मंगलवार, 11 मई 2021

$परिच्छेद ~ 28 [(7 अप्रैल 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]Unattachment to 'woman and gold' *न पाप करना ही अच्छा है और न पाप का अभिनय करना * संसारी तथा शास्त्रार्थ* *गगन की थाली , रवि चन्द्र दीपक जले * पान और मछली में क्या रखा है , कामिनी-कांचन का त्याग ही त्याग है *

[(7 अप्रैल 1883)परिच्छेद ~ २८, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत {श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]  

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परिच्छेद ~ २८ 
*नरेन्द्र आदि भक्तों के साथ बलराम के मकान पर* 
श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बलराम बाबू के मकान में बैठे हुए हैं, बैठक के उत्तरपूर्ववाले कमरे में । दोपहर ढल चुकी, एक बजा होगा । नरेन्द्र, भवनाथ, राखाल, बलराम और मास्टर कमरे में उनके साथ बैठे हुए हैं ।
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आज अमावस्या है, शनिवार, 7 अप्रैल 1883। श्रीरामकृष्ण बलराम बाबू के घर सुबह को आए थे । दोपहर का भोजन वहीँ किया है । नरेन्द्र, भवनाथ, राखाल तथा और भी दो-एक भक्तों को आपने निमन्त्रित करने के लिए कहा था, अतएव उन लोगों ने भी यहीं आकर भोजन किया है । श्रीरामकृष्ण बलराम से कहते थे- “इन्हें खिलाना, तो बहुत से साधुओं को खिलाने का पुण्य होगा ।” 
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कुछ दिन हुए श्रीरामकृष्ण श्री केशवबाबू के यहाँ ‘नववृन्दावन’ नाटक देखने गए थे । साथ नरेन्द्र और राखाल भी गए थे । नरेन्द्र ने भी अभिनय में भाग लिया था । केशव 'पवहारी बाबा' बने थे ।
श्रीरामकृष्ण (नरेन्द्रादि भक्तों से)- केशव साधु बनकर शान्तिजल ('Water of Peace') छिड़कने लगा । परन्तु मुझे अच्छा न लगा । अभिनय में शान्तिजल !

“और एक आदमी (कु. बाबू) पापपुरुष बना था । ऐसा करना भी अच्छा नहीं । न पाप करना ही अच्छा है और न पाप का अभिनय करना ही । 
.[কেশব (সেন) সাধু সেজে শান্তিজল ছড়াতে লাগল। আমার কিন্তু ভাল লাগল না। অভিনয় করে শান্তি জল!
“আর-একজন (কু-বাবু) পাপ পুরুষ সেজেছিল। ওরকম সাজাও ভাল না। নিজে পাপ করাও ভাল না — পাপের অভিনয় করাও ভাল না।”
{Nava-Vrindavan drama :Narendra had taken part in the performance, in which Keshab had played the role of Pavhari Baba . "Keshab came on the stage in the role of a holy man and sprinkled the 'Water of Peace'. But I didn't like it. The idea of sprinkling such water on a theatrical stage after a performance!" Another gentleman played the part of Sin. That is not good either. One should not commit sin; one should not even feign it."
नरेन्द्र का स्वास्थ्य अच्छा नहीं हैं; परन्तु उनका गाना सुनने की श्रीरामकृष्ण को बड़ी इच्छा है । वे कहने लगे, “नरेन्द्र, ये लोग कह रहे हैं, तू कुछ गा ।”
नरेन्द्र तानपुरा लेकर गाने लगे  : 
(१)
आमार प्राणपिंजरेर पाखि, गाओ ना रे, 
ब्रह्मकल्पतरुपरे बोशे रे पाखि, विभुगण गाओ देखी। 

