गुरुवार, 20 मई 2021

परिच्छेद ~ 50, [(20 अगस्त, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Elder, the pumpkin-cutter'.*सत्संग । गृहस्थ के कर्तव्य*भक्तिशास्त्र पढ़ा करो – जैसे श्रीमद्भागवत या चैतन्यचरितामृत आदि * कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी~ और अच्छे 'मनुष्य' का स्वभाव*

  [(19 अगस्त, 1883)परिच्छेद ~ 50, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]

[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)**साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]

*परिच्छेद~५०* 

*दक्षिणेश्वर मन्दिर में भक्तों के साथ*

*मणिमोहन को शिक्षा, ब्रह्मज्ञान के लक्षण । ध्यानयोग*

श्रीरामकृष्ण अपनी छोटी खाट पर बैठे मसहरी के भीतर ध्यान कर रहे हैं । रात सात-आठ बजे होंगे । मास्टर और उनके एक मित्र हरिबाबू जमीन पर बैठे हैं । आज सोमवार, तारीख 20 अगस्त 1883 ई. है।

आजकल हाजरा महाशय यहाँ रहते हैं । राखाल भी प्रायः रहा करते हैं – और कभी कभी अधर के यहाँ रहते हैं । नरेन्द्र, भवनाथ, अधर, बलराम, राम, मनोमोहन, मास्टर आदि प्रायः प्रति सप्ताह आया करते हैं ।

हृदय ने श्रीरामकृष्ण की बड़ी सेवा की थी । वे घर पर बीमार हैं, यह सुनकर श्रीरामकृष्ण बहुत चिन्तित हुए हैं । इसीलिए एक भक्त ने राम चटर्जी के हाथ आज दस रुपये भेजे हैं – हृदय को भेजने के लिए । देने के समय श्रीरामकृष्ण वहाँ उपस्थित नहीं थे । वही भक्त एक लोटा भी लाए हैं । श्रीरामकृष्ण ने उनसे कहा था, “यहाँ के लिए एक लोटा लाना; भक्त लोग पानी पीएँगे ।”

मास्टर के मित्र हरिबाबू को लगभग ग्यारह वर्ष हुए, पत्नीवियोग हुआ है । फिर उन्होंने विवाह नहीं किया। उनके मातापिता, भाई-बहन, सभी हैं । उन पर उनका बड़ा स्नेह है, और उनकी सेवा वे करते हैं। उनकी आयु अट्ठाईस-उनतीस वर्ष होगी । भक्तों के आते ही श्रीरामकृष्ण मसहरी से बाहर आए । मास्टर आदि ने उनको भूमिष्ठ हो प्रणाम किया । मसहरी उठा दी गयी । आप छोटे तख्त पर बैठकर बातें करने लगे ।

श्रीरामकृष्ण (मास्टर से)- मसहरी के भीतर ध्यान कर रहा था । फिर सोचा कि यह तो केवल एक रूप की कल्पना ही है । इसीलिए फिर अच्छा न लगा ।  सन्तोष तो तब  होता है , जब  ईश्वर बिजली की चमक की तरह अपने आपको झट से प्रकट करते हैं  ! फिर मैंने सोचा, कौन ध्यान करनेवाला है, और ध्यान करूँ ही किसका ?

[ শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — মশারির ভিতর ধ্যান করছিলাম। ভাবলাম, কেবল একটা রূপ কল্পনা বই তো না, তাই ভাল লাগল না। তিনি দপ্‌ করে দেখিয়ে দেন তো হয়। আবার মনে করলাম, কেবা ধ্যান করে, কারই বা ধ্যান করি।

"I was meditating inside the net. It occurred to me that meditation, after all, was nothing but the imagining of a form, and so I did not enjoy it. One gets satisfaction if God reveals Himself in a flash. Again, I said to myself, 'Who is it that meditates, and on whom does he meditate?'"

मास्टर- जी हाँ । आपने कह दिया है कि ईश्वर ही जीव और जगत् आदि सब कुछ हुए हैं । जो ध्यान कर रहा है वह भी तो ईश्वर ही है ।

[মাস্টার — আজ্ঞা হাঁ। আপনি বলেছেন যে, তিনিই জীব, জগৎ এই সব হয়েছেন — যে ধ্যান করছে সেও তিনি।

M: "Yes, sir. You said that God Himself has become everything — the universe and all living beings. Even he who meditates is God."

