श्रीरामकृष्ण वचनामृत
* [26 फरवरी, 1882 से 14 सितंबर,1884 तक] > कुल 90 परिच्छेदों की सामग्री *
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[ॐपरिच्छेद~ 1 ,[(26 . 2 . 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] * कर्मत्याग (renunciation) कब होता है ? When right to renounce rituals ? जब भू-लोक में सबसे बड़े दाता, गुरु ... जब जादूगर/नेता (C-IN-C) के कमरे के बाहर गार्ड-ड्यूटी में वृन्दा दासी खड़ी हो जाती है। और M को जादूगर जगतगुरु ठाकुर के प्रथम दर्शन होते हैं। और वे "God's Address > श्रीमद्भागवत, रासपंचाध्यायी , गोपी गीत, नवम श्लोक में वर्णित 'गोपी -सिद्धान्त > "भगवान का पता-ठिकाना और मिलने का उपाय बतला देते हैं और कहते है--फिर आना। " हे गोबिन्द ! आप सदैव सत्संग (साप्ताहिक पाठचक्र, कैम्प) और हरि कथा (ठाकुर-माँ स्वामीजी की जयन्ती) में मिलते हो, इसलिए जो जन आपकी कथाओं का गुणगान करते है, और जो कथा श्रवण करते हैं आप उनके लिए सुलभ हो जाते हो। और वे महात्मा लोग भी धन्य है जो आपके गुणों का गान करते है। इसीलिए जो सन्तजन तुम्हारी (ठाकुर-माँ -स्वामीजी की) उस लीलाकथा का गान करते हैं, वास्तव में वे ही भू-लोक में सबसे बड़े दाता (नेताC-IN-C नवनीदा) हैं , उनके पास -फिर आना।
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परिच्छेद ~2, [(मार्च, 1882),श्रीरामकृष्ण वचनामृत] जगतगुरु श्रीरामकृष्ण के द्वारा निर्देशित 'Be and Make ' वेदान्त लीडरशिप प्रशिक्षण -परम्परा में प्रशिक्षित होने के लिए 'M' का पुनः उनके कमरे में जाना > On the way back to Sri Ramakrishna's room ! *गृहस्थ तथा पिता का कर्तव्य*मास्टर का तिरस्कार तथा उनका अहंकार चूर्ण करना*विद्या-शक्ति या अविद्या-शक्ति, ज्ञान किसे कहते हैं ?*ईश्वर को जान लेना ज्ञान है और न जानना अज्ञान । distinction between knowledge and ignorance *साधक-जीवन में मूर्ति-पूजा का महत्व *मूर्ति-पूजा में पत्थर या मिट्टी की पूजा नहीं होती , चिन्मयी मूर्ति ( image of Spirit) समझकर ही माँ काली के सगुणसाकार रूप की पूजा की जाती है। ‘साकार’ पर विश्वास करने से ‘निराकार’ पर स्वतः विश्वास होता है। *सब प्रकार की पूजाओं की योजना ईश्वर ने ही की है ।* मुझे दूसरों को समझाने की क्या जरूरत? क्या मैंने स्वयं ईश्वर को जान लिया है, या मुझमें उनके प्रति विशुद्ध भक्ति उत्पन्न हुई है?*
"But why clay? पत्थर या मिट्टी नहीं,- It is an image of Spirit. चिन्मयी मूर्ति ! *लेक्चर तथा श्रीरामकृष्ण**Who are you to teach others? दूसरों को ज्ञान देने वाले आप कौन होते हैं ? बिना समाधि में गए और वापस लौटे अपने को गुरु समझने वाले , गुरुगिरि करने, या लेक्चर झाड़ने वालों का अहंकार चूर्ण करना ! *जगद्गुरु श्री रामकृष्ण स्तोत्रम्-12 : संसारार्णवघोरे यः कर्णधारस्वरुपकः । नमोऽस्ते रामकृष्णाय तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ऋषिऋण चुकाने का पर्व है गुरुपूर्णिमा। * अविद्या (Physics-PCM ) को ज्ञान समझने के अन्धकार से अन्धे हुए जीव की आँखें जिसने " ज्ञानरूपी काजल " ~ (Metaphysics या विवेक-प्रयोग रूपी अंजन) की श्लाका से खोली हैं, ऐसे श्री सदगुरू को नमन है, प्रणाम है*
