शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

🙂🔱🙏 परिच्छेद-125, श्रीरामकृष्ण तथा डाक्टर सरकार /🙂2nd January, 2024 : प्रभु मैं गुलाम तेरा का भावार्थ - [( 24 अक्टूबर, 1885)- श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ] 🙂डॉ० सरकार के साथ 'तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान' पर चर्चा 🙂 🙏सनातन धर्म और विभिन्न नाम वाले धर्मों के इतिहास का तुलनात्मक अध्ययन 🙂🙏मैक्स मुलर का धर्म विज्ञान : जो कुछ है सब तू ही है 🙂 🔱🙏साहचर्य का नियम -यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं दिया 🙂 🔱 >>>द्वैताद्वैतविवर्जितम् : 🙂Thanks to Shri Rama ! साभार /🙏धर्म सनातन है ! [$@$ स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना [65-29 A] "(धर्म और समाज),मंगलवार🙂 🔱द्वैताद्वैतविवर्जितम् अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण-विजय आदि भक्तों के संग में- 🙂 🔱

  *परिच्छेद- १२५. 

 🙂श्रीरामकृष्ण तथा डाक्टर सरकार-2  🙂 

(१)

[( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

 🙂🙏डॉ० सरकार के साथ 'तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान'  पर चर्चा 🙂🙏 

[Discussion on 'Comparative Anatomy' with Dr. Sarkar ] 

[ सर्वधर्म परीक्षण - तुलनात्मक धर्म)]

[ডাক্তার সরকার ও সর্বধর্ম পরীক্ষা (Comparative Religion)]

नरेन्द्र, महिमाचरण, मास्टर, डाक्टर सरकार आदि भक्तों के साथ श्रीरामकृष्ण श्यामपुकुर के दुमँजले पर कमरे में बैठे हुए हैं । दिन के एक बजे का समय होगा । २४ अक्टूबर १८८५, कार्तिक नवमी ।

October 24, 1885 : It was about one o'clock in the afternoon. Sri Ramakrishna was seated on the second floor of the house at Syampukur. Dr. Sarkar, Narendra, Mahimacharan, M., and other devotees were in the room. 

ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ নরেন্দ্র, মহিমাচরণ, মাস্টার, ডাক্তার সরকার প্রভৃতি ভক্তসঙ্গে শ্যামপুকুর বাটীতে দ্বিতলার ঘরে বসিয়া আছেন। বেলা প্রায় একটা। ২৪শে অক্টোবর, ১৮৮৫, ৯ই কার্তিক (শনিবার, কৃষ্ণা প্রতিপদ)।

श्रीरामकृष्ण (डॉक्टर सरकार से) - तुम्हारी यह (होमियोपैथिक) चिकित्सा अच्छी है ।

Referring to the homeopathic system of medicine, the Master said to Dr. Sarkar, "This treatment of yours is very good."

শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমার এ (হোমিওপ্যাথিক) চিকিৎসা বেশ।

डाक्टर - इसमें रोगी की अवस्था पुस्तक में लिखे चिन्हों के साथ मिलायी जाती है । जैसे अंग्रेजी बाजा बजाने की लिपि, -स्वरलिपि (score) वह पढ़ी जाती है और साथ ही साथ गायी भी ।

DOCTOR: "According to homeopathy the physician has to check up the symptoms of the disease with the medical book. It is like Western music. The singer follows the score.

ডাক্তার — এতে রোগীর অবস্থা বইয়ের সঙ্গে মেলাতে হয়। যেমন ইংরেজী বাজনা, — দেখে পড়া আর গাওয়া।

“गिरीश घोष कहाँ हैं ? – परन्तु रहने दो । कल का जगा हुआ होगा ।”

"Where is Girish Ghosh? Never mind. Don't trouble him. He didn't sleep last night."

“গিরিশ ঘোষ কই? — থাক্‌ থাক্‌ কাল জেগেছে।”

श्रीरामकृष्ण - अच्छा, भाव की अवस्था में भंग जैसा नशा (drunk with siddhi) चढ़ता है, यह क्या है ?

MASTER: "Well, when I am in samadhi I feel intoxicated as if I were drunk with siddhi. What have you to say about that?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, সিদ্ধির নেশার মতো ভাবাবস্থায় হয়, ওটি কি?

डाक्टर (मास्टर से) – स्नायुओं के केन्द्र हैं, उनकी क्रिया बन्द हो जाती है, इसीलिए सब जड़ हो जाता है - इधर पैर लड़खड़ाते रहते हैं । सब शक्ति मस्तिष्क की ओर जाती है । इसी स्नायविक क्रिया (nervous system) से जीवन है गरदन के पास मेडूला आब्लांगेटा (Medulla Oblongata) है, इसकी क्षति होने पर जीवन का दीपक बुझा हुआ जानो

[मेडुला ओब्लॉन्गाटा न्यूरोएनाटॉमी के अनुसार मेड्यूला ऑब्लांगेटा मस्तिष्क के तीन भागों में से एक है। यह स्नायु प्रणाली (nervous system) है जो मस्तिष्क से रीढ़ की हड्डी के माध्यम से पूरे शरीर की नसों तक संदेश भेजने के लिए न्यूरॉन्स (न्यू-रॉन्ज़) नामक छोटी कोशिकाओं का उपयोग करता है। ये संदेश को रेगुलेट करने में मदद करते हैं। ब्रेनस्टेम, मस्तिष्क का वो हिस्सा होता है जो गर्दन के पास रीढ़ की हड्डी से जुड़ता है। यह दिमाग के उस हिस्से के सामने होता है जिसे 'cerebellum' (सेरिबैलम-अनुमस्तिष्क या “little brain.”) कहते हैं। यह मस्तिष्क से पूरे शरीर में संदेश भेजने के लिए जिम्मेदार है। न्यूरोएनाटॉमी के अनुसार मेड्यूला ऑब्लांगेटा के कार्य में कई तरह की जिम्मेदारियां शामिल हैं, जैसे: संतुलन, रक्तचाप, दिल की धड़कन, सांस लेना,  सुनना, सोने-जागने का चक्र, खांसी, छींक, निगलने, उल्टी करने,  चेहरे की संवेदनाएँ  जैसी अन्य स्वचालित प्रक्रियाओं का प्रबंधन करना।

DOCTOR (to M.): "In that state, the nerve centers cease to function. Hence the limbs become numb. Again, the legs totter because all the energy rushes toward the brain. Life consists of the nervous system. There is a nerve center in the nape of the neck called the medulla oblongata. If that is injured, one may die."

[The nervous system uses tiny cells called neurons (NEW-ronz) to send messages back and forth from the brain, through the spinal cord, to the nerves throughout the body.]

ডাক্তার (মাস্টারকে) — Nervous centre — action বন্ধ হয়, তাই অসাড় — এ-দিকে পা টলে, যত energies brain-এর দিকে যায়। এই nervous system নিয়ে Life। ঘাড়ের কাছে আছে — Medulla Oblongata; তার হানি হলে Life extinct হতে পারে।

श्रीयुत महिमाचरण चक्रवर्ती [ जिनके घर में महामण्डल के C-IN-C नवनीदा का जन्म हुआ था ] ने उस कुण्डलिनी शक्ति का वर्णन करना प्रारम्भ किया जो सुषुम्ना नाड़ी के भीतर रहती है - 'मैरुदण्ड के भीतर सूक्ष्म भाव से सुषुम्ना नाम की एक नाड़ी है - इसे कोई देख नहीं सकता । यह महादेवजी का वाक्य है ।’

Mahima Chakravarty began to describe the Kundalini. He said: "The Sushumna nerve runs through the spinal cord in a subtle form. None can see it. That is what Siva says."

শ্রীযুক্ত মহিমা চক্তবর্তী সুষুম্না নাড়ীর ভিতরে কুলকূণ্ডলিনী শক্তির কথা বলিতেছেন, — “স্পাইন্যাল্‌ কর্ড-এর ভিতর সুষুম্না নাড়ী সূক্ষ্মভাবে আছে — কেউ দেখতে পায় না। মহাদেবের বাক্য।”

डाक्टर - शिव (महादेव) ने मनुष्य की परीक्षा उसकी पूर्ण अवस्था में की । परन्तु युरोपियनों ने तो मनुष्य की जाँच गर्भावस्था (Embryo-भ्रूण अवस्था) से लेकर पूर्ण अवस्था ( maturity)तक सभी में की है । इसका तुलनात्मक इतिहास समझ लेना अच्छा है । भीलों (सन्थालों) का इतिहास पढ़कर पता चला है कि काली एक भीलनी (सन्थाली महिला थी), वह खूब लड़ी थी ! (सब हँसते हैं)

DOCTOR: "Siva examined man only in his maturity. But the Europeans have examined man in all stages of his life from the embryo to maturity. It is good to know comparative history. From the history of the Sonthals one learns that Kali was a Sonthal woman. She was a valiant fighter. (All laugh.)

ডাক্তার — মহাদেব man in the maturity-কে examine করেছে। European-রা Embryo থেকে maturity পর্যন্ত সমস্ত stage দেখেছে। Comparative History সব জানা ভাল। সাঁওতালদের history পড়ে জানা গেছে যে, কালী একজন সাঁওতালী মাগী ছিল — খুব লড়াই করেছিল। (সকলের হাস্য)

[( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🙏सनातन धर्म और विभिन्न नाम वाले धर्मों के इतिहास का तुलनात्मक अध्ययन  🙏

{ Comparative study of Sanatan Dharma and 

the history of religions with different names .}

[दो प्रजातियों के तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान की तरह ही, वैज्ञानिक दृष्टि से सनातन धर्म और विभिन्न नाम वाले धर्मों के इतिहास का तुलनात्मक अध्यन करें।  

 Make a comparative study of Sanatan Dharma and the history of religions with different names, just like the comparative anatomy of two species.] 

डाक्टर सरकार - "तुम लोग हँसो मत ।'तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान' (Comparative Anatomy^) से मानवता का कितना उपकार हुआ है, सुनो। पहले पाचनशक्ति पैदा करनेवाले रस और पित्त  का भेद  समझ में नहीं आ रहा था। फिर क्लाड बरनार्ड ने खरगोश की यकृत आदि की परीक्षा करके देखा कि पित्त (bile) और उस अग्नाशय (pancreatic) रस की क्रिया (रासायनिक वस्तु-सोडियम ,पोटैसियम आदि) में अन्तर है । "इससे सिद्ध होता है कि छोटे छोटे प्राणियों (भूखे कुत्ते और गाय आदि) की ओर भी हमें ध्यान देना चाहिए । केवल मनुष्य को देखने से काम न चलेगा

[तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान ^  से तात्पर्य दो प्रजातियों (two species) की शारीरिक रचना में समानता और अंतर के अध्ययन से है डार्विन ने अपने क्रमविकासवाद के सिद्धांत (theory of evolution) को आगे बढ़ाने में 'Comparative Anatomy (तुलनात्मक शरीर रचना विज्ञान) का व्यापक उपयोग किया। ]

"Don't laugh, please. Let me tell you how greatly the study of comparative anatomy has benefited men. The difference between the actions of the pancreatic juice and bile was at first unknown. But later Claude Bernard examined the stomach, liver, and other parts of the rabbit and demonstrated that the action of bile is different from the action of the pancreatic juice. Therefore it stands to reason that we should watch the lower animals as well. The study of man alone is not enough.

[Study of Comparative anatomy refers to the study of the similarities and differences in the anatomy of two species. Darwin made extensive use of comparative anatomy in furthering his theory of evolution. ] 

“তোমরা হেসো না। আবার Comparative anatomy-তে কত উপকার হয়েছে, শোনো। প্রথমে pancreatic juice ও bile-(পিত্তের) action-(ক্রিয়ার) তফাত বোঝা যাচ্ছিল না। তারপর Claude Bernard খরগোশের stomach, liver প্রভৃতি examine করে দেখালে যে, bile-এর action আর ওই juice-এর action আলাদা। “তাহলেই দাঁড়ালো যে, lower animal-দের আমাদের দেখা উচিত — শুধু মানুষকে দেখলে হবে না।

"इसी तरह धर्म का तुलानात्मक अध्यन करने से भी बड़ा उपकार होता है ।

"Similarly, the study of comparative religion is highly beneficial.

“সেইরূপ Comparative Religion-তে বিশেষ উপকার!

"ये (श्रीरामकृष्णदेव) जो कुछ कहते हैं, हृदय पर उसका असर अधिक क्यों होता है ! सब धर्म इनके देखे हुए हैं । हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, वैष्णव, शाक्त सब धर्मों को इन्होंने स्वयं साधना करके देखा है । मधुमक्खी जब अनेक फूलों से मधु-संचय करती है तभी उसके छत्ते में अच्छा मधु तैयार होता है ।"

"Why do his [meaning the Master's] words go straight to our hearts? He has experienced the truths of different religions. He himself has practiced the disciplines of the Hindu, Christian, Mussalman, Sakta, and Vaishnava religions. The bees can make good honey only if they gather nectar from different flowers."

“এই যে ইনি (পরমহংসদেব) যা বলেন, তা অত অন্তরে লাগে কেন? এঁর সব ধর্ম দেখা আছে — হিঁদু, মুসলমান, খ্রীষ্টান, শাক্ত, বৈষ্ণব, — এ-সব ইনি নিজে করে দেখেছেন। মধুকর নানা ফুলে বসে মধু সঞ্চয় করলে তবেই চাকটি বেশ হয়।”

[( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🔱🙏मैक्स मुलर का धर्म विज्ञान : जो कुछ है सब तू ही है  🔱🙏

[Max Muller's Science of Religion: 'All that exists art Thou.'] 

जे कूछ ह्याय 'तूँ' हि ह्याय!

‘যে কুছ্‌ হ্যায় তুঁহি হ্যায়।’

मास्टर (श्री 'म'  डाक्टर से) - इन्होंने (महिमाचरण ने) विज्ञान का अध्ययन खूब किया है ।

M. (to Dr. Sarkar): "He (pointing to Mahimacharan) has studied science a great deal."

মাস্টার (ডাক্তারকে) — ইনি (মহিমা) খুব সাইয়েন্স্‌ পড়েছেন।

डाक्टर (हँसकर) - कौनसा विज्ञान ? क्या मैक्समूलर का साइन्स ऑफ रिलिजन (धर्मविज्ञान) ?

[Müller believed that at the core of religion is a consciousness of the Infinite. मैक्समूलर का मानना था कि सार्वभौमिक धर्म के मूल में अनंत की चेतना ही है। और दादा के मातामह 'महिमा चरण चक्रवर्ती' जिनके घर में दादा का जन्म हुआ था - उन्होंने 'Max Muller's Science of Religion?' का गहरा अध्यन किया था, ये बात श्री म और डॉक्टर सरकार जानते थे।]  

DOCTOR (smiling): "What science? Do you mean Max Muller's Science of Religion?'

ডাক্তার (সহাস্যে) — কি Max Muller's Science of Religion?

