सोमवार, 1 नवंबर 2021

🔆🙏$$ 🔆🙏परिच्छेद ~ 95 [ (1,2 and 4 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] वास्तव में निर्बल के बल राम ही हैं।

  [ (1 अक्टूबर, 1884) परिच्छेद ~ 95, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

 साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)

साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ] 

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*परिच्छेद- ९५

भक्तों के साथ कीर्तनानन्द*

(१)

 [ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

*अधर के मकान पर*

आज आश्विन शुक्ला एकादशी है । बुधवार, 1 अक्टूबर, 1884 । श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर से अधर के यहाँ आ रहे हैं । साथ में नारायण और गंगाधर हैं । रास्ते में एकाएक श्रीरामकृष्ण को भावावेश हो गया । श्रीरामकृष्ण भावावेश में कह रहे हैं - "मैं माला जपूँगा ? छिः ! ये शिव पाताल फोड़कर निकले हुए शिव हैं, स्वयम्भू लिंग ।"

[আজ (১৬ই) আশ্বিন, শুক্লা একাদশী, বুধবার, ১লা অক্টোবর, ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দ। ঠাকুর দক্ষিণেশ্বর হইতে অধরের বাড়ি আসিতেছেন। সঙ্গে নারাণ,গঙ্গাধর। পথিমধ্যে হঠাৎ ঠাকুরের ভাবাবস্থা হইল। ঠাকুর ভাবে বলিতেছেন, “আমি মালা জোপব? হ্যাক থু! এ শিব যে পাতাল ফোঁড়া শিব, স্বয়ম্ভূলিঙ্গ!”

[Sri Ramakrishna had set out from Dakshineswar for Adhar's house in Calcutta. Narayan and Gangadhar were with him. In the carriage, in an ecstatic mood, he said: "Shall I count the beads? How shameful that would be! This emblem of Siva has sprung from the bowels of the earth; it is self-created and not set up by man's hands."

वे अधर के यहाँ पहुँचे । वहाँ बहुत से भक्त एकत्रित हुए हैं । केदार, विजय, बाबूराम आदि सब आये हैं । कीर्तनिया वैष्णवचरण आये हुए हैं । श्रीरामकृष्ण क आज्ञानुसार, रोज आफिस से आते ही, अधर वैष्णवचरण का कीर्तन सुनते हैं । वैष्णवचरण बड़ा मधुर कीर्तन करते हैं ।

[অধরের বাড়িতে আসিয়াছেন। এখানে অনেক ভক্তের সমাবেশ হইয়াছে। কেদার বিজয়, বাবুরাম প্রভৃতি অনেকে উপস্থিত। কীর্তনিয়া বৈষ্ণবচরণ আসিয়াছেন। ঠাকুরের আদেশক্রমে অধর প্রত্যহ আফিস হইতে আসিয়াই বৈষ্ণবচরনের সংকীর্তন শুনেন বৈষ্ণবচরণের সংকীর্তন অতি মিষ্ট। 

They arrived at Adhar's house, where many devotees, including Kedar, Baburam, and Vijay, had assembled. Vaishnavcharan, the musician, was present. At the Master's behest, Adhar heard Vaishnavcharan's music daily after his return from the office.]

आज भी संकीर्तन होगा । श्रीरामकृष्ण अधर के बैठकखाने में गये । भक्तमण्डली उन्हें देखकर खड़ी हो गयी और चरण-वन्दना करने लगी । श्रीरामकृष्ण ने प्रसन्न-चित्त से आसन ग्रहण किया । उसके बाद उन लोगों ने भी आसन ग्रहण किया । केदार और विजय ने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण ने बाबूराम और नारायण से उन्हें प्रणाम करने के लिए कहा, फिर कहा, आप लोग आशीर्वाद दें, जिससे इन्हें भक्ति हो । नारायण को दिखाकर बोले, यह बड़ा सरल है । भक्तगण नारायण और बाबूराम को देख रहे हैं ।

[আজও সংকীর্তন হইবে। ঠাকুর অধরের বৈঠকখানায় প্রবেশ করিলেন। ভক্তেরা সকলেই গাত্রোত্থান করিয়া তাঁহার চরণবন্দনা করিলেন। ঠাকুর সহাস্যে আসন গ্রহণ করিলে পর তাঁহারাও উপবেশন করিলেন। কেদার ও বিজয় প্রণাম করিলে পর ঠাকুর নারাণ ও বাবুরামকে তাঁহাদের প্রণাম করিতে বলিলেন। আর বলিলেন, আপনারা আশীর্বাদ করো, যেন এদের ভক্তি হয়। নারাণকে দেখাইয়া বলিলেন, এ বড় সরল; ভক্তেরা বাবুরামও নারাণকে একদৃষ্টে দেখিতেছেন।

When the Master entered Adhar's drawing-room the devotees stood up to receive him. Kedar and Vijay saluted him, and the Master asked Narayan and Baburam to salute Kedar and Vijay. He asked Kedar and Vijay to bless Narayan and Baburam that they might have devotion to God. Pointing to Narayan he said, "He is utterly guileless." The eyes of the devotees were fixed on the two boys.

श्रीरामकृष्ण - (केदार आदि भक्तों से) - तुम्हारे साथ रास्ते में मुलाकात हुई, नहीं तो तुम लोग काली-मन्दिर जाते । ईश्वर की इच्छा से मुलाकात हो गयी ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (কেদারাদি ভক্তের প্রতি) — তোমাদের সঙ্গে রাস্তায় দেখা হল — তা না হলে তোমরা কালীবাড়ি গিয়ে পড়তে। ঈশ্বরের ইচ্ছায় দেখা হয়ে গেল।

MASTER (to Kedar and, the other devotees): "It is good that I have met you all here; otherwise perhaps you would have come to the Kali temple to see me. Through the will of God, however, we have met here."

केदार – (विनयपूर्वक) - जो ईश्वर की इच्छा है, वही आपकी इच्छा है ।  (श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं ।)

[কেদার (বিনীতভাবে, কৃতাঞ্জলি) — ঈশ্বরের ইচ্ছা — সে আপনার ইচ্ছা।

KEDAR (with folded, hands): "The will of God! It is all your will."

(२) 

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏भक्तों के साथ षड्चक्र भेदन का कीर्तनानन्द 🔆🙏

अब कीर्तन शुरू हुआ । अभिसार से आरम्भ करके रासलीला कहकर वैष्णवचरण ने कीर्तन समाप्त किया । फिर श्रीराधाकृष्ण का मिलन गाया जाने लगा । श्रीरामकृष्ण मारे आनन्द के नृत्य करने लगे । साथ साथ भक्तगण भी उन्हें घेरकर नाचने और गाने लगे । कीर्तन हो जाने पर सब ने आसन ग्रहण किया ।

[এইবার কীর্তন আরম্ভ হইল। বৈষ্ণবচরণ অভিসার আরম্ব করিয়া রাসকীর্তন করিয়া পালা সমাপ্ত করিলেন। শ্রীশ্রীরাধাকৃষ্ণের মিলন কীর্তন যাই আরম্ভ হইল, ঠাকুর প্রেমানন্দে নৃত্য করিতে লাগিলেন। সঙ্গে সঙ্গে ভক্তেরাও তাঁহাকে বেড়িয়া নাচিতে লাগিলেন ও সংকীর্তন করিতে লাগিলেন। কীর্তনান্তে সকলে আসন গ্রহণ করিলেন। 

Vaishnavcharan began a kirtan about Radha and Krishna. When the music was nearing its end, with the union of Radha and Krishna, the Master began to dance with ecstatic fervour. The devotees danced and sang around him. After the music they all sat down. The Master said to Vijay, referring to Vaishnavcharan, "He sings very well." He asked the musician to sing the song about Sri Chaitanya, beginning with the line, "The beautiful Gauranga, the youthful dancer, fair as molten gold."

श्रीरामकृष्ण - (विजय से) - ये बहुत अच्छा गाते हैं ।

শ্রীরামকৃষ্ণ (বিজয়ের প্রতি) — ইনি বেশ গান!

The Master said to Vijay, referring to Vaishnavcharan, "He sings very well." 

यह कहकर उन्होंने वैष्णवचरण को इशारे से बतला दिया । फिर 'गौरांग-सुन्दर' गाने के लिए उनसे कहा । वैष्णवचरण गाने लगे - ' श्री गौरांग सुन्दर नव नटवर , तप्त कांचन काय ' ... 

[এই বলিয়া বৈষ্ণবচরণকে দেখাইয়া দিলেন ও তাঁহাকে ‘শ্রীগৌরাঙ্গসুন্দর’ এই গানটি গাহিতে বলিলেন। বৈষ্ণবচরণ গান ধরিলেন:শ্রী গৌরাঙ্গ সুন্দর নব নটবর, তপ্ত কাঞ্চন কায় ইত্যাদি।

 He asked the musician to sing the song about Sri Chaitanya, beginning with the line, "The beautiful Gauranga, the youthful dancer, fair as molten gold."

गाना समाप्त हो जाने पर श्रीरामकृष्ण विजय से पूछते हैं “कैसा रहा ?"

[গান সমাপ্ত হইলে ঠাকুর বিজয়কে বলিলেন, ‘কেমন?’ বিজয় বলিলেন, ‘আশ্চর্য।’ 

When the song was over, the Master asked Vijay, "How did you like it?"

विजय - सुनकर तो मुझे आश्चर्य हो रहा है ।

[গান সমাপ্ত হইলে ঠাকুর বিজয়কে বলিলেন, ‘কেমন?’ বিজয় বলিলেন, ‘আশ্চর্য।’

 When the song was over, the Master asked Vijay, "How did you like it?"

[ ঠাকুর গৌরাঙ্গের ভাবে নিজে গান ধরিলেন:ভাব হবে বইকি রে!ভাবনিধি শ্রীগৌরাঙ্গের ভাব হবে বইকিরে ৷৷ভাবে হাসে কাঁদে নাচে গায়।বন দেখে বৃন্দাবন ভাবে; সমুদ্র দেখে শ্রীযমুনা ভাবে।যার অন্তঃকৃষ্ণ বহির্গৌর (ভাব হবে) ।গোরা ফুকরি ফুকরি কান্দে; গোরা আপনার পায় আপনি ধরে।বলে কোথা রাই প্রেমময়ী।

মণি সঙ্গে সঙ্গে গাইতেছেন।ঠাকুরের গান সমাপ্ত হইলে বৈষ্ণবচরণ আবার গাইলেন:হরি হরি বল রে বীণে!হরির করুণা বিনে, পরম তত্ত্ব আর পাবিনে ৷৷হরিনামে তাপ হরে, মুখে বল হরে কৃষ্ণ হরে,হরি যদি কৃপা করে, তবে ভবে আর ভাবিনে!বীণে একবার হরি বল, হরিনাম বিনে নাই সম্বল,দাস গোবিন্দ কয়, দিন গেলে, অকূলে যেন ডুবিনে।

Sri Ramakrishna also sang a song about Sri Chaitanya, M. joining him. Then Vaishnavcharan sang another song: O my flute, sing Hari's name! You cannot know the highest Truth Without Lord Hari's grace. His name removes our bitter grief; Repeat the name of Hari, then, Repeat Sri Krishna's holy name! If He bestows His grace on me, No longer shall I be afraid Of this unfriendly world; Sing then Lord Hari's name, my flute! Our only treasure is His name. Govinda says: Behold, my days Are passing by in vain; In the world's deep and shoreless sea ,Oh, let me not be drowned!

[ঠাকুর কীর্তনিয়ার মতন গানের সঙ্গে সঙ্গে সুর করিতেছেন। বৈষ্ণবচরণকে বলিতেছেন, ওইরকম করে বলো — কীর্তনিয়া ঢঙে।বৈষ্ণবচরণ আবার গাইলেন:শ্রীদুর্গানাম জপ সদা রসনা আমার।দুর্গমে শ্রীদুর্গা বিনে কে করে নিস্তার ৷৷ দুর্গানাম তরী ভবার্ণব তরিবারে,ভাসিতেছে, সেই তরী শ্রদ্ধাসরোবরে।শ্রীগুরু করুণা করি যেই ধন দিলে,সাধনা করহ তরী মিলিবে গো কূলে ৷৷যদি বল ছয় রিপু হইয়ে পবন,ধরিতে না দিবে তরী করিবে তুফান।তুফানেতে কি করিবে শ্রীদুর্গানাম যার তরী,তুমি স্বর্গ, তুমি মর্ত্য মা, তুমি সে পাতাল; তোমা হতে হরি ব্রহ্মা দ্বাদশ গোপাল।দশ মহাবিদ্যা মাতা দশ অবতার,এবার কোনরূপে আমায় করিতে হবে পার ৷৷চল অচল তুমি মা তুমি সূক্ষ্ম স্থূল,সৃষ্টি স্থিতি প্রলয় তুমি মা তুমি বিশ্বমূল।ত্রিলোকজননী তুমি, ত্রিলোক তারিণী;সকলের শক্তি তুমি মা তোমার শক্তি তুমি ৷৷

ঠাকুর গায়কের সঙ্গে পুনঃ পুনঃ গাহিতে লাগিলেন:চল অচল তুমি মা তুমি সূক্ষ্ম স্থূল,সৃষ্টি স্থিতি প্রলয় তুমি মা তুমি বিশ্বমূল,ত্রিলোকজননী তুমি, ত্রিলোক তারিণী;সকলের শক্তি তুমি মা তোমার শক্তি তুমি ৷৷

[Vaishnavcharan sang again, this time about Mother Durga:O tongue, always repeat the name of Mother Durga;Who but your Mother Durga will save you in distress? . . .The Master and the musician sang again and again the following lines from the song:The moving and the unmoving, the gross and the subtle, art Thou;Creation and preservation art Thou, and the last dissolution.Thou art the Primal Root of this manifold universe;The Mother of the three worlds, their only Saviour, art Thou;Thou art the Sakti of all, and Thou Thine own Sakti, too.

कीर्तनिया अब षट्चक्र -भेद से सम्बंधित एक गीत गा रहे हैं

"वायु अंधकार आदि शून्य आर आकाश , रूप दिक् दिगन्तर तोमा होते प्रकाश। 

ब्रह्मा ,विष्णु आदि करि यतेक अमरे , तव शक्ति प्रकाशिछे सकल शरीरे।। 

ईड़ा , पिंगला , शुषुम्ना वज्रा चित्रिणीते , क्रमयोगे आछे जेगे सहस्रा होइते।  

चित्रिणीर मध्ये उर्ध्वे आछे पद्म सारि सारि , शुक्लवर्ण सुवर्णवर्ण  विद्युत् आदि करि।।  

दुई पद्म प्रस्फुटित एकपद्म कोढ़ा ,अधोमुखे उर्ध्व मुखे आछे दुई पद्म जोड़ा। 

हंसरूपे बिहारो तोथाय कोरो गो आपनि , आधार कमले होउ माँ कुलकुण्डलिनी।।

तद उर्ध्वे मणिपुर नाम नाभिस्थल , रक्तवर्ण पद्म ताहे आछे दशदल। 

सेई पद्मे तव शक्ति अनल आछय , से अनल निवृत्ति होले सकलई निभाय।। 

हृदिपद्मे आछे मानस सरोवर , अनाहत पद्म भासे ताहार ऊपर। 

सुवर्णवर्ण द्वादशदल तोथाय शिव वान , जेई पद्मे तव शक्ति जीव आर आन।।

तद उर्ध्वे कण्ठदेशे धूम्रवर्ण पद्म , षोड्शदल नाम तांर पद्म विशुद्ध आख्या।  

सेई पद्मे तव शक्ति आछये आकाश , से आकाश रुद्ध होंचले सकलि आकाश।  

तदउर्धे शिरसि मध्ये पद्म सहस्रदल , गुरुदेवेर स्थान सेई अति गुह्य स्थल। 

सेई पद्मे विश्वरुपे परमशिव विराजे , एका आछेन शुक्लवर्ण सहस्रदल पङ्कजे।। 

ब्रह्मरन्ध्र आछे यथा शिव विश्वरूप , तुमि तथा गेले , शिव होन स्वीयरूप। 

तोथा शिवसङ्गे रङ्गए कोरो गो विहार , विहार समापने शिव होन विश्वाकार।।   

কীর্তনীয়া আবার আরম্ভ করিলেন:বায়ু অন্ধকার আদি শূন্য আর আকাশ,রূপ দিক্‌ দিগন্তর তোমা হ’তে প্রকাশ।ব্রহ্মা, বিষ্ণু আদি করি যতেক অমরে,তব শক্তি প্রকাশিছে সকল শরীরে ৷৷ ইড়া পিঙ্গলা সুষুম্না বজ্রা চিত্রিণীতে,ক্রমযোগে আছে জেগে সহস্রা হইতে।চিত্রিণীর মধ্যে ঊর্ধ্বে আছে পদ্ম সারি সারি,শুক্লবর্ণ সুবর্ণবর্ণ বিদ্যুতাদি করি ৷৷দুই পদ্ম প্রস্ফুটিত একপদ্ম কোঢ়া,অধোমুখে ঊর্ধ্ব মুখে আছে দুই পদ্ম জোড়া।হংসরূপে বিহার তথায় কর গো আপনি,আধার কমলে হও মা কুলকুণ্ডলিনী ৷৷তদূর্ধ্বে মণিপুর নাম নাভিস্থল,রক্তবর্ণ পদ্ম তাহে আছে দশদল।সেই পদ্মে তব শক্তি অনল আছয়,সে অনল নিবৃত্তি হ’লে সকলই নিভায় ৷৷ হৃদিপদ্মে আছে মানস সরোবর,অনাহত পদ্ম ভাসে তাহার উপর।সুবর্ণবর্ণ দ্বাদশদল তথায় শিব বাণ,যেই পদ্মে তব শক্তি জীব আর আণ ৷৷তদূর্ধ্বে কণ্ঠদেশ ধুম্রবর্ণ পদ্ম,ষোড়শদল নাম তাঁর পদ্ম বিশুদ্ধাখ্য।সেই পদ্মে তব শক্তি আছয়ে আকাশ,সে আকাশ রুদ্ধ হঞ্চলে সকলি আকাশ ৷৷তদূর্ধে শিরসি মধ্যে পদ্ম সহস্রদল,গুরুদেবের স্থান সেই অতি গুহ্য স্থল। সেই পদ্মে বিম্বরূপে পরমশিব বিরাজে,একা আছেন শুক্লবর্ণ সহস্রদল পঙ্কজে ৷৷ব্রহ্মরন্ধ্র আছে যথা শিব বিম্বরূপ,তুমি তথা গেলে, শিব হন স্বীয়রূপ।তথাশিবসঙ্গে রঙ্গে কর গো বিহার,বিহার সমাপনে শিব হন বিম্বাকার ৷৷

इस प्रकार बड़ी देर तक कीर्तनानन्द होता रहा ।

(३) 

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏साकार-निराकार की कथा । चीनी का पहाड़🔆🙏

केदार और कई भक्त घर जाने के लिए उठे । केदार ने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया, और कहा, आज्ञा हो तो अब चले ।

[কেদার ও কয়েকটি ভক্ত গাত্রোত্থান করিলেন — বাড়ি যাইবেন। কেদার ঠাকুরকে প্রণাম করিলেন, আর বলিলেন, আজ্ঞা তবে আসি।

Kedar and several devotees stood up. They were about to return home. Kedar saluted the Master and bade him good-bye.

श्रीरामकृष्ण - तुम अधर से बिना कहे ही चले जाओगे, अभद्रता न होगी ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি অধরকে না বলে যাবে? অভদ্রতা হয় না?

MASTER: "Should you go away without bidding Adhar good-bye? Wouldn't that be an act of discourtesy?"

केदार - तस्मिन् तुष्टे जगत् तुष्टम् । जब आप रहे तो सब का रहना हुआ । अभी मेरी तबीयत भी कुछ खराब है और फिर विवाह आदि के लिए जरा कुछ डर भी लगता है । समाज ही तो है - एक बार गड़बड़ हो भी चुका है ।*(*अधर केदार की अपेक्षा कुछ नींवी जाति के थे । केदार ब्राह्मण थे इसलिए वे न तो अधर के घर पर खा सकते थे और न उनके साथ ही ।)

[কেদার — তস্মিন্‌ তুষ্টে জগৎ তুষ্টম্‌; আপনি যেকালে রইলেন, সকলেরই থাকা হল — আর কিছু অসুখ বোধ হয়েছে — আর বিয়ে থাওয়ার জন্য একটা ভয় হয় — সমাজ আছে — একবার তো গোল হয়েছে —

KEDAR: "'When God is pleased, the world is pleased.' You are staying; so in a sense we are all staying. I am not feeling well. Besides, I am a little nervous about my social conventions.18 Once before I had trouble with our community." (^Adhar belonged to a lower caste. Kednr, a brahmin, could not dine with him or eat at his home.)

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏हे प्रभु, इस मामले में (ब्राह्मण -अब्राह्मण जातिभेद के मामले मेंआपका क्या आदेश है?🔆🙏

 🔆Lord, what is your command in this matter ?🔆

[केदार की विनयपूर्ण क्षमायाचना - विजय का देवदर्शन]

[কেদারের কাকুতি ও ক্ষমা প্রার্থনা — বিজয়ের দেবদর্শন ]

विजय - क्या इन्हें( अवतार वरिष्ठ प्रभु श्रीरामकृष्ण को) छोड़कर जायेंगे ?

[বিজয় — এঁকে রেখে যাওয়া —

VIJAY (pointing to the अवतार वरिष्ठ Master): "Should we go away and leave him here?"

इसी समय श्रीरामकृष्ण को ले जाने के लिए अधर आये । भीतर पत्तलें पड़ चुकी थीं । श्रीरामकृष्ण उठे । विजय और केदार से कहा - "आओ जी मेरे साथ ।" विजय, केदार और दूसरे भक्तों ने श्रीरामकृष्ण के साथ बैठकर प्रसाद पाया ।

[সময় ঠাকুরকে লইয়া যাইতে অধর আসিলেন। ভিতরে পাতা হইয়াছে। ঠাকুর গাত্রোত্থান করিলেন ও বিজয় ও কেদারকে সম্বোধন করিয়া বলিলেন, এসো গো আমার সঙ্গে। বিজয়, কেদার ও অন্যান্য ভক্তেরা ঠাকুরের সঙ্গে বসিয়া প্রসাদ গ্রহণ করিলেন।

Just then Adhar came in to take the Master to the dining-room, for the meal was ready. Sri Ramakrishna stood up and said, addressing Kedar and Vijay: "Come. Come with me." They followed him and partook of the dinner together with the other devotees.

भोजन के बाद श्रीरामकृष्ण एक बार फिर बैठकखाने में आकर बैठे । केदार, विजय और दूसरे भक्त चारों ओर बैठे ।

केदार ने हाथ जोड़कर बड़े ही विनयपूर्ण शब्दों में श्रीरामकृष्ण से कहा - मैं अधर के घर भोजन करने में टाल- मटोल कर रहा था, मुझे क्षमा कीजिये ।'

[ঠাকুর আহারান্তে বৈঠকখানায় আসিয়া আবার বসিলেন। কেদার, বিজয় ও অন্যান্য ভক্তেরা চারিপার্শ্বে বসিলেন।কেদার কৃতাঞ্জলি হইয়া অতি নম্রভাবে ঠাকুরকে বলিতেছেন, মাপ করুন, যা ইতস্ততঃ করেছিলাম। কেদার ভাবিতেছেন, ঠাকুর যেখানে আহার করিয়াছেন, সেখানে আমি কোন্‌ ছার!

After dinner they all returned to the drawing-room, where the devotees sat around the Master. Kedar said to him with folded hands, "Please forgive me for hesitating to eat here." Perhaps the thought had come to his mind that he should not have hesitated, since the Master himself had no scruples about eating at Adhar's house.

