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शनिवार, 5 जून 2021

*Immutability of the Leader* श्री रामकृष्ण दोहावली (67) ~*नेता की कूटस्थता *सिद्ध पुरुषों की निर्विकारिता*

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(67)  

*सिद्ध पुरुष की निर्विकारिता (अचल स्थिति)*

[नेता की कूटस्थता : The immutability of the Leader]  

489 मुक्त पुरुष निर्लिप्त सदा , पनडुब्बी सम जान। 

953 तज आसक्ति काम करे , करे जगत कल्याण।।

जब नारियल के पेड़ की टहनी झड़ जाती है , तो उसकी जगह सिर्फ उसका निशान रह जाता है। जिससे पता चलता है कि किसी समय इस स्थान पर एक टहनी थी। इसी प्रकार , जिसे ईश्वरलाभ हो जाता है उसमें अहंकार का केवल चिन्ह भर रह जाता है , कामक्रोध आदि का केवल आकार मात्र रह जाता है। उसकी अवस्था बालक की सी हो जाती है। बालक का सत्व , रज , तम में से किसी गुण से लगाव नहीं होता। 

बालक के मन में किसी वस्तु के प्रति खिंचाव पैदा होने में जितना समय लगता है , उस वस्तु को छोड़ देने में भी उसे उतना ही समय लगता है। तुम चाहो तो उससे एक पांच रुपये कीमत की धोती अधेली की गुड़िया दे फुसलाकर ले सकते हो - भले ही पहले वह बड़े जोर के साथ कहे , 'नहीं , मैं नहीं दूँगा , मेरे बाबूजी ने मोल ले दी है। ' 

फिर बालक के लिए सब समान हैं - ये बड़े हैं , वह छोटा है , यह ज्ञान उसे नहीं है। इसलिए उसे , अमीर -गरीब , जाति-पाँति का विचार नहीं है। माँ ने कह दिया , 'वह तेरा दादा है ', फिर चाहे वह लुहार ही हो , वह उसके साथ बैठकर एक ही थाली में से रोटी खायेगा। बालक को घृणा नहीं , शुचि-अशुचि का ज्ञान नहीं। शौच के बाद हाथ भी नहीं मटियाता !   

उसी तरह मुक्त पुरुष भी संसार में किस तरह रहते हैं , जानते हो ? -पनडुब्बी चिड़िया की तरह , जो पानी में  रहती तो है पर उसके बदन पर पानी नहीं लगता। अगर कभी थोड़ा लग भी गया तो एक बार बदन को झाड़ लेने से तुरंत सब पानी झड़ जाता है।  

490 काम कंचन विष न धरे , ज्ञानवान के देह। 

954 मंत्र मार जनु सांप को, खेलहि करहि स्नेह।।

साँप को पकड़ने जाओ तो तुरंत काट खाता है , पर कोई अगर उसका मंत्र जान ले तो कई साँपों को अपने गले में लपेटकर खेल दिखला सकता है। उसी प्रकार , ज्ञानलाभ कर लेने के बाद मनुष्य पर कामिनी -कांचन का प्रभाव नहीं पड़ता। 

491 झड़त हि दुम  अज्ञान की , होवहि मुक्त स्वभाव। 

955 चाहे जग में जग करे , या भगवन से भाव।।

मेढ़क के बच्चे की जब दुम झड़ जाती है तब वह पानी में भी रह सकता है और जमीन पर भी। अविद्यारूपी दुम के झड़ जाने पर मनुष्य मुक्त हो जाता है। तब वह सच्चिदानन्द भगवान में भी मग्न रह सकता है , और संसार में भी विचरण कर सकता है। 

492 जग में रह जग काम करे , करे न जग का संग।

956 मुक्त पुरुष वायु समान , सदा निर्लिप्त असंग।।

हवा चन्दन की सुगंध और विष्ठा की दुर्गन्ध दोनों को लेकर बहती है , परन्तु उनमें से किसी के साथ मिल नहीं जाती। इसी प्रकार ,मुक्त पुरुष संसार में रहते तो हैं , परन्तु वे संसार के साथ मिलकर एक नहीं हो जाते। 

493 जस जल में मक्खन रहे , तस ज्ञानी जग माहिं। 

958 हरिदर्शन जिनको हुआ , बाँधे न माया ताहिं।।

दूध को पानी में छोड़ दो तो वह पानी के साथ मिल कर एक हो जाता है। परन्तु अगर उसका मक्खन बना लिया जाये तो फिर वह पानी में नहीं मिलता। तब वह पानी पर तैरने लगता है। इसी तरह , ईश्वरलाभ कर लेने के पश्चात् मनुष्य हजारों संसरासक्त बद्ध जीवों के बीच रहकर भी स्वयं बद्ध नहीं होता। 

494 ब्रह्म जगत अरु जीव सब , एक ब्रह्म के छोर।

959 जो जाना वह मुक्त है , बंधे न माया डोर।।  

 जिसने जीव , जगत तथा ब्रह्म  इन तीनों के एकत्व की उपलब्धि कर ली है , उसे अच्छे और बूरे का बंधन बांध नहीं सकता। 

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