श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(37)
ईश्वर के लिए व्याकुलता
329 इसी जन्म में इसी क्षण , पावहुँ श्री भगवान।
625 तीव्र तरस अस होहिं जब , देहि दरस भगवान।।
इसी जन्म में ईश्वर को प्राप्त करूँगा। तीन दिन में प्राप्त करूँगा। एक ही बार उनका नाम लेने उन्हें प्राप्त कर लूँगा। ' इस प्रकार की तीव्र भक्ति होनी चाहिए , तभी भगवत्प्राप्ति (God Realization) होती है। ' हो रहा है , हो जायेगा ' इस प्रकार की मंद भक्ति ठीक नहीं।
325 डूबत चाहे स्वास जस , किरपन चाहे धन।
619 तस व्याकुल हो चाह प्रभु, होहि तुरत दर्शन।।
कृपण व्यक्ति जिस प्रकार सोने- चाँदी के लिए व्याकुल होता है , भगवान के लिए उसी प्रकार व्याकुल होओ।
328 सतीही पति प्रिय- कृपण धन , विषयी विषय-प्रेम।
623 तीन प्रेम मिल एक होहिं जब , पावहि दर्शन नेम।।
भगवान के प्रति किस प्रकार का आकर्षण होना चाहिए ? सती का पति की ओर , कृपण का धन की ओर तथा विषयी का विषय की ओर जो आकर्षण होता है , उतना यदि भगवान के प्रति हो तो उनका लाभ होता है।
326 स्वान सिर रहे घाव जब , रहे सदा बेचैन।
621 तस दर्शन को तरस जब , तुरत जुड़ावहिं नैन।।
भगवान प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की व्याकुलता चाहिए , जानते हो ? सिर में घाव हो जाने पर कुत्ता जिस प्रकार बेचैन होकर दौड़ता फिरता है , भगवान के लिए भी उसी प्रकार की छटपटाहट चाहिए।
327 सहज सरल व्याकुल मन से , हरि को लो पुकार।
622 सुन व्याकुल पुकार हरि , दौड़े आवहि द्वार।।
हे मन , श्यामा माँ को एक बार ठीक -ठीक आन्तरिकता के साथ पुकार , देखें तो सही वह आये बिना कैसे रह सकती है। " ठीक-ठीक हृदय से पुकारा जाये तो भगवान दर्शन दिए बिना नहीं रह सकते।
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1 टिप्पणी:
जय भगवान श्री रामकृष्ण देव|❤|🙏
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