शनिवार, 5 जून 2021

श्री रामकृष्ण दोहावली (38)~ * भगवान और भक्त *

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(38)

* भगवान क्यों नहीं दिखाई देते  * 

339 पानी ओट काई जस , चिक ओट जस नारि। 

640 तस माया आच्छन्न हरि , भगत हृदय बिहारि।।

तालाब का पानी काई और घास-पत्तियों से ढका होने के कारण उसमें खेलती हुई मछली दिखाई नहीं पड़ती। इसी भाँति मनुष्य की दृष्टि माया के आवरण से आच्छन्न होने के कारण वह अपने हृदय में लेलायमान प्रभु को देख नहीं पाता। 

340 श्री हरि देखहिं सकल जग , पर हरि को नहिं कोय। 

642 प्रभु स्वयं प्रकाश करे , तब ही दर्शन होय।।

अँधरे में गश्त लगाने वाला पहरेदार अपनी लालटेन के उजाले में सब को देख सकता है पर उसे कोई नहीं देख पाता। अगर वह स्वयं अपने लालटेन का प्रकाश अपने चेहरे पर डाले तभी उसे देखा जा सकता है। इसी प्रकार , भगवान भी सब को देखते हैं , परन्तु उन्हें कोई नहीं देख पाता। पर यदि वे कृपा करके स्वयं को प्रकाशित करें तो ही मनुष्य उन्हें देख पाता है। 

*भगवान तथा भक्त* 

346 चीनी पर्वत सम प्रभु , भक्त है चींटी समान। 

656 भाव धरे जस शक्ति निज , न कोउ पूरन ज्ञान।।

भगवान मानो चीनी के पर्वत हैं और भक्तगण चीटियाँ। छोटी चींटी चीनी के पर्वत में से एक छोटा कण ले जाती है और बड़ी चींटी कुछ बड़ा कण ; परन्तु पर्वत जैसा था वैसा ही बना रहता है। इसी प्रकार , भक्तगण भी अनंतभावमय भगवान का एक-एक भाव पाकर ही परिपूर्ण हो जाते हैं ; सम्पूर्ण भावों को कोई ग्रहण नहीं कर पाता। 

345 परमानन्द अमृत के , प्रभु को सागर जान। 

655 पी घूट भर आनंद करे , साधु महन्त महान।।

कलवार की दुकान में बहुत शराब रहती है , पर कोई आधी तो कोई एक या दो बोतल पीकर ही मस्त हो जाता है। इसी प्रकार , भगवान तो अपार आनंद के सागर हैं , परन्तु भक्तगण थोड़ी बहुत मात्रा में उस आनंद का उपभोग कर तृप्त हो जाते हैं। 

 338 बड़ा सूरज छोटा लगे , बहुत दूर आकाश। 

639 तस अनन्त हरि अल्प लगे , प्रभु महिमा प्रकाश।।

सूर्य पृथ्वी से कितने (109)  गुना बड़ा है ?* पर बहुत दूर होने के कारण वह सिर्फ एक थाली जितना बड़ा प्रतीत होता है। इसी प्रकार भगवान अनन्त हैं , परन्तु हम उनसे बहुत दूर होने के कारण उनकी यथार्थ महिमा को नहीं समझ पाते हैं।

347 परमानन्द समुद्र की , कौन बतावे थाह। 

657 तीन घूंट शिव शव भयो , शुक छुवत जड़ राह।।

348 आम बगीचे आये हो , जी भर खा लो आम। 

657 कितने पत्ते पेड़ में , गिनने का क्या काम।।

ब्रह्मसमुद्र की हवा लगने पर मनुष्य पिघल जाता है - अर्थात उसका अहं भाव नष्ट हो जाता है ! वही हवा खाकर सनक , सनातन आदि पांच प्राचीन ऋषि पूरे पिघल गए। नारद दूर से ही ब्रह्मसागर के दर्शन पाकर अपना अस्तित्व खो बैठे और हरिगुण -गान गाते हुए उन्मत्त की तरह पृथ्वी का पर्यटन करने लगे शुकदेव ने तट पर जाकर तीन बार जल का स्पर्श किया , और ब्रह्मभाव में विभोर हो जड़वत विचरण करने लगे।  सद्गुरु महादेव उसमें से तीन चुल्लू जल पी शव की तरह निश्चल पड़े रहे। ऐसे ब्रह्मसमुद्र की भला कौन थाह पाए ? 