केदार ढाका में काम करते हैं । वहाँ बहुत से भक्त उनके पास आते हैं और उन्हें खिलाने के लिए सन्देश आदि बहुत तरह की चीजें ले आया करते हैं । केदार यही सब बातें श्रीरामकृष्ण से कह रहे हैं ।

केदार - (विनयपूर्वक) - बहुत से आदमी खिलाने के लिए आते हैं । क्या करूँ ? कोई आज्ञा दीजिये ।

[কেদারের কর্মস্থল ঢাকায়। সেখানে অনেক ভক্ত তাঁহার কাছে আসেন ও তাঁহাকে খাওয়াইতে সন্দেশাদি নানারূপ দ্রব্য আনয়ন করেন। কেদার সেই সকল কথা ঠাকুরকে নিবেদন করিতেছেন। কেদার (বিনীতভাবে) — লোকে অনেকে খাওয়াতে আসে। কি করব প্রভু, হুকুম করুন।

Kedar worked at Dacca. Many devotees brought offerings of sweets and other food for him. Referring to this, Kedar said to the Master: "People want to give me food. What should I do? Lord, what is your command in this matter?"

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆 दक्षिणेश्वर में सात वर्ष की उन्माद अवस्था के बाद एक वेश्या ने अपने हाथों से खिलाया 🔆

श्रीरामकृष्ण - भक्ति होने पर चाण्डाल का भी अन्न खाया जा सकता है । सात वर्ष की उन्माद-अवस्था के बाद मैं उस देश में(कामारपुकुर) गया । तब कैसी कैसी अवस्थाएँ थीं ! वेश्याओं तक ने खिलाया, परन्तु अब वह सब नहीं होता । केदार जाने को उठे ।

[दक्षिणेश्वर में सात वर्षों तक ईश्वर के प्रेमोन्माद  में रहने के बाद,जब ठाकुरदेव अपने गाँव गए थे तब, एक वेश्या ने भी उन्हें अपने हाथों से खिलाया था । लेकिन अब वे लोकशिक्षक हैं इसीलिए अभी वे किसी को ऐसा करने की अनुमति नहीं दे सकते थे। ] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ভক্ত হলে চণ্ডালের অন্ন খাওয়া যায়। সাত বৎসর উন্মাদের পর ও-দেশে (কামারপুকুরে) গেলুম। তখন কি অবস্থাই গেছে। খানকী (Bh) পর্যন্ত খাইয়ে দিলে! এখন কিন্তু পারি না।

MASTER: "One can eat food even from an untouchable if the untouchable is a devotee of God. After spending seven years in a God-intoxicated state at Dakshineswar, I visited Kamarpukur. Oh, what a state of mind I was in at that time! Even a prostitute fed me with her own hands. But I cannot allow that now."

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏यदि गुरुभक्ति सच्ची हो तो शिक्षा देने का (आशीर्वाद-चपरास) भी मिल जाता है !🔆🙏

[महामण्डल वार्षिक शिविर समाप्ति के बाद CINC के कमरे में 4 बजे सुबह का दृश्य] 

"होय जाबे गो  ! आन्तरिक ईश्वरे मति थाकले होये जाय ! "

केदार - (धीमी आवाज में) - महाराज, आप मुझ में कुछ शक्ति-संचार कर दीजिये, बहुत से लोग मेरे पास आते हैं, मुझे क्या ज्ञान है ?

[কেদার (বিদায় গ্রহণের পূর্বে মৃদুস্বরে) — প্রভু, আপনি শক্তি সঞ্চার করুন। অনেক লোক আসে। আমি কি জানি। 

Kedar was about to take his leave. KEDAR (in a low voice): "Lord, please transmit power to me. Many people come to me. What do I know?"

श्रीरामकृष्ण - अजी, सब हो जायगा, आन्तरिक भक्ति के रहने पर सब हो जाता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হয়ে যাবে গো! আন্তরিক ঈশ্বরে মতি থাকলে হয়ে যায়।

MASTER: "Everything will be all right. One gets along well if one is sincerely devoted to God."]

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏बंगाली  पेपर बंगवासी के एडिटर के साथ साकार -निराकार पर चर्चा 🔆🙏 

केदार के बिदा होने के पहले बंगवासी के सम्पादक श्रीयुत योगेन्द्र ने आकर प्रवेश किया । श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके उन्होंने आसन ग्रहण किया । साकार निराकार की बात होने लगी ।

[কেদার বিদায় লইবার পূর্বে বঙ্গবাসীর সম্পাদক শ্রীযুক্ত যোগেন্দ্র প্রবেশ করিলেন ও ঠাকুরকে প্রণাম করিয়া আসন গ্রহণ করিলেন। সাকার-নিরাকার সম্বন্ধে কথা হইতেছে।

Yogendra, the editor of a Bengali paper, the Bangavasi, entered the room. The conversation turned to the Personal God and God without form.

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏जब मनुष्य के तीन; तो ईश्वर के कितने पहलू हैं ? हम उसे समझ नहीं सकते।🔆🙏

 [DAV स्कूल में सरस्वतीपूजा मना है  क्या वहां  के 12 वर्ष के लड़के को भी निराकार सूझता है ?]

(Can even a boy from Modern DAV School see the formless God?)

श्रीरामकृष्ण – वे साकार हैं, निराकार हैं और भी क्या क्या हैं, यह सब हम लोग क्या जानें ? केवल निराकार कहने से कैसे काम चलेगा ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তিনি সাকার, নিরাকার, আবার কত কি; তা আমরা জানি না! শুধু নিরাকর বললে কেমন করে হবে?

MASTER: "God has form; again, He is formless. How many aspects He has! We cannot comprehend Him. Why should we say that God is formless only?"

योगेन्द्र – ब्राह्म-समाज की एक बात बड़े आश्चर्य की है । बारह वर्ष का लड़का है, उसे भी निराकार ही सूझता है ! आदि-समाजवाले साकार पर विशेष आपत्ति नहीं करते । दुर्गा पूजा के समय वे लोग भलेमानसों के घर भी जा सकते हैं ।

[যোগেন্দ্র — ব্রাহ্মসমাজের এক আশ্চর্য! বারবছরের ছেলে, সেও নিরাকার দেখছে! আদিসমাজে সাকারে অত আপত্তি নাই। ওরা পূজাতে ভদ্রলোকের বাড়িতে আসতে পারে।

YOGENDRA: "That is the one amazing thing about the Brahmo Samaj. There even a boy twelve years old sees God as formless. The members of the Adi Samaj (A branch of the Brahmo Samaj.) do not object very much to God with form. They are allowed to attend ritualistic worship if it takes place in respectable families."

श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - उन्होंने ठीक कहा, उसे भी निराकार ही सूझता है !

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — ইনি বেশ বলেছেন, সেও নিরাকার দেখছে।

MASTER (smiling): "How nicely he has put it! Even a boy (of Modern DAV School) sees the formless God!"

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏विजयकृष्ण गोस्वामी द्वारा सविकल्प समाधि में देवमूर्तियों का दर्शन🔆🙏  

अधर - शिवनाथ बाबू साकार नहीं मानते ।

[অধর — শিবনাথবাবু সাকার মানেন না।

ADHAR: "Shivanath Babu does not believe in God's forms."

विजय - वह उनके समझने की भूल है । ये जैसा कहते हैं, गिरगिट (chameleon-ब्रिटिश इंग्लिश 'कमिलियन' , अमेरिकन इंग्लिश 'चमेलियन' ) कितने ही रंग बदलता रहता है; जो पेड़ के नीचे रहता है, वही जान सकता है । मैंने ध्यान करते हुए मूर्तियाँ देखी ^* । कितने ही देवता थे ! उन्होंने बहुत कुछ कहा । मैंने मन में कहा, "मैं उनके(श्रीरामकृष्ण के) पास जाऊँगा, ये बातें तभी मेरी समझ में आयेंगी ।’

[^* ध्यान करते समय मैंने (सविकल्प समाधि-मन कल्पित वस्तु पर स्थिर हो गया  ?) एक कैनवास पर चित्रित देवताओं के चित्र देखे। कितने ही देवता थे ! उन्होंने कितनी अलग-अलग बातें कही! मैंने अपने- आप से कहा: 'मैं उनके (जगतगुरु श्रीरामकृष्ण)  के पास जाऊँगा, ये बातें तभी मेरी समझ में आयेंगी! सविकल्प  समाधि की स्थिति तक ही साधक अपने पुरुषार्थ के द्वारा पहुँच सकता है। माँ जगदम्बा  कृपा के बिना निर्विकल्प समाधि की अवस्था में पहुँचना और लौटना असम्भव है ! गीता (10,11) में भगवान कहते हैं -- "तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः। नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता।। पदच्छेदः - तेषाम् एव अनुकम्पार्थम् अहम् अज्ञानजं तमः नाशयामि आत्मभावस्थः ज्ञानदीपेन भास्वता॥  अपने भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए मैं उनके अन्त:करण में स्थित होकर, अज्ञानजनित अन्धकार को प्रकाशमय ज्ञान के दीपक द्वारा नष्ट करता हूँ। Out of mere compassion for them, I, dwelling within their Self, destroy the darkness born of ignorance by the luminous lamp of knowledge.  

[বিজয় — সেটা তাঁর বুঝবার ভুল। ইনি যেমন বলেন, বহুরূপী (chameleon) কখন 'এ ' রঙ কখন 'সে' রঙ। যে গাছতলায় বসে থাকে, সেই ঠিক জানতে পারে। আমি ধ্যান করতে করতে দেখতে পেলাম চালচিত্র। কত দেবতা, তাঁরা কত কি বলেন। আমি বললুম, তাঁর কাছে যাব তবে বুঝব।

[VIJAY: "That is his mistake. (Pointing to the Master) As he says, the chameleon assumes different colours — now this colour, now that. Only the man who lives under the tree knows the animal's true colour. "While meditating I saw images of gods painted on a canvas. How many gods! How many different things they said! I said to myself: 'I shall go to the Master. He will explain it all to me.'"

श्रीरामकृष्ण - तुमने ठीक देखा है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তোমার ঠিক দেখা হয়েছে।

MASTER: "You saw correctly."

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏 बालक ध्रुव ने श्रीहरि के दर्शन किये -पूछा आपके कुण्डल क्यों नहीं हिल रहे हैं ?🔆🙏

केदार - भक्तों के लिए वे साकार हैं । भक्त प्रेम से उन्हें साकार देखता है । ध्रुव ने जब उनके दर्शन किये, तब पूछा, आपके कुण्डल क्यों नहीं हिल रहे हैं ? श्रीठाकुरजी ने कहा, हिलाओं तो हिलें ।

[কেদার — ভক্তের জন্য সাকার। প্রেমে ভক্ত সাকার দেখে। ধ্রুব যখন ঠাকুরকে দর্শন কল্লেন, বলেছিলেম, কুণ্ডল কেন দুলছে না? ঠাকুর বললেন, তুমি দোলালেই দোলে।

KEDAR: "God assumes forms for the sake of His devotees. Through ecstatic love a devotee sees God with form. Dhruva had a vision of the Lord. He said: 'Why don't, Your ear-rings move?' The Lord said, 'They will move if you move them.'

[(1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏 वे कब किस रूप से दर्शन देते हैं, सामने आते हैं, यह कहा नहीं जा सकता 🔆🙏

[निराकार और साकार सब मानना चाहिए]

[তিনি কখন কিরূপে দেখা দেন, সামনে আসেন, বলা যায় না।]

 [One does not know when or how God will reveal Himself.]

श्रीरामकृष्ण - सब मानना चाहिए जी - निराकार और साकार सब मानना चाहिए । काली-मन्दिर में ध्यान करते हुए मैंने देखी, एक वेश्या । मैंने कहा, माँ, तू इस रूप में भी हैं । इसीलिए कहता हूँ, सब मानना चाहिए । वे कब किस रूप से दर्शन देते हैं, सामने आते हैं, यह कहा नहीं जा सकता । यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे - ऐसेचेन एक भावेर फकीर .... 

[ भावार्थ - एक भिक्षु (mendicant-कंगाल ) हमारे पास आये हैं, जो हमेशा ईश्वरीय  भावों में लीन रहते है। . . .] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সব মানতে হয় গো — নিরাকার-সাকার সব মানতে হয়। কালীঘরে ধ্যান করতে করতে দেখলুম রমণী খানকী! বললুম, মা তুই এইরূপেও আছিস! তাই বলছি, সব মানতে হয়। তিনি কখন কিরূপে দেখা দেন, সামনে আসেন, বলা যায় না। এই বলিয়া ঠাকুর গান ধরিলেন — এসেছেন এক ভাবের ফকির।

MASTER: "One must accept everything: God with form and God without form. While meditating in the Kali temple I noticed Ramani, a prostitute. I said, 'Mother, I see that Thou art in that form too.' Therefore I say one must accept everything. One does not know when or how God will reveal Himself." The Master sang: A mendicant has come to us, ever absorbed in divine moods. . . .

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏जब श्रीहरि अनन्तशक्ति हैं -तो  क्या किसी दूसरे रूप से दर्शन नहीं दे सकते ?🔆🙏

 [Can He not reveal Himself in any form He chooses?]

गाना हो जाने पर विजय ने कहा, 'वे अनन्तशक्ति हैं - क्या किसी दूसरे रूप से दर्शन नहीं दे सकते ? कितने आश्चर्य की बात है ! लोग रेणु की रेणु जो हैं, फिर भी वे समझ बैठते हैं कि ईश्वर के सम्बन्ध में सब कुछ जान लिया ।

[বিজয় — তিনি অনন্তশক্তি — আর-একরূপে দেখা দিতে পারেন না? কি আশ্চর্য! সব রেণুর রেণু এরা সব কি না এই সব ঠিক করতে যায়।

VIJAY: "God has infinite power. Can He not reveal Himself in any form He chooses? Man is a speck of dust, and he dares come to a conclusion about God. How amazing!"]

[ (1अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆जब चींटी का पेट चीनी के एक दाने से भर गया तब चीनी का पहाड़ उठाने की क्या जरूरत ?🔆🙏

श्रीरामकृष्ण कुछ गीता, भागवत और वेदान्त पढ़कर लोग सोचते हैं, हमने सब समझ लिया । चीनी के पहाड़ पर एक चींटी गयी थी । एक दाना खाने से ही उसका पेट भर गया । एक दाना और मुँह में दबाकर वह घर लौट पड़ी । जाते हुए सोच रही थी, अबकी बार आकर सारा पहाड़ उठा ले जाऊँगी ! (सब हँसते हैं ।)

[শ্রীরামকৃষ্ণ — একটু গীতা, একটু ভাগবত, একটু বেদান্ত পড়ে লোকে মনে করে, আমি সব বুঝে ফেলেছি। চিনির পাহাড়ে একটা পিঁপড়ে গিছল। একদানা চিনি খেয়ে তার পেটে ভরে গেল। আর-একদানা মুখে করে বাসায় নিয়ে যাচ্ছে। যাবার সময় ভাবছে, এবারে এসে পাহাড়টা নিয়ে যাব! (সকলের হাস্য)

MASTER: "A man reads a little of the Gita, the Bhagavata, or the Vedanta and thinks he has understood everything. Once an ant went to a hill of sugar. One grain of sugar filled its stomach, and it was returning home with another grain in its mouth. On the way it said to itself, 'Next time I go, I shall bring home the whole hill.'" (All laugh.)

(४)

परिच्छेद ~ 95 (A),

 * कर्मयोग तथा मनोयोग*

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏निरकारवादियों को उपदेश : धर्मान्धता (Dogmatism, स्वमताभिमान)  का त्याग करें🔆🙏

 [ব্রাহ্ম মণিলালকে উপদেশ — বিদ্বেষভাব (Dogmatism) ত্যাগ কর]

ठाकुर श्री रामकृष्ण भक्तों के साथ दक्षिणेश्वर मंदिर में विराजमान हैं। आज बृहस्पतिवार, 2 अक्टूबर, 1884 - आश्विन शुक्ला द्वादशी-त्रयोदशी । कल श्रीरामकृष्ण कलकत्ते में अधर के यहाँ आये हुए थे । श्रीरामकृष्ण वहाँ कीर्तनानन्द में नाचे थे ।

श्रीरामकृष्ण के पास आजकल लाटू, हरीश और रामलाल रहते हैं । बाबूराम भी कभी कभी आकर रहते हैं । श्रीयुत रामलाल श्रीभवतारिणी की सेवा करते हैं । हाजरा महाशय भी हैं ।

[ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ দক্ষিণেশ্বর-মন্দিরে ভক্তসঙ্গে বসিয়া আছেন। আজ বৃহস্পতিবার, ২রা অক্টোবর ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দ। ১৭ই আশ্বিন ১২৯১। আশ্বিন শুক্লা দ্বাদশী-ত্রয়োদশী। শ্রীশ্রীবিজয়া দশমীর দুই দিন পরে। গতকল্য ঠাকুর কলিকাতায় অধরের বাড়িতে শুভাগমন করিয়াছিলেন। সেখানে নারাণ, বাবুরাম, মাস্টার, কেদার, বিজয় প্রভৃতি অনেকে ছিলেন। ঠাকুর সেখানে ভক্তসঙ্গে কীর্তনানন্দে নৃত্য করিয়াছিলেন।ঠাকুরের কাছে আজকাল লাটু, রামলাল, হরিশ থাকেন। বাবুরামও মাঝে মাঝে আসিয়া থাকেন। শ্রীযুক্ত রামলাল শ্রীশ্রীভবতারিণীর সেবা করেন। হাজরা মহাশয়ও আছেন।

 SRI RAMAKRISHNA was sitting in his room at Dakshineswar. Latu, Ramlal, Harish, and Hazra were living with him at the temple garden. Baburam spent a day or two with him now and then.

आज श्रीयुत मणिलाल मल्लिक, प्रिय मुखर्जी, उनके आत्मीय हरि, शिवपुर के एक ब्राह्मभक्त, बड़ाबाजार १२ नम्बर मल्लिक स्ट्रीट के मारवाड़ी भक्त श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हुए हैं । क्रमशः दक्षिणेश्वर के कई लड़के और सींती के महेन्द्र वैद्य आये । मणिलाल पुराने ब्राह्म भक्त हैं ।

[আজ শ্রীযুক্ত মণিলাল মল্লিক, প্রিয় মুখুজ্জে, তাঁহার আত্মীয় হরি, শিবপুরের একটি ব্রাহ্ম (দাড়ি আছে), বড় বাজার ১২নং মল্লিক স্ট্রীটের মারোয়াড়ী ভক্তেরা — উপস্থিত আছেন। ক্রমে দক্ষিণেশ্বরের কয়েকটি ছোকরা, সিঁথির মহেন্দ্র কবিরাজ প্রভৃতি ভক্তেরা আসিলেন। মণিলাল পুরাতন ব্রাহ্ম ভক্ত

Manilal Mallick, Priya Mukherji and his relative Hari, a bearded Brahmo devotee from Shibpur, and several Marwari devotees from Calcutta were in the Master's room. Manilal was an old member of the Brahmo Samaj.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏मैं मनुष्य, मूर्ति और शालीग्राम, सब के भीतर एक ही सत्ता देखता हूँ 🔆🙏 

[এক ছাড়া দুই আমি দেখি না!]

 ​I see that God Himself has become all these: men, images, and salagram.

श्रीरामकृष्ण - (मणिलाल आदि से) - नमस्कार मन ही मन का अच्छा होता है । पैरों पर हाथ रखकर नमस्कार की क्या जरूरत है ? और मन ही मन जिसे नमस्कार किया जाता है, उसे सङ्कोच भी नहीं होता ।

"मेरा ही धर्म ठीक है और सब मिथ्या है, यह सब अच्छा नहीं । "मैं देखता हूँ, वे ही सब कुछ हुए हैं - मनुष्य, प्रतिमा, शालग्राम; सब के भीतर एक ही सत्ता देखता हूँ ! मैं एक को छोड़ दूसरा कुछ नहीं देखता ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মণিলাল প্রভৃতির প্রতি) — নমস্কার মানসেই ভাল। পায়ে হাত দিয়ে নমস্কারের কি দরকার। আর মানসে নমস্কার করলে কেউ কুণ্ঠিত হবে না। “আমারই ধর্ম ঠিক, আর সকলের মিথ্যা — এ-ভাব ভাল নয়।“আমি দেখি তিনিই সব হয়েছেন — মানুষ, প্রতিমা, শালগ্রাম সকলের ভিতরেই এক দেখি। এক ছাড়া দুই আমি দেখি না!

MASTER (to Manila and the others): "It is wise to salute a person mentally. What need is there of touching his feet? Mental salutation doesn't embarrass anybody. "The attitude that my religion alone is right and all other religions are false is not good. ​I see that God Himself has become all these: men, images, and salagram. I see one alone in all these; I do not see two. I see only one.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏हार और जीत उनके हाथ में हैं- पानीफल सिंघाड़ा का गुण गर्म है !🔆🙏

"बहुत से लोग सोचते हैं, मेरा ही मत ठीक है और सब गलत है - हम जीते और सब हार गये । इससे, जो, बढ़ गया है, वह थोड़े के लिए अटक जाता है । तब जो पीछे पड़ा था, वह बढ़ जाता है । गोलकधाम के खेल में, बहुत कुछ बढ़ गया, परन्तु फिर पौ न पड़ा ।

.“অনেকে মনে করে আমাদের মত ঠিক, আর সব ভুল, — আমরা জিতেছি, আর সব হেরেছে। কিন্তু যে এগিয়ে এসেছে সে হয়তো, একটুর জন্য আটকে গেল। পেছনে যে পড়েছিল সে তখন এগিয়ে গেল। গোলোকধাম খেলায়, অনেক এগিয়ে এসে, পোয়া (ঘুঁটি) আর পড়ল না।

"Many people think that their opinion alone is right and others' opinions are wrong; that they alone have won and others have lost. But a person who has gone forward may be detained by some slight obstacle, and someone who has been lagging behind may then steal a march on him. In the game of golakdham one may advance a great deal, but still somehow one's piece may fail to reach the goal.