महिमा (श्रीरामकृष्ण से) - आपकी बीमारी में डाक्टर क्या करेंगे ? जब मैंने सुना, आप बीमार हैं, तब सोचा, डाक्टरों का आप अहंकार बढ़ा रहे हैं ।

MAHIMA< (to Sri रामकृष्ण ): "You are ill. But what can the doctor do about it? When I heard of your illness, I thought that you were only going to pamper the doctor's pride."

মহিমা (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আপনার অসুখ, ডাক্তারেরা আর কি করবে? যখন শুনলাম যে আপনার অসুখ করেছে, তখন ভাবলাম যে ডাক্তারের অহংকার বাড়াচ্ছেন।

श्रीरामकृष्ण - ये बड़े अच्छे डाक्टर हैं, और बहुत बड़े विद्वान् भी हैं ।

MASTER (pointing to Dr. Sarkar): "But he is a very good physician. He is very learned too."

শ্রীরামকৃষ্ণ — ইনি খুব ভাল ডাক্তার। আর খুব বিদ্যা।

महिमा - जी हाँ, वे जहाज हैं और हम सब डोंगे हैं ।

MAHIMA: "Yes, sir. He is a ship and we are only small boats."

মহিমাচরণ — আজ্ঞা হাঁ, উনি জাহাজ, আর আমরা সব ডিঙ্গি।

[स्वामी आत्मानन्द के कहने पर, कि महामण्डल के 'खड़े रहो ! खड़े रहो!' कहने क्या होगा ? तुम भाव-प्रचार परिषद में रहो दादा ने एक बार मुझसे कहा था कहा था - तुम कहना मीशन जहाज है , और महामण्डल  छोटी डोंगी या नौका हैं। ]  

विनयपूर्वक डाक्टर हाथ जोड़ रहे हैं ।

Dr. Sarkar folded his hands in humility.

ডাক্তার বিনীত হইয়া হাতজোড় করিতেছেন।

महिमा - परन्तु वहाँ (श्रीरामकृष्ण के पास) सब बराबर हैं ।

MAHIMA: "But here in the Master's presence all are equal."

মহিমা — তবে ওখানে (ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের কাছে) সবাই সমান।

श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र से गाने के लिए कह रहे हैं । नरेन्द्र गा रहे हैं –गाना - तुम्हें ही मैंने अपने जीवन का ध्रुवतारा बनाया है ...अब मैं जगत रूपी पथहीन समुद्र में अपना रास्ता नहीं भूलूंगा। ...

Sri Ramakrishna asked Narendra to sing. Narendra sang: I have made Thee, O Lord, the Pole-star of my life; No more shall I lose my way on the world's trackless sea. ...

ঠাকুর নরেন্দ্রকে গান গাইতে বলিতেছেন। নরেন্দ্রের গান:

(১)   —   তোমারেই করিয়াছি জীবনের ধ্রুবতারা।

गाना - अहंकार में मत्त हो रहा हूँ, अपार वासनाएँ उठ रही हैं ..... ।

Then he sang: Ever insane with pride am I, and many the cravings of my heart! . . .

(২)   —   অহংকারে মত্ত সদা, অপার বাসনা।

गाना - तुम्हारी रचना अपार है, चमत्कारों से भरी हुई है ......।

He sang again: This universe, wondrous and infinite, O Lord, is Thy handiwork; And the whole world is a treasure-house, Full of Thy beauty and grace. . . .

(৩)   —   চমৎকার অপার, জগৎ রচনা তোমার! শোভার আগার বিশ্ব সংসার!

गाना - महान् सिंहासन पर बैठे हुए हे विश्वपिता, तुम अपने ही रचित छन्दों में विश्व के महान् गीत सुन रहे हो । मर्त्य की मृत्तिका बनकर, इस क्षुद्र कण्ठ को लेकर, तुम्हारे द्वार पर मैं भी आया हुआ हूँ.... ।

Narendra continued , O Father of the Universe, upon Thy lofty throne,Thou dost enjoy the music of the worlds, As Thy creation's praise they sweetly sing. Behold, I too, though born of earth, have come with feeble voice,  Before the portal of Thy House. I seek alone Thy vision. Lord! I crave no other boon. Here I have come to sing my song for Thee; From a far corner of the mighty throng Where sun and moon are hymning Thee, I too would sing Thy praise:This is Thy lowly servant's prayer.

(৪)   —   মহা সিংহাসনে বসি শুনেছি হে বিশ্বপতিঃ তোমারি রচিত ছন্দ মহান বিশ্বের গীত।মর্ত্যের মৃত্তিকা হয়ে, ক্ষুদ্র এই কণ্ঠ লয়ে,আমিও দুয়ারে তব, হয়েছি হে উপনীত।কিছু নাহি চাহি দেব, কেবল দর্শন মাগি,তোমারে যথা রবি শশী, সেই সভা মাঝে বসি,একান্তে গাইতে চাহে এই ভকতের চিত।

गाना - हे राजराजेश्वर, दर्शन दो ! मैं तुम्हारी करुणा का भिक्षुक हूँ, मेरी ओर कृपाकटाक्ष करो । तुम्हारे श्रीचरणों में मैं अपने इन प्राणों का उत्सर्ग कर रहा हूँ, परन्तु ये भी संसार के अनलकुण्ड में झुलसे हुए हैं....। गाना - हरिरस-मदिरा पीकर, ऐ मेरे मन-मानस, मत्त हो जाओ । पृथ्वी पर लोटते हुए उनका नाम लो और रोओ.... ।

He sang another song: O King of Kings, reveal Thyself to me! I crave Thy mercy. Cast on me Thy glance! At Thy dear feet I dedicate my life, Seared in the fiery furnace of this world. My heart, alas, is deeply stained with sin; Ensnared in maya, I am all but dead. Compassionate Lord! Revive my fainting soul, With the life-giving nectar of Thy grace.

(৫)   —   ওহে রাজরাজেশ্বর, দেখা দাও!করুণাভিখারী আমি করুণা কটাক্ষে চাও ৷৷চরণে উৎসর্গ দান, করিতেছি এই প্রাণ,সংসার-অনলকুণ্ডে ঝলসি গিয়াছে তাও ৷৷কলুষ-কলঙ্কে তাহে আবরিত এ-হৃদয়;মোহে মুগ্ধ মৃতপ্রায়, হয়ে আছি দয়াময়,মৃতসঞ্জীবনী মন্ত্রে শোমৃ ন করিয়ে লও ৷৷

श्रीरामकृष्ण - और वह गाना - "जो कुछ है सब तू ही है ।"

MASTER: "And sing that one — 'All that exists art Thou.' 

Narendra sang:I have joined my heart to Thee: all that exists art Thou;Thee only have I found, for Thou art all that exists. . . .

শ্রীরামকৃষ্ণ — আর ‘যে কুছ্‌ হ্যায় তুঁহি হ্যায়।’

डाक्टर – अहा ! गाना समाप्त हो गया । डाक्टर मुग्ध हो गये । कुछ देर बाद डाक्टर बड़े भक्तिभाव से हाथ जोड़कर श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं - तो आज आज्ञा दीजिये, कल फिर आऊँगा।

The singing was over. Dr. Sarkar sat there almost spellbound. After a time, with folded hands, he said very humbly to Sri Ramakrishna: "Allow me to take my leave now. I shall come again tomorrow."

ডাক্তার — আহা! গান সমাপ্ত হইল। ডাক্তার মুগ্ধপ্রায় হইয়াছেন। কিয়ৎক্ষণ পরে ডাক্তার অতি ভক্তিভাবে হাতজোড় করিয়া ঠাকুরকে বলিতেছেন, ‘তবে আজ যাই্‌, — আবার কাল আসব।’

श्रीरामकृष्ण - अभी कुछ देर और ठहरो । गिरीश घोष के पास खबर भेजी गयी है । (महिमा की ओर संकेत करके) "ये विद्वान् हैं, और ईश्वर के कीर्तन में नाचते भी हैं । इनमें अहंकार छू नहीं गया । ये कोन्नगर चले गये थे, इसलिए कि हम लोग वहाँ चले गये थे । स्वाधीन हैं, धनवान हैं, किसी की नौकरी नहीं करते । (नरेन्द्र को दिखलाकर) यह कैसा है ?"

MASTER: "Oh, stay a little. Girish Ghosh has been sent for. (Pointing to Mahima) He is a scholar, yet he dances in the name of Hari. He has no pride. He went to Konnagar just because we were there. He is wealthy; he is free; he serves nobody. (Pointing to Narendra) What do you think of him?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — একটু থাক না! গিরিশ ঘোষকে খপর দিয়েছে। (মহিমাকে দেখাইয়া) ইনি বিদ্বান হরিনামে নাচেন, অহংকার নাই। কোন্নগরে চলে গিছলেন — আমরা গিছলাম বলে; আবার স্বাধীন, ধনবান, কারু চাকরি করতে হয় না! (নরেন্দ্রকে দেখাইয়া) এ কেমন?

डाक्टर – जी, बहुत अच्छे हैं ।

DOCTOR: "Excellent!"

ডাক্তার — খুব ভাল!

श्रीरामकृष्ण - और ये -

MASTER (pointing to a devotee): "And him?"

डाक्टर – अहा !

DOCTOR: "Splendid!"

महिमा - हिन्दुओं के दर्शन अगर न पढ़े गये तो मानो दर्शनों का पढ़ना ही अधूरा रह गया । सांख्य के चौबीस तत्त्वों को यूरोप न तो जानता है और न समझ ही सकता है ।

MAHIMA: "It can by no means be said that one knows philosophy unless one has read Hindu philosophy. The European philosophers do not know the twenty-four cosmic principles of the Samkhya philosophy. They cannot even grasp them."

মহিমাচরণ — হিন্দুদের দর্শন না পড়লে দর্শন পড়াই হয় না। সাংখ্যের চতুর্বিংশতি তত্ত্ব ইওরোপ জানে না — বুঝতেও পারে না।

[( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🔱🙏आनन्द- पथ के पथिक श्रीरामकृष्ण का सच्चिदानन्द मार्ग🔱🙏

[वक्ता (गुरु/गृही नेता) जनक  और श्रोता (भावी नेता, संन्यासी) शुकदेव ] 

 [ मातृभूमि पर शीश चढ़ाने वालों का मार्ग]  

प्यार की सरगम न छेड़ो ,  विजय के गीत गाने दो !] 

श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - तुम कौन से तीन मार्गों की बात कहते हो ?

MASTER (smiling): "What are the three paths you speak of?"

শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কি তিন পথ তুমি বলো?

महिमा – सत्-मार्ग > ज्ञानमार्ग । चित्-मार्ग > योगमार्ग (धारणा,ध्यान,समाधि योग), कर्म-मार्ग > इसमें जीवन के चार आश्रमों- (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास)  की  क्रिया, कर्तव्य आदि वर्णित हैं तीसरा है आनन्द-पथ (path of Ananda) - भक्ति और प्रेम (ब्रह्मानन्द-Cosmic Bliss, ब्रह्माण्डीय आनन्द) का पथ। आप में तीनों मार्ग हैं - आप तीनों मार्ग की खबर बतलाते हैं । (श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं ।)

MAHIMA: "The path of Sat, which is the path of knowledge. Next, the path of Chit, means path of yoga of karmayoga, which includes the duties and functions of the four stages of life. Last, the path of Ananda, the path of devotion and ecstatic love. You are an adept in all three paths; you can speak of them all with authority."(Sri Ramakrishna laughed.)

মহিমা — সৎপথ — জ্ঞানের পথ। চিৎপথ, যোগের। কর্মযোগ। তাই চার আশ্রমের ক্রিয়া, কি কি কর্তব্য, এর ভিতর আসছে। আনন্দপথ — ভক্তিপ্রেমের পথ। — আপনাতে তিন পথেরই ব্যাপার — আপনি তিন পথেরই খপর বাতলে দেন! (ঠাকুর হাসিতেছেন)

महिमा - मैं और क्या कहूँ ? वक्ता जनक और श्रोता शुकदेव

“আমি আর কি বলব? জনক বক্তা, শুকদেব শ্রোতা!”

डाक्टर बिदा हो गये ।

[( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

*नित्यगोपाल तथा नरेन्द्र । 'जपात् सिद्धि ।'*

सन्ध्या के बाद चन्द्रोदय हुआ है । आज शनिवार, शरद पूर्णिमा का दूसरा दिन है । श्रीरामकृष्ण खड़े हुए समाधिमग्न हैं । नित्यगोपाल (बाद के नित्यानन्द अवधूत) भी उनके पास भक्तिभाव से खड़े हैं ।

Dr. Sarkar took his leave. It was evening, the first night after the full moon. Sri Ramakrishna stood up, lost in samadhi. Nityagopal stood beside him in a reverent attitude.

সন্ধ্যার পর চাঁদ উঠিয়াছে। আজ কোজাগর পূর্ণিমার পরদিন, শনিবার, ৯ই কার্তিক। ঠাকুর সমাধিস্থ! দাঁড়াইয়া আছেন। নিত্যগোপালও তাঁহার কাছে ভক্তিভাবে দাঁড়াইয়া আছেন।

श्रीरामकृष्ण बैठे । नित्यगोपाल पैर दबा रहे हैं । कालीपद, देवेन्द्र आदि भक्त पास बैठे हुए हैं ।

Sri Ramakrishna took his seat. Nityagopal was stroking his feet. Devendra, Kalipada, and many other devotees were seated by his side.

ঠাকুর উপবিষ্ট হইয়াছেন — নিত্যগোপাল পদসেবা করিতেছেন। দেবেন্দ্র কালীপদ প্রভৃতি অনেকগুলি ভক্ত কাছে বসিয়া আছেন।

श्रीरामकृष्ण (देवेन्द्र आदि से) - मेरे मन में यह भासित हो रहा है कि नित्यगोपाल - की ये अवस्थाएँ अब चली जायेगी । उसका सब मन सिमटकर मुझमें आ जायेगा - जो मेरे भीतर हैं, उनमें (— on Him who dwells in me!) । "नरेन्द्र को देखते हो न, उसका सब मन सिमटकर मुझपर आ रहा है ।"

MASTER (to the devotees): "My mind tells me that Nityagopal's present state will undergo a change. His entire mind will be concentrated on me — on Him who dwells in me. Don't you see how Narendra's whole mind is being drawn toward me?"

শ্রীরামকৃষ্ণ (দেবেন্দ্র প্রভৃতির প্রতি) — এমনি মনে উঠছে, নিত্যগোপালের এ-অবস্থাগুলো এখন যাবে, — ওর সব মন কুড়িয়ে আমাতেই আসবে — যিনি এর ভিতর আছেন, তাঁতে। “নরেন্দ্রকে দেখছো না? — সব মনটা ওর আমারই উপর আসছে!”

