[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[*साभार ~ #श्रीरामकृष्ण०वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ]
*परिच्छेद ३२*
*नन्दनबागान के ब्राह्मसमाज में रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि भक्तों के साथ*
(१)
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[प्रज्ज्वलित मन -Ignited Minds ]
*श्रीमन्दिर-दर्शन से ईश्वर -चैतन्य द्वारा 'मन' सुलग (ignite) उठता है *
[The 'mind' is ignited by God-Consciousness by Srimandir-darshan.]
श्रीरामकृष्ण नन्दनबागान के ब्राह्मसमाज-मन्दिर में भक्तों के साथ बैठे हैं । ब्राह्मभक्तों से बातचीत कर रहे हैं । साथ में राखाल, मास्टर आदि हैं । शाम के पाँच बजे होंगे ।
काशीश्वर मित्र का मकान नन्दनबागान में है । वे पहले सबजज थे । वे आदि-ब्राह्मसमाज वाले ब्राह्म थे । अपने ही घर पर ईश्वर की उपासना किया करते थे, और बीच बीच में भक्तों को निमन्त्रण देकर उत्सव मनाते थे । उनके देहान्त के बाद श्रीनाथ, यज्ञनाथ, आदि उनके पुत्रों ने कुछ दिन तक उसी तरह उत्सव मनाए थे । वे ही श्रीरामकृष्ण को बड़े आदर से आमन्त्रित कर लाए थे ।
श्रीरामकृष्ण आकर पहले नीचे के कमरे में बैठे, जहाँ धीरे धीरे बहुत से ब्राह्मभक्त सम्मिलित हुए थे । रवीन्द्रबाबू [Rabindranath Tagore~ (1861 – 1941) and a few other members of the Tagore family were present on this occasion. तब उनकी आयु 22 साल होगी।] आदि टैगोर -परिवार के भक्त भी इस उत्सव में सम्मिलित हुए थे ।
[About five o'clock in the afternoon Sri Ramakrishna arrived at the temple of the Brahmo Samaj in Nandanbagan, accompanied by M., Rakhal, and a few other devotees. At first the Master sat in the drawing-room on the ground floor, where the Brahmo devotees gradually assembled. Rabindranath Tagore and a few other members of the Tagore family were present on this occasion.
बुलाए जाने पर श्रीरामकृष्ण ऊपरी मँजले के उपासना-मन्दिर में जा विराजे । कमरे के पूर्व की ओर वेदी (dais) रची गयी है । नैऋत्य कोने में एक पियानो है । कमरे के उत्तरी हिस्से में कुछ कुर्सियाँ रखी हुई हैं । उसी के पूर्व की ओर अन्तःपुर में जाने का दरवाजा है ।
[Sri Ramakrishna was asked to go to the worship hall on the second floor. A dais had been built on the eastern side of the room. There were a few chairs and a piano in the hall. The Brahmo worship was to begin at dusk.
शाम को उत्सव के निमित्त उपासना होगी । आदि ब्राह्मसमाज के श्री भैरव बन्धयोपाध्याय और एक-दो भक्त मिलकर वेदी पर उपासना का अनुष्ठान करेंगे ।
गर्मी का मौसम है । आज बुधवार चैत्र की कृष्णा दशमी है । 2 मई, 1883 । अनेक ब्राह्मभक्त नीचे के बड़े आँगन या बरामदे में इधर-उधर घूम रहे हैं । श्री जानकी घोषाल आदि दो-चार सज्जन उपासनागृह में आकर श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । - वे उनके श्रीमुख से ईश्वरी प्रसंग सुनेंगे ।
कमरे में प्रवेश करते ही श्रीरामकृष्ण ने वेदी के सम्मुख प्रणाम किया । फिर बैठकर राखाल मास्टर आदि से कहने लगे- “नरेन्द्र ने मुझसे कहा था, ‘समाज-मन्दिर को प्रणाम करने से क्या होता है ?’ मन्दिर देखने से ईश्वर की याद आती है-उद्दीपना होती है । जहाँ उनकी चर्चा होती है, वहाँ उनका आविर्भाव होता है, और सारे तीर्थ वहाँ आ जाते हैं । ऐसे स्थानों के देखने से भगवान् की ही याद होती है।
“एक भक्त बबूल का पेड़ देखकर भावाविष्ट हुआ था । यही सोचकर कि इसी लकड़ी से श्रीराधाकान्त के बगीचे के लिए कुल्हाड़ी का बेट बनता है ।
“किसी और भक्त की ऐसी गुरुभक्ति थी कि गुरुजी के मुहल्ले के एक आदमी को ही देखकर भावों से तर हो गया !