श्रीरामकृष्ण- फिर बिना ईश्वर के कराए तो कुछ होनेवाला नहीं । वे अगर ध्यान कराए, तो ध्यान होगा । इस पर तुम्हारा क्या मत है ?

{শ্রীরামকৃষ্ণ — আর তিনি না করালে তো আর হবে না। তিনি ধ্যান করালে তবেই ধ্যান হবে। তুমি কি বল?

"What is more, one cannot meditate unless God wills it. One can meditate when God makes it possible for one to do so. What do you say?"

मास्टर- जी, आप के भीतर ‘अहं’ का भाव नहीं है, इसीलिए ऐसा प्रतीत हो रहा है । जहाँ ‘अहं’ नहीं रहता वहाँ ऐसा ही हुआ करता है ।

[মাস্টার — আজ্ঞে, আপনার ভিতর ‘আমি’ নাই তাই এইরূপ হচ্ছে। যেখানে ‘আমি’ নাই সেখানে এরূপই অবস্থা।

"True, sir. You feel like that because there is no 'I' in you. When there is no ego, one feels like that."

श्रीरामकृष्ण- पर ‘मैं दास हूँ, सेवक हूँ’ – इतना अहंभाव रहना अच्छा है । जहाँ यह बोध रहता है कि मैं ही सब कुछ कर रहा हूँ वहाँ ‘मैं दास हूँ और तुम प्रभु हो’ – यह भाव बहुत अच्छा है । जब सभी कुछ किया जा रहा है, तो सेव्य-सेवक भाव से रहना ही अच्छा है ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — কিন্তু “আমি দাস, সেবক” এটুকু থাকা ভাল। যেখানে “আমি সব কাজ করছি” বোধ, সেখানে “আমি দাস, তুমি প্রভু” এ-ভাব খুব ভাল। সবই করা যাচ্ছে, সেব্য-সেবক ভাবে থাকাই ভাল।

"But it is good to have a trace of ego, which makes it possible for a man to feel that he is the servant of God. As long as a man thinks that it is he who is doing his duties, it is very good for him to feel that God is the Master and he God's servant. When one is conscious of doing work, one should establish with God the relationship of servant and Master."

मास्टर सदा परब्रह्म के स्वरूप का चिन्तन करते हैं । [M. was always reflecting on the nature of the Supreme Brahman.] इसीलिए श्रीरामकृष्ण उनको लक्ष्य करके फिर कह रहे हैं- 

“ब्रह्म आकाश की तरह हैं । उनमें कोई विकार नहीं है । जैसे आग के कोई रंग नहीं है । पर हाँ, अपनी शक्ति के द्वारा वे विविध आकार के हुए हैं । सत्त्व, रज, तम – ये तीन गुण शक्ति ही के गुण हैं । आग में यदि सफेद रंग डाल दो, तो वह सफेद दिखेगी । यदि लाल रंग डाल दो, तो वह लाल दिखेगी । यदि काला रंग डाल दो, तो वह काली दिखेगी । ब्रह्म सत्त्व, रज और तम – इन तीनों गुणों से परे हैं । वे यथार्थ में क्या हैं, यह मुँह से नहीं कहा जा सकता । वे वाक्य से परे हैं । ‘नेति नेति’(ब्रह्म यह नहीं, यह नहीं) करके विचार करते हुए जो बाकी रह जाता है, और जहाँ आनन्द है, वही ब्रह्म हैं ।

{শ্রীরামকৃষ্ণ — ব্রহ্ম আকাশবৎ। ব্রহ্মের ভিতর বিকার নাই। যেমন অগ্নির কোন রঙই নাই। তবে শক্তিতে তিনি নানা হয়েছেন। সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ — এই তিনগুণ শক্তিরই গুণ। আগুনে যদি সাদা রঙ ফেলে দাও সাদা দেখাবে। যদি লাল রঙ ফেলে দাও লাল দেখাবে। যদি কালো রঙ ফেলে দাও তবে আগুন কালো দেখাবে। ব্রহ্ম — সত্ত্ব, রজঃ, তমঃ তিনগুণের অতীত। তিনি যে কি, মুখে বলা যায় না। তিনি বাক্যের অতীত। নেতি নেতি করে করে যা বাকি থাকে, আর যেখানে আনন্দ সেই ব্রহ্ম।

