श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(58)
*मेरी माँ काली ब्रह्म का व्यक्त रूप है *
452 जस धवलता दूध का , दूध से सदा अभिन्न।
857 तस शक्ति और ब्रह्म है , अभेद सदा अभिन्न।।
453 जस सूरज की किरणें , सूरज से नहीं भिन्न।
857 तस शक्ति और ब्रह्म है , अभेद सदा अभिन्न।।
454 मणिप्रभा जस रामकृष्ण , मणि से नहीं है भिन्न।
857 तस शक्ति और ब्रह्म है , अभेद सदा अभिन्न।।
ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं -जैसे अग्नि और उसकी दहनशक्ति। ब्रह्म और शक्ति (माँ या माया?) अभेद है -जैसे मणि और उसकी प्रभा। तुम इनमें से एक को छोड़कर दूसरे को सोच ही नहीं सकते।
455 जग जननी माँ एक है, तिन्ह के रूप अनेक।
860 एक अनेक से पार पुनि , रामकृष्ण की टेक।।
यह जान रखो कि मेरी जगज्जननी माँ एक है , और अनेक भी , फिर वह एक और अनेक के परे भी है।
मेरी ब्रह्ममयी माँ ही सब कुछ बनी है। वह आद्यशक्ति ही जीव-जगत बनी है। वही अनन्तस्वरूपिणी जगत में दैहिक , बौद्धिक , नैतिक , आध्यात्मिक आदि विभिन्न शक्तियों के रूप में प्रकाशित है। मेरी माँ ही वेदान्त का ब्रह्म है। वह ब्रह्म का व्यक्त रूप है।
जैसे , मैं (श्रीरामकृष्ण) कभी वस्त्र पहने रहता हूँ, तो कभी वस्त्रहीन, वैसे ही ब्रह्म भी कभी सगुण हैं , तो कभी निर्गुण।
ब्रह्म जब शक्ति के साथ संयुक्त होता है , तब उस 'सगुण ब्रह्म' कहते हैं। ---वही 'ईश्वर' है !
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