“मेघ देखकर, नील वस्त्र देखकर अथवा एक चित्र देखकर श्रीराधा को श्रीकृष्ण की उद्दीपना हो जाती थी! (Krishna had a dark-blue complexion.) ये सब चीजें देखकर वे ‘कृष्ण कहाँ हैं ?’ कहकर बावली-सी हो जाती !”
[चंदन-चर्चित-नील-कलेवर-पीतवसन-वनमालिन्। (कृष्ण का रंग गहरा नीला था। बादल या नीले वस्त्र को देखकर श्रीराधा के मन में श्रीकृष्ण की याद जाग उठती थी]
(Krishna had a dark-blue complexion.)Seeing a cloud or a blue cloth, the memory of Shri Krishna was awakened in Sriradha's mind]
{নরেন্দ্র আমায় বলেছিল, ‘সমাজমন্দির প্রণাম করে কি হয়?’
“মন্দির দেখলে তাঁকেই মনে পড়ে — উদ্দীপন হয়। যেখানে তাঁর কথা হয় সেইখানে তাঁর আবির্ভাব হয়, — আর সকল তীর্থ উপস্থিত হয়। এ-সব জায়গা দেখলে ভগবানকেই মনে পড়ে।“একজন ভক্ত বাবলাগাছ দেখে ভাবাবিষ্ট হয়েছিল! — এই মনে করে যে, এই কাঠে ঠাকুর রাধাকান্তের বাগানের জন্য কুড়ুলের বাঁট হয়।“একজন ভক্তের এরূপ গুরুভক্তি যে, গুরুর পাড়ার লোককে দেখে ভাবে বিভোর হয়ে গেল!“মেঘ দেখে — নীলবসন দেখে — চিত্রপট দেখে — শ্রীমতীর কৃষ্ণের উদ্দীপন হত। তিনি এই সব দেখে উন্মত্তের ন্যায় ‘কোথায় কৃষ্ণ!’ বলে ব্যাকুল হতেন।”
"Narendra once asked me, 'What good is there in bowing before the Brahmo Samaj temple?' The sight of the temple recalls to my mind God alone; then God-Consciousness is kindled in my mind. God is present where people talk about Him. One feels there the presence of all the holy places. Places of worship recall God alone to my mind.
"Once a devotee was overwhelmed with ecstasy at the sight of a babla-tree. The idea flashed in his mind that the handle of the axe used in the garden of the temple of Radhakanta was made from the wood of the babla. Another devotee had such devotion for his guru that he would be overwhelmed with divine feeling at the sight of his guru's neighbours. Krishna-consciousness would be kindled in Radha's mind at the sight of a cloud, a blue dress, (Krishna had a dark-blue complexion.) or a painting of Krishna. She would become restless and cry like a mad person, 'Krishna, where art Thou?']
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
*प्रेमोन्माद, ज्ञानोन्माद ; विषय-चिन्ता जन्य उन्माद से बिल्कुल भिन्न है *
घोषाल- उन्माद (madness) तो अच्छा नहीं है ।
[ঘোষাল — উন্মাদ তো ভাল নয়। "But madness is not desirable."
श्रीरामकृष्ण- यह तुम क्या कह रहे हो ? यह उन्माद विषयचिन्ता का फल थोड़े ही है कि उससे बेहोशी आ जाएगी ! यह अवस्था तो ईश्वर-चिन्तन से उत्पन्न होती है ! क्या तुमने प्रेमोन्माद, ज्ञानोन्माद की बात नहीं सुनी?
