*गृहस्थाश्रम में ईश्वरलाभ का उपाय : मनःसंयोग, विवेक-प्रयोग *
श्रीरामकृष्ण – गाना सुना ? ‘कालीनाम का घेरा लगा दो, इससे फसल नष्ट न होगी ।’ ईश्वर की शरण में जाओ, सब कुछ पाओगे । ‘वह मुक्तकेशी माँ का बड़ा ही मजबूत घेरा है, उसके अन्दर यमराज पैर नहीं बढ़ा सकते ।’ बड़ा ही मजबूत घेरा है । उन्हें अगर प्राप्त कर सको तो फिर संसार असार न प्रतीत होगा। जिसने उन्हें जान लिया है, वह देखता है, जीव-जगत् सब वही बने हैं ! बच्चों को खिलाओ तो यह जानकर कि गोपाल को खिला रहे हो । पिता और माता को ईश्वर और जगन्माता देखो और उनकी सेवा करो ।
उन्हें जानकर संसार में रहने से ब्याही हुई स्त्री से फिर सांसारिक सम्बन्ध नहीं रह जाता । दोनों ही भक्त हो जाते हैं, केवल ईश्वरीय बातचीत करते हैं, ईश्वरीय प्रसंग लेकर रहते हैं, तथा भक्तों की सेवा करते हैं । सर्वभूतों में वे हैं, अतएव दोनों उन्हें की सेवा करते हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — গান শুনলে? “কালীনামে দাওরে বেড়া, ফসলে তছরূপ হবে না।” ঈশ্বরের শরণাগত হও, সব পাবে। “সে যে মুক্তকেশীর শক্ত বেড়া, তার কাছেতে যম ঘেঁসে না।” শক্ত বেড়া। তাঁকে যদি লাভ করতে পার, সংসার অসার বলে বোধ হবে না। যে তাঁকে জেনেছে, সে দেখে যে জীবজগৎ সে তিনিই হয়েছেন। ছেলেদের খাওয়াবে, যেন গোপালকে খাওয়াচ্ছে। পিতা মাতাকে ঈশ্বর-ঈশ্বরী দেখবে ও সেবা করবে। তাঁকে জেনে সংসার করলে বিবাহিতা স্ত্রীর সঙ্গে প্রায় ঐহিক সম্বন্ধ থাকে না। দুজনেই ভক্ত, কেবল ঈশ্বরের কথা কয়, ঈশ্বরের প্রসঙ্গ লয়ে থাকে। ভক্তের সেবা করে। সর্বভূতে তিনি আছেন, তাঁর সেবা দুজনে করে।
"Yes, it is a strong hedge indeed. If you but realize God, you won't see the world as unsubstantial. He who has realized God knows that God Himself has become the world and all living beings. When you feed your child, you should feel that you are feeding God. You should look on your father and mother as veritable manifestations of God and the Divine Mother, and serve them as such. If a man enters the world after realizing God, he does not generally keep up physical relations with his wife. Both of them are devotees; they love to talk only of God and pass their time in spiritual conversation. They serve other devotees of God, for they know that God alone has become all living beings; and, knowing this, they devote their lives to the service of others."
पड़ोसी – महाराज, ऐसे स्त्री-पुरुष दीख क्यों नहीं पड़ते ?
[প্রতিবেশী — মহাশয়, এরূপ স্ত্রী-পুরুষ তো দেখা যায় না।
NEIGHBOUR: "But, sir, such a husband and wife are not to be found anywhere."
श्रीरामकृष्ण – दीख पड़ते हैं, परन्तु बहुत कम । विषयी मनुष्य उन्हें पहचान नहीं पाते । परन्तु ऐसा तभी होता है, जब दोनों ही भले हों । जब दोनों ही ईश्वरप्रेम-प्राप्त हों तभी ऐसा हो सकता है । इसके लिए परमात्मा की विशेष कृपा चाहिए । नहीं तो सदा ही अनमेल रहता है । एक को अलग हो जाना पड़ता है । अगर मेल न हुआ तो बड़ा कष्ट होता है ।
स्त्री दिनरात कोसती रहती है, ‘बाबूजी ने क्यों यहाँ मेरा विवाह किया ? न मुझे ही कुछ खाने को मिला, न बच्चों को ही; न मुझे ही कुछ पहनने को मिला, न बच्चों को ही मैं कुछ पहना सकी । एक गहना भी तो नहीं हैं ! तुमने मुझे क्या सुख में रखा है ! आँखें मूँदकर ईश्वर ईश्वर कर रहे हैं । यह सब पागलपन छोड़ो ।’
{.শ্রীরামকৃষ্ণ — আছে, অতি বিরল। বিষয়ী লোকেরা তাদের চিনতে পারে না। তবে এরূপটি হতে গেলে দুজনেরই ভাল হওয়া চাই। দুজনেই যদি সেই ঈশ্বরানন্দ পেয়ে থাকে, তাহলেই এটি সম্ভব হয়। ভগবানের বিশেষ কৃপা চাই। না হলে সর্বদা অমিল হয়। একজনকে তফাতে যেতে হয়। যদি না মিল হয়, তাহলে বড় যন্ত্রণা। স্ত্রী হয়তো রাতদিন বলে, ‘বাবা কেন এখানে বিয়ে দিলে! না খেতে পেলুম, না বাছাদের খাওয়াতে পারলুম; না পরতে পেলুম, না বাছাদের পরাতে পেলুম, না একখানা গয়না! তুমি আমায় কি সুখে রেখেছো! চক্ষু বুজে ঈশ্বর ঈশ্বর করছেন! ও-সব পাগলামি ছাড়ো!’
