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शनिवार, 5 जून 2021

*Characteristics of a Thrice Born Leader *श्री रामकृष्ण दोहावली (66) ~*"नरसिंह जयंती " = "वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी" के ही दिन "भगवान नरसिंह " का अवतार लिया था* श्री नवनीदा की जन्म शतवार्षिकी 15 August 2031] " तीन बार जन्मे नेता " सिद्धिप्राप्त-मनुष्य के कुछ लक्षण *ईसामसीह से भी हजारों वर्ष पहले भक्त प्रह्लाद ने नरसिंह भगवान से अपने बैरी पिता को क्षमा कर देने की प्रार्थना की थी * 'C-IN-C' नवनीदा, ईसा, प्रह्लाद जैसे कुछ मार्गदर्शक नेताओं (गुरु) के लक्षण*

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(66)  

 *सिद्धिप्राप्त- मनुष्य "Thrice Born Leader" के कुछ लक्षण* 

[Some Characteristics of a Thrice Born Man (leader-'C-IN-C' like Navani Da)*

486 हरिदर्शन जिनको भयो , गयो देह को भान। 

950 देह आत्मा अलग-अलग , सो नर  सकहि जान।।

देह का जन्म हुआ है इसलिए मृत्यु भी होगी। किन्तु आत्मा की मृत्यु नहीं है। सुपारी पक जाने पर छिलके से अलग हो जाती है , परन्तु कच्ची सुपारी को छिलके से अलग करना बड़ी टेढ़ी खीर है। ईश्वर के दर्शन होने पर देहात्मबुद्धि चली जाती है। तब देह और आत्मा अलग अलग हैं , यह अनुभव हो जाता है। 

487 बैरी ठोके कील पर , ईसु चाहत कल्याण। 

951 निर्वोरि जगभूषण वे , करुणामय भगवान।।

488  बैरी देवे दुःख पर , संत करे कल्याण। 

951 धन्य भगत प्रह्लाद है , धन्य ईसु भगवान।।

यहूदियों ने ईसामसीह को क्रूस पर चढ़ाकर उनकी देह में कीलें ठोकीं, पर तब भी उन्होंने उनके कल्याण के लिए प्रार्थना की। यह कैसे सम्भव है ? --गीले नारियल में कील ठोकने से वह भीतर की गरी तक चुभती है; परन्तु नारियल के सुख जाने पर वह गरी खोपड़े से अलग हो जाती है , तब बाहर कील ठोंकने पर वह गरी को नहीं लगती !   

ईसामसीह, भक्त प्रह्लाद , श्री नवनीदा  जैसे " तीन बार जन्मे नेता " (Thrice Born Leader) नारियल के सूखे खोपड़े की तरह थे , वे देह से अलग थे।  इसलिए देह के कष्ट से उन्हें पीड़ा नहीं पहुँच सकी। देह में कीलें ठोकने पर भी उन्होंने आनन्दित -चित्त से बैरियों के कल्याण के लिए प्रार्थना की थी। 

[ईसामसीह से भी हजारों वर्ष पहले भक्त प्रह्लाद ने नरसिंह भगवान से अपने बैरी पिता को क्षमा कर देने की प्रार्थना की थी : 

जब राजा हिरण्यकश्यप का अंहकार और अत्याचार चरम पर पहुंच गया, तब भगवान विष्णु को नरसिंह का अवतार लेना पड़ा।  हिरण्यकश्यप ने उनके भक्त प्रहलाद पर अत्याचार की जब सभी सीमाएं पार कर दीं तब भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था।  इस अवतार में भगवान विष्णु अतिक्रोध में नजर आते हैं.

एक कथा के अनुसार असुरराज हिरण्यकश्यप ने अपने विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद की हत्या के कई प्रयत्न किए, परंतु सभी व्यर्थ गए। परेशान होकर एक दिन उसने प्रह्लाद को दरबार में बुलाया और बोला- नीच, दुष्ट। तीनों लोकों के शासक मेरे नाम से थर-थर कांपते हैं और तू निर्भय होकर मेरा विरोध करता रहता है। बता मुझे, इसकी शक्ति तुझमें कहां से आती है?