"Like the akasa, Brahman is without any modification. It has become manifold because of Sakti. Again, Brahman is like fire, which itself has no colour. The fire appears white if you throw a white substance' into it, red if you throw a red, black it you throw a black. The three gunas — sattva, rajas, and tamas — belong to Sakti alone. Brahman Itself is beyond the three gunas. What Brahman is cannot be described. It is beyond words. That which remains after everything is eliminated by the Vedantic process of 'Not this, not this', and which is of the nature of Bliss, is Brahman.

“एक लड़की का पति आया है । वह अपने बराबरी के युवकों के साथ बाहरवाले कमरे में बैठा है । इधर वह लड़की और उसकी सहेलियाँ खिड़की से देख रही हैं । सहेलियाँ उसके पति को नहीं पहचानतीं । वे उस लड़की से पूछ रही है, ‘क्या वह तेरा पति है?’ लड़की मुस्कराकर कहती है, - ‘नहीं ।’ एक दूसरे युवक को दिखलाकर वे पूछती हैं, ‘क्या वह तेरा पति है?’ वह फिर कहती है – ‘नहीं ।’ एक तीसरे युवक को दिखाकर वे फिर पूछती हैं, ‘क्या वह तेरा पति है?’ वह फिर कहती है – ‘नहीं ।’ अन्त में उसके पति की ओर इशारा करके उन्होंने पूछा, ‘क्या वह तेरा पति है?’ तब उसने ‘हाँ’ या ‘नहीं’ कुछ नहीं कहा; केवल मुस्करायी और चुप्पी साध ली ! तब सहेलियों ने समझा कि वही इसका पति है । जहाँ ठीक ब्रह्मज्ञान होता है, वहाँ सब चुप हो जाते हैं । 

[“একটি মেয়ের স্বামী এসেছে; অন্য অন্য সমবয়স্ক ছোকরাদের সহিত বাহিরের ঘরে বসেছে। এদিকে ওই মেয়েটি ও তার সমবয়স্কা মেয়েরা জানালা দিয়ে দেখছে। তারা বরটিকে চেনে না — ওই মেয়েটিকে জিজ্ঞাসা করছে, ওইটি কি তোর বর? তখন সে একটু হেসে বলছে, না। আর একজনকে দেখিয়ে বলছে, ওইটি কি তোর বর? সে আবার বলছে, না। আবার একজনকে দেখিয়ে বলছে, ওইটি কি তোর বর? সে আবার বলছে, না। শেষে তার স্বামীকে লক্ষ্য করে জিজ্ঞাসা করলে, ওইটি তোর বর? তখন সে হাঁও বললে না, নাও বললে না — কেবল একটু ফিক্‌ করে হেসে চুপ করে রইল। তখন সমবয়স্কারা বুঝলে যে, ওইটিই তার স্বামী। যেখানে ঠিক ব্রহ্মজ্ঞান সেখানে চুপ।”

"Suppose the husband of a young girl has come to his father-in-law's house and is seated in the drawing-room with other young men of his age. The girl and her friends are looking at them through the window. Her friends do not know her husband and ask her, pointing to one young man, 'Is that your husband?' 'No', she answers, smiling. They point to another young man and ask if he is her husband. Again she answers no. They repeat the question, referring to a third, and she gives the same answer. At last they point to her husband and ask, 'Is he the one?' She says neither yes nor no, but only smiles and keeps quiet. Her friends realize that he is her husband.

*सत्संग । गृहस्थ के कर्तव्य* 

(मास्टर से) “अच्छा, मैं बकता क्यों हूँ ?”

मास्टर- जैसा आपने कहा कि पके हुए घी में अगर कच्ची पूड़ी छोड़ दी जाय, तो फिर आवाज होने लगती है । आप बोलते हैं भक्तों का चैतन्य कराने के लिए ।

[মণি — আপনি যেমন বলেছেন, পাকা ঘিয়ে যদি আবার কাঁচা লুচি পড়ে তবে আবার ছ্যাঁক কলকল করে। ভক্তদের চৈতন্য হবার জন্য আপনি কথা কন।

M: "You talk in order to awaken the spiritual consciousness of the devotees. You once said that when an uncooked luchi is dropped into boiling ghee it makes a sizzling noise."