(गाओ, गाओ) धर्म, अर्थ, काम,  मोक्ष
सूपक्व फल खाओ ना रे। 

बोलो  बोलो आत्माराम, पोड़ो प्राणाराम, 
हृदय माझे, प्राण विहंग डाको अविराम, 

डाक तृषित चातकेर मतो,
पाखि अलस थेको ना रे।   


 আমার প্রাণপিঞ্জরের পাখি, গাও না রে।
ব্রহ্মকল্পতরুপরে বসে রে পাখি, বিভুগুণ গাও দেখি,
(গাও, গাও) ধর্ম অর্থ কাম মোক্ষ,
সুপক্ক ফল খাও না রে।
বল বল আত্মারাম, পড় প্রাণারাম,
হৃদয়-মাঝে প্রাণ-বিহঙ্গ ডাক অবিরাম,
ডাক তৃষিত চাতকের মতো,
পাখি অলস থেক না রে।
गीत का भावार्थ यह है- “मेरे प्राण-पिंजरे के पक्षी, गाओ न रे। ब्रह्म-कल्पतरु पर बैठकर परमात्मा के गुण गाओ ! धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-रूपी पके हुए फल खाओ । हे मेरे हृदय के प्राणविहंग, तुम निरन्तर ‘आत्माराम, प्राणाराम’ कहकर पुकारो । प्यासे चातक की तरह पुकारो, आलस मत करो ।”
(२) 

विश्वभुवनरंजन ब्रह्म परम ज्योतिः।
अनादिदेव जगतपति प्राणेर प्राण।।   

गीत का भावार्थ यह है- “वे (मेरे इष्टदेव) विश्वरंजन हैं, परमज्योति ब्रह्म हैं, अनादिदेव जगत्पति हैं, प्राणों के भी प्राण हैं ।....”
(३) 

हे राजराजेश्वर , देखा दाओ। 
करुणा भिखारि आमि, करुण-नयने चाओ॥

चरने उत्सर्ग दान , करियाछि एई प्राण। 
संसार -अनलकुण्डते झलसि गियाछे ताओ। 

कलुष -कलंके भरा ताहे आवरित ए -हृदय ; 
मोहे मुग्ध मृतपाय , हये आछि आमि दयामय ,
मृतसंजीवनी दाने, शोधन करिये लाओ।  

 गीत का भावार्थ यह है- “हे राजराजेश्वरी ! दर्शन दो ! मैं जिन प्राणों को तुम्हारे चरणों में अर्पित कर रहा हूँ, वे संसार के अनल-कुण्ड में पड़कर झुलस गए हैं । और उस पर यह हृदय कलुष-कलंक से आवृत है । दयामय ! मोहमुग्ध होकर मैं मृतकल्प हो रहा हूँ, तुम मृतसंजीवनी दृष्टि से मेरा शोधन कर लो ।”

(४)***
The Master wanted to hear Narendra sing. The young disciple was not feeling well, but at the Master's earnest request he sang to the accompaniment of the tanpura:

गगन की थाली , रवि चन्द्र दीपक जले । 
तारका मंडल, चमके मोती रे ।

धूपु मलयानिल , पवन चँवर करे,
सकल बनराजी फुलन्त जोति रे ॥

कैसी आरती होइ , हे भवखण्डन तेरी आरती।। 
भवखंडना तेरी आरती॥

अनाहत शब्द बाजंत भेरी रे ॥
नाम तेरो आरती मजन मुरारे ।।
हरि के नाम बिन झूठे सगल पासारे ।। 