"हार और जीत उनके हाथ में हैं । उनका काम कुछ समझ में नहीं आता । देखो, नारियल इतने ऊँचे रहता है, धूप लगती है, फिर भी उसके जल की तासीर ठण्डी है । इधर पानी-फल(सिंघाड़े) पानी में रहते हैं, परन्तु उनकी तासीर गर्म होती है ।

[“হার-জিত তাঁর হাতে। তাঁর কার্য কিছু বোঝা যায় না। দেখ না, ডাব অত উঁচুতে থাকে, রোদ পায়, তবু ঠাণ্ডা শক্তি! — এ-দিকে পানিফল জলে থাকে — গরম গুণ।

"Triumph or defeat is in the hands of God. We cannot understand His ways. You must have noticed that the green coconut remains high in the tree and is exposed to the sun, but still its milk is cool. On the other hand the paniphal (A kind of aquatic fruit.) remains in the water, but when eaten it heats the body.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏मनुष्य का मुख्य अवयव मन (Head), जो मूल है ऊपर चला गया है 🔆🙏 

"आदमी का शरीर देखो । सिर जो मूल है, ऊपर चला गया ।"

[इस संसार वृक्ष का मूल ऊर्ध्व कहा गया है जो सच्चिदानन्द ब्रह्म है।  वृक्ष को आधार तथा पोषण अपने ही मूल से ही प्राप्त होता है।  इसी प्रकार हमें भी हमारा भरण-पोषण सच्चिदानंद ब्रह्म से ही प्राप्त होता है।  हमें हमारे ऊर्ध्वमूल को पाने का ही निरंतर प्रयास करना चाहिए, यही हमारा सर्वोपरी कर्तव्य है।  यही सबसे बड़ी समाज -सेवा है जो हम दूसरों के लिए कर सकते हैं।  जो इस जीवन वृक्ष के रहस्य को समझ लेता है वही वेदवित है। ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।15.1।।ऊर्ध्वमूलम् अधःशाखम् अश्वत्थं प्राहुः अव्ययम् छन्दांसि यस्य पर्णानि यः तं वेद सः वेदवित् ॥ १ ॥श्री भगवान् ने कहा -- (ज्ञानी पुरुष इस संसार वृक्ष को) ऊर्ध्वमूल और अध:शाखा वाला अश्वत्थ और अव्यय कहते हैं; जिसके पर्ण छन्द अर्थात् वेद हैं, से (संसार वृक्ष) को जो जानता है, वह वेदवित् है।यह ध्यान रहे कि अश्वत्थ वृक्ष से वटवृक्ष नहीं सूचित किया गया है। शंकराचार्य जी के अनुसार संसार को अश्वत्थ नाम व्युत्पत्ति के आधार पर दिया गया है। अश्वत्थ का अर्थ इस प्रकार है श्व का अर्थ आगामी कल है  त्थ का अर्थ है स्थित रहने वाला, अतः अश्वत्थ का अर्थ है वह जो कल अर्थात् अगले क्षण पूर्ववत् स्थित नहीं रहने वाला है। अश्वत्थ शब्द से इस सम्पूर्ण अनित्य और परिवर्तनशील दृश्यमान जगत् की ओर इंगित किया गया है। इस श्लोक में कहा गया है कि इस अश्वत्थ का मूल ऊर्ध्व में अर्थात् ऊपर है। शंकराचार्यजी ने ही उपनिषद् के भाष्य में यह लिखा है कि संसार को वृक्ष कहने का कारण यह है कि उसको काटा जा सकता है व्रश्चनात् वृक्ष। वैराग्य के द्वारा हम अपने उन समस्त दुखों को समाप्त कर सकते हैं जो इस संसार में हमें अनुभव होते हैं। जो संसारवृक्ष परमात्मा से अंकुरित होकर व्यक्त हुआ प्रतीत होता है, उसे हम अपना ध्यान परमात्मा में केन्द्रित करके काट सकते हैं।

[“মানুষের শরীর দেখ। মাথা যেটা মূল (গোড়া), সেটা উপরে চলে গেল।”

"Look at the body of man. The head is the root, and it is at the top."

  [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

[निराकारवादी गृहस्थों को उपदेश ]

 ['वृक्षः च व्रश्चनात् ' के रहस्य को समझ लेने के बाद उपाय है~ कर्मयोग तथा मनोयोग]

🔆🙏'व्रश्चनात् वृक्षः ' के रहस्य को जान के बाद वैराग्य पूर्वक 3H विकास के 5 अभ्यास करें🔆🙏   

मणिलाल - हमारा इस समय कर्तव्य क्या है ?

[মণিলাল — আমাদের এখন কর্তব্য?

MANILAL: "What then is our duty?"

श्रीरामकृष्ण - किसी तरह उनके साथ युक्त होकर रहना । दो रास्ते हैं, कर्मयोग और मनोयोग ।

"जो लोग गृहस्थाश्रमी हैं, उनका योग कर्म के द्वारा होता है । चार आश्रम हैं - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास । संन्यासी को काम्य कर्मों का त्याग करना चाहिए, परन्तु नित्यकर्म उसे कामना-हीन होकर करना चाहिए । दण्डधारण, भिक्षा, तीर्थ यात्रा, पूजा, जप, इन सब कर्मों के द्वारा उनके साथ योग होता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কোনরকম করে তাঁর সঙ্গে যোগ হয়ে থাকা। দুইপথ আছে, — কর্মযোগ আর মনোযোগ।“যারা আশ্রমে আছে, তাদের যোগ কর্মের দ্বারা। ব্রহ্মচর্য, গার্হস্থ্য, বানপ্রস্থ, সন্ন্যাস। সন্ন্যাসীরাকাম্য কর্মের ত্যাগ করবে কিন্তু নিত্যকর্ম কামনাশূন্য হয়ে করবে। দণ্ডধারণ, ভিক্ষা করা, তীর্থযাত্রা, পূজা, জপ এ-সব কর্মের দ্বারা তাঁর সঙ্গে যোগ হয়।

MASTER: "To remain somehow united with God. There are two ways: karmayoga and manoyoga. Householders practise yoga through karma, the performance of duty. There are four stages of life: brahmacharya, garhasthya, vanaprastha, and sannyas. Sannyasis must renounce those karmas which are performed with special ends in view; but they should perform the daily obligatory karmas, giving up all desire for results. Sannyasis are united with God by such karmas as the acceptance of the staff, the receiving of alms, going on pilgrimage, and the performance of worship and japa.

"और चाहे जो काम करो, फल की आकांक्षा का त्याग करके, फल की आकांक्षा को छोड़कर कर सको तो उनके साथ योग होगा।  

]“আর যে কর্মই কর, ফলাকাঙ্ক্ষা ত্যাগ করে কামনাশূন্য হয়ে করতে পারলে তাঁর সঙ্গে যোগ হয়। 

"It doesn't matter what kind of action you are engaged in. You can be united with God through any action provided that, performing it, you give up all desire for its result.

"एक मार्ग और है, मनोयोग; इस तरह के योगी में बाहर से कोई चिह्न नहीं दीख पड़ते । उसका योग अन्तर से होता है । जैसे जड़भरत तथा शुकदेव । और भी बहुत से हैं, पर ये दो प्रसिद्ध हैं । इनकी दाढ़ी और बाल तैसे ही रहते हैं, वे उन्हें नहीं निकालते ।

[“আর-একপথ মনোযোগ। এরূপ যোগীর বাহিরের কোন চিহ্ন নাই। অন্তরে যোগ। যেমন জড়ভরত, শুকদেব। আরও কত আছে — এরা নামজাদা। এদের শরীরে চুল, দাড়ি, যেমন তেমনই থাকে।"

There is the other path: manoyoga. A yogi practising this discipline doesn't show any outward sign. He is inwardly united with God. Take Jadabharata and Sukadeva, for instance. There are many other yogis of this class, but these two are well known. They shave neither hair nor beard.

"परमहंस अवस्था में कर्म उठ जाते हैं । तब स्मरण-मनन ही रहता है । सदा ही मन का योग रहता है । अगर वह कर्म भी करता है तो लोक-शिक्षा के लिए ।

[“পরমহংস অবস্থায় কর্ম উঠে যায়। স্ম রণ-মনন থাকে। সর্বদাই মনের যোগ। যদি কর্ম করে সে লোকশিক্ষার জন্য।"

All actions drop away when a man reaches the stage of the paramahamsa. He always remembers the ideal and meditates on it. He is always united with God in his mind. If he ever performs an action it is to teach men.

"चाहे कर्म के द्वारा योग हो या मन के द्वारा, भक्ति के होने पर सब समझ में आ जाता है ।

[“কর্মের দ্বারাই যোগ হউক, আর মনের দ্বারাই যোগ হউক ভক্তি হলে সব জানতে পারা যায়।

"A man may be united with God either through action or through inwardness of thought, but he can know everything through bhakti. 

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

[पूर्ववृत्त  - भक्ति योग है माँ काली  की प्रार्थना और भक्ति]

[পূর্বকথা — সাধনাবস্থায় জগন্মাতার কাছে প্রার্থনা — ভক্তিযোগ ]

"भक्ति से कुम्भक आप ही हो जाता है । मन में एकाग्रता होने पर ही वायु स्थिर हो जाती है, और वायु के स्थिर होने पर ही मन एकाग्र होता है, बुद्धि स्थिर हो जाती है ।

जिसे होता है, वह खुद नहीं समझ सकता ।

[“ভক্তিতে কুম্ভক আপনি হয় — একাগ্র মন হলেই বায়ু স্থির হয়ে যায়, আর বায়ু স্থির হলেই মন একাগ্র হয়, বুদ্ধি স্থির হয়। যার হয় সে নিজে টের পায় না।”

Through bhakti one spontaneously experiences kumbhaka. The nerve currents and breathing calm down when the mind is concentrated. Again, the mind is concentrated when the nerve currents and breathing calm down. Then the buddhi, the discriminating power, becomes steady. The man who achieves this state is not himself aware of it.

“भक्तियोग में योग के साधन होते हैं । मैंने माँ से रो-रोकर कहा था - 'माँ, योगियों ने योग करके, ज्ञानियों ने विचार करके जो कुछ समझा है, वह सब तू मुझे समझा दे - मुझे दिखला दे ।' माँ ने मुझे सब कुछ दिखा दिया है । व्याकुल होकर, उनके निकट रोने पर सब कुछ बतला देती हैं । वेद, वेदान्त, पुराण, इन सब शास्त्रों में क्या है, सब उन्होंने मुझे समझा दिया है ।"

[“ভক্তিযোগে সব পাওয়া যায়। আমি মার কাছে কেঁদে কেঁদে বলেছিলাম, ‘মা, যোগীরা যোগ করে যা জেনেছে, জ্ঞানীরা বিচার করে যা জেনেছে — আমায় জানিয়ে দাও — আমায় দেখিয়ে দাও!’ মা আমায় সব দেখিয়ে দিয়েছেন। ব্যাকুল হয়ে তাঁর কাছে কাঁদলে তিনি সব জানিয়ে দেন। বেদ-বেদান্ত, পুরাণ, তন্ত্র — এ-সব শাস্ত্রে কি আছে; সব তিনি আমায় জানিয়ে দিয়েছেন।”

"One can attain everything through bhaktiyoga. I wept before the Mother and prayed, 'O Mother, please tell me, please reveal to me, what the yogis have realized through yoga and the jnanis through discrimination.' And the Mother has revealed everything to me. She reveals everything if the devotee cries to Her with a yearning heart. She has shown me everything that is in the Vedas, the Vedanta, the Puranas, and the Tantra."

मणि - हठयोग ?

[মণিলাল — হঠযোগ?

MANILAL: "And what about hathayoga?"

श्रीरामकृष्ण - हठयोगी देहाभिमानी साधु हैं । वे बस नेति-धौति करते हैं - केवल देह की चिन्ता ! उनका उद्देश्य आयु की वृद्धि करना है । देह की ही दिन रात सेवा किया करते हैं । यह अच्छा नहीं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হঠযোগীরা দেহাভিমানী সাধু। কেবল নেতি ধৌতি করছে — কেবল দেহের যত্ন। ওদের উদ্দেশ্য আয়ু বৃদ্ধি করা। দেহ নিয়ে রাতদিন সেবা। ও ভাল নয়।

MASTER: "The hathayogis identify themselves with their bodies. They practise internal washing and similar disciplines, and devote themselves only to the care of the body. Their ideal is to increase longevity. They serve the body day and night. That is not good.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏गृहस्थ भक्त लोग कामिनी -कांचन में आसक्ति का मन से त्याग करेंगे🔆🙏 

[মণি মল্লিক, সংসারী ও মনের ত্যাগ — কেশব সেনের কথা ]

"तुम्हारा कर्तव्य क्या है ? - तुम लोग मन ही मन कामिनी और कांचन का त्याग करो । तुम लोग संसार को काकविष्ठा नहीं कह सकते ।

[“তোমাদের কর্তব্য কি? তোমরা মনে কামিনী-কাঞ্চন ত্যাগ করবে। তোমরা সংসারকে কাকবিষ্ঠা বলতে পার না।

"What is your duty? You should renounce 'woman and gold' mentally. You cannot look on the world as crow-droppings.

"गोस्वामी गृहस्थ हैं; इसीलिए मैं उनसे कहता हूँ, तुम्हारे यहाँ श्रीठाकुरजी की सेवा है, तुम लोग क्या संसार का त्याग करोगे - तुम लोग संसार को माया कहकर उनका अस्तित्व लोप नहीं कर सकते ।

[“গোস্বামীরা গৃহস্থ, তাই তাদের বললাম, তোমাদের ঠাকুর সেবা রয়েছে, তোমরা সংসারত্যাগ কি করবে? — তোমরা সংসারকে মায়া বলে উড়িয়ে দিতে পার না।"

The goswamis are householders. Therefore I said to them: 'You have your duties in the temple; how can you renounce the world? You cannot explain away the world as maya.'

"संसारियों का जो कर्तव्य है, उस पर श्रीचैतन्यदेव ने कहा है - 'जीवों पर दया रखो, वैष्णवों की सेवा करो, उनका नाम लो ।'

[“সংসারীদের যা কর্তব্য চৈতন্যদেব বলেছিলেন — জীবে দয়া, বৈষ্ণবসেবা, নামসংকীর্তন।"

Chaitanyadeva said that the duties of householders were kindness to living beings, service to the Vaishnavas, and the chanting of God's holy name.

"केशव सेन ने कहा था - 'वे इस समय, दोनों ही करो, कह रहे हैं । एक दिन कहीं चुपचाप काट खायेंगे।’ परन्तु बात ऐसी नहीं - भला मैं क्यों काटूंगा ?"

[“কেশব সেন বলেছিল, উনি এখন দুই-ই কর বলছেন। একদিন কুটুস করে কামড়াবেন। তা নয় — কামড়াব কেন?”

"Keshab Sen once said about me: 'Now he asks us to hold to both — God and the world. But one day he will sting us.' No, that is not true. Why should I sting?"

मणि मल्लिक - किन्तु आप तो काटते हैं ।

[মণি মল্লিক — তাই কামড়ান।

MANI MALLICK: "But, sir, you do."

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) – क्यों ? तुम जैसे के वैसे ही तो बने हो - तुम्हें त्याग करने की क्या जरूरत है ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কেন? তুমি তো, তাই আছ — তোমার ত্যাগ করবার কি দরকার?

MASTER (smiling): "How so? You are a householder. Why should you renounce?

(५)

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏 आचार्य (नेता)  का कामिनी-कांचन त्याग, फिर लोकशिक्षा का अधिकार🔆🙏 

श्रीरामकृष्ण - जिनके द्वारा वे लोक-शिक्षा देना चाहते हैं, उन्हें संसार का त्याग करना चाहिए । जो आचार्य हैं, उन्हें कामिनी और कांचन का त्याग करना चाहिए । नहीं तो उनके उपदेश लोग मानते नहीं। केवल भीतर ही त्याग के होने से काम नहीं होता । बाहर भी त्याग होना चाहिए । लोक-शिक्षा तभी हो सकती है । नहीं तो लोग सोचते हैं, ये कामिनी और कांचन का त्याग करने के लिए कह तो रहे हैं, परन्तु भीतर ये खुद उसका भोग कर रहे हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — যাদের দ্বারা তিনি লোকশিক্ষা দেবেন, তাদের সংসারত্যাগ দরকার। তা না হলে উপদেশ গ্রাহ্য হয় না। শুধু ভিতরে ত্যাগ হলে হবে না। বাহিরে ত্যাগও চাই, তবে লোকশিক্ষা হয়। তা না হলে লোকে মনে করে, ইনি যদিও কামিনী-কাঞ্চন ত্যাগ করতে বলছেন, ইনি নিজে ভিতরে ভিতরে ওই সব ভোগ করেন।"

But the renunciation of the world is needful for those whom God wants to be teachers of men. One who is an acharya should give up 'woman and gold'; otherwise people will not take his advice. It is not enough for him to renounce only mentally; he should also renounce outwardly. Only then will his teaching bear fruit. Otherwise people will think, 'Though he asks us to give up "woman and gold", he enjoys them himself in secret.'

"एक वैद्य ने रोगी को दवा देकर कहा, 'तुम किसी दूसरे दिन आना, भोजन आदि की बात बता दूँगा ।' उस दिन वैद्य के यहाँ राब की बहुतसी कलसियाँ भरी थीं । रोगी का घर बहुत दूर था । उसने दूसरे दिन आकर उनसे भेंट की । वैद्य ने कहा, 'खाने पीने में जरा सावधानी रखना, गुड़ खाना अच्छा नहीं ।’ रोगी के चले जाने पर एक आदमी ने वैद्य से पूछा, 'उसे इतनी तकलीफ आपने क्यों दी ? उसी दिन कह देते कि गुड़ न खाना ।'

हँसकर वैद्य ने कहा, 'इसका एक खास अर्थ है । उस दिन मेरे यहाँ राब और गुड़ के बहुत से घड़े रखे हुए थे । उस दिन अगर मैं कहता तो उसको विश्वास न होता । वह सोचता, जब इन्हीं के यहाँ इतना गुड़ रखा हुआ है, तो ये जरूर कुछ न कुछ गुड़ खाया करते होंगे । अतएव गुड़ कुछ ऐसी बुरी चीज नहीं हो सकती । आज मैंने गुड़ के घड़ों को छिपा रखा है । अब उसे मेरी बात का विश्वास होगा ।

[“একজন কবিরাজ ঔষধ দিয়ে রোগীকে বললে, তুমি আর-একদিন এসো, খাওয়া-দাওয়ার কথা বলে দিব। সেদিন তাঁর ঘরে অনেকগুলি গুড়ের নাগরি ছিল। রোগীর বাড়ি অনেক দূরে। সে আর-একদিন এসে দেখা করলে। কবিরাজ বললে ‘খাওয়া দাওয়া সাবধানে করবি, গুড় খাওয়া ভাল নয়।’ রোগী চলে গেলে একজন বৈদ্যকে বললে, ‘ওকে অত কষ্ট দিয়ে আনা কেন? সেই দিন বললেই তো হত!’ বৈদ্য হেসে বললে, ‘ওর মানে আছে। সেদিন ঘরে অনেকগুলি গুড়ের নাগরি ছিল। সেদিন যদি বলি, রোগীর বিশ্বাস হত না। সে মনে করত ওঁর ঘরে যেকালে এত গুড়ের নাগরি, উনি নিশ্চয় কিছু খান। তাহলে গুড় জিনিসটা এত খারাপ নয়।’ আজ আমি গুড়ের নাগরি লুকিয়ে ফেলেছি, এখন বিশ্বাস হবে।"

A physician prescribed medicine for a patient and said to him, 'Come another day and I'll give you directions about diet.' The physician had several jars of molasses in his room that day. The patient lived very far away. He visited the physician later and the physician said to him: 'Be careful about your food. It is not good for you to eat molasses.' After the patient left, another person who was there said to the physician: 'Why did you give him all the trouble of coming here again? You could very well have given him the instructions the first day.' The physician replied with a smile: 'There is a reason. I had several jars of molasses in my room that day. If I had asked the patient then to give up molasses, he would not have had faith in my words. He would have thought: "He has so many jars of molasses in his room, he must eat some of it. Then molasses can't be so bad." Today I have hidden the jars. Now he will have faith in my words.'

"मैने आदि-समाज के आचार्य को देखा, सुना, दूसरी या तीसरी बार उसने विवाह किया है ! - लड़के सब बड़े-बड़े हो गये हैं !

“ये ही लोग आचार्य हैं ! ये लोग अगर कहें, ईश्वर सत्य है और सब मिथ्या, इनकी बात का विश्वास भला किसे हो सकता है ?

[“আদি সমাজের আচার্যকে দেখলাম। শুনলাম নাকি দ্বিতীয় না তৃতীয় পক্ষের বিয়ে করেছে! — বড় বড় ছেলে!"“এই সব আচার্য! এরা যদি বলে ‘ঈশ্বর সত্য, আর সব মিথ্যা’ কে বিশ্বাস করবে! — এদের শিষ্য যা হবে, বুঝতেই পারছ।

I have seen the acharya of the Adi Brahmo Samaj. I understand that he has married for the second or third time. He has grown-up children. And such men are teachers! If they say, 'God is real and all else illusory', who will believe them? You can very well understand who will be their disciples.

"जैसा गुरु है, उसको शिष्य भी वैसे ही मिलते हैं । संन्यासी भी अगर मन से त्याग करके बाहर कामिनी और कांचन लेकर रहे, तो उसके द्वारा लोक-शिक्षा नहीं हो सकती । लोग कहेंगे, यह छिपकर गुड़ खाता है ।

[“হেগো গুরু তার পেদো শিষ্য! সন্ন্যাসীও যদি মনে তাগ করে, বাহিরে কামিনী-কাঞ্চন লয়ে থাকে — তার দ্বারা লোকশিক্ষা হয় না। লোকে বলবে লুকিয়ে গুড় খায়।”

"Like teacher, like disciple. Even if a sannyasi renounces 'woman and gold' mentally, but lives with them outwardly, he cannot be a teacher of men. People will say that he enjoys 'molasses' secretly.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏श्री रामकृष्ण का कांचन परित्याग - महेन्द्र वैद्य द्वारा पांच रुपये का दान🔆🙏

[শ্রীরামকৃষ্ণের কাঞ্চনত্যাগ — কবিরাজের পাঁচটাকা প্রত্যর্পণ ]

"सीती का महेन्द्र वैद्य रामलाल को पाँच रुपये दे गया था । मुझे यह बात मालूम नहीं थी ।

“रामलाल के कहने पर मैंने पूछा, किसे दिया है ? उसने कहा, यहाँ के लिए । मैने पहले सोचा कि दूधवाले को रुपया देना है, न हो, इन्हीं में से दे दिया जायगा ! हरे-हरे ! जब कुछ रात हुई, तब मैं खाट पर उठकर बैठ गया बड़ी बेचैनी थी । जान पड़ता था, छाती में कोई खरोंच रहा है ! तब रामलाल के पास जाकर मैंने फिर पूछा – ‘उसने तेरी चाची को तो नहीं दिया है ?’ उसने कहा - 'नहीं' तब मैंने कहा, 'तू अभी रुपये लौटा दे ।' रामलाल उसके दूसरे दिन रुपये लौटा आया ।

[“সিঁথির মহেন্দ্র (কবিরাজ) রামলালের কাছে পাঁচটা টাকা দিয়ে গিছল — আমি জানতে পারি নাই।“রামলাল বললে পর, আমি জিজ্ঞাসা করলাম, কাকে দিয়েছে? সে বললে, এখানকার জন্য। আমি প্রথমটা ভাবলুম, দুধের দেনা আছে না হয় সেইটে শোধ দেওয়া যাবে। ও মা! খানিক রাত্রে ধড়মড় করে উঠে পড়েছি। বুকে যেন বিল্লি আঁচড়াচ্ছে! রামলালকে তখন গিয়ে আবার জিজ্ঞাসা করলুম, — ‘তোর খুড়ীকে কি দিয়েছে?’ সে বললে, ‘না’। তখন তাকে বললাম, ‘তুই এক্ষণই ফিরিয়ে দিয়ে আয়!’ রামলাল তার পরদিন টাকা ফিরিয়ে দিলে।"

Once Mahendra Kaviraj of Sinthi gave five rupees to Ramlal. I didn't know about it. When Ramlal told me about the money, I asked him, 'For whom was the money given?' He said it was for me. At first I thought that I should use it to pay what I owed for my milk. But will you believe me? I had slept only a little while when I suddenly woke up writhing with pain, as if a cat were scratching my chest. I went to Ramlal and asked him again, 'Was the money given for your aunt?' (The Holy Mother, his wife.) 'No', Ramlal answered. Thereupon I said to him, 'Go at once and return the money.' Ramlal gave it back the next day.

"संन्यासी के लिए रुपये लेना या लोभ में फँस जाना कैसा है, जानते हो ? जैसे ब्राह्मण की विधवा बहुत दिनों तक आचार और ब्रह्मचर्य से रहकर एक दिन एक नीच शूद्र के साथ निकल गयी थी ।

[“সন্ন্যাসীর পক্ষে টাকা লওয়া বা লোভে আসক্ত হওয়া কিরূপ জানো? যেমন ব্রাহ্মণের বিধবা অনেক কাল হবিষ্য খেয়ে, ব্রহ্মচর্য করে, বাগ্‌ দী উপপতি করেছিল! (সকলে স্তম্ভিত)

"Do you know how it looks for a sannyasi to accept money or to be attached to an object of temptation? It is as if a brahmin widow who had practised continence and lived on simple boiled rice and vegetables and milk for many years, were suddenly to accept an untouchable as her paramour. (All look stunned.)

