श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर
(स्वामी राम'तत्वानन्द रचित- श्री रामकृष्ण दोहावली )
(24)
* वासनात्याग *
240 हिन्चा साग है साग नहि, मिश्री नहीं मिठाई।
434 तस ज्ञान की कामना ,कामना नहीं रे भाई।।
' हिन्चा साग' की गिनती सागों में नहीं होती , मिश्री मिठाइयों में नहीं गिनी जाती। हिन्चा साग या मिश्री स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं , वरन उनसे तो लाभ ही होता है। प्रणव या ओंकार की गणना शब्दों में नहीं है , यह ब्रह्म का प्रतीक है। इसी प्रकार भक्ति या ज्ञान की कामना को कामनाओं में नहीं गिना जा सकता।
[परम् सत्य को जानने की उत्कट स्पृहा (लालसा) सत्यस्वरूप ईश्वर का दर्शन करवा देती है!]
238 देव भाव जस जस बढ़े , तस तस दोष फुराय।
431 जैसे फल के लगतहि, फूल सहज झड़ जाय।।
प्रश्न -मनुष्यसुलभ कामादि दुर्बलता को कैसे दूर किया जाय ?
उत्तर - पेड़ पर जब फल आता है तो फूल अपने आप झड़ जाता है। इसी तरह मनुष्य में दैवी भाव का विकास होने पर दोष-दुर्बलता आदि मानवीय भाव अपने आप दूर हो जाते हैं।
[मनुष्य के तीन प्रमुख अवयव -देह,मन और हृदय (3-H) का विकास होने पर पशु भाव (अर्थात आहार , निद्रा , भय और मैथुन) में आसक्ति दूर हो जाती है , फिर दैवी भाव - अर्थात चरित्र के 24 गुण रूपी 'फल' का विकास होने पर घृणा, स्वार्थपरता आदि मानवीय-दुर्बलता रूपी 'फूल' अपने आप झड़ जाता है।]
237 आसक्ति जस जस घटे , होवहि तस तस ज्ञान।
429 तज आसक्ति अभय रहो , कह ठाकुर सुजान।।
संसार के प्रति जितनी अधिक आसक्ति होगी , ज्ञान प्राप्ति की सम्भावना उतनी ही कम होगी। संसरासक्ति जितनी कम होगी , ज्ञान-प्राप्ति की सम्भावना भी उतनी अधिक होगी।
239 भगवत सुख सम सुख नहिं , सब सुख धूल समान।
433 कहँ रजनी उड़गन अरु , कहँ दिनकर भगवान।।
प्रश्न -भोगसुख का आकर्षण कैसे दूर हो सकता है ?
उत्तर - सर्व सुखों के घनीभूत मूर्तिस्वरूप भगवान का लाभ होने पर ही यह सम्भव होता है। जो उन्हें प्राप्त कर लेता है उसका मन संसार के तुच्छ , असार विषयसुखों के प्रति आकर्षित नहीं होता।
233 गिरत सरल उठत कठिन , संसार कुप अंधेर।
425 रहो सजग कह रामकृष्ण , फिसल पड़े नहि पैर।।
गहरे कुएँ के किनारे खड़ा हुआ आदमी हर समय सावधान रहता है ताकि वह कुएँ में गिर न पड़े। इसी प्रकार, संसार में रहते हुए मनुष्य को सदा वासनाओं से सावधानी बरतनी चाहिए। अगर कोई एक बार इस वासनापूर्ण संसार-कूप में गिर पड़े तो वह उसमें से शायद ही सही -सलामत बाहर निकल पाता है।
232 मनवा कण भर वासना , जब लगि रह हिय माहि।
424 करहहि जतन बहु तदपि नर , हरि दरसन नहि पाहीं।।
जब तक वासना का लेशमात्र भी रहे तब तक ईश्वर दर्शन नहीं होते। इसलिए सामान्य वासनाओं तृप्त कर लो और बड़ी बड़ी वासनाओं विवेक-विचारपूर्वक त्याग दो।
234 क्रोध अगर जाता नहीं , तो कर हरि पर क्रोध।
426 दो दरसन अब शीघ्र प्रभु , करो दूर अवरोध।।
यह पूछने पर कि काम-क्रोध आदि षड-रिपुओं पर कैसे विजय प्राप्त की जाय?
श्री रामकृष्ण ने कहा - 'जब तक इन प्रवृत्तियों की गति सांसारिक विषयों के प्रति केंद्रित रहेगी तब तक ये तुम्हारे शत्रु रहेंगे। परन्तु इन की गति यदि ईश्वराभिमुख कर दी जाय तो ये रिपु तुम्हारे मित्र बन जायेंगे , तुम्हें भगवत प्राप्ति करा देंगे।
235 लोभ अगर जाता नहीं , तो कर हरि का लोभ।
426 अब लग भगवन मिला नहिं , कर लो रह रह क्षोभ।।
सांसारिक विषयों के प्रति जो कामना है , उसे ईश्वर की कामना में परिणत करो - क्रोध ही करना है तो ईश्वर पर क्रोध करो -कहो , क्यों तुम मुझे दर्शन नहीं देते ? इसी प्रकार सब रिपुओं को ईश्वर की ओर मोड़ दो। इन रिपुओं को नष्ट नहीं किया जा सकता , इन्हें ईश्वराभिमुख किया जा सकता है।
236 विवेक अंकुश वार कर , मन को कर लो शान्त।
428 नहिं तो जग में भटकोगे , हो जावोगे क्लान्त।।
हाथी को मुक्त छोड़ दिया जाय , तो वह चारों ओर पेड़-पौधों को तोड़ते -मरोड़ते हुए चलने लगता है। पर जब महावत उसके सिर पर अंकुश का वार करता है , तब वह शान्त हो जाता है। इसी प्रकार , मन को बेलगाम छोड़ देने पर वह तरह-तरह की फालतू चीजों पर विचार करने लगता है, पर विवेक-प्रयोग रूपी अंकुश का वार करते ही वह शांत , स्थिर हो जाता है।
231 मिटे सकल हिय कामना , रहतहि जाके प्राण।
422 सच्चा मानव जानिए , कह ठाकुर भगवान।।
वास्तव में सच्चा मनुष्य वह है , जो जीवित होकर भी मृत है ----
अर्थात मृत व्यक्ति की तरह जिनकी कामना -वासना आदि प्रवृत्तियाँ सम्पूर्णतया नष्ट हो गई हैं।
[ऐसे ही एक निष्काम कर्मयोगी प्रणवदा (श्री प्रणव जाना राय) आज 27 अप्रैल 2021 को 3 बजे सुबह कल्याणी हॉस्पिटल से श्रीरामकृष्ण लोक चले गए। ]
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2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा, बहुत सुंदर।
ये सभी बातें श्री रामकृष्ण परमहंस देव के अशरीरी वाणी को इतना सुन्दर छंदों में प्रस्तुत किया जाना हिंदी भाषा भाषी क्षेत्र के लिए अत्यंत ही सौभाग्य पुर्ण है। हमारे विजय भैया को शत शत नमन।
बहुत अच्छा लगता है, बहुत सुंदर।
श्री रामकृष्ण परमहंस देव के सुंदर और उपयोगी उपदेशों को छंदों के रूप में इस प्रकार की प्रस्तुति हम हिन्दी भाषा भाषी लोगों के लिए अत्यन्त ही लाभदायक सौभाग्य पूर्ण है। हमारे श्रद्धेय श्री विजय भैया को शत शत नमन।
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