[(9 सितम्बर, 1883)परिच्छेद ~ 52, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ]
परिच्छेद ~ ५२
(१)
[दक्षिणेश्वर मंदिर में रतन आदि भक्तों के साथ]
श्रीरामकृष्ण कालीमन्दिरवाले अपने कमरे में प्रसन्नतापूर्वक बैठे हुए भक्तों के साथ वार्तालाप कर रहे हैं। आपका भोजन हो चुका है, दिन के एक दो बजे होंगे ।
आज रविवार है, 9 सितम्बर 1883, भादों की शुक्ला सप्तमी । कमरे में राखाल, मास्टर और रतन बैठे हुए हैं । रामलाल, राम चटर्जी और हाजरा भी एक-एक करके आते और आसन ग्रहण करते हैं । रतन यदु मल्लिक के बगीचे के प्रबन्धक (steward) हैं , बगीचे की देखभाल करते हैं । वे श्रीरामकृष्ण की भक्ति करते हैं, तथा कभी कभी उनके दर्शन कर जाया करते हैं । श्रीरामकृष्ण उन्हीं से बातचीत कर रहे हैं । रतन कह रहे हैं, यदु मल्लिक के कलकत्तेवाले मकान में नीलकण्ठ का जात्रा (नाटक) होगा ।
[Ratan told the Master that a yatra performance by Nilkantha had been arranged in Jadu Mallick's house in Calcutta.
रतन- आपको जाना होगा । उन लोगों ने कहला भेजा है अमुक दिन नाटक होगा ।
[রতন — আপনার যেতে হবে। তাঁরা বলে পাঠিয়েছেন, অমুক দিনে যাত্রা হবে।
RATAN (to the Master): "You must go. The date has been set."
श्रीरामकृष्ण- अच्छा है, मेरी भी जाने की इच्छा है ,नीलकण्ठ कितना भक्तिपूर्वक गाता है !
[ শ্রীরামকৃষ্ণ — তা বেশ, আমার যাবার ইচ্ছা আছে। আহা! নীলকণ্ঠের কি ভক্তির সহিত গান!
MASTER: "That's good. I want to go. Nilkantha sings with great devotion."
एक भक्त- जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण- गाना गाते हुए वह आँसुओं से तर हो जाता है । (रतन से) सोचता हूँ रात को वहीँ रह जाऊँगा ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — গান গাইতে গাইতে সে চক্ষের জলে ভেসে যায়। (রতনের প্রতি) — মনে কচ্ছি রাত্রে রয়ে যাব।
MASTER: "Tears flow from his eyes as he sings. (To Ratan) I am thinking of spending the night in Calcutta when I go to see the yatra."
रतन- अच्छा तो है ।
राम चटर्जी आदि ने यदु मल्लिक के पूजा -घर में हुई खड़ाऊँ चोरी वाली बात पूछी ।
[রাম চাটুজ্যে প্রভৃতি অনেকে খড়ম চুরির কথা জিজ্ঞাসা করিলেন।
Ram Chatterji and the other devotees asked Ratan about a theft in Jadu Mallick's house.
रतन- यदुबाबू के गृहदेवता की सोने की खड़ाऊँ चोरी गयी है । इसके कारण घर में बड़ा हो-हल्ला मचा हुआ है । थाली चलायी जाएँगी ।* सब बैठे रहेंगे, जिसने लिया है, उसकी ओर थाली चली जाएगी ! (*यह एक तरह का टोना है ।)
[রতন — যদুবাবুর বাড়ির ঠাকুরের সোনার খড়ম চুরি হয়েছে। তার জন্য বাড়িতে হুলস্থূল পড়ে গেছে। থালা চালা হবে, সব্বাই বসে থাকবে, যে নিয়েছে তারদিকে থালা চলে যাবে।
"Yes, the golden sandals of the Deity were stolen from the shrine room in Jadu Babu's house. It has created an uproar. They are going to try to discover the thief by means of a 'charmed plate'. Everybody will sit in one room, and the plate will move in the direction of the man who stole the sandals."
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - किस तरह थाली चलती है ? अपने आप चलती है ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — কিরকম থালা চলে? আপনি চলে?
MASTER (with a smile): "How does the plate move? By itself?"
रतन- नहीं, हाथ से दबायी हुई रहती है ।
[রতন — না, হাত চাপা থাকে। RATAN: "No. A man presses it to the ground."
भक्त- हाथ ही की कोई कारीगरी होगी – हाथ की चालाकी ।
[ভক্ত — কি একটা হাতের কৌশল আছে — হাতের চাতুরী আছে।
"It is a kind of sleight of hand. It is a clever trick."]
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए)- जिस चालाकी से लोग ईश्वर को पाते हैं, वही चालाकी चालाकी है । ‘सा चातुरी चातुरी !’ *1
[শ্রীরামকৃষ্ণ — যে চাতুরীতে ভগবানকে পাওয়া যায়, সেই চাতুরীই চাতুরী। “সা চাতুরী চাতুরী!”
"The real cleverness is the cleverness by which one realizes God. That trick is the best of all tricks."
]*1 परमपूज्य नवनीदा ने महामण्डल की मासिक संवाद पत्रिका 'विवेक -जीवन' के एक सम्पादकीय में इस प्रकार की थी -
या राका शशिशोभना गतघना सा यामिनी यामिनी !
या सौर्न्दययुता मन पतिरता सा कामिनी कामिनी !
या गोविन्द पदारविन्द मधुरा सा माधुरी माधुरी !
" या लोकद्वय साधिनी चतुरता सा चातुरी चातुरी ! "
---पूर्णिमा की रात्रि मेँ चन्द्रमा जब पूर्ण रुप से उदय होता है, वह रात्रि बहुत शोभायमान होती है।सौर्न्दय से युक्त जिस नारी के जीवन मेँ, पतिव्रत धर्म होता है, वही धन्य है- वही सुन्दरी है !भगवान के पदारविन्दो मेँ जिनका प्रेम हो, वही मानव जीवन की मधुरिमा है !और जिस चतुरता से लोक और परलोक दोनो सुधर जाय वही मानव जीवन की चतुरता है
वही चालाकी चालाकी है जिससे ईश्वर की प्राप्ति होती है – ‘सा चातुरी चातुरी ‘-जैसे हनुमान जी की चतुराई --- 'विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।' ]
(२)
*तान्त्रिक साधना और श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्यभाव) *
बातचीत हो रही है, इसी समय कुछ बंगाली सज्जन कमरे में आए और श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके उन्होंने आसन ग्रहण किया । उनमें एक व्यक्ति श्रीरामकृष्ण के पहले के परिचित हैं । ये लोग तन्त्र के मत से साधना करते हैं – पंच-मकार साधन । श्रीरामकृष्ण अन्तर्यामी हैं, उनका सम्पूर्ण भाव समझ गए। उनमें एक आदमी धर्म के नाम से पापाचरण भी करता है, यह बात श्रीरामकृष्ण सुन चुके हैं । उसने किसी बड़े आदमी के भाई की विधवा के साथ अवैध प्रेम कर लिया है और धर्म का नाम लेकर उसके साथ पंच-मकार की साधना करता है, यह भी श्रीरामकृष्ण सुन चुके हैं ।
श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्य भाव) है । वे हर एक नारी को माता समझते हैं – वेश्या को भी; और स्त्रियों को भगवती का एक-एक रूप समझते हैं ।
[কথাবার্তা চলিতেছে, এমন সময় কতকগুলি বাঙালী ভদ্রলোক ঘরের মধ্যে আসিয়া ঠাকুরকে প্রণাম করিলেন ও আসন গ্রহণ করিলেন। তাহাদের মধ্যে একজন ঠাকুরের পূর্বপরিচিত। ইঁহারা তন্ত্রমতে সাধন করেন। পঞ্চ-মকার সাধন। ঠাকুর অন্তর্যামী, তাহাদের সমস্ত ভাব বুঝিয়াছেন। তাহাদের মধ্যে একজন ধর্মের নাম করিয়া পাপাচারণ করেন, তাহাও শুনিয়াছেন। সে ব্যক্তি একজন বড়মানুষের ভ্রাতার বিধবার সহিত অবৈধ প্রণয় করিয়াছে ও ধর্মের নাম করিয়া তাহার সহিত পঞ্চ-মকার সাধন করে, ইহাও শুনিয়াছেন।শ্রীরামকৃষ্ণের সন্তানভাব। প্রত্যেক স্ত্রীলোককে মা বলিয়া জানেন — বেশ্যা পর্যন্ত! — আর ভগবতীর এক-একটি রূপ বলিয়া জানেন।
As the conversation went on, several Bengali gentlemen entered the room and, after saluting the Master, sat down. One of them was already known to Sri Ramakrishna. These gentlemen followed the cult of Tantra. The Master knew that one of them indulged in immoral acts in the name of religion. The Tantra rituals, under certain conditions, allow the mixing of men and women devotees. But Sri Ramakrishna regarded all women, even prostitutes, as manifestations of the Divine Mother. He addressed them all as "Mother".
