सोमवार, 28 जून 2021

श्री रामकृष्ण दोहावली (20 E): * ज्ञान-चैतन्य की आँधी में जातिव्यवस्था तथा बाह्याचार उड़ जाते हैं *

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर 

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(20~E)

  (साधक जीवन के लिए कुछ सहायक बातें)

* जातिव्यवस्था तथा बाह्याचार * 

192 धूल आँधी से मिटत जस , बट-पीपल पहचान। 

315 जात पात मिट जात तस , होत उदित जब ज्ञान।।

जब आँधी चलती है , तब कौनसा बड़ है और कौन सा पीपल ? यह पहचान में नहीं आता।  इसी तरह जब ज्ञान-चैतन्य की आँधी आ जाती है तब जातिभेद नहीं रह जाता। 

317 - कृष्णकिशोर [ठाकुर के बाल्य -शखा] ने पूछा, " तुमने जनेऊ क्यों फेंका ? " 

    श्रीरामकृष्ण- जब मेरी यह अवस्था हुई तब मुझमें 'अश्विन की आँधी ' * उठ आयी ; और सब कुछ कहाँ से कहाँ उड़ाकर ले गयी पहले का कोई चिन्ह शेष नहीं रह गया। होश-हवास ही नहीं रहा।  बदन पर कपड़ा ही नहीं रहता था , तो जनेऊ भला कैसे रहे ? इसीलिए मैंने उससे कहा, " एक बार तुम्हें भी वैसा भगवत-उन्माद हो जाये , तो तुम समझ पाओगे।  "  

[16 मई 2020 में आये 'अम्फान ' (Super Cyclonic Storm Amphan) तूफान जैसा ही एक बड़ा भारी तूफान बंगाल में  1864 ई ० के आश्विन महीने में (ठाकुर के समय में) भी आया था। उसी प्रकार  ज्ञान और चेतना का महा-चक्रवात जब किसी के जीवन में आता है, तब उसमें जातिगत भेदभाव नहीं रह जाता।  Similarly, When the Super Cyclonic Storm  of knowledge and consciousness comes in one's own life , then caste discrimination does not exist for him.] 

193 मतवाला हरि-प्रेम का का, सच्चा भगत सुजान। 

316 समाज बंधन तेहि नहिं , कह ठाकुर भगवान।। 

जो सच्चा भक्त है , जो आकण्ठ भगवत्प्रेम का प्याला पीकर नशे में मतवाला बन गया है ,वह सब समय सामाजिक बन्धनों का पालन नहीं कर सकता।

191 पपड़ी सूखे घाव के , सहजहि जस झड़ जात। 

312 तस उपजत हिय ज्ञान के , नशत जात अरु पाँत।।

      घाव सूख जाने पर उसके ऊपर की पपड़ी अपने आप झड़ जाती है , पर घाव सूखने से पहले ही अगर उसे खींचकर निकाला जाये , तो खून आ जाता है। इसी प्रकार , ज्ञान -चैतन्य हो जाने से जात-पाँत नहीं रह जाती। परन्तु अज्ञान अवस्था में (Hypnotized अवस्था या भेंड़त्व की अवस्था में रहते हुए में) जबरदस्ती जातिभेद आदि हटाने जाओ तो इसका परिणाम बुरा होता है। 

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 [ " नारद का माया-दर्शन"  हो जाने के बाद , जो व्यक्ति फिर से संतुलन (poise) की अवस्था में ले आया गया है, वह सब समय सामाजिक बन्धनों का पालन नहीं कर पाता।]  



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