MASTER: "Yes, they can be found, though they may be very rare. Worldly people cannot recognize them. In order to lead such a life both husband and wife must be spiritual. It is possible to lead such a life if both of them have tasted the Bliss of God. God's special grace is necessary to create such a couple; otherwise there will always be misunderstanding between them. In that case the one has to leave the other. Life becomes very miserable if husband and wife do not agree. The wife will say to her husband day and night: 'Why did my father marry me to such a person? I can't get enough to eat or to feed my children. I haven't clothes enough to cover mv body or to give to my children. I haven't received a single piece of jewelry from you. How happy you have made me! Ah! You keep your eyes closed and mutter the name of God! Now do give up all these crazy ideas.}
भक्त -अच्छा, ये सब बाधाएँ तो हैं ही, ऊपर से कभी कभी यह भी होता है कि लड़के कहना ही नहीं मानते । इस पर और भी कितनी ही आपदाएँ हैं । महाराज, तो फिर उपाय क्या है ?
[ভক্ত — এ-সব প্রতিবন্ধক আছে, আবার হয়তো ছেলেরা অবাধ্য। তারপর কত আপদ আছে। তবে, মহাশয় উপায় কি?
DEVOTEE: "There are such obstacles, certainly. Besides, the children may be disobedient. There is no end of difficulties. Now, sir, what is the way?"
श्रीरामकृष्ण – संसार में रहकर साधना करना कठिन है । बड़ी बाधाएँ हैं । ये सब तुम्हें बतलाने की जरूरत नहीं है – रोग, शोक, दारिद्र, उस पर पत्नी से अनबन, लड़के आवारा, मूर्ख और गँवार ।
“परन्तु उपाय है । कभी कभी एकान्त में जाकर उनसे प्रार्थना करनी पड़ती है, उन्हें पाने के लिए चेष्टा करनी पड़ती है ।”
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সংসারে থেকে সাধন করা বড় কঠিন। অনেক ব্যাঘাত। তা আর তোমাদের বলতে হবে না। — রোগ-শোক, দারিদ্র, আবার স্ত্রীর সঙ্গে মিল নাই, ছেলে অবাধ্য, মূর্খ, গোঁয়ার।“তবে উপায় আছে। মাঝে মাজে নির্জনে গিয়ে তাঁকে প্রার্থনা করতে হয়, তাঁকে লাভ করবার জন্য চেষ্টা করতে হয়।”
MASTER: "It is extremely difficult to practise spiritual discipline and at the same time lead a householder's life. There are many handicaps: disease, grief, poverty, misunderstanding with one's wife, and disobedient, stupid, and stubborn children. I don't have to give you a list of them."But still there is a way out. One should pray to God, going now and then into solitude, and make efforts to realize Him."
पड़ोसी – क्या घर से निकल जाना होगा ?
[প্রতিবেশী — বাড়ি থেকে বেরিয়ে যেতে হবে?
NEIGHBOUR: "Must one leave home then?"
श्रीरामकृष्ण – एकदम नहीं । जब अवकाश हो तब निर्जन में जाकर एक-दो दिन रहो – परन्तु संसार से कोई सम्बन्ध न रहे, किसी विषयी मनुष्य के साथ किसी सांसारिक विषय की चर्चा न करनी पड़े । या तो निर्जन में रहो या सत्संग करो ।
{.শ্রীরামকৃষ্ণ — একেবারে নয়। যখন অবসর পাবে, কোন নির্জন স্থানে গিয়ে (6 days All India Youth Training Camp of Mahamandal) একদিন-দুদিন ( (6 days) থাকবে — যেন কোন সংসারের সঙ্গে সম্বন্ধ না থাকে, যেন কোন বিষয়ী লোকদের সঙ্গে সাংসারিক বিষয় লয়ে আলাপ না করতে হয়। হয় নির্জনে বাস, নয় সাধুসঙ্গ।
MASTER: "No, not altogether. Whenever you have leisure, go into solitude for a day or two. At that time don't have any relations with the outside world and don't hold any conversation with worldly people on worldly affairs. You must live either in solitude or in the company of holy men."}
पड़ोसी – सत्संग के लिए साधु-महात्मा [C-IN-C नवनीदा] की पहचान कैसे हो ?