* भक्ति का उपाय क्या है ? या ईश्वर-दर्शन का सरल उपाय क्या है ? -कैरियर बनाने के पहले बच्चो को विवेकानन्द -भक्ति-दर्शन का उपाय बताओ अर्थात निर्जन में (3H -विकास, Be and Make) मनुष्य बनने और बनाने कागुरुगृह-वास गुरु-शिष्य वेदान्त शिक्षक -प्रशिक्षण परम्परा में छः दिवसीय अखिल भारतीय युवा प्रशिक्षण शिविर आयोजित करो। [ स्वामी जी की छवि पर मन को एकाग्र करने का अभ्यास, सत्-असत् विचार (सत्य-असत्य -मिथ्या का विचार) , बारंबार इस प्रकार विचार करते हुए मन से अनित्य वस्तुओं का त्याग (मिथ्या अहं का) करना चाहिए ।” या मनःसंयोग का प्रशिक्षण दो !] * * श्रीरामकृष्ण प्रत्येक स्त्री को माँ जगदम्बा ( Divine Mother of the Universe, माँ भवतारिणी) की ही अलग -अलग प्रतिमूर्तियों के रूप में देखते थे।* उन्होंने तन्त्र- विद्या का अभ्यास करते समय ,एक महिला 'भैरवी ब्राह्मणी ' को अपने प्रथम गुरु के रूप में स्वीकार करके समस्त नारी जाति को सबसे ऊँचा सम्मान ( highest homage ) दिया है।* उनके निधन के बाद परम् पूजनीय श्रीश्री माँ सारदा देवी ( Holy Mother) न केवल बड़ी संख्या में गृहस्थों की, बल्कि " Ramakrishna Order " (श्री रामकृष्ण-स्वामी विवेकानन्द वेदान्त शिक्षक प्रशिक्षण परम्परा) में प्रशिक्षित संन्यासीयों (जीवनमुक्त शिक्षकों) की भी आध्यात्मिक मार्गदर्शक बन गईं।* कामिनी-कांचन (woman and gold) में आसक्ति ही आध्यात्मिक उन्नति या मनुष्य बनने और बनाने की साधना ' के मार्ग की मुख्य अड़चन (impediment या बाधा) है। अतः ' काम-प्रवृत्ति और लालच ' ( " lust and greed") के हानिकारक प्रभाव ( baneful influence) को लक्षित करते हुए ठाकुर ने कहा था - "कामिनी-कांचन (woman and gold)" में अनासक्त बनो !
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ॐॐ ॐ ॐ ॐ परिच्छेद ~ 3, [(5 मार्च 1882)श्री रामकृष्ण वचनामृत ] * Are all men equal?*“मुमुक्षु (The seekers of TRUTH ! ) *श्री रामकृष्ण देव के भक्तों ( devotees ) एवं शिष्यों (disciples) में अन्तर * विवेक-दर्शन के समय स्वामी विवेकानन्द की छवि कैसी है ? * विवेक-दर्शन (इनकी आँखें पानीदार और बातें जोशीली हैं । चेहरे पर भक्तिभाव है ) और अनासक्ति के नियमित अभ्यास से ~योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ (गीता, ६/२९)* योगयुक्त (विसम्मोहित) अन्त:करण और अहंकार से मोहित (Hypnotized) अन्तःकरण * निवृत्तिमार्ग के सप्तऋषियों में से एक नरेन्द्र 'होमा पक्षी' ये संसार में जीवों को मनुष्य बनने और बनाने की शिक्षा देने के लिए ही आते हैं । * मनुष्य बनने का उपाय ~'अमृतस्य पुत्राः' या माँ काली की सन्तान होने पर *श्रद्धा-आत्मविश्वास* साधुसंग (CINC - संग) विवेक-प्रयोग द्वारा 24 गुणों का अर्जन , (साप्ताहिक पाठचक्र), परमात्मा से भक्ति और विश्वास की प्रार्थना करनी चाहिए! *गृहस्थ तथा तमोगुण*गृहस्थ को कभी-कभी फुफकार मारना पड़ता है।* तीन गुणों के तारतम्य से जीव चार प्रकार के होते हैं ~बद्ध, मुमुक्षु, मुक्त और नित्य* जो मनुष्य मुझे चिन्तय मम मानस हरि चिद्घन निरंजन।(माँ काली या श्रीरामकृष्ण को) ईश्वर के रूप में जान लेता है, ऐसा असंमूढः (DeHypnotized- ज्ञानी) पुरुष' सब पापों से मुक्त हो जाता है। स्वामीजी प्रकृति (माँ काली) को आत्मा की अभिव्यक्त शक्ति के रूप में स्वीकार करते हैं! पाप वह "स्व-अपमान" जनक कर्म, या शास्त्र-निषिद्ध कर्म है, जिसका कारण है मनुष्य को अपने वास्तविक स्वरूप का अज्ञान हो जाता है । (गीता, १०/३)*पाप-वृत्तियाँ वे विषैले फोड़े हैं, जिनके कारण हम अपनी परिच्छिन्नताओं (2H) की पीड़ा और बंधनों के दुख सहते रहते हैं। जिस क्षण हम अपने आत्मस्वरूप को पहचानते हैं कि वह अजन्मा और अनादि है तथा उसका विकारी और विनाशी उपाधियों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, उस समय हम वह सब कुछ प्राप्त कर लेते हैं जो जीवन में प्राप्तव्य है। और वह सब कुछ जान लेते हैं जो ज्ञातव्य है। ऐसा सम्यक् तत्त्वदर्शी पुरुष स्वयं ही लोकमहेश्वर बन जाता है। *बड़े-से-बड़ा पाप और नाममहात्मय *
