श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(31)
*इष्टदेवता पर एकनिष्ट भक्ति हो तो ईश्वरदर्शन होता है*
285 जस जल की चाहत अगर , खोदो कूप एक ठौर।
528 तस दरसन की आस में , भज निज इष्ट न और।।
एक आदमी कुआँ खोदने गया। थोड़ा सा खोदने के बाद ही पानी नहीं आते देख उसने वह जगह छोड़ दी और दूसरी जगह खोदना शुरू किया। पर जब बहुत सी जमीन खोद चुकने के बाद वहाँ भी पानी नहीं मिला तब उसने वह जगह भी छोड़ दी और तीसरी जगह कुआँ खोदने लगा पर फिर वही हाल हुआ। इस प्रकार आखिर तक वह कुआँ नहीं खोद पाया। पहले ही स्थान पर यदि वह धीरज के साथ खोदते रहता तो उसे इतनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ती और पानी भी मिल जाता। धर्ममार्ग पर भी इसी तरह करते हुए बहुत से लोग हताश होकर सारा विश्वास गँवा बैठते हैं।
282 दो बकलमा नाथ को , ताको दो सब भार।
519 एहि सम सीधा राह नहिं , सहज सरल उद्धार।।
ईश्वर को ब-कलमा दे देना, 'मैं '-पन बिलकुल न रखते हुए ईश्वर की ही इच्छा पर अपना सब कुछ सौंप देना - इससे बढ़कर सरल और सीधा रास्ता और नहीं है।
281 कर अर्पण प्रभु चरण सब , सहित भगति विश्वास।
515 शीघ्रहि दरसन पाहिं नर ,भजहि जे तज सब आस।।
जो व्यक्ति सरल भक्ति-विश्वास के साथ प्रभु के चरणों में सर्वस्व समर्पण कर देता है , उसे बहुत जल्दी ईश्वरप्राप्ति होती है।
283 ईश्वर निर्भर होइए , जस बिल्ली कै लाल।
520 नहिं व्यापत भव ब्याधि है , करे हरि देखभाल।।
बन्दर का बच्चा अपनी माँ को कसकर पकड़े हुए उससे लिपटा रहता है , परन्तु बिल्ली का बच्चा पड़े-पड़े सिर्फ 'म्याऊं म्याऊं ' किया करता है ; बिल्ली स्वयं ही उसे मुंह में पकड़कर उठा ले जाती है। बन्दर का बच्चा यदि हाथ छोड़ दे तो नीचे गिर पड़ेगा। क्योंकि उसने स्वयं अपनी माँ को पकड़ रखा है। परन्तु बिल्ली के बच्चे को गिरने का भय नहीं है , क्योंकि उसे उसकी माँ ने पकड़ रखा है। पुरुषकार और ईश्वरनिर्भरता में यही अन्तर है।
284 रहो सदा संसार में , जूठी पत्तल नाइ।
524 एक भरोसे राम के , उड़हि जहाँ उड़ाई।।
संसार में आँधी में उड़नेवाली जूठी पत्तल की तरह रहा करो। जूठी पत्तल आँधी के निर्भर रहती है। आँधी उसे जहाँ उड़ा ले जाती है , वहीँ जाती है। कभी -कभी किसी घर के भीतर तो कभी कूड़े-कचरे में। इसी तरह , प्रभु ने तुम्हें संसार में रख छोड़ा है , तो अभी संसार में रहो ; फिर जब वे तुम्हें इससे अच्छी जगह पर ले जायेंगे तब उनके भरोसे वहीं रहना। उन पर निर्भर होकर निर्लिप्त रूप से पड़े रहना।
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