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Friday, June 4, 2021

*Wrong Identification -अस्मिता * श्री रामकृष्ण दोहावली (3) * जीव तथा बन्धन * तीन प्रकार की गुड़ियाँ हैं - एक नमक की , एक कपड़े की और एक पत्थर की। नमक की गुड़िया : मानो (जीव कोटि का मनुष्य ) अपने अस्तित्व को सर्वव्यापी विराट ब्रह्म के अस्तित्व में लीन कर उसके साथ एकरूप हो जाता है, मार्गदर्शन के लिए वापस नहीं लौटता । कपड़े की गुड़िया : मानो भक्ति रस से सराबोर उस माँ काली के भक्त मार्गदर्शक नेता 'C-IN-C नवनीदा' का प्रतीक है; जो भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए निर्विकल्प समाधि का भी त्याग कर (अर्थात अपने व्यष्टि अहं को माँ जगदम्बा के मातृहृदय के सर्वव्यापी विराट 'मैं '-बोध में रूपांतरित कर) वापस लौट आता है ! पत्थर की गुड़िया : मानो बद्ध संसारी जीव की प्रतिक है *सभी मनुष्य स्वरूपतः सच्चिदानन्द ही हैं , अवस्थाभेद से चार श्रेणी के होते हैं --बद्ध , मुमक्षु , मुक्त और नित्यमुक्त ! मनुष्य वास्तव में सच्चिदानन्द-स्वरुप ही है, लेकिन अहं के आवरण से अपने यथार्थ स्वरुप को भूल बैठा है !

 

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

 स्वामी राम'तत्वानन्द रचित -श्री रामकृष्ण दोहावली 

* जीव तथा बन्धन *   

23 रामकृष्ण कह जीव के , हौवत चार प्रकार। 

34 बद्ध मुमुक्षु मुक्त और नित्य-मुक्त जग सार।। 

वस्तुतः सभी जीवों का यथार्थ स्वरुप एक-सच्चिदानन्द ही है , किन्तु अवस्थाभेद से वे चार श्रेणी के होते हैं --बद्ध , मुमक्षु , मुक्त और नित्यमुक्त ! 

24 बद्ध जीव तेहि जानिये , प्रिय जाको संसार। 

35 जाल सहित कीच में रहे , तिन्ह महँ सुख हजार।।

"किसी मछुए ने नदी में जाल डाला। जाल में बहुत सी मछलियाँ फँसी। कुछ मछलियाँ तो जाल में पड़कर एकदम शान्त, निश्चेष्ट पड़ी रहीं -उन्होंने बाहर निकलने की बिल्कुल कोशिश नहीं की ; कुछ ने भागने की बहुत कोशिश की , काफी उछल-कूद मचाई किन्तु वे भाग न पाईं ; और कुछ किसी तरह कूद -फाँदकर भाग निकली। इसी प्रकार संसार में भी तीन प्रकार के जीव होते हैं - बद्ध जीव , जो कभी मुक्त होने का प्रयत्न नहीं करते ; मुमुक्षु जीव , और मुक्त -जिन्होंने मुक्ति प्राप्त कर ली है।" 

25 मुमुक्षु तिन्हको जानिये , हरि से करे लगाव। 

35 देख जाल छटपट करे , करत प्रयास बचाव।। 

26 मुक्त जीव तेहि जानिए , कर साधना हजार। 

35 कूद जाल जो बच चले , भवसागर के पार। 

27 नित्य-मुक्त है मुक्त सदा , बंधे न माया जाल। 

35 जस नारद शुकदेव जस , मुक्त सदा त्रिकाल।

 तीन प्रकार की गुड़ियाँ हैं - एक नमक की , एक कपड़े की और एक पत्थर की। यदि इन तीनों को समुद्र में डुबो दिया जाए तो पहली, नमक की गुड़िया बिल्कुल घुल जाएगी , उसके आकार (नाम-रूप) का अस्तित्व ही नहीं रहेगा। दूसरी कपड़े की गुड़िया बहुत सा पानी सोख लेगी ,लेकिन उसका आकार पूरा नष्ट नहीं होगा

 नमक की गुड़िया : मानो (जीव कोटि का मनुष्य ) मुक्त जीव की प्रतीक है ; जो अपने अस्तित्व को सर्वव्यापी विराट ब्रह्म के अस्तित्व में लीन कर उसके साथ एकरूप हो जाता है, (मार्गदर्शन के लिए वापस नहीं लौटता ) । 