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ॐ परिच्छेद ~ 4, .[( 6 मार्च 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ] Leader is full of spirit within * *नेता हमेशा उत्साह (आत्मा) से भरा होता है * क्योंकि जिस लाभ की प्राप्ति होने पर उससे अधिक कोई दूसरा लाभ उसके मानने में भी नहीं आता और जिसमें स्थित होने पर वह बड़े भारी दु:ख से भी विचलित नहीं होता है।। गीता ६/२२ ](गीता, ११।१८) **नेता (माँ सारदा जैसी पवित्रता C-IN- C ) को भूमिष्ठ होकर प्रणाम करना सीखो ~ fall down at his feet! * गीत - 'श्रीराम कल्पतरु' हनुमान-मन्दोदरी * “देखो तो, परमभक्त हनुमान का भाव कैसा है ! धन, मान, शरीरसुख कुछ भी नहीं चाहते हैं केवल भगवान् को चाहते हैं * ‘मैं कौन हूँ’?-त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं*मास्टर श्रीरामकृष्ण का गीत सुनकर मुग्ध हो गए हैं, जैसे साँप मन्त्रमुग्ध हो जाता है* धर्म का रक्षक स्वयं परमेश्वर है, और न कि एक र्मत्य राजा या पुरोहित वर्ग *अफीमची मोर का अफीम~ देह निश्चल, नेत्र स्थिर ~ समाधि में बैठे हैं, जैसी मूर्ति फोटोग्राफ में देखने को मिलती है*
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परिच्छेद ~5, [( 11 मार्च 1882) , श्री रामकृष्ण वचनामृत ] *The true wine"Ka"..."Kanai" *ईश्वर से प्रेम करना ही जीवन का उद्देश्य है। *Goal of life is to cultivate love for God* कहाँ हो रे भाई कन्हैया ! फिर 'क ' कहकर ही रह जाता है* ईश्वर के साथ एकत्व का आनंद ही असली नशा है* [The bliss of communion with God is the true wine] *माँ, ईसाई लोग गिर्जाघरों में तुम्हें कैसे पुकारते हैं ? सर्वधर्मसमन्वय*
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$$$परिच्छेद ~6,[( 2, 9 अप्रैल 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] *Question-Answer *संसार मानो विशालाक्षी नदी का भँवर है । *उपाय-साधुसंग और प्रार्थना*साधुसंग से क्या उपकार होता है ? [C-IN-C नवनीदा के सानिध्य में रहने से क्या उपकार होता है ?"What is the good of holy company?"] व्याकुलता न आने से कुछ भी नहीं होता* पाप बुद्धि क्यों होती है? * ईश्वर का नियम है कि पाप करने पर उसका फल भोगना पड़ेगा ।* इसीलिए काम, क्रोध, लोभ-इन सब से सावधान रहना चाहिए ।* चित्तशुद्धि होने पर ही उनकी प्राप्ति होती है । *देर-सवेर सभी की मुक्ति होगी ।*हर एक व्यक्ति गुरु (नेता-जीवनमुक्त शिक्षक ) नहीं हो सकता । कीमती शहतीर पानी में स्वयं भी बहता हुआ चला जाता है और अनेक जीव-जन्तु भी उस पर चढ़कर जा सकते हैं * गुरु/नेता कैसे प्राप्त करूँ? उपाय-साधुसंग और प्रार्थना* निर्जन में साधना (वार्षिकोत्सव में या वार्षिक कैम्प में साधना)करने पर ही तो संसार में (अर्थात गृहस्थ जीवन में) निर्लिप्त होना सम्भव है*सच्चिदानन्द ही गुरु हैं * उनका आदेश (चपरास या बिल्ला) न पाकर दूसरों को शिक्षा देने से उपकार नहीं होता* ब्रह्मसमाजी केशवसेन की हिन्दुत्व में घरवापसी * वेद, पुराण और तन्त्र में एक ईश्वर ही की बात है, ज्ञान भक्ति दोनों ही हैं *सनातन हिन्दू धर्म में साकार (मूर्त) निराकार (अमूर्त) दोनों ही माने गए हैं * निराकार (अमूर्त ब्रह्म) में निष्ठा रहने से भी हो सकता है। परन्तु साकारवादियों के केवल प्रेम के आकर्षण को लेना । माँ कहकर उन्हें (ब्रह्म -सच्चिदानन्द के अवतार को) पुकारने से भक्तिप्रेम और भी बढ़ जायगा*
