मेरे बारे में

शुक्रवार, 4 जून 2021

*Purpose of life *श्री रामकृष्ण दोहावली -1 [ श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर ~ स्वामी राम'तत्वानन्द रचित श्री रामकृष्ण दोहावली]

श्री रामकृष्ण के उपदेश "अमृतवाणी " के आधार पर

 [ स्वामी राम'तत्वानन्द रचित श्री रामकृष्ण दोहावली]      

  विवेकानन्द विद्यापीठ, रामकृष्ण परमहंस नगर , कोटा, रायपुर (छत्तीसगढ़) -Pin -492010] द्वारा प्रकाशित स्वामी राम'तत्वानन्द जी द्वारा रचित 'श्रीरामकृष्ण दोहावली ' के ग्रंथकार का निवेदन : 

        किसी समय उत्तरकाशी के शिखर पर , शिखरेश्वर महादेव के पादपद्मों में बैठ , प्रभु श्री रामकृष्ण देव के लीला चिंतन करते हुए कुछ दिन व्यतीत किया था।  इसी समय नागपुर मठ द्वारा प्रकाशित 'अमृतवाणी ' (भगवान श्री रामकृष्ण देव के उपदेशों का संग्रह) के कुछ अंशों को दोहा रूप दिया था। 

         श्री रामकृष्ण देव के जीवन एवं सन्देश रूपी सुगंध विभिन्न माध्यमों से होते हुए मनुष्य एवं समाज को प्रभावित कर रही है , यह दोहावली भी अगर उन अनन्त माध्यमों की कड़ी मात्र साबित हो तो यह प्रभु का आशीर्वाद माना जावे।  यह दोहावली रूपी माला प्रभु को ही समर्पित करते हुए उनके चरणों में बारम्बार प्रणाम निवेदित करता हूँ।  -- दोहा के पूर्व दी हुई प्रथम नम्बर क्रम संख्या दर्शाती है, और दूसरी नम्बर अमृतवाणी पर सम्बन्धित उपदेश नम्बर।

" ॐ श्री रामकृष्णापर्णमस्तु " 

 अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के हिन्दी विभाग के प्रकाशक को यह दोहा-पुस्तक  7 मार्च 2021 को हजारीबाग विवेकानन्द युवा महामण्डल के सचिव तथा " पुनर्जागरण " फिल्म के निर्माता श्री गजानन्द पाठक के द्वारा फिल्म के प्रीमियर शो पर दी गयी थी । इस फिल्म में भगवान श्री रामकृष्ण के मुख से दोहामय उपदेश सुनकर सभी हिन्दी भाषी दर्शक भाव विभोर हो गए थे।  नागपुर मठ द्वारा प्रकाशित 'अमृतवाणी ' के उपदेशों को, दोहा में सुनने के साथ -साथ उसका अर्थ भी हिन्दी में लिखा रहने से अधिक लाभ होगा, इसी उद्देश्य से उन दोहों के हिन्दी अर्थ को भी साथ -साथ दिया जा रहा है। उसी प्रकार इस श्रीरामकृष्ण दोहावली को और भी जन-उपयोगी बनाने तथा अपने हृदय को सुख पहुँचाने के लिए इसमें " श्रीरामकृष्ण वचनामृत " (सम्पूर्ण) ग्रन्थ को भी परिच्छेद संख्या तथा दिनांक के अनुसार इसके साथ जोड़ा जा रहा है। 

" स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा " :  श्री रामायण जी सम्पूर्ण करने के उपरांत, सन्त  तुलसीदास जी से किसी ने पूछा, " किन्तु महाराज,  इसमें यह कमी रह गई, आपको अमुक का  चरित्र- चित्रण भी करना चाहिए था , उसके बिना अमुक अमुक काण्ड अपूर्ण जैसा प्रतीत होता है। "  इसके उत्तर में उन्होंने कहा , " देखो भाई , मैंने यह रामचरित मानस ग्रन्थ आपकी या किसी अन्य विद्वान् की किंतु -परन्तु सुनने के लिए नहीं लिखा है, यह तो हमने " स्वान्तः सुखाय " अपने अंतर के सुख , अपने ह्र्दय के आनन्द के लिए लिखा है, तुम को इसमें से जो कुछ अच्छा लगे तो ,  इसमें से ग्रहण करो, अन्यथा मत करो। " 