 [( 24 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🔱🙏निर्जन में 'नाम' जप करते रहने से, ठाकुर के रुप के दर्शन अवश्य होते हैं🔱🙏  

भक्तों में बहुतेरे बिदा हो रहे हैं । श्रीरामकृष्ण खड़े हुए एक भक्त को जप की बातें बतला रहे हैं - "जप करने का अर्थ है निर्जन में चुपचाप उनका नाम लेना । एकाग्र होकर उनका नामजप करते रहने से उनके रूप के भी दर्शन होते हैं और उनसे साक्षात्कार भी होता है । जंजीर से बँधी लकड़ी गंगा में जैसे डुबायी हुई हो और जंजीर का दूसरा छोर तट पर बँधा हुआ हो । जंजीर की एक एक कड़ी पकड़कर कुछ दूर बढ़कर, फिर पानी में डुबकी मारकर, उसी प्रकार और आगे बढ़ते हुए लोग लकड़ी को अवश्य ही छू सकते हैं । इसी तरह जप करते हुए मग्न हो जाने पर धीरे-धीरे ईश्वर के दर्शन होते हैं ।"

Many of the devotees were taking their leave. Sri Ramakrishna stood up. Referring to japa, he said to a devotee: "Japa means silently repeating God's name in solitude. When you chant His name with single-minded devotion you can see God's form and realize Him. Suppose there is a piece of timber sunk in the water of the Ganges and fastened with a chain to the bank. You proceed link by link, holding to the chain, and you dive into the water and follow the chain. Finally you are able to reach the timber. In the same way, by repeating God's name you become absorbed in Him and finally realize Him."

ভক্তেরা অনেকে বিদায় লইতেছেন। ঠাকুর দাঁড়াইয়া আছেন। একজন ভক্তকে জপের কথা বলিতেছেন — “জপ করা কি না নির্জনে নিঃশব্দে তাঁর নাম করা। একমনে নাম করতে করতে — জপ করতে করতে — তাঁর রূপদর্শন হয় — তাঁর সাক্ষাৎকার হয়। শিকলে বাঁধা কড়িকাঠ গঙ্গার গর্ভে ডুবান আছে — শিকলের আর-একদিক তীরে বাঁধা আছে। শিকলের এক-একটি পাপ (Link) ধরে ধরে গিয়ে ক্রমে ডুব মেরে শিকল ধরে যেতে ওই কড়ি-কাঠ স্পর্শ করা যায়! ঠিক সেইরূপ জপ করতে করতে মগ্ন হয়ে গেলে ক্রমে ভগবানের সাক্ষাৎকার হয়।”

कालीपद (सहास्य, भक्तों से) - हमारे ये अच्छे ठाकुर  हैं ! - जप, ध्यान, तपस्या, कुछ करना ही नहीं पड़ता !

[महामण्डल आन्दोलन -'Be and Make' के नेता -वरिष्ठ, C-IN-C=जीवन-मुक्त शिक्षक- नवनी दा के अनुसार महामण्डल आन्दोलन के भावी नेता को अलग से जप-ध्यान कुछ नहीं करना होगा। ] 

KALIPADA (smiling, to the devotees): "Ours is a grand teacher! We are not asked to practise meditation, austerity, and other disciplines."

কালীপদ (সহাস্যে, ভক্তদের প্রতি) — আমাদের এ খুব ঠাকুর! — জপ-ধ্যান, তপস্যা করতে হয় না!

इसी समय श्रीरामकृष्ण ने एकाएक कहा - "यहाँ (गले में) न जाने कैसा हो रहा है । श्रीरामकृष्ण के गले में दर्द हो रहा है । देवेन्द्र ने कहा, "हम इस तरह की बातों में नहीं आनेवाले ।” देवेन्द्र का भाव यह है कि श्रीरामकृष्ण ने लोगों को धोखे में डालने के लिए रोग का आश्रय लिया है

Suddenly Sri Ramakrishna said, "This is troubling me." The Master's throat was hurting him. Devendra said, "Your words cannot fool us anymore."  He thought that the Master feigned illness to hoodwink the devotees.

ঠাকুরের গলায় অসুখ করিতেছে। দেবেন্দ্র বলিতেছেন — “এ-কথায় আর ভুলি না।” দেবেন্দ্রের এই মনের ভাব যে ঠাকুর কেবল ভক্তদের ভুলাইবার জন্য অসুখ দেখাইতেছেন।

भक्तगण बिदा हो गये । रात में कुछ बालक-भक्त बारी बारी से जागकर श्रीरामकृष्ण की सेवा करेंगे । मास्टर भी आज रात को यहीं रहेंगे

Most of the devotees departed. It was arranged that a few of the younger men should stay to nurse the Master by turns. M. also was going to spend the night there.

ভক্তেরা বিদায় গ্রহণ করিলেন। রাত্রে কয়েকটি ছোকরা ভক্ত পালা করিয়া থাকিবেন। আজ মাস্টারও রাত্রে থাকিবেন

(२)

 [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

*डाक्टर सरकार तथा मास्टर*

आज रविवार है, कार्तिक, कृष्णद्वितीया, २५ अक्टूबर, १८८५ । श्रीरामकृष्ण कलकत्ते के श्यामपुकुरवाले मकान में रहते हैं । गले में पीड़ा (Cancer) है, उसी की चिकित्सा हो रही है । आजकल डाक्टर सरकार देख रहे हैं । 

डाक्टर को श्रीरामकृष्णदेव की अवस्था की खबर देने के लिए रोज मास्टर जाया करते हैं । आज सुबह साढ़े छः बजे के समय प्रणाम करके मास्टर ने पूछा - "आप कैसे हैं ?" श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - "डाक्टर से कहना, रात के पिछले भाग में मुँह कुल्ला भर पानी से भर जाता है, खाँसी है । पूछना, नहाऊँ या नहीं ।"

It was about half past six in the morning when M. arrived at Syampukur and asked Sri Ramakrishna about his health. He was on his way to Dr. Sarkar to report the Master's condition. The Master said to M.: "Tell the doctor that during the early hours of the morning, my mouth becomes filled with water and I cough. Also, ask him if I may take a bath."

আজ রবিবার, ১০ই কার্তিক; কৃষ্ণাদ্বিতীয়া — ২৫শে অক্টোবর, ১৮৮৫। শ্রীরামকৃষ্ণ কলিকাতাস্থ শ্যামপুকুরের বাড়িতে অবস্থান করিতেছেন। গলার পিড়া (ক্যান্সার) চিকিৎসা করাইতে আসিয়াছেন। আজকাল ডাক্তার সরকার দেখিতেছেন।

ডাক্তারের কাছে পরমহংসদেবের অবস্থা জানাইবার জন্য মাস্টারকে প্রত্যহ পাঠানো হইয়া থাকে। আজ সকালে বেলা ৬৷৷ টার সময় তাঁহাকে প্রণাম করিয়া মাস্টার জিজ্ঞাসা করিলেন, “আপনি কেমন আছেন?” শ্রীরামকৃষ্ণ বলিতেছেন, “ডাক্তারকে বলবে, শেষ রাত্রে একমুখ জল হয়; কাশি আছে; ইত্যাদি। জিজ্ঞাসা করবে নাইব কিনা?”

सात बजे के बाद मास्टर डाक्टर सरकार से मिले और कुल हाल उनसे कहा । डाक्टर के वृद्ध शिक्षक तथा दो-एक मित्र वहाँ उपस्थित थे । डाक्टर ने वृद्ध शिक्षक से कहा, 'महाशय, रात तीन बजे से मुझे परमहंस की चिन्ता है, नींद नहीं आयी, अब भी परमहंस की चिन्ता है ।' (सब हँसते हैं)

After seven o'clock M. came to Dr. Sarkar's house and told him about the Master's condition. The physician's old teacher and one or two friends were in the room. Dr. Sarkar said to his teacher, "Sir, I have been thinking of the Paramahamsa (Referring to Sri Ramakrishna.) since three in the morning. I couldn't sleep at all. Even now he is in my mind."

মাস্টার ৭-টার পর ডাক্তার সরকারের সঙ্গে দেখা করিলেন ও সমস্ত অবস্থা বলিলেন। ডাক্তারের বৃদ্ধ শিক্ষক ও দুই-একজন বন্ধু উপস্থিত ছিলেন। ডাক্তার বৃদ্ধ শিক্ষককে বলিতেছেন, মহাশয়! রাত তিনটে থেকে পরমহংসের ভাবনা আরম্ভ হয়েছে — ঘুম নাই। এখনও পরমহংস চলেছে। (সকলের হাস্য)

डाक्टर के मित्र डाक्टर से कह रहे हैं, “महाशय, मैंने सुना है, कोई कोई उन्हें अवतार कहते हैं । आप तो रोज देखते हैं, आपको क्या जान पड़ता है ?" डाक्टर ने कहा, "मनुष्य की दृष्टि से उनकी मैं अत्यन्त भक्ति करता हूँ ।"

One of the doctor's friends said to him: "Sir, I hear that some speak of the Paramahamsa as an Incarnation of God. You see him every day. How do you feel about it?

DOCTOR: "I have the greatest regard for him as a man."

ডাক্তারের একজন বন্ধু ডাক্তারকে বলিতেছেন, মহাশয়, শুনতে পাই পরমহংসকে কেউ কেউ অবতার বলে। আপনি তো রোজ দেখছেন, আপনার কি বোধ হয়?

ডাক্তার — As man I have the greatest regard for him.

मास्टर (डाक्टर के मित्र से) - डाक्टर महाशय बड़ी कृपा करके उनकी चिकित्सा कर रहे हैं ।

M. (to the doctor's friend): "It is very kind of Dr. Sarkar to treat him."

মাস্টার (ডাক্তারের বন্ধুর প্রতি) — ডাক্তার মহাশয় তাঁকে অনুগ্রহ করে অনেক দেখছেন।

डाक्टर - कृपा करके ?

DOCTOR. "Kindness? What do you mean?"

ডাক্তার — অনুগ্রহ!

मास्टर - हम लोगों पर आप कृपा करते हैं, श्रीरामकृष्णदेव पर मैं नहीं कह रहा ।

M: "Not toward him, but toward us."

মাস্টার — আমাদের উপর, পরমহংসদেবের উপর বলছি না।

डाक्टर - नहीं जी, ऐसा भी नहीं, तुम लोग नहीं जानते । वास्तव में मेरा नुकसान हो रहा है, दो-तीन Call (बुलावा) रोज ही रह जाते हैं - जा नहीं पाता । उसके दूसरे दिन रोगी के यहाँ खुद जाता हूँ और फीस(Fees) नहीं लेता, - खुद जाकर फीस लूँ भी कैसे ?

DOCTOR: "You see, you don't know my actual loss on account of the Paramahamsa. Every day I fail to see two or three patients. When the next day I go to their houses, of my own accord, I cannot accept any fee since I am seeing them without being called. How can I charge them for my visit?"

ডাক্তার — তা নয় হে। তোমরা জান না, আমার actual loss হচ্ছে, রোজ রোজ দুই-তিনটে call-এ যাওয়াই হচ্ছে না। তার পরদিন আপনিই রোগীদের বাড়ি যাই, আর ফি লই না; — আপনি গিয়ে ফি নেবো কেমন করে?

श्री महिमाचरण चक्रवर्ती की बात चली । शनिवार को जब डाक्टर परमहंसदेव को देखने के लिए गये थे, तब चक्रवर्ती महाशय उपस्थित थे । डाक्टर को देखकर उन्होंने श्रीरामकृष्ण से कहा था, ‘महाराज, डाक्टर का अहंकार बढ़ाने के लिए आपने रोग की सृष्टि की है ।’

The conversation turned to Mahima Chakravarty. He had been with the Master when Dr. Sarkar had visited him the previous Saturday. Pointing to the doctor, Mahima had said to Sri Ramakrishna, "Sir, you yourself have created this disease in order to pamper the doctor's pride."

শ্রীযুক্ত মহিমা চক্রবর্তীর কথা হইল। শনিবারে যখন ডাক্তার পরমহংসদেবকে দেখিতে যান, তখন চক্তবর্তী উপস্থিত ছিলেন; ডাক্তারকে দেখিয়া তিনি শ্রীরামকৃষ্ণকে বলিয়াছিলেন, ‘মহাশয়, আপনি ডাক্তারের অহংকার বাড়াবার জন্য রোগ করিয়াছেন।”

मास्टर (डाक्टर से) - महिमा चक्रवर्ती आपके यहाँ पहले आया करते थे । आप घर में डाक्टरी विज्ञान पर लेक्चर देते थे, वे सुनने के लिए आया करते थे ।

M. (to the doctor's friend): "Mahima Chakravarty used to come to your place to attend your lectures on medical science."

মাস্টার (ডাক্তারের প্রতি) — মহিমা চক্রবর্তী আপনার এখানে আগে আসতেন। আপনি বাড়িতে ডাক্তারী সায়েন্স-এর লেক্‌চার দিতেন, তিনি শুনতে আসতেন।

डाक्टर - ऐसी बात ? परन्तु उस मनुष्य में तमोगुण भी कितना है ! देखा था तुमने ? - मैंने नमस्कार किया था जैसे वह तमोगुणी ईश्वर हो । और ईश्वर के भीतर तो तीनों गुण हैं । उसकी उस बात पर तुमने ध्यान दिया था ? – ‘आपने डाक्टरों का अहंकार बढ़ाने के लिए रोग का आश्रय लिया है ।'

DOCTOR: "Is that so? How full of tamas he is! Didn't you notice it? I saluted him as 'God's Lower Third'. There exist in God sattva, rajas, and tamas. Tamas is the third and an inferior quality. Didn't you hear him say to the Paramahamsa, 'You yourself have created this disease in order to pamper the doctor's pride'?"

ডাক্তার — বটে? লোকটার কি তমো! দেখলে — আমি নমস্কার করলুম as God's Lower Third? আর ঈশ্বরের ভিতর তো (সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ) সব গুণই আছে। ও কথাটা mark করেছিলে, ‘আপনি ডাক্তারের অহংকার বাড়াবার জন্য রোগ করে বসেছেন?’

मास्टर - महिमा चक्रवर्ती को विश्वास है कि श्रीरामकृष्णदेव अगर खुद चाहें तो बीमारी अच्छी कर सकते हैं ।

M: "Mahima Chakravarty believes that the Paramahamsa can cure his disease himself, if he wants to."

মাস্টার — মহিমা চক্তবর্তীর বিশ্বাস যে, পরমহংসদেব মনে করলে নিজে ব্যারাম আরাম করতে পারেন।

डाक्टर - अजी, ऐसा भी कभी होता है ? - आप ही आप बीमारी अच्छी कर लेना ? हम लोग डाक्टर हैं, हम लोग तो जानते हैं न, कि उस बीमारी के भीतर क्या क्या है ।

"हम ही जब इस तरह की बीमारी अच्छी नहीं कर सकते - तब वे तो कुछ जानते भी नहीं, वे किस तरह अच्छी करेंगे ? (मित्रों से) देखिये, रोग दुःसाध्य है, परन्तु इतना अवश्य है कि ये लोग उनकी सेवा भी खूब कर रहे हैं ।"

DOCTOR: "What? Cure that disease himself? Is that possible? We are physicians; we know what cancer is. We ourselves cannot cure it. And he to cure himself! Why, he doesn't know anything about cancer. (To his friends) The illness is no doubt incurable, but these gentlemen have been nursing him with sincere devotion."