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$$$ परिच्छेद ~ 7,[( 5 अगस्त 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ] गीध खूब ऊँचा उड़ता है, पर उसकी नजर हड़ावर पर ही रहती है । जो खाली पण्डित हैं, वे सुनने के ही हैं, पर उनकी कामिनी-कांचन पर आसक्ति होती है- गीध की तरह वे सड़ी लाशें ढूँढ़ते हैं । कामिनी -कांचन में आसक्ति का घर अविद्या के संसार में है । केवल पाण्डित्य, पुस्तकी विद्या असार है-भक्ति ही सार है ।**The Secret of Dualism* * भक्तियोग का रहस्य* विज्ञानी क्यों भक्ति लिए रहते हैं? इसका उत्तर यह है कि ‘मैं’ नहीं दूर होता । समाधि-अवस्था में दूर तो होता है, परन्तु फिर आ जाता है । ‘अहं’ नहीं मिटता; तब मनुष्य देखता है कि ब्रह्म ही ‘मैं’, जीव, जगत-सब कुछ हुआ है~ इसी का नाम विज्ञान है* विज्ञानी देखता है कि जो ब्रह्म है वही भगवान् ~अवतार वरिष्ठ भगवान श्रीरामकृष्ण है !* केवल पाण्डित्य, पुस्तकी विद्या असार है-भक्ति ही सार है ।* विज्ञानी देखता है कि जो निर्गुण है, वही सगुण भी है/ ब्रह्म अटल, निष्क्रिय, सुमेरुवत है* ब्रह्म अनिर्वचनीय, ‘अव्यपदेश्यम्’ (जिसका शब्दों में वर्णन न हो सके) है*कोई भी हो-वह (मैं ?) कितना ही बड़ा क्यों न हो, ईश्वर को जान थोड़े ही सकता है। * *निष्काम कर्म 'Be and Make ' का उद्देश्य-ईश्वरदर्शन* हम लोग छोटी -छोटी नौका ,आप हैं जहाज* विद्यासागर के आत्मिक हित के लिए करजाप -constantly remember death.*ब्रह्म सच्चिदानन्दस्वरूप है* इस सागर में उतरने से फिर कोई लौट नहीं सकता* ब्रह्म' विद्या और अविद्या दोनों के परे है, वह मायातीत (द्वैत- भ्रम, illusion of duality. के परे) है * अविद्या के चंगुल में फंसने से कामिनी कांचन (lust and greed) में आसक्ति होगी ; दया, भक्ति, वैराग्य-ये विद्या के ऐश्वर्य हैं* सोऽहम् ’-मैं ब्रह्म हूँ-कहना अच्छा नहीं *‘मैं भक्त हूँ’ यह अभिमान अच्छा है* The object of study~'Om Rama'!* दस बार ‘गीता’ ‘गीता’ कहने से ‘त्यागी’ ‘त्यागी’ निकल आता है* साधु हो चाहे गृहस्थ, मन से सारी आसक्ति दूर करनी चाहिए *निष्काम कर्म या कर्मयोग ~ "Be and Make" तथा जगत का कल्याण * *नवनीदा कौन हैं ? *अहेतुक कृपासिन्धु श्रीरामकृष्ण* साधारण जीवों का ‘अहम्’ नहीं जाता । पीपल का पेड़ काट डालो, फिर उसके दूसरे दिन अंकुर निकल आता है । बैल ‘हम्बा, हम्बा’ (हम, हम) करता है, इसी से तो इतनी यातना मिलती है । हल में जोता जाता है, वर्षा और धूप सहनी पड़ती है फिर कसाई लोग काटते हैं, चमड़े से जूते बनते हैं, ढोल बनता है, -तब खूब पिटता है । “फिर भी निस्तार नहीं । अन्त में आँतों से ताँत बनती है और धुनिया अपने धनुहे में लगाता है । तब वह ‘मैं’ नहीं कहता, तब कहता है ‘तू-ऊँ, तू-ऊँ’ (अर्थात् तुम, तुम) जब ‘तुम’ ‘तुम’ कहता है तब निस्तार होता है । हे ईश्वर ! मैं दास हूँ, तुम प्रभु हो; मैं सन्तान हूँ, तुम माँ हो ।
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परिच्छेद ~ 8,[( 13 अगस्त 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत] *the secret of communion with God *
*the secret of communion with God *भगवान श्रीरामकृष्ण के साथ एकत्व का रहस्य *समाधितत्त्व : आत्मा -परमात्मा में लीन होने का रहस्य ! * उसके बाद यह ज्ञान होता है कि सभी धर्म सत्य हैं*सर्वधर्मसमन्वय* ईश्वर तो सर्वभूतों में विराजमान हैं, तो फिर भक्त किसे कहूँ ? *- जिसका मन सदा ईश्वर में है * अहंकार, अभिमान रहने पर कुछ नहीं होता*भक्ति ही सार है *एक ईश्वर, उनके अनेक नाम हैं * जैसे एक्वा , वाटर ,वारी वैसे अल्ला, गॉड , मुरारी *