349 परमानन्द सागर मँह , नहि डूबन का भय। 

662 डूब सके तो डूब ले , हो करके निर्भय।।

ईश्वर के प्रेम के समुद्र में डूब जाओ। इसमें डूबने से डरो मत , यह तो अमृत समुद्र है ! मैंने एक बार नरेंद्र से कहा , 'ईश्वर रस के सागर हैं। क्या तुझे  इस रस के समुद्र में डुबकी लगाने की इच्छा नहीं होती ? अच्छा , ऐसा सोच कि एक कटोरे में रस भरा है , और तू मक्खी बना है , तब तू कहाँ बैठकर रस पियेगा ? ' नरेंद्र ने कहा , ' मैं कटोरे के किनार पर बैठकर मुंह बढ़कर रस पिऊंगा , क्योंकि ज्यादा बढ़ने पर गिरकर उसमें डूब मरूंगा। ' तब मैं बोला , 'बेटा , सच्चिदानन्द -समुद्र में मरने का भय नहीं है। वह तो अमृत का सागर  है।  उसमें डूबने से मनुष्य मरता नहीं , अमर हो जाता है। ईश्वर के प्रेम में मत्त होने से मनुष्य पागल नहीं हो जाता। '    

341 बापू कहे या बा कहे , पावत प्रेम समान। 

644 तस पण्डित मूरख सब पर , करहि कृपा भगवान।।

उन्हें पा लिया तो सब हो गया। संस्कृत न सीखी तो क्या हुआ ? उनकी कृपा पण्डित मूर्ख सब सन्तानों पर है जो उन्हें पाने के लिए व्याकुल है। जैसे पिता के पांच बच्चे हैं।  पिता का सब बच्चों पर समान स्नेह है।  उनमें से एक दो जन ही 'बाबूजी ' कहकर पुकार सकते हैं। बाकी कोई 'बा ' कहकर पुकारता है , तो कोई 'पा ' - पूरा उच्चारण नहीं कर पाता।  पर जो 'बाबूजी ' कहता है उस पर क्या पिता का प्यार ज्यादा होगा ? और जो केवल 'पा ' कहता है उसपर कम ? पिता जानता है कि बच्चा अभी बहुत छोटा है, साफ 'बाबूजी ' नहीं बोल पाता।  

343 एक आलू सब्जी अनेक , तला सूखी रसदार। 

646 तस साधक रूचि रूप हरि , माँ पिता करतार।।

जिस प्रकार एक ही आलू को अपनी रूचि के अनुसार उबालकर , तलकर , सूखी या रसेदार सब्जी बनाकर खाया जा सकता है, उसी प्रकार जगत्कारण ईश्वर एक होते हुए भी उपासकों की रूचि के अनुसार भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होते हैं , ताकि सभी साधक उन्हें अपने प्रेमास्पद के रूप में पा सकें। किसी के लिए वे दयालु स्वामी या प्रेममय पिता हैं , तो किसी के लिए मधुर हासिनि माता , किसी के लिए सुहृत सखा , तो किसी के लिए प्रिय पति या आज्ञाकारी पुत्र।   

344 भगवन भागवत अरु भगत , तीनों एक ही जान। 

651 नहि भेद तीन एक कहे , रामकृष्ण भगवान।।

भागवत (शास्त्र) , भक्त , भगवान --तीनो एक ही हैं ! 

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[ पृथ्वी और सूर्य की औसत दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है।  उसका व्यास कोई 13 लाख 90 हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग 109 गुना बड़ा हुआ।  प्रकाश की किरण एक सेकेंड में तीन लाख किलोमीटर चलती है। इसके बावजूद सूर्य की रोशनी को हम तक पहुंचने में 8 मिनट 17 सेकेंड लग जाते हैं।] 


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