ডাক্তার — ওঃ। তা কি হয়? আপনি ব্যারাম ভাল করা! আমরা ডাক্তার, আমরা তো জানি ও ক্যান্সার-এর ভিতর কি আছে! — আমরাই আরাম করতে পারি না। উনি তো কিছু জানেন না, উনি কিরকম করে আরাম করবেন! (বন্ধুদের প্রতি) — দেখুন, রোগ দুঃসাধ্য বটে, কিন্তু এরা সকলে তেমনি devotee-র মতো সেবা করছে!

(३)

 [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

*श्रीरामकृष्ण तथा मास्टर*

শ্রীরামকৃষ্ণ সেবকসঙ্গে

डाक्टर से आने के लिए कहकर मास्टर लौटे । भोजन आदि करके दिन के तीन बजे वे श्रीरामकृष्ण से मिले और डाक्टर की कुल कथा कह सुनायी । कहा, 'डाक्टर ने तो आज मुझे शर्मिन्दा कर दिया ।’

In the afternoon, about three o'clock, M. came to the Master and repeated the conversation he had had with Dr. Sarkar. He said to Sri Ramakrishna, "Today the doctor embarrassed me."

মাস্টার ডাক্তারকে আসিতে বলিয়া প্রত্যাগমন করিলেন। খাওয়া-দাওয়ার পর বেলা-তিনটার সময় শ্রীরামকৃষ্ণকে দর্শন করিয়া সমস্ত নিবেদন করিলেন। বলিলেন, ডাক্তার আজ বড় অপ্রতিভ করেছেন

श्रीरामकृष्ण - क्यों, क्या कहा ? MASTER: "What happened?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — কি হয়েছে?

मास्टर - महाराज, कल वे यहाँ सुन गये थे कि डाक्टर की शान को  बढ़ाने के लिए आपने यह रोग स्वयं ही पैदा किया है ।

M: "Yesterday he heard here that you yourself had created this illness in order to pamper the doctor's pride."

মাস্টার — ‘আপনি হতভাগা ডাক্তারদের অহংকার বাড়াবার জন্য রোগ করে বসেছেন’ — এ-কথা শুনে গিছলেন।

श्रीरामकृष्ण - किसने कहा था ?

MASTER: "Who made that remark?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — কে বলেছিল?

 [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🔱🙏साहचर्य का नियम -यत्र यत्र मनो देही धारयेत् सकलं दिया  🔱🙏

[डॉक्टर रात 3 बजे से प्रातः 8 बजे तक अवतार वरिष्ठ श्री राकृष्ण का चिंतन कर रहे थे।] 

मास्टर - महिमा चक्रवर्ती # ने ।

M: "Mahima Chakravarty."

মাস্টার — মহিমা চক্রবর্তী।

श्रीरामकृष्ण – फिर ?

MASTER : "What did the doctor say to you?"

मास्टर - वह महिमा चक्रवर्ती को तमोगुणी ईश्वर कहने लगा । अब डाक्टर ने मान लिया है कि ईश्वर में तत्त्व, रज, तम तीनों गुण हैं । (श्रीरामकृष्णदेव का हास्य) फिर मुझसे उन्होंने कहा, 'आज रात को तीन बजे मेरी नींद उचट गयी और तभी से श्रीरामकृष्णदेव का चिन्तन कर रहा हूँ ।' जब मैं उनसे मिला था तब आठ बजे थे, और उन्होंने कहा, ‘अभी भी श्रीरामकृष्ण का मैं चिन्तन (नाम-जप ?) कर रहा हूँ ।’

M: "He described Mahima Chakravarty # as 'God's Lower Third'. Now he admits that all the qualities — sattva, rajas, and tamas — exist in God. (The Master laughs.) Then he told me that he had woken at three in the morning and had been thinking of you ever since. When I saw him it was eight o'clock. He said to me, 'Even now the Paramahamsa is in my mind.'"

মাস্টার — তা মহিমা চক্রবর্তীকে # বলে ‘তমোগুণী ঈশ্বর’ (God's Lower Third) এখন ডাক্তার বলছেন, ঈশ্বরের সব গুণ (সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ) আছে! (পরমহংসদেবের হাস্য) আবার আমায় বললেন, রাত তিনটের সময় ঘুম ভেঙে গেছে আর পরমহংসের ভাবনা। বেলা আটটার সময় বলেন, ‘এখনও পরমহংস চলছে।’

[महिमा चक्रवर्ती # जिनके घर  100 नंबर काशीपुर रोड में  महामण्डल के C-IN-C नवनी दा का जन्म हुआ था। नवनीदा कहते थे - भूतेषु भूतेषु- सब जीवों में, 'विचित्य' उनको (ईश्वर को) देख कर-उनको समझकर; धीराः प्रेत्य अस्मात् लोकात् अमृता भवन्ति॥ इस भौतिक संसार (physical world) को पीछे छोड़ने के बाद वे - अमृता भवन्ति' -वे अमर हो जाते हैं"[After leaving behind this physical world-they become immortal - what a noble idea !  We have all these teachings  , and these things come from that noble sources. - भारतीय फिलॉसफी 'उपनिषद' (Indian Philosophy - Upanishads) में कही गयी  यह महान नैतिक शिक्षा कितनी अच्छी और प्राचीन (good and ancient) है! उसी प्रकार जी 20 अध्यक्षता की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ -One Earth, One Family, One Future’ एक पृथ्वी, एक कुटुंब, एक भविष्य’ [Theme of G20 Chairmanship ‘Vasudhaiva Kutumbakam – भारतीय फिलॉसफी (उपनिषद की) यह नैतिक शिक्षा कितनी पुरानी है! हमारे पास ये सभी शिक्षाएँ हजारों वर्षों से हैं, और ये चीज़ें उन्हीं प्राचीन महान स्रोतों से (वेदों -उपनिषदों से) आती हैं। और हम अपने समय में, हमारे युग में अवतरित भगवान श्री रामकृष्ण, पवित्र माँ श्रीश्री सारदा देवी और स्वामीजी के जीवन में इन महान विचारों की समझ और अनुप्रयोग को बहुत सुंदर तरीके से होते हुए देखते हैं। ]   

श्रीरामकृष्ण - देखो, तुम जानते हो, वह अंग्रेजी पढ़ा-लिखा है, उससे यह नहीं कहा जा सकता कि तुम मेरी चिन्ता करो  (मेरे चित्र पर अपने मन को एकाग्र करो) । परन्तु अच्छा है, वह आप ही कर रहा है

MASTER (laughing): "You see, he has studied English. I cannot ask him to meditate on me; but he is doing it all the same, of his own accord."

শ্রীরামকৃষ্ণ (হাসিতে হাসিতে) — ও ইংরাজী পড়েছে, ওকে বলবার জো নাই আমাকে চিন্তা কর; তা আপনিই করছে।

मास्टर - फिर उन्होंने कहा, 'मैं उन्हें अवतार नहीं कहता, परन्तु मनुष्य समझकर उन पर मेरी सबसे अधिक भक्ति है ।'

M: "He also said about you, 'I have the greatest regard for him as a man.'"

মাস্টার — আবার বলেন, As man I have the greatest regard for him, এর মানে এই, আমি তাঁকে অবতার বলে মানি না। কিন্তু মানুষ বলে যতদূর সম্ভব ভক্তি আছে।

श्रीरामकृष्ण - कुछ और बात हुई है ?

MASTER: "Did you talk of anything else?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — আর কিছু কথা হল?

मास्टर - मैंने पूछा, 'आज बीमारी के लिए क्या बन्दोबस्त किया जाय ?' डाक्टर ने कहा, 'बन्दोबस्त मेरा सर होगा ! आज मुझे फिर जाना पड़ेगा और क्या !' (श्रीरामकृष्ण का हँसना)

“उन्होंने इतना और कहा, ‘तुम लोग नहीं जानते, मेरे कितने रुपयों पर पानी फिर जाता है । रोज दो-तीन जगह जाना नहीं हो पाता ।’”

M: "I asked him, 'What is your suggestion today about the patient?' He said: 'Suggestion? Hang it! I shall have to go to him again myself. What else shall I suggest?' (Sri Ramakrishna laughs.) Further, he said: 'You don't know how much money I am losing every day. Every day I miss two or three calls.'"

মাস্টার — আমি জিজ্ঞাসা করলাম, ‘আজ ব্যারামের কি বন্দোবস্ত হবে?’ ডাক্তার বললেন, ‘বন্দোবস্ত আর আমার মাথা আর মুণ্ডু; আবার আজ যেতে হবে, আর কি বন্দোবস্ত!’ (শ্রীরামকৃষ্ণের হাস্য) আরও বললেন, ‘তোমরা জান না যে আমার কত টাকা রোজ লোকসান হচ্ছে — দুই-তিন জায়গায় রোজ যেতে সময় হয় না।’

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>>>1.1.2024 :[ 🙂🙏"क्या ईश्वर (अवतार वरिष्ठ) देखा जा सकता है? ' तुम अपने इतने दूतों को क्यों भेजती हो ? स्वयं तुम क्यों नहीं आती ? ऐसे विचार हम सभी के मन में उठते हैं, परन्तु कब ? -जब हमें तीव्र मानसिक क्लेश होता है ! [ उन्हीं क्षणों को याद करते हुए- स्वामीजी ने कहा था, "जब तक मेरे देश का एक कुत्ता भी भूखा है, मेरा समस्त धर्म उसको रोटी खिलाना होगा । जो ईश्वर भूखे को एक मुट्ठी अन्न नहीं दे सकता, जो किसी विधवा के अश्रु नहीं पोछ सकता, वैसे ईश्वर पर मैं विश्वास नहीं करता।'] पर दूसरे ही क्षण हम उन्हें भूल जाते हैं, क्योंकि हमारे चारो ओर अनेक मोहरूपी जाल हैं। ...हमारा पाशविक अंश हमें नीच दशा में पहुंचा देता है, और खाने, पीने, मरने, जन्म लेने और फिर खाने-पीने में व्यस्त हो जाते हैं। (7/249)

🙏" जब तक जगन्माता के लिये सर्वस्व त्याग नहीं किया जाता, तब तक वे दर्शन नहीं देतीं। " 250] 

🙏 ' काम-वासना दूसरा शत्रु है। ' मनुष्य वस्तुतः आत्मस्वरुप है, आत्मा निर्लिंग है, वह न तो स्त्री है, न पुरुष। ..काम तथा कांचन के कारण ही उनको माँ के दर्शन नहीं होते। सारा विश्व माता का ही रूप है और वह प्रत्येक शरीर में वास करती है। प्रत्येक स्त्री माता का रूप है, अतः किसी स्त्री को स्त्री-भाव (भोग्या?) से मैं कैसे देख सकता हूँ  ? ..हमें उस अवस्था को पहुँच जाना चाहिये, जबकि प्रत्येक स्त्री में केवल जगन्माता का ही स्वरुप दिखे। " 7/251] 

🙏भैरवी ब्राह्मणी मानव देह में साक्षात् विद्वत्ता ही थीं। ...साधन सिखलाये।  स्त्री-पुरुष के भेदभाव को समूल नष्ट करने की साधना -को सीखकर, उनके मन का स्वरुप पलट गया, वे स्त्री-पुरुष के भेद की कल्पना बिल्कुल भूल गये, और इस प्रकार जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण बिल्कुल बदल गया। ..... जीवन में कड़ी तपस्याओं  द्वारा जो आध्यात्मिक संपदा एकत्र की थी वह अब वितरण करने का समय आ गया था। ..जो कुछ हो रहा है, वह सब T ही करा रहे हैं, मैं स्वयं कुछ नहीं कर रहा हूँ। (7/256)

हमें अपनी इन्द्रियों द्वारा यह संसार जितना प्रत्यक्ष प्रतीत होता है, उससे भी कहीं अधिक प्रत्यक्ष हमें सत्य का अनुभव हो सकता है।7/247] 

🙏उनका जीवन कितना धन्य है जिनका काम-भाव सम्पूर्ण नष्ट हो गया है। हमारी दृष्टि भी इसी प्रकार की होनी चाहिये स्त्री में जो ईश्वरत्व वास करता है, उसे हम कभी ठग नहीं सकते। इस प्रकार की अच्युत पवित्रता अनिवार्य है। (3/4)  

🙏जब भारत में किसी प्रकार से यह बात दूर तक फ़ैल जाती है कि अमुक मनुष्य को सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव हो गया है, ..अब उसके लिये धर्म और आत्मा का अमरत्व और ईश्वर आदि विषय जटिल नहीं रह गये हैं, तो तमाम स्थानों से लोग उसके दर्शन करने आते हैं, और धीरे धीरे उसकी देवता के समान पूजा करने लगते हैं। 7/246] 

🙏जीवन-समस्या का एक ही समाधान है और वह है ईश्वर तथा धर्म। (2-48)

 >>>द्वैताद्वैतविवर्जितम् : 🙂Thanks to Shri Rama !  साभार /🙏धर्म सनातन है ! [$@$ स्वामी विवेकानन्द और हमारी सम्भावना [65-29 A] "(धर्म और समाज),मंगलवार, 22 जनवरी 2013/ ' भगवान श्री राम, महावीर श्री हनुमान को उपनिषदों का ज्ञान सुनाने के बाद, उनसे पूछते हैं कि- 'कस्तवम् ' (तुम कौन हो ?),

देहबुद्‍ध्या त्वद्दासोऽहं जीवबुद्‍ध्या त्वदंशकः।

आत्मबुद्‍ध्या त्वमेवाहम् इति मे निश्चिता मतिः॥

 तो हनुमान बोले -  हे प्रभु ! देह भाव से देखूँ तो मैं आपका सेवक (द्वैत) हूँ,  जीव भाव से देखूँ तो मैं आपका अंश (विशिष्ट अद्वैत) हूँ , और यदि आत्म भाव से देखूँ तो मैं आप ही (अद्वैत) हूँ। ऐसा मेरा निश्चय है।

On being asked by Rama what he thought of him, Hanuman said: When I am conscious of my body, I am Thy servant. When aware of myself, I am a part of Thine. When I know my essence, I am verily Thyself. This is my certain belief. 

 🙂"ए मालिक तेरे बन्दे हम- प्रभु मैं गुलाम तेरा! - Thanks to Shri Ramakrishna !/ नवनी दा कहते थे भक्ति सबसे बाद में होती है ! 🙂Aprajeeta returned  after Knee replacement finally on 31.12. 2023, and from 1.1. 2024 morning walk , 'I' restarted  ('I' ?= देह बुद्ध्या दासो अहं) त्रिभाषी वचनामृत After/before break of 3 months गुरुवार, 28 सितंबर 2023/

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🙂2nd January, 2024 :  प्रभु मैं गुलाम तेरा का भावार्थ -

 [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

 4.