श्रीरामकृष्ण (सहास्य)- अचलानन्द कहाँ है ? उस दिन कालीकिंकर आया था – और एक जन था। (मास्टर आदि से) अचलानन्द और उसके शिष्यों का और ही भाव है । मेरा सन्तान-भाव है ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — অচলানন্দ কোথায়? কালীকিঙ্কর সেদিন এসেছিল, আর একজন কি সিঙ্গি, — (মাস্টার প্রভৃতির প্রতি) অচলানন্দ ও তার শিষ্যদের ভাব আলাদা। আমার সন্তানভাব।
MASTER (with a smile): "Where is Achalananda? My ideal is different from that of Achalananda and his disciples. As for myself, I look on all women as my mother."
आए हुए बाबू लोग चुपचाप बैठे हुए हैं, कुछ बोलते नहीं ।
*अचलानन्द की तान्त्रिक साधना *
श्रीरामकृष्ण-मेरा सन्तान-भाव है । अचलानन्द यहाँ आकर कभी कभी रहता था । खूब शराब पीता था। मेरा सन्तान-भाव है, यह सुनकर अन्त में उसने हठ पकड़ा । कहने लगा- ‘स्त्री को लेकर वीरभाव की साधना तुम क्यों नहीं मानोगे ? शिव की रेख भी नहीं मानोगे ? स्वयं शिवजी ने तन्त्र लिखा है । उसमें सब भावों की साधना है, वीरभाव की भी है ।’
मैंने कहा, ‘मैं क्या जानूँ जी ! मुझे वह सब अच्छा नहीं लगता – मेरा सन्तान-भाव है ।’
{শ্রীরামকৃষ্ণ — আমার সন্তানভাব। অচলানন্দ এখানে এসে মাঝে মাঝে থাকত। খুব কারণ করত। আমার সন্তানভাব শুনে শেষে জিদ্-জিদ্ করে বলতে লাগল, — ‘স্ত্রীলোক লয়ে বীরভাবে তুমি কেন মানবে না? শিবের কলম মানবে না? শিব তন্ত্র লিখে গেছেন, তাতে সব ভাবের সাধন আছে — বীরভাবেরও সাধন আছে।’“আমি বললাম, কে জানে বাপু আমার ও-সব কিছুই ভাল লাগে না — আমার সন্তানভাব।”
"Every woman is a mother to me. Achalananda used to stay here now and then. He would drink a great deal of consecrated wine. Hearing about my attitude toward women, he stubbornly justified his own views. He insisted again and again: 'Why should you not recognize the attitude of a "hero" toward women? Won't you admit the injunctions of Siva? Siva Himself is the author of the Tantra, which prescribes various disciplines, including the "heroic".' I said to him: 'But, my dear sir, I don't know. I don't like these ideas. To me every woman is a mother.'
आगन्तुक सज्जन चुप हैं, कुछ बात नहीं निकल रही है ।
*सिद्धाई और पंच-मकार साधना की निन्दा- पिता का कर्तव्य *
“अचलानन्द अपने बच्चों की खबर नहीं लेता था । मुझसे कहता था, ‘बच्चों को ईश्वर देखेंगे – यह सब ईश्वर की इच्छा है ।’ मैं सुनकर चुप हो जाता था । बात यह है कि लड़कों की देखरेख कौन करे ? लड़के-बाले, घर-द्वार सब छोड़ दिया यह कहीं रुपये कमाने का साधन नहीं बन बैठे, क्योंकि, लोग सोचेंगे, इसने तो सब कुछ त्याग कर दिया है, और इस तरह बहुत सा धन देने लगेंगे।
{“অচলানন্দ ছেলেপিলের খবর নিত না। আমায় বলত, ‘ছেলে ঈশ্বর দেখবেন, — এ-সব ঈশ্বরেচ্ছা!’ আমি শুনে চুপ করে থাকতুম। বলি ছেলেদের দেখে কে? ছেলেপুলে, পরিবার ত্যাগ করেছি বলে, টাকা রোজগারের একটা ছুতা না করা হয়। লোকে ভাববে উনি সব ত্যাগ করেছেন, আর অনেক টাকা এসে পড়বে।
"Achalananda did not support his own children. He said to me, 'God will support them.' I said nothing. But this is the way I felt about it: 'Who will support your children? I hope your renunciation of wife and children is not a way of earning money. People will think you are a holy man because you have renounced everything; so they will give you money. In that way you will earn plenty of money.'
“मुकदमा जीतूँगा, खूब धन होगा, मुकदमा जिता दूँगा, जायदाद दिला दूँगा, क्या इसीलिए साधना है ? ये सब बड़ी ही नीच प्रकृति की बातें हैं ।’
{“মোকদ্দমা জিতব, খুব টাকা হবে, মোকদ্দমা জিতিয়ে দেব, বিষয় পাইয়ে দেব, — এইজন্য সাধন? এ-ভারী হীনবুদ্ধির কথা।
"Spiritual practice with a view to winning a lawsuit and earning money, or to helping others win in court and acquire property, shows a very mean understanding.
“रुपये से भोजन-पान होता है, रहने की जगह होती है, देवताओं की सेवा होती है, साधुओं का सत्कार होता है, सामने कोई गरीब आ गया तो उसका उपकार हो जाता है, ये सब रुपये के सदुपयोग हैं । रुपये ऐश्वर्य का भोग करने के लिए नहीं हैं, न देहसुख के लिए हैं, न लोकसम्मान के लिए ।
{“টাকায় খাওয়া-দাওয়া হয়, একটা থাকবার জায়গা হয়, ঠাকুরের সেবা হয়, সাধু-ভক্তের সেবা হয়, সম্মুখে কেউ গরিব পড়লে তার উপকার হয়। এই সব টাকার সদ্ব্যবহার। ঐশ্বর্য ভোগের জন্য টাকা নয়। দেহের সুখের জন্য টাকা নয়। লোকমান্যের জন্য টাকা নয়।
"Money enables a man to get food and drink, build a house, worship the Deity, serve devotees and holy men, and help the poor when he happens to meet them. These are the good uses of money. Money is not meant tor luxuries or creature comforts or for buying a position in society.