[প্রতিবেশী — সাধু চিনব কেমন করে?
NEIGHBOUR: "How can one recognize a holy man?"
श्रीरामकृष्ण – जिनका मन, जिनका जीवन, जिनकी अन्तरात्मा ईश्वर में लीन हो गयी है, वही महात्मा हैं। जिन्होंने कामिनी और कांचन का त्याग कर दिया है, वही महात्मा हैं । जो महात्मा हैं, वे स्त्रियों को संसार की दृष्टि से नहीं देखते । यदि स्त्रियों के पास वे कभी जाते हैं तो उन्हें मातृवत् देखते हैं और उनकी पूजा करते हैं । साधु-महात्मा सदा ईश्वर का ही चिन्तन करते हैं । ईश्वरीय प्रसंग के सिवाय और कोई बात उनके मुँह से नहीं निकलती । और सर्वभूतों में ईश्वर का ही वास है यह जानकर वे सब की सेवा करते हैं । संक्षेप में यही साधुओं के लक्षण हैं ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — যাঁর মন প্রাণ অন্তরাত্মা ঈশ্বরে গত হয়েছে, তিনিই সাধু। যিনি কামিনী-কাঞ্চনত্যাগী, তিনিই সাধু। যিনি সাধু তিনি স্ত্রীলোককে ঐহিক চক্ষে দেখেন না, সর্বদাই তাদের অন্তরে থাকেন, — যদি স্ত্রীলোকের কাছে আসেন, তাঁকে মাতৃবৎ দেখেন ও পূজা করেন। সাধু সর্বদা ঈশ্বরচিন্তা করেন, ঈশ্বরীয় কথা বই কথা কন না। আর সর্বভূতে ঈশ্বর আছেন জেনে তাদের সেবা করেন। মোটামুটি এইগুলি সাধুর লক্ষণ।
MASTER: "He who has surrendered his body, mind, and innermost self to God is surely a holy man. He who has renounced 'woman and gold' is surely a holy man. He is a holy man who does not regard woman with the eyes of a worldly person. He never forgets to look upon a woman as his mother, and to offer her his worship if he happens to be near her. The holy man constantly thinks of God and does not indulge in any talk except about spiritual things. Furthermore, he serves all beings, knowing that God resides in everybody's heart. These, in general, are the signs of a holy man."}
पड़ोसी – क्या बराबर एकान्त में रहना होगा ?
[প্রতিবেশী — নির্জনে বরাবর থাকতে হবে?
NEIGHBOUR: "Must one always live in solitude?"
श्रीरामकृष्ण – फुटपाथ के पेड़ तुमने देखे हैं ? जब तक वे पौधे रहते हैं तब तक चारों ओर से उन्हें घेर रखना पड़ता है । नहीं तो बकरे और चौपाये उन्हें चर जाते हैं । जब पेड़ मोटे हो जाता हैं तब उन्हें घेरने की जरूरत नहीं रहती । तब हाथी बाँध देने पर भी पेड़ नहीं टूट सकता । तैयार पेड़ अगर बना ले सको तो फिर क्या चिन्ता है – क्या भय है ? विवेक लाभ करने की चेष्टा पहले करो । तेल लगाकर कटहल काटो, उससे दूध नहीं चिपक सकता ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ফুটপাতের গাছ দেখেছ? যতদিন চারা, ততদিন চারিদিকে বেড়া দিতে হয়। না হলে ছাগল-গরুতে খেয়ে ফেলবে। গাছের গুঁড়ি মোটা হলে আর বেড়ার দরকার নাই। তখন হাতি বেঁধে দিলেও গাছ ভাঙবে না। গুঁড়ি যদি করে নিতে পার আর ভাবনা কি, ভয় কি? বিবেক লাভ করবার চেষ্টা আগে কর। তেল মেখে কাঁঠাল ভাঙ, হাতে আঠা জড়াবে না।
MASTER: "Haven't you seen the trees on the foot-path along a street? They are fenced around as long as they are very young; otherwise cattle destroy them. But there is no longer any need of fences when their trunks grow thick and strong. Then they won't break even if an elephant is tied to them. Just so, there will be no need for you to worry and fear if you make your mind as strong as a thick tree-trunk. First of all try to acquire discrimination. Break the jack-fruit open only after you have rubbed your hands with oil; then its sticky milk won't smear them."
पड़ोसी – विवेक किसे कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण – ईश्वर सत् है और सब असत् – इस विचार का नाम विवेक है । सत् का अर्थ नित्य, असत् का अनित्य । जिसे विवेक हो गया है वह जानता है, ईश्वर ही वस्तु हैं, और सब अवस्तु है । विवेक के उदय होने पर ईश्वर को जानने की इच्छा होती है । असत् को प्यार करने पर – जैसे देहसुख, लोकसम्मान, धन इन्हें प्यार करने पर – सत्स्वरूप ईश्वर को जानने की इच्छा नहीं होती । सत्-असत् विचार के आने पर ईश्वर की ढूँढ़-तलाश की ओर मन जाता है ।
{.প্রতিবেশী — বিবেক কাহাকে বলে?
শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বর সৎ আর সব অসৎ — এই বিচার। সৎ মানে নিত্য। অসৎ — অনিত্য। যার বিবেক হয়েছে, সে জানে ঈশ্বরই বস্তু আর সব অবস্তু। বিবেক উদয় হলে ঈশ্বরকে জানবার ইচ্ছা হয়। অসৎকে ভালবাসলে — যেমন দেহসুখ, লোকমান্য, টাকা — এই সব ভালবাসলে — ঈশ্বর, যিনি সৎস্বরূপ, তাঁকে জানতে ইচ্ছা হয় না। সদসৎ বিচার এলে তবে ঈশ্বরকে খুঁজতে ইচ্ছা করে।
NEIGHBOUR: "What is discrimination?"
MASTER: "Discrimination is the reasoning by which one knows that God alone is real and all else is unreal. Real means eternal, and unreal means impermanent. He who has acquired discrimination knows that God is the only Substance and all else is non-existent. With the awakening of this spirit of discrimination a man wants to know God. On the contrary, if a man loves the unreal — such things as creature comforts, name, fame, and wealth —, then he doesn't want to know God, who is of the very nature of Reality. Through discrimination between the Real and the unreal one seeks to know God.}
“सुनो यह एक गाना सुनो । -आय मन बेड़ाते जाबी |
---Aay man bedaate jaabi
Kaali -kalpataoomoole ( re man chari ) phal kudaaye paabi ||
Come O mind, let us go for a walk, O mind, to Kali, the Wish-fulfilling Tree, And there beneath It gather the four fruits of life. Of your two wives, Dispassion and Worldliness,Bring along Dispassion only, on your way to the Tree,And ask her son Discrimination about the Truth. . . .
आय मन बेड़ाते जाबी |
काली-कल्पतरुमूले (रे मन चारि ) फल कुडाये पाबि | |
प्रवृत्ति निवृत्ति जाया (तार) निवृत्तिरे संगे लबि |
(ओरे) विवेक नामे तार बेटा, तत्वकथा ताय सुधाबि |
शुचि अशुचिरे लये दिव्य घरे कबे शुबि |
(जखन) दुइ सतीने पीरित हबे तखन श्यामा माके पाबि ||
अहंकार अविद्या तोर, पितामाताय ताडिये दिबि |
जदि मोह, गर्ते टेने लय, धैर्यखाँटा धरे रबि ||
धर्माधर्म दुतो अजा, तुच्छ खाँटाय बँधे थुबि |
यदि ना माने निषेध, तबे ज्ञानखड्गे बलि दिबि ||
प्रथम भार्यार संतानेरे दूर हते बुझाइबि |
यदि ना माने प्रबोध,ज्ञानसिंधु माझे डुबाइबि ||
प्रसाद बले एमन हले कालेर काछे जबाब दिबि |
तबे बापु बाछा बापेर ठाकुर, मनेर मतन मन हबि ||
আয় মন, বেড়াতে যাবি।
কালী-কল্পতরুমূলে রে মন, চারি ফল কুড়ায়ে পাবি ৷৷
প্রবৃত্তি নিবৃত্তি জায়া, (তার) নিবৃত্তিরে সঙ্গে লবি।
ওরে বিবেক নামে তার বেটা, তত্ত্ব-কথা তায় সুধাবি ৷৷
শুচি অশুচিরে লয় দিব্য ঘরে কবে শুবি।
যখন দুই সতীনে পিরিত হবে, তখন শ্যামা মাকে পাবি ৷৷
অহংকার অবিদ্যা তোর, পিতামাতায় তাড়িয়ে দিবি।
যদি মোহ-গর্তে টেনে লয়, ধৈর্য-খোঁটা ধরে রবি ৷৷
ধর্মাধর্ম দুটো অজা, তুচ্ছ খোঁটায় বেঁধে থুবি।
যদি না মানে নিষেধ, তবে জ্ঞান-খড়্গে বলি দিবি ৷৷
প্রথম ভার্যার সন্তানেরে দূর হতে বুঝাইবি।
যদি না মানে প্রবোধ, জ্ঞান-সিন্ধু মাঝে ডুবাইবি ৷৷
প্রসাদ বলে, এমন হলে কালের কাছে জবাব দিবি।
তবে বাপু বাছা বাপের ঠাকুর মনের মতো মন হবি ৷৷
(भावार्थ) – “मन आ घूमने चलें । काली-कल्पतरु के नीचे, ऐ मन, चारों फल तुझे पड़े हुए मिलेंगे । प्रवृत्ति और निवृत्ति तेरी स्त्रियाँ हैं; उनमें से निवृत्ति को अपने साथ लेना । उसके आत्मज विवेक से तत्त्व की बातें पूछ लेना । शुचि-अशुचि को लेकर दिव्य घर में तू कब सोयेगा ? उन दोनों सौतों में जब प्रीति होगी, तभी तू श्यामा माँ को पाएगा । तेरे पिता माता ये जो अहंकार और अविद्या हैं, इन्हें दूर कर देना । अगर कभी मोहगर्त में तू खिंचकर गिर जाय तो धैर्य का खूँटा पकड़े रहना ।
[Come, let us go for a walk, O mind, to Kali, the Wish-fulfilling Tree,And there beneath It gather the four fruits of life.Of your two wives, Dispassion and Worldliness,Bring along Dispassion only, on your way to the Tree,And ask her son Discrimination about the Truth. . .