{শ্রীরামকৃষ্ণ — সে কি গো? একি বিষয়চিন্তা করে উন্মাদ, যে অচৈতন্য হবে? এ অবস্থা যে ভগবানচিন্তা করে হয়! প্রেমোন্মাদ, জ্ঞানোন্মাদ — কি শুন নাই?
"What do you mean? Was Radha's madness the madness that comes from brooding over worldly objects and makes one unconscious? One attains that madness by meditating on God. Haven't you heard of love-madness and knowledge madness?"
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
*उपाय- षड्रिपुओ की रुझान को ईश्वर को ओर मोड़ देना ; ताकि ईश्वर पर प्रेम हो *
एक ब्राह्मभक्त- किस उपाय से ईश्वर मिल सकते हैं?
একজন ব্রাহ্মভক্ত — কি উপায়ে তাঁকে পাওয়া যায়? "How can one realize God?"
श्रीरामकृष्ण- उन पर (इष्टदेव पर ) प्रेम हो, और सदा यह विवेक जाग्रत रहे कि ईश्वर ही सत्य है, और जगत् अनित्य।
“पीपल का पेड़ (अश्वत्थ वृक्ष) ही सत्य है- फल तो दो ही दिन के लिए हैं ।’
{শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁর উপর ভালবাসা। — আর এই সদাসর্বদা বিচার — ঈশ্বরই সত্য, জগৎ অনিত্য। “অশ্বত্থই সত্য — ফল দুদিনের জন্য।”
"By directing your love to Him and constantly reasoning that God alone is real and the world illusory. The aswattha tree alone is permanent; its fruit is transitory."
ब्राह्मभक्त- काम, क्रोध आदि छः रिपु हैं- उनका क्या किया जाय ?
{ব্রাহ্মভক্ত — কাম, ক্রোধ, রিপু রয়েছে, কি করা যায়? "We have passions like anger and lust. What shall we do with these?"
"We have passions like anger and lust. What shall we do with these?"
श्रीरामकृष्ण- छः रिपुओं को ईश्वर की ओर मोड़ दो । आत्मा के साथ रमण करने की कामना हो । जो ईश्वर की राह पर बाधा पहुँचाते हैं उन पर क्रोध हो । उसे ही पाने के लिए लोभ । यदि ममता है तो उसी के लिए हो । जैसे ‘मेरे राम’ ‘मेरे कृष्ण’ । यदि अहंकार करना है तो विभीषण की तरह- ‘मैंने श्रीरामचन्द्रजी को प्रणाम किया, फिर यह सिर किसी दूसरे के सामने नहीं नवाऊँगा !’
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ছয় রিপুকে ঈশ্বরের দিকে মোড় ফিরিয়ে দাও।“আত্মার সহিত রমণ করা, এই কামনা। “যারা ঈশ্বরের পথে বাধা দেয় তাদের উপর ক্রোধ। তাঁকে পাবার লোভ। ‘আমার আমার’ যদি করতে হয়, তবে তাঁক লয়ে। যেমন — আমার কৃষ্ণ, আমার রাম। যদি অহংকার করতে হয় তো বিভীষণের মতো! — আমি রামকে প্রণাম করেছি — এ-মাথা আর কারু কাছে অবনত করব না।”
"Direct the six passions to God. The impulse of lust should be turned into the desire to have intercourse with Atman. Feel angry at those who stand in your way to God. Feel greedy for Him. If you must have the feeling of I and mine, then associate it with God. Say, for instance, 'My Rama, my Krishna.' If you must have pride, then feel like Bibhishana, who said, 'I have touched the feet of Rama with my head; I will not bow this head before anyone else.'"
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
*पापकर्मों का उत्तरदायित्व*
ब्राह्मभक्त- यदि ईश्वर ही सब कुछ करा रहा है तो मैं पापों के लिए उत्तरदायी नहीं हूँ?
[ব্রাহ্মভক্ত — তিনিই যদি সব করাচ্ছেন, তাহলে আমি পাপের জন্য দায়ী নই?