“विभूतियों के लिए लोग तन्त्र के मत्त से पंच-मकार की साधना करते हैं । परन्तु उनकी बुद्धि कितनी हीन है ! कृष्ण ने अर्जुन से कहा है – भाई ! अष्टसिद्धियों में किसी एक के रहने पर तुम्हारी शक्ति तो थोड़ी बढ़ सकती है, परन्तु तुम मुझे न पाओगे । विभूति (सिद्धियों )के रहते माया दूर नहीं होती । माया से फिर अहंकार होता है । कैसी हीन बुद्धि है, घृणास्पद स्थान से तीन घूँट कारणवारि (शराब) पीकर लाभ क्या हुआ? – मुकदमा जीतना ।”
{“সিদ্ধাইয়ের জন্য লোক পঞ্চ-মকার তন্ত্রমতে সাধন করে। কিন্তু কি হীনবুদ্ধি! কৃষ্ণ অর্জুনকে বলেছিলেন, ‘ভাই! অষ্টসিদ্ধির মধ্যে কটি সিদ্ধি থাকলে তোমার একটু শক্তি বাড়তে পারে, কিন্তু আমায় পাবে না। ’ সিদ্ধাই থাকলে মায়া যায় না — মায়া থেকে আবার অহংকার। কি হীনবুদ্ধি! ঘৃণার স্থান থেকে তিন টোসা কারণ বারি খেয়ে লাভ কি হল? — না মোকদ্দমা জেতা!”}
"People practise various Tantrik disciplines to acquire supernatural powers. How mean such people are! Krishna said to Arjuna, 'Friend, by acquiring one of the eight siddhis you may add a little to your power, but you will not be able to realize Me.' One cannot get rid of maya as long as one exercises supernatural powers. And maya begets egotism.
[दीर्घायु होने के लिए हठयोग करने की क्या आवश्यकता? ]
*श्रीरामकृष्ण तथा हठयोग*
“शरीर, रुपया, यह सब अनित्य है । इसके लिए इतना हठ क्यों ? हठयोगियों की दशा देखो न ! शरीर किसी तरह दीर्घायु हो, बस इसी और ध्यान लगा रहता है । ईश्वर की ओर लक्ष नहीं है । नेति-धौति बस पेट साफ कर रहे हैं ! नल लगाकर दूध ग्रहण कर रहे हैं ।
{“শরীর, টাকা, — এ-সব অনিত্য। এর জন্য — এত কেন? দেখ না, হঠযোগীদের দশা। শরীর কিসে দীর্ঘায়ু হবে এই দিকেই নজর! ঈশ্বরের দিকে লক্ষ্য নাই! নেতি, ধৌতি — কেবল পেট সাফ করছেন! নল দিয়ে দুধ গ্রহণ করছেন!}
"Body and wealth are impermanent. Why go to so much trouble for their sakes? Just think of the plight of the hathayogis. Their attention is fixed on one ideal only — longevity. They do not aim at the realization of God at all. They practise such exercises as washing out the intestines, drinking milk through a tube, and the like, with that one aim in view.
“एक सुनार था । उसकी जीभ उलटकर तालू पर चढ़ गयी थी । तब जड़-समाधि की तरह उसकी अवस्था हो गयी । फिर वह हिलता-डुलता न था । बहुत दिनों तक उसी अवस्था में रहा । लोग आकर पूजा करते थे । कुछ साल बाद एकाएक उसकी जीभ सीधी हो गयी । तब उसे पहले की तरह चेतना हो गयी । फिर वही सुनार का काम करने लगा ! (सब हँसते हैं ।)
{“একজন স্যাকরা তার তালুতে জিব উলটে গিছল, তখন তার জড় সমাধির মতো হয়ে গেল। — আর নড়ে-চড়ে না। অনেকদিন ওই ভাবে ছিল, সকলে এসে পূজা করত। কয়েক বৎসর পরে তার জিব হঠাৎ সোজা হয়ে গেল। তখন আগেকার মতো চৈতন্য হল, আবার স্যাকরার কাজ করতে লাগল! (সকলের হাস্য)
"There was once a goldsmith whose tongue suddenly turned up and stuck to his palate. He looked like a man in samadhi. He became completely inert and remained so a long time. People came to worship him. After several years, his tongue suddenly returned to its natural position, and he became conscious of things as before. So he went back to his work as a goldsmith. (All laugh.)
“ वे सब शरीर के कर्म हैं । उससे प्रायः ईश्वर के साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहता । शालग्राम का भाई –[उसका लड़का वंशलोचन (दवा) का व्यवसाय करता था ]- बयासी तरह के आसन जानता था । वह योग-समाधि की भी बहुत सी बातें कहता था । परन्तु भीतर ही भीतर उसका कामिनी-कांचन में मन था। दीवान मदन भट्ट की कुछ हजार रुपयों की एक नोट पड़ी थी, रुपयों की लालच से वह उसे झट निगल गया । बाद में फिर किसी तरह निकाल लेता । परन्तु नोट उससे वसूल हो गयी । अन्त में तीन साल के लिए वह जेल भेजा गया । मैं सरल भाव से सोचता था, शायद उसकी आध्यात्मिक उन्नति बहुत हो चुकी है, सच कहता हूँ – रामदुहाई !”
{“ও-সব শরীরের কার্য, ওতে প্রায় ঈশ্বরের সঙ্গে সম্বন্ধ থাকে না। শালগ্রামের ভাই (তার ছেলের বংশলোচনের কারবার ছিল) — বিরাশিরকম আসন জানত, আর নিজে যোগসমাধির কথা কত বলত! কিন্তু ভিতরে ভিতরে কামিনী-কাঞ্চনে মন। দাওয়ান মদন ভট্টের কত হাজার টাকার একখানা নোট পড়ে ছিল। টাকার লোভে সে টপ করে খেয়ে ফেলেছে — গিলে ফেলেছে — পরে কোনও রূপে বার করবে। কিন্তু নোট আদায় হল। শেষে তিন বৎসর মেয়াদ। আমি সরল বুদ্ধিতে ভাবতুম, বুঝি বেশি এগিয়ে পড়েছে, — মাইরি বলছি!”}
"These are physical things and have nothing to do with God. There was a man who knew eighty-two postures and talked big about yoga-samadhi. But inwardly he was drawn to 'woman and gold'. Once he found a bank-note worth several thousand rupees. He could not resist the temptation, and swallowed it, thinking he would get it out somehow later on. The note was got out of him all right, but he was sent to jail for three years. In my guilelessness I used to think that the man had made great spiritual progress. Really, I say it upon my word!
