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शनिवार, 5 जून 2021

$$$*result of devotion to Mother Kali~ चरित्र के २४ गुण * श्री रामकृष्ण दोहावली (48) "दया सत्संग नाम गुण , सत्य विवेक वैराग् ~अनुरागरूपी बाघ ' "

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(48)

*माँ काली की भक्ति का परिणाम हैं ~चरित्र के २४ गुण  * 

[24 qualities of character are the result of devotion to Mother Kali ] 

409 दया सत्संग नाम गुण , सत्य विवेक वैराग्। 
 764 होत उदय तिन्हके हिय , जिन्हके हिय अनुराग।।

ईश्वर के प्रति अनुराग जग जाने के बाद -विवेक , वैराग्य , जीवों के प्रति दया , साधुसेवा , सत्संग , ईश्वर की महिमा का गुणगान , सत्यवादिता इत्यादि सद्गुणों का उदय होता है !

405 जस जस  कालीपद  प्रेम बढ़े , घटे जगत सुख भोग। 

757 तज विषयरस इन्द्रियाँ , होहिं हरि संग योग।।

एक भक्त - क्या पहले विवेक-प्रयोग करके इन्द्रियों को वशीभूत करने की आवश्यकता नहीं है ? 

श्रीरामकृष्ण - हाँ , वह भी एक मार्ग है - विचार-मार्ग। लेकिन भक्तिमार्ग में इन्द्रियसंयम अपनेआप , बड़ी सरलता से हो जाता है। ईश्वर के प्रति प्रेम जितना अधिक बढ़ता है , इन्द्रिय-सुख उतने ही नीरस लगने लगते हैं। जैसे जिस दिन पुत्र मर जाता है , उस दिन माता-पिता भोग-सुख की बात तक नहीं सोच सकते। 

406 ईश्वर प्रति अनुराग हिय , जो जागहिं इक बार। 
759 कामक्रोध सब सहज नशे , जद्यपि बल अपार।।

किसी गीत में कवि ने ईश्वरानुराग की तुलना को बाघ से  करते हुए कहा था - " अनुराग रूपी बाघ।"  जिस बाघ अन्य पशुओं को झटपट खा जाता है , उसी प्रकार 'अनुरागरूपी बाघ ' भी कामक्रोध आदि खा जाता है। एक बार यदि ईश्वर के प्रति जग जाये तो कामक्रोध आदि रिपु बिलकुल नष्ट हो जाते हैं। कृष्ण के प्रति अनुराग के बल पर गोपियों को यह उच्च अवस्था प्राप्त हुई थी।  

407 जस पतंग दीप को चहे , जस चींटी गुर कौर। 
761 तस भक्तन भगवान को , नहि चाहत कछु और।।

प्रश्न -भगवान के लिए भक्त सब कुछ क्यों छोड़ देता है ?
 
उत्तर - एक बार दीपक को देख लेने के बाद पतंगा फिर अँधेरे में नहीं जाता , चींटी गुड़ में लिपटकर प्राण खो देती है , पर उसे नहीं छोड़ती। इसी तरह भक्त भी ईश्वर के लिए प्राणों की बाजी लगा देता है , परन्तु दूसरा कुछ नहीं चाहता। 
...डाक्टर (सहास्य )- पतंगा भले ही जल जाए पर , पर उजाले की ज्योति को नहीं छोड़ेगा ?

श्रीरामकृष्ण - पर भक्त (सत्यार्थी !) ऐसे पतंगे की तरह जल कर नहीं मरते। भक्त जिस उजाले के पीछे दौड़ते हैं वह तो मणि का उजाला है ! वह बहुत  उज्ज्वल , स्निग्ध और शीतल ज्योति है ! उस उजाले से  शरीर नहीं जलता , यह तो हृदय को शांति और आनंद से भर देता है !
  
408 जो चाहत हरि दरस को , जानत नहीं पर राह। 
763 इच्छा बल अनुरागबल , पावत इक दिन थाह।।

जो यथार्थमार्ग नहीं जानता (जो ब्रह्मजिज्ञासु, इन्द्रियातीत सत्य का जिज्ञासु 'सत्य प्राप्ति' का यथार्थ मार्ग नहीं जानता, जिसे देखकर एथेंस का सत्यार्थी देवकुलिश अँधा हो गया था ?)  परन्तु जिसकी ईश्वर ( माँ काली) पर भक्ति है। और " उन्हें " (माँ काली को) जानने की तीव्र इच्छा है वह जिद्दी खोजी केवल भक्ति के बल पर ही ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। 
एक आदमी बड़ा भक्तिमान था। एक बार वह जगन्नाथजी के दर्शन के लिए निकला। पर वह पुरीधाम का रास्ता नहीं जानता था। इससे वह पुरी की ओर न जाकर भटकते हुए पश्चिम की ओर चला गया; और व्याकुल होकर लोगों से राह पूछने लगा। लोगों ने उससे कहा - " यह रास्ता नहीं , उस रास्ते से जाओ। अंत में वह भक्त पुरी जा पहुंचा। और उसने जगन्नाथजी के दर्शन भी किये।

देखो , अगर इच्छा हो तो राह न जानने पर भी कोई न कोई (ब्रह्मविद-अवतार -मार्गदर्शकनेता ) बतला ही देता है। पहले भूल हो सकती है , पर अंत में सही रास्ता मिल ही जाता है !   
  
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