विशेष द्रष्टव्य : अखिल भारत विवेकानन्द युवा महामण्डल के कार्यकताओं के लिए उपयोगी,  भगवान श्री रामकृष्ण देव के उपदेशों का संग्रह - 'अमृतवाणी '  पर आधारित तथा स्वामी राम'तत्वानन्द द्वारा रचित इस दोहावली में दोहा के पूर्व दी हुई प्रथम नम्बर क्रम संख्या दर्शाती है, और दूसरी नम्बर अमृतवाणी पर सम्बन्धित उपदेश नम्बर।

--सचिव झुमरीतिलैया विवेकानन्द युवा महामण्डल।

====================================


 (श्री रामकृष्ण दोहावली-1)

* जीवन का उद्देश्य * 

{क्या तुम भविष्य के वैश्विक धर्म ~ "The would be Global Religion- Be and Make " का  नेता [प्रचारक (preacher),पैगंबर (prophet)] बनना चाहते हो ? तो जगतगुरु श्रीरामकृष्ण की सलाह है - 

2 हरि दरसन को तरस नहि , करत न एक प्रयास। 

 2 दुर्लभ नर तन वृथा भयो , भज हरि तज जग आस।। 

     इस दुर्लभ मनुष्य-जन्म को पाकर जो इसी जीवन में ईश्वरलाभ के लिए चेष्टा नहीं करता , उसका जन्म लेना ही व्यर्थ है। 

5 पहले प्रभु का दरस कर , फिर जग का सुधार। 

         7 जो अस होय शान्ति है , नहि तो क्लेश अपार।।  

7 -" तुम समाज-सुधार करना चाहते हो ?* ठीक है, यह तुम भगवत्प्राप्ति करने के बाद भी कर सकोगे। स्मरण रखो कि भगवान को प्राप्त करने के लिए प्राचीनकाल के ऋषियो ने संसार को  त्याग दिया था। भगवत्प्राप्ति ही सबसे आवश्यक वस्तु है। यदि तुम चाहो तो तुम्हें अन्य सभी वस्तुएं मिल जाएँगी। पहले भगवत्प्राप्ति कर लो # फिर लेक्चर देने या समाज-सुधार आदि की बात सोचना। 

6 विश्राम घर श्री नाथ है, नर तू राही एक।

 8 कर निश्चित डेरा प्रथम , फिर शहर घूम देख।।     

8 -मुसाफिर को नये शहर  में पहुँचकर , रात बिताने के लिये पहले किसी सुरक्षित डेरे का बन्दोबस्त कर लेना चाहिए। अपना सामान रखकर वह निश्चिन्त होकर शहर देखते हुए घूम सकता है।   परन्तु यदि रहने का बन्दोबस्त न हो तो रात के समय अँधेरे में विश्राम के लिए जगह खोजने में उसे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है। उसी प्रकार , इस संसाररूपी विदेश में आकर मनुष्य को पहले ईश्वररूपी (सच्चिदानन्द रूपी ) चिर विश्रामधाम प्राप्त कर लेना चाहिए , फिर वह निर्भय होकर अपने नित्य कर्तव्यों को करते हुए संसार में भ्रमण कर सकता है। किन्तु यदि ऐसा न हो तो जब मृत्यु की घोर अंधकार पूर्ण भयंकर रात्रि आएगी तब उसे अत्यन्त क्लेश और दुःख भोगना पड़ेगा।   