 श्रीरामकृष्ण मास्टर से हाजरा महाशय की चर्चा करते हैं ।

श्रीरामकृष्ण- अच्छे 'मनुष्य' का स्वभाव कैसा है, मालुम है ? वह किसी को दुःख नहीं देता – किसी को झमेले में नहीं डालता । किसी-किसी का ऐसा स्वभाव है कि कहीं न्यौता खाने गया हो तो शायद कह दिया – मैं अलग बैठूँगा । [The nature of some people (IAS) is such that when they go to a feast they want special seats.] ईश्वर पर यथार्थ भक्ति रहने से ताल के विरुद्ध पैर नहीं पड़ते – मनुष्य किसी को झूठमूठ कष्ट नहीं देता ।

[ শ্রীরামকৃষ্ণ — সতের কি স্বভাব জানো? সে কাহাকেও কষ্ট দেয় না — ব্যতিব্যস্ত করে না। নিমন্ত্রণ গিয়েছে, কারু কারু এমন স্বভাব — হয়তো বললে, আমি আলাদা বসব। ঠিক ঈশ্বরে ভক্তি থাকলে বেতালে পা পড়ে না — কারুকে মিথ্যা কষ্ট দেয় না।

"Do you know the nature of a good man? He never troubles others. He doesn't harass people. The nature of some people is such that when they go to a feast they want special seats. A man who has true devotion to God never makes a false step, never gives others trouble for nothing.

“दुष्ट लोगों का संग करना अच्छा नहीं । उनसे अलग रहना पड़ता है । अपने को उनसे बचाकर चलना पड़ता है । (मास्टर से) तुम्हारा क्या मत है ?”

[“আর অসতের সঙ্গ ভাল না। তাদের কাছ থেকে তফাত থাকতে হয়। গা বাঁচিয়ে চলতে হয়। (মণির প্রতি) তুমি কি বল?”

"It is not good to live in the company of bad people. A man should stay away from them and thus protect himself. (To M.) Isn't that so?"

मास्टर- जी, दुष्टों के संग रहने से मन बहुत गिर जाता है । हाँ, जैसा आपने कहा 'वीरों ' की बात दूसरी है। 

{মণি — আজ্ঞে, অসৎসঙ্গে মনটা অনেক নেমে যায়। তবে আপনি বলেছেন, বীরের কথা আলাদা।

M: "Yes, sir. The mind sinks far down in the company of the wicked. But it is quite different with a hero, as you say."

श्रीरामकृष्ण - कैसे ?

मास्टर- कम आग में थोड़ी सी लकड़ी डाल दो तो बूझ जाती है । पर धधकती हुई आग में केले का पेड़ झोंक देने से आग का कुछ नहीं बिगड़ता । वह पेड़ ही जलकर भस्म हो जाता है ।

[মণি — কম আগুনে একটু কাঠ ঠেলে দিলে নিবে যায়। আগুন যখন দাউ দাউ করে জ্বলে তখন কলাগাছটাও ফেলে দিলে কিছু হয় না। কলাগাছ পুড়ে ভস্ম হয়ে যায়।

M: "When a fire is feeble it goes out when even a small stick is thrown into it; but a blazing fire is not affected even if a plantain-tree is thrown into it. The tree itself is burnt to ashes."

श्रीरामकृष्ण मास्टर के मित्र हरिबाबू की बात पूछ रहे हैं ।

मास्टर- ये आपके दर्शन करने आये हैं । "He lost his wife long ago." ये बहुत दिनों से विपत्नीक हैं ।

श्रीरामकृष्ण (हरिबाबू से) - तुम क्या काम करते हो ?

[শ্রীরামকৃষ্ণ — তুমি কি কর গা?

MASTER (to Hari): "What kind of work do you do?"