"If it is God that makes me do everything, then I am not responsible for my sins."
श्रीरामकृष्ण (हँसकर)- दुर्योधन ने वही बात कही थी- ‘त्वया हृषिकेश हृदिस्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि ।’* ‘हे हृषिकेश, तुम हृदय में बैठकर जैसा करा रहे हो, वैसा ही मैं करता हूँ ।’
(जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्ति:, जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्ति:।
त्वया हृषिकेश हृदि स्थितेन, यथा नियुक्त: अस्मि तथा करोमि॥
-प्रपन्नगीता
* 'मैं धर्म को जानता हूँ, पर उसमें मेरी प्रवृत्ति नहीं होती और अधर्म को भी जानता हूँ, पर उससे मेरी निवृत्ति नहीं होती। ‘हे हृषिकेश, तुम हृदय में बैठकर जैसा करा रहे हो, वैसा ही मैं करता हूँ ।’ दुर्योधन द्वारा कहा गया यह-- 'देव' श्रीकृष्ण नहीं , वस्तुतः कामिनी -कांचन में आसक्ति ही है, जिससे मनुष्य विवेक-विचारपूर्वक जानता हुआ भी धर्म का पालन और अधर्म का त्याग नहीं कर पाता। ]
“जिसको ठीक विश्वास है कि ईश्वर ही कर्ता हैं और मैं उनका यंत्र हूँ, वह पाप नहीं कर सकता । जिसने नाचना सीख लिया है उसके पैर ताल के विरुद्ध नहीं पड़ते ।
“मन शुद्ध न होने से यह विश्वास ही नहीं होता कि ईश्वर है !”
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — দুর্যোধন ওই কথা বলেছিল,“ত্বয়া হৃষিকেশ হৃদিস্থিতেন, যথা নিযুক্তোঽস্মি তথা করোমি।“যার ঠিক বিশ্বাস — ‘ঈশ্বরই কর্তা আর আমি অকর্তা’ — তার পাপ কার্য হয় না। যে নাচতে ঠিক শিখেছে তার বেতালে পা পড়ে না।“অন্তর শুদ্ধ না হলে ঈশ্বর আছেন বলে বিশ্বাসই হয় না!”
"Yes, Duryodhana also said that. 'O Krishna, I do what Thou, seated in my heart, makest me do.' If a man has the firm conviction that God alone is the Doer and he is His instrument, then he cannot do anything sinful. He who has learnt to dance correctly never makes a false step. One cannot even believe in the existence of God until one's heart becomes pure."
“परन्तु संसारी लोगों का ईश्वरानुराग क्षणिक है-वह उतनी ही देर तक ठहरता है जितना तपाये हुए लोहे पर पानी का छिड़काव ।”
{ঠাকুর উপাসনাগৃহে সমবেত লোকগুলিকে দেখিতেছেন ও বলিতেছেন — “মাঝে মাঝে এরূপ একসঙ্গে ঈশ্বরচিন্তা ও তাঁর নামগুণকীর্তন করা খুব ভাল।“তবে সংসারী লোকদের ঈশ্বরে অনুরাগ ক্ষণিক — যেমন তপ্ত লৌহে জলের ছিটে দিলে, জল তাতে যতক্ষণ থাকে!”
"It is very good to gather in this way, now and then, and think of God and sing His name and glories. But the worldly man's yearning for God is momentary. It lasts as long as a drop of water on a red-hot frying-pan."
