श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(29)
*ज्ञानलाभ के लिए कुछ शर्तें*
[एकाग्रता (विवेक-दर्शन) का अभ्यास और अनासक्ति (dispassion) ]
271 मन में मुक्ति बीज है , मन में बंधन डोर।
493 जो जस सोचहि होही तस , अंधियारी अंजोर।।
मन में ही बंधन है और मन में ही मुक्ति। अगर तुम कहो , " मैं मुक्त हूँ। मैं ईश्वर की सन्तान हूँ ! मुझे कौन बाँध सकता है ! " तो तुम मुक्त हो जाओगे। जिस आदमी को साँप ने काटा है वह अगर पूरे विश्वास और दृढ़ता के साथ कहे कि 'मुझ पर विष नहीं चढ़ा , विष नहीं चढ़ा ! ' तो अवश्य ही उसपर विष का परिणाम नहीं होता।
270 ज्ञान अगन से जलत मन , त्यागत बंधक भाव।
490 जस कोयला जल तजत है , निज काला स्वभाव।।
एक ने कहा था , 'वस्तु का मूल स्वभाव कभी नहीं बदल सकता।' इस पर दूसरे ने उत्तर दिया था , 'जब कोयले में आग प्रवेश कर जाती है , तब उसका स्वभावसिद्ध कालापन भी दूर हो जाता है। ' इसी तरह जब मन भी ज्ञानाग्नि में जल जाता है तो उसका मूल बंधनकारक स्वभाव नष्ट हो जाता है।
[कौन कहता है कि "Nature and Signature " कभी बदलता नही ? बस एक चोट की ज़रूरत हैं, अगर ऊँगली पे लगी तो सिग्नेचर बदल जाता है, और दिल पे लगी तो नेचर बदल जाता है। ]
269 धर विश्वास अरु सरल मन , भज तज संशय भाव।
489 हिय प्रगटहि आनन्द घन , निज गुण निज स्वभाव।।
जो अपने भावों के राज्य में चोरी - धोखेबाजी नहीं करता वही परमधाम को पहुँच सकता है। अर्थात सरल विश्वास और निष्कपट भाव से ही सच्चिदानन्द की प्राप्ति होती है।
268 जानतहि माया भगे , जस भागत है भूत।
488 कर विवेक तू जान ले , माया माया दूत।।
जिस आदमी को भूत ने पकड़ा है वह अगर समझ जाये कि उस पर भूत सवार हुआ है तो तुरन्त उसे छोड़ देता है। इसी प्रकार , मायाग्रस्त जीव यदि समझ जाये कि वह मायापाश में बँधा हुआ है तो वह शीघ्र ही उससे मुक्त हो सकता है।
272 'मैं मेरा ' अज्ञान है , 'तू तेरा ' है ज्ञान।
494 तज मैं पन को राम जी , भज ले श्रीभगवान।।
प्रश्न - मैं मुक्त कब होऊँगा ?
उत्तर - जब 'मैं ' नहीं रहेगा। ' 'मैं मेरा ' अज्ञान है , 'तू तेरा ' ज्ञान।
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2 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया कार्य
बहुत अच्छा ज्ञान वर्धक उपदेश जो शाश्वत सत्य को उजागर कर रहा है|
जय भगवान श्री रामकृष्ण देव|🙏
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