उसे स्त्री और पुरुष में भेद नहीं मालूम होता। परन्तु फिर भी संसार के सामने आदर्श रखने के लिए उसे कामिनी से सावधानी बरतनी चाहिए। 

[.Paramahansa (flamingo = Swan) doesnt discriminate between Male and Female but still, To set an ideal before the world, he *The devotee of Swan*must be careful with Kamini. 

[(15 जून, 1883) परिच्छेद ~ 40, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

[^ ^A paramahamsa is one belonging to the highest order of monks; the word also means swan".  There is a popular tradition in India that a swan (राजहंस =Swan) can separate the milk from a mixture of milk and water. It is said that a secretion of acid turns the milk into curd, which the swan eats, leaving the water. Paramahansa (flamingo = Swan) doesnt discriminate between Male and Female but still, To set an ideal before the world, he must be careful with Kamini .  

* ईश्वर,माया , शक्ति * 

500 भगवन जब निष्क्रिय तब , ब्रह्म पुरुष कहलाय। 

853 जब कर्ता रूप सृष्टि करे , माया रूप हो जाय।।

भगवान जब निष्क्रिय अवस्था में होते हैं , सृष्टि, स्थिति प्रलय आदि कार्य नहीं करते , तब उन्हें ब्रह्म या पुरुष कहता हूँ। और जब क्रियाशील रूप में -सृष्टि , स्थिति प्रलय आदि कार्यों के कर्ता के रूप में उनका विचार करता हूँ , तब उन्हें शक्ति , प्रकृति या माया कहता हूँ। 

497 निज आंचल में बांध नर , ज्ञान अद्वैत भाव। 

966  जग में चाहो जो करो , दोष न छुवै पांव।।

अद्वैत ज्ञान को आँचल में बांधकर जो चाहो , करो ! तुम्हें कोई दोष नहीं लगेगा। 


*सिद्ध पुरुष अच्छे और बुरे के पार होते हैं * 

495 नाली जल अरु गंग जल , जिन्हको दोउ समान। 

961 ब्रह्मज्ञान तिन्हको भयो , भयो एक का ज्ञान।।

रानी रासमणि के कालीमंदिर में एक बार एक पागल-सा साधु आया था। एक दिन उसे कुछ खाने नहीं मिला , पर उसने किसी से कुछ नहीं माँगा। एक जगह एक कुत्ते को जूठी पत्तलों से जूठन खाते देख वह उसका कण पकड़ कर बोला - ' तुम खाते हो हमको नहीं देते ?' और उसी के साथ खाने लग गया। 

फिर काली-माता के मन्दिर में जाकर उसने ऐसी अपूर्व स्तव-स्तुति की कि मन्दिर मानो प्रकम्पित हो उठा। बाद में जब वह जाने लगा तब श्रीरामकृष्ण ने अपने भानजे हृदय को उसके साथ जाकर देखने को कहा। हृदय के उसके पीछे-पीछे थोड़ी दूर जाते ही उस साधु ने पलट कर कहा - 'तू क्यों आ रहा है?' हृदय ने कहा, 'मैं कुछ उपदेश चाहता हूँ। ' तब साधु ने कहा , 'जिस समय तुझे यह नाले का पानी और वह गंगा का पानी दोनों एक प्रतीत होंगे , जिस समय यह शहनाई की आवाज और कोलाहल की आवाज एक ही मालूम होगी , उस समय तुझे ठीक-ठीक ज्ञानलाभ होगा। ' 

श्रीरामकृष्ण कहा करते , " उस व्यक्ति की ज्ञानोन्माद -अवस्था थी। सिद्ध पुरुष संसार में बालकवत , पिशाचवत या उन्मत्तवत विचरण किया करते हैं।   

498 विविध करम नर करह हिं , जब तक हिय अज्ञान। 

970 होत  दरस क्षण भर भी , नहि छोड़े भगवान।।

बहु गृहस्थी के तरह तरह के कामों में सदा उलझी रहती है। पर जब उसके गर्भ में सन्तान आ जाती है तो उसके सारे काम छूट जाते हैं। बच्चा पैदा हो जाने के बाद तो उसे दूसरे काम-काज अच्छे ही नहीं लगते। तब वह दिन भर अपने बच्चे की ही देखभाल करती रहती है , उसे चूमती-पुचकारती हुई आनन्द में डूबी रहती है। मनुष्य अज्ञान -अवस्था में नाना प्रकार के कर्म करता है , किन्तु ईश्वर का दर्शन पा जाने पर फिर उसे वे कर्म अच्छे नहीं लगते , तब उसे ईश्वर की सेवा छोड़ दूसरे काम करने में रूचि नहीं आती, वह ईश्वर को क्षण भर के लिए भी छोड़ना नहीं चाहता।  

499 जो ईश्वर को पाइया , देखहि सब जग तेहि। 

971 नहि मिथ्या नहि स्वप्नवत , जानहि परम् सनेही।।

यदि तुम्हें ईश्वर का लाभ हो जाये तो फिर संसार असार नहीं प्रतीत होगा। जिसने उन्हें प्राप्त कर लिया है, वह देखता है कि वे ही यह जीवजगत बने हैं ! वह जब बच्चों को खिलाता है तो समझता है कि वह गोपाल को खिला रहा है ,पिता-माता को ईश्वर की दृष्टि से देखता है। और उनकी सेवा करता है। 

ईश्वर को जानकर संसार में रहने से अपनी ब्याहता पत्नी के साथ प्रायः सांसारिक सम्बन्ध नहीं रहता। दोनों भक्त बन जाते हैं और सदा ईश्वरसम्बन्धी वार्तालाप करते हैं। ईश्वरीय-प्रसंग में ही मग्न रहते हैं। वे दोनों भक्तों की सेवा करते हैं। सर्वभूतों में जो ईश्वर विद्यमान हैं , वे उन्हीं की सेवा करते हैं। 

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