श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
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*साकार और निराकार - कुछ ईश्वरीय रूप *
[ God with Form and without form - some divine form ]
463 सत साधक जस जस बढ़हि , परमेश्वर की ओर।
888 हरि ऐश्वर्य तस -तस घटहि , अंत ज्योत अंजोर।।
ईश्वर की ओर तुम जितना ही अधिक अग्रसर होओगे , उतना ही उनके ऐश्वर्य का भान कम होता जायेगा। साधक को पहले दर्शन होते हैं दशभुजाधारिणी ईश्वरी (दुर्गा ) के रूप में। उस रूप में ऐश्वर्य का अधिक प्रकाश है। फिर दर्शन होते हैं द्विभुज रूप में -तब दस भुजाएं नहीं रहतीं , उतने अस्त्र -शस्त्र नहीं रहते। फिर गोपाल रूप के दर्शन होते हैं -कोई ऐश्वर्य नहीं , केवल एक कोमल बालक का रूप है। इसके बाद भी दर्शन होते हैं -केवल ज्योति के दर्शन !
462 भगति हिम को पात प्रभु , धरत रूप साकार।
881 जस पानी जम बरफ बने , जल तो निराकार।।
जिस प्रकार पानी जनकर बर्फ बन जाता है , उसी प्रकार निराकार , अखण्ड , सच्चिदानन्द ब्रह्म ही साकार रूप धारण करता है। जैसे बर्फ पानी से ही पैदा होती है , पानी में ही रहती है , और पानी में ही मिल जाती है , वैसे ही ईश्वर का साकार रूप भी निराकार ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है , उसी में अवस्थित रहता है तथा उसी में विलीन हो जाता है।
ईश्वर विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं - कभी मानव रूप में , तो कभी चिन्मय रूप में। ईश्वरीय रूपों पर विश्वास रखना चाहिए।
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