इस आरती में गुरु नानक ने माँ जगदम्बा के सर्वव्यापी विराट स्वरुप का चित्रण किया है, और कल्पना की है कि समस्त ब्रह्माँड  उनकी ही पूजा में लीन है। उन्होंने यह आरती 1506  में पूर्वी भारत की यात्रा के दौरान, परंपरागत आरती से हट कर पुरी के श्री जगन्नाथ जी मंदिर में गायी  थी।  
इस गीत का भावार्थ यह है:-
 “गगनरूपी आरती की थाल में रवि-चन्द्ररुपी दीपक जल रहे हैं । तारा मंडल (galaxy) मोतियों की तरह शोभायमान हैं। मलय पर्वत से आती चंदन की सुगंध ही धूप है, वायु चंवर कर रही है, समस्त वनों की सम्पूर्ण वनस्पतियाँ तुम्हारी आरती के निमित्त फूल की तरह अर्पित हैं। अनहद शब्द भेरी की तरह बज रहा है। हे खण्डन भवबन्धन ! तुम्हारी आरती की भव्यता का वर्णन किस तरह किया जा सकता है!.....इसके बाद जो लाइन जोड़ी गयी है -  हे मुरारी ! (मुर दैत्य के शत्रु, विष्णु या श्रीकृष्ण) तुम्हारा नाम जपना ही मेरे लिए आपकी आरती और आपको स्नान करवाने के समान है । हरि के नाम बिना सभी सांसरिक सुख झूठे हैं ।"  यह संत रविदास जी द्वारा रचित है , जिनका जन्म संयोवश एक मोची (cobbler) परिवार में हुआ था।  
 राष्ट्रगान के रचयिता आचार्य रवींद्रनाथ टैगोर से एक बार प्रख्यात फिल्म कलाकार बलराज साहनी, जो तब शांति निकेतन में अध्यापक थे, ने प्रश्न किया कि जिस प्रकार भारत का राष्ट्रगान उन्होंने लिखा है,  तो क्यों न सम्पूर्ण विश्व के लिए भी एक विश्वगान भी लिखें? इस पर उन्होंने कहा कि वह तो पहले ही लिखा जा चुका है, १६वीं शताब्दी में गुरु नानक के द्वारा। और यह मात्र इस विश्व ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए गान है। गुरुदेव टैगोर इस आरती से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने स्वयं बांग्ला में इसका अनुवाद भी किया। 
[ " The sky is the puja thaal, in which the sun and the moon are the diyas/The stars in the constellation are the jewels/The wind laden with sandalwood fragrance, is the celestial fan/All the flowering fields/forests are the radiance! What wonderful worship this is, O Destroyer of fear, This is your prayer. "]
 {" Naam tero aarti majan muraare Harke Naam bina jhoothey sagal pasaarey "(694)  O Lord, Thy Name to me is the aarti and holy ablutions. Everything else is false) Onwards, has been composed by Sant Ravidas, who, incidentally was a cobbler.
Versatile actor Balraj Sahni once asked the Nobel laureate Rabindra Nath Tagore, “You've written the National Anthem for India. Can you write an Anthem for the whole world?” 
“It's already been written, not only for the whole world but for the  entire universe, in the 16 century by Guru Nanak,” replied Tagore.
 The Gurudev was referring to Guru Nanak's aarti (the ceremony of light). Tagore was so much enamored of this aarti that he, himself, rendered it in Bangla. ]

(५)
चिदाकाशे होलो पूर्ण प्रेमचंद्रोदय हे, 
उथलिलो प्रेमसिंधू कि आनंदमय हे। 
(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय )

चारिदिके झलमल कोरे भक्त ग्रहदल, 
भक्तसंगे भक्तसखा लीलारसमय हे। 
(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय )

स्वर्गेर दुआर खुली, आनंदलहरी तूली,
नवविधान वसंत समीरन बय, 
छूटे ताहे मंद मंद लीलारस प्रेमगंध, 
घ्राणे जोगिवृंद जोगानंदे मत्त होये हे। 
(जय दयामय, जय दयामय, जय दयामय)

भवसिंधू जले, विधान कमले, आनंदमयी विराजे,
आवेशे आकूल, भक्त अलिकूल, पिये सूधा तार माझे। 
देखे देखे मायेर प्रसन्न वदन, चित्त विनोदन भूवन मोहन,
पदतले दले दले साधुगण नाचे गाय प्रेमे होईये मगन। 

किबा अपरूप आहा मरी मरी जुडाईलो प्राण दरशन कोरी, 
प्रेमदासे बोले सबे पाये धोरी, गाओ भाई मायेर जय। 

“चिदाकाश में प्रेमचन्द्र का पूर्ण उदय हुआ ।......”

*पान और मछली में क्या रखा है , कामिनी-कांचन का त्याग ही त्याग है* 

नरेन्द्रनाथ के गानों के समाप्त होने पर श्रीरामकृष्ण ने भवनाथ से गाने के लिए कहा । भवनाथ ने भी एक गाना गाया-
দয়াঘন তোমা হেন কে হিতকারী!
সুখে-দুঃখে সব, বন্ধু এমন কে, পাপ-তাপ-ভয়হারী। 

(भावार्थ)- “हे दयाधन [अवतार वरिष्ठ रामकृष्ण] , तुम्हारे जैसा हितकारी और कौन है? इस प्रकार सुख और दुःख में समान रूप से साथ देनेवाला । सभी पाप-ताप, भय आदि का हरण करनेवाला साथी दूसरा कौन है? संकटों से पूर्ण इस घोर भवसागर से तारनेवाला खेवैया और कौन हैं? किसकी कृपा से ये संग्रामकारी रिपुगण पराजित होकर दूर भागते हैं? इस प्रकार समस्त पापों का दहन और त्रिताप का निवारण कर शान्तिजल प्रदान करनेवाला और कौन है? अन्त समय में, जब सभी त्याग देते हैं उस समय, कौन इस तरह बाँहें फैलाकर गोद में ले लेता है?”
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नरेन्द्र (हँसते हुए)- इसने (भवनाथ ने) पान और मछली खाना छोड़ दिया है । 

श्रीरामकृष्ण (भवनाथ से हँसते हुए)- क्यों रे? पान और मछली में क्या रखा है? इससे कुछ नहीं होता । The renunciation of 'woman and gold' is the true renunciation. कामिनी-कांचन का त्याग ही त्याग है । राखाल कहा है?