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$$$$ परिच्छेद ~ 9,*[( 24 अगस्त 1882)श्री रामकृष्ण वचनामृत ] *हृदय में सोना दबा है
*लेकिन आत्म-दर्शन के बिना सन्देह दूर नहीं होता *संशयात्मा विनश्यति कामिनी-कांचन (lust and greed ) रूपी तूफान से पार होने के लिए~ एकाग्रता की साधना* आत्मदर्शन का उपाय है - मनःसंयोग * देवदारु के नीचे समाधिस्थ महादेव (स्वामी विवेकानन्द) की छवि पर एकाग्रता का अभ्यास। योगियों का मन सदा (हृदयस्थ) ईश्वर में लगा रहता है- सदा आत्मस्थ रहता है । शून्य दृष्टि, देखते ही उनकी अवस्था सूचित हो जाती है । समझ में आ जाता है कि चिड़िया अण्डे को से रही है । सारा मन अण्डे ही की ओर है, ऊपर दृष्टि तो नाममात्र की है । अच्छा, ऐसा चित्र क्या मुझे दिखा सकते हो? ईश्वरदर्शन किसे कहते हैं और किस तरह होते हैं ? ईश्वरमार्ग के पथिक चार प्रकार के होते हैं- *प्रवर्तक, साधक, सिद्ध और सिद्धों में सिद्ध*“संशयात्मा विनश्यति ”-गीता 4 . 40*“आत्मदर्शन के बिना सन्देह दूर नहीं होता ।” *आद्याशक्ति महामाया तथा शक्तिसाधना* वे संसार को मुग्ध करके - अर्थात सम्मोहित (Hypnotized) करके सृष्टि, स्तिथि और प्रलय कर रही हैं । * “कन्या शक्तिस्वरूपा है ।" विवाह के समय तुमने नहीं देखा- 'वर' अहमक की तरह पीछे बैठा रहता है; परन्तु 'कन्या' निःशंक रहती है !” अविद्या को प्रसन्न करने हेतु शक्तिपूजा पद्धति बनी है * जैसे तन्त्रोक्त दासीभाव (पशुभाव) , वीरभाव, सन्तानभाव (दिव्यभाव)* विवाह के समय वर के हाथ में छुरी (तलवार) रहती है (जिसकी नोक पर कसैली खोंसा रहता है !) , बंगाल में सरौता-अर्थात् उस शक्तिरूपिणी कन्या की सहायता से वर मायापाश काट सकेगा । यह वीरभाव है A hero's attitude is to please Her- है । ईश्वरकोटि का साधक और वीरभाव -($$$$$$$$$$$ महामण्डल ब्लॉग ,शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018 भावमुख में अवस्थित 'अटूट सहज' नेता श्री रामकृष्ण-2 देखो ) [विभूतिपाद १८ : - संस्कारसाक्षात्करणात् पूर्वजातिज्ञानम्। अल्मोड़ा से ३५ की.मी. दूर स्थित है जागेश्वर धाम ,
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$$ परिच्छेद ~10,( 16,17 अक्टूबर, 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ] *Embodiment of Spirit-You are Kha.* * निर्विकल्प समाधि से व्युत्थान के बाद की अवस्था * नेता माँ काली का भक्त (या साधु CINC नवनीदा ) का शरीर चिन्मय -अर्थात आत्मा का मूर्तरूप (embodiment of Spirit) होता है।*
विद्यार्थी जीवन में ही ईश्वर-चर्चा असल * “ तमेवैकं जानथ आत्मानम्, अन्या वाचो विमुञ्चथ ”/{ प्रणवो धनुः शरो ह्यात्मा ब्रह्म तल्लक्ष्यमुच्यते।अप्रमत्तेन वेद्धव्यं शरवत् तन्मयो भवेत् ॥(२ -२-४)[17 अक्टूबर, 1882 ] ‘संसार में किस तरह रहना चाहिये ?’/ ‘ईश्वर में मन कैसे लगे ?’'आध्यात्मिक साधना का सार ' एवं सफल जीवन की कुंजी/(1) भगवान् के चिन्तन में रुचि पैदा करने के उपाय।(2) मनःसंयोग विषयक निर्देश। {विवेकदर्शन का अभ्यास से विवेक-श्रोत का उद्घाटन !} (3) संसार में रहने की कला। वीरभाव की साधना कठिन है । सन्तानभाव अतिशुद्ध है । * पहले ईश्वरलाभ (चपरास-आकाशवाणी ), उसके बाद लोकशिक्षा*ईश्वर के लिए सभी कुछ (Miracles) सम्भव है*सुई के छेद में ऊँट-हाथी घुसाते हैं और फिर निकालते हैं ।’* अविद्या स्त्री : सच्ची भक्ति हो तो सभी वश में आ जाते हैं ।*
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$$ परिच्छेद ~11,[( 22 अक्टूबर 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ]*Bahudakas and the kutichakas*