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
*ब्राह्म पुरोहित आचार्यों की ब्रह्मोपासना तथा पैगम्बर वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण*
अब सन्ध्या की उपासना होगी । वह बड़ा कमरा भक्तों से भर गया । कुछ ब्राह्म महिलाएँ हाथों में संगीत-पुस्तक (music books) लिए कुर्सियों पर आ बैठीं ।
पियानो और हार्मोनियम के सहारे ब्राह्म-संगीत होने लगा । गाना सुनकर श्रीरामकृष्ण के आनन्द की सीमा न रही। क्रमशः उद्बोधन (मंगलाचरण), प्रार्थना और उपासना हुई । आचार्य वेदी पर बैठ वेदों से मन्त्रपाठ करने लगे ।
[এইবার উপাসনা আরম্ভ হবে। উপাসনার বৃহৎ প্রকোষ্ঠ ব্রাহ্মভক্তে পরিপূর্ণ হইল। কয়েকটি ব্রাহ্মিকা ঘরের উত্তরদিকে চেয়ারে আসিয়া বসিলেন — হাতে সঙ্গীতপুস্তক।পিয়ানো ও হারমোনিয়াম সংযোগে ব্রহ্মসঙ্গীত গীত হইতে জাগিল। সঙ্গীত শুনিয়া ঠাকুরের আনন্দের সীমা রহিল না। ক্রমে উদ্বোধন — প্রার্থনা — উপাসনা। বেদীতে উপবিষ্ট আচার্যগণ বেদ হইতে মন্ত্রপাঠ করিতে লাগিলেন:
The worship was about to begin, and the big hall was filled with Brahmo devotees. Some of the Brahmo ladies sat on chairs, with music books in their hands. The songs of the Brahmo Samaj were sung to the accompaniment of harmonium and piano. Sri Ramakrishna's joy was unbounded. The invocation was followed by a prayer, and then the worship began. The acharyas, seated on the platform, recited from the Vedas:
“ॐ पिता नोऽसि, पिता नि बोधि । नमस्तेऽस्तु मा मा हिंसीः ।
-तुम हमारे पिता हो, हमें सद्बुद्धि दो । तुम्हें नमस्कार है । हमें नष्ट न करो ।”
Om. Thou art our Father. Give us right knowledge; do not destroy us! We bow to Thee.
(शुक्ल यजुः वेद संहिता, XXXVII, 20)
ब्राह्मभक्त उनसे स्वर मिलाकर कहते हैं-
“ॐ सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म । (तैत्तिरीय उ०,ब्रह्मानन्दवल्ली 2/1) अर्थात् ब्रह्म सत्य और अनन्त ज्ञानस्वरूप है।Om. Brahman is Truth, Knowledge, Infinity.'आनन्दरूपममृतं यद्विभाति।' (मु. 2/2/7) It shines as Bliss and Immortality. ---सुख भौतिक है तो आनंद आध्यात्मिक; वह ब्रह्म आनंद और अमृत्व के रूप में चमकता है। ज्ञानी लोग विज्ञान से अर्थात् पंच -कोषों और आत्मा के विवेक से अपने अंतर में स्थित उस आनंदरूपी ब्रह्म का दर्शन कर लेते हैं एवं ब्रह्मविद हो जाते हैं । " प्रपंचोपशमं शान्तं शिवमद्वैतम् चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः। (माण्डूक्य०-७) Brahman is Peace, Blessedness, and the One without a Second; 'प्रपंच' - अर्थात जाग्रतादि अवस्थायें (जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति आदि) जहां शान्त हो जाती हैं, शान्त आनन्दमय अतुलनीय चौथा--- तुरीयपाद मानते हैं वह आत्मा है और जानने के योग्य है। यहां शिव का अर्थ शान्त और आनन्दमय के रूप में देखा जा सकता है। "शुद्धम पापविद्धम् ।”(ईशा/8) It is pure and unstained by sin. -यह शुद्ध आत्मा त्रिगुणों से निर्लिप्त और पाप से रहित है।
फिर आचार्यों ने स्तवपाठ किया । -
“ॐ नमस्ते सते ते जगत्कारणाय । नमस्ते चिते सर्वलोकाश्रय याय ॥” (ब्रह्म – स्तोत्रम्)
इत्यादि ।
ब्रह्म-स्त्रोत्र का पाठ करने के बाद सभी पुरोहित आचार्यों ने मिलकर प्रार्थना की-
[ স্তোত্রপাঠের পর আচার্যেরা প্রার্থনা করিতেছেন:Then the acharyas chanted their prayer together:
असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्माऽमृतं गमय । आविराविर्म एधि ।
रुद्र यत्ते दक्षिणं मुखं तेन मां पाहि नित्यम् ।*
(* “मुझे अनित्य से नित्य को, अन्धकार से ज्योति को मृत्यु से अमरत्व को पहुँचाओ । मेरे पास आविर्भूत होओ। हे रुद्र, अपने कारुण्यपूर्ण मुख से सदा मेरी रक्षा करो ।
”From the unreal lead us to the Real; from darkness lead us to Light; from death lead us to Immortality. Reach us through and through, O Rudra, and protect us evermore with Thy Compassionate Face.