*श्रीरामकृष्ण तथा कामिनी-कांचन*
[भगवतीया तेलिन , कर्ताभजा सम्प्रदाय में स्त्रियों को साथ लेकर साधना की निंदा]
“यहाँ सींती का महेन्द्र पाल पाँच रुपये दे गया था, रामलाल के पास । उसके चले जाने के बाद रामलाल ने मुझसे कहा । मैंने पूछा, क्यों दिया ? रामलाल ने कहा, यहाँ के खर्च के लिए दिया है । तब याद आया, दूधवाले को कुछ देना है; हो न हो, इन्हीं रुपयों से कुछ दे दिया जाय । परन्तु यह क्या आश्चर्य ! मैं रात को सोया हुआ था, एकाएक उठ पड़ा । छाती के भीतर मानो कोई बिल्ली की तरह खरोंचने लगा । तब रामलाल के पास जाकर मैंने कहा, किसे दिया है? – तेरी चाची को ? रामलाल ने कहा , नहीं, आपके लिए । तब मैंने कहा, नहीं, रुपये जाकर अभी वापस दे आ, नहीं तो मुझे शान्ति न होगी ।
“रामलाल सुबह को उठकर जब रुपये वापस दे आया, तब तबियत ठीक हुई !”
{“এখানে সিঁথির মহিন্দোর পাল পাঁচটি টাকা দিয়ে গিছল — রামলালের কাছে। সে চলে গেলে পর রামলাল আমায় বললে। আমি জিজ্ঞাসা করলাম, কেন দিয়েছে? রামলাল বললে, এখানের জন্যে দিয়েছে। তখন মনে উঠতে লাগল যে — দুধের দেনা রয়েছে, না হয় কতক শোধ দেওয়া যাবে। ওমা, রাত্রে শুয়ে আছি হঠাৎ উঠে পড়লাম। একবার বুকের ভিতর বিল্লী আঁচড়াতে লাগল! তখন রামলালকে গিয়ে বললাম, কাকে দিয়েছে? তোর খুড়ীকে কি দিয়েছে? রামলাল বললে, না আপনার জন্য দিয়েছে। তখন বললাম, না; এক্ষুণি টাকা ফিরিয়ে দিয়ে আয়, তা না হলে আমার শান্তি হবে না।}
"Mahendra Pal of Sinthi once gave Ramlal five rupees. Ramlal told me about it after he had gone. I asked him what the gift was for, and Ramlal said "that it was meant for me. I thought it might enable me to pay off some of my debt for milk. That night I went to bed and, if you will believe me, I suddenly woke up with a pain. I felt as if a cat were scratching inside my chest. I at once went to Ramlal and asked him: 'For whom did Mahendra give this money? Was it for your aunt?'5 'No,' said Ramlal, 'it is meant for you.' I said to him, 'Go and return the money at once, or I shall have no peace of mind.' Ramlal returned the money early in the morning and I felt relieved.
“उस देश की भगवतिया तेलिन कर्ताभजा दल की है । वे सब औरत लेकर साधना किया करते हैं। एक पुरुष के हुए बिना स्त्री की साधना होगी ही नहीं । उस पुरुष को ‘रागकृष्ण’ कहते हैं । तीन बार स्त्री से पूछा जाता है, तूने कृष्ण को पाया? वह स्त्री तीनों बार कहती है, पाया ।
{“ও-দেশে ভগি তেলী কর্তাভজার দলের। ওই মেয়েমানুষ নিয়ে সাধন। একটি পুরুষ না হলে মেয়েমানুষের সাধন-ভজন হবে না। সেই পুরুষটিকে বলে ‘রাগকৃষ্ণ’। তিনবার জিজ্ঞাসা করে, কৃষ্ণ পেয়েছিস? সে মেয়েমানুষটা তিনবার বলে, পেয়েছি। इसका इंग्लिश ट्रांसलेशन नहीं है ?}
“भगवतिया शुद्र है, तेलिन है, परन्तु सब उसके पास जाकर उसके पैरों की धूल लेते थे, उसे नमस्कार करते थे । तब जमींदार को इस पर बड़ा क्रोध आ गया । मैंने उसे देखा है । जमींदार ने उसके पास एक बदमाश भेज दिया । उससे वह फँस गयी और उसके गर्भ रहा ।”
{“ভগী (ভগবতী) শূদ্র, তেলী। সকলে গিয়ে তার পায়ের ধুলো নিয়ে নমস্কার করত, তখন জমিদারের বড় রাগ হল। আমি তাকে দেখেছি। জমিদার একটা দুষ্ট লোক পাঠিয়ে দেয় — তার পাল্লায় পড়ে তার আবার পেটে ছেলে হয়।
(👆इसका इंग्लिश ट्रांसलेशन नहीं है ?}
*चोरा न शुने धर्मेर काहिनी *
“चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’
“एक दिन एक बड़ा आदमी आया था । मुझसे कहा, ‘महाराज, इस मुक़दमे में ऐसा कर दीजिये कि मैं जीत जाऊँ । आपका नाम सुनकर आया हूँ ।’ मैंने कहा, ‘भाई, वह मैं नहीं हूँ । तुम्हारी भूल हुई । वह अचलानन्द है ।’
{“একদিন একজন বড়মানুষ এসেছিল। আমায় বলে, মহাশয় এই মোকদ্দমাটি কিসে জিত হয় আপনার করে দিতে হবে। আপনার নাম শুনে এসেছি। আমি বললাম, বাপু, সে আমি নই — তোমার ভুল হয়েছে। সে অচলানন্দ।}
"Once a rich man came here and said to me: 'Sir, you must do something so that I may win my lawsuit. I have heard of your reputation and so I have come here.' 'My dear sir,' I said to him, 'you have made a mistake. I am not the person you are looking for ; Achalananda is your man.
“ईश्वर पर जिसकी सच्ची भक्ति है, वह शरीर, रुपया आदि की थोड़ी भी परवाह नहीं करता । वह सोचता है, देहसुख के लिए, लोकसम्मान के लिए, रुपयों के लिए, क्या जप और तप करूँ ? ये सब अनित्य हैं, चार दिन के लिए हैं ।”
{“যার ঠিক ঠিক ঈশ্বরে ভক্তি আছে, সে শরীর, টাকা — এ-সব গ্রাহ্য করে না। সে ভাবে, দেহসুখের জন্য, কি লোকমান্যের জন্য, কি টাকার জন্য, আবার তপ-জপ কি! এ-সব অনিত্য, দিন দুই-তিনের জন্য।”}
"A true devotee of God does not care for such things as wealth or health. He thinks: 'Why should I practise spiritual austerities for creature comforts, money, or name and fame? These are all impermanent. They last only a day or two.'"
आये हुए सब बाबू लोग उठे । उन्होंने नमस्कार करके कहा, ‘तो हम चलें ।’ वे चले गए । श्रीरामकृष्ण मुस्करा रहे हैं और मास्टर से कह रहे हैं – “चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’ (सब हँसते हैं ।)
(আগন্তুক বাবুরা এইবার গাত্রোত্থান করিলেন ও নমস্কার করিয়া বলিলেন, তবে আমারা আসি। তাঁহারা চলিয়া গেলেন। ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ ঈষৎ হাস্য করিতেছেন ও মাস্টারকে বলিতেছেন, “চোরা না শুনে ধর্মের কাহিনী।” (সকলের হাস্য)
The visiting gentlemen took leave of the Master after saluting him. When they had departed, Sri Ramakrishna smiled and said to M., "You can never make a thief listen to religion. (All laugh.)
(४)
[ अपने-आप पर विश्वास (आत्मश्रद्धा) का मूल~ ईश्वर में विश्वास !]