"उस देश में भागी तेलिन के बहुत से चेले हो गये थे । शूद्र को सब लोग प्रणाम करते हैं, यह देखकर वहाँ के जमींदार ने उसके पीछे किसी बदमाश को भिड़ा दिया । उसने उसका धर्म नष्ट कर दिया । साधन-भजन सब मिट्टी में मिल गया । पतित संन्यासी भी वैसा ही है ।

[“ও-দেশে ভগী তেলীর অনেক শিষ্য সামন্ত হল। শূদ্রকে সব্বাই প্রণাম করে দেখে, জমিদার একটা দুষ্ট লোক লাগিয়ে দিলে। সে তার ধর্ম নষ্ট করে দিলে — সাধন-ভজন সব মাটি হয়ে গেল। পতিত সন্ন্যাসী সেইরূপ।”

"There was a low-caste woman named Bhagi Teli in our part of the country. She had many disciples and devotees. Finding that she, a sudra, was being saluted by people, the landlord became jealous and engaged a wicked man to tempt her. He succeeded in corrupting her and all her spiritual practice came to nothing. A fallen sannyasi is like that.

  [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏साधुसंग (नवनीदा जैसे नेता) का सानिध्य के बाद श्रद्धा- faith in God 🔆🙏

[সাধুসঙ্গের পর শ্রদ্ধা — কেশব সেন ও বিজয়কৃষ্ণ গোস্বামী ]

"तुम लोग संसारी हो, तुम्हारे लिए सत्संग (साधुसंग - नवनीदा जैसे  जीवनमुक्त शिक्षक, नेता, de-Hypnotized C-IN-C)   की आवश्यकता है ।

"पहले है साधुसंग, फिर है श्रद्धा । साधु सन्त अगर उनका नाम न लें - उनका गुण न गायें, तो ईश्वर पर लोगों का विश्वास और श्रद्धा-भक्ति कैसे हो सकती है ? जब लोग तुम्हें तीन पुश्त का अमीर समझेंगे, तभी मानेंगे न ?

[“তোমারা সংসারে আছ, তোমাদের সৎসঙ্গ (সাধুসঙ্গ) দরকার।"“আগে সাধুসঙ্গ, তারপর শ্রদ্ধা। সাধুরা যদি তাঁর নামগুণানুকীর্তন না করে, তাহলে কেমন করে লোকের ঈশ্বরে শ্রদ্ধা, বিশ্বাস, ভক্তি হবে? তিন পুরুষে আমির জানলে তবে তো লোকে মানবে?

You are leading householders lives. It is necessary for you to live in the company of holy men. First of all, the company of holy men; then sraddha, faith in God."How can people have reverence and faith in God if the holy men do not sing His name and glories? People respect a man if they know that in his family there have been royal ministers for three generations.

(मास्टर से) “ज्ञान के होने पर भी सदा अनुशीलन चाहिए । नागा(तोतापुरी) कहता था, लोटे को एक दिन मलने से क्या होगा ? डाल रखोगे तो फिर मैला हो जायगा ।"

“तुम्हारे घर एक बार जाना है । तुम्हारा अड्डा अगर मालूम रहा तो सम्भव है, वहाँ बहुत से भक्त आ मिलें । तुम ईशान के पास एक बार जाना ।

[(মাস্টারের প্রতি) — “জ্ঞান হলেও সর্বদা অনুশীলন চাই। ন্যাংটা বলত, ঘটি একদিন মাজলে কি হবে — ফেলে রাখলে আবার কলঙ্ক পড়বে!“তোমার বাড়িটায় একবার যেতে হবে। তোমার আড্ডাটা জানা থাকলে, সেখানে আরও ভক্তদের সঙ্গে দেখা হবে। ঈশানের কাছে একবার যাবে।

(To M.) "Even if one has attained Knowledge, one must still constantly practise God-Consciousness. Nangta used to say: 'What is the use of polishing the outside of a metal pot one day only? If you don't polish it regularly it will get tarnished again.' I shall have to go to your house some time. If I know your house I can meet other devotees there. Please go to see Ishan some time.

(मणिलाल से) "केशव सेन की माँ आयी थीं । उनके घर के बालकों ने हरिनाम गाया । वे तालियाँ बजा-बजाकर उनकी प्रदक्षिणा करने लगीं । मैंने देखा, शोक से उन्हें बहुत दु:ख न था । यहाँ आकर वे एकादशी को माला लेकर जप करती थीं । मैंने देखा, उनमें बड़ी भक्ति है ।"

[(মণিলালের প্রতি) — “কেশব সেনের মা এসেছিল। তাদের বাড়ির ছোকরারা হরিনাম করলে। সে তাদের প্রদক্ষিণ করে হাততালি দিতে লাগল। দেখলাম শোকে কাতর হয় নাই। এখানে এসে একাদশী করলে, মালাটি লয়ে জপ করে! বেশ ভক্তি দেখলাম।”

(To Manilal) "Keshab Sen's mother came here the other day. The young boys of her family sang the name of Hari. She went around them clapping her hands. I noticed she was not very much stricken with grief over Keshab's death. She observed the fast of ekadasi here and counted her beads. I was pleased to see her devotion to God."

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆विजय और केशव के पिता भक्त थे तभी  उनकी सन्तानें भी भक्त बन सकीं 🔆

मणिलाल - केशव बाबू के पितामह रामकमल सेन भक्त थे । तुलसी-कानन में बैठकर नाम-जप करते थे । केशव के पिता प्यारीमोहन भी वैष्णव भक्त थे ।

[মণিলাল — কেশববাবুর পিতামহ রামকমল সেন ভক্ত ছিলেন। তুলসীকাননের মধ্যে বসে নাম করতেন। কেশবের বাপ প্যারীমোহনও ভক্ত বৈষ্ণব ছিলেন।

MANILAL: "Ramkamal Sen, Keshab Babu's grandfather, was a devotee of God. He used to sit in a tulsi-grove and repeat God's holy name. Pyarimohan, Keshab's father, was also a Vaishnava devotee."

श्रीरामकृष्ण - बाप अगर वैसा न होता तो लड़का कभी इतना भक्त नहीं हो सकता । विजय की अवस्था देखो न ।"विजय का बाप भागवत पढ़ता था तब भावावेश में बेहोश हो जाता था । विजय भी कभी 'हो हो' कहता हुआ, उठकर खड़ा हो जाता था ।“आजकल विजय जो कुछ दर्शन कर रहा है, सब ठीक है।

“साकार और निराकार की बात विजय ने कही, जैसे गिरगिट का रंग लाल पीला हर तरह का होता है और फिर कोई भी रंग नहीं रहता, उसी तरह साकार और निराकार हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — বাপ ওরূপ না হলে ছেলে অমন ভক্ত হয় না। দেখো না, বিজয়ের অবস্থা।“বিজয়ের বাপ ভাগবত পড়তে পড়তে ভাবে অজ্ঞান হয়ে যেত। বিজয় মাঝে মাঝে ‘হরি! হরি!’ বলে উঠে পড়ে।“আজকাল বিজয় যা সব (ঈশ্বরীয় রূপ) দর্শন করছে, সব ঠিক ঠিক!“সাকার-নিরাকারের কথা বিজয় বললে — যেমন বহুরূপীর রঙ — লাল, নীল, সবুজও হচ্ছে — আবার কোনও রঙই নাই । কখন সগুণ কখন নির্গুণ।”

MASTER: "The son could not have been so devoted to God if the father had not been like that. Look at Vijay. His father would become unconscious of the world in divine ecstasy while reading the Bhagavata. Vijay can hardly control his emotion: while uttering Hari's name, he sometimes stands up from his seat. The forms of God that Vijay sees nowadays are all real. Speaking about the different aspects of God, formless and with form, Vijay said that God sometimes appears with attributes and sometimes without attributes. He gave the example of the chameleon, which sometimes turns red, sometimes blue, sometimes green, and sometimes remains colourless.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏विजय की सरलता तथा ईश्वर-प्राप्ति🔆🙏

"विजय बड़ा सरल है । खूब उदार और सरल हुए बिना ईश्वर के दर्शन नहीं होते ।

"कल विजय अधर सेन के यहाँ गया हुआ था । व्यवहार ऐसा था, जैसे अपना मकान हो सब अपने आदमी हों ।

“विषय-बुद्धि के गये बिना कोई उदार और सरल नहीं होता ।

[“বিজয় বেশ সরল — খুব উদার সরল না হলে ঈশ্বরকে পাওয়া যায় না।“বিজয় কাল অধর সেনের বাড়িতে গিছল। তা যেন আপনার বাড়ি — সবাই যেন আপনার।“বিষয়বুদ্ধি না গেলে উদার সরল হয় না।

"Vijay is really guileless. One cannot realize God without being guileless and liberal-minded. Yesterday Vijay was at Adhar Sen's house. He behaved as if it were his own place and those who lived there his own people. One cannot be guileless and liberal-minded unless one is free from worldliness."

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏मन जितना पवित्र और निष्कपट होगा उतना ही ईश्वर के निकट होगा 🔆🙏

यह कहकर ठाकुर ने गाया -“रे मन, यदि तूँ निष्कपट और शुद्ध बन जायेगा तो तुम्हें अमूल्य धन की प्राप्ति होगी ! 

[এই বলিয়া ঠাকুর গান  —অমূল্যধন পাবি রে মন হলে খাঁটি!

Then the Master sang:You will attain that priceless Treasure when your mind is free from stain. . .

“मिट्टी बनायी हुई न हो, तो उसके बरतन नहीं बन सकते । भीतर बालू या कंकड़ के रहने पर बरतन चिटक जाते हैं; इसीलिए कुम्हार पहले मिट्टी बनाता है ।

[“মাটি পাট করা না হলে হাঁড়ি তৈয়ার হয় না। ভিতরে বালিঢিল থাকলে হাঁড়ি ফেটে যায়। তাই কুমোর আগে মাটি পাট করে।

He continued: "You cannot make a pot without first carefully preparing the clay. The pot will crack if the clay contains particles or sand or stone. That is why the potter first prepares the clay by removing the sand and stones.

"आईने में गर्द पड़ गयी हो तो उसमें मुँह नहीं दिखायी पड़ता । चित्त-शुद्धि के हुए बिना अपने स्वरूप के दर्शन नहीं होते ।

"देखो न, जहाँ अवतार है वहीं सरलता है । नन्द, दशरथ, ये सब सरल थे ।

[“আরশিতে ময়লা পড়ে থাকলে মুখ দেখা যায় না। চিত্তশুদ্ধি না হলে স্ব-স্বরূপদর্শন হয় না। “দেখো না, যেখানে অবতার, সেখানেই সরল। নন্দঘোষ, দশরথ, বসুদেব — এঁরা সব সরল।"

If a mirror is covered with dirt, it won't reflect one's face. A man cannot realize his true Self unless his heart is pure. You will find guilelessness wherever God incarnates Himself as man. Nandaghosh, Dasaratha, Vasudeva — all of them were guileless.

"वेदान्त कहता है, बुद्धि की शुद्धि हुए बिना ईश्वर के जानने की इच्छा नहीं होती । अन्तिम जन्म या अर्जित तपस्या के बिना उदारता या सरलता नहीं आती ।”

[“বেদান্তে বলে শুদ্ধবুদ্ধি না হলে ঈশ্বরকে জানতে ইচ্ছা হয় না। শেষ জন্ম বা অনেক তপস্যা না থাকলে উদার সরল হয় না।”

'The Vedanta says that a man does not even desire to know God unless he has a pure mind. One cannot be guileless and liberal-minded without much tapasya or unless it is one's last birth."

(६) 

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏श्रीरामकृष्ण की बालक जैसी अवस्था । वेदान्त-विचार🔆🙏

श्रीरामकृष्ण के पैर फूले हुए हैं । इसके लिए वे एक बालक समान चिन्ता कर रहे हैं ।

सींती के महेन्द्र कविराज आये और उन्होंने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया ।

[ঠাকুরের পা একটু ফুলো ফুলো বোধ হওয়াতে তিনি বালকের ন্যায় চিন্তিত আছেন।সিঁথির মহেন্দ্র কবিরাজ আসিয়া প্রণাম করিলেন।

Sri Ramakrishna was worrying, like a child, because he thought his legs were slightly swollen. Mahendra Kaviraj of Sinthi entered the room and saluted the Master.

श्रीरामकृष्ण - (प्रिय मुखर्जी आदि भक्तों से) - कल नारायण से मैंने कहा, "तू अपने पैर में उँगली गड़ाकर जरा देख तो सही, उँगली का निशान बनता है या नहीं ।' उसने गड़ाकर देखा तो निशान बन गया । तब मेरे जी में जी आया कि मेरे पैरों का फूलना भी कुछ नहीं है । (मुखर्जी से) तुम भी जरा अपने पैर में उसी तरह उँगली गड़ाओं । गड्डा हुआ ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ (প্রিয় মুখুজ্জে প্রভৃতি ভক্তদের প্রতি) — কাল নারাণকে বললাম, তোর পা টিপে দেখ দেখি, ডোব হয় কি না। সে টিপে দেখলে — ডোব হল; — তখন বাঁচলুম। (মুখুজ্জের প্রতি) — তুমি একবার তোমার পা টিপে দেখো তো; ডোব হয়েছে?

MASTER (to the devotees): "Yesterday I said to Naran, 'Just press your leg and see if there is any dimple.' He pressed it and there was one. Then I gave a sigh of relief. (To Mukherji) Will you please press your leg? Is there any dimple?"

मुखर्जी - जी हाँ ।

[মুখুজ্জে — আজ্ঞা হাঁ।

MUKHERJI: "Yes, sir."

श्रीरामकृष्ण - अब मेरा जी ठिकाने हुआ ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আঃ! বাঁচলুম।

MASTER: "Ah, what a relief!"

मणि मल्लिक - आप बहते हुए पानी में नहाया कीजिये । दवा की क्या जरूरत है ?

[মণি মল্লিক — কেন? আপনি স্রোতের জলে নাইবেন। সোরা ফোরা কেন খাওয়া।

MANI MALLICK: "Why should you worry about it, sir? Please take your bath in the river. Why should you take medicine?"

श्रीरामकृष्ण - नहीं जी, तुम्हारा अभी खून ताजा है, बात ही कुछ और है ?

"मुझे बच्चे की अवस्था में रखा है ।

"एक दिन घास के जंगल में मुझे किसी कीड़े ने काट लिया । मैंने सुना था, साँप अगर दो बार काटे तो विष निकाल लेता है । इसी ख्याल से बिलों में हाथ डालता फिरता था । एक ने आकर कहा, 'यह आप क्या कर रहे हैं ? - साँप जब उसी जगह फिर काटता है, तब विष निकाल लेता है । दूसरी जगह काटने से नहीं होता ।'

[শ্রীরামকৃষ্ণ — না গো, তোমাদের রক্তের জোর আছে, — তোমাদের আলাদা কথা!“আমায় বালকের অবস্থায় রেখেছে। “ঘাস বনে একদিন কি কামড়ালে। আমি শুনেছিলাম, সাপে যদি আবার কামড়ায়, তাহলে বিষ তুলে লয়। তাই গর্তে হাত দিয়ে রইলাম। একজন এসে বললে — ও কি কচ্ছেন? — সাপ যদি সেইখানটা আবার কামড়ায়, তাহলে হয়। অন্য জায়গায় কামড়ালে হয় না।

MASTER: "No, sir. You have strong blood. Your case is different. The Divine Mother has placed me in the state of a child. One day I was bitten by something in the jungle. I had heard people say that, in case of snake-bite, the poison would come out if the snake bit again. So I put my hand in a hole and waited. A man passing by said to me: 'What are you doing? You will get rid of the poison only if the snake bites again in the same place. You will not be cured if the snake bites another part of your body.'

“मैंने सुना था, शरद् काल की ओस लगाना अच्छा है । उस दिन कलकत्ते से आते हुए गाड़ी में से सिर निकालकर मैंने खूब ओस लगायी । (सब हँसते हैं ।)

[“শরতের হিম ভাল, শুনেছিলাম — কলকাতা থেকে গাড়ি করে আসবার সময় মাথা বার করে হিম লাগাতে লাগলাম। (সকলের হাস্য)"

I was told that the autumn dew was good. One day, while coming from Calcutta, I stuck my head out of the carriage and exposed it to the damp air. (All laugh.)

(सींती के महेन्द्र से) "तुम्हारे सींती के वे पण्डितजी अच्छे हैं । वेदान्तवागीश हैं, मुझे मानते हैं । जब मैंने कहा, तुमने तो खूब अध्ययन किया है - परन्तु मैं अमुक पण्डित हूँ', ऐसे अभिमान का त्याग करना, तब उसे बड़ा आनन्द हुआ । "उसके साथ वेदान्त की बातें हुईं ।

[(সিঁথির মহেন্দ্রের প্রতি) — “তোমাদের সিঁথির সেই পণ্ডিতটি বেশ। বেদান্তবাগীশ। আমায় মানে। যখন বললাম, তুমি অনেক পড়েছ, কিন্তু ‘আমি অমুক পণ্ডিত’ এ-অভিমান ত্যাগ করো, তখন তার খুব আহ্লাদ।“তার সঙ্গে বেদান্তের কথা হল।”

(To Mahendra of Sinthi) "That pundit from Sinthi is very good. He holds a title for his scholarship. He respects me. I said to him, 'You have read a great deal; but give up the vanity that you are a scholar.' That made him very happy. I discussed Vedanta with him.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏जो शुद्ध आत्मा (ब्रह्म) हैं, वही महाकारण - कारण का कारण हैं । वेदान्त का निर्णय🔆🙏 

[মাস্টারকে শিক্ষা — শুদ্ধআত্মা, অবিদ্যা; ব্রহ্মমায়া — বেদান্তের বিচার ]

(मास्टर से) “जो शुद्ध आत्मा हैं, वे निर्लिप्त हैं । उनमें माया या अविद्या है । इस माया के भीतर तीन गुण हैं - सत्त्व, रज और तम । जो शुद्ध आत्मा हैं उन्हीं में ये तीनों गुण हैं; किन्तु फिर भी वे निर्लिप्त हैं । आग में अगर आसमानी रंग की बड़ी डाल दो तो उसकी शिखा उसी रंग की दीख पड़ती है । लाल बड़ी छोड़ो तो शिखा भी लाल हो जाती है । परन्तु आग का अपना कोई रंग नहीं है ।

[(মাস্টারের প্রতি) — যিনি শুদ্ধ আত্মা, তিনি নির্লিপ্ত। তাঁতে মায়া বা অবিদ্যা আছে। এই মায়ার ভিতরে তিন গুণ আছে — সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ। যিনি শুদ্ধ আত্মা তাঁতে এই তিনগুণ রয়েছে, অথচ তিনি নির্লিপ্ত। আগুনে যদি নীল বড়ি ফেলে দাও, নীল শিখা দেখা যায়; রাঙা বড়ি ফেলে দাও, লাল শিখা দেখা যায়। কিন্তু আগুনের আপনার কোন রঙ নাই।

(To M.) "That which is Pure Atman is unattached. Maya, or avidya, is in It. In maya there are three gunas: sattva, rajas, and tamas. These three gunas also exist in the Pure Atman. But Atman Itself is unattached. If you throw a blue pill into the fire, you will see a blue flame. If you throw a red pill, you will see a red flame. But fire itself has no colour of its own.

“पानी में आसमानी रंग डालो तो आसमानी रंग हो जायेगा और फिटकरी छोड़ो तो वही पानी का रंग रहता है ।

[“জলে নীল রঙ ফেলে দাও, নীল জল হবে। আবার ফটকিরি ফেলে দিলে সেই জলেরই রঙ।

 "If you put a blue pill in water, the water will turn blue. Again, if you put alum in that water, it will regain its natural colour.

"चाण्डाल मांस का भार लिये जा रहा था । उसने आचार्य शंकर को छू लिया । शंकर ने ज्योंही कहा - 'तूने मुझे छू लिया ?' चाण्डाल बोला - 'महाराज, न तुम्हें मैंने छुआ और न मुझे तुमने । तुम तो शुद्ध आत्मा हो - निर्लिप्त हो ।'

"जड़भरत ने भी ऐसी ही बातें राजा रहुगण से कही थीं ।

[“মাংসের ভার লয়ে যাচ্চে চণ্ডালে — সে শঙ্করকে ছুঁয়েছিল। শঙ্কর যেই বলেছেন, আমায় ছুঁলি! — চণ্ডাল বললে, ঠাকুর, আমিও তোমায় ছুঁই নাই, — তুমিও আমায় ছোঁও নাই! তুমি শুদ্ধ আত্মা — নির্লিপ্ত।"“জড়ভরতও ওই সকল কথা রাজা রহুগণকে বলেছিল।

A butcher was carrying a load of meat when he touched Sankara. Sankara exclaimed: 'What! You have touched me!' The butcher replied: "Venerable sir, neither have you touched me nor have I touched you. You are Pure Atman, unattached.' Jadabharata said the same thing to King Rahugana.

"शुद्ध आत्मा निर्लिप्त है और शुद्ध आत्मा को कोई देख नहीं सकता । पानी में नमक घोला हुआ हो तो आँखें नमक को देख नहीं सकतीं ।

[“শুদ্ধ আত্মা নির্লিপ্ত। আর শুদ্ধ আত্মাকে দেখা যায় না। জলে লবণ মিশ্রিত থাকলে লবণকে চক্ষের দ্বারা দেখা যায় না।"

The Pure Atman is unattached, and one cannot see It. If salt is mixed with water, one cannot see the salt with the eyes.

"जो शुद्ध आत्मा हैं, वही महाकारण - कारण का कारण हैं । स्थूल, सूक्ष्म, कारण और महाकारण, ये इतने हैं । पाँच भूत स्थूल हैं । मन, बुद्धि और अहंकार सूक्ष्म हैं । प्रकृति अथवा आद्याशक्ति सब की कारणरूपिणी है । ब्रह्म या शुद्ध आत्मा कारण का कारण है ।

[“যিনি শুদ্ধ আত্মা তিনিই মহাকারণ — কারণের কারণ। স্থূল, সূক্ষ্ম কারণ মহাকারণ। পঞ্চভূত স্থূল। মন বুদ্ধি অহংকার, সূক্ষ্ম। প্রকৃতি বা আদ্যাশক্তি সকলের কারণ। ব্রহ্ম বা শুদ্ধ আত্মা কারণের কারণ।

"That which is the Pure Atman is the Great Cause, the Cause of the cause. The gross, the subtle, the causal, and the Great Cause. The five elements are gross. Mind, buddhi, and ego are subtle. Prakriti, the Primal Energy, is the cause of all these. Brahman, Pure Atman, is the Cause of the cause.

"यही शुद्ध आत्मा हमारा स्वरूप है ।

“ज्ञान किसे कहते हैं ? इसी स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना और मन को उसी में लगाये रहना - इस शुद्ध आत्मा को जानना - यही ज्ञान है ।

[“এই শুদ্ধ আত্মাই আমাদের স্বরূপ।“জ্ঞান কাকে বলে? এই স্ব-স্বরূপকে জানা আর তাঁতে মন রাখা! এই শুদ্ধ আত্মাকে জানা।”

This Pure Atman alone is our real nature. What is jnana? It is to know one's own Self and keep the mind in It. It is to know the Pure Atman.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏कर्म कब तक ? प्रथम माया के संसार का त्याग, फिर ब्रह्मज्ञान🔆🙏

"कर्म कब तक है ? जब तक देहाभिमान रहता है अर्थात् देह ही मैं हूँ, यह बुद्धि रहती है । यह बात गीता में लिखी है ।

"देह पर आत्मा-बुद्धि का आरोप करना ही अज्ञान है ।

[“কর্ম কতদিন? — যতদিন দেহ অভিমান থাকে; অর্থাৎ দেহই আমি এই বুদ্ধি থাকে। গীতায় ওই কথা আছে।“দেহে আত্মবুদ্ধি করার নামই অজ্ঞান।"

How long should a man perform his duties? As long as he identifies himself with the body, in other words, as long as he thinks he is the body. That is what the Gita says. To think of the body as the Atman is ajnana, ignorance.

