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शनिवार, 5 जून 2021

$$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (42)~ *मनुष्य बनने के लिए गुरु-गृहवास की अनिवार्यता* (मार्गदर्शक नेता की अनिवार्यता) *

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(42)  

मनुष्य बनने के लिए गुरु-गृहवास की अनिवार्यता*

368 जो चाहत भगवान तो , ले लो गुरु से ज्ञान। 

693 सरल सत्य पथ कहहिं तोहि , जस पथिक अनजान।।

जिन जिन के निकट कोई शिक्षा प्राप्त होती हो उन सभी को गुरु न कहकर एक निर्दिष्ट व्यक्ति को ही गुरु कहने की क्या आवश्यकता है ? 

किसी अनजान जगह जाना हो तो जो रास्ता जानता है ऐसे किसी व्यक्ति के निर्देशानुसार ही जाना चाहिए। अनेक लोगों से रास्ता पूछते रहने पर गड़बड़ हो जाती है। वैसे ही ईश्वर ^  के निकट जाना हो तो एक अनुभवी गुरु के निर्देशानुसार चलना चाहिए। इसीलिए एक गुरु का प्रयोजन (अनिवार्य) है। 

369 होत सहाय अदालत में , जस वकील का ज्ञान। 

694 तस सत पथ पथिक को , साधु संत सुजान।।

जो खुद शतरंज खेलते हैं वे बहुत समय नहीं समझ पाते कि कौन सी चाल ठीक होगी , परन्तु जो तटस्थ रहकर खेल देखते रहते हैं , वे खेलने वालों की चाल से अच्छी चाल बता सकते हैं। गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वाले लोग सोचते हैं , कि हम बड़े बुद्धिमान हैं , परन्तु वे धन-मान , विषयसुख आदि में आसक्त रहते हैं। वे स्वयं खेल में डूबे रहते हैं , इसलिए सही चाल का निर्णय सही समय पर नहीं ले पाते हैं। 

परन्तु संसार-त्यागी साधु-महात्मा विषयों में अनासक्त होते हैं। वे संसारियों से अधिक बुद्धिमान होते हैं। वे खुद नहीं  खेलते , इसलिए अच्छी चाल बता सकते हैं। इसीलिए , धर्मजीवन यापन करना हो तो जो साधु महात्मा ईश्वर का ध्यान-चिंतन करते हैं , जिन्होंने उन्हें प्राप्त कर लिया है , उन्हीं की बातों पर विश्वास रखकर चलना चाहिए। यदि तुम्हें मामले-मुकदमें की सलाह चाहिए तो तुम वकील की ही सलाह लोगे न की किसी किसी ऐरे -गैरे की।   

370 जिनके हिय अनुराग है , पावन को भगवान। 

695 बिन प्रयास सद्गुरु मिले , उपदेशहिं सत ज्ञान।।

यदि तुम्हारे भीतर ईश्वर के प्रति ठीक-ठीक अनुराग हो, उन्हें जाने की स्पृहा उत्पन्न हो तो अवश्य ही वे तुम्हें सद्गुरु से मिला देंगे। साधक को गुरु के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती। 

371 जिनके हिय व्याकुल अति , जिन्हके हिय पुकार। 

696 गुरु बिन पावत परम् प्रभु , पावत भव उद्धार।। 

ठीक-ठीक आन्तरिकता के साथ व्याकुल प्राणों से यदि कोई उन्हें पुकार सके तो उसके लिए गुरु की आवश्यकता नहीं होती ; परन्तु साधारणतया ऐसी व्याकुलता नहीं दिखाई देती , इसलिए गुरु की आवश्यकता है। गुरु एक ही होता है , परन्तु उपगुरु अनेक हो सकते हैं। जिस किसी के पास से कुछ शिक्षा प्राप्त हो वही उपगुरु है। अवधूत के पास चौबीस उपगुरु थे। 

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{ ^ यदि माँ काली या इन्द्रियातीत सत्य (Existence-Consciousness-Bliss- Absolute) के निकट जाना हो तो पहले अपनी जन्मजात प्रवृत्ति (Inherent Tendencies) को बदलकर चरित्रवान मनुष्य बनना होगा। और इसके लिए -विष्णुसहस्रनाम में भगवान विष्णु का एक नाम नेता के मूर्तरूप पूज्य नवनीदा जैसे  " विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक प्रशिक्षण परम्परा में प्रशिक्षित) और 'C-IN-C' का बिल्ला ( चपरास) प्राप्त, अनुभवी गुरु (जीवनमुक्त मार्गदर्शक नेता ) की  शरण में जाकर, उनके निर्देशन में  3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है ! इसलिए प्रत्येक मनुष्य के लिए एक गुरु (नवनीदा जैसे मार्गदर्शक नेता) का होना, केवल प्रयोजनीय ही नहीं अनिवार्य भी है ! }    


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