*विश्वास चाहिए*
श्रीरामकृष्ण (मणि से सहास्य)- अच्छा, नरेन्द्र कैसा है ?
मणि- जी, बहुत अच्छा है ।
श्रीरामकृष्ण- देखो, उसकी जैसी विद्या है, वैसी ही बुद्धि भी है । और गाना-बजाना भी जानता है । इधर जितेन्द्रिय भी है; कहता है, विवाह न करूँगा ।
{ "শ্রীরামকৃষ্ণ — দেখ, তার যেমন বিদ্যে তেমনি বুদ্ধি! আবার গাইতে বাজাতে। এদিকে জিতেন্দ্রিয়, বলেছে বিয়ে করবে না!}
"Yes. His intelligence is as great as his learning. Besides, he is gifted in music, both as a singer and player. Then too, he has control over his passions. He says he will never marry.
मणि- आपने कहा है, जो पाप पाप सोचता रहता है, वह पापी हो जाता है, फिर वह उठ नहीं सकता । मैं ईश्वर की सन्तान हूँ , यह विश्वास यदि हुआ तो बहुत शीघ्रता से उन्नति होती है ।
{ "মণি — আপনি বলেছেন, যে পাপ পাপ মনে করে সেই পাপী হয়ে যায়। আর উঠতে পারে না। আমি ঈশ্বরের ছেলে — এ-বিশ্বাস থাকলে শীঘ্র শীঘ্র উন্নতি হয়।}
"You once said that one who constantly talks of his sin really becomes a sinner; he cannot extricate himself from sin. But if a man has firm faith that he is the son of God, then he makes rapid strides in spiritual life.
[पृष्ठभूमि - कृष्णकिशोर की आत्मश्रद्धा - हलधारी के पिता का विश्वास। ]
श्रीरामकृष्ण- हाँ, विश्वास चाहिए ।
“कृष्णकिशोर का कैसा विश्वास है । कहता था, ‘मैं एक बार उनका नाम ले चुका, अब मुझमें पाप कहाँ रह गया ? मैं शुद्ध और निर्मल हो गया हूँ ।’ हलधारी ने कहा था, ‘अजामिल फिर नारायण की तपस्या करने गया था; तपस्या न करने पर क्या उनकी कृपा होती है ? – केवल एक बार नारायण कहने से क्या होगा ?’ यह बात सुनकर कृष्णकिशोर को इतना क्रोध आया कि बगीचे में फूल तोड़ने आया था – उसने हलधारी की ओर फिर एक दृष्टि भी नहीं फेरी ।
{“কৃষ্ণকিশোরের কি বিশ্বাস! বলত, একবার তাঁর নাম করেছি আমার আবার পাপ কি? আমি শুদ্ধ নির্মল হয়ে গেছি। হলধারী বলেছিল, ‘অজামিল আবার নারায়ণের তপস্যায় গিছিল, তপস্যা না করলে কি তাঁর কৃপা পাওয়া যায়! শুধু একবার নারায়ণ বললে কি হবে!’ ওই কথা শুনে কৃষ্ণকিশোরের যে রাগ! এই বাগানে ফুল তুলতে এসেছিল, হলধারীর মুখের দিকে চেয়ে দেখলে না!}
MASTER: "Yes, faith. What tremendous faith Krishnakishore had! He used to say: 'I have spoken the name of God once. That is enough. How can I remain a sinner? I have become pure and stainless.' One day Haladhari said: 'Even Ajamila had to perform austerities to gratify God. Can one receive the grace of God without austerities? What will one gain by speaking the name of Narayana only once?' At these remarks Krishnakishore's anger knew no bounds. The next time he came to this garden to pick flowers he wouldn't even look at Haladhari.
“हलधारी का बाप बड़ा भक्त था । स्नान करते हुए कमरभर पानी में जब वह मन्त्र पढ़ता था, - ‘रक्तवर्ण चतुर्मुखम्’ आदि कहते हुए ध्यान करता था, - तब उसकी आँखों से अनर्गल प्रेमाश्रु बह चलते थे ।
{“হলধারীর বাপ ভারী ভক্ত ছিল। স্নানের সময় কোমর জলে গিয়ে যখন মন্ত্র উচ্চারণ করত, — ‘রক্তবর্ণং চতুর্মুখম্’ এই সব ধ্যান যখন করত, — তখন চক্ষু দিয়ে প্রেমাশ্রু পড়ত।}
"Haladhari's father was a great devotee. At bathing-time he would stand waist-deep in the water and meditate on God, uttering the sacred mantra; then the tears would flow from his eyes.
“एक दिन एँड़ेदेह के घाट पर एक साधु आया । बात हुई, हम लोग भी देखने जाएँगे । हलधारी ने कहा, ‘उस पंचभूतों के गिलाफ को देखकर क्या होगा ?’
इसके बाद कृष्णकिशोर ने यह बात सुनकर कहा था, ‘क्या ! साधु के दर्शन से क्या होगा ऐसी बात भी उसके मुँह से निकली ! जो लोग कृष्ण का नाम लेते हैं या रामनाम का जप करते हैं, उनकी देह चिन्मय होती है और वे सब चिन्मय देखते हैं – चिन्मय शाम, चिन्मय धाम !’ उसने कहा था, ‘एक बार कृष्ण या राम का नाम लेने पर सौ बार के सन्ध्या करने का फल होता है ।’ जब उसके लड़के की मृत्यु होने लगी तब मरते समय राम का नाम लेकर उसने देह छोड़ी थी । कृष्णकिशोर कहता था, ‘उसने राम का नाम लिया है, उसे अब क्या चिन्ता है ?’ परन्तु कभी कभी रो पड़ता था। पुत्र का शोक !
{“একদিন এঁড়েদার ঘাটে একটি সাধু এসেছে। আমরা দেখতে যাব কথা হল। হলধারী বললে, সেই পঞ্চভূতের খোলটা দেখতে গিয়ে কি হবে? তারপরে সেই কথা কৃষ্ণকিশোর শুনে কি বলেছিল, কি! সাধুকে দর্শন করে কি হবে, এই কথা বললে! — যে কৃষ্ণনাম করে, বা রামনাম করে, তার চিন্ময় দেহ হয়। আর সে সব চিন্ময় দেখে — ‘চিন্ময় শ্যাম’, ‘চিন্ময় ধাম’। বলেছিল, একবার কৃষ্ণনাম কি একবার রামনাম করলে শতবার সন্ধ্যার ফল পাওয়া যায়। তার একটি ছেলে যখন মারা গেল, প্রাণ যাবার সময় রামনাম বলেছিল। কৃষ্ণকিশোর বলেছিল, ও রাম বলেছে, ওর আর ভাবনা কি! তবে মাঝে মাঝে এক-একবার কাঁদত। পুত্রশোক!}
"One day a holy man came to the bathing-place on the Ganges at Ariadaha. We talked about seeing him. Haladhari said, 'What shall we gain by seeing the body of a man, a mere cage made of the five elements?' Krishnakishore heard about it and said: 'What? Did Haladhari ask what would be gained by visiting a holy man? By repeating the name of Krishna or Rama a man transforms his physical body into a spiritual body. To such a man everything is the embodiment of Spirit. To him Krishna is the embodiment of Spirit, and His sacred Abode is the embodiment of Spirit.' He also said, 'A man who utters the name of Krishna or Rama even once reaps the result of a hundred sandhyas."One of his sons chanted the name of Rama on his death-bed. Krishnakishore said, 'He has nothing to worry about; he has chanted the name of Rama.' But now and then he wept. After all, it was the death of his own son.'