11 ज्ञान प्रदीप जलाइए , देह मन्दिर के द्वार। 

15 ब्रह्ममयी का दरस कर , ज्ञान नयन उघार।। 

15 - केवल धनसंचय करके कोई धनी नहीं होता। ठीक-ठीक धनी का लक्षण यह है कि उसके घर में हरएक कमरे में दीया जलता है। गरीब आदमी इतना तेल खर्च नहीं कर पाता , इसलिए वह इतने दीयों का प्रबन्ध नहीं कर सकता है। अपने देह -मन्दिर को कभी भी अँधेरे में नहीं रखना चाहिए , उसमें ज्ञान का दीप जला देना चाहिए। ' ज्ञान -प्रदीप जला निज घर में , ब्रह्ममयी का मुख देखो न ! ' हरेक व्यक्ति ज्ञानलाभ कर सकता है। हरएक जीवात्मा का परमात्मा के साथ संयोग है। हरएक घर में गैस की नली होती है, जिसके द्वारा गैस कम्पनी से गैस आ सकता है। सियालदह में उसका ऑफिस है। बस , योग्य अधिकारी को अर्जी भेजो , गैस भिजवाने का प्रबन्ध हो जायेगा, और तुम्हारे घर में गैसबत्ती (गैस का चूल्हा ?) जलने लग जाएगी। (सब हँसते हैं) (6 /1 मन्मथ मुखर्जी रो,सियालदह में महामण्डल का सिटी ऑफिस है। )

3 जैसी जिसकी भावना , उसको वैसा लाभ। 

     3 जो जस चाहत तस मिले , कल्पवृक्ष प्रभु आप।। 

3 - जैसी जिसकी भावना होगी वैसा ही उसे लाभ होगा। भगवान मानो कल्पवृक्ष हैं। उनसे जो जो माँगता है , उसे वही प्राप्त होता है। " गरीब का लड़का पढ़लिखकर तथा कड़ी मेहनत कर हाईकोर्ट का जज बन जाता है और मन ही मन सोचता है,' अब मैं मजे में हूँ। मैं उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर आ पहुँचा हूँ। अब मुझे आनन्द है। " भगवान भी तब कहते हैं , " तुम मजे में ही रहो। " किन्तु जब वह हाईकोर्ट का जज सेवानीवृत्त होकर पेंशन लेते हुए अपने विगत जीवन की ओर देखता है तो उसे लगता है कि उसने अपना सारा जीवन व्यर्थ ही गुजार दिया।  तब वह कहता है, 'हाय , इस जीवन में मैंने कौन सा उल्लेखनीय काम किया ?' भगवान भी तब कहते हैं ,' ठीक ही तो, तुमने किया ही क्या ! '

4 पहले प्रभु का दरस कर , पाछे जग प्रवेश। 

         6 जो अस होय तो शान्ति है , नहि तो अनन्त क्लेश।। 

 पहले ईश्वरलाभ करो , फिर धन कमाना ; इसके विपरीत पहले धनलाभ करने की कोशिश मत करो। यदि तुम भगवत्प्राप्ति कर लेने  के बाद संसार में (गृहस्थ -जीवन में) प्रवेश करो , तो तुम्हारे मन की शान्ति कभी नष्ट नहीं होगी।  

7 ब्रह्मानन्द के द्वार में , विषयन भोग अनेक।

 9 चखत हि नर भव में फंसे , तजत ब्रह्म सुख एक।। 

बड़े -बड़े गोदामों में चूहों को पकड़ने के लिए दरवाजे के पास चूहेदानी रखकर उसमें लाही -मुरमुरे रख दिए जाते हैं। उसकी सोंधी-सोंधी महक से आकृष्ट हो चूहे गोदाम में रखे हुए कीमती चावल का स्वाद चखने की बात भूल जाते हैं और लाही खाने के चेष्टा में चूहेदानी में फंसकर मारे जाते हैं।  जीव का भी ठीक यही हाल है। कोटि-कोटि विषयसुखों के  समष्टिस्वरूप ब्रह्मानन्द [existence-consciousness-bliss] के द्वारदेश पर अवस्थित होते हुए  भी जीव उस आनन्द को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न न कर संसार के क्षुद्र विषयसुखों में लुब्ध हो माया के फंदे में फंसकर मारा जाता है।        