धर्माधर्मरूपी दोनों बकरों को एक तुच्छ खूँटे में बाँध रखना । अगर ये निषेध न मानें तो ज्ञान-खड्ग लेकर इनकी बलि दे देना । पहली पत्नी की सन्तान को दूर से समझा देना । अगर यह तेरे प्रबोध-वाक्यों पर ध्यान न दे तो उसे ज्ञान-सिन्धु में डूबा देना । ‘प्रसाद’ कहता है, इस तरह का जब तू बन जाएगा, तभी तू काल के पास उत्तर दे सकेगा और ऐ प्यारे, तभी तू सच्चा मन बन सकेगा ।’
“मन में निवृत्ति के आने पर विवेक होता है । विवेक के होने पर ही तत्त्व की बात हृदय में पैदा होती है । तभी कालीकल्पतरु के नीचे घूमने के लिए मन जाना चाहता है । उस पेड़ के नीचे जाने पर, ईश्वर के पास जाने पर, चारों फल – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – पड़े हुए मिलेंगे, अनायास मिल जाएँगे । उन्हें पा जाने पर, धर्म, अर्थ, काम जो कुछ संसारियों को चाहिए, वह भी मिलता है – अगर कोई चाहे ।
पड़ोसी – तो फिर संसार को माया क्यों कहते हैं ?
NEIGHBOUR: "Then why should one call the world maya?"
*विशिष्टाद्वैतवाद और श्रीरामकृष्ण*
[विवेकज -ज्ञान हो जाने पर- बेल का खोपडा ,गूदा और बीज सब एक जान पड़ता है ]
श्रीरामकृष्ण – जब तक ईश्वर नहीं मिलते तब तक ‘नेति’ ‘नेति’ करके त्याग करना पड़ता है । उन्हें जिन लोगों ने पा लिया है, वे जानते हैं कि वे ही सब कुछ हुए हैं । तब बोध हो जाता है – ईश्वर ही माया और जीव-जगत् हैं । जीव-जगत् भी वही है । अगर कसी बेल का खोपड़ा, गूदा और बीज अलग कर दिए जाए, और कोई कहे, देखो तो जरा बेल तौल में कितना था, तो क्या तुम खोपड़ा और बीज अलग करके सिर्फ गूदा तौल पर रखोगे या तौलते समय खोपड़ा और बीज भी साथ ले लोगे ? एक साथ लेने पर ही तुम कह सकोगे, बेल तौल में कितना था ।
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खोपड़ा मानो संसार है, और बीज मानो जीव । विचार के समय तुमने जीव और संसार को अनात्मा कहा था, अवस्तु कहा था । विचार करते समय गूदा ही सार, तथा खोपड़ा और बीज असार जान पड़े थे। (विवेकज-ज्ञान) विचार हो जाने पर. सब मिलकर एक जान पड़ता है । और यह प्रतीत होता है कि जिस सत्ता का गूदा है, उसी से बेल का खोपड़ा और बीज भी तैयार हुआ है । बेल को समझने चलो तो सब कुछ समझ में आ जाता है ।
.[শ্রীরামকৃষ্ণ — যতক্ষণ ইশ্বরকে না পাওয়া যায়, ততক্ষণ “নেতি নেতি” করে ত্যাগ করতে হয়। তাঁকে যারা পেয়েছে, তারা জানে যে তিনিই সব হয়েছেন। তখন বোধ হয় — ঈশ্বর-মায়া-জীব-জগৎ। জীবজগৎসুদ্ধ তিনি। যদি একটা বেলের খোলা, শাঁস, বিচি আলাদা করা যায়, আর একজন বলে, বেলটা কত ওজনে ছিল দেখ তো, তুমি কি খোলা বিচি ফেলে শাঁসটা কেবল ওজন করবে? না; ওজন করতে হলে খোলা বিচি সমস্ত ধরতে হবে। ধরলে তবে বলতে পারবে, বেলটা এত ওজনে ছিল। খোলাটা যেন জগৎ। জীবগুলি যেন বিচি। বিচারের সময় জীব আর জগৎকে অনাত্মা বলেছিলে, অবস্তু বলেছিলে। বিচার করবার সময় শাঁসকেই সার, খোলা আর বিচিকে অসার বলে বোধ হয়। বিচার হয়ে গেলে, সমস্ত জড়িয়ে এক বলে বোধ হয়। আর বোধ হয়, যে সত্ত্বাতে শাঁস সেই সত্ত্বা দিয়েই বেলের খোলা আর বিচি হয়েছে। বেল বুঝতে গেলে সব বুঝিয়ে যাবে।
MASTER: "As long as one has not realized God, one should renounce the world, following the process of 'Neti, neti'. But he who has attained God knows that it is God who has become all this. Then he sees that God, maya, living beings, and the universe form one whole. God includes the universe and its living beings. Suppose you have separated the shell, flesh, and seeds of a bel-fruit and someone asks you the weight of the fruit. Will you leave aside the shell and the seeds, and weigh only the flesh? Not at all. To know the real weight of the fruit, you must weigh the whole of it — the shell, the flesh, and the seeds. Only then can you tell its real weight. The shell may be likened to the universe, and the seeds to living beings. While one is engaged in discrimination one says to oneself that the universe and the living beings are non-Self and unsubstantial. At that time one thinks of the flesh alone as the substance, and the shell and seeds as unsubstantial. But after discrimination is over, one feels that all three parts of the fruit together form a unity. Then one further realizes that the stuff that has produced the flesh of the fruit has also produced the shell and seeds. To know the real nature of the bel-fruit one must know all three.