इस प्रश्न पर प्रह्लाद ने निर्भयता से कहा - उसी से, जिससे आपको भी मिलती है। वहीं जो आपमें, मुझमें और हर कण-कण में बसा हुआ है। हिरण्यकश्यप बोला - अच्छा! तो क्या वह इस स्तंभ में भी वह है? प्रह्लाद ने जबाव दिया - निश्चय ही है। उसकी बात सुनकर असुरराज ने एक घूंसा स्तंभ पर मारा, तो उसमें विस्फोट हुआ और भगवान विष्णु नृसिंह अवतार में प्रकट हुए। देखने में उनका सिर सिंह का और धड़ मानव का था। उनका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था।

 उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे राजमहल की दहलीज पर ले गए. भगवान नरसिंह ने उसे अपनी जांघों पर पटका और उसके सीने को नाखूनों से फाड़ दिया.

उधर स्वर्ग में देवांगनाओं को जब यह समाचार मिला कि भगवान के हाथों हिरण्यकशिपु की जीवन-लीला समाप्त हो गयी, तब वे आनन्द से खिल उठीं और भगवान पर बारंबार पुष्पों की वर्षा करने लगीं।

इसी समय ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर आदि देवगण, ऋषि, पितर, सिद्ध, विद्याधर, महानाग, मनु, प्रजापति, गन्धर्व, अप्सराएँ, चारण, यक्ष, किम्पुरूष, वेताल, किंनर और भगवान के सभी पार्षद उनके पास आये और थोड़ी दूर पर स्थित होकर सभी ने अंजलि बाँधकर अलग-अलग नृसिंह भगवान की स्तुति की ।

इस प्रकार स्तवन करने पर भी जब भगवान का क्रोध शान्त नहीं हुआ, तब देवताओं ने लक्ष्मी जी को उनके निकट भेजा, परंतु भगवान के उस उग्र रूप को देखकर वे भी भयभीत हो गयीं और उनके पास तक न जा सकीं । तब ब्रह्मा ने प्रहलाद से कहा “बेटा ! तुम्हारे पिता पर ही तो भगवान् कुपित हुए थे । अब तुम्हीं जाकर उन्हें शांत करो” ।

भगवान सिहांसन पर बैठे है, प्रह्लाद जी एक-एक सीढी चढ रहे है, और भगवान की स्तुति करते जा रहे है.जैसे-जैसे प्रह्लाद जी आगे बढ रहे है वैसे-वैसे भगवान शान्तं होते जा रहे है. उन्होंने भावपूर्ण हृदय तथा निर्निमेष नयनों से भगवान् को निहारते हुए प्रेम-गदगद वाणी से स्तुति की । प्रहलाद द्वारा की गयी स्तुति से नृसिंह भगवान् संतुष्ट हो गये और उनका क्रोध जाता रहा । 

प्रह्लाद जी को अपनी गोदी मे बैठा कर प्यार से जीभ से चाटने लगे मानो कह हो प्रह्लाद मुझे आने मे देर हो गई। और तेरे पिता हिरण्नायाकश्यपु ने मेरे कारण तुम्हे बहुत कष्ट दिए मुझे माँफ कर दो.

भगवान ने कहा- प्रह्लाद मुझसे कुछ माँग लो.

तब प्रहलाद ने कहा “मेरे वरदानि शिरोमणि स्वामी ! यदि आप मुझे मुँहमाँगा वरदान देना चाहते हैं तो ऐसी कृपा कर दीजिये कि मेरे हृदय मे कभी किसी कामना का बीज अंकुरित ही न हो” । यह सुनकर नृसिंह भगवान् ने कहा “वत्स प्रहलाद ! तुम्हारे-जैसे एकान्त प्रेमी भक्त को यद्यपि किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं रहती तथापि तुम केवल एक मन्वन्तरतक मेरी प्रसन्नता के लिये इस लोक में दैत्याधिपति के समस्त भोग स्वीकार कर लो ।

यज्ञभोक्ता ईश्वर के रूप में मैं ही समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान हूँ, अतः तुम मुझे अपने हृदय में देखते रहना और मेरी लीला-कथाएँ सुनते रहना । समस्त कर्मों के द्वारा मेरी ही आराधना करके अपने प्रारब्ध-कर्म का क्षय कर देना । भोग के द्वारा पुण्य कर्मों के फल और निष्काम पुण्य कर्मों के द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ जाओगे ।