स्तोत्रादि का पाठ सुनकर पैगम्बर वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण भावाविष्ट हो रहे हैं । अब आचार्य निबन्ध पढ़ते हैं ।
[স্ত্রোত্রাদি পাঠ শুনিয়া ঠাকুর ভাবাবিষ্ট হইতেছেন। এইবার আচার্য প্রবন্ধ পাঠ করিতেছেন।
As Sri Ramakrishna heard these hymns, he went into a spiritual mood. After this an acharya read a paper.
[(2 मई, 1883) परिच्छेद ~ 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
* अहेतुक कृपासिन्धु -अक्रोध परमानन्द स्वरूप -पैगम्बर वरिष्ठ श्री रामकृष्ण*
उपासना समाप्त हो गयी । भक्तों को खिलाने का प्रबन्ध हो रहा है । अधिकांश ब्राह्मभक्त नीचे आँगन और बरामदे में टहल रहे हैं--हवा का आनंद ले रहे हैं !
रात के नौ बज गए । श्रीरामकृष्ण को दक्षिणेश्वर लौट जाना है । घर के मालिक निमन्त्रित गृही भक्तों की संवर्धना में इतने व्यस्त हैं कि श्रीरामकृष्ण की कोई खबर ही नहीं ले सकते ।
[উপাসনা হইয়া গেল। ভক্তদের লুচি, মিষ্টান্ন আদি খাওয়াইবার উদ্যোগ হইতেছে। ব্রাহ্মভক্তেরা অধিকাংশই নিচের প্রাঙ্গণে ও বারান্দায় বায়ুসেবন করিতেছেন।রাত নয়টা হইল। ঠাকুরের দক্ষিণেশ্বর-মন্দিরে ফিরিয়া যাইতে হইবে। গৃহস্বামীরা আহূত সংসারীভক্তদের লইয়া খাতির করিতে করিতে এত ব্যতিব্যস্ত হইয়াছেন যে, ঠাকুরের আর কোন সংবাদ লইতে পারিতেছেন না।
The worship was over. Most of the devotees went downstairs or to the courtyard for fresh air while the refreshments were being made ready. It was about nine o'clock in the evening. The hosts were so engrossed with the other invited guests that they forgot to pay any attention to Sri Ramakrishna.
श्रीरामकृष्ण (राखाल आदि से)- अरे, कोई बुलाता भी तो नहीं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ (রাখাল প্রভৃতির প্রতি) — কিরে কেউ ডাকে না যে রে!
"What's the matter? Nobody is paying any attention to us!"
राखाल-(क्रोध में)- महाराज, आइए, हम दक्षिणेश्वर चलें ।
[রাখাল (সক্রোধে) — মহাশয়, চলে আসুন — দক্ষিণেশ্বরে যাই।
RAKHAL (angrily): "Sir, let us leave here and go to Dakshineswar."
श्रीरामकृष्ण (हँसकर)- अरे ठहर । गाड़ी का किराया-तीन रूपये-दो आने-कौन देगा ? चिढ़ने से ही काम न चलेगा ! पैसे का नाम नहीं, और थोथी झाँझ ! फिर इतनी रात को खाऊँ कहाँ ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্য) — আরে রোস্ — গাড়িভাড়া তিন টাকা দুআনা কে দেবে! — রোখ করলেই হয় না। পয়সা নাই আবার ফাঁকা রোখ! আর এত রাত্রে খাই কোথা!
"Keep quiet! The carriage hire is three rupees and two annas. Who will pay that? Stubbornness won't get us anywhere. You haven't a penny, and you are making these empty threats! Besides, where shall we find food at this late hour of the night?"]