^ 'ईश्वर-स्मरण' ^ ঈশ্বরচিন্তা :- विवेक-दर्शन का अभ्यास या प्रत्याहार-धारणा का अभ्यास )*योगी दो प्रकार के हैं- बहूदक और कुटीचक* कुटीचक । तीर्थयात्रा का उद्देश्य * ज्ञानी निराकार का चिन्तन करते हैं । ज्ञानी अवतार नहीं मानते । * ज्ञानी तथा अवतारवाद* अर्जुन ने श्रीकृष्ण की स्तुति में कहा, तुम पूर्णब्रह्म हो । श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि आओ, देखो, हम पूर्णब्रह्म हैं या नहीं । यह कहकर श्रीकृष्ण अर्जुन को एक जगह ले गए और पूछा, तुम क्या देखते हो? अर्जुन बोला, मैं एक बड़ा पेड़ देख रहा हूँ जिसमें जामुन के से गुच्छे के गुच्छे फल लगे हैं । श्रीकृष्ण ने कहा कि और भी पास आकर देखो; वे काले फल नहीं, गुच्छे के गुच्छे अनगिनती कृष्ण फले हुए हैं- मुझ जैसे । अर्थात् उस पूर्णब्रह्मरूपी वृक्ष से करोड़ों अवतार होते हैं और चले जाते हैं।*पवित्र व्यक्ति को भोजन कराना एक पुण्य कार्य है।
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परिच्छेद ~ 12 [( 24 अक्टूबर 1882)[ श्री रामकृष्ण वचनामृत ] *Maya =woman and gold *मिठाई पर हाथ रखा ही था कि एक छिपकली बोल उठी , तुरंत हाथ हटा लिया। *हाँ जी , शारीरिक लक्षण भी देखना चाहिए।* ईश्वर एक है और उसके नाम असंख्य *भिन्न धर्मावलंबी वा सम्प्रदायों के लोग क्या ऐसे ही मिथ्या झगड़ा करके मर रहे हैं ?
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$$$$$परिच्छेद ~ 13, [( 27 अक्टूबर 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ] *माँ ब्रह्ममयी (the Embodiment of Brahman)*gives Badge of Authority (C-IN-C),E=Mc2 : The Primordial Energy लीलामयी ever at play* माँ निराकारा महाकाली (the Great Power) महाकाल (the Absolute) के साथ अभेद* श्रीरामकृष्ण/गुरु /नेता निराकारवादी तो हैं, किन्तु साकारवादी भी हैं *संसारी जीव घेरे के (Open Jail ) भीतर बन्द हैं* *माँ निराकारा काली (महाकाली) ने ही 'मन' (Head) को चंचल रहने का इशारा किया है * मनःसंयोग -full class * *आत्मसुझाओ - Autosuggestion -आत्ममूल्यांकन तालिका * *धारणा हेतु युवा आदर्श विवेकानन्द) तुल्य मार्गदर्शक नेता का चयन* मामेकं शरणं व्रज 18 /66 *मन ही मनुष्य के बन्धन और मुक्ति का कारण है * “सब कुछ मन पर निर्भर है । मन ही से बद्ध (Hypnotized) है और मनही से मुक्त (De -Hypnotized) । मन पर जो रंग चढ़ाओगे उसी से वह रँग जायगा । *एकाग्रता का अभ्यास करने पर यह संसार आनन्द की हवेली है !* जनक राजा महातेजा , तार किसेर छिलो त्रुटि। *गृहस्थ के लिए उपाय - एकान्तवास तथा विवेक* *विवेक-प्रयोग से विवेकज -ज्ञान ** उपाय - भगवान के लिए गोपियों जैसा स्नेह और आकर्षण*[श्री केशव सेन के साथ नौका विहार - *विवेकप्रयोग > विवेकजज्ञान >सर्वभूतहिते रताः *देह नश्वर है; देही अविनाशी और भक्तों का हृदय भगवान् का बैठकघर * ईश्वर एक, नाम अनेक *ज्ञानी -भक्त चेतना के चारों अवस्थाओं को सत्य कहते हैं *वेद तथा तन्त्र का समन्वय । आद्याशक्ति का ऐश्वर्य* महाकाली और नित्यकाली की बात तन्त्रों में हैं ।*बिना समाधि में लीन हुए शक्ति के क्षेत्र के से बाहर कोई नहीं जा सकता* * ईश्वर संसार के आधार और आधेय दोनों हैं । * *माँ काली का बेटा (भक्त) जानता है कि नित्य और लीला दोनों सत्य हैं !* “श्यामकाली ,-वराभयदायिनी हैं । गृहस्थों के घर उन्हीं की पूजा होती है। जब अकाल, महामारी, भूकम्प, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, होती है, तब रक्षाकाली की पूजा की जाती है । शमशानकाली -अहंकार का शवदाह करती हैं।* *माँ ही बंधन और मुक्ति दोनों देती हैं * लाखों में से दो ही एक कटते हैं।