                                8 जीव खिलौना खेलहि , ले धन जन यश मान। 

12 वृथा लगे सब जानिए , दरसत श्री भगवान।। 

छोटा बच्चा घर में अकेले ही बैठे बैठे खिलौने लेकर मनमाने खेल खेलता रहता है , उसके मन में कोई भय या चिन्ता नहीं होती।  किन्तु जैसे ही उसकी माँ वहाँ आती है वैसे ही वह सारे खिलौने छोड़कर 'माँ , माँ ' कहते हुए उसकी ओर दौड़ जाता है। तुमलोग भी इस समय धन-मान -यश के खिलौने लेकर संसार में निश्चिन्त होकर सुख से खेल रहे हो , कोई भय या चिन्ता नहीं है। पर यदि तुम एक बार भी उस आनन्दमयी माँ को देख पाओ तो फिर तुम्हें धन-मान -यश नहीं भायेंगे , तब तुम सब फेंककर उन्हीं की ओर दौड़ जाओगे। 

9 डूब डूब नर खोज ले , सागर रत्न की खान। 

13 धर धीरज तस साध ले , पाओगे भगवान।। 

रत्नाकर (समुद्र ) में अनेक रत्न हैं , पर उन्हें पाने के लिए तुम्हें कठिन परिश्रम करना होगा। यदि एक ही डुबकी में तुम्हें रत्न न मिले तो समुद्र को रत्न से रहित मत समझ बैठो। बार-बार डुबकी लगाओ , डुबकी लगाते लगाते अंत में तुम्हें रत्न जरूर मिलेगा। उसी प्रकार भगवत्प्राप्ति के पथ में यदि तुम्हारे शुरू शुरू के प्रयत्न असफल सिद्ध हों, यदि थोड़ी साधना कर तुम्हें ईश्वर के दर्शन न हों , तो हताश न होओ , धीरज के साथ साधना करते रहो। अंत में , ठीक समय पर , तुम्हें उनके दर्शन अवश्य होंगे। 

1 जो न दिखे तारा दिन में , जनि कह तारा नाहि। 

       1 तस तम वश हरि दरस बिन , मान न हरि जग नाहि।। 

     तुम रात को आकाश में कितने तारे देखते हो , परन्तु सूरज उगने के बाद उन्हें नहीं देख पाते।  किन्तु इस कारण क्या तुम यह कह सकोगे कि दिन में आकाश में तारे नहीं होते ! हे मानव अज्ञान-अवस्था में तुम्हें ईश्वर के दर्शन नहीं होते इसलिए ऐसा न कहो कि ईश्वर हैं ही नहीं।  

10 दिन दिन जस जस घटहि नर , विषय भोग का राग। 

14 तस तस बाढ़हि प्रभु चरण , प्रेम भगति अनुराग।।

चैतन्यस्वरूप , आनंदस्वरूप ईश्वर का ध्यान करो , तुम्हें आनंद प्राप्त होगा। यह आनंद वास्तव में नित्य ही विद्यमान है , किन्तु अज्ञान के कारण आच्छन्न होकर वह मानो लुप्त हो गया है।  इन्द्रिय-भोग्य विषयों के प्रति तुम्हारा आकर्षण जितना कम होगा , ईश्वर के प्रति तुम्हारा अनुराग उतना ही अधिक बढ़ेगा। 

====================:O:========

1 टिप्पणी:

Manohar Mandal ने कहा…

बहुत ही अच्छे प्रेरणादायी दोहे हैं जो हमें सत्य समझने के लिए प्रेरित कर रहे हैं|
जय भगवान श्री रामकृष्ण|🙏|❤