(शिवपुर के ब्राह्मभक्त से) "आप क्या ब्राह्म (निराकारवादी)  है ?"

[(শিবপুরের ব্রাহ্মভক্তের প্রতি) — “আপনি কি ব্রাহ্ম?”

(To the bearded Brahmo devotee from Shibpur) "Are you a Brahmo?"

ब्राह्म - जी हाँ ।

[ব্রাহ্মভক্ত — আজ্ঞা হাঁ।

DEVOTEE: "Yes, sir."

श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - मैं निराकार साधक का मुँह और उसकी आँखें देखकर उसे समझ लेता हूँ । आप जरा डूबिये; ऊपर उतराते रहियेगा तो रत्न आपको नहीं मिल सकता । मैं साकार और निराकार सब मानता हूँ ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্য) — আমি নিরাকার সাধকের চোখ মুখ দেখে বুঝতে পারি। আপনি একটু ডুব দেবেন। উপরে ভাসলে রত্ন পাওয়া যায় না। আমি সাকার-নিরাকার সব মানি। 

MASTER (smiling): "I can recognize a worshipper of the Formless by looking at his face and eyes. Please dive a little deeper. One doesn't get the gem by floating on the surface. As for myself, I accept all — the formless God and God with form."

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏मारवाड़ी भक्त और ठाकुर श्री रामकृष्ण - जीवात्मा - चित्त🔆🙏 

[মারোয়াড়ী ভক্ত ও ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ — জীবাত্মা — চিত্ত ]

बड़ाबाजार के मारवाड़ी भक्तों ने आकर प्रणाम किया । श्रीरामकृष्ण उन लोगों की प्रशंसा कर रहे हैं ।

श्रीरामकृष्ण - (भक्तों से) – अहा ! ये सब कैसे भक्त हैं ! सब के सब श्रीठाकुरजी के दर्शन करते हैं, स्तुतियाँ पढ़ते हैं और प्रसाद पाते हैं । इस बार इन लोगों ने जिसे पुरोहित रखा है, वह भागवत का पण्डित है ।

[বড়বাজারের মারিয়াড়ী ভক্তেরা আসিয়া প্রণাম করিলেন। ঠাকুর তাঁহাদের সুখ্যাতি করিতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — আহা! এরা যে ভক্ত। সকলে ঠাকুরের কাছে যাওয়া — স্তব করা — প্রসাদ পাওয়া! এবার যাঁকে পুরোহিত রেখেছেন, সেটি ভাগবতের পণ্ডিত।

The Marwari devotees from Burrabazar entered the room and saluted the Master. He began to praise them.MASTER (to the devotees): "Ah! They are real devotees of God. They visit temples, sing hymns to God, and eat prasad. And the gentleman whom they have made their priest this year is learned in the Bhagavata."

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏लिंगशरीर -जीवात्मा -अष्ट-पाशों से बँधा हुआ आत्मा; or embodied soul.तथा चित्त 🔆🙏

मारवाड़ी भक्त – ‘मैं तुम्हारा दास हूँ’, यह जो कहता है वह 'मैं' कौन है ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — “আমি তোমার দাস” যে বলে সে আমিটা কে?

MARWARI DEVOTEE: "Who is this 'I' that says, 'O Lord, I am Thy servant'?"

श्रीरामकृष्ण – लिंग-शरीर या जीवात्मा है । मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार, इन चारों के मेल से लिंग-शरीर होता हैं ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — লিঙ্গশরীর বা জীবাত্মা। মন, বুদ্ধি, চিত্ত, অহংকার — এ চারিটি জড়িয়ে লিঙ্গশরীর।

MASTER: "This is the lingasarira, or embodied soul. It consists of manas, buddhi, chitta, and ahamkara."

मारवाड़ी - जीवात्मा कौन हैं ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — জীবাত্মাটি কে?

DEVOTEE: "Who is the embodied soul?"

श्रीरामकृष्ण - अष्ट-पाशों से बँधा हुआ आत्मा; और चित्त उसे कहते हैं जो (मनवस्तु -मैं बोध -the 'I consciousness' किसी चीज की याद आने पर) 'अहा' कर उठता है ।

[और चित्त क्या है? यह 'मैं बोध ' है जो कहती है, 'आह!'"And what is the chitta? It is the 'I consciousness' that says, 'Aha!'"] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — অষ্টপাশ জড়িত আত্মা। আর চিত্ত কাকে বলে? যে ওহো! করে উঠে।

MASTER: "It is the Atman bound by the eight fetters. And what is the chitta? It is the 'I consciousness' that says, 'Aha!'"

🔆🙏मारवाड़ी - मृत्यु के बाद क्या होता है? माया क्या है? -गीता का सिद्धान्त 🔆🙏

[মাড়োয়াড়ী — মৃত্যুর পর কি হয়? মায়া কি? “গীতার মত” ]

मारवाड़ी भक्त - महाराज, मृत्यु के बाद क्या होता है?

[মাড়োয়াড়ী — মৃত্যুর পর কি হয়?

DEVOTEE: "Revered sir, what happens after death?"

श्रीरामकृष्ण - गीता के मत से मरते समय जीव जो कुछ सोचता है, वही हो जाता है । भरत ने हरिण सोचा था, इसलिए वह वही हो भी गया था । यही कारण है कि ईश्वर को प्राप्त करने के लिए साधना की आवश्यकता है । दिन-रात उनको चिन्ता करते रहने पर मरते समय भी उन्हीं की चिन्ता होगी ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — গীতার মতে, মরবার সময় যা ভাবে, তাই হবে। ভরত রাজা হরিণ ভেবে হরিণ হয়েছিল। তাই ঈশ্বরকে লাভ করবার জন্য সাধন চাই। রাতদিন তাঁর চিন্তা করলে মরবার সময়ও সেই চিন্তা আসবে।

MASTER: "According to the Gita, one becomes afterwards what one thinks of at the time of death. King Bharata thought of his deer and became a deer in his next life. Therefore one must practise sadhana in order to realize God. If a man thinks of God day and night, he will have the same thought in the hour of death."

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆माया (कामिनी -कांचन)  के वशीभूत (Hypnotized) रहने के कारण वैराग्य नहीं होता 🔆 

मारवाड़ी भक्त - अच्छा, महाराज, विषय से वैराग्य क्यों नहीं होता ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — আচ্ছা মহারাজ, বিষয় বৈরাগ্য হয় না কেন?

DEVOTEE: "Why don't we feel dispassion toward worldly objects?"

श्रीरामकृष्ण - इसे ही माया कहते हैं । माया से सत् असत् और असत् सत् जान पड़ता है ।

“सत् अर्थात् जो नित्य है - परब्रह्म हैं । असत् संसार है - अनित्य है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — এরই নাম মায়া। মায়াতে সৎকে অসৎ, অসৎকে সৎ বোধ হয়।“সৎ অর্থাৎ যিনি নিত্য, — পরব্রহ্ম। অসৎ — সংসার অনিত্য।”

MASTER: "Because of maya. Through maya one feels the Real to be the unreal and the unreal to be the Real. The Real means That which is eternal, the Supreme Brahman; and the unreal means that which is non-eternal, that is to say, the world."

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏स्वाध्याय करने से भी महावाक्यों की धारणा क्यों नहीं होती ?🔆🙏 

मारवाड़ी भक्त - स्वाध्याय तो करता हूँ , गीता , उपनिषद , शास्त्र आदि पढता हूँ , किन्तु महावाक्यों की धारणा क्यों नहीं होती ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — শাস্ত্র পড়ি, কিন্তু ধারণা হয় না কেন?

DEVOTEE: "We read the scriptures. Why is it that we can't assimilate them?"

"पढ़ने से क्या होता है ? साधना और तपस्या चाहिए । उन्हें पुकारो ^*। (पुकारो ^* गुरुदेव के मुख  से इष्टदेव का नाम सुनकर विधिवत उन्हें पुकारना - अर्थात उनका नाम जप या  विवेकदर्शन का अभ्यास करना होता है। ) 

"‘भंग-भंग चिल्लाने से क्या होगा ? कुछ पीना चाहिए ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — পড়লে কি হবে? সাধনা — তপস্যা চাই। তাঁকে ডাকো। “সিদ্ধি সিদ্ধি” বললে কি হবে, কিছু খেতে হয়।

MASTER: "What will one accomplish by mere reading? One needs spiritual practice — austerity. Call on God. What is the use of merely repeating the word 'siddhi'? One must eat a little of it.

"यह संसार काँटे के पेड़ की तरह है । हाथ लगाओं तो खून निकल आता है । अगर काँटे के पेड़ के सम्बन्ध में बैठे ही बैठे यह कल्पना करते रहें कि पेड़ जल गया, तो क्या इससे वह कभी जला जाता है ? ज्ञानाग्नि लाओ, वही आग लगाओ, तब पेड़ कहीं जल सकता है ।

[“এই সংসার কাঁটাগাছের মতো। হাত দিলে রক্ত বেরোয়। যদি কাঁটাগাছ এনে, বসে বসে বল, ওই গাছ পুড়ে গেল, তা কি অমনি পুড়ে যাবে? জ্ঞানাগ্নি আহরণ কর। সেই আগুন লাগিয়ে দাও, তবে তো পুড়বে!

"The hand bleeds when it touches a thorny plant. Suppose you bring such a plant and repeat, sitting near it: 'There! The plant is burning.' Will that burn the plant? This world is like the thorny plant. Light the fire of Knowledge and with it set the plant ablaze. Only then will it be burnt up.

"साधना की अवस्था में कुछ परिश्रम करना पड़ता है । फिर तो सीधा मार्ग है । मोड़ पार करके अनुकूल वायु में पाल लगाकर नाव छोड़ दो ।

[“সাধনের অবস্থায় একটুখাটতে হয় তারপর সোজা পথ। ব্যাঁক কাটিয়ে অনুকূল বায়ুতে নৌকা ছেড়ে দাও।”

"One must labour a little while at the stage of sadhana. Then the path becomes easy. Steer the boat around the curves of the river and then let it go with the favourable wind.

,[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆पहले माया (कामिनी-कांचन) में आसक्ति का त्याग , उसके बाद  ब्रह्मज्ञान या ईश्वरलाभ🔆

[वैराग्यपूर्वक Mental Concentration के अभ्यास से -

ज्ञान-सूर्य जब focal point केन्द्रबिन्दु पर केन्द्रीभूत होगा ,

 तब  अविद्यारूपी कागज जल जायेगा !]

[আগে মায়ার সংসার ত্যাগ, তারপর জ্ঞানলাভ — ঈশ্বরলাভ ]

"जब तक माया के घेरे के भीतर हो, जब तक माया के मेघ हैं, तब तक ज्ञान-सूर्य की किरणें नहीं फैल सकतीं । माया का घेरा पार कर जब बाहर आकर खड़े हो जाओगे तब ज्ञान-सूर्य अविद्या का नाश कर देगा । घर के भीतर ले आने पर आतशी शीशे से कोई काम नहीं हो सकता । घर के घेरे से बाहर खड़े होने पर जब धूप उस पर गिरती है तब उसकी ज्वाला से कागज जल जाता है । “और बादलों के रहने पर भी आतशी शीशे से कागज नहीं जलता । बादलों के हट जाने पर ही वह काम कर सकेगा ।

[“যতক্ষণ মায়ার ঘরের ভিতরে আছ, যতক্ষণ মায়া-মেঘ রয়েছে, ততক্ষণ জ্ঞান-সূর্য কাজ করে না। মায়াঘর ছেড়ে বাহিরে এসে দাঁড়ালে (কামিনী-কাঞ্চন ত্যাগের পর) তবে জ্ঞানসূর্য অবিদ্যা নাশ করে। ঘরের ভিতর আনলে আতস কাচে কাগজ পুড়ে না। ঘরের বাইরে এসে দাঁড়ালে, রোদটি কাচে পড়ে, — তখন কাগজ পুড়ে যায়।“আবার মেঘ থাকলে আতস কাচে কাগজ পুড়ে না। মেঘটি সরে গেলে তবে হয়।

"As long as you live inside the house of maya, as long as there exists the cloud of maya, you do not see the effect of the Sun of Knowledge. Come outside the house of maya, give up 'woman and gold', and then the Sun of Knowledge will destroy ignorance. A lens cannot burn paper inside the house. If you stand outside, then the rays of the sun fall on the lens and the paper burns. Again, the lens cannot burn the paper if there is a cloud. The paper burns when the cloud disappears.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏ह्रदय का अँधेरा कब दूर होता है ?कामिनी और कांचन ही बादल हैं 🔆🙏  

"कामिनी और कांचन के घेरे से जरा हटकर खड़े होने पर अलग रहकर कुछ साधना करने पर मन का अन्धकार दूर होता है - अविद्या और अहंकार के बादल हट जाते हैं - ज्ञान-लाभ होता है ।"कामिनी और कांचन ही बादल हैं ।"

[“কামিনী-কাঞ্চন ঘর থেকে একটু সরে দাঁড়ালে — সরে দাঁড়িয়ে একটু সাধনা-তপস্যা করলে — তবেই মনের অন্ধকার নাশ হয় — অবিদ্যা অহংকার মেঘ পুড়ে যায় — জ্ঞানলাভ হয়!“আবার কামিনী-কাঞ্চনই মেঘ।”

The darkness of the mind is destroyed only when a man stands a little apart from 'woman and gold' and, thus standing apart, practises a little austerity and spiritual discipline. Then only does the cloud of his ego and ignorance vanish. Then only does he attain the Knowledge of God. This 'woman and gold' is the only cloud that hides the Sun of Knowledge.

(७)

🔆🙏श्रीरामकृष्ण का कांचन-त्याग 🔆🙏

[पूर्ववृत्त -  लक्ष्मीनारायण ने दस हजार रुपये दिए सुनकर श्री रामकृष्ण व्यग्र -संन्यासी के सख्त नियम] 

[পূর্বকথা — লক্ষ্মীনারায়ণের দশ হাজার টাকা দিবার কথায় 

শ্রীরামকৃষ্ণের অচৈতন্য হওয়া — সন্ন্যাসীর কঠিন নিয়ম]

श्रीरामकृष्ण - (मारवाड़ी से) - त्यागियों के नियम बड़े कठिन हैं । कामिनी और कांचन का संसर्ग लेशमात्र भी न रहना चाहिए । रुपया अपने हाथ से तो छूना ही न चाहिए; परन्तु दूसरे के पास रखने की भी कोई व्यवस्था न रहनी चाहिए ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মারোয়াড়ীর প্রতি) — ত্যাগীর বড় কঠিন নিয়ম। কামিনী-কাঞ্চনের সংস্রব লেশমাত্রও থাকবে না। টাকা নিজের হাতে তো লবে না, — আবার কাছেও রাখতে দেবে না।

(To the Marwari devotee) "The rules for a sannyasi are extremely hard. He cannot have the slightest contact with 'woman and gold'. He must not accept money with his own hands, and he must not even allow it to be left near him.

"लक्ष्मीनारायण मारवाड़ी था, वेदान्तवादी भी था, प्रायः यहाँ आया करता था । मेरा बिस्तरा मैला देखकर उसने कहा, मैं आपके नाम दस हजार रुपया लिख दूँगा, उसके व्याज से आपकी सेवा होती रहेगी ।

"उसने यह बात कही नहीं कि मैं जैसे लाठी की चोट खाकर बेहोश हो गया ।

"होश आने पर उससे कहा, तुम्हें अगर ऐसी बातें करनी हों, तो यहाँ फिर कभी न आना । मुझमें रुपया छूने की शक्ति ही नहीं है, और न मैं रुपया पास ही रख सकता हूँ ।

[“লক্ষ্মীনারায়ণ মারোয়াড়ী, বেদান্তবাদী, এখানে প্রায় আসত। বিছানা ময়লা দেখে বললে, আমি দশ হাজার টাকা লিখে দোব, তার সুদে তোমার সেবা চলবে।“যাই ও-কথা বললে অমনি যেন লাঠি খেয়ে অজ্ঞান হয়ে গেলাম!“চৈতন্য হবার পর তাকে বললাম, তুমি অমন কথা যদি আর মুখে বলো, তা হলে এখানে আর এসো না। আমার টাকা ছোঁবার জো নাই, কাছেও রাখবার জো নাই।

"Lakshminarayan Marwari, a Vedantist, used to come here very often. One day he saw a dirty sheet on my bed and said: 'I shall invest ten thousand rupees in your name. The interest will enable you to pay your expenses.' The moment he uttered these words, I fell unconscious, as if struck by a stick. Regaining consciousness I said to him: 'If you utter such words again, you had better not come here. It is impossible for me to touch money. It is also impossible for me to keep it near me.' 

"उसकी बुद्धि बड़ी सूक्ष्म थी । उसने कहा, 'तो अब भी आपके लिए त्याज्य और ग्राहा है ! तो आपको अभी ज्ञान नहीं हुआ ।

"मैंने कहा, नहीं भाई, इतना ज्ञान मुझे नहीं हुआ । (सब हँसते हैं ।)

[“সে ভারী সূক্ষ্মবুদ্ধি, — বললে, ‘তাহলে এখনও আপনার ত্যাজ্য, গ্রাহ্য আছে। তবে আপনার জ্ঞান হয় নাই।”

He was a very clever fellow. He said: 'Then you too have the idea of acceptance and rejection. In that case you haven't attained Perfect Knowledge.' 'My dear sir,' I said, 'I haven't yet gone that far.' (All laugh.) 

"लक्ष्मीनारायण ने तब वह धन हृदय के हाथ में देना चाहा । मैंने कहा - 'तो मुझे कहना होगा, इसे दे, उसे दे'; अगर उसने न दिया तो क्रोध का आना अनिवार्य होगा । रुपयों का पास रहना ही बुरा है । ये सब बातें न होंगी ।

"आईने के पास अगर कोई वस्तु रखी हुई हो, तो क्या उसका प्रतिबिम्ब न पड़ेगा ?"

[“লক্ষ্মীনারায়ণ তখন হৃদের কাছে দিতে চাইলে, আমি বললাম, তাহলে আমায় বলতে হবে ‘একে দে, ওকে দে’; না দিলে রাগ হবে! টাকা কাছে থাকাই খারাপ! সে-সব হবে না! “আরশির কাছে জিনিস থাকলে প্রতিবিম্ব হবে না?

Lakshminarayan then wanted to leave the money with Hriday. I said to him: 'That will not do. If you leave it with Hriday, then I shall instruct him to spend it as I wish. If he does not comply, I shall be angry. The very contact of money is bad. No, you can't leave it with Hriday.' Won't an object kept near a mirror be reflected in it?"

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

[श्री रामकृष्ण और मुक्तितत्व - "कलीयुग में वेदमत नहीं बल्कि पुराण मत कारगर है ! "]

[শ্রীরামকৃষ্ণ ও মুক্তিতত্ত্ব — “কলিতে বেদমত নয় পুরাণমত” ]

🔆ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः" ~  ज्ञान बिना मुक्ति नहीं  !  (गीता) तो फिर काशी अपवाद क्यों ? 🔆

[क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।।9.31।।]

मारवाड़ी भक्त - महाराज, क्या गंगा में शरीर-त्याग होने पर मुक्ति होती है ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — মহারাজ, গঙ্গায় শরীরত্যাগ করলে তবে মুক্তি হবে?

DEVOTEE: "Revered sir, is a man liberated only when he dies on the bank of the Ganges?"

श्रीरामकृष्ण - ज्ञान होने ही से मुक्ति होती है । चाहे जहाँ रहो - चाहे महा कलुषित स्थान में प्राण निकलें, और चाहे गंगातट ही हो; ज्ञानी की मुक्ति अवश्य होगी ।

"परन्तु हाँ, अज्ञानी के लिए गंगातट ठीक है ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ — জ্ঞান হলেই মুক্তি। যেখানেই থাকো — ভাগাড়েই মৃত্যু হোক, আর গঙ্গাতীরেই মৃত্যু হোক জ্ঞানীর মুক্তি হবে।“তবে অজ্ঞানের পক্ষে গঙ্গাতীর।”

MASTER: "It is the Knowledge of God alone that gives liberation. The jnani will certainly attain liberation wherever he may die, whether in the charnel-pit or on the bank of the Ganges. But the bank of the Ganges is prescribed for a bound soul."

मारवाड़ी भक्त - महाराज, काशी में मुक्ति कैसे होती हैं ?

[মারোয়াড়ী ভক্ত — মহারাজ কাশীতে মুক্তি হয় কেন?

DEVOTEE: "Revered sir, why does a man dying in Benares become liberated?"

श्रीरामकृष्ण - काशी में मृत्यु होने पर शिव के दर्शन होते हैं । शिव प्रकट होकर कहते हैं - 'मेरा यह साकार रूप मायिक है, मैं भक्तों के लिए वह रूप धारण करता हूँ - यह देख, मैं अखण्ड सच्चिदानन्द में लीन होता हूँ ।' यह कहकर वह रूप अन्तर्धान हो जाता है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — কাশীতে মৃত্যু হলে শিব সাক্ষাৎকার হন। — হয়ে বলেন, আমার এই যে সাকার রূপ এ মায়িক রূপ — ভক্তের জন্য এই রূপ ধারণ করি, — এই দেখ্‌, অখণ্ড সচ্চিদানন্দে মিলিয়ে যাই! এই বলে সে রূপ অন্তর্ধান হয়!

MASTER: "A person dying in Benares sees the vision of Siva. Siva says to him: 'This is My aspect with form, My embodiment in maya. I assume this form for the sake of the devotees. Now look. I am merging in the indivisible Satchidananda!' Uttering these words, Siva withdraws His form and enables the dying person to see Brahman.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏पुराण के मतानुसार केवल अवतार वरिष्ठ का नाम- स्मरण ही मुक्ति के लिए यथेष्ट है !🔆🙏 

"पुराण के मत से चाण्डाल को भी अगर भक्ति हो, तो उसकी भी मुक्ति होगी । इस मत के अनुसार नाम लेने से ही काम होता है । योग, तन्त्र, मन्त्र, इनकी कोई आवश्यकता नहीं है ।

[“পুরাণমতে চণ্ডালেরও যদি ভক্তি হয়, তার মুক্তি হবে। এ মতে নাম করলেই হয়। যাগযজ্ঞ, তন্ত্রমন্ত্র — এ-সব দরকার নাই।“

"The Puranas say that even a chandala endowed with love of God achieves liberation. According to this school the name of God is enough to liberate a soul. There is no need of such things as worship, sacrifice, the discipline of Tantra, and the recitation of mantras.