**जब सृष्टि नहीं थी , तब महाकाली (Great Energy- Power) काल के साथ अभेद थीं ! * पवहारी बाबा* *गुरुगिरी और ब्राह्मसमाज । एक सच्चिदानन्द ही गुरु हैं ।**ब्रह्मसमाज और जनक राजा - गृहस्थ के लिए उपाय - एकान्तवास तथा विवेक* *ईसाई धर्म, ब्राह्मसमाज और पापवाद* * एक सच्चिदानन्द ही गुरु हैं **लोकशिक्षा देना हो तो चपरास चाहिए । * वेद तथा तन्त्र का समन्वय* आद्याशक्ति श्रीठाकुर (नवनीदा) का रूप वर्णन : का ऐश्वर्य *E=Mc2,“आद्याशक्ति (The Primordial Energy ) लीलामयी (ever at play) हैं । महाकाली तथा सृष्टिप्रकरण *प्रथम अवस्था में घेरा=निर्जन = यानि महामण्डल शिविर*ईश्वर के लिए व्याकुलता आवश्यक* पर यह सब (केशव-विजय की गुटबाजी अहं को हटाने के लिए) जरुरी है* आदेशप्राप्त व्यक्ति (जीवनमुक्त शिक्षक या नवनीदा जैसे नेता C-IN-C) की बातों में कितना जोर होता है *अहंकार होता है अज्ञान के कारण *
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$$$$$ परिच्छेद -14, [ ( 28 अक्टूबर 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत] Heavy log and worthless timber* *क्या पुनर्जन्म सत्य है ?*- हाँ, मैंने सुना है कि जन्मान्तर होता है ।“ बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि त्व चार्जुन ” (गीता ४/५ ) (नवनीदा पूर्वजन्म में कैप्टन सेवियर थे, और कौन थे ..... स्वरूपानन्द ?} *नेता (Leader) आदि का शरीर समाधि के बाद लोकशिक्षा के लिए * ईश्वर-लाभ के लक्षण ~ समाधि होने पर कर्मत्याग**सप्तभूमि तथा ब्रह्मज्ञान* *कालीरूप तथा श्यामरूप की व्याख्या-'अनंतता' को जाना (नापा) नहीं जा सकता ! * ‘Infinity’ can't be known] *वीरभक्त हुनमान के लिए उन्होंने रामरूप धारण किया था * *वे सगुण हैं और निर्गुण भी* “भक्तिमार्ग से ही वे जल्दी मिलते हैं ।” "It is easier to attain God by following the path of devotion." “ভক্তিপথেই তাঁকে সহজে পাওয়া যায়।”*‘मैं’ मरा कि बला टली ~ किन्तु मैं पन नहीं जा सकता, अतः व्यष्टि अहं को "भक्त मैं"- में रूपांतरित करें !*जबतक आत्म-विश्लेषण (क्षीरसागर मंथन) का अन्त नहीं होता -तर्क चलता है !* ईश्वर की "समाप्ति - इति " नहीं की जा सकती !* (ब्रह्म का स्वरूप अनिर्वचनीय है) * तीन प्रकार के आचार्य/नेता ~ अधम inferior. ,मध्यम mediocre,और उत्तमsuperior * *जन-कल्याण या भारत-कल्याण में तमोगुण का प्रयोग करने वाला उत्तम वैद्य * *तमोगुण का मोड़ घुमा देने (⋃- turn देने) से ईश्वर लाभ होता है ! * *मनुष्य प्रकृति तथा तीन गुण । भक्ति का सत्त्व, रज, तम ।* *अपने नेता (आदर्श) पर ज्वलन्त विश्वास (burning faith)* * माता के भक्त (शाक्त या सतोगुणी भक्त) को कभी खुशामद करके धन कमाने की आवश्यकता नहीं होती * [Mother's devotee (Sakta) need not to earn money by flattering] *गृहस्थ जीवन में रहते हुए जबरन कर्मत्याग करने वालों के लक्षण * [Characteristics of those who forcibly give up deeds while living in household life]*सरकारी टेंडर भरने वालों के लक्षण* [ Characteristics of those filling government tenders] **नाममाहात्म्य ~ श्रीरामकृष्ण का नाम श्रवण करने से पशु मनुष्य बनता है **अपने नेता (आदर्श) पर ज्वलन्त विश्वास (burning faith)* *महामण्डल का नाममाहात्म्य~ बीज मंत्र है - Be and Make ! ** नेता को अपने सहकर्मियों से मिलने का आनन्द * Heavy log (C-IN-C) and worthless timber*कीट -भ्रमर न्याय के अनुसार , हमारा सम्पूर्ण चरित्र हमारे विचारों से निर्मित होता है* अतः मनुष्य-निर्माण और