कपड़े की गुड़िया : कपड़े की गुड़िया मानो भक्ति रस से सराबोर उस माँ काली के भक्त मार्गदर्शक नेता (लोक-शिक्षक) का, ईश्वर-कोटि के मनुष्य (विज्ञानी, नेता, जीवनमुक्त शिक्षक 'C-IN-C नवनीदा' ) का प्रतीक है; जो भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए निर्विकल्प समाधि का भी त्याग कर (अर्थात अपने व्यष्टि अहं को माँ जगदम्बा के मातृहृदय के सर्वव्यापी विराट 'मैं '-बोध में रूपांतरित कर) वापस लौट आता है ! वैसा जीवन्मुक्त शिक्षक/ नेता  ईश्वरीय आनन्द और ज्ञान से सदैव परिपूर्ण रहता है।[कपड़े की गुड़िया = भक्त अर्थात विज्ञानी (जीवनमुक्त) ]   

 पत्थर की गुड़िया : मानो बद्ध संसारी जीव की प्रतिक है , जो यथार्थ ज्ञान का कण मात्र भी आत्मसात नहीं करता। 

चेतावनी 38 :- जिस प्रकार सभी गुझियाँ (पेंड़किया) ऊपर से एक ही मैदे से बनी हुई होती हैं; पर उनके भीतर अलग-अलग किस्म की पीठी भरी हुई होती है - किसी के भीतर सूजी , किसीके भीतर नारियल की , तो किसी में खोये की। पीठी के भेद से गुझियों के प्रकार भिन्न हो जाते हैं। उसी प्रकार सभी मनुष्य एक ही उपादान से निर्मित होते हुए भी अन्तःकरण की पवित्रता के तारतम्य से गुण में भिन्न हो जाते हैं।   

20 जीव सदा आनन्दमय , सच्चिदानन्द स्वरुप। 

28 पर अधीन हो अहम के, भूल  बैठा निज रूप।। 

जीव वास्तव में सच्चिदानन्द-स्वरुप है, किन्तु 'अहंभाव' के कारण वह विभिन्न उपाधियों (अस्मिता -  wrong identification) में उलझकर अपने यथार्थ स्वरुप को भूल बैठा है। 

21 साँप , केंचुली अलग जस , तस आत्मा अरु देह। 

30 नाशवान है देह सदा , आत्मा अमर विदेह।।

जिस प्रकार साँप केंचुली से अलग होता है , उसी प्रकार आत्मा भी देह से अलग होती है।  

22 धुँआ रंगे दीवार को , रंग न सके आकाश। 

32 तस सुख दुःख बस देह को , नहिं आत्मा अविनाश ।। 

वेदान्तवादी कहते हैं कि आत्मा पूर्ण निर्लिप्त है। अविनाशी आत्मा पर सुख -दुःख, पाप-पुण्य आदि  कोई प्रभाव नहीं डाल सकते ; किन्तु देहाभिमानी व्यक्ति को क्लेश दे सकते हैं। जिस प्रकार धुआँ दीवार को काला कर सकता है , पर आकाश को कुछ नहीं कर सकता।     

28 दुष्ट सज्जन सन्त सब , मानहु एक एक खोल। 

37 रुई रूप हरि बसत नित , सकल हृदय अनमोल।।

मनुष्य मानो तकिये के गिलाफ जैसे हैं।  ऊपर से देखने पर कोई गिलाफ लाल , कोई नीला, तो कोई काला होता है। परन्तु सभी के भीतर एक ही रुई है। उसी प्रकार , कोई मनुष्य देखने में सुन्दर है , तो कोई काला , कोई सज्जन है तो कोई दुष्ट , किन्तु सब के भीतर एक ही परमात्मा विराजमान हैं। 

       चेतावनी 40 :- यह ठीक है कि बाघ के भीतर भी परमेश्वर विद्यमान है , पर इसके कारण उसके गले लगने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बाघ को नहीं मालूम कि उसके भीतर परमेश्वर हैं। उसी प्रकार यद्यपि अत्यन्त दुर्जन व्यक्तियों के भीतर भी ईश्वर विराजमान हैं , तथापि उनकी संगति करना उचित नहीं। 

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1 comment:

Manohar Mandal said...

अतिसुंदर दोहे जो शाश्वत सत्य को उजागर कर रहे हैं|इन दोहे को हमें बार बार पढने की अवश्यकता है,तभी हम अपने शाश्वत स्वरूप की ओर अग्रसर हो सकते हैं|
जय भगवान श्री रामकृष्ण|❤|🙏|सभी का मंगल हो!