“अनुलोम (evolution ) और विलोम ( involution)मट्ठे ही का मक्खन है और मक्खन ही का मट्ठा । अगर मट्ठा तैयार हो गया हो तो मक्खन भी हो गया है । यदि मक्खन हो गया हो तो मट्ठा भी हो गया है । आत्मा अगर रहे तो अनात्मा भी है ।
{“অনুলোম বিলোম। ঘোলেরই মাখন, মাখনেরই ঘোল। যদি ঘোল হয়ে থাকে তো মাখনও হয়েছে। যদি মাখন হয়ে থাকে, তাহলে ঘোলও হয়েছে। আত্মা যদি থাকেন, তো অনাত্মাও আছে।
"It is the process of evolution and involution. The world, after its dissolution, remains involved in God; and God, at the time of creation, evolves as the world. Butter goes with buttermilk, and buttermilk goes with butter. If there is a thing called buttermilk, then butter also exists; and if there is a thing called butter, then buttermilk also exists. If the Self exists, then the non-Self must also exist.
“जिनकी नित्यता है, लीला भी उन्हीं की है । जिनकी लीला है, उन्हीं की नित्यता भी है । जो ईश्वर के रूप से प्रकट होते है, वही जीव-जगत् भी हुए है । जिसने जान लिया है, वह देखता है कि वही सब कुछ हुए हैं – बाप, माँ, बच्चा, पड़ोसी, जीव-जन्तु, भला-बुरा, शुद्ध-अशुद्ध सब कुछ ।”
{“যাঁরই নিত্য তাঁরই লীলা (Phenomenal world)। যাঁরই লীলা তাঁরই নিত্য (Absolute)। যিনি ঈশ্বর বলে গোচর হন, তিনিই জীবজগৎ হয়েছেন। যে জেনেছে সে দেখে যে তিনিই সব হয়েছেন — বাপ, মা, ছেলে প্রতিবেশী, জীবজন্তু, ভাল-মন্দ, শুচি, অশুচি সমস্ত।”
"The phenomenal world belongs to that very Reality to which the Absolute belongs; again, the Absolute belongs to that very Reality to which the phenomenal world belongs. He who is realized as God has also become the universe and its living beings. One who knows the Truth knows that it is He alone who has become father and mother, child and neighbour, man and animal, good and bad, holy and unholy, and so forth."}
*पापबोध तथा जवाबदेही — Sense of Sin and Responsibility. *
पड़ोसी – तो पाप-पुण्य नहीं है ?
[প্রতিবেশী — তবে পাপ পূণ্য নাই?
NEIGHBOUR: "Then is there no virtue and no sin?"