🙂🔱🙏विजय आदि भक्तों के संग में 🙂🔱🙏

*द्वैताद्वैतविवर्जितम् अवतार वरिष्ठ  श्रीरामकृष्ण-विजय आदि भक्तों के संग में * 

कुछ देर बाद श्रीयुत विजयकृष्ण गोस्वामी श्रीरामकृष्णदेव के दर्शन करने के लिए आये । साथ कई ब्राह्म भक्त भी हैं । विजयकृष्ण बहुत दिनों तक ढाके में थे । इधर पश्चिम के बहुत से तीर्थों में भ्रमण करके अभी थोड़े ही दिन हुए कलकत्ता आये हैं । आते ही उन्होंने श्रीरामकृष्ण को भूमिष्ठ हो प्रणाम किया । बहुतसे लोग उपस्थित हैं, - नरेन्द्र, महिमाचरण चक्रवर्ती, नवगोपाल, भूपति, लाटू, मास्टर, छोटे नरेन्द्र आदि बहुत से भक्त ।

[There were many devotees, including Narendranath, in the room. Vijay Krishna Goswami arrived and respectfully took the dust off the Master's feet. Several Brahmo devotees came with him. Vijay had cut off his connection with the Brahmo Samaj and practiced spiritual discipline independently. Sri Ramakrishna was very fond of him because of his piety and devotion. Though not a disciple of the Master, Vijay held him in very high respect. He had lived in Dacca for a long time. Recently he visited many sacred places in upper India.

কিয়ৎক্ষণ পরে শ্রীযুক্ত বিজয়কৃষ্ণ গোস্বামী পরমহংসদেবকে দর্শন করিতে আসিলেন। সঙ্গে কয়েকটি ব্রাহ্মভক্ত। বিজয়কৃষ্ণ ঢাকায় অনেক দিবস ছিলেন। আপাততঃ পশ্চিমে অনেক তীর্থ ভ্রমণের পর সবে কলিকাতায় পৌঁছিয়াছেন। আসিয়া ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণকে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিলেন। অনেকে উপস্থিত ছিলেন, — নরেন্দ্র, মহিমা চক্রবর্তী, নবগোপাল, ভূপতি, লাটু, মাস্টার, ছোট নরেন্দ্র ইত্যাদি অনেকগুলো ভক্ত।]

महिमा चक्रवर्ती (विजय से) - महाशय, आप तीर्थ कर आये, बहुत से देश देखकर आये, अब कहिये, आपने क्या क्या देखा ।

MAHIMA CHAKRAVARTY (to Vijay): "Sir, you have visited many holy places and new countries. Please tell us some of your experiences."

মহিমা চক্রবর্তী (বিজয়ের প্রতি) — মহাশয়, তীর্থ করে এলেন, অনেক দেশ দেখে এলেন, এখন কি দেখলেন বলুন।

विजय - क्या कहूँ ? मैं अनुभव कर रहा हूँ कि जहाँ अभी मैं बैठा हुआ हूँ, यहीं सब कुछ है । इधर-उधर भटकना व्यर्थ है । और जहाँ जहाँ मैं गया, कहीं इनका (श्रीरामकृष्ण का) एक आना, कहीं दो आने या चार आने अंश ही पाया, परन्तु पूरे सोलह आने तो केवल यहीं पा रहा हूँ

VIJAY: "What shall I say? I realize that everything is here where we are sitting now. This roaming about is useless. At other places, I have seen two, five, ten, or twenty-five percent of him [meaning the Master], at the most. Here alone I find the full one hundred percent manifestation of God."

বিজয় — কি বলব! দেখছি, যেখানে এখন বসে আছি, এইখানেই সব। কেবল মিছে ঘোরা! কোন কোন জায়গায় এঁরই এক আনা কি দুই আনা, কোথাও চারি আনা, এই পর্যন্ত। এইখানেই পূর্ণ ষোল আনা দেখছি!

महिमा - आप ठीक कहते हैं । फिर, ये ही चक्कर लगवाते हैं और ये ही बैठाते हैं

MAHIMA: "You are right, sir. Again, it is he [the Master] who makes us roam about or remain in one place."

মহিমা চক্রবর্তী — ঠিক বলছেন, আবার ইনিই ঘোরান, ইনিই বসান!

श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से) - देख, विजय की कैसी अवस्था हो गयी है ! लक्षण सब बदल गये हैं, मानो उबाला हुआ है । मैं परमहंस की गरदन और कपाल देखकर बतला सकता हूँ कि वह परमहंस है या नहीं

MASTER (to Narendra): "See what a change has come over Vijay's mind. He is an altogether different person. He is like thick milk from which all the water has been boiled off. You see, I can recognize a Paramahamsa by his neck and forehead. Yes, I can recognize a Paramahamsa."

শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — দেখ, বিজয়ের অবস্থা কি হয়েছে। লক্ষণ সব বদলে গেছে, যেন সব আউটে গেছে। আমি পরমহংসের ঘাড় ও কপাল দেখে চিনতে পারি। বলতে পারি, পরমহংস কি না।

महिमा - महाराज, क्या आपका भोजन घट गया है ?

MAHIMA (to Vijay): "Sir, you seem to eat less now. Isn't that so?"

মহিমা চক্রবর্তী — মহাশয়! আপনার আহার কমে গেছে?

विजय - हाँ, शायद घट गया है । (श्रीरामकृष्ण से) आपकी पीड़ा का हाल पाकर देखने के लिए आया हूँ । और फिर ढाके में

VIJAY; "Perhaps you are right. (To the Master) I heard about your illness and have come to see you. Again, in Dacca —"

বিজয় — হাঁ, বোধ হয় গিয়েছে। (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — আপনার পীড়ার কথা শুনে দেখতে এলাম। আবার ঢাকা থেকে —

श्रीरामकृष्ण – क्या ?

MASTER: "What about Dacca?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — কি?

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ देर चुप हो रहे ।

Vijay did not reply and was silent for a few moments.

বিজয় কোন উত্তর দিলেন না। খানিকক্ষণ চুপ করিয়া রহিলেন।

विजय - अगर अपने आप को वे (श्रीरामकृष्ण) खुद न पकड़वा दें तो पकड़ना मुश्किल है । यहीं सोलहों आना (विकास और प्रकाश) है ।

VIJAY: "It is difficult to understand him [meaning the Master] unless he reveals himself. Here alone is the one hundred percent manifestation of God."

বিজয় — ধরা না দিলে ধরা শক্ত। এইখানেই ষোল আনা।

श्रीरामकृष्ण - केदार ने कहा, 'दूसरी जगह खाने को नहीं मिलता, परन्तु यहाँ आते ही पेट भर जाता है ।'

MASTER: "Kedar said the other day, 'At other places, we don't get anything to eat, but here we get a stomach full!' 

শ্রীরামকৃষ্ণ — কেদার১ বললে, অন্য জায়গায় খেতে পাই না — এখানে এসে পেট ভরা পেলুম! 

महिमा - पेट भरना ही नहीं - इतना मिलता है कि पेट में समाता नहीं - बाहर गिर जाता है !

MAHIMA: "Why a stomach full? It overflows the stomach."

মহিমা চক্রবর্তী — পেট ভরা কি? উপচে পড়ছে!

विजय - (हाथ जोड़कर, श्रीरामकृष्ण से) - आप कौन हैं, यह मैं समझ गया, अब कहना न होगा।

VIJAY (to the Master, with folded hands): "I have now realized who you are. You don't have to tell me."

বিজয় (হাতজোড় করিয়া শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — বুঝেছি আপনি কে! আর বলতে হবে না!

श्रीरामकृष्ण - (भावस्थ) - अगर ऐसा है तो यही सही ।

MASTER (in a state of ecstasy): "If so, then so be it!"

শ্রীরামকৃষ্ণ (ভাবস্থ) — যদি তা হয়ে থাকে, তো তাই।

विजय ने कहा, 'मैं समझा ।' यह कहकर श्रीरामकृष्ण के पैर पर गिर पड़े और उनके चरणों को अपनी छाती से लगा लिया ।

श्रीरामकृष्ण ईश्वरावेश में बाह्यशून्य हो चित्रवत् बैठे हुए हैं । इस प्रेमावेश को, इस अद्भुत दृश्य को देखकर, भक्तों में किसी की आँखों से आँसू बह रहे हैं और कोई स्तुति-पाठ कर रहे हैं । जिसका जैसा भाव है, वह उसी भाव से श्रीरामकृष्ण की ओर हेर रहा है । कोई उन्हें परम भक्त देखता है, कोई साधु, कोई देह धारण करके आये हुए साक्षात् ईश्वरावतार, (अवतार वरिष्ठ ?) जिसका जैसा भाव

Saying, "Yes, I have understood", Vijay tells prostrated before the Master. He held the Master's feet on his chest and clung to them. The Master was in deep samadhi, motionless as a picture. The devotees were overwhelmed by this sight. Some burst into tears and some chanted sacred hymns. All eyes were riveted on Sri Ramakrishna. They viewed him in different ways, according to their spiritual unfoldment: some as a great devotee, some as a holy man, some as God Incarnate.

বিজয় — বুঝেছি। এই বলিয়া শ্রীরামকৃষ্ণের পাদমূলে পতিত হইলেন ও নিজের বক্ষে তাঁহার চরণ ধারণ করিলেন। শ্রীরামকৃষ্ণ তখন ঈশ্বরাবেশে বাহ্যশূন্য চিত্রার্পিতের ন্যায় বসিয়া আছেন।

এই প্রেমাবেশ, এই অদ্ভুত দৃশ্য দেখিয়া উপস্থিত ভক্তেরা কেহ কাঁদিতেছেন, কেহ স্তব করিতেছেন। যাঁহার যে মনের ভাব তিনি সেই ভাবে একদৃষ্টে শ্রীরামকৃষ্ণের দিকে চাহিয়া রহিলেন! কেহ তাঁহাকে পরমভক্ত, কেহ সাধু, কেহ বা সাক্ষাৎ দেহধারী ঈশ্বরাবতার দেখিতেছেন, যাঁহার যেমন ভাব

महिमाचरण गाने लगे । गाते हुए आँखों में पानी भर आया - 'देखो देखो प्रेममूर्ति ।' और बीच-बीच में इस भाव से श्लोकों की आवृत्ति करने लगे जैसे ब्रह्म का साक्षात् दर्शन कर रहे हों - 'तुरीयं सच्चिदानन्द द्वैताद्वैतविवर्जितम् ।'

Mahimacharan sang, with tears in his eyes: "Behold, behold the embodiment of Love Divine!" Now and then he chanted as if enjoying a glimpse of Brahman: The Transcendental, beyond the One and the many, Existence-Knowledge-Bliss Absolute.

মহিমাচরণ সাশ্রুনয়নে গাহিলেন — দেখ দেখ প্রেমমূর্তি — ও মাঝে মাঝে যেন ব্রহ্মদর্শন করিতেছেন, এই ভাবে বলিতেছেন —“তুরীয়ং সচ্চিদানন্দম্‌ দ্বৈতাদ্বৈতবিবর্জিতম্‌।”

नवगोपाल रोने लगे । एक दूसरे भक्त भूपति ने गाया ।

गाना - हे परब्रह्म, तुम्हारी जय हो, तुम अपार हो, अगम्य हो, परात्पर हो ..... । मुझे ज्ञान दो, भक्ति और प्रेम दो, और श्रीचरणों में मुझे आश्रय दो

जय जय परब्रह्म, आप अपार और अगम्य (अनन्त) हैं

           आप सर्वशक्तिमान हैं। 

तुम सत्य (ज्योति) की ज्योति हो, प्रेम की उर्वर भूमि हो।

           आप मंगल (कल्याण)  के मूल आधार हैं।

हालाँकि, विभिन्न रासायनिक अवधारणाएँ (सोडियम, पोटेसियम) , आपकी गहरी रचनाएँ हैं ,

           (रक्त मज्जा में) अत्यंत भव्यता से सुसज्जित हैं ,

आप महाकवि आदिकवि हो, शशि रवि आपके छन्द -ताल के अनुसार घूमते हैं,

           सूर्य-चंद्र-पृत्वी उन सबकी  ताल -लय फिर रुक जाती है, तब क्या बचता है ?

तब नीला आकाश और प्राण बचता है।  

ग्रह -नक्षत्र तारा कनक कुची, जलद अक्षर रुचि,

           यह गाना नीले पत्तों  पर (नीले आकाश पर ) लिखा गया है।

साल की छह ऋतुयें  तुम्हारी महिमा के  गीत गाती हैं ,

          उनके सुखपूर्ण व्यवहार से ,

आपकी कान्ति चमकीले सोने जैसी है, सलिल तेरी शांति की वर्षा ,

           तुम्हारे रुद्र वज्र हैं, तुम भीम हो;

लेकिन तुम्हारे भाव (आकाश और प्राण ) बड़े रहस्यमय हैं,  

ध्याय युगयुगान्तर तक अनन्त का ध्यान करके भी

ये  मूर्ख मन तुम्हें क्या समझ सकेगा ?

सभी ग्रह -नक्षत्र आनंदपूर्वक, आपके चरणों की वन्दना करते हैं। 

           करोड़ों चाँद और करोड़ों सूरज- यह दृष्टिगोचर प्रकृति !

यह व्यक्त जगत ब्रह्माण्ड, अव्यक्त माँ जगदम्बा की रचना के भाव  से भावित नर-नारी,

           यह देख कर आंखों से आंसू बहते हैं। 

 तुम विराट समष्टि अहं - विभु को  सूर, नर, रिभु, मिल कर प्रणाम करते हैं। 

           तुम सर्व मंगल का आलय हो;

मुझे भक्ति दो, विवेक-दो, वैराग्य दो,  ज्ञान दो  

हे ठाकुर प्रेम दो, भक्ति दो, दया दो, अपने श्री चरणों में सभी भक्तों को आश्रय दो।              

নবগোপাল কাঁদিতেছেন। আর একটি ভক্ত ভূপতি গাহিলেন:

জয় জয় পরব্রহ্ম            অপার তুমি অগম্য

          পারাৎপর তুমি সারাৎসার।

সত্যের আলোক তুমি    প্রেমের আকর ভূমি,

          মঙ্গলের তুমি মূলাধার।

নানা রসযুত ভব,           গভীর রচনা তব,

          উচ্ছ্বসিত শোভায় শোভায়,

মহাকবি আদিকবি,        ছন্দে উঠে শশী রবি,

          ছন্দে পুনঃ অস্তাচলে যায়।

তারকা কনক কুচি,        জলদ অক্ষর রুচি,

          গীত লেখা নীলাম্বর পাতে।

ছয় ঋতু সম্বৎসরে,          মহিমা কীর্তন করে,

          সুখপূর্ণ চরাচর সাথে।

কুসুমে তোমার কান্তি,     সলিলে তোমার শান্তি,

          বজ্ররবে রুদ্র তুমি ভীম;

তব ভাব গূঢ় অতি,          কি জানিবে মূঢ়মতি,

          ধ্যায় যুগযুগান্ত অসীম।

আনন্দে সবে আনন্দে,    তোমার চরণ বন্দে,

          কোটি চন্দ্র কোটি সূর্য তারা!

তোমারি এ রচনারি,        ভাব লয়ে নরনারী,

          হাহাকারে নেত্রে বহে ধারা।

মিলি সুর, নর, ঋভু,        প্রণমে তোমায় বিভু

          তুমি সর্ব মঙ্গল-আলয়;

দেও জ্ঞান, দেও প্রেম,    দেও ভক্তি, দেও ক্ষেম,

          দেও দেও ওপদে আশ্রয়।

Nabagopal was weeping. Bhupathi song:

Hallowed be Brahman, the Absolute, the Infinite, the Fathomless! Higher than the highest, deeper than the deepest depths! Thou art the Light of Truth, the प्रेम का झरना Fount  of Love, the Home of Bliss! This universe with all its manifold and blessed modes Is but the enchanting poem of Thine inexhaustible thought; Its beauty overflows on every side.

