शनिवार, 5 जून 2021

$$$श्री रामकृष्ण दोहावली (43) *गुरु-शिष्य सम्बन्ध*

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(43)

*गुरु-शिष्य सम्बन्ध*  

372 पावत मंत्र मुमक्षु नर , जल स्वाति की नाई। 

697 साधहि पुनि पुनि सीप सम , डूब प्रेम गहराई।।

समुद्र में एक प्रकार की सीपी होती है , जो स्वाति नक्षत्र की वर्षा की एक बून्द के लिए सदा मुँह खोले पानी पर तैरती रहती है , और स्वाति की वर्षा का एक बिन्दु जल मुँह में पड़ते ही वह मुँह बन्द कर सीधे समुद्र की गहरी सतह में डूब जाती है ; तथा वहां उस जलबिन्दु से मोती तैयार करती है। 

इसी तरह, यथार्थ मुमुक्षु साधकभी सद्गुरु की खोज में व्याकुल होकर इधर-उधर भटकता रहता  है परन्तु एक बार सद्गुरु के निकट मंत्र ('तत्वमसि' का महावाक्य) पा जाने के बाद  वह साधना के अगाध जल में डूब जाता है तथा अन्य किसी ओर ध्यान न देते हुए सिद्धिलाभ होने तक साधना में लगा रहता है।    

373 गुण दोष नहि देखिये , ठाड़ गुरु के द्वार। 

699 साधु साधो मंत्र महत , उतरन सागर पार।।

कोई व्यक्ति अपने गुरु के बारे में तर्क-वितर्क कर रहा था। श्रीरामकृष्ण ने उससे कहा , " तुम फिजूल समय क्यों बर्बाद कर रहे हो ? तुम्हें इन सब बातों से क्या मतलब ? तुम्हें मोती चाहिए तो मोती लेकर सीपी को फेंक क्यों नहीं देते ? गुरु ने जो मंत्र दिया है उसे लेकर डूब जाओ , गुरु के दोष-गुण की ओर मत देखो। " 

374 गुरु निन्दा नहि कीजिये , निन्दा न सुनिए कान। 

700 कर विरोध जस मति बल ,या फिर तज स्थान।। 

कोई तुम्हारे गुरु की निन्दा करता हो तो कभी मत सुनो। गुरु मातापिता से भी बड़े हैं। यदि कोई तुम्हारे सामने तुम्हारे मातापिता की निन्दा करे तो क्या तुम उसे सहन करोगे ? यदि जरूरत पड़े तो लड़कर भी अपने गुरु की मर्यादा को बनाये रखो। 

375 गुरुपद भक्ति जिनके हिय , अटूट अटल अपार। 

702 परिजन पुरजन गुरुवर के देखत , उमड़हि प्यार।।

सच्ची भक्ति हो तो सामान्य वस्तुओं से भी ईश्वर का उद्दीपन होकर साधक भाव में विभोर हो जाता है। चैतन्य महाप्रभु की कथा सुनी नहीं ? एक बार किसी गांव से गुजरते समय, चैतन्यदेव ने सुना कि हरिसंकीर्तन में बजने वाला मृदंग इसी गाँव की मिट्टी से बनता है। सुनते ही वे बोल उठे 'इस मिट्टी से मृदंग बनता है !' और एकदम बाह्यज्ञान खोकर भावसमाधि में मग्न हो गए। इस मिट्टी से मृदंग बनता है , उस मृदंग को बजाते हुए हरिनाम गाया जाता है - वे हरि सब के प्राणों के प्राण हैं , सुन्दर के भी सुन्दर हैं ! -इस तरह की विचार -परम्परा एकदम क्षणमात्र में ही उनके चित्त में खेल गयी , और उनका चित्त हरि में स्थिर हो गया।   

इसीप्रकार , जिसमें गुरु के प्रति सच्ची भक्ति होती है उसे गुरु के सगे -सम्बन्धियों को देखकर गुरु का ही उद्दीपन होता है। इतना ही नहीं , गुरु के गाँव के लोगों को देखने पर भी उसे उस प्रकार की उद्दीपना होती है और वह उन्हें प्रणाम कर उनकी चरणधूलि ग्रहण करता है , उन्हें खिलातापिलाता है , उनकी सेवा-सुश्रुषा करता है। 

ऐसी अवस्था होने पर फिर गुरु के दोष नहीं दिखाई देते। इसी अवस्था में यह कहा जा सकता है कि 'यद्यपि मेरा गुरु कलवार घर जाय , तथापि मेरा गुरु नित्यानन्द राय। ' अन्यथा , मनुष्य में कुछ न  कुछ दोष तो रहेंगे ही -केवल गुणही गुण नहीं रह सकते। परन्तु अपनी भक्ति के कारण वह शिष्य गुरु को मनुष्य की दृष्टि से नहीं देखता , वह उन्हें भगवान के ही रूप में देखता है। 

    जिस प्रकार पीलिया हो जाने पर सब कुछ पीला ही पीला दिखाई पड़ता है , उसी प्रकार इस शिष्य को भी सब कुछ ईश्वरमय ही दिखाई देता है। उसकी भक्ति ही उसे दिखा देती है कि ईश्वर ही सबकुछ हैं - वे ही गुरु , पिता , माता , मनुष्य , पशु , जड़ , चेतन - सब कुछ बने हैं।   

