श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(52)
*भक्ति तथा ज्ञान के बाड़ों को बांधना*
425 ब्रह्म वेदमत गावहिं , योगी आत्माराम।
792 भगत कहे भगवान तेहि , भगवन एक बहु नाम।।
एक ही ईश्वर को वेदान्तवादी ब्रह्म कहते हैं , योगी आत्मा कहते हैं और भक्त भगवान कहते हैं। एक ही ब्राह्मण जब पूजा करता है , तो पुजारी कहलाता है और जब रसोई बनाता है तो रसोइया।
427 पुनि-पुनि माया छावहिं , जल काई की नाइ।
796 ज्ञान भक्ति का घेरा , माया फिर न छाइ।।
तालाब के जल पर छाई हुई काई या जंगली बेलों को हटा देने से वे फिर आकर जल पर छा जाती हैं; पर यदि उन्हें हटाकर बाँस के घेरे बाँध दिए जाएँ तो फिर वे नहीं आ सकती। इसी प्रकार , माया को हटा देने से वह फिर आ खड़ी होती है ; परन्तु यदि उसे हटाकर ज्ञान-भक्ति का घेरा बाँध दिया जाय तो फिर वह नहीं आ पाती। तभी भगवान प्रकाशित होते हैं।
426 नाम सुनत इक बार जो , नैन बहावे नीर।
794 ज्ञानवान तेहि जानिए , जो होहिं पुलक शरीर।।
एक भक्त -यह कैसे जाना जाये की गृहस्थ-आश्रम में रहते हुए भी अमुक व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हुआ है?
श्रीरामकृष्ण -जब एक बार हरि का नाम सुनते ही किसी के नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगें और देह में रोमांच हो जाये तो अवश्य जानना कि उसे ज्ञान प्राप्त हो गया है।
424 शुद्ध ज्ञान भक्ति शुद्ध , दोनों एक ही बात।
791 भिन्न भिन्न है पंथ पर , एक लक्ष्य को जात।।
शुद्ध ज्ञान तथा शुद्ध भक्ति दोनों एक ही हैं।
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