[(14,जुलाई 1883)परिच्छेद ~ 45, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]
*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* *साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*
परिच्छेद ~ ४५
*अधर के मकान पर*
* काली-नामरूपी कल्पतरु को हृदय में बो दिया है ।*
श्रीरामकृष्ण कलकत्ते के बेनेटोला में अधर के मकान पर पधारे हैं । आषाढ़ शुक्ला दशमी, १४ जुलाई १८८३, शनिवार । अधर श्रीरामकृष्ण को राजनारायण का चण्डी-संगीत सुनाएँगे । राखाल, मास्टर आदि साथ हैं । मन्दिर के बरामदे में गाना हो रहा है ।
राजनारायण , 'माँ काली के निर्भय चरण' (Fearless feet of the Mother Kali) शीर्षक गीत गाने लगे-.
अभय-पदे प्राण सोंपेछि।
आमि आर कि यमेर भय रेखेछि ॥
कालीनाम महामन्त्र आत्मशिर शिखाय बेँधेछि।
आमि देह बेचे भवेर हाटे, दुर्गानाम किने एनेछि॥
कालिनाम कल्पतरु हृदये, रोपण कोरेछि।
एबार शमन होले हृदय खूले, देखाबो ताइ बोशे आछि।।
देहेर मध्ये छः जन कूजन, तादेर घरे दूर कोरेछि।
रामप्रसाद बोले दूर्गा बोले जात्रा कोरे बोशे आछि।।
सारात्सार तारानाम आपन शिखाग्रे बेंधेछि।
'रामप्रसाद बोले दुर्गा बोले यात्रा करे बसे आछि॥
অভয় পদে প্রাণ সঁপেছি ৷
আমি আর কি যমের ভয় রেখেছি ৷৷
কালীনাম মহামন্ত্র আত্মশির শিখায় বেঁধেছি ৷
আমি দেহ বেচে ভবের হাটে, দুর্গানাম কিনে এনেছি ৷৷
কালীনাম-কল্পতরু হৃদয়ে রোপণ করেছি ৷
এবার শমন এলে হৃদয় খুলে দেখাব তাই বসে আছি ৷৷
দেহের মধ্যে ছজন কুজন, তাদের ঘরে দূর করেছি ৷
রামপ্রসাদ বলে দুর্গা বলে যাত্রা করে বসে আছি ৷৷
(भावार्थ)-“अभय पद में प्राणों को सौंप दिया है, फिर मुझे यम का क्या भय है ? अपने सिर की शिखा में कालीनाम का महामन्त्र बाँध लिया है । मैं इस संसाररूपी बाजार में अपने शरीर को बेचकर श्रीदुर्गानाम खरीद लाया हूँ । काली-नामरूपी कल्पतरु को हृदय में बो दिया है ।अब यम के आने पर हृदय खोलकर दिखाऊंगा, इसलिए बैठा हूँ । देह में छः दुर्जन हैं, उन्हें भगा दिया है। रामप्रसाद कहता है - 'मैं तो जय दुर्गा, श्रीदुर्गा' कहकर रवाना होने के लिए लिए तैयार बैठा हूँ ।” I have surrendered my soul at the fearless feet of the Mother; Am I afraid of Death any more? . . .
श्रीरामकृष्ण थोड़ा सुनकर भावाविष्ट हो खड़े हो गए और मण्डली के साथ सम्मिलित होकर गाने लगे ।
श्रीरामकृष्ण पद जोड़ रहे हैं – “ओमा, राख मा।” पद जोड़ते जोड़ते एकदम समाधिस्थ ! बाह्यशून्य, निस्पन्द होकर खड़े हैं ।
गायक फिर गा रहे हैं –
देखना आलो करे , रणे ऐसेछे कार कामिनी,
सजल- जलद जिनिया काय, दशने प्रकाश दामिनी !
एलाये चांचर चिकुरपाश,सुरासुर माझे ना करे त्रास ।
अट्टहासे दानव नाशे, रणे प्रकाशे रंगिणी ॥१॥
किबा शोभा करे श्रमज बिन्दु,घनतनु घेरि कुमुदबन्धु ।
अमियसिन्धु हेरिये इन्दु,मलिन ए कोन मोहिनी ॥२॥
ए कि असम्भव! भव पराभव,पदतले शव-सदृश नीरव .
’कमलाकन्त’ करो अनुभव,के बटे ओ गजगामिनी ॥३॥
(भावार्थ)-“यह किसकी कामिनी रणांगण को आलोकित कर रही है? मानो इसकी देहकान्ति के सामने जलधर बादल हार मानता है और दन्त पंक्ति मानो बिजली की चमक है ! देव-दानव युद्ध में जब वे राक्षसों का संहार करने निडर होकर दौड़ती हैं, तब उनके पीछे बिखरे हुए बाल उड़ने लगते हैं। जब भयानक अट्टहास करते हुए वे भागते हुए असुरों का वध करती हैं , तब उनके चकाचौंध से युद्ध की भयावहता उजागर हो जाती है। उनकी भौंहों पर श्रम-आद्रता की बूंदें कितनी सुंदर लगती हैं! उनके घने काले बाल ऐसा प्रतीत हो रहे हैं , मानों कुमुदबंधु -भौंरे झुण्ड में लहरा रहे हों। सौंदर्य के इस सागर को निहारते हुए, चंद्रमा ने अपना चेहरा ढक लिया है। भगवान शिव भी स्वयं उनके चरणों में एक शव की तरह पड़े हुए हैं। -मुझे बताओ, यह जादूगरनी- आश्चर्यों की आश्चर्य! यह भुवन मोहिनी कौन हो सकती है ? हाथी की चाल से कमलाकांत ने अनुमान लगाया है कि वह कौन है; वह कोई और नहीं बल्कि समस्त लोकों की माता - माँ काली हैं। "
[Who is the Woman yonder who lights the field of battle? Darker Her body gleams even than the darkest storm-cloud, And from Her teeth there flash the lightning's blinding flames! Dishevelled Her hair is flying behind as She rushes about, Undaunted in this war between the gods and the demons. Laughing Her terrible laugh, She slays the fleeing asuras, And with Her dazzling flashes She bares the horror of war. How beautiful on Her brow the drops of moisture appear! About Her dense black hair the bees are buzzing in swarms; The moon has veiled its face, beholding this Sea of Beauty. Tell me, who can She be, this Sorceress? Wonder of wonders! Siva Himself, like a corpse, lies vanquished at Her feet. Kamalakanta has guessed who She is, with the elephant's gait; She is none other than Kali, Mother of all the worlds.]
श्रीरामकृष्ण फिर समाधिस्थ हुए ।
गाना समाप्त होने पर श्रीरामकृष्ण अधर के बैठकघर में जाकर भक्तों के साथ बैठ गए । ईश्वरीय चर्चा हो रही है । इस प्रकार भी वार्तालाप हो रहा है कि कोई कोई भक्त मानो ‘अन्तःसार फल्गु नदी’ है, ऊपर भाव का कोई प्रकाश नहीं !
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