देवलोक में भी लोग तुम्हारी विशुद्ध कीर्ति का गान करेंगे । इतना ही नहीं, जो भी हमारा और तुम्हारा स्मरण करेगा, वह समस्त कर्म-बंधनों से मुक्त हो जायेगा” । इस पर प्रहलाद ने कहा “दीनबन्धो ! मेरी एक प्रार्थना यह है कि मेरे पिता ने आपको भ्रातृहन्ता समझकर आपसे और आपका भक्त जानकर मुझसे जो द्रोह किया है, उस दुस्तर दोष से वे आपकी कृपा से मुक्त हो जायँ, मेरे पिता कि सद्गति हो।”

भगवान ने कहा- प्रह्लाद तुम अपने पिता की बात करते हो, मेने तो आज से तुम्हारी इक्कीस पीढिंया ही तार दी। इस तरह भगवान प्रह्लाद को दर्शन दे कर अपने लोक को गये, प्रहलाद ने अनेको वर्षों तक राज्य किया.
  भगवान विष्णु ने अपने प्रिय "भक्त प्रह्लाद" को बचाने के लिए "वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी" के ही दिन  "भगवान नरसिंह " का अवतार लिया था। इसीलिए "नरसिंह जयंती " का अपना एक विशेष धार्मिक महत्व है ! ऐसी मान्यता है कि जब भगवान का कोई भक्त, किसी बड़ी मुसीबत में फंस जाता है, तो सच्चे मन से स्मरण करने से भगवान नरसिंघ उसकी रक्षा अवश्य करते हैं। वे अपने भक्तों की बड़ी से बड़ी बाधा को भी क्षण में दूर कर देते हैं।  हिन्दू पंचांग के अनुसार 2021 में 'वैशाख शुक्ल, चतुर्दशी तिथि ' दिनांक 25 मई, दिन मंगलवार, को पड़ती है।  अतः उसी दिन  'भगवान नरसिंह की जयंती'   (Narsingh Jayanti, 2021) मनाई जाएगी। बीते वर्ष यानी 2020 में यह जयंती 6 मई को
 मनाई गई थी। 


श्री वराह- लक्ष्मी -नरसिम्हा स्वामी मंदिर, सिंहाचलम मंदिर

[श्री नवनीदा की जन्म शतवार्षिकी 15 August 2031महामण्डल ब्लॉग : 28 मई 2018  'आर्थिक वैश्वीकरण बनाम आध्यात्मिक वैश्वीकरण' (Economic Globalization versus Spiritual Globalization.) 

484 श्री हरि सब जग वास करें , नर मँह अधिक प्रकाश। 

946 तिन्ह मँह भगत सतोगुणी , जो छोड़ा भोग आस।। 

ईश्वरलाभ हो जाने के बाद सर्वत्र सभी वस्तुओं में वे ही विराजमान दिखाई देते हैं। परन्तु मनुष्यों में उनका अधिक प्रकाश है। फिर मनुष्यों में जो सतोगुणी भक्त हैं , जिनमें कामिनी-कांचन के भोग की बिल्कुल इच्छा नहीं , उनके भीतर और भी अधिक प्रकाश है।  

485 हरिदर्शन पर भगत गण , चाहत आशीर्वाद। 

947 मोक्ष सुख नहिं छह प्रभु , दे दो लीला स्वाद।।

ईश्वरदर्शन के बाद भक्तों को उनकी लीला देखने की अभिलाषा होती है। रावण बध के बाद जब रामचन्द्रजी राक्षसपुरी में प्रवेश करने लगे तो बूढी निकषा दौड़ती हुई भागने लगी। 

तब लक्ष्मण बोले , " राम ! कैसे अचरज की बात है , देखो। यह निकषा कितनी बूढी है, इसने कितना अधिक पुत्रशोक भोगा है , फिर भी इसे प्राणों का इतना भय है कि भाग रही है ! 

रामचन्द्रजी ने निकषा को अभय प्रदान करते हुए पास बुलवाकर उसके भागने का कारण पूछा।  तब निकषा बोली, " राम, मैं इतने दिन जीवित हूँ इसीलिए तुम्हारी इतनी लीलाएं देख पा रही हूँ। मुझे और भी जीने की इच्छा है , ताकि मैं तुम्हारी और भी लीलायें देख सकूँ। "        

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