[(8 जून, 1883) परिच्छेद ~ 38, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]
*परिच्छेद~ ३८*
*दक्षिणेश्वर मन्दिर में*
*श्रीरामकृष्ण की समाधि । भक्तों के द्वारा श्रीचरण-पूजा*
श्रीरामकृष्ण आज सन्ध्या-आरती के बाद दक्षिणेश्वर के कालीमन्दिर में देवी की प्रतिमा के सम्मुख खड़े होकर दर्शन करते और चमर लेकर कुछ देर डुलाते रहे । ग्रीष्म ऋतु है । ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया तिथि है । शुक्रवार, 8 जून 1883 ई. । आज शाम को राम, केदार चटर्जी और तारक श्रीरामकृष्ण के लिए फूल और मिठाई लिए कलकत्ते से गाड़ी पर आये हैं ।
केदार की उम्र कोई पचास वर्ष की होगी । बड़े भक्त हैं । ईश्वर की चर्चा सुनते ही उनके नेत्र अश्रुपूर्ण हो जाते हैं । पहले ब्राह्मसमाज में आते-जाते थे । फिर कर्ताभजा, नवरसिक आदि अनेक सम्प्रदायों से मिलकर अन्त में उन्होंने श्रीरामकृष्ण के चरणों में शरण ली है । सरकारी नौकरी में हिसाबनवीस (accountant) का काम करते हैं । उनको घर काँचड़ापाड़ा के निकट हालीशहर गाँव में है ।
तारक ^ की उम्र चौबीस वर्ष की होगी । विवाह के कुछ दिन बाद उनके स्त्री की मृत्यु हो गयी । उनका मकान बारासात गाँव में है । उनके पिता एक उच्च कोटि के साधक थे, श्रीरामकृष्ण के दर्शन उन्होंने अनेक बार किये थे । तारक की माता की मृत्यु होने पर उनके पिता ने अपना दूसरा विवाह कर लिया था । तारक राम के मकान पर सर्वदा आते-जाते रहते हैं । उनके और नित्यगोपाल के साथ वे प्रायः श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं । इस समय भी किसी आफिस (मैकिनन मैकेंज़ी?) में काम करते हैं । परन्तु सर्वदा विरक्ति का भाव है ।
{^ Tarak स्वामी शिवानन्द (महापुरुष महाराज-1854-1934) was a young man of twenty-four. His wife had died shortly after their marriage. He hailed from the village of Barasat not far from Calcutta. His father, a highly spiritual soul, had visited Sri Ramakrishna many times. Tarak often went to Ram's house and used to go to Dakshineswar in the company of Ram and Nityagopal. He worked in a business firm, but his attitude toward the world was one of utter indifference.
श्रीरामकृष्ण ने कालीमन्दिर से निकलकर चबूतरे पर भूमिष्ठ हो माता को प्रणाम किया । उन्होंने देखा राम, मास्टर, केदार तारक आदि भक्त वहाँ खड़े हैं । तारक को देखकर आप बड़े प्रसन्न हुए और उनकी ठुड्डी छूकर प्यार करने लगे ।
अब श्रीरामकृष्ण भावाविष्ट होकर अपने कमरे में जमीन पर बैठे हैं । उनके दोनों पैर फैले हैं । राम और केदार ने उन चरणकमलों को पुष्पमालाओं से शोभित किया है । श्रीरामकृष्ण समाधिस्थ हैं ।
केदार का भाव नवरसिक समाज का है । वे श्रीरामकृष्ण के चरणों के अँगूठों को पकड़े हुए हैं । उनकी धारणा है कि इससे शक्ति का संचार होगा । श्रीरामकृष्ण कुछ प्रकृतिस्थ हो रहे हैं, “माँ ! अँगूठों को पकड़कर वह मेरा क्या कर सकेगा ?”
[Kedar believed in certain queer practices of a religious sect to which he had once belonged. He held the Master's big toe in his hand, believing that in this way the Master's spiritual power would be transmitted to him. As Sri Ramakrishna regained partial consciousness, he said, "Mother, what can he do to me by holding my toe?"
केदार विनीत वभाव से हाथ जोड़े बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण (केदार से भावावेश में)- कामिनी और कांचन पर तुम्हारा मन अब भी खींचता है । मुँह से कहने से क्या होगा कि मेरा मन उधर नहीं है !
“आगे बढ़ चलो । चन्दन की लकड़ी के आगे और भी बहुतकुछ हैं, - चाँदी की खान – सोने की खान –फिर हीरे और माणिक । थोड़ीसी उद्दीपना हुई है, इससे यह मत सोचो कि सब कुछ हो गया ।”
श्रीरामकृष्ण फिर अपनी माता से बातें कर रहे हैं । कहते हैं, “माँ ! इसे हटा दो ।”
केदार का कण्ठ सूख गया है । भयभीत हो राम से कहते हैं, “ये यह क्या कह रहे हैं ?
{Kedar sat humbly with folded hands. Still, in an ecstatic mood, the Master said to Kedar: "Your mind is still attracted by 'woman and gold'. What is the use of saying you don't care for it? Go forward. Beyond the forest of sandal-wood there are many more things: mines of silver, gold, diamonds, and other precious stones. Having a glimpse of spirituality, don't think you have attained everything." The Master was again in an ecstatic mood. He said to the Divine Mother, "Mother, take him away." At these words Kedar's throat dried up. In a frightened tone he said to Ram, "What is the Master saying?"
राखाल को देखकर श्रीरामकृष्ण फिर भावाविष्ट हो रहे हैं । उन्हें पुकारकर कहते हैं, “मैं यहाँ बहुत दिनों से आया हूँ । तू कब आया ?”
क्या श्रीरामकृष्ण इशारे से कहते हैं कि वे भगवान् के अवतार हैं और राखाल उनके एक अन्तरंग पार्षद?
[Was the Master hinting that he was an Incarnation of God, and Rakhal his divine companion, a member of the inner circle of devotees?
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