बड़ी देर में सुना गया कि पत्तलें बिछी हैं । सब भक्त एक साथ बुलाए गए । उन भीड़ में श्रीरामकृष्ण भी राखाल आदि के साथ दूसरे मँजले में भोजन करने चले । बैठने का स्थान साफ़ किया हुआ नहीं था । एक रसोइया ठकुराइन ने भाजी परोसी । श्रीरामकृष्ण को उसे खाने की रुचि नहीं हुई । उन्होंने नमक के सहारे एक आध पूड़ी और थोडीसी मिठाई खायी ।
[অনেকক্ষণ পরে শোনা গেল, পাতা হইয়াছে। সব ভক্তদের এককালে আহ্বান করা হইল। সেই ভিড়ে ঠাকুর রাখাল প্রভৃতির সঙ্গে দ্বিতলায় জলযোগ করিতে চলিলেন। ভিড়েতে বসিবার জায়গা পাওয়া যাইতেছে না। অনেক কষ্টে ঠাকুরকে একধারে বসানো হইল। স্থানটি অপরিষ্কার। একজন রন্ধনী-ব্রাহ্মণী তরকারি পরিবেশন করিল — ঠাকুরের তরকারি খাইতে প্রবৃত্তি হইল না। তিনি নুন টাক্না দিয়া লুচি খাইলেন ও কিঞ্চিৎ মিষ্টান্ন গ্রহণ করিলেন।
आप दयासागर हैं । गृहस्वामी लड़के हैं । वे आपकी पूजा करना नहीं जानते तो क्या आप उनसे नाराज होंगे? अगर आप बिना खाए चले जायें तो उनका अमंगल होगा । फिर उन्होंने तो ईश्वर के ही उद्देश्य से इतना आयोजन किया ।
{ঠাকুর দয়াসিন্ধু। গৃহস্বামীদের ছোকরা বয়স। তাহারা তাঁহার পূজা করিতে জানে না বলিয়া তিনি কেন বিরক্ত হইবেন? তিনি না খাইয়া চলিয়া গেলে যে, তাহাদের অমঙ্গল হইবে। আর তাহারা ঈশ্বরকে উদ্দেশ করিয়াই এই সমস্ত আয়োজন করিয়াছে।
There was no limit to the Master's kindness. The hosts were mere youngsters; how could he be displeased with them, even though they did not show him proper respect? Further, it would have been inauspicious for the household if a holy man had left the place without taking food. Finally, the feast had been prepared in the name of God.
भोजन के बाद श्रीरामकृष्ण गाड़ी पर बैठे । गाड़ी का किराया कौन दे ? उस भीड़ में गृहस्वामियों का पता ही नहीं चलता था । इस किराये के सम्बन्ध में श्रीरामकृष्ण ने बाद में विनोद करते हुए भक्तों से कहा था- “गाड़ी का किराया माँगने गया ! पहले तो उसे भगा ही दिया । फिर बड़ी कोशिश से तीन रूपये मिले, पर दो आने नहीं दिए । कहा कि उसी से हो जायगा !”
[আহারান্তে ঠাকুর গাড়িতে উঠিলেন। গাড়িভাড়া কে দিবে? গৃহস্বামীদের দেখতেই পাওয়া যাচ্ছে না। ঠাকুর গাড়িভাড়া সম্বন্ধে ভক্তদের কাছে আনন্দ করিতে করিতে গল্প করিয়াছিলেন —“গাড়িভাড়া চাইতে গেল। তা প্রথমে হাঁকিয়া দিলে! — তারপর অনেক কষ্টে তিন টাকা পাওয়া গেল, দুআনা আর দিলে না! বলে, ওইতেই হবে।
”Sri Ramakrishna got into a carriage: but who was to pay the hire? The hosts could not be found. Referring to this incident afterwards, the Master said to the devotees, jokingly: "The boys went to our hosts for the carriage hire. First they were put out, but at last they managed to get together three rupees. Our hosts refused to pay the extra two annas and said, 'No, that will do.'
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