“वृन्दावन में उसे प्यास लगी थी । मोची से उसने कहा, ‘तू शिव का नाम ले ।’ उसने शिव का नाम लेकर पानी भर दिया – उस तरह का आचारी ब्राह्मण होकर भी उसने वह पानी पी लिया कितना बड़ा विश्वास है ।
[“বৃন্দাবনে জলতৃষ্ণা পেয়েছে, মুচিকে বললে, তুই বল শিব। সে শিবনাম করে জল তুলে দিলে — অমন আচারী ব্রাহ্মণ সেই জল খেলে! কি বিশ্বাস! पाश्चात्य देशों के भक्त , जो भारतीय संस्कृति के वर्णाश्रम धर्म से परिचित नहीं हैं , वे कहीं इसका गलत अर्थ न समझें , इसीलिए शायद महाराज ने इसको इंग्लिश में ट्रांसलेट नहीं किया है ?' ]
“विश्वास नहीं है, और पूजा, जप, सन्ध्यादि कर्म करता है, इससे कुछ नहीं होगा ! क्यों जी ?”
{“বিশ্বাস নাই, অথচ পূজা, জপ, সন্ধ্যাদি কর্ম করছে — তাতে কিছুই হয় না! কি বল?”}
"Nothing whatsoever is achieved by the performance of worship, japa, and devotions, without faith. Isn't that so?"
मास्टर- जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) - गंगा के घाट में नहाने के लिए लोग आते हैं । मैंने देखा है, उस समय दुनिया भर की बातें करते हैं । किसी की विधवा बुआ कह रही है – “बहू, मेरे बिना रहे दुर्गापूजा नहीं होती । मैं न रहूँ तो ‘श्री’ मूर्ति भी सुडौल न हो ! घर में शादी-ब्याह कुछ हुआ तो सब काम मुझे ही करना पड़ता है, नहीं तो अधूरा रह जाय । फूलशय्या का बन्दोबस्त, कत्थे के बगीचे की तैयारी सब मैं ही करती हूँ ।”
['শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — গঙ্গার ঘাটে নাইতে এসেছে দেখেছি। যত রাজ্যের কথা! বিধবা পিসি বলছে, মা, দুর্গাপূজা আমি না হলে হয় না — শ্রীটি গড়া পর্যন্ত! বাটীতে বিয়ে-থাওয়া হলে সব আমায় করতে হবে মা — তবে হবে। এই ফুলশয্যের যোগাড়, খয়েরের বাগানটি পর্যন্ত!}
MASTER: "I see people coming to the Ganges to bathe. They talk their heads off about everything under the sun. The widowed aunt says: 'Without me they cannot perform the Durga Puja. I have to look after even the smallest detail. Again, I have to supervise everything when there is a marriage festival in the family, even the bed of the bride and groom.
मणि- जी, इनका भी क्या दोष – क्या लेकर रहें ।
{ "Why should we blame them? How else will they pass the time?
"মণি — আজ্ঞে, এদেরই বা দোষ কি, কি নিয়ে থাকে!}
श्रीरामकृष्ण (सहास्य)- छत पर ठाकुरजी के लिए घर बनाया है । नारायण की पूजा हो रही है । पूजा का नैवेद्य, चन्दन यह सब तैयार किया जा रहा है । परन्तु ईश्वर की बात कहीं एक भी नहीं होती । क्या पकाना चाहिए, - आज बाजार में कोई अच्छी चीज नहीं मिली, कल अमुक व्यंजन अच्छा बना था, - वह लड़का मेरा चचेरा भाई हैं, - क्यों रे, तेरी वह नौकरी है न ? – और मैं अब कैसी हूँ ! – मेरा हरि चल बसा !’ बस यही सब बातें होती हैं !
“देखो भला, ठाकुरजी की पूजा के समय ये सब दुनिया भर की बातें !”
{ শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — ছাদের উপর ঠাকুরঘর, নারায়ণপূজা হচ্ছে। পূজার নৈবেদ্য, চন্দন ঘষা — এই সব হচ্ছে। কিন্তু ঈশ্বরের কথা একটি নাই। কি রাঁধতে হবে, — আজ বাজারে কিছু ভাল পেলে না, — কাল অমুক ব্যঞ্জনটি বেশ হয়েছিল! ওছে লেটি আমার খুড়তুত ভাই হয়, — হাঁরে তোর সে কর্মটি আছে? — আর আমি কেমন আছি! — আমার হরি নাই! এই সব কথা।}
"Some people have their shrine rooms in their attics. The women arrange the offerings and flowers and make the sandal-paste. But, while doing so, they never say a word about God. The burden of the conversation is: 'What shall we cook today? I couldn't get good vegetables in the market. That curry was delicious yesterday. That boy is my cousin. Hello there! Have you that job still? Don't ask me how I am. My Hari is no more.' Just fancy! They talk of such things in the shrine room at the time of worship!"
मणि- जी, अधिक संख्या ऐसे ही लोगों की है । आप जैसा कहते हैं, ईश्वर पर जिसका अनुराग है, उसे अधिक दिनों तक पूजा और सन्ध्या थोड़े ही करनी पड़ती है !
(5)
[ माँ काली का चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है >'पानी' का......'आइसबर्ग '!]
*चिन्मय रूप । ज्ञान और विज्ञान । ‘ईश्वर ही वस्तु है’*
श्रीरामकृष्ण एकान्त में मणि के साथ बातचीत कर रहे हैं ।
मणि- अच्छा, वही अगर सब कुछ हुए हैं, तो इस तरह के अनेक भाव क्यों दीख पड़ते हैं ?
["মণি — আজ্ঞে, তিনিই যদি সব হয়েছেন, এরূপ নানাভাব কেন?]
M: "Sir, if it is God Himself who has become everything, then why do people have so many different feelings?
श्रीरामकृष्ण- विभु ( All-pervading Spirit) के स्वरूप से वे सर्वभूतों में हैं परन्तु शक्ति की विशेषता है । कहीं तो उनकी विद्याशक्ति है और कहीं अविद्याशक्ति, कहीं ज्यादा शक्ति है और कम । देखो न, आदमियों के भीतर ठग-चोर भी हैं और बाघ जैसे भयानक प्रकृतिवाले भी हैं । मैं कहता हूँ, ठग-नारायण हैं, बाघ-नारायण है।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — বিভুরূপে তিনি সর্বভূতে আছেন, কিন্তু শক্তিবিশেষ, কোনখানে বিদ্যাশক্তি (Metaphysics) , কোনখানে অবিদ্যাশক্তি (Physics), কোনখানে বেশি শক্তি, কোনখানে কম শক্তি। দেখ না, মানুষের ভিতর ঠগ, জুয়াচোর আছে, আবার বাঘের মতো ভয়ানক লোকও আছে। আমি বলি, ঠগ নারায়ণ, বাঘ নারায়ণ।]
MASTER: "Undoubtedly God exists in all beings as the All-pervading Spirit, but the manifestations of His Power are different in different beings. In some places there is a manifestation of the power of Knowledge; in others, of the power of ignorance. In some places there is a greater manifestation of power than in others. Don't you see that among human beings there are cheats and gamblers, to say nothing of men who are like tigers. I think of them as the 'cheat God', the 'tiger God'."
