शनिवार, 5 जून 2021

श्री रामकृष्ण दोहावली (34)~*चरित्रगठन हुए बिना ईश्वर लाभ नहीं होता* उद्यमशीलता-धैर्य - अध्यवसाय के साथ, 3-H विकास के 5 अभ्यास *

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर 

(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली ) 

(34)

 *चरित्रनिर्माण या 3-H विकास के 5 अभ्यास *  

[प्रार्थना ,मनःसंयोग ,व्यायाम , स्वाध्याय और विवेक-प्रयोग]  

310 उच्च भाव जगाये रखे , पुनि पुनि धर धर ध्यान। 

574 फूँक फूँक जस रखे नर , आग सदा संज्ञान।।

प्रश्न - कभी कभी कुछ समय के लिए मन में कैसा उच्च भाव आता है , परन्तु वह अधिक समय तक टिकता नहीं। ऐसा क्यों होता है ? 

उत्तर - बाँस की आग जल्दी बुझ जाती है , उसे फूँक -फूँककर प्रज्ज्वलित रखना पड़ता है। मन में उच्च भाव रखने के लिए निरन्तर साधना करनी पड़ती है। 

312 मन घुंघराले बाल है, खींच रखो तो ठीक। 

578 जो छोड़ा गड़बड़ करे , मानो नटखट ढीठ।। 

मन मानो घुँघराले बाल की तरह होता है। घुँघराले बाल को जबतक खींचकर रखो तबतक वह सीधा रहता है , छोड़ देते ही फिर सिकुड़ जाता है। इसी भाँति , मन को भी जबतक जबरदस्ती खींचकर वश में रखा जाता है , तभी तक वह ठीक रहता है, ढीला छोड़ते ही गड़बड़ करने लगता है 

311 दूध उफ़न ऊपर उठे , जब तक निचे आग। 

576 तस मनवा उर्ध्वमुखी रहे , पाकर जप तप आग। 

जबतक नीचे आग है तभी तक दूध उफनकर ऊपर को उठता है। आग को हटा लेने पर वह फिर ज्यों-का-त्यों हो जाता है। साधना-अवस्था में भी जब तक साधना अग्नि जलती रहती है  तभी तक मन उर्ध्वगामी रहता है। 

[साधना अग्नि =चरित्रनिर्माण या 3-H विकास के 5 अभ्यास]

'चरित्रगठन हुए बिना ईश्वर लाभ नहीं होता' 

उद्यमशीलता 

307 इच्छावान उद्यमशील , सतत भजन में लीन। 

568 पावहिं दरसन सहज नर , नहि आलस बलहीन।। 

किसान लोग जब बैल खरीदने जाते हैं , तो अच्छा बैल कैसे पहचानते हैं , जानते हो ? इस बारे में वे बड़े जानकार होते हैं। वे बैल की पूँछ पर हाथ लगाकर देखते हैं ; जिस बैल में दम नहीं होता वह पूँछ पर हाथ लगाने से ही अंग ढीला कर जमीन पर लेट जाता है। परन्तु जो बैल फुर्तीला , तेज होता है वह पूँछ को छूते ही चिढ़कर उछलने लगता है। किसान लोग ऐसे ही बैल को खरीदा करते हैं।

 जीवन में सफलता पानी हो तो अपने भीतर पुरुषार्थ , मर्दानापन (पौरुष) रखना चाहिए। कई लोग ऐसे होते हैं जिनमें कोई दम ही नहीं होता - मानो दूध में भिगोया हुआ चिउड़ा हो , नरम और ठण्ढा ! भीतर कोई जोर ही नहीं ! उद्यम करने की सामर्थ्य नहीं ! इच्छाशक्ति नहीं ! ऐसे लोग जीवन में कभी सफल नहीं होते। 

[ चरित्र गठन में आलस करने से ईश्वर लाभ नहीं होता ]

धैर्य     

308 बंसी डार मछली धरे , धर धीरज मन प्राण। 

569 तस धर धीरज भज हरि , मिलहि श्री भगवान।। 

बड़ी मछली पकड़नी हो तो मनुष्य को पानी में बंसी डालकर घण्टों धीरज धर कर बैठे रहना पड़ता है। तब कहीं बड़ी मछली फँसती है। इसी तरह जो धैर्य के साथ साधन-भजन करता रहता है उसे अन्त में अवश्य ही भगवान लाभ होता है। 

अध्यवसाय 

309 गीरत उठत बछड़ा सीखे , खड़े होवन का ज्ञान। 

572 तस साधक गीरत उठत , पावत है भगवान।।

 बछड़ा बीसों बार गिरता बीसों बार उठता है , तब कहीं ठीक से खड़े होना सीखता है। साधना में भी अनेक बार गिरना और उठना पड़ता है , तब जाकर सिद्धि मिलती है। 

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