“वेद का मत अलग है । ब्राह्मण (ब्रह्मविद ?) हुए बिना मुक्ति नहीं होती । और मन्त्रों का यथार्थ उच्चारण अगर नहीं होता तो पूजा का ग्रहण ही नहीं होता । याग, यज्ञ, मन्त्र, तन्त्र, इन सब का अनुष्ठान यथाविधि करना चाहिए ।

🔆🙏कर्मयोग बहुत कठिन है - कलि में नारदीय भक्ति 🔆🙏

[কর্মযোগ বড় কঠিন — কলিতে ভক্তিযোগ ]

"कलिकाल में वेदोक्त कर्मों के करने का समय कहाँ है ? इसीलिए कलि में नारदीय भक्ति चाहिए ।

"कर्मयोग बड़ा कठिन है । निष्काम कर्म अगर न कर सके तो वह बन्धन का ही कारण होता है । इस पर आजकल प्राण अन्नगत हो रहे हैं । अतएव विधिवत् सब कर्मों के करने का समय नहीं रहा । दशमूल-पाचन अगर रोगी को खिलाया जाता है तो इधर उसके प्राण ही नहीं रहते, अतएव चाहिए फीवर-मिक्श्चर ।

[“বেদমত আলাদা। ব্রাহ্মণ না হলে মুক্তি হয় না। আবার ঠিক মন্ত্র উচ্চারণ না হলে পূজা গ্রহণ হয় না। যাগযজ্ঞ, মন্ত্রতন্ত্র — সব বিধি অনুসারে করতে হবে।”

“কলিকালে বেদোক্ত কর্ম করবার সময় কই?“তাই কলিতে নারদীয় ভক্তি।“কর্মযোগ বড় কঠিন। নিষ্কাম না করতে পারলে বন্ধনের কারণ হয়। তাতে আবার অন্নগত প্রাণ — সব কর্ম বিধি অনুসারে করবার সময় নাই। দশমূল পাঁচন খেতে গেলে রোগীর এদিকে হয়ে যায়। তাই ফিভার মিক্‌শ্চার।

"But the teachings of the Vedas are different. According to the Vedas none but a brahmin can be liberated. Further, the worship is not accepted by the gods unless the mantras are recited correctly. One must perform sacrifice, worship, and so on, according to scriptural injunction. But where is the time in the Kaliyuga to perform the Vedic rituals? Therefore in the Kaliyuga the path of devotion prescribed by Narada is best. The path of karma is very difficult. Karma becomes a cause of bondage unless it is performed in a spirit of detachment. Further, the life of man nowadays depends on food. He has no time to observe the rituals enjoined by the scriptures. The patient dies if he tries to cure his fever by taking the decoction of herbs prescribed by the orthodox native physicians. Therefore he should take a modern 'fever mixture'.

"नारदीय भक्ति है - उनके नाम और गुणों का कीर्तन करना ।

"कालिकाल के लिए कर्मयोग ठीक नहीं, भक्तियोग ही ठीक है ।

“संसार में कर्मों का भोग जितने दिनों के लिए है, उतने दिन तक भोग करो, परन्तु भक्ति और अनुराग चाहिए । उनके नाम और गुणों का कीर्तन करने पर कर्मों का क्षय हो जाता है ।

[“নারদীয় ভক্তি — তাঁর নামগুনকীর্তন করা।“কলিতে কর্মযোগ ঠিক নয়, — ভক্তিই ঠিক।“সংসারে কর্ম যতদিন ভোগ আছে করো। কিন্তু ভক্তি অনুরাগ চাই। তাঁর নামগুণকীর্তন করলে কর্মক্ষয় হবে।

"According to Narada the devotee should sing the name and glories of God. The path of karma is not the right one for the Kaliyuga. Bhaktiyoga is the right path. Do your duties in the world as long as you need them to reap the fruit of the actions of your past lives. But you must develop love for God and be passionately attached to Him. The singing of the name and glories of God destroys the effect of past action.

"सदा ही कर्म नहीं करते रहना पड़ता । उन पर जितनी ही शुद्धा भक्ति और प्रीति होगी, कर्म उतने ही घटते जायेंगे । उन्हें प्राप्त करने पर कर्मों का त्याग हो जाता है । गृहस्थ की स्त्री को जब गर्भ होता है तो उसकी सास उसका काम घटा देती है । लड़का होने पर उसे काम नहीं करना पड़ता ।"

[“কর্ম চিরকাল করতে হয় না। তাঁতে যত শুদ্ধাভক্তি-ভালবাসা হবে, ততই কর্ম কমবে। তাঁকে লাভ করলে কর্মত্যাগ হয়। গৃহস্থের বউ-এর পেটে ছেলে হলে শাশুড়ী কর্ম কমিয়ে দেয়। সন্তান হলে আর কর্ম করতে হয় না।”

"You don't have to perform duties all your life. As you develop unalloyed love and longing for God, your duties become fewer and fewer. After the realization of God they completely drop away. When the young daughter-in-law is pregnant, her mother-in-law lessens her duties. After the birth of the child she doesn't have to do any household work."

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा का उद्देश्य है ईश्वर के लिए व्याकुलता उत्पन्न करना 🔆🙏.

🔆 शुभ संस्कार (सद प्रवृत्ति-अच्छा चरित्र) रहने से ईश्वर (परम् सत्य) को जानने की व्याकुलता🔆   

[সত্যস্বরূপ ব্রহ্ম — সংস্কার থাকলে ঈশ্বরের জন্য ব্যাকুলতা হয় ]

दक्षिणेश्वर मौजे से कुछ लड़के आये । उन्होंने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । वे लोग आसन ग्रहण करके श्रीरामकृष्ण से प्रश्न कर रहे हैं । दिन के चार बजे होंगे ।

[দক্ষিণেশ্বর গ্রাম হইতে কতকগুলি ছোকরা আসিয়া প্রণাম করিলেন। তাঁহারা আসন গ্রহণ করিয়া ঠাকুরকে প্রশ্ন করিতেছেন। বেলা ৪টা হইবে।

Several young men from the village of Dakshineswar entered the room and saluted Sri Ramakrishna. It was about four o'clock in the afternoon. They sat down and began to talk with the Master.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏ईश्वर (माँ काली) ही परम् सत्य हैं , और सब असत् 🔆🙏 

एक लड़का - महाराज, ज्ञान किसे कहते हैं ?

[দক্ষিণেশ্বরনিবাসী ছোকরা — মহাশয়, জ্ঞান কাকে বলে?

YOUNG MAN: "Sir, what is Knowledge?

श्रीरामकृष्ण - ईश्वर सत् हैं और सब असत्, इसके जानने का नाम ज्ञान है ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বর সৎ, আর সমস্ত  অসৎ; এইটি জানার নাম জ্ঞান।

MASTER:  "It is to know that God is the only Reality and that all else is unreal.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏🔆🙏जो सत् या ब्रह्म हैं उन्हीं का एक नाम महाकाल है ! 🔆🙏🔆🙏

"जो सत् हैं उनका एक और नाम ब्रह्म है, एक दूसरा नाम है काल । इसीलिए लोग कहा करते हैं - अरे भाई, काल में कितने आये और कितने चले गये ।

[“যিনি সৎ তাঁর একটি নাম ব্রহ্ম, আর একটি নাম কাল (মহাকাল) । তাই বলে ‘কালে কত গেল — কত হলো রে ভাই!’

MASTER:  That which is the Real is also called Brahman. It has another name: Kala, Time. There is a saying, 'O brother, how many things come into being in Time and disappear in Time!'

"काली वे हैं जो काल के साथ रमण करती हैं । आद्याशक्ति वे ही हैं । काल और काली, ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं ।

[“ पदार्थ ऊर्जा समीकरण (Mass–energy equivalence -E=mc2)  छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा। भावार्थ : तारा को व्याकुल देखकर श्री रघुनाथजी ने उसे ज्ञान दिया और उसकी माया (अज्ञान) हर ली। (उन्होंने कहा-) पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यंत अधम शरीर रचा गया है॥] 

‘কালী’ যিনি কালের সহিত রমণ করেন। আদ্যাশক্তি। কাল ও কালী, ব্রহ্ম — ব্রহ্ম ও শক্তি — অভেদ।

"That which sports with Kala is called Kali. She is the Primal Energy. Kala and Kali, Brahman and Sakti, are indivisible.

"संसार अनित्य है, वे नित्य हैं । संसार इन्द्रजाल है, बाजीगर ही सत्य है, उसका खेल अनित्य है ।"

[“জগৎ অনিত্য, তিনিই নিত্য! জগৎ ভেলকিস্বরূপ। বাজিকরই সত্য। বাজিকরের ভেলকি অনিত্য।”

"The world is illusory; Brahman alone is real. The world is of the nature of magic. The magician is real but his magic is unreal."

वह ब्रह्म, जो परम् सत्य का स्वरूप है, वह अपरिवर्तनीय, शाश्वत  या अविनाशी है !  भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों काल में इसीकी सत्ता  है। उन्हें शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है।  ब्रह्म के बारे में, हद से हद  जो  कहा जा सकता है, कि वह सच्चिदानन्द स्वरूप है , परमानन्द (Existence -consciousness -bliss )उसका स्वभाव है।]

[“সেই সৎরূপ ব্রহ্ম নিত্য — তিনকালেই আছেন — আদি অন্তরহিত। তাঁকে মুখে বর্ণনা করা যায় না। হদ্দ বলা যায়, — তিনি চৈতন্যস্বরূপ, আনন্দস্বরূপ।

"That Brahman, of the nature of Reality, is eternal. It exists in past, present, and future. It is without beginning or end. It cannot be described in words. The utmost that can be said of Brahman is that It is of the very nature of Intelligence and Bliss.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏भेंड़-शिशु बने सिंह-शावक का भ्रम स्वतः दूर क्यों नहीं होता ? 🔆🙏


लड़का - संसार अगर माया है, इन्द्रजाल है, तो यह दूर क्यों नहीं होता ?

[ছোকরা — জগৎ যদি মায়া — ভেলকি — এ মায়া যায় না কেন?

YOUNG MAN: "If the world is of the nature of illusion — magic — then why doesn't one get rid of it?"

🔆चरित्रनिर्माण की पद्धति नहीं जानने  , 24 गुण नहीं अर्जित करने 

और 12 दोष दूर नहीं करने कारण 🔆

श्रीरामकृष्ण – संस्कार-दोषों के कारण यह माया नहीं जाती । कितने ही जन्मों तक इस माया के संसार रहने के कारण यह सच जान पड़ती है ।

[ आहार -निद्रा -भय -मैथुन की जन्मजात प्रवृत्तियों (inborn tendencies) के कारण । माया की इस दुनिया में बार-बार जन्म लेने से (Hypnotized होने के कारण) व्यक्ति को विश्वास हो जाता है  कि माया वास्तविक है। inborn tendencies. Repeated births in this world of maya make one believe that maya is real.] 

[শ্রীরামকৃষ্ণ — সংস্কার-দোষে মায়া যায় না। অনেক জন্ম এই মায়ার সংসারে থেকে থেকে মায়াকে সত্য বলে বোধ হয়।

MASTER: "It is due to the samskaras, inborn tendencies. Repeated births in this world of maya make one believe that maya is real.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत] 

🔆🙏आदत से निर्मित प्रवृत्ति या जन्मजात प्रवृत्ति (inborn tendencies) में कितनी शक्ति है🔆🙏

"संस्कार (आदत से निर्मित प्रवृत्ति- जन्मजात प्रवृत्ति inborn tendencies) में कितनी शक्ति है, सुनो । एक राजा का लड़का पिछले जन्म में धोबी के घर पैदा हुआ था । राजा का लड़का होकर जब वह खेल रहा था, तब अपने साथियों से उसने कहा, ये सब खेल रहने दो, मैं पेट के बल लेटता हूँ, तुम लोग मेरी पीठ पर कपड़े पटको !

[“সংস্কারের কত ক্ষমতা শোন। একজন রাজার ছেলে পূর্বজন্মে ধোপার ঘরে জন্মেছিল। রাজার ছেলে হয়ে যখন খেলা করছে, তখন সমবয়সীদের বলছে, ও-সব খেলা থাক! আমি উপুড় হয়ে শুই, আর তোরা আমার পিঠে হুস্‌ হুস্‌ করে কাপড় কাচ।

"Let me tell you how powerful inborn tendencies are. A prince had, in a previous birth, been the son of a washerman. While playing with his chums in his incarnation as the prince, he said to them: 'Stop those games. I will show you a new one. I shall lie on my belly, and you will beat the clothes on my back as the washerman does, making a swishing sound.'

[चरित्र -सम्पन्न गोविन्द पाल, गोपाल सेन, निरंजन, हीरानंद - 

          पूर्ववृत्त -गोविन्द, गोपाल- ठाकुर के निवृत्ति मार्गी सन्तानों का आगमन - 1863-64]

[সংস্কারবান গোবিন্দ পাল, গোপাল সেন, নিরঞ্জন, হীরানন্দ — পূর্বকথা — গোবিন্দ, গোপাল ওঠাকুরদের ছেলেদের আগমন — ১৮৬৩-৬৪ ]

"यहाँ बहुत से लड़के आते हैं, परन्तु कोई कोई ईश्वर के लिए व्याकुल हैं । वे अवश्य ही संस्कार लेकर आये हैं ।

"वे सब लड़के विवाह की बात पर रो देते हैं । स्वयं विवाह की बात तो सोचते नहीं । निरंजन बचपन से ही कहता है मैं विवाह न करूँगा ।

[“এখানে অনেক ছোকরা আসে, — কিন্তু কেউ কেউ ঈশ্বরের জন্য ব্যকুল। তারা সংস্কার নিয়ে এসেছে। “সে-সব ছোকরা বিবাহের কথায় অ্যাঁ, অ্যাঁ করে! বিবাহের কথা মনেই করে না! নিরঞ্জন ছেলেবেলা থেকে বলে, বিয়ে করব না।"

Many youngsters come here. But only a few long for God. These few are born with a spiritual tendency. They shudder at the talk of marriage. Niranjan has said from boyhood that he will not marry.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏क्या टैगोर फैमिली (Tagore) के लड़के संस्कारहीन थे ?🔆🙏 

"बहुत दिन हो गये (बीस वर्ष से अधिक) यहाँ वराहनगर से दो लड़के आते थे, एक का नाम था गोविन्द पाल, दूसरे का गोपाल सेन । उनका मन बचपन से ही ईश्वर पर था । विवाह की बात होने पर डर से सिकुड़ जाते थे । गोपाल को भावसमाधि होती थी । विषयी-मनुष्यों को देखकर वह दब जाता था जैसे बिल्ली को देखकर चूहे । जब टैगोर फैमिली (Tagore) के लड़के उस बगीचे में घूमने के लिए गये हुए थे, तब उसने अपने घर का दरवाजा बन्द कर लिया था, इसलिए कि कहीं उनसे बातचीत न करनी पड़े।

[“অনেকদিন হল (কুড়ি বছরের অধিক) বরাহনগর থেকে দুটি ছোকরা আসত। একজনের নাম গোবিন্দ পাল আর-একজনের নাম গোপাল সেন। তাদের ছেলেবেলা থেকেই ঈশ্বরেতে মন। বিবাহের কথায় ভয়ে আকুল হত। গোপালের ভাবসমাধি হত! বিষয়ী দেখলে কুণ্ঠিত হত; যেমন ইন্দুর বিড়াল দেখে কুণ্ঠিত হয়। যখন ঠাকুরদের (Tagore) ছেলেরা ওই বাগানে বেড়াতে এসেছিল, তখন কুঠির ঘরের দ্বার বন্ধ করলে, পাছে তাদের সঙ্গে কথা কইতে হয়।"

More than twenty years ago two young men used to come here from Baranagore. One was named Govinda Pal and the other Gopal Sen. They had been devoted to God since boyhood. The very mention of marriage would frighten them. Gopal used to have bhava samadhi. He would shrink from worldly people, as a mouse from a cat. One day he saw the boys of the Tagore family strolling in the garden. He shut himself in the kuthi lest he should have to talk with them.

“पञ्चवटी के नीचे गोपाल को भावावेश हो गया था । उसी अवस्था में मेरे पैरों पर हाथ रखकर उसने कहा, 'अब मुझे जाने दीजिये । अब इस संसार में मुझ से रहा नहीं जाता - आपको अभी बहुत देर हैं - मुझे जाने दीजिये ।' मैंने भी भावावस्था में कहा – ‘तुम्हें फिर आना होगा ।’ उसने कहा - 'अच्छा, फिर आऊँगा ।

"कुछ दिन बाद गोविन्द आकर मिला । मैंने पूछा, गोपाल कहाँ है ? उसने कहा, गोपाल चला गया (उसका निधन हो गया) ।

[“গোপালের পঞ্চবটীতলায় ভাব হয়েছিল। ভাবে আমার পায়ে হাত দিয়ে বলে, ‘আমি তবে যাই। আমি আর এ সংসারে থাকতে পারছি না — আপনার এখন অনেক দেরি — আমি যাই।’ আমিও ভাবাবস্থায় বললাম — ‘আবার আসবে’। সে বললে — ‘আচ্ছা, আবার আসব।’ 

“কিছুদিন পরে গোবিন্দ এসে দেখা করলে। আমি জিজ্ঞাসা করলাম, গোপাল কই? সে বললে, গোপাল (শরীরত্যাগ করে) চলে গেছে।

"Gopal went into samadhi in the Panchavati. In that state he said to me, touching my feet: 'Let me go. I cannot live in this world any more. You have a long time to wait. Let me go.' I said to him, in an ecstatic mood, "You must come again.' "Very well, I will', he said. A few days later Govinda came to me. 'Where is Gopal?' I asked him. He said, 'He has passed away.'

“दूसरे लड़के देखो, किस चिन्ता में घूम रहे हैं ! - किस तरह धन हो – गाड़ी हो - मकान हो - वस्त्राभूषण हो - फिर विवाह हो - इसी के लिए घूम रहे हैं । विवाह करना है, तो लड़की कैसी है, इसकी पहले खोज करते हैं और सुन्दर है या नहीं, इसकी जाँच करने के लिए स्वयं जाते हैं ।

[“অন্য ছোকরারা কি করে বেড়াচ্ছে! — কিসে টাকা হয় — বাড়ি — গাড়ি — পোশাক, তারপর বিবাহ — এইজন্য ব্যস্ত হয়ে বেড়ায়। বিবাহ করবে, — আগে কেমন মেয়ে খোঁজ নেয়। আবার সুন্দর কি না, নিজে দেখতে যায়!"

What are the other youngsters about? Money, house, carriage, clothes, and finally marriage. These are the things that keep them busy. If they want to marry, at the outset they make inquiries about the girl. They want to find out for themselves whether she is beautiful.

"एक आदमी मेरी बड़ी निन्दा करता है । बस यही कहता है कि ये लड़कों को प्यार करते हैं । जिनके अच्छे संस्कार हैं, जो शुद्धात्मा हैं, ईश्वर के लिए व्याकुल होते हैं, रुपया, शरीर-सुख इन सब वस्तुओं की ओर जिनका मन नहीं है, मैं उन्हीं को प्यार करता हूँ ।

[“একজন আমায় বড় নিন্দে করে। কেবল বলে, ছোকরাদের ভালবাসি। যাদের সংস্কার আছে — শুদ্ধ আত্মা, ঈশ্বরের জন্য ব্যকুল, — টাকা, শরীরের সুখ এ-সবের দিকে মন নাই — তাদেরই আমি ভালবাসি।

"There is a person who speaks much ill of me. He is always criticizing me for loving the youngsters. I love only those who are born with good tendencies, pure souls with longing for God, who do not pay any attention to money, creature comforts, and such things.

"जिन्होंने विवाह कर लिया है, उनमें भी अगर ईश्वर पर (अवतार वरिष्ठ या विवेकानन्द पर) भक्ति हो, तो वे कभी संसार में (कामिनी -कांचन में) आसक्त नहीं होंगे, अनासक्त होकर कर्म कर सकेंगे !  हीरानन्द ने विवाह किया है तो इससे क्या हुआ ? वह संसार (कामिनी -कांचन)  में अधिक आसक्त  न होगा ।"

[“যারা বিয়ে করেছে, যদি ঈশ্বরে ভক্তি থাকে, তাহলে সংসারে আসক্ত হবে না। হীরানন্দ বিয়ে করেছে। তা হোক সে বেশি আসক্ত হবে না।”

"If married people develop love for God, they will not be attached to the world. Hirananda is married. What if he is? He will not be 'much attached to the world."

हीरानन्द सिन्ध का रहनेवाला, बी. ए. पास एक ब्राह्मसमाजी है । 

[হীরানন্দ সিন্ধুদেশবাসী, বি.এ.পাস, ব্রাহ্মভক্ত। 

Hirananda, a member of the Brahmo Samaj, was a native of Sindh. He had met the Master in Calcutta and become devoted to him.

मणिलाल, शिवपुर के ब्राह्मभक्त, मारवाड़ी भक्त, श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके बिदा हुए ।

[মণিলাল, শিবপুরের ব্রাহ্মভক্ত, মারোয়াড়ী ভক্তেরা ও ছোকরারা প্রণাম করিয়া বিদায় গ্রহণ করিলেন।

Manilal, the Marwari devotees, the Brahmo devotees from Shibpur, and the young men from Dakshineswar saluted Sri Ramakrishna and took their leave.]

(८)

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏कर्मत्याग कब ?भक्तों से ठाकुर का वादा (promise)🔆🙏

[When to quit? Thakur's promise to the devotees]

[কর্মত্যাগ কখন? ভক্তের নিকট ঠাকুরের অঙ্গীকার]

शाम हो गयी । दक्षिण के बरामदे में और पश्चिमवाले गोल बरामदे में दीपक जलाये जा चुके हैं । श्रीरामकृष्ण के कमरे का प्रदीप जला दिया गया, कमरे में धूप दी गयी ।

श्रीरामकृष्ण अपने आसन पर बैठे हुए माता का नाम ले रहे हैं । कमरे में मास्टर, श्रीयुत प्रिय मुखर्जी और उनके आत्मीय हरि बैठे हैं । कुछ देर तक ध्यान और चिन्तन कर लेने पर श्रीरामकृष्ण भक्तों से वार्तालाप करने लगे । अब श्रीठाकुरमन्दिर में आरती ही की देर है ।.

[সন্ধ্যা হইল। দক্ষিণের বারান্দা ও পশ্চিমের গোল বারান্দায় ফরাশ আলো জ্বালিয়া দিয়া গেল। ঠাকুরের ঘরে প্রদীপ জ্বালা হইল ও ধুনা দেওয়া হইল।ঠাকুর নিজের আসনে বসিয়া মার নাম করিতেছেন ও মার চিন্তা করিতেছেন। ঘরে মাস্টার, শ্রীযুক্ত প্রিয় মুখুজ্জে, তাঁহার আত্মীয় হরি মেঝেতে বসিয়া আছেন। কিয়ৎক্ষণ ধ্যান চিন্তার পর ঠাকুর আবার ভক্তদের সহিত কথা কহিতেছেন। এখনও ঠাকুরবাড়ির আরতির দেরি আছে।

It was evening. Lamps were lighted on the south and west verandahs. A lamp was lighted in the Master's room also, and incense was burnt. He was repeating the name of the Divine Mother, absorbed in contemplation of Her. After a while he talked again to the devotees. There was still some time before the evening worship in the temples.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏वेदान्त और श्रीरामकृष्ण -ओंकार और समाधि -ॐ तत्सत !🔆🙏 

[Vedanta and Sri Ramakrishna - Onkar and Samadhi - "Tattvamasi" - Om Tat Sat]

[বেদান্ত ও শ্রীরামকৃষ্ণ — ওঁকার ও সমাধি — “তত্ত্বমসি” — ওঁ তৎ সৎ ]

श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - जो दिन-रात उनकी चिन्ता कर रहा है उसके लिए सन्ध्या की क्या जरूरत है ? गा रहे हैं -

त्रिसन्ध्या जे बोले काली , पूजा -सन्ध्या से कि चाय। 

सन्ध्या तार सन्धाने फेरे , कभू सन्धि नाही पाय।।

दया , व्रत , दान आदि आर किछु ना मोने लोय। 

मदनेरई यागयज्ञ ब्रह्ममयी राँगा पाय।।   

[भावार्थ - यदि कोई व्यक्ति दिनरात माँ जगदम्बा जगतजननी (माँ सारदा)  का ही चिन्तन करता हो , तब उसे त्रिसन्ध्या अनुष्ठान , भक्ति आदि करने की अब और क्या आवश्यकता है ? अब तो सन्ध्या ही उसके पीछे पीछे घूमती है, लेकिन उसे खोज नहीं पाती। मदन के मन को अब दया , दान , व्रत आदि  और नहीं भाते। लाल आलता से रंगी हुई ब्रह्ममयी माता के चरण कमलों का चिन्तन करना ही उसकी सम्पूर्ण पूजापाठ  और यज्ञ -हवन आदि करने जैसा अनुष्ठान है !

[শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — যে নিশিদিন তাঁর চিন্তা করছে, তার সন্ধ্যার কি দরকার!

ত্রিসন্ধ্যা যে বলে কালী, পূজা-সন্ধ্যা সে কি চায়।

সন্ধ্যা তার সন্ধানে ফেরে, কভু সন্ধি নাহি পায় ৷৷

দয়া ব্রত, দান আদি আর কিছু না মনে লয়।

মদনেরই যাগযজ্ঞ ব্রহ্মময়ীর রাঙা পায় ৷৷

MASTER (to M.): "What need of the sandhya has a man who thinks of God day and night?What need of rituals has a man, what need of devotions any more,If he repeats the Mother's name at the three holy hours?Rituals may pursue him close, but never can they overtake him.Charity, vows, and giving of gifts do not appeal to Madan's mind;The Blissful Mother's Lotus Feet are his whole prayer and sacrifice.

“सन्ध्या गायत्री में लीन हो जाती है और गायत्री ओंकार में ।

"एक बार ॐ कहने के साथ ही जब समाधि हो जाय तब समझना चाहिए कि अब साधु साधन-भजन में पक्का हो गया ।

[“সন্ধ্যা গায়ত্রীতে লয় হয়, গায়ত্রী ওঁকারে জয়হয়।“একবার ওঁ বললে যখন সমাধি হয় তখন পাকা।

"The sandhya merges in the Gayatri, the Gayatri in Om. A man is firmly established in spiritual life when he goes into samadhi on uttering 'Om' only once.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏ऋषिकेश के साधु साधना : सृष्टि को देखकर मुग्ध जाना और जगतजननी का चिन्तन🔆🙏

[ঝরনা দেখে আর ঈশ্বরকে বলে — ‘বাঃ বেশ করেছ! বাঃ বেশ করেছ! কি আশ্চর্য!]  

 'Ah, You have done well! Well done! How amazing!'

"हृषीकेश में एक साधु सुबह उठकर, जहाँ एक बहुत बड़ा झरना है, वहाँ जाकर खड़ा होता है । दिन भर वही झरना देखता है और ईश्वर से कहता है, 'वाह, खूब बनाया है तुमने ! कितने आश्चर्य की बात है!' उसके लिए जप-तप कुछ नहीं है । रात होने पर वह अपनी कुटी पर लौट जाता है ।

[“হৃষীকেশে একজন সাধু সকালবেলায় উঠে ভারী একটা ঝরনা তার কাছে গিয়ে দাঁড়ায়। সমস্ত দিন সেই ঝরনা দেখে আর ঈশ্বরকে বলে — ‘বাঃ বেশ করেছ! বাঃ বেশ করেছ! কি আশ্চর্য!’ তার অন্য জপতপ নাই। আবার রাত্রি হলে কুটিরে ফিরে যায়।

"There is a sadhu in Hrishikesh who gets up early in the morning and stands near a great waterfall. He looks at it the whole day and says to God: 'Ah, You have done well! Well done! How amazing!' He doesn't practise any other form of japa or austerity. At night he returns to his hut.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆🙏 व्याकुल होकर पुकारो ~ 'हे ईश्वर, तुम कैसे हो, यह मुझे समझा दो, मुझे दर्शन दो ।🔆🙏

[ব্যাকুল হয়ে বললেই হয়- হে ঈশ্বর, তুমি যে কেমন, তাই আমায় দেখাদাও!]

pray to Him,-'O God, reveal Yourself to me as You are.']

“निराकार या साकार इन सब बातों के सोचने की ऐसी क्या आवश्यकता है ! निर्जन में व्याकुल हो रो-रोकर उनसे कहने से ही काम बन जायगा । कहो – 'हे ईश्वर, तुम कैसे हो, यह मुझे समझा दो, मुझे दर्शन दो ।'

[“তিনি নিরাকার কি সাকার সে-সব কথা ভাববারই বা কি দরকার? নির্জনে গোপনে ব্যাকুল হয়ে কেঁদে কেঁদে তাঁকে বললেই হয় — হে ঈশ্বর, তুমি যে কেমন, তাই আমায় দেখাদাও!

"What need is there even to bother one's head about whether God is formless or has a form? It is enough for a man to pray to Him, alone in solitude, weeping, 'O God, reveal Yourself to me as You are.'

🔆🙏 अवतार वरिष्ठ ह्रदय में हैं - और बाहर भी वे ही हैं -नाना नाम-रूपं में लीला कर रहे हैं !🔆🙏

[इसीलिए विभिन्न नाम-रूपों (Bh Ap) को देखकर कहो - 'ॐ तत् सत्'  'तत्त्वमसी']

[That's why looking at different names and forms, say - 'Om tat sat' 'tattvamasi']

"वे अन्दर भी हैं और बाहर भी ।

“अन्दर भी वे ही हैं । इसीलिए वेद कहते हैं – तत्त्वमसी । और बाहर भी वे ही हैं । माया से अनेक रूप दिखायी पड़ते हैं । परन्तु वस्तुतः हैं वे ही ।

"इसीलिए सब नामों और रूपों का वर्णन करने के पहले कहा जाता है – ॐ तत् सत् ।

[“তিনি অন্তরে বাহিরে আছেন।“অন্তরে তিনিই আছেন। তাই বেদে বলে ‘তত্ত্বমসি’ (সেই তুমি)। আর বাহিরেও তিনি। মায়াতে দেখাচ্ছে, নানা রূপ; কিন্তু বস্তুত তিনিই রয়েছেন। “তাই সব নাম রূপ বর্ণনা করবার আগে, বলতে হয় ওঁ তৎ সৎ।

"God is both inside and outside. It is He who dwells inside us. Therefore the Vedas say, Tattvamasi — That thou art.' God is also outside us. He appears manifold through maya; but in reality He alone exists. Therefore before describing the various names and forms of God, one should say, 'Om Tat Sat.' ("Om. That alone is Reality.")

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏शास्त्र पढ़ना और निर्जन में विवेकदर्शन का अभ्यास करना अलग बात🔆🙏 

[Reading scriptures and practicing wisdom in the Camp are different things.]

"दर्शन करने पर एक तरह का ज्ञान होता है और शास्त्रों से एक दूसरी तरह का । शास्त्रों में उसका आभास मात्र मिलता है, इसलिए कई शास्त्रों के पढ़ने की कोई जरूरत नहीं । इससे निर्जन में उन्हें पुकारना अच्छा है ।

[“দর্শন করলে একরকম, শাস্ত্র পড়ে আর-একরকম। শাস্ত্রে আভাস মাত্র পাওয়া যায়। তাই কতকগুলো শাস্ত্র পড়বার কোন প্রয়োজন নাই। তার চেয়ে নির্জনে তাঁকে ডাকা ভাল।

"It is one thing to learn about God from the scriptures, and quite another to see Him. The scriptures only give hints. Therefore to read a great many scriptures is not necessary. It is much better to pray to God in solitude.

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 

🔆गीता का सार -'हे मनुष्य, कामिनी -कांचन में आसक्ति का त्याग कर ईश्वर की आराधना करो।🔆

"गीता सब न पढ़ने से भी काम चलता है । दस बार गीता गीता कहने से जो कुछ होता है, वही गीता क सार है । अर्थात् त्यागी । हे मनुष्य , सब त्याग करके ईश्वर की आराधना करो । यही गीता का सार है ।”

[“গীতা সমস্ত না পড়লেও হয়। দশবার গীতা গীতা বললে যা হয় তাই গীতার সার। অর্থাৎ ‘ত্যাগী’। হে জীব, সব ত্যাগ করে ঈশ্বরের আরাধনা কর — এই গীতার সার কথা।”

"It isn't necessary to read all of the Gita. One can get the essence of the Gita by repeating the word ten times. It becomes reversed and is then 'tagi'. The essence of the book is: 'O man, renounce everything and worship God.'

 [(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏माँ भवतारिणी की आरती का दर्शन और श्री रामकृष्ण का भावावेश🔆🙏

[শ্রীরামকৃষ্ণের ৺ভবতারিণীর আরতিদর্শন ও ভাবাবেশ ]

श्रीरामकृष्ण को भक्तों के साथ काली की आरती देखते देखते भावावेश हो रहा है । अब देवी-प्रतिमा के सामने भूमिष्ठ होकर प्रणाम नहीं कर सकते । भावावेश अब भी है । भावावस्था में वार्तालाप कर रहे हैं ।

[ঠাকুর ভক্তসঙ্গে মা-কালীর আরতি দেখিতে দেখিতে ভাবাবিষ্ট হইয়াছেন। আর ঠাকুর-প্রতিমা সম্মুখে ভূমিষ্ঠ হইয়া প্রণাম করিতে পারিতেছেন না।অতি সন্তর্পণে ভক্তসঙ্গে নিজের ঘরে ফিরিয়া আসনে উপবিষ্ট হইলেন। এখনও ভাবাবিষ্ট। ভাবাবস্থায় কথা কহিতেছেন।

The Master went into an ecstatic mood while watching the evening worship of Kali in the company of the devotees. He was in no condition even to salute the image. Very carefully he returned to his room with the devotees and sat down; he was still in an ecstatic mood. He spoke to them while in that state.

मुखर्जी के आत्मीय हरि की उम्र अठारह-बीस साल की होगी । उनका विवाह हो गया है । इस समय मुखर्जी के ही घर पर रहते हैं । कोई काम करनेवाले हैं (और नौकरी की तलाश में हैं) । श्रीरामकृष्ण पर बड़ी भक्ति है ।

[মুখুজ্জের আত্মীয় হরির বয়ঃক্রম আঠার-কুড়ি হইবে। তাঁহার বিবাহ হইয়াছে। আপাততঃ মুখুজ্জেদের বাড়িতেই থাকেন — কর্মকাজ করিবেন। ঠাকুরের উপর খুব ভক্তি।

In the room was Hari, a young man about twenty years of age, who was a relative of the Mukherjis and very much devoted to the Master. He was married. At that time he was living with the Mukherjis and looking for a job.

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏श्री रामकृष्ण और मन्त्रदीक्षा -भक्त को श्री रामकृष्ण का वचन -  न मे भक्तः प्रणश्यति।🔆🙏

[শ্রীরামকৃষ্ণ ও মন্ত্রগ্রহণ — ভক্তের নিকট শ্রীরামকৃষ্ণের অঙ্গীকার ]

श्रीरामकृष्ण - (भावावेश में हरि से) - तुम अपनी माँ से पूछकर मन्त्र लेना । (श्रीयुत प्रिय से) मैं इनसे (हरि से) कह भी न सका, मन्त्र तो मैं देता ही नहीं हूँ । "तुम जैसा ध्यान-जप करते हो; वैसा ही करते रहो ।"

[ (भावावेश में हरि से) - " हरि, तुम अपनी माताजी से अनुमति लेकर मन्त्र-दीक्षा ले लेना। (श्रीयुत प्रिय से) मैं इसको (हरि को) मंत्र नहीं दे सका, हालांकि मैंने कहा था कि मैं उसे दीक्षा दूंगा। मैं लोगों को मन्त्रदीक्षा नहीं देता। (माँ काली ही देती हैं ?) "तुम जैसा ध्यान-जप करते हो; वैसा ही करते रहो ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভাবাবেশে, হরির প্রতি) — তুমি তোমার মাকে জিজ্ঞাসা করে মন্ত্র নিও। (শ্রীযুক্ত প্রিয়কে) — এঁকে (হরিকে) বলেও দিতে পারলাম না, মন্ত্র তো দিই না।“তুমি যা ধ্যান-জপ কর তাই করো।

MASTER (to Hari, in an ecstatic mood): "Take your initiation after getting your mother's permission. (To Priya, referring to Hari) I couldn't give him the mantra though I said I would initiate him. I don't initiate people. Continue with your own meditation and japa as you have been doing."

प्रिय - जो आज्ञा ।

[প্রিয় — যে আজ্ঞা।

PRIYA: "Yes, sir."

श्रीरामकृष्ण - और मैं इस अवस्था में कह रहा हूँ; बात पर विश्वास करना । देखो, यहाँ ढोंग इत्यादि नहीं है ।"मैंने भावावेश में कहा - माँ, जो लोग यहाँ अन्तर की प्रेरणा से आते हैं, वे सिद्ध हों ।"

[पुनर्भवानुवाद : अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण : "और देखो ; मैं अपने मन की इस भावावस्था में तुमसे यह कह रहा हूँ- मेरी बात पर विश्वास करना। देखो , यहां कोई दिखावा (show-तड़कभड़क) या धूर्तता (deceit-चालाकी) इत्यादि नहीं है। मैंने अभी-अभी माँ काली से भावावेश में कहा- 'हे माँ, जो कोई मनुष्य उत्प्रेरित (inspired) होकर यहाँ (अर्थात जगतगुरू के पास) आ जायें, उन्हें पूर्णता (perfection-अर्थात मनुष्यत्व ) प्राप्त हो !    

[শ্রীরামকৃষ্ণ — আর আমি এই অবস্থায় বলছি — কথায় বিশ্বাস করো। দেখো, এখানে ঢঙ-ফঙ নাই। “আমি ভাবে বলেছি, — মা, এখানে যারা আন্তরিক টানে আসবে; তারা যেন সিদ্ধ হয়।

MASTER: "And I am saying this to you in this state of my mind. Believe my words. You see, there is no show or deceit here. I just said to the Divine Mother in my ecstatic mood, 'O Mother, may those who come here [referring to himself] through sincere attraction obtain perfection!'

[(2 अक्टूबर, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]  

🔆🙏सिंती के महेन्द्र वैद्य को हाजरा की गुरुगिरि से बचाने के लिए,ठाकुरदेव ने पुकारा🔆🙏

सींती के महेन्द्र वैद्य बरामदे में आकर बैठे । वे श्रीयुत रामलाल, हाजरा आदि के साथ बातचीत कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण अपने आसन से उन्हें पुकार रहे हैं - 'महेन्द्र, महेन्द्र !’

[সিঁথির মহেন্দ্র কবিরাজ বারান্দায় বসিয়া আছেন। শ্রীযুক্ত রামলাল হাজরা প্রভৃতির সঙ্গে কথা কহিতেছেন। ঠাকুর নিজের আসন হইতে তাঁহাকে ডাকিতেছেন — “মহিন্দর!” “মহিন্দর!”

 Mahendra Kaviraj of Sinthi was seated on the verandah conversing with Ramlal, Hazra, and others. The Master called to him from his room. M. went out quickly and brought Mahendra in.

मास्टर जल्दी से वैद्यराज को बुला लाये ।

[মাস্টার তাড়াতাড়ি গিয়া কবিরাজকে ডাকিয়া আনিলেন।

श्रीरामकृष्ण - (कविराज से) – बैठो - जरा सुनो तो सही ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (কবিরাজের প্রতি) — বোসো না — একটু শোনো।

MASTER (to Mahendra): "Sit down and listen to my words."

वैद्यराज कुछ लज्जित से हो गये । बैठकर श्रीरामकृष्ण के उपदेश सुनने लगे ।

[কবিরাজ কিঞ্চিৎ অপ্রস্তুত হইয়া উপবেশন করিলেন ও ঠাকুরের অমৃতোপম কথা শ্রবণ করিতে লাগিলেন।

Mahendra was a little embarrassed. He sat down.

[ मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की पूजा है - बलराम का भाव  - गौरांग की तीन अवस्थायें ]

[নানা ছাঁদে সেবা — বলরামের ভাব — গৌরাঙ্গের তিন অবস্থা ]

[Seva in various shades - Balaram's thoughts - Gourang's three conditions]

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

🔆🙏ईश्वर पद्म हैं और मैं भौंरा  ~ईश्वर सच्चिदानन्द सागर और मैं मीन~ विभिन्न भक्ति भाव🔆🙏

]‘তুমি পদ্ম, আমি অলি’তুমি সচ্চিদানন্দ, আমি মীন!]

 'O God, You are the lotus and I am the bee''

You are the Ocean of Satchidananda and I am the fish.' 

श्रीरामकृष्ण - (भक्तों से) - कितने ही प्रकार से उनकी सेवा की जा सकती है ।

"प्रेमी भक्त उन्हें लेकर कितनी ही तरह से सम्भोग करता है ।

"कभी तो वह सोचता है, ईश्वर पद्म हैं और वह भौंरा, और कभी ईश्वर सच्चिदानन्द सागर हैं और वह मीन ।

"प्रेमी भक्त कभी सोचता है कि वह ईश्वर की नर्तकी है । यह सोचकर वह उनके सामने नृत्य करता है - गाने सुनाता है । कभी सखीभाव या दासीभाव में रहता है ।

कभी उन पर उसका वात्सल्यभाव होता है - जैसा यशोदा का था । कभी पतिभाव - मधुरभाव होता है जैसा गोपियों का था ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ (ভক্তদের প্রতি) — তাঁকে নানা ছাঁদে সেবা করা যায়। “প্রেমিক ভক্ত তাঁকে নানারূপে সম্ভোগ করে। কখনও মনে করে ‘তুমি পদ্ম, আমি অলি’। কখনও ‘তুমি সচ্চিদানন্দ, আমি মীন!’“প্রেমিক ভক্ত আবার ভাবে ‘আমি তোমার নৃত্যকী!’ — আর তাঁর সম্মুখে নৃত্যগীত করে। কখনও বা দাসীভাব। কখনও তাঁর উপর বাৎসল্যভাব — যেমন যশোদার। কখনও বা পতিভাব — মধুরভাব — যেমন গোপীদের।

MASTER (to the devotees): "God can be served in different ways. An ecstatic lover of God enjoys Him in different ways. Sometimes he says, 'O God, You are the lotus and I am the bee', and sometimes, 'You are the Ocean of Satchidananda and I am the fish.' Sometimes, again, the lover of God says, 'I am Your dancing-girl.' He dances and sings before Him. He thinks of himself sometimes as the friend of God and sometimes as His handmaid. He looks on God sometimes as a child, as did Yasoda, and sometimes as husband or sweetheart, as did the gopis.

 “बलराम का भी तो सखीभाव रहता था और कभी वे सोचते थे, मैं कृष्ण का छाता या आसन (carpet) बना हुआ हूँ। सब तरह से वे कृष्ण की सेवा करते थे । 

[“বলরাম কখনও সখার ভাবে থাকতেন, কখনও বা মনে করতেন, আমি কৃষ্ণের ছাতা বা আসন হয়েছি। সবরকমে তাঁর সেবা করতেন।”

"Sometimes Balarama looked on Krishna as a friend; sometimes he would think he was Krishna's umbrella or carpet. He served Krishna in all possible ways."

भगवान के भक्तों के विभिन्न दृष्टिकोणों का वर्णन करते हुए क्या श्री रामकृष्ण अपनी ही मनःस्थिति की ओर संकेत  कर रहे थे?

[ঠাকুর প্রেমিক ভক্তের অবস্থা বর্ণনা করিয়া কি নিজের অবস্থা বলিতেছেন? 

Was Sri Ramakrishna hinting at his own state of mind while thus describing the different attitudes of a lover of God?

"चैतन्यदेव की तीन अवस्थाएँ थीं । जब अन्तर्दशा होती थी, तब वे समाधिलीन हो जाते थे । उस समय बाहर का ज्ञान बिलकुल न रह जाता था ।

जब अर्धबाह्य दशा होती थी, तब नृत्य तो कर सकते थे, पर बोल नहीं सकते थे । बाह्यदशा में संकीर्तन करते थे ।

[আবার চৈতন্যদেবের তিনটি অবস্থা বর্ণনা করিয়া ইঙ্গিত করিয়া বুঝি নিজের অবস্থা বুঝাইতেছেন।শ্রীরামকৃষ্ণ — চৈতন্যদেবের তিনটি অবস্থা ছিল। অন্তর্দশায় সমাধিস্থ — বাহ্যশূন্য। অর্ধবাহ্যদশায় আবিষ্ট হইয়া নৃত্য করতে পারতেন, কিন্তু কথা কইতে পারতেন না। বাহ্যদশায় সংকীর্তন।

Next he described Chaitanya's three spiritual moods. MASTER: "Chaitanyadeva used to experience three moods. In the inmost mood he would be absorbed in samadhi, unconscious of the outer world. In the semi-conscious mood he would dance in ecstasy but could not talk. In the conscious mood he would sing the glories of God.

(भक्तों से) “तुम लोग ये सब बातें सुन रहे हो, धारणा करने की चेष्टा करो । विषयी जब साधु के पास आते हैं, तब विषय की चर्चा और विषय की चिन्ता को बिलकुल छिपा कर आते हैं । जब चले जाते हैं, तब उन्हें निकालते हैं । कबूतर मटर खाता है, तो जान पड़ता है, निगल कर हजम कर गया, परन्तु नहीं, गले के भीतर रखता जाता है । गले में मटर भरे रहते हैं ।

[(ভক্তদের প্রতি) — তোমরা এই সব কথা শুনছো — ধারণার চেষ্টা করবে। বিষয়ীরা সাধুর কাছে যখন আসে তখন বিষয়কথা, বিষয়চিন্তা, একেবারে লুকিয়ে রেখে দেয়। তারপর চলে গেলে সেই গুলি বার করে। পায়রা মটর খেলে; মনে হল যে ওর হজম হয়ে গেল। কিন্তু গলার ভিতর সব রেখে দেয়। গলায় মটর গিড়গিড় করে।

(To the devotees) "You are listening to my words. Try to assimilate them. When worldly people sit before a sadhu, for the time being they completely hide all worldly thoughts and ideas. But once away from the holy man they let them out again. You have seen a pigeon eating dried peas. You think he has digested them, but he keeps them in his crop. You can feel them there.

🔆🙏शाम की पूजा - श्री रामकृष्ण और मुस्लिमवाद - जप और ध्यान 🔆🙏

[সন্ধ্যাকালীন উপাসনা — শ্রীরামকৃষ্ণ ও মুসলমানধর্ম — জপ ও ধ্যান ]

[Evening Worship - Sri Ramakrishna and Muslimism - Chanting and Meditation]

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆अंधेरे में ईश्वर की याद , विचार उठता है कि अभी तो सब दीख पड़ रहा था, किसने ऐसा किया🔆

“অন্ধকারে ঈশ্বরকে মনে পড়ে; সব এই দেখা যাচ্ছিল! — কে এমন করলে!

'I could see everything a moment ago. Who has brought about this change?'

"सब काम छोड़कर तुम्हे चाहिए कि सन्ध्या समय उनका नाम लो ।

"अंधेरे में ईश्वर की याद आती है । यह भाव आता है कि अभी तो सब दीख पड़ रहा था, किसने ऐसा किया । मुसलमानों को देखो, सब काम छोड़कर ठीक समय पर जरूर नमाज पढ़ेंगे ।"

[“সব কাজ ফেলে সন্ধ্যার সময় তোমরা তাঁকে ডাকবে।“অন্ধকারে ঈশ্বরকে মনে পড়ে; সব এই দেখা যাচ্ছিল! — কে এমন করলে! মোসলমানেরা দেখো সব কাজ ফেলে ঠিক সময়ে নমাজটি পড়বে।

"At dusk put aside all duties and pray to God. One is reminded of Him by darkness. At the approach of darkness one thinks: 'I could see everything a moment ago. Who has brought about this change?' The Mussalmans put aside all activities and say their prayers at the appointed times."

मुखर्जी - अच्छा महाराज, जप करना अच्छा है ?

[মুখুজ্জে — আজ্ঞা, জপ করা ভাল?

MUKHERJI: "Revered sir, is it good to practise japa?"