मास्टर ने उनकी ओर से कहा, “ऐसा कुछ नहीं करते, पर माता-पिता, भाई-बहन आदि की बड़ी सेवा करते हैं ।”

श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - यह क्या है ! तुम तो ‘कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी’ बने ! तुम न संसारी हुए, न हरिभक्त । यह अच्छा नहीं । किसी किसी परिवार में एक पुरुष होता है, जो रातदिन लड़के-बच्चों से घिरा रहता है । वह बाहरवाले कमरे में बैठकर खाली तम्बाकू पिया करता है । निकम्मा ही बैठा रहता है। हाँ, कभी कभी अन्दर जाकर कुम्हड़ा काट देता है ! स्त्रियों के लिए कुम्हड़ा काटना मना है । इसीलिए वे लड़कों से कहती हैं, ‘जेठजी को यहाँ बुला लाओ, वे कुम्हड़ा काट देंगे ।’ तब वह कुम्हड़े के दो टुकड़े कर देता है ! बस, यहीं तक मर्द का व्यवहार है । इसलिए उसका नाम ‘कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी’ पड़ा है ।

 [শ্রীরামকৃষ্ণ (সহাস্যে) — সে কি? তুমি যে “কুমড়োকাটা বঠ্‌ঠাকুর” হলে। তুমি না সংসারী, না হরিভক্ত। এ ভাল নয়। এক-একজন বাড়িতে পুরুষ থাকে, — মেয়েছেলেদের নিয়ে রাতদিন থাকে, আর বাহিরের ঘরে বসে ভুড়ুর ভুড়ুর করে তামাক খায়, নিষ্কর্মা হয়ে বসে থাকে। তবে বাড়ির ভিতরে কখনও গিয়ে কুমড়ো কেটে দেয়। মেয়েদের কুমড়ো কাটতে নাই, তাই ছেলেদের দিয়ে তারা বলে পাঠায়, বঠ্‌ঠাকুরকে ডেকে আন। তিনি কুমড়োটা দুখানা করে দিবেন। তখন সে কুমড়োটা দুখানা করে দেয়, এই পর্যন্ত পুরুষের ব্যবহার। তাই নাম হয়েছে “কুমড়োকাটা বঠ্‌ঠাকুর”।

"How is that? You are like 'Elder, the pumpkin-cutter'. You are neither a man of the world nor a devotee of God. That is not good. You must have seen the sort of elderly man who lives in a family and is always ready, day or night, to entertain the children. He sits in the parlour and smokes the hubble-bubble. With nothing in particular to do, he leads a lazy life. Now and again he goes to the inner court and cuts a pumpkin; for, since women do not cut pumpkins, they send the children to ask him to come and do it. That is the extent of his usefulness — hence his nickname, 'Elder, the pumpkin-cutter'.

तुम यह भी करो, वह भी करो । ईश्वर के चरणकमलों में मन रखकर संसार का कामकाज करो । और जब अकेले रहो तब भक्तिशास्त्र पढ़ा करो – जैसे श्रीमद्भागवत या चैतन्यचरितामृत आदि ।”

[“তুমি এ-ও কর — ও-ও কর। ঈশ্বরের পাদপদ্মে মন রেখে সংসারের কাজ কর। আর যখন একলা থাকবে তখন পড়বে ভক্তিশাস্ত্র — শ্রীমদ্ভাগবত বা চৈতন্যচরিতামৃত — এই সমস্ত পড়বে।”

"You must do 'this' as well as 'that'. Do your duties in the world, and also fix your mind on the Lotus Feet of the Lord. Read books of devotion like the Bhagavata or the life of Chaitanya when you are alone and have nothing else to do."

रात के लगभग दस बजे हैं । अभी कालीमन्दिर बन्द नहीं हुआ है । मास्टर ने राम चटर्जी के साथ जाकर पहले राधाकान्त के मन्दिर में और फिर कालीमाता के मन्दिर में प्रणाम किया । चाँद निकला था । श्रावण की कृष्णा द्वितीया थी । आँगन और मन्दिरों के शीर्ष बड़े सुन्दर दिखते थे ।

श्रीरामकृष्ण के कमरे में लौटकर मास्टर ने देखा कि वे भोजन करने बैठ रहे हैं । वे दक्षिण की ओर मुँह करके बैठे । थोड़ा सूजी का पायस और एक-दो पतली पुड़ियाँ – बस यही भोजन था । थोड़ी देर बाद मास्टर और उनके मित्र ने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके बिदा ली । वे उसी दिन कलकत्ते लौट जाएँगे ।

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