श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(41)
* सच्चे नेता का स्वरुप *
[Character of True Leader]
364 मंत्र पढ़े मानव गुरु , कानहि मुख लगाई।
689 जगद्गुरु पढ़ प्राण मँह , देवहि मंत्र जगाई।।
मनुष्य-गुरु कान में मंत्र फूंकते हैं , परन्तु जगतगुरु प्राणों में मंत्र जगा देते हैं।
“साधुसंग की सदा आवश्यकता है । साधु ईश्वर से मिला देते हैं ।”
गुरुगृह-वास "The constant company of holy men [like C-IN-C, नवनीदा] is necessary. The holy man introduces one to God."
365 अधम गुरु बस देत है, चेला को उपदेश।
692 पालत तजत न खबर कछु , लेत न सुधि सन्देश।।
366 माध्यम गुरु उपदेश करे , देवे बहु विध ज्ञान।
692 प्रेम सहित समझावहिं , धरन प्रभु कै ध्यान।।
367 उत्तम गुरु तेहि जानिए , जो देवहि उपदेश।
692 बल दिखाई पथ चलावहि , जद्यपि चलत क्लेश।।
वैद्य की तरह आचार्य भी तीन प्रकार के होते हैं -उत्तम , मध्यम और अधम। जो वैद्य आकर , सिर्फ रोगी की नाड़ी देखकर दवा बता कर 'यह दवा लेना जी ' कहकर चला जाता है , रोगी ने दवा ली या नहीं इसकी कोई खबर नहीं लेता , वह अधम वैद्य है। इसी तरह कुछ आचार्य केवल उपदेश दे जाते हैं , शिष्य उनका पालन कर रहा है या नहीं --इसकी वे खबर नहीं रखते।
दूसरी श्रेणी के वैद्य रोगी को केवल दवा लेने के लिए कहकर ही चले नहीं जाते , परन्तु यदि रोगी दवा नहीं लेना चाहता हो , तो उसे दवा लेने के लिए तरह-तरह से समझाते -बुझाते हैं। ये मध्यम श्रेणी के वैद्य हुए। इसी तरह जो आचार्य शिष्यों के हित के लिए उन्हें बार- बार प्रेम से समझाते हैं , जिससे वे उपदेशों को धारण कर सकें और तदनुसार चल सकें , वे मध्यम श्रेणी के आचार्य हैं।
अंतिम श्रेणी के और उत्तम वैद्य वे हैं जो , अगर रोगी मीठी बातों से न माने तो बल का प्रयोग करते हैं , जरूरत पड़ने पर रोगी की छाती पर घुटना रखकर जबरदस्ती दवा पीला देते हैं। उसी प्रकार , उत्तम श्रेणी के आचार्य शिष्य को ईश्वर के पथ पर लाने के लिए , आवश्यक हो तो , बल तक प्रयोग करते हैं।
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{मनुष्य-गुरु शिष्य के कान में मंत्र फूंकते हैं, परन्तु " स्वामी विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा " में प्रशिक्षित C-IN-C का चपरास प्राप्त नवनीदा जैसा नेता (या महामण्डल का युवा प्रशिक्षण शिविर) युवाओं के हृदय में अपने जैसा मनुष्य * जिनको को देखने से मानो सूर्य के निकलने से जैसे हृदयकमल खिल उठता है !* वैसा 'मनुष्य' बनने और बनाने का मंत्र जगा देते हैं।
{Be and Make a 'Man' by looking whom ~ "the lotus of the heart burst into blossom !"}
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