चरित्र-निर्माणकारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार करने के लिए 1967 में आयोजित होने वाले प्रथम महामण्डल युवा-प्रशिक्षण शिविर की रुपरेखा , श्रीठाकुर देव ने 28 अक्टूबर 1882 को 85 वर्ष पहले ही तय कर दी। *अर्धवार्षिक ब्राह्म प्रशिक्षण शिविर के लिए कलकत्ते से तीन मील उत्तर पाइकपाड़ा के पास सींती में बेनीमाधव पाल का गार्डेन हॉउस शिविर-स्थल का चयन * ब्रह्मसमाज के अर्द्ध-वार्षिक उत्सव (The semi-annual Brahmo festival) में मुख्य अतिथि -अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण का आगमन। *ब्राह्म प्रशिक्षण-सत्र, प्रातः और सायं दो भागों में बँटे थे* अपराह्न् -सत्र में (Evening Session में ) महापुरुष (अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण) का आगमन होगा,जैसे महामण्डल के स्टेट लेवल कैम्प में "C-IN-C नवनीदा" का आगमन होता है ।
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$$$(3H) परिच्छेद- 15, [15 नवम्बर 1882), श्री रामकृष्ण वचनामृत ]* सर्कस में श्रीरामकृष्ण *भक्ति होने से ही देह, मन, आत्मा (3H) सब शुद्ध हो जाते हैं * The mind (Head ), body (Hand ), and soul (Heart) of a man become purified through divine love. *पहले निर्जन-साधना या अभ्यासयोग -3H विकास के 5 अभ्यास का प्रशिक्षण , बाद में संसार।spiritual practice is extremely necessary; *राजर्षि जनक ने पहले उग्र तपस्या की थी , फिर गृहस्थ जीवन में आये थे।धर्मतल्ला के पथिकों के सम्बन्ध में भक्तों से बातचीत *अधिकांश लोग निम्न द्रष्टि के हैं। पेट के लिए सब होटल-ठेला- खोमचा पर जा रहे हैं। ईश्वर की ओर बहुत कम लोगों की दृष्टि।*संसारबद्ध (गृहस्थ जीवन में फंसे हुए) जीव मानो रेशम के कीड़े ( silk-worm,गुटि-पोका ) जैसे *
*चरित्र-निर्माण नहीं होने से धनी पुनः दरिद्र हो जाते हैं * मलयानिल पवन लगने भी सेमल-बड़-अमड़ा आदि के पेड़ चन्दन नहीं बनते* स्त्री-पुत्रों के प्रति कर्तव्य*पहले साधना, बाद में संसार । अभ्यासयोग ।
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ॐ *परिच्छेद 16&17 , [(16 नवम्बर 1882,19 नवम्बर 1882) ~ श्री रामकृष्ण वचनामृत ] No reasoning, only Bhakti *केवल लेक्चर देने से क्या होगा? तपस्या चाहिए, तब धारणा होगी* भक्ति ही सार है * केवल एक उपाय से जातिभेद उठ सकता है~ वह है भक्ति *पिशाच सिद्धि (superhuman powers) द्वारा ईश्वरप्राप्ति नहीं होती*
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ॐ परिच्छेद ~ 18 ,[( 26 नवम्बर 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ]Kali's vision First ' *Before that one should not 'lecture'.* श्री विजय गोस्वामी जैसे ब्राह्मभक्तों को उपदेश । वेद में कहा है, ‘अवाङ्मानसगोचरम् ।’ इसका अर्थ यह है कि वे विषयासक्त मन के अगोचर हैं । वैष्णवचरण कहा करता था, ‘वे शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि द्वारा प्राप्त करने योग्य हैं ।* *स्व-परामर्श सूत्र से देह-मन-जिह्वा (3H) को पवित्र करो *[Purify the Body-Mind-Tongue (3H) with Auto-Suggestion formula] attainment of Command~ then 'lecture‘* ’पहले ईश्वर-दर्शन और आदेश प्राप्ति, तब लोकशिक्षा॥* पहले ईश्वर (माँ काली) --दर्शन और आदेश प्राप्ति, तब लोकशिक्षा One can teach others if one receives that command from God after seeing Him.
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ॐ$$$$$$ परिच्छेद ~19 , [(14 दिसम्बर 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] * FISHING NET ~ FISH ~ FISHERMAN *