मणि-(सहास्य)- जी, उन्हें तो दूर ही से नमस्कार करना चाहिए । बाघनारायण के पास जाकर अगर कोई उन्हें भर बाँह भेंटने लगे, तब तो वे उसे कलेवा ही कर जाएँ ।
{ "মণি (সহাস্যে) — আজ্ঞা, তাদের দূর থেকে নমস্কার করতে হয়। বাঘ নারায়ণকে কাছে গিয়ে আলিঙ্গন করলে খেয়ে ফেলবে।}
"We should salute them from a distance. If we go near the 'tiger God' and embrace him, he may devour us.
श्रीरामकृष्ण- वे और उनकी शक्ति – ब्रह्म और शक्ति – इसके सिवाय और कुछ नहीं है । नारद ने रामचन्द्रजी से स्तव करते हुए कहा – हे राम, तुम्हीं शिव हो, सीता भगवती हैं; तुम ब्रह्मा हो, सीता ब्रह्माणी हैं; तुम इन्द्र हो, सीता इन्द्राणी हैं; तुम नारायण हो, सीता लक्ष्मी; पुरुषवाचक जो कुछ हैं, सब तुम्हीं हो, स्त्रीवाचक जो कुछ है, सब सीता ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — তিনি আর তাঁর শক্তি, ব্রহ্ম আর শক্তি — বই আর কিছুই নাই। নারদ রামচন্দ্রকে স্তব করতে বললেন, হে রাম তুমিই শিব, সীতা ভগবতী; তুমি ব্রহ্মা, সীতা ব্রহ্মাণী; তুমি ইন্দ্র, সীতা ইন্দ্রাণী; তুমিই নারায়ণ, সীতা লক্ষ্মী; পুরুষ-বাচক যা কিছু আছে সব তুমি, স্ত্রী-বাচক সব সীতা।}
MASTER : "He and His Power, Brahman and Its Power — nothing else exists but this. In a hymn to Rama, Narada said: 'O Rama, You are. Siva, and Sita is Bhagavati; You are Brahma, and Sita is Brahmani; You are Indra, and Sita is Indrani; You are Narayana, and Sita is Lakshmi. O 'Rama, You are the symbol of all that is masculine, and Sita of all that is feminine.'
मणि- और चिन्मय रूप ?
{ "Sir, what is the Spirit-form of God like?"মণি — আর চিন্ময় রূপ?}
श्रीरामकृष्ण कुछ देर बाद विचार करने लगे । फिर धीमे स्वर में कहा, “वह किस तरह है बताऊँ – जैसे पानी का......(आइसबर्ग ?)। ये सब बातें साधना करने पर समझ में आती है ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ একটু চিন্তা করিতেছেন। আস্তে আস্তে বলিতেছেন, “কিরকম জানো — যেমন জলের — এ-সব সাধন করলে জানা যায়।}
Sri Ramakrishna reflected a moment and said softly: "Shall I tell you what it is like? It is like water. . . . One understands all this through spiritual discipline.
* ब्रह्मज्ञान के बाद विज्ञान (ऋतम्भरा प्रज्ञा?) - जल और आइसबर्ग अभेद *
“रूप पर विश्वास करना । जब ब्रह्मज्ञान होता है, अभेदता तब होती है । ब्रह्म और शक्ति अभेद हैं। जैसे अग्नि और उसकी दाहिका शक्ति ।
अग्नि को सोचने पर साथ ही उसकी दाहिका शक्ति को भी सोचना पड़ता है; और दाहिका शक्ति को सोचने पर अग्नि को भी सोचना पड़ता है; जैसे दूध और दूध की धवलता, जल और उसकी हिमशक्ति ।
[“তুমি ‘রূপে’ বিশ্বাস করো। ব্রহ্মজ্ঞান হলে তবে অভেদ — ব্রহ্ম আর শক্তি অভেদ। যেমন অগ্নি আর তার দাহিকাশক্তি। অগ্নি ভাবলেই দাহিকাশক্তি ভাবতে হয়, আর দাহিকাশক্তি ভাবলেই অগ্নি ভাবতে হয়। দুগ্ধ আর দুগ্ধের ধবলত্ব। জল আর হিম শক্তি।}
"Believe in the form of God. It is only after attaining Brahmajnana that one sees non-duality, the oneness of Brahman and Its Sakti. Brahman and Sakti are identical, like fire and its power to burn. When a man thinks of fire, he must also think of its power to burn. Again, when he thinks of the power to bum, he must also think of fire. Further, Brahman and Sakti are like milk and its whiteness, water and its wetness.
“ परन्तु ब्रह्मज्ञान के बाद भी अवस्था है । ज्ञान के बाद विज्ञान है । जिसे ज्ञान है, जिसे बोध हो गया, उसमें अज्ञान भी है । शत पुत्रों के शोक से वशिष्ठ को भी रोना पड़ा था । लक्ष्मण के पूछने पर राम ने कहा, 'भाई, ज्ञान और अज्ञान के पार जाओ; जिसे ज्ञान है, उसे अज्ञान भी है । पैर में अगर काँटा चुभ जाय, तो एक दूसरा काँटा लेकर वह निकाल दिया जात है, फिर उसके साथ दूसरा काँटा भी फेंक दिया जाता है ।
[“কিন্তু ব্রহ্মজ্ঞানের পরও আছে। জ্ঞানের পর বিজ্ঞান। যার জ্ঞান আছে, বোধ হয়েছে, তার অজ্ঞানও আছে। বশিষ্ঠ শত পুত্রশোকে কাতর হলেন। লক্ষ্মণ জিজ্ঞাসা করাতে রাম বললেন, ভাই, জ্ঞান অজ্ঞানের পার হও, যার আছে জ্ঞান, তার আছে অজ্ঞান। পায়ে যদি কাঁটা ফোটে, আর-একটি আহরণ করে সেই কাঁটাটি তুলে দিতে হয়। তারপর দ্বিতীয় কাঁটাটিও ফেলে দেয়।”]
"But there is a stage beyond even Brahmajnana. After jnana comes vijnana. He who is aware of knowledge is also aware of ignorance. The sage Vasishtha was stricken with grief at the death of his hundred sons. Asked by Lakshmana why a man of knowledge should grieve for such a reason, Rama said, 'Brother, go beyond both knowledge and ignorance.' He who has knowledge has ignorance also. If a thorn has entered your foot, get another thorn and with its help take out the first; then throw away the second also."
मणि- क्या अज्ञान और ज्ञान दोनों फेंक दिये जाते हैं ?
{মণি — অজ্ঞান, জ্ঞান দুই-ই ফেলে দিতে হয়?}
M: "Should one throw away both knowledge and ignorance?"
श्रीरामकृष्ण- हाँ, इसीलिए विज्ञान की आवश्यकता है ।
“देखो न, जिसे उजाले का ज्ञान है, उसे अँधेरे का भी है; जिसे सुख का बोध है, उसे दुःख का भी है; जिसे पुण्य का विचार है, उसे पाप का भी है; जिसे भले का स्मरण है, उसे बुरे का भी है; जिसे शुचिता का अनुभव है, उसे अशुचिता का भी है; जिसे ‘अहं’ का ध्यान ही, उसे ‘तुम’ का भी है !
