शुक्रवार, 4 जून 2021

$$श्री रामकृष्ण दोहावली (29)-ज्ञानलाभ के लिए कुछ शर्तें -- *मन और उसका स्वभाव*[एकाग्रता (विवेक-दर्शन) का अभ्यास और अनासक्ति (dispassion)

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर 

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(29) 

*ज्ञानलाभ के लिए कुछ शर्तें*  

[एकाग्रता (विवेक-दर्शन)  का अभ्यास और अनासक्ति  (dispassion) ]

271 मन में मुक्ति बीज है , मन में बंधन डोर। 

493 जो जस सोचहि होही तस , अंधियारी अंजोर।।

मन में ही बंधन है और मन में ही मुक्ति। अगर तुम कहो , " मैं मुक्त हूँ।  मैं ईश्वर की सन्तान हूँ ! मुझे कौन बाँध सकता है ! " तो तुम मुक्त हो जाओगे। जिस आदमी को साँप ने काटा है वह अगर पूरे विश्वास और दृढ़ता के साथ कहे कि 'मुझ पर विष नहीं चढ़ा , विष नहीं चढ़ा ! ' तो अवश्य ही उसपर विष का परिणाम नहीं होता। 

270 ज्ञान अगन से जलत मन , त्यागत बंधक भाव। 

490 जस कोयला  जल तजत है , निज काला स्वभाव।।

एक ने कहा था , 'वस्तु का मूल स्वभाव कभी नहीं बदल सकता।' इस पर दूसरे ने उत्तर दिया था , 'जब कोयले में आग प्रवेश कर जाती है , तब उसका स्वभावसिद्ध कालापन भी दूर हो जाता है। ' इसी तरह जब मन भी ज्ञानाग्नि में जल जाता है तो उसका मूल बंधनकारक स्वभाव नष्ट हो जाता है।  

[कौन कहता है कि "Nature and Signature "  कभी बदलता नही ? बस एक चोट की ज़रूरत हैं, अगर ऊँगली पे लगी तो सिग्नेचर बदल जाता है, और दिल पे लगी तो नेचर बदल जाता है। ]  

269 धर विश्वास अरु सरल मन , भज तज संशय भाव। 

489 हिय प्रगटहि आनन्द घन , निज गुण निज स्वभाव।।

जो अपने भावों के राज्य में चोरी - धोखेबाजी नहीं करता वही परमधाम को पहुँच सकता है। अर्थात सरल विश्वास और निष्कपट भाव से ही सच्चिदानन्द की प्राप्ति होती है। 

268 जानतहि माया भगे ,  जस भागत है भूत। 

488 कर विवेक तू जान ले , माया माया दूत।।

जिस आदमी को भूत ने पकड़ा है वह अगर समझ जाये कि उस पर भूत सवार हुआ है तो तुरन्त उसे छोड़ देता है। इसी प्रकार , मायाग्रस्त जीव यदि समझ जाये कि वह मायापाश में बँधा हुआ है तो वह शीघ्र ही उससे मुक्त हो सकता है। 

 272 'मैं मेरा ' अज्ञान है , 'तू तेरा ' है ज्ञान। 

494 तज मैं पन को राम जी , भज ले श्रीभगवान।।

प्रश्न - मैं मुक्त कब होऊँगा ? 

उत्तर - जब 'मैं ' नहीं रहेगा।  ' 'मैं मेरा ' अज्ञान है , 'तू तेरा '  ज्ञान। 

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