श्रीरामकृष्ण – है भी और नहीं भी है । वे यदि अहंतत्त्व रख देते हैं तो भेदबुद्धि भी रख देते हैं, पाप-पुण्य का ज्ञान भी रख देते हैं । वे एक-दो मनुष्यों का अहंकार बिलकुल पोंछ डालते हैं – वे पाप-पुण्य, भले-बुरे के परे चले जाते हैं । ईश्वरदर्शन जब तक नहीं होता तब तक भेदबुद्धि और भले-बुरे का ज्ञान रहता ही है, तुम मुँह से कह सकते हो, ‘हमारे लिए पाप और पुण्य बराबर हैं, वे जैसा कराते हैं वैसा ही करता हूँ’, परन्तु हृदय से यही जानते हो कि यह सब एक कहावत मात्र है; बुरा काम करने से छाती धड़कने लगेगी ।
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ईश्वरदर्शन के बाद भी अगर उनकी इच्छा होती है तो वे ‘दास मैं’ रख देते हैं । उस अवस्था में भक्त कहता हैं, मैं दास हूँ, तुम प्रभु हो । ईश्वरीय प्रसंग, ईश्वरीय कर्म, ये सब उस भक्त को रुचिकर होते हैं; ईश्वर-विमुख मनुष्य उसे अच्छा नहीं लगता; उसको ईश्वरीय कर्मों के सिवा दूसरे कार्य नहीं सुहाते । इतने ही से बात सिद्ध हो जाती है कि ऐसे भक्तों में भी वे भेदबुद्धि रख छोड़ते हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আছে, আবার নাই। তিনি যদি অহংতত্ত্ব, (Ego) রেখে দেন, তাহলে ভেদবুদ্ধিও রেখে দেন। তিনি দু-একজনেতে অহংকার একেবারে পুঁছে ফেলেন — তারা পাপ-পুণ্য ভাল-মন্দের পার হয়ে যায়। ঈশ্বরদর্শন যতক্ষণ না হয় ততক্ষণ ভেদবুদ্ধি ভাল-মন্দ জ্ঞান থাকবেই থাকবে। তুমি মূখে বলতে পার, আমার পাপ-পুণ্য সমান হয়ে গেছে; তিনি যেমন করাচ্ছেন, তেমনি করছি। কিন্তু অন্তরে জান যে, ও-সব কথা মাত্র; মন্দ কাজটি করলেই মন ধুকধুক করবে। ঈশ্বরদর্শনের পরও তাঁর যদি ইচ্ছা হয়, তিনি “দাস আমি” রেখে দেন। সে অবস্থায় ভক্ত বলে — আমি দাস, তুমি প্রভু। সে ভক্তের ঈশ্বরীয় কথা, ঈশ্বরীয় কাজ ভাল লাগে; ঈশ্বরবিমুখ লোককে ভাল লাগে না; ইশ্বর ছাড়া কাজ ভাল লাগে না। তবেই হল, এরূপ ভক্তেতেও তিনি ভেদবুদ্ধি রাখেন।
MASTER: "They both exist and do not exist. If God keeps the ego in a man, then He keeps in him the sense of differentiation and also the sense of virtue and sin. But in a rare few He completely effaces the ego, and these go beyond virtue and sin, good and bad. As long as a man has not realized God, he retains the sense of differentiation and the knowledge of good and bad. You may say: 'Virtue and sin are the same to me. I am doing only as God bids me.' But you know in your heart of hearts that those are mere words. No sooner do you commit an evil deed than you feel a palpitation in your heart. Even after God has been realized, He keeps in the mind of the devotee, if He so desires, the feeling of the 'servant ego'. In that state the devotee says, 'O God, Thou art the Master and I am Thy servant.' Such a devotee enjoys only spiritual talk and spiritual deeds. He does not enjoy the company of ungodly people. He does not care for any work that is not of a holy nature. So you see that God keeps the sense of differentiation even in such a devotee."
*क्या अज्ञात और अज्ञेय को जाना जा सकता है *
पड़ोसी – महाराज, आप कहते हैं ईश्वर को जानकर संसार करो । क्या उन्हें कोई जान सकता है?
[প্রতিবেশী — মহাশয় বলছেন, ঈশ্বরকে জেনে সংসার কর। তাঁকে কি জানা যায়?
NEIGHBOUR: "You ask us, sir, to live in the world after knowing God. Can God really be known?"
श्रीरामकृष्ण – उन्हें इन्द्रियों द्वारा अथवा इस मन के द्वारा (अहंयुक्त मन के द्वारा ?)कोई जान नहीं सकता । जिस मन में विषय-वासना नहीं उस शुद्ध मन के द्वारा ही मनुष्य उन्हें जान सकता है ।
[ শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁকে ইন্দ্রিয় দ্বারা বা এ-মনের দ্বারা জানা যায় না। যে-মনে বিষয়বাসনা নাই সেই শুদ্ধমনের দ্বারা তাঁকে জানা যায়।
"God cannot be known by the sense-organs or by this mind; but He can be known by the PURE MIND, the mind that is free from worldly desires."]
पड़ोसी – ईश्वर को कौन जान सकता है ?
श्रीरामकृष्ण – ठीक-ठीक उन्हें कौन जान सकता है ? हमारे लिए जितना जानने की जरूरत है, उतना होने ही से हो गया । हमें कुएँ भर पानी की क्या जरूरत है ? हमारे लिए तो लोटाभर पानी पर्याप्त है । एक चींटी चीनी के पहाड़ के पास गयी थी । सब पहाड़ लेकर भला क्या करेगी ? उसके छकने के लिए तो दो-एक दाने ही बहुत हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ঠিক কে জানবে? আমাদের যতটুকু দরকার, ততটুকু হলেই হল। আমার এক পাতকুয়া জলের কি দরকার? একঘটি হলেই খুব হল। চিনির পাহারের কাছে একটা পিঁপড়ে গিছল। তার সব পাহাড়টার কি দরকার? একটা-দুটো দানা হলেই হেউ-ঢেউ হয়।
"Right. Who can really know Him? But as for us, it is enough to know as much of Him as we need. What need have I of a whole well of water? One jar is more than enough for me. An ant went to a sugar hill. Did it need the entire hill? A grain or two of sugar was more than enough."