{“শ্রীরামকৃষ্ণ — হাঁ, তাই বিজ্ঞানের প্রয়োজন!দেখ না, যার আলো জ্ঞান আছে, তার অন্ধকার জ্ঞান আছে; যার সুখ বোধ আছে, তার দুঃখ বোধ আছে; যার পুণ্য বোধ আছে, তার পাপ বোধ আছে; যার ভাল বোধ আছে, তার মন্দ বোধও আছে; যার শুচি বোধ আছে, তার অশুচি বোধ আছে; যার আমি বোধ আছে, তার তুমি বোধও আছে।परमपूज्य नवनी दा ने संत रबिया के रूपक से समझाया था - " 'I' am 'You' My dear ! " और दरवाजा खुल गया !}
"Yes. That is why one should acquire vijnana. You see, he who is aware of light is also aware of darkness. He who is aware of happiness is also aware of suffering. He who is aware of virtue is also aware of vice. He who is aware of good is also aware of evil. He who is aware of holiness is also aware of unholiness. He who is aware of 'I' is also aware of 'you'.
“विज्ञान –अर्थात् उन्हें विशेष रूप से जानना ।
लकड़ी में आग है, इस बोध इस विश्वास-का नाम है ज्ञान, और उस आग से खाना पकाना, खाना खाकर हृष्ट-पुष्ट होना, इसका नाम है विज्ञान । ईश्वर हैं, हृदय में यह बोध होना इसका नाम है ज्ञान और उनके साथ वार्तालाप, उन्हें लेकर आनन्द करना-चाहे जिस भाव से हो, दास्य या सख्य या वात्सल्य या मधुर से-इसका नाम है विज्ञान ।
{“বিজ্ঞান — কিনা তাঁকে বিশেষরূপে জানা। কাষ্ঠে আছে অগ্নি, এই বোধ — এই বিশ্বাসের নাম জ্ঞান। সেই আগুনে ভাত রাঁধা, খাওয়া, খেয়ে হৃষ্টপুষ্ট হওয়ার নাম বিজ্ঞান। ঈশ্বর আছেন এইটি বোধে বোধ, তার নাম জ্ঞান; তাঁর সঙ্গে আলাপ, তাঁকে নিয়ে আনন্দ করা — বাৎসল্যভাবে, সখ্যভাবে, দাসভাবে, মধুরভাবে — এরই নাম বিজ্ঞান। জীবজগৎ তিনি হয়েছেন, এইটি দর্শন করার নাম বিজ্ঞান।}
"What is vijnana? It is knowing God in a special way. The awareness and conviction that fire exists in wood is jnana, knowledge. But to cook rice on that fire, eat the rice, and get nourishment from it is vijnana. To know by one's inner experience that God exists is jnana. But to talk to Him, to enjoy Him as Child, as Friend, as Master, as Beloved, is vijnana. The realization that God alone has become the universe and all living beings is vijnana.
जीव और यह प्रपंच वे ही हुए हैं, इसके दर्शन करने का नाम है विज्ञान । एक विशेष मत के अनुसार कहा जाता है कि दर्शन हो नहीं सकते, कौन किसके दर्शन करे ? वह तो अपने ही स्वरूप के दर्शन करता है । कालेपानी में जहाज जब चला जाता है, तब लौट नहीं सकता, लौटकर खबर नहीं दे सकता।”
[“এক মতে দর্শন হয় না — কে কাকে দর্শন করে। আপনিই আপনাকে দেখে। কালাপানিতে জাহাজ গেলে ফেরে না — আর ফিরে খবর দেয় না।”}
"According to one school of thought, God cannot be seen. Who sees whom? Is God outside you, that you can see Him? One sees only oneself. Having once entered the 'black waters' of the ocean, the ship does not come back and so cannot describe what it experiences."]
मणि- जैसा आप कहते हैं, मानूमेण्ट के ऊपर चढ़ जाने पर फिर नीचे की खबर नहीं रहती कि गाड़ी, घोड़े, मेम, साहब, घर-द्वार, दूकाने, आफिस कहाँ है ।
{মণি — যেমন আপনি বলেন, মনুমেন্টের উপরে উঠলে আর নিচের খবর থাকে না — গাড়ি, ঘোড়া, মেম, সাহেব, বাড়ি, ঘর, দ্বার, দোকান, অফিস ইত্যাদি। जैसे धजाधारी पहाड़ पर चढ़ के देखने से -कोडरमा -तिलैया अभेद !}
"It is true, sir. As you say, having climbed to the top of the monument, one becomes unaware of what is below: horses and carriages, men and women, houses, shops and offices, and so on."
श्रीरामकृष्ण- अच्छा, आजकल कालीमन्दिर मैं नहीं जाया करता, कुछ अपराध तो न होगा ? नरेन्द्र कहता था, ये अब भी कालीमन्दिर जाया करते हैं ?
{শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, আজকাল কালীঘরে যাই না, কিছু অপরাধ হবে কি? নরেন্দ্র বলত, ইনি এখনও কালীঘরে যান।
"I don't go to the Kali temple nowadays. Is that an offence? At one time Narendra used to say, 'What? He still goes to the Kali temple!'
मणि- जी, आपकी नयी नयी अवस्थाएँ हुआ करती हैं । आपका भला अपराध क्या है !
{ "Every day you are in a new state of mind. How can you ever offend God?"মণি — আজ্ঞা, আপনার নূতন নূতন অবস্থা — আপনার আবার অপরাধ কি?}
श्रीरामकृष्ण- अच्छा, हृदय के लिए उन लोगों ने सेन से कहा था, ‘हृदय बहुत बीमार है, उसके लिए आप दो धोतियाँ और दो कमीज लेते आइयेगा, हम लोग उसके गाँव में भेज देंगे ।” सेन बस दो ही रुपये लाया । यह भला क्या है ? इतना धन है और यह दान ! कहो जी !
{শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, হৃদের জন্য সেনকে ওরা বলেছিল, “হৃদয়ের বড় অসুখ, আপনি তার জন্য দুইখান কাপড়, দুইটি জামা আনবেন, আমরা তাকে দেশে (সিওড়ে) পাঠিয়ে দিব।” সেন এনেছিল দুটি টাকা! এ কি বল দেখি, — এত টাকা! কিন্তু এই দেওয়া! বল না।}
MASTER: "Someone said to Sen, about Hriday: 'He is very ill. Please bring two pieces of cloth and a couple of shirts for him. We will send them to his village.' Sen offered only two rupees. How do you explain that? He has so much money, and yet he is so miserly! What do you say to that?"
मणि- जी, मेरी समझ में तो यह आता है कि जिसे ईश्वर की जिज्ञासा है, ज्ञानलाभ जिसका उद्देश्य है, वह कभी ऐसा नहीं कर सकता ।
{মণি — আজ্ঞে, যারা ঈশ্বরকে জানবার জন্য বেড়াচ্ছে, তারা এরূপ করতে পারে না; — যাদের জ্ঞানলাভই উদ্দেশ্য।}
M: "Those who seek God cannot behave that way — I mean those whose goal is the attainment of Knowledge."
श्रीरामकृष्ण- ईश्वर ही वस्तु है और सब अवस्तु ।
{শ্রীরামকৃষ্ণ — ঈশ্বরই বস্তু, আর সবই অবস্তু।}
MASTER: "God alone is the Reality and all else is unreal."
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