श्रीरामकृष्ण - हाँ, जप से ईश्वर मिलते हैं । एकान्त में उनका नाम जपते रहने से उनकी कृपा होती है, इसके पश्चात् है दर्शन ।

"जैसे पानी में काठ डुबाया हुआ है - लोहे की जंजीर से बाँधा हुआ है, उसी जंजीर को पकड़कर जाओ तो वह लकड़ी अवश्य छू सकोगे ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, জপ থেকে ঈশ্বরলাভ হয়। নির্জনে গোপনে তাঁর নাম করতে করতে তাঁর কৃপা হয়। তারপর দর্শন।“যেমন জলের ভিতর ডুবানো বাহাদুরী কাঠ আছে — তীরেতে শিকল দিয়ে বাঁধা; সেই শিকলের এক এক পাপ ধরে ধরে গেলে, শেষে বাহাদুরী কাঠকে স্পর্শ করা যায়।

MASTER: "Yes. One attains God through japa. By repeating the name of God secretly and in solitude one receives divine grace. Then comes His vision. Suppose there is a big piece of timber lying under water and fastened to the land with a chain; by proceeding along the chain, link by link, you will at last touch the timber.

"पूजा की अपेक्षा जप बड़ा है, जप की अपेक्षा ध्यान बड़ा है, ध्यान से बढ़कर है भाव और भाव से बढ़कर महाभाव या प्रेम । प्रेम चैतन्यदेव को हुआ था । प्रेम यदि हुआ तो ईश्वर को बाँधने की मानो रस्सी मिल गयी ।

[“পূজার চেয়ে জপ বড়। জপের চেয়ে ধ্যান বড়। ধ্যানের চেয়ে ভাব বড়। ভাবের চেয়ে মহাভাব প্রেম বড়। চৈতন্যদেবের প্রেম হয়েছিল। প্রেম হলে ঈশ্বরকে বাঁধবার দড়ি পাওয়া গেল।

"Higher than worship is japa, higher than japa is meditation, higher than meditation is bhava, and higher than bhava are mahabhava and prema. Chaitanyadeva had prema. When one attains prema one has the rope to tie God."

[रागभक्ति, माला लेकर जप और ठाकुर श्री रामकृष्ण - नारान]

[Ragabhakti, Malajpa and Thakur Sri Ramakrishna - Naran]

[রাগভক্তি, মালাজপা ও ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ — নারাণ ]

 (हाजरा आकर बैठे ।)

[হাজরা আসিয়া বসিয়াছেন।

Hazra entered the room.

🔆🙏राग-भक्ति स्वयम्भू लिंग-सी है । उसकी जड़ नहीं मिलती 🔆🙏

[Intense and Spontaneous Love of SV on 12th Jan,1985- is called raga-bhakti.]

[राग-भक्ति CINC और उनके सांगोपांग अंशों को होती है ।] 

(हाजरा से) "उन पर जब प्यार होता है, तब उसे रागभक्ति कहते हैं । वैधी-भक्ति जितनी शीघ्र आती है जाती भी उतनी ही शीघ्र हैं; राग-भक्ति स्वयम्भू लिंग-सी है । उसकी जड़ नहीं मिलती । स्वयम्भू लिंग की जड़ काशी तक है । राग-भक्ति अवतार और उनके सांगोपांग अंशों को होती है ।"

[শ্রীরামকৃষ্ণ (হাজরাকে) — তাঁর উপর ভালবাসা যদি আসে তার নাম রাগভক্তি। বৈধী ভক্তি আসতেও যতক্ষণ, যেতেও ততক্ষণ। রাগভক্তি স্বয়ম্ভূ লিঙ্গের মতো। তার জড় খুঁজে পাওয়া যায় না। স্বয়ম্ভূ লিঙ্গের জড় কাশী পর্যন্ত। রাগভক্তি, অবতার আর তাঁর সাঙ্গোপাঙ্গের হয়।

MASTER (to Hazra): "Love of God, when it is intense and spontaneous, is called raga-bhakti. Vaidhi-bhakti, formal devotion, depends on scriptural injunctions. It comes and it goes. But raga-bhakti is like a stone emblem of Siva that has sprung up out of the bowels of the earth. One cannot find its root; they say the root goes as far as Benares. Only an Incarnation of God and His companions attain raga-bhakti."

हाजरा – अहा !

[হাজরা — আহা!

HAZRA: "Ah me!"

[(2 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏जो कोई यहाँ आयेगा, उसे तत्काल ही चैतन्य होगा🔆🙏

श्रीरामकृष्ण - तुम जब एक दिन जप कर रहे थे, तब मैं जंगल से होकर आ रहा था । मैंने कहा - माँ, इसकी बुद्धि तो बड़ी हीन है, यह यहाँ आकर भी माला जप रहा है । जो कोई यहाँ आयेगा, उसे तत्काल ही चैतन्य होगा । उसे माला जपना, यह सब इतना न करना होगा । तुम कलकत्ता जाओ, देखोगे, वहाँ हजारों आदमी माला जपते हैं - वेश्याएँ तक

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি যখন জপ একদিন কচ্ছিলে — বাহ্যে থেকে এসে বললাম মা, একি হীনবুদ্ধি, এখানে এসে মালা নিয়ে জপ কচ্ছে! — যে এখানে আসবে তার একেবারে চৈতন্য হবে। তার মালা জপা অত করতে হবে না। তুমি কলকাতায় যাও না — দেখবে হাজার হাজার মালা জপ করছে — খানকী পর্যন্ত।

MASTER: "One day I was returning from the pine-grove, when I saw you telling your beads. I said to the Divine Mother: 'Mother, what a small-minded fellow he is! He lives here and still he practises japa with a rosary! Whoever comes here [referring to himself] will have his spiritual consciousness awakened all at once; he won't have to bother much about japa. Go to Calcutta and you will find thousands telling their beads — even the prostitutes.'\

श्रीरामकृष्ण मास्टर से कह रहे हैं –"तुम नारायण को किराये की गाड़ी पर ले आना ।"इनसे (मुखर्जी से) भी नारायण की बात कह रखता हूँ । उसके आने पर उसे कुछ खिलाऊँगा ! उसको खिलाने के बहुत से अर्थ हैं ।"

[ঠাকুর মাস্টারকে বলিতেছেন, “তুমি নারাণকে গাড়ি করে এনো। এঁকে (মুখুজ্জেকে) ও বলে রাখলুম — নারাণের কথা। সে এলে কিছু খাওয়াব। ওদের খাওয়ানোর অনেক মানে আছে।”

(To M.) "Please bring Naran here in a carriage. I am making the same request to Mukherji. I shall give Naran something to eat when he comes. There is great significance in feeding boys like him."

[स्वामी विवेकानन्द ने अपने  गुरु रामकृष्ण परमहंस के देहत्याग  के बाद उनकी स्मृति में ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। मिशन का उद्देश्य गरीबों, अनाथों, बेबसों और रोगियों की सेवा करना था। जब उन्होंने मठ के सन्यासियों के समक्ष यह प्रस्ताव रखा तो उनका भारी विरोध हुआ। सन्यासियों ने तर्क दिया कि हम सन्यासियों को ईश्वर की आराधना करना चाहिए न कि दुनियादारी में पड़ना चाहिए। स्वामी जी सन्यासियों के उत्तर से बेहद दुखी हुए। उन्होंने कहा कि आपलोग समझते हैं कि ईश्वर के आगे बैठने से वह प्रसन्न होगा और हाथ पकड़कर स्वर्ग ले जाएगा तो यह भूल है। आंखे खोलकर देखों की तुम्हारे पास कौन है। स्वामी जी ने दरिद्र को दरिद्र नारायण कहा। उन्होंने कहा कि ‘आप अपना शरीर, मन, वचन सब कुछ परोपकार में लगा दो। तुमको पता है ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, अर्थात माता में ईश्वर का दर्शन करो। पिता में ईश्वर का दर्शन करो’ लेकिन मैं कहता हूं ‘दरिद्र देवो भव, मूर्ख देवो भव। अनपढ़, नादान और पीड़ित को अपना भगवान मानो और जानो कि इन सबकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है।’ उनका मानना था कि मानवता के सत्य को पहचानना ही वास्तव में वेदांत है। वेदांत का संदेश है कि यदि आप अपने बांधवों अर्थात साक्षात ईश्वर की पूजा नहीं कर सकते तो उस ईश्वर की पूजा कैसे करोगे जो निराकार है। एक व्याख्यान में स्वामी जी ने कहा कि जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को कृतध्न समझता हूं, जो उनके बल पर शिक्षित बना और उनकी ओर ध्यान नहीं देता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन गरीबों, अनपढ़ों, अज्ञानियों एवं दुखियों को ही अपना भगवान मानो। स्मरण रखो, इनकी सेवा ही तुम्हारा परम धर्म है। ]

(६)

[(4 अक्टूबर, 1884)  श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]  

🔆🙏कीर्तनानन्द में श्रीरामकृष्ण🔆🙏

[ कोलुटोला में केशव सेन के बड़े भाई श्री नवीन सेन के घर पर ब्राह्म भक्तों के साथ कीर्तनानंद] 

[ শ্রীরামকৃষ্ণ কলুটোলায় শ্রীযুক্ত নবীন সেনের বাটীতে ব্রাহ্মভক্তসঙ্গে কীর্তনানন্দে]

4 अक्टूबर, 1884 ;आज शनिवार, कोजागरी पूर्णिमा और चन्द्रग्रहण एक साथ  है । श्रीयुत केशव सेन के बड़े भाई नवीन सेन के कोलूटोला वाले मकान में श्रीरामकृष्ण गये हुए हैं । गत बृहस्पतिवार के दिन केशव की माँ श्रीरामकृष्ण को न्योता देकर, आने के लिए हर तरह से कह गयी थीं ।

[আজ শনিবার কোজাগর পূর্ণিমা (চন্দ্রগ্রহণ)। শ্রীযুক্ত কেশব সেনের জ্যেষ্ঠ ভ্রাতা নবীন সেনের কলুটোলার বাটীতে ঠাকুর আসিয়াছেন। ৪ঠা অক্টোবর ১৮৮৪ খ্রীষ্টাব্দ; ১৯শে আশ্বিন, ১২৯১ সাল।গত বৃহস্পতিবারে কেশবের মা ঠাকুরকে নিমন্ত্রণ করিয়া অনেক করিয়া যাইতে বলিয়া গিয়াছিলেন।

Saturday, October 4, 1884 ::-- It was the day of the first full moon after the Durga Puja. Sri Ramakrishna arrived at the Calcutta house of Nabin Sen, the elder brother of Keshab Chandra Sen. On the previous Thursday Keshab's mother had begged the Master to pay her a visit in Calcutta.

बाहर के ऊपरवाले कमरे में जाकर श्रीरामकृष्ण बैठे । नन्दलाल आदि केशव के भतीजे, केशव की माँ और उनके बन्धु-बान्धव श्रीरामकृष्ण की बड़ी आवभगत कर रहे हैं । ऊपरवाले कमरे में ही संकीर्तन होने लगा । कोलूटोले में सेन परिवार की बहुत सी स्त्रियाँ भी आयी हुई हैं ।श्रीरामकृष्ण के साथ बाबूराम, किशोरी तथा और भी दो-एक भक्त आये हैं । मास्टर भी आये हैं । वे नीचे बैठे हुए श्रीरामकृष्ण का संकीर्तन सुन रहे हैं ।

[বাহিরের উপরের ঘরে গিয়া ঠাকুর বসিলেন। নন্দলাল প্রভৃতি কেশবের ভ্রাতুষ্পুত্রগণ, কেশবের মাতা ও তাঁহাদের আত্মীয় বন্ধুগণ ঠাকুরকে খুব যত্ন করিতেছেন। উপরের ঘরেই সংকীর্তন হইল। কলুটোলার সেনেদের অনেক মেয়েরাও আসিয়াছেন। ঠাকুরের সঙ্গে বাবুরাম, কিশোরী, আরও দু-একটি ভক্ত। মাস্টারও আসিয়াছেন।তিনি নিচে বসিয়া ঠাকুরের মধুর সংকীর্তন শুনিতেছেন।

The Master seated himself in a room on the upper floor of the house. With him were Baburam, Kishori, and a few other devotees. Nandalal and Keshab's other nephews, Keshab's mother, and other relatives of his, waited on the Master. It had been arranged to have devotional music performed in the room. M. was sitting in a room downstairs, listening to the kirtan.

श्रीरामकृष्ण ब्राह्मभक्तों से कह रहे हैं - "संसार अनित्य है । मृत्यु पर सदा ही ध्यान रखना चाहिए ।" श्रीरामकृष्ण गा रहे हैं – मायाजाल में फँसकर दक्षिणाकाली को कभी भूल न जाना ।


भूलो ना दक्षिणकाली बद्ध होय मायाजाले। 

भेवे देख मन केउ कारो नय , मीछे भ्रम भूमण्डले। 

भूलो ना दक्षिणकाली बद्ध होय मायाजाले। 

दिन दूई-तीनेर जोन्ने भेवे कर्ता बोले सबाई माने। 

सेई कर्तारे देबे फैले , कालाकालेर कर्ता एले।।  

जार जोन्ने मोरो भेबे , से कि तोमार संगे जाबे ?

सेई प्रेयसी दिबे छोड़ा , अमंगल होबे बोले।।

"मन ! सोच कर देख, कोई किसी का नहीं है । इस संसार में वृथा ही तू चक्कर मारता फिरता है । माया-जाल में फँसकर दक्षिणाकाली को कभी भूल न जाना । इस संसार में दो ही दिन के लिए लोक 'मालिक-मालिक' करते हैं । जब कभी कालरूप मालिक आ जाते हैं, तब पहले के उस मालिक को लोग श्मशान में डाल देते हैं । जिसके लिए तुम सोचकर मर रहे हो, क्या वह तुम्हारे संग भी जाता है ? तुम्हारी वही प्रेयसी तुम्हारे मर जाने पर अमंगल की आशंका करके गोबर से घर को लीपती-पोतती है !”

[ঠাকুর ব্রাহ্মভক্তদের বলিতেছেন, — সংসার অনিত্য; আর সর্বদা মৃত্যু স্ম রণ করা উচিত। ঠাকুর গান গাইতেছেন:

ভেবে দেখ মন কেউ কারু নয়, মিছে ভ্রম ভূমণ্ডলে।
ভুল না দক্ষিণাকালী বদ্ধ হয়ে মায়াজালে ৷৷
দিন দুই-তিনের জন্য ভবে কর্তা বলে সবাই মানে।
সেই কর্তারে দেবে ফেলে, কালাকালের কর্তা এলে ৷৷
যার জন্য মর ভেবে, সে কি তোমার সঙ্গে যাবে।
সেই প্রেয়সী দিবে ছড়া অমঙ্গল হবে বলে ৷৷

Sri Ramakrishna said to the Brahmo devotees: "The world is impermanent. One should constantly remember death." Then he sang:Remember this, O mind! Nobody is your own:Vain is your wandering in this world.Trapped in the subtle snare of maya as you are,Do not forget the Mother's name. . . .

श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - “डूबो; ऊपर उतराते रहने से क्या होगा ? कुछ दिन एकान्त में, सब कुछ छोड़कर, उन पर सोलहों आने मन लगाकर, उन्हें पुकारो ।" श्रीरामकृष्ण गा रहे हैं - 

डूब डूब डूब रूपसागरे आमार मन। 

तलातल पाताल ख़ूँजले पाबि रे प्रेम रत्नधन।।

“ऐ मन, रूप के समुद्र में तू डूब जा । तलातल और पाताल में खोज करने पर तुझे प्रेमरूपी रत्न मिलेगा।"

[ঠাকুর বলিতেছেন — ডুব দাও — উপরে ভাসলে কি হবে? দিন কতক নির্জনে সব ছেড়ে, ষোল আনা মন দিয়ে, তাঁকে ডাকো।ঠাকুর গান গাইতেছেন:

ডুব্‌ ডুব্‌ ডুব্‌ রূপসাগরে আমার মন।

তলাতল পাতাল খুঁজলে পাবি রে প্রেম রত্নধন ৷৷

The Master said to the devotees: "Dive deep. What will you gain by merely floating on the surface? Renounce everything for a few days, retire into solitude, and call on God with all your soul."The Master sang:Dive deep, O mind, dive deep in the Ocean of God's Beauty;If you descend to the uttermost depths,There you will find the gem of Love. . . .

श्रीरामकृष्ण ब्राह्मभक्तों से “तुम मेरे सर्वस्व हो" यह गाना गाने के लिए कह रहे हैं -

तुमि सर्वस्व आमार (हे नाथ) प्राणाधार सारात्सार। 

नाहि तोमा बिने , केह त्रिभुवन , आपनार बोलिबार।   

श्री रामकृष्ण के अनुरोध पर ब्रह्म भक्तों ने गाया: हे भगवान, आप मेरे सर्वस्व हैं! - मेरे जीवन का जीवन, सारों का सार हैं ! तीनों लोकों में सिवाय आपके ऐसा कोई अन्य नहीं है , जिसको मैं अपना कह सकूँ। आप ही मेरी शांति , मेरा आनन्द , मेरी आशा , मेरा सहारा , मेरा धन, मेरा गौरव , मेरा ज्ञान , और आप ही  मेरी शक्ति भी हैं !  . . .

At Sri Ramakrishna's request the Brahmo devotees sang:Thou art my All in All, O Lord! — the Life of my life, the Essence of essence;In the three worlds I have none else but Thee to call my own.Thou art my peace, my joy, my hope; Thou my support, my wealth, my glory;Thou my wisdom and my strength. . . .

[ঠাকুর ব্রাহ্মভক্তদের, “তুমি সর্বস্ব আমার।” এই গানটি গাইতে বলিতেছেন।

তুমি সর্বস্ব আমার (হে নাথ) প্রাণাধার সারাৎসার।

নাহি তোমা বিনে, কেহ ত্রিভুবনে, আপনার বলিবার।

At Sri Ramakrishna's request the Brahmo devotees sang:Thou art my All in All, O Lord! — the Life of my life, the Essence of essence;In the three worlds I have none else but Thee to call my own.Thou art my peace, my joy, my hope; Thou my support, my wealth, my glory;Thou my wisdom and my strength. . . .

ब्राह्मभक्तों का गाना हो जाने पर श्रीरामकृष्ण ने श्रीकृष्ण पर एक गाना गाया । यह गाना सुनकर केशव ने इसी के जोड़ का एक दूसरा गीत रचा था ।

अब श्रीरामकृष्ण गौरांग-कीर्तन करने लगे । भक्तों के साथ बड़ी देर तक नृत्य-गीत होता रहा

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(सन्तों और भक्तों का जीवन साक्षी है कि भगवान ने उनके बिगड़े काम सँवार दिये }


साहित्य-सूरदास

सुनेरी मै ने

निर्बल के बल राम |

पिछली साख भरूँ संतन की

आड़े सँवारे काम ॥

(सन्तों और भक्तों का जीवन साक्षी है कि भगवान ने उनके बिगड़े काम सँवार दिये }

जब लगी गज बल अपनो बरत्यो

नेक सरयोँ नही काम ।

निर्बल ह्वे बलराम पुकार्यो

आये आधे नाम ॥१॥


द्रुपद सुता निर्बल भई ता दिन

तजी आये निज धाम ।

दुःस्सासन की भूजा थकित भई

बसन रुप भये श्याम ॥२॥


अपबल तपबल और बाहुबल,

चौथो हैं बलधाम ।

सूर किसोर कृपा ते सब बल,

हारे को हरि नाम ॥३॥

🔆🙏सुने री मैंने निरबल के बल राम🔆🙏

वास्तव में निर्बल के बल राम ही हैं। कई बार मनुष्य घोर विपत्ति में होता है, कोई मार्ग नहीं दिखता है, परिवार, बन्धु, मित्र सब साथ छोड देते हैं, आशा की कोई किरण नही दिखती है तब अचानक से वह विपत्ति अपना अस्तित्व खो देती है।ये कहीं से आने वाली ये मदद राम की ही होती है। अब हम अपने राम को किस रूप में देखते हैं यह हमारे मन, आत्मा, शरीर हमारी परवरिश, सोच, आस्था और विश्वास पर निर्भर करता है।वह सगुण भी हो सकता है और निर्गुण भी।वह घर में ही हो सकता है या बाहर भी। पूजाघर में भी हो सकता है और बिना पूजा के भी। मूर्ती में हो सकता है, पत्थर मे हो सकता है और बिना मूर्ती के भी। 

आज भी जब संपूर्ण विश्व के साथ ही अपने देश के सामने   कोरोना मुह बाये खड़ा है तो अपने उपायों के साथ ही हम उस अदृश्य शक्ति की तरफ भी आशा से देख रहे हैं।यह उन शक्तियों में विश्वास ही है कि हमारे देश का गरीब तबका जिस का रोजगार छिन गया है, रहने का ठिकाना नहीं रहा वो बिना किसी सुविधा या आश्वासन के अपने अपने घरों के लिये पैदल ही निकल पड़ा।ट्रेन व बस बंद हो चुकी थी। उसके पास न पैसा था और न ही साधन।तब भी उसको किसी पर भरोसा था तभी तो वह निकल पड़ा,अपने घर जाने के लिये।इसमें हर जाति एवं धर्म के अनुयायी थे। इनमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी थे।वाल्मीकि, कंबन,तुलसीदास,निराला,फरीद,खुसरो,रहीम,कबीर,नानक, गाँधी, लोहिया,बिस्मिल्लाह खान सभी के राम थे ।वे सब साथ ही निकल पड़े। उनको जो चीज जोडती थी वो थी उनकी गरीबी और मजबूरी और इससे बढ़कर उनका विश्वास।ये शायद वही अन्तिम आदमी था जिसके लिए गांधीजी कहते थे कि कोई भी योजना बनाओ तो देखो कि उसको इससे कोई लाभ मिलेगा कि नही।यही हमारी कसौटी होनी चाहिए ।परन्तु हमारा और देश का दुर्भाग्य है कि हम इस से दूर होते ही रहे। ऐसा नहीं कि हम इससे अनजान रहे,पर आंख मूंदे रहे।आज जब कसौटी पर परखने का अवसर आया तो पता चला कि ये तो केवल हमारी सुविधाओं को बेहतर बनाने में इस्तेमाल होने के लिये बने हैंl इनके रहने खाने का हमने कोई आश्वासन नहीं दिया तभी इन्हें इस तरह पलायन करना पड़ा। प्रशासन ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। 

पर ये जानते थे कि निर्बल के बल राम और इसी भरोसे पर निकल पड़े l इनको रास्ते में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा, फिर भी बड़ी संख्या में लोग इनकी मदद के लिए सामने आ गए। लोग जगह जगह पर खुद भी आगे आए और शासन, प्रशासन पर दबाव बनाया और घर परिवार के पास पहुंचने में सहायता की या जहाँ है वहां रुकने व भोजन की व्यवस्था हुई। ये भी राम का ही एक रूप है। "अप बल,तप बल और बाहु बल ,चौथा है बल राम ,"आज शिलापूजन के बाद अब आवश्यकता इस बात की है कि देश में सद्भाव व भाइचारे का वातावरण बना रहे। रामराज्य की वास्तविक संकल्पना के पथ पर नवनिर्माण का कार्य आगे बढ़े। रामायण में लिखा है " नहीं दरिद्र कोई दुखी ना दीना"। महात्मा गांधी भी यही कहते थे कि हमारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। आज के एक ऐतिहासिक महत्व के कार्य के संपन्न हो जाने से शासन तथा बहुसंख्यक समाज की जिम्मेदारी है कि समाज में सद्भावना का वातावरण बने।सबसे ज्यादा आवश्यकता इस बात की है कि व्हाट्सएप इत्यादि सोशल मीडिया द्वारा भेजे जा रहे  अनसोशल संदेशों पर रोक लगाई जाए।  सत्ता में बैठे जिम्मेदार लोगों को सतर्क रहना होगा कि जमीनी स्तर पर लोगों को चिढ़ाया या भड़काया न जाए, वैमनस्य से दूर रहा जाय तथा सभी स्तरों पर पर सद्भाव बना रहे है।

साभार https://www.shatrangtimes.page/2020/08/sune-ree-mainne-nirabal-ke-bal-fIvwAW.html

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