एक भक्त- जी, राखाल सो रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए)- एक आदमी बगल में चटाई लेकर नाटक देखने के लिए गया था । नाटक शुरू होने में देर थी, इसलिए वह चटाई बिछाकर सो गया । जब जागा तब सब समाप्त हो गया था ! (सब हँसते हैं ।)
“ फिर चटाई बगल में दबाकर घर लौट आया ।”
रामदयाल बहुत बीमार हैं । एक दूसरे कमरे में, बिछौने पर पड़े हैं । श्रीरामकृष्ण उस कमरे में जाकर उनकी बीमारी का हाल पूछने लगे ।
*संसारी तथा शास्त्रार्थ* 
तीसरे पहर के चार बज चुके हैं । श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र, राखाल, मास्टर, भवनाथ आदि के साथ बैठक में बैठे हुए हैं । कुछ ब्राह्मभक्त भी आए हैं । उन्हीं के साथ बातचीत हो रही है ।
ब्राह्मभक्त- महाराज क्या आपने भी पंचदशी पढ़ी है ।

श्रीरामकृष्ण- यह सब पहले-पहले एक बार सुनना पड़ता है-पहले-पहल एक बार विचार कर लेना पड़ता है । इसके बाद- ‘प्यारी श्यामा माँ को यत्नपूर्वक हृदय में रख । मन, तू देख और मैं देखूँ और दूसरा कोई न देखने पाये ।’
“साधन-अवस्था में वह सब सुनना पड़ता है । उन्हें प्राप्त कर लेने पर ज्ञान का अभाव नहीं रहता । माँ ज्ञान की राशि ठेलती रहती हैं ।
{"One should hear the scriptures during the early stages of spiritual discipline. After attaining God there is no lack of knowledge. Then the Divine Mother supplies it without fail.
“पहले हिज्जे करके लिखना पड़ता है-फिर सीधे घसीटते जाओ ।
"A child spells out every word as he writes, but later on he writes fluently.
“ सोना गलाने के समय कमर कसकर काम में लगना पड़ता है । एक हाथ में धौंकनी-दूसरे में पंखा-मुँह से फूकना-जब तक सोना न गल जाए । गल जाने पर ज्योंही साँचे में छोड़ा कि सब चिन्ता दूर हो गयी ।

“शास्त्र केवल पढ़ने ही से कुछ नहीं होता । कामिनी-कांचन में रहने से वे शास्त्र का अर्थ समझने नहीं देते । संसार की आसक्ति में ज्ञान का लोप हो जाता है ।
{"Mere reading of the scriptures is not enough. A person cannot understand the true significance of the scriptures if he is attached to the world.

“प्रयत्नपूर्वक मैंने काव्यरसों के जितने भेद सीखे थे वे सब इस काले (श्रीकृष्ण) की प्रीति में पड़ने से नष्ट हो गए ।” (सब हँसते हैं ।)
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श्रीरामकृष्ण ब्राह्मभक्तों से केशव की बात कहने लगे-

“केशव योग और भोग दोनों में हैं । संसार में रहकर ईश्वर की ओर उनका मन लगा रहता है ।” 
{"Keshab enjoys the world and practises yoga as well. Living in the world, he directs his mind to God."

एक भक्त कानवोकेशन (Convocation of Calcutta University/कोलकाता विश्वविद्यालय की उपाधिवितरण सभा) के सम्बन्ध में कहते हुए बोले, “देखा, वहाँ बड़ी भीड़ लगी हुई थी ।”

श्रीरामकृष्ण- एक जगह बहुत से लोगों को देखने पर ईश्वर का उद्दीपन होता है । यदि मैं ऐसा देखता तो विव्हल हो जाता । 
"The feeling of the Divine is awakened in me when I see a great crowd of people. Had I seen that meeting, I should have been over- whelmed with spiritual fervour."

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