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*मनुष्य बनने के लिए 'संन्यासी और गृहस्थ' दोनों को विषयासक्ति (Inherited tendencies) छोड़ना अनिवार्य है* 

*स्वामी विवेकानन्द - कैप्टन सेवियर 'Be and Make' वेदान्त नेतृत्व-प्रशिक्षण परम्परा में प्रशिक्षण प्राप्त करने से जब  भवतारिणी माँ काली पर प्रेम हो जाता तब पाप आदि स्वतः भाग जाते हैं

[(2 जून, 1883)परिच्छेद ~ 35, श्रीरामकृष्ण वचनामृत  ]

श्रीरामकृष्ण गाड़ी में आते आते राखाल, मास्टर आदि भक्तों से कह रहे हैं, “देखो, उन पर प्रेम हो जाने पर  (श्री ठाकुर देव की इष्टदेवी भवतारिणी माँ काली पर प्रेम हो जाने से ) पाप आदि सब स्वतः भाग जाते हैं, जैसे धूप से मैदान के जलाशय का जल स्वतः ही सूख जाता है ।  

“ विषय की वासना तथा कामिनी - कांचन में आसक्ति (मोह) रखने से कुछ नहीं होता । यदि 'कामिनी -कांचन ' के प्रति  जन्मजात आसक्ति ((Inherited tendencies) बनी ही रहे  तो संन्यास  लेने पर भी कुछ नहीं होता - जैसे थूक को फेंककर फिर चाट लेना।” 

{"You see, sin flies away when love of God  grows in a man's heart, (श्री ठाकुर देव की इष्टदेवी भवतारिणी माँ काली पर प्रेम हो जाने से )  even as the water of the reservoir dug in a meadow dries up under the heat of the sun. But one cannot love God if one feels attracted to worldly things, to 'woman and gold'.  Merely taking the vow of monastic life will not help a man if he is attached to the world.(Inherited tendencies) It is like swallowing your own spittle after spitting it out on the ground."

थोड़ी देर बाद गाड़ी में श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं, “ब्राह्मसमाजी लोग साकार को नहीं मानते । (हँसकर- माँ भवतारिणी काली को ) नरेन्द्र कहता है, ‘पुत्तलिका’ ! (God with form is a mere idol)  फिर कहता है, ‘वे (श्री ठाकुर देव) अभी तक कालीमन्दिर में जाते हैं ।’ 

{"The members of the Brahmo Samaj do not accept God with form. Narendra says that God with form is a mere idol. He says further: 'What? He (Referring to the Master.) still goes to the Kali temple!'"

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[Swami Vivekananda - Captain Sevier'Be and Make' Vedanta Leadership-Training Tradition] { यदि माँ काली या इन्द्रियातीत सत्य (Existence-Consciousness-Bliss- Absolute) के निकट जाना हो तो पहले अपनी जन्मजात प्रवृत्ति (Inherent Tendencies) को बदलकर चरित्रवान मनुष्य बनना होगा। और इसके लिए -विष्णुसहस्रनाम में भगवान विष्णु का एक नाम नेता के मूर्तरूप पूज्य नवनीदा जैसे  " विवेकानन्द -कैप्टन सेवियर वेदान्त शिक्षक प्रशिक्षण परम्परा में प्रशिक्षित) और 'C-IN-C' का बिल्ला ( चपरास) प्राप्त, अनुभवी गुरु (जीवनमुक्त मार्गदर्शक नेता ) की  शरण में जाकर, उनके निर्देशन में  3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है ! इसलिए प्रत्येक मनुष्य के लिए एक गुरु (नवनीदा जैसे मार्गदर्शक नेता) का होना, केवल प्रयोजनीय ही नहीं अनिवार्य भी है !   एथेंस का सत्यार्थी (मुमुक्षु या ब्रह्मजिज्ञासु -माँ काली के निकट जाने के लिए हृदय से अहंकार को मिटाकर श्मशान बनाने की पद्धति सीखने के लिए) 14 अप्रैल 1986 के हरिद्वार कुम्भ में देवराहा बाबा से भेंट करता है, या कनखल, हरिद्वार , रामकृष्ण मिशन आश्रम में खोज करता है, फिर सद्गुरु के निकट 27 मई 1987 को, मंत्र पा जाने के बाद, अनुभवी गुरु (बिल्ला -प्राप्त नेता) नवनीदा के साथ निर्जन में (वार्षिक युवा प्रशिक्षण शिविर में) -जन्मजात प्रवृत्ति (Inherent Tendencies) को बदलकर चरित्रवान मनुष्य बनने के संकल्प-पत्र , "अब लौ नसानी अब न नसैहौं " प्रतिज्ञा पत्र (Auto Suggestion form) पर हस्ताक्षर करके , उसी अनुभवी नेता के निर्देशन में 3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। और तथा अन्य किसी ओर ध्यान न देते हुए सिद्धिलाभ होने तक साधना में लगा रहता है। फिर  14 अप्रैल 1992 , रोहनिया ,ऊँच , बनारस के अद्भुत घटनाक्रम में चिदानन्द रूपः शिवोहं शिवोहं तो अभी देखता हूँ मरता कौन है ?......  और भ्रममुक्त /जीवन्मुक्त हो जाता है !]  

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