श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(59)
'मन की मान्यता के अनुसार'
*ईश्वर साकार-निराकार रूप से 'मन' में ही विराजमान हैं *
456 निराकार रूप सत्य है , सत्य सगुण साकार।
864 निज अनुरूप धर ध्यान मन , तज वृथा विचार।।
"निर्विकल्प -समाधि (जड़समाधि) से साधारण भाव-भूमि में उतर आने पर" --- साधक के भीतर 'अहं ' की एक पतली रेखा मात्र रह जाती है - उसके द्वारा वह दिव्य दर्शनादि का आस्वादन कर सकता है।
इसके द्वारा वह देखता है कि एकमात्र ब्रह्म ही जीव , जगत के रूप में अभिव्यक्त हुआ है। जड़ या निर्विकल्प समाधि में निराकार-निर्गुण ब्रह्म का और चेतन या सविकल्प समाधि में साकार-सगुण ब्रह्म का साक्षात्कार करने के बाद , विज्ञानी को ईश्वर की इस महिमा का अनुभव होता है कि ; जब तक तुम में स्वयं के व्यक्तित्व का बोध है , 'अहं'-बोध है , तब तक तुम ईश्वर को भी एक 'व्यक्ति ' के सिवा अन्य किसी रूप में विचार-चिंतन नहीं कर सकते।
निर्गुण-निराकार ब्रह्म तुम्हारे निकट सगुण-साकार ईश्वर के ही रूप में प्रकट होता है। ये विभिन्न ईश्वरीय रूप सत्य हैं , वे तुम्हारी देह , मन और बाह्यजगत से कहीं अनंतगुना अधिक सत्य हैं।
457 ईश्वर निराकार है , अरु वे हैं साकार।
871 वे ही जाने और क्या , है दोनों से पार।।
ईश्वर साकार भी हैं , और निराकार भी। फिर वे साकार-निराकार के परे भी हैं। वे क्या हैं , यह वे ही जानते हैं।
* तुम जिस रंग में रंगे हो , मुझे वही रंग चाहिए ! *
(What color are you in? ... I want that color!)
458 वेद जिन्हें बतलावहि , निर्गुण निराकार।
873 जस साधक के भाव तस , लेवत रूप हजार।।
459 भगवत रंगता खुद को , चाहत भक्त जो रंग।
873 जिसका जैसा भाव है जिसका जैसा ढंग।।
ईश्वर का साक्षात्कार न होने पर यह सब समझ में नहीं आता। साधकों के लिए वे नाना भाव से नाना रूप धारण कर दर्शन देते हैं। एक रंगरेज के पास एक धमेला भर रंग था। उसके पास कई लोग कपड़ा रंगवाने आते। वह उनसे पूछता , " तुम किस रंग में कपड़ा रंगवाना चाहते हो ? ' कोई शायद कहता मुझे लाल रंग में रंगवाना है। ' वह रंगरेज तुरंत उसके कपड़े को अपने धमेले में डुबोकर कर निकलते हुए कहता - ' यह लो तुम्हारे लाल रंग का कपड़ा ! '
शायद कोई दूसरा आदमी कहता , 'मुझे पीले रंग में रंगवाना है। ' वह रंगरेज झट उसके कपड़े को उसी धमेले में डुबोकर लौटते हुए कहता , 'यह लो तुम्हारे पीले रंग का कपड़ा। ' इस प्रकार जिसे जिस रंग में कपड़ा रंगवाना होता -नीला , हरा , नारंगी - 'बैनी आह पिनाला' वह उसके कपड़े को उस एक ही धमेले में डुबोकर उस रंग में रंग दिया करता।
एक दिन एक व्यक्ति उसका यह अद्भुत कार्य देख रहा था। रंगरेज ने उससे पूछा , 'क्योंजी , तुम्हें किस रंग में रंगवाना है ? ' तब वह बोलै भैया - " तुम जिस रंग में रंगे हो , मुझे वही रंग चाहिए !"
460 देते हैं दरसन प्रभु , जो भजता दिनरात।
876 जैसे हमतुम बातें करत , करते वैसे ही बात।।
साकार रूप में ईश्वर के दर्शन किये जा सकते हैं , उनका स्पर्श किया जा सकता है , जैसे मित्र के साथ बातचीत की जाती है , वैसे ही उनके साथ प्रत्यक्ष सम्भाषण किया जा सकता है।
461 ज्ञानी ध्यावे ब्रह्म को निर्गुण निराकार।
880 भजे भगत श्रीनाथ को , सगुण रूप साकार।।
भक्त के सम्मुख ईश्वर नाना रूपों में प्रकट होता है। परन्तु ज्ञानी को समाधि में निर्गुण-निराकार , निरुपाधिक ब्रह्म का ज्ञान होता है। ज्ञान और भक्ति में यही अंतर है।
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