काली माता O Thou Poet, great and primal, in the rhythm of Thy thought, The sun and moon arise and move toward their setting; The stars, shining like bits of gems, are the fair characters, In which Thy song is written across the blue expanse of sky; The year, with its six seasons, in tune with the happy earth, Proclaims Thy glory to the end of time.

The colors of the flowers reveal Thy sovereign Beauty, The waters in their stillness. Thy deep Serenity; The thunderclap unveils to us the terror of Thy Law. Deep is Thine Essence, truly; how can a foolish mind perceive it? Wondering, it meditates on Thee from yuga to yuga's end; Millions upon millions of suns and moons and stars Bow down to Thee, O Lord, in rapturous awe!

Beholding Thy creation, men and women weep for joy; The gods and angels worship Thee, O All-pervading Presence! O Thou, the Fount of Goodness, bestow on us Thy Knowledge; Bestow on us devotion, bestow pure love and perfect peace; And grant us shelter at Thy hallowed feet!

भूपति फिर गा रहे हैं –

गाना - चिदानन्द-सिन्धु-सलिल में प्रेम और आनन्द की लहरें उठ रही हैं । रासलीला के महान् भाव में कैसी सुन्दर माधुरी है !....

Upon the Sea of Blissful Awareness, waves of ecstatic love arise Rapture divine! Play of God's Bliss! Oh, how enthralling! . . .

He sang a third song: Here vanish my fear and my delusion, my piety, rituals, and good works; Here vanish my pride of race and caste! Where am I? Where art Thou, O Hari? Thou hast stolen my life and soul, and now, O Friend, Thou dost desert me: Ah, what a fool I was to come here to the shore of this Sea of Love! Full to the brim with heavenly bliss is filled this little soul of mine; Premdas says: Hearken, one and all! This in truth is the way of God!

ভূপতি আবার গাহিতেছেন:

[ঝিঁঝিট — (খয়রা) কীর্তন ]

                 চিদানন্দ সিন্ধুনীরে প্রেমানন্দের লহরী।

                 মহাভাব রসলীলা কি মাধুরী মরি মরি

বিবিধ বিলাস রসপ্রসঙ্গ,                 কত অভিনব ভাবতরঙ্গ,

ডুবিছে উঠিছে করিছে রঙ্গ,              নবীন নবীন রূপ ধরি,

                          (হরি হরি বলে)

মহাযোগে সমুদয় একাকার হইল,

দেশ-কাল ব্যবধান ভেদাভেদ ঘুচিল,

(আশা পুরিল রে, আমার সকল সাধ মিটে গেল!)

এখন আনন্দে মাতিয়া দুবাহু তুলিয়া, বলরে মন হরি হরি।

[ঝাঁপতাল ]


টুটল ভরম ভীতি            ধরম করম নীতি

             দূর ভেল জাতি কুল মান;

কাঁহা হাম, কাঁহা হরি,     প্রাণমন চুরি করি,

             বঁধূয়া করিলা পয়ান;

(আমি কেনই বা এলাম গো, প্রেমসিন্ধুতটে),

ভাবেতে হল ভোর,         অবহিঁ হৃদয় মোর

             নাহি যাত আপনা পসান,

প্রেমদার কহে হাসি,       শুন সাধু জগবাসী,

             এয়সাহি নূতন বিধান।

             (কিছু ভয় নাই! ভয় নাই!)

बड़ी देर के बाद श्रीरामकृष्ण प्रकृतिस्थ हुए ।

After a long time Sri Ramakrishna regained consciousness of the world.

অনেকক্ষণ পরে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ প্রকৃতিস্থ হইলেন।

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से) - आवेश में न जाने क्या हो जाता है । इस समय लज्जा आ रही है । उस समय जैसे भूत सवार हो जाता है, 'मैं' फिर 'मैं' नहीं रह जाता । "इस अवस्था के बाद (अवतार वरिष्ठ के नाम -जप की)  गिनती नहीं गिनी जा सकती । गिनने लगो तो १, ७, ९ इस तरह की गणना होती है ।"

MASTER (to M.): "Something happens to me in that state of intoxication. Now I feel ashamed of myself. In that state, I feel as if I were possessed by a ghost. I cease to be my self. While coming down from that state I cannot count correctly. Trying to count, I say, 'One, seven, eight', or some such thing."

শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — কি একটা হয় আবেশে; এখন লজ্জা হচ্ছে। যেন ভূতে পায়, আমি আর আমি থাকি না।“এ-অবস্থার পর গণনা হয় না। গণতে গেলে ১-৭-৮ এইরকম গণনা হয়।”

नरेन्द्र - सब एक ही है, इसलिए ।

NARENDRA: "It is because everything is one."

নরেন্দ্র — সব এক কিনা!

श्रीरामकृष्ण - नहीं, एक और दो से परे ।

MASTER: "No, it is beyond one and two."

শ্রীরামকৃষ্ণ — না, এক দুয়ের পার!২

[2 # एक -दो से परे - अर्थात सापेक्ष सत्य से भिन्न पूर्ण सत्य ।]

महिमाचरण - जी हाँ, द्वैताद्वैतविवर्जितम् ।

MAHIMA: "Yes, you are right. 'It is neither one nor two.'"

মহিমাচরণ — আজ্ঞা হাঁ, দ্বৈতাদ্বৈতবিবর্জিতম্‌।

श्रीरामकृष्ण - वहाँ तर्क-विचार नष्ट हो जाता है । पाण्डित्य द्वारा उन्हें कोई पा नहीं सकता । वे शास्त्रों, वेदों, पुराणों और तन्त्रों से परे हैं । किसी के हाथ में अगर मैं एक पुस्तक देखता हूँ तो उसके ज्ञानी होने पर भी मैं उसे राजर्षि कहता हूँ । ब्रह्मर्षि का कोई बाह्य लक्षण नहीं रहता ।

[राजर्षि^A rishi, or seer, who appears with outer splendour, like a king. ब्रह्मर्षि #A seer who always dwells in Brahman-Consciousness.]

शास्त्रों का उपयोग क्या है, जानते हो ? एक ने चिट्ठी लिखी थी, उसमें था, पाँच सेर सन्देश और एक धोती भेजना । जिसे वह चिट्ठी मिली उसने पाँच सेर सन्देश और एक धोती, इतना याद करके चिट्ठी फेंक दी । चिट्ठी की क्या जरूरत थी ?

MASTER: "Their reason withers away. God cannot be realized through scholarship. He is beyond the scriptures — the Vedas, Puranas, and Tantras. If I see a man with even one book in his hand, I call him a rajarshi,3 though he is a jnani. But the brahmarshi4 has no outer sign whatsoever.

"Do you know the use of the scriptures? A man once wrote a letter to a relative, asking him to send five seers of sweetmeats and a piece of cloth. The relative received the letter, read it, and remembered about the sweetmeats and the cloth. Then he threw the letter away. Of what further use was it?"

শ্রীরামকৃষ্ণ — হিসাব পচে যায়! পাণ্ডিত্যের দ্বারা তাঁকে পাওয়া যায় না। তিনি শাস্ত্র, — বেদ, পুরাণ, তন্ত্রের — পার। হাতে একখানা বই যদি দেখি, জ্ঞানী হলেও তাঁকে রাজর্ষি বলে কই। ব্রহ্মর্ষির কোন চিহ্ন থাকে না। 
 শাস্ত্রের কি ব্যবহার জানো? একজন চিঠি লিখেছিল, পাঁচ সের সন্দেশ ও একখানা কাপড় পাঠাইবে। যে চিঠি পেলে সে চিঠি পড়ে, পাঁচ সের সন্দেশ ও একখানা কাপড়, এই কথা মনে রেখে চিঠিখানা ফেলে দিলে! আর চিঠির কি দরকার?

विजय - सन्देश भेजे गये, यह समझ लिया !

VIJAY: "I see that the sweetmeat has been sent."

বিজয় — সন্দেশ পাঠানো হয়েছে, বোঝা গেছে!

श्रीरामकृष्ण - ईश्वर आदमी की देह धारण करके आते हैं । यह सच है कि वे सब जगहों में और सर्व भूतों में हैं, परन्तु अवतार के बिना जीवों की आकांक्षा की पूर्ति नहीं होती, उनकी आवश्यकताएँ नहीं मिटती । वह इस तरह कि गौ को चाहे जहाँ छुओ वह गौ को ही छूना हुआ, सींग छूने पर भी गौ को छूना हुआ, परन्तु दूध गौ के थनों से ही आता है । (हास्य)

MASTER: "God incarnates Himself on earth in a human body. He is, no doubt, present everywhere and in all beings, but man's longing is not satisfied unless he sees God in a human form. Man's need is not satisfied without the Divine Incarnation. Do you know what it is like? By touching any part of a cow you undoubtedly touch the cow herself. Even by touching her horns, you touch the cow. But the milk comes through the cow's udder."

শ্রীরামকৃষ্ণ — মানুষদেহ ধারণ করে ঈশ্বর অবতীর্ণ হন। তিনি সর্বস্থানে সর্বভূতে আছেন বটে, কিন্তু অবতার না হলে জীবের আকাঙ্খা পুরে না, প্রয়োজন মেটে না। কিরকম জানো? গরুর যেখানটা ছোঁবে, গরুকে ছোঁয়াই হয় বটে। শিঙটা ছুঁলেও গাইটাকে ছোঁয়া হল, কিন্তু গাইটার বাঁট থেকেই দুধ হয়। (সকলের হাস্য)

महिमा - दूध की अगर जरूरत हो तो गौ के सींगों में मुँह लगाने से क्या होगा ? उसके थनों में मुँह लगाना चाहिए । (सब हँसते हैं)

MAHIMA: "If a man wants milk he must put his mouth to the ud8er. What will he get by sucking the horns?" (All laugh.)

মহিমা — দুধ যদি দরকার হয়, গাইটার শিঙে মুখ দিলে কি হবে? বাঁটে মুখ দিতে হবে। (সকলের হাস্য)

विजय - परन्तु बछड़ा पहले पहले इधर-उधर ही हूँथा मारता है ।

VIJAY: "But a calf at first licks other parts of the cow."

বিজয় — কিন্তু বাছুর প্রথম প্রথম এদিক-ওদিক ঢুঁ মারে।

श्रीरामकृष्ण – (हँसते हुए) - बछड़े को उस तरह भटकते हुए देखकर कोई कोई ऐसा भी करते हैं कि उसका मुँह थनों में लगा देते हैं । (सब हँसते हैं)

MASTER (smiling): "True. But seeing the calf doing so, someone perhaps puts its mouth to the udder." (All laugh.)

শ্রীরামকৃষ্ণ (হাসিতে হাসিতে) — আবার কেউ হয়তো বাছুরকে ওইরকম করতে দেখে বাঁটটা ধরিয়ে দেয়। (সকলের হাস্য)

(५)

 [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🙂भक्तों के साथ प्रेमानन्द में🙂

ये सब बातें हो रही थीं कि श्रीरामकृष्ण को देखने के लिए डाक्टर आ पहुँचे और आसन ग्रहण किया । वे कह रहे हैं, 'कल रात तीन बजे से मेरी आँख नहीं लगी । बस तुम्हारी ही चिन्ता थी कि कहीं ऐसा न हो कि सर्दी लग जाय । और भी मैं बहुत कुछ सोच रहा था ।

The conversation was thus going on, when Dr. Sarkar came into the room and took a seat. He said to the Master: "I woke up at three this morning, greatly worried that you might catch cold. Oh, I thought many other things about you."

এই সকল কথা হইতেছে, এমন সময়ে ডাক্তার তঁহাকে দেখিবার জন্য আসিয়া উপস্থিত হইলেন ও আসন গ্রহণ করিলেন। তিনি বলিতেছেন, “কাল রাত তিনটে থেকে আমার ঘুম ভেঙেছে। কেবল তোমার জন্য ভাবছিলাম, পাছে ঠাণ্ডা লেগে থাকে। আরও কত কি ভাবছিলাম।”

श्रीरामकृष्ण - खाँसी हुई है, गले में भी सूजन है । सबेरे तड़के मुँह में पानी आ गया था । मेरा पूरा शरीर टूट रहा है ।

MASTER: "I have been coughing and my throat is sore. In the small hours of the morning my mouth was filled with water. My whole body is aching."

শ্রীরামকৃষ্ণ — কাশি হয়েছে, টাটিয়েছে; শেষ রাত্রে একমুখ জল, আর যেন কাঁটা বিঁধছে।

डाक्टर - सुबह को सब खबर मुझे मिली है ।

DOCTOR: "Yes, I heard all about it this morning.'

ডাক্তার — সকালে সব খবর পেয়েছি।

महिमाचरण अपने भारतवर्ष-भ्रमण की चर्चा कर रहे हैं । कहा, 'लंकाद्वीप में हँसता हुआ आदमी नहीं दीख पड़ता । डाक्टर सरकार ने कहा, 'हाँ होगा, परन्तु इसकी खोज होनी चाहिए ।' (सब हँसते हैं) डाक्टरी कार्य की बातचीत होने लगी ।

Mahimacharan told of his trip to various parts of the country and said that in Ceylon no man laughed. Dr. Sarkar said, "It may be so; but I shall have to inquire about it." (All laugh.)

মহিমাচরণ তাঁহার ভারতবর্ষ ভ্রমণের কথা বলিতেছেন। বলিলেন যে, লঙ্কাদ্বীপে ‘ল্যাফিং ম্যান্‌’ নাই। ডাক্তার সরকার বলিলেন, তা হবে, ওটা এন্‌কোয়ার করতে হবে। (সকলের হাস্য)

  [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🙂डॉक्टर का पेशा और श्री रामकृष्ण देव 🙂

बातचीत (डॉक्टर आदि के)  जीवन के कर्तव्यों की ओर मुड़ गई।

The conversation turned to the duties of life.

ডাক্তারী কর্মের কথা পড়িল।

श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - बहुतों का यह ख्याल है कि डाक्टरी का स्थान अन्य कार्यों से बहुत ऊँचा है । यदि रुपया न लेकर, दूसरे का दुःख देखकर कोई चिकित्सा करे तब तो वह महान् व्यक्ति है, उसका कार्य भी महत्वपूर्ण है, नहीं तो जो लोग रुपया लेकर यह सब काम करते हैं, वे तो निर्दय हैं, और निर्दय होते जाते हैं । व्यवसाय की दृष्टि से मल-मूत्र देखना तो नीचों का काम है।

MASTER (to the doctor): "Many think that the duty of a physician is a very noble one. A physician is undoubtedly a nobleman if he treats his patients freely, out of compassion and moved by their suffering. Then his work may be called very uplifting. But a physician becomes cruel if he carries on his profession for money. It is very mean to do such things as examine urine and stool to earn money, like a businessman carrying on his trade."

শ্রীরামকৃষ্ণ (ডাক্তারের প্রতি) — ডাক্তারী কর্ম খুব উঁচু কর্ম বলে অনেকের বোধ আছে। যদি টাকা না লয়ে পরের দুঃখ দেখে দয়া করে কেউ চিকিৎসা করে তবে সে মহৎ, কাজটিও মহৎ। কিন্তু টাকা লয়ে এ-সব কাজ করতে করতে মানুষ নির্দয় হয়ে যায়। ব্যবসার ভাবে টাকার জন্য হাগা, বাহ্যের রঙ এই সব দেখা — নীচের কাজ।

डाक्टर - महाराज, आप बिलकुल ठीक कहते हैं । डाक्टर के लिए उस भाव से काम करना तो सचमुच बहुत बुरा है । परन्तु आपके सम्मुख मैं अपने ही मुँह से क्या कहूँ –

DOCTOR: "You are right. It is undoubtedly wrong for a physician to perform his duties in that spirit. But I don't like to brag before you —"

ডাক্তার — তা যদি শুধু করে, কাজ খারাপ বটে। তোমার কাছে বলা গৌরব করা —

श्रीरामकृष्ण - हाँ, डाक्टरी में निःस्वार्थ भाव से अगर दूसरे का उपकार किया जाय, तब तो बहुत अच्छा है ।

MASTER: "But the medical profession is certainly very noble if the physician devotes himself to the welfare of others in an unselfish spirit.

শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, ডাক্তারী কাজে নিঃস্বার্থভাবে যদি পরের উপকার করা হয়, তাহলে খুব ভাল।

“चाहे जो काम आदमी करे, संसारी मनुष्य के लिए बीच-बीच में साधुसंग की बड़ी आवश्यकता है ईश्वर में भक्ति रहने पर लोग साधुसंग आप खोज लेते हैं । मैं उपमा दिया करता हूँ – गँजेड़ी गँजेड़ी के साथ ही रहता है । दूसरे आदमी को देखता है तो वह सिर झुकाकर चला जाता है या छिप रहता है; परन्तु एक दूसरे गँजेड़ी को देखकर उसे परम प्रसन्नता होती है । कभी तो मारे प्रेम के दोनों गले लग जाते हैं । (सब हँसते हैं) और, गीध भी गीध ही के साथ रहता है ।”

"Whatever may be a householder's profession, it is necessary for him to live in the company of holy men now and then. If a man loves God, he will himself seek the company of holy men. I give the illustration of the hemp-smoker. One hemp-smoker loves the company of another hemp-smoker. At the sight of a person who does not smoke, he goes away with downcast eyes or hides himself in a corner; but his joy is unbounded if he meets a hemp addict. Perhaps they embrace each other. (All laugh.) Again, a vulture loves the company of another vulture."

“তা যে কর্মই লোকে করুক না কেন, সংসারী ব্যক্তির মাঝে মাঝে সাধুসঙ্গ বড় দরকার। ঈশ্বরে ভক্তি থাকলে লোকে সাধুসঙ্গ আপনি খুঁজে লয়। আমি উপমা দিই — গাঁজাখোর গাঁজাখোরের সঙ্গে থাকে, অন্য লোক দেখলে মুখ নিচু করে চলে যায়, বা লুকিয়ে পড়ে। কিন্তু আর-একজন গাঁজাখোর দেখলে মহা আনন্দ। হয়তো কোলাকুলি করে। (সকলের হাস্য) আবার শকুনি শকুনির সঙ্গে থাকে।”

   [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🙂संत की दया हर जीव पर होती है  🙂

डाक्टर - परन्तु कौए के डर से ही गीध भाग जाता है । मैं कहता हूँ, सिर्फ मनुष्य की ही नहीं, सब जीवों की सेवा करनी चाहिए । मैं प्रायः गौरैयों को आटे की गोलियाँ दिया करता हूँ । और छत पर हजारों गौरैयाँ इकट्ठी हो जाती हैं ।

DOCTOR: "It has also been noticed that a vulture runs away for fear of a crow. In my opinion, one should serve all creatures, not men alone. Often I feed the sparrows with flour. I throw small pellets of flour to them and they come in swarms. They love to eat them."

ডাক্তার — আবার কাকের ভয়ে শকুনি পালায়। আমি বলি শুধু মানুষ কেন, সব জীবেরই সেবা করা উচিত। আমি প্রায়ই চড়ুই পাখিকে ময়দা দিই। ছোট ছোট ময়দার গুলি করে ছুঁড়ে ফেলি, আর ছাদে ঝাঁকে ঝাঁকে চড়ুই পাখি এসে খায়।

श्रीरामकृष्ण – वाह ! यह तो बड़ी अच्छी बात है । जीवों को खिलाना तो साधुओं का काम है । साधु-महात्मा चीटियों को शक्कर देते हैं ।

MASTER: "Bravo! That's grand. Holy men should feed other creatures. They feed ants with sugar."

শ্রীরামকৃষ্ণ — বাঃ, এটা খুব কথা। জীবকে খাওয়ানো সাধুর কাজ; সাধুরা পিঁপড়েদের চিনি দেয়।

डाक्टर - आज गाना नहीं होगा ?

DOCTOR: "Will there be no singing today?"

ডাক্তার — আজ গান হবে না?

श्रीरामकृष्ण (नरेन्द्र से) - कुछ गाओ ।

MASTER (to Narendra): "Why don't you sing a little?"

শ্রীরামকৃষ্ণ (নরেন্দ্রের প্রতি) — একটু গান কর না।

नरेन्द्र गा रहे हैं, हाथ में तानपूरा लिए हुए । आज बाजा भी बज रहा है ।

Narendra sang to the accompaniment of the tanpura and other instruments:

নরেন্দ্র গাহিতেছেন, তানপুরা সঙ্গে। অন্য বাজনাও হইতে লাগিল —

সুন্দর তোমার নাম দীন-শরণ হে,

বরিষে অমৃতধার, জুড়ায় শ্রবণ ও প্রাণরমণ হে।

এক তব নাম ধন, অমৃত-ভবন হে,

অমর হয় সেইজন, যে করে কীর্তন হে।

গভীর বিষাদরাশি নিমেষে বিনাশে,

যখনি তব নামসুধা শ্রবণে পরশে;

হৃদয় মধুময় তব নাম গানে,

হয় হে হৃদয়নাথ, চিদানন্দ ঘন হে।

गाना - हे दीनों के शरण ! तुम्हारा नाम बड़ा सुन्दर है । ऐ प्राणों में रमण करनेवाले ! अमृत की धारा बरस रही है, कर्ण शीतल बन जाते हैं...।

Sweet is Thy name, O Refuge of the humble! It falls like the sweetest nectar on our ears, And comforts us, Beloved of our souls! The priceless treasure of Thy name alone, Is the abode of Immortality, And he who chants Thy name becomes immortal. Falling upon our ears, Thy holy name, Instantly slays the anguish of our hearts, Thou Soul of our souls, and fills our hearts with bliss!

   [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

'भवानी भावना गम्या '

🙂🙏हे माँ, मुझे ज्ञान या तर्क की आवश्यकता नहीं है

बस, मुझे अपने प्यार में (दिव्य परमानंद में) पागल बना दो!🙂🙏 

[O Mother, I don't need knowledge or reason,

 just make me mad with Thy love!]

‘দে মা পাগল করে, আর কাজ নাই মা জ্ঞান বিচারে’

नरेन्द्र फिर गा रहे हैं –

श्यामा संगीत

गाना - माँ ! मुझे पागल कर दे, ज्ञान और विचार की अब कोई आवश्यकता नहीं है .... ।

গান   —   আমায় দে মা পাগল করে।

আর কাজ নাই মা জ্ঞান বিচারে ৷৷

(ব্রহ্মময়ী দে মা পাগল ক’রে)

(ওমা) তোমার প্রেমের সুরা, পানে কর মাতোয়ারা,

ওমা ভক্তচিত্তহরা ডুবাও প্রেমসাগরে ৷৷

তোমার এ পাগলাগারদে, কেহ হাসে কেহ কাঁদে,

             কেহ নাচে আনন্দ ভরে;

ঈশা বুদ্ধ শ্রীচৈতন্য ওমা প্রেমের ভরে অচৈতন্য,

হায় কবে হব মা ধন্য, (ওমা) মিশে তার ভিতরে ৷৷

Narendra sang again:

O Mother, make me mad with Thy love! What need have I of knowledge or reason? Make me drunk with Thy love's Wine; O Thou who stealest Thy bhaktas' hearts, Drown me deep in the Sea of Thy love! Here in this world, this madhouse of Thine, Some laugh, some weep, and some dance for joy: Jesus, Buddha, Moses, Gauranga, All are drunk with the Wine of Thy love.O Mother, when shall I be blessed, By joining their blissful company?

[Lyrics: Trailokyanath Sanyal/ Singer: Pannalal Bhattacharya]

गाने के साथ ही इधर अद्भुत दृश्य दिखायी देने लगा - भावावेश में सब लोग पागल हो रहे हैं । पण्डित अपने पाण्डित्य का अभिमान छोड़कर खड़े हो गये । कह रहे हैं - 'माँ, मुझे पागल कर दे, ज्ञान और विचार की अब कोई आवश्यकता नहीं है ।'

A strange transformation came over the devotees. They all became mad, as it were, with divine ecstasy. The pundit stood up, forgetting the pride of his scholarship, and cried:

सब से पहले आसन छोड़कर भावावेश में विजय खड़े हुए, फिर श्रीरामकृष्ण । श्रीरामकृष्ण देह की कठिन असाध्य व्याधि को बिलकुल भूल गये हैं । सामने डाक्टर हैं । वे भी खड़े हो गये । न रोगी को होश है, न डाक्टर को । छोटे नरेन्द्र और लाटू दोनों को भावसमाधि हो गयी ।

A strange transformation came over the devotees. They all became mad, as it were, with divine ecstasy. The pundit stood up, forgetting the pride of his scholarship, and cried: O Mother, make me mad with Thy love! What need have I of knowledge or reason?

গানের পর আবার অদ্ভুত দৃশ্য। সকলেই ভাবে উন্মত্ত। পণ্ডিত পাণ্ডিত্যাভিমান ত্যাগ করিয়া দাঁড়াইয়াছেন। বলছেন, “আমায় দে মা পাগল করে, আর কাজ নাই জ্ঞান বিচারে।” বিজয় সর্বপ্রথমে আসনত্যাগ করিয়া ভাবোন্মত্ত হইয়া দাঁড়াইয়াছেন।

 তাহার পরে শ্রীরামকৃষ্ণ। ঠাকুর দেহের কঠিন অসাধ্য ব্যাধি একেবারে ভুলিয়া গিয়াছেন। ডাক্তার সম্মুখে। তিনিও দাঁড়াইয়েছেন। রোগীরও হুঁশ নাই, ডাক্তারেরও হুঁশ নাই। ছোট নরেনের ভাবসমাধি হইল। লাটুরও ভাবসমাধি হইল। 

Vijay was the first on his feet, carried away by divine intoxication. Then Sri Ramakrishna stood up, forgetting all about his painful and fatal illness. The doctor, who had been sitting in front of him, also stood up. Both the patient and physician forgot themselves in the spell created by Narendra's music. The younger Naren and Latu went into deep samadhi. The atmosphere of the room became electric. Everyone felt the presence of God. 

डाक्टर ने साइन्स (विज्ञान) पढ़ी है, परन्तु यह विचित्र अवस्था देखते हुए अवाक् हो रहे हैं । देखा, जिन्हें भावावेश है उनमें बाह्यज्ञान बिलकुल नहीं रह गया । सब के सब स्थिर और निःस्पन्द हो रहे हैं । भाव का उपशम होने पर कोई हँस रहे हैं, कोई रो रहे हैं, मानो कुछ मतवाले इकट्ठे हो गये हों ।

Dr. Sarkar, an eminent scientist that he was, stood breathless, watching this strange scene. He noticed that the devotees who had gone into samadhi were utterly unconscious of the outer world. All were motionless and transfixed. After a while, as they came down a little to the plane of the relative world, some laughed and some wept. An outsider, entering the room, would have thought that several drunkards were assembled there.

ডাক্তার সায়েন্স্‌ পড়িয়াছেন, কিন্তু অবাক্‌ হইয়া এই অদ্ভুত ব্যাপার দেখিতে লাগিলেন। দেখিলেন, যাঁহাদের ভাব হইয়াছে, তাঁহাদের বাহ্য চৈতন্য কিছুই নাই, সকলেই স্থির, নিস্পন্দ; ভাব উপশম হইলে কেহ কাঁদিতেছেন, কেহ কেহ হাসিতেছেন। যেন কতকগুলি মাতাল একত্র হইয়াছে।

(६)

भक्त के संग में । 

   [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

श्रीरामकृष्ण तथा क्रोध-जय ।

(ভক্তসঙ্গে — শ্রীরামকৃষ্ণ ও ক্রোধজয়)

इस घटना के बाद लोगों ने आसन ग्रहण किया । रात के आठ बज गये हैं । फिर बातचीत होने लगी ।

श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से) - यह जो भाव (the effect of divine ecstasy) तुमने देखा, इसके सम्बन्ध में तुम्हारी साइन्स क्या कहती है ? तुम्हें क्या यह जान पड़ता है कि यह सब ढोंग है ?

A little later Sri Ramakrishna resumed his conversation, the devotees taking their seats. It was about eight o'clock in the evening.

MASTER: "You have just noticed the effect of divine ecstasy. What does your 'science' say about that? Do you think it is a mere hoax?"

এই কাণ্ডের পর সকলে আবার আসন গ্রহণ করিলেন। রাত আটটা হইয়া গিয়াছে। আবার কথাবার্তা হইতে লাগিল।

শ্রীরামকৃষ্ণ (ডাক্তারের প্রতি) — এই যা ভাব-টাব দেখলে তোমার সায়েন্স কি বলে? তোমার কি এ-সব ঢঙ বোধ হয়?

डाक्टर (श्रीरामकृष्ण से) - जहाँ इतने आदमियों को ऐसा हो रहा है, वहाँ तो स्वाभाविक ही जान पड़ता है; ढोंग नहीं मालूम होता । (नरेन्द्र से) जब तुम गा रहे थे, 'माँ, पागल कर दे, ज्ञान और विचार की अब आवश्यकता नहीं है', तब मुझसे रहा नहीं गया, खड़ा हो गया, फिर बड़ी मुश्किल से भाव को दबाना पड़ा । मैंने सोचा कि बाहरी दिखाव न होने देना चाहिए

DOCTOR (to the Master): "I must say this is all-natural when so many people have experienced it. It cannot be a hoax. (To Narendra) When you sang the lines: O Mother, make me mad with Thy love! What need have I of knowledge or reason? I could hardly control myself. I was about to jump to my feet. With great difficulty, I suppressed my emotions. I said to myself, 'No, I must not display my feelings.'"

ডাক্তার (শ্রীরামকৃষ্ণের প্রতি) — যেখানে এত লোকের হচ্ছে সেখানে natural (আন্তরিক) বোধ হয়, ঢঙ বোধ হয় না। (নরেন্দ্রের প্রতি) যখন তুমি গাচ্ছিলে ‘দে মা পাগল করে, আর কাজ নাই মা জ্ঞান বিচারে’ তখন আর থাকতে পারি নাই। দাঁড়াই আর কি! তারপর অনেক কষ্টে ভাব চাপলুম; ভাবলুম যে display করা হবে না।

श्रीरामकृष्ण (डाक्टर से, हँसकर) - तुम तो अटल, अचल और सुमेरुवत् हो । (सब हँसते हैं) तुम गम्भीरात्मा हो । रूपसनातन का भाव किसी को मालूम न हो पाता था । अगर किसी गड़ही में हाथी उतर जाता है तो पानी में उथल-पुथल मच जाती है, परन्तु बड़े सरोवर में कहीं कुछ नहीं होता । किसी को मालूम भी नहीं होता ।

MASTER (with a smile, to the doctor): "You are unshakable and motionless, like Mount Sumeru. You are a very deep soul. Nobody could perceive the deep emotions of Rupa and Sanatana. If an elephant enters a small pool, there is a splashing of water on all sides. But this does not happen when it plunges into a big lake; hardly anyone notices it.

শ্রীরামকৃষ্ণ (ডাক্তারের প্রতি, সহাস্যে) — তুমি যে অটল অচল সুমেরুবৎ। (সকলের হাস্য) তুমি গম্ভীরাত্মা, রূপসনাতনের ভাব কেউ টের পেতো না — যদি ডোবাতে হাতি নামে, তাহলেই তোলপাড় হয়ে যায়। কিন্তু সায়ের দীঘিতে নামলে তোলপাড় হয় না। কেউ হয়তো টেরও পায় না | 

श्रीमती ने सखियों से कहा, 'सखियों, कृष्ण के विरह में तुम लोग इतना रो रही हो, परन्तु मुझे देखो, मेरी आँखों में कहीं एक बूँद भी आँसू नहीं है ।' तब वृन्दा ने कहा, 'सखि, तेरी आँखों में आँसू नहीं है, इसका बहुत बड़ा अर्थ है । तेरे हृदय में विरह की आग सदा जल रही है, आँखों में आँसू आते हैं पर उस अग्नि की ज्वाला से सूख जाते हैं

 Radha once said to her companion: 'Friend, you are weeping so much at our separation from Sri Krishna. But look at me. How stony my heart is! There is not a tear in my eyes.' Brinde, her friend, replied: 'Yes, your eyes are dry. But there is a deep meaning in it. A fire of grief is constantly raging in your heart because of your separation from Krishna. No sooner do the tears gather in your eyes than they are dried up in the heat of that fire.'"

 শ্রীমতী সখীকে বললেন, ‘সখি, তোরা তো কৃষ্ণের বিরহে কত কাঁদছিস। কিন্তু দেখ, আমি যে কঠিন, আমার চক্ষে একবিন্দুও জল নাই।’ তখন বৃন্দা বললেন, সখি, তোর চক্ষে জল নাই, তার অনেক মানে আছে। তোর হৃদয়ে বিরহ অগ্নি সদা জ্বলছে; চক্ষে জল উঠছে আর সেই অগ্নির তাপে শুকিয়ে যাচ্ছে!

डाक्टर - आपके साथ बातचीत में पार पाना कठिन है । (हास्य)

DOCTOR: "Nobody can beat you in talk!" (Laughter.)

ডাক্তার — তোমার সঙ্গে তো কথায় পারবার জো নাই। (হাস্য)

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[प्रश्न - (गीता 17 -10, 11, 12 में कथित)  चेहरे पर सौम्य भाव बनाए रखने के लिए - क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए क्षमा का अभ्यास कैसे करें?

Q -To maintain a gentle expression on the face - how to practice forgiveness while controlling anger simultaneously ? (1987 -2024 : 6th January,2024 >Aprajeeta-Sodium आदि घटना के माध्यम से - माँ मेरी चेतना चैतन्य कर रही हैं ?]

🙂माँ सारदा देवी की कृपा (अनुग्रह) 🙂

आमार चेतना चैतन्य करे दे माँ चैतन्यमयी, 

तोर भाव सागरे भेसे आमि होबो माँ तोर पदाश्रयी। 

हे माँ चैतन्यमयी , मेरी चेतना को चेतन बनाओ ! मेरे 'कच्चा मैं' ( M/F देहाध्यास) को इस 'आत्मबोध -पक्का मैं' बदल दो- कि मैं जबतक देह में हूँ -तुम्हारा पुत्र हूँ ! तुम मेरी इस चेतना को निरंतर जाग्रत रखो यही मेरी प्रार्थना है ! तुम्हारी कृपा की यादों के विचार-सागर में तैरते हुए मैं तुम्हारी (माँ श्री सारदा देवी की) चरण-पादुका (mother's footstool) बन जाऊँगा

अज्ञान मोर स्वभाव थेके, तोर भावे तुई ने माँ डेके,

ज्ञान चक्षु मेले देखि केमन तुई ज्ञानदामयी !   

हे माँ ज्ञानदामयी , मेरे स्वभाव में जो अज्ञान (अविद्या) है, उसको माँ तुम अपने तरीके से छुड़ा लो। ज्ञान के नेत्र (तीसरी आँख) से मैं भी देखूं आप कैसी ज्ञानदात्रि माँ सरस्वती हैं !  

तोर भावेर खेला दिये, 

दे माँ आमार जा किछु सब अभाव मिटिये। 

आप अपनी भाव-अभिव्यक्ति के खेल (game of expression) के माध्यम से, मेरे में जो भी अभाव (कमियाँ) हैं उन्हें मिटा दीजिये। 

कौतुहल मोर ए जीवने, निये ने माँ तोर चरणे,

महानन्दे जाई चले माँ होय सर्व रिपू जयी ! 

मेरे इस जीवन में यही उतकण्ठा (curiosity-जिज्ञासा) है कि, माँ तुम अपने चरणों का आश्रय मुझे प्रदान कर दो ! ताकि  तुम्हारा बेटा 'मैं '; तुम्हारी कृपा से "काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य" आदि समस्त रिपुओं पर विजय प्राप्त करके परमानन्द के साथ एकाकार हो जाऊँ ! 

[मैं हिन्दीभाषी हूँ ने इस महान बंगला भजन का अनुवाद अपने अल्प बंगला ज्ञान के बल पर करने की कोशिश की है। अवश्य इसमें बहुत गलतियाँ होंगी , कृपया मुझे क्षमा कर दीजियेगा।       

কৃপা : 

আমার চেতনা চৈতন্য করে দে'মা চৈতন্যময়ী,

তোর ভাব সাগরে ভেসে আমি হব মা তোর পদাশ্রয়ী। 

অজ্ঞান মোর স্বভাব থেকে, তোর ভাবে তুই নে মা ডেকে,

জ্ঞান চক্ষু মেলে দেখি কেমন তুই জ্ঞানদাময়ী।

তোর ভাবের খেলা দিয়ে,

দে মা আমার যা কিছু সব অভাব মিটিয়ে। 

কৌতুহল মোর এ জীবনে, নিয়ে নে মা তোর ও চরণে,

মহানন্দে যাই চলে মা হয়ে সর্ব রিপু জয়ী।

साभार https://www.facebook.com/jaya.devi.3914/photos/a.1840742965947018/4004243216263638/?]

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    [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

How to control anger and practice Forgiveness.

फिर दूसरी चर्चा होने लगी । श्रीरामकृष्ण भावावेश की अपनी पहली अवस्था बतला रहे हैं । और काम, क्रोध आदि को किस तरह वश में लाया जाय, ये बातें भी बतला रहे हैं ।

The conversation turned to other things. Sri Ramakrishna described to the doctor his ecstasies at Dakshineswar. He also told him how to control anger, lust, and the other passions.

ক্রমে অন্য কথা পড়িল। শ্রীরামকৃষ্ণ নিজের প্রথম ভাবাবস্থা বর্ণনা করিতেছিলেন। আর কাম-ক্রোধাদি কিরূপে বশ করিতে হয়।

डाक्टर - आप भावावेश में पड़े हुए थे, एक दूसरे ने उस समय आपको बूट से पाद-प्रहार किया था, ये सब बातें मैं सुन चुका हूँ ।

DOCTOR: "I have heard the story that you were once lying on the ground unconscious in samadhi when a wicked man kicked you with his boots."

ডাক্তার — তুমি ভাবে পড়েছিলে, আর-একজন দুষ্ট লোক তোমায় বুট জুতার গোঁজা মেরেছিল — সে-সব কথা শুনেছি।

श्रीरामकृष्ण - वह कालीघाट का चन्द्र हालदार था । वह मथुरबाबू के पास प्रायः आया करता था मैं ईश्वरावेश में अँधेरे में जमीन पर पड़ा हुआ था । चन्द्र हालदार पहले ही से सोचा करता था कि यह ढोंग किया करता है, मथुरबाबू का प्रिय पात्र बनने के लिए । वह अँधेरे में आकर जूते पहने हुए पैरों से ठेलने लगा । देह में निशान बन गये थे । सब ने कहा, 'मथुरबाबू से कह दिया जाय।' मैंने मना कर दिया

MASTER : "You must have heard it from M. The man was Chandra Haldar, a priest of the Kali temple at Kalighat; he often came to Mathur Babu's house. One day I was lying on the ground in an ecstatic mood. The room was dark. Chandra Haldar thought I was feigning that state in order to win Mathur's favor. He entered the room and kicked me several times with his boots. It left black marks on my body. Everybody wanted to tell Mathur Babu about it, but I forbade them."

শ্রীরামকৃষ্ণ — সে কালীঘাটের চন্দ্র হালদার। সেজোবাবুর কাছে প্রায় আসত। আমি ঈশ্বরের আবেশে মাটিতে অন্ধকারে পড়ে আছি। চন্দ্র হালদার ভাবত, আমি ঢঙ করে ওইরকম হয় থাকি, বাবুর প্রিয়পাত্র হব বলে। সে অন্ধকারে এসে বুট জুতার গোঁজা দিতে লাগল। গায়ে দাগ হয়েছিল। সবাই বলে, সেজোবাবুকে বলে দেওয়া যাক। আমি বারণ করলুম।

डाक्टर - यह भी ईश्वर की लीला है । इससे भी लोगों को शिक्षा होगी । क्रोध किस तरह जीता जाता है, क्षमा किसे कहते हैं, लोग समझेंगे ।

DOCTOR; "This is also due to the will of God. Thus you have taught people how to control anger and practice forgiveness."

ডাক্তার — এও ঈশ্বরের খেলা; ওতেও লোক শিখবে, ক্রোধ কিরকম করে বশীভূত করতে হয়। ক্ষমা কাকে বলে, লোক শিখবে

    [( 25 अक्टूबर, 1885)-  श्री रामकृष्ण वचनामृत-125 ]

🙂🔱🙏विजय एवं नरेन्द्र को (guardian angel) दिव्य स्वरूप दर्शन🙂🔱🙏

[বিজয় ও নরেন্দ্রের ঈশ্বরীয় রূপ দর্শন ]

श्रीरामकृष्ण के सामने विजय के साथ भक्तों की बातचीत हो रही है ।

In the mean time Vijay had become engaged in conversation with the other devotees.

ইতিমধ্যে ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণের সম্মুখে বিজয়ের সঙ্গে ভক্তদের অনেক কথাবার্তা হইতেছে।

विजय - न जाने कौन मेरे साथ सब समय रहते हैं, मेरे दूर रहने पर भी वे मुझे बतला देते हैं, कहाँ क्या हो रहा है !

VIJAY: "I feel as if someone were always moving with me. He shows me what is happening even at a distance."

বিজয় — কে একজন আমার সঙ্গে সদা-সর্বদা থাকেন, আমি দূরে থাকলেও তিনি জানিয়ে দেন, কোথায় কি হচ্ছে।

नरेन्द्र - स्वर्गीय दूत की तरह रखवाली करते हुए !

NARENDRA: "Like a guardian angel."

নরেন্দ্র — Guardian angel-এর মতো।

विजय - ढाके में इन्हें (श्रीरामकृष्ण को) मैंने देखा है देह छूकर !

VIJAY: "I have seen him [meaning the Master] in Dacca. I even touched his body."

বিজয় — ঢাকায় এঁকে (পরমহংসদেবকে) দেখেছি! গা ছুঁয়ে।

श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए)- तो वह कोई दूसरा होगा ।

MASTER (with a smile): "It must have been someone else."

শ্রীরামকৃষ্ণ (হাসিতে হাসিতে) — সে তবে আর-একজন!

नरेन्द्र – मैंने भी इन्हें कई बार देखा है । (विजय से) अतएव किस तरह कहूँ कि आपकी बात पर मुझे विश्वास नहीं होता ?

NARENDRA: "I too have seen him many a time. (To Vijay) How can I say I do not believe your words?"

নরেন্দ্র — আমিও এঁকে নিজে অনেকবার দেখেছি! (বিজয়ের প্রতি) তাই কি করে বলব — আপনার কথা বিশ্বাস করি না।

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 🙂शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018/महामण्डल ब्लॉग/ भावमुख में अवस्थित 'अटूट सहज' नेता श्री रामकृष्ण-2https://vivek-jivan.blogspot.com/2014/07/blog-post.html/

 🙂गुरुवार, 30 नवंबर 2023/ महामण्डल ब्लॉग />>सिल्क्यारा टनल- रैट माइनर्स->>>Arnold Dix : कौन हैं -  हनुमान 🔱"विज्ञान पर विश्वास और आस्था (आत्मा) पर भरोसा (आशा ,श्रद्धा) "🔆 >> मनुष्य के (अहंकार रहित) पुरुषार्थ का साथ आस्था (श्रद्धा) से जोरदार मिलन है -🔱🔆 स्वदेश मंत्र और उसकी व्याख्या  स्वामीजी का समकालीन भारत (Swamiji's Contemporary India : स्वामीजी का वर्तमान भारत )

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018/🙂भावमुख में अवस्थित 'अटूट सहज' नेता श्री रामकृष्ण परमहंस देव की साधना ! [🙂2nd January, 2024 : प्रभु मैं गुलाम तेरा का भावार्थ ]

141 th SPTC : 19-20 July, 2014 ' अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के १४१ वें स्पेशल आवधिक प्रशिक्षण शिविर पर रिपोर्ट '/ 

@@@https://vivek-jivan.blogspot.com/2015/05/blog-post.html/रविवार, 3 मई 2015 को प्रकाशित / ' २० वां बिहार-झाड़खण्ड त्रिदिवसीय युवा प्रशिक्षण शिविर, जानिबिघा , गया (बिहार)'@@@ अभी मैं पुराना blogs देख रहा था। उसमे देखा कि 20th बिहार झारखंड शिविर तो नवनी दा के सानिध्य में, 18,  19, और 20 अप्रैल 2015 को आयोजित हुआ था। जो शिविर अभी हुआ  🙂" हथिया नक्षत्र " वाला 2023 का जानिबीघा शिविर 21st शिविर था। लगता है डेट देने में भूल हुई है। 

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