पड़ोसी – हमें जैसा विकार है, इससे लोटा भर पानी से क्या होता है ? इच्छा होती है, ईश्वर को सोलहों आने समझ लें ।
[ প্রতিবেশী — আমাদের যে বিকার, একঘটি জলে হয় কি? ইচ্ছা করে ঈশ্বকে সব বুঝে ফেলি!
"Sir, we are like typhoid patients. How can we be satisfied with one jar of water? We feel like knowing the whole of God."
*भवरोग (typhoid) की रामबाण दवा – ‘मामेकं शरणं व्रज’*
श्रीरामकृष्ण – यह ठीक है, परन्तु 'भवरोग ' की दवा भी तो है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বটে। কিন্তু বিকারের ঔষধও আছে।
"That's true. But there is also medicine for typhoid."
पड़ोसी – महाराज, वह कौनसी दवा है ?
[প্রতিবেশী — মহাশয়, কি ঔষধ?
NEIGHBOUR: "What is that medicine, sir?"
श्रीरामकृष्ण – साधुओं का संग, उनका नामगुण-कीर्तन, उनसे सर्वदा प्रार्थना करना । मैंने कहा था – माँ, मैं ज्ञान नहीं चाहता; यह लो अपना ज्ञान और यह लो अपना अज्ञान; माँ, मुझे अपने चरणकमलों में केवल शुद्ध भक्ति दो । मैं और कुछ नहीं चाहता ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — সাধুসঙ্গ, তাঁর নামগুণগান, তাঁকে সর্বদা প্রার্থনা। আমি বলেছিলাম, মা, আমি জ্ঞান চাই না; এই নাও তোমার জ্ঞান, এই নাও তোমার অজ্ঞান, — মা আমায় তোমার পাদপদ্মে কেবল শুদ্ধাভক্তি দাও। আর আমি কিছুই চাই নাই।
"The company of holy men, repeating the name of God and singing His glories, and unceasing prayer. I prayed to the Divine Mother: 'Mother, I don't seek knowledge. Here, take Thy knowledge, take Thy ignorance. Give me only pure love for Thy Lotus Feet.' I didn't ask for anything else.
“जैसा रोग होता है, उसकी दवा भी वैसी ही होती है । गीता में उन्होंने कहा है, "As is the disease, so must the remedy (COVID-19, vaccine) be. The Lord says in the Gita:‘हे अर्जुन, तुम मेरी शरण लो, तुम्हें मैं सब तरह के पापों से मुक्त कर दूँगा ।’ उनकी शरण में जाओ; वे सुबुद्धि देंगे, वे सब भार ले लेंगे । तब सब तरह के विकार दूर हट जाएँगे । इस बुद्धि से क्या कोई उन्हें समझ सकता है ? सेर भर के लोटे में क्या कभी चार सेर दूध रह सकता है ? और बिना उनके समझाए क्या उन्हें कोई समझ सकता है ? इसीलिए कहता हूँ उनकी शरण में जाओ – उनकी जो इच्छा हो, वे करें । वे इच्छामय हैं । मनुष्य की क्या शक्ति है ?”
[“যেমন রোগ, তার তেমনি ঔষধ। গীতায় তিনি বলেছেন, ‘হে অর্জুন, তুমি আমার শরণ লও, তোমাকে সবরকম পাপ থেকে আমি মুক্ত করব।’ তাঁর শরণাগত হও, তিনি সদ্বুদ্ধি দেবেন। তিনি সব ভার লবেন। তখন সবরকম বিকার দূরে যাবে। এ-বুদ্ধি দিয়ে কি তাঁকে বুঝা যায়? একসের ঘটিতে কি চারসের দূধ ধরে? আর তিনি না বুঝালে কি বুঝা যায়? তাই বলছি — তাঁর শরণাগত হও — তাঁর যা ইচ্ছা তিনি করুন। তিনি ইচ্ছাময়। মানুষের কি শক্তি আছে?”
'O Arjuna, take refuge in Me. I shall deliver you from all sins.' Take shelter at His feet. He will give you right understanding. He will take entire responsibility for you. Then you will get rid of the typhoid. Can one ever know God with such a mind as this? Can one pour four seers of milk into a one-seer pot? Can we ever know God unless He lets us know Him? Therefore I say, take shelter in God. Let Him do whatever He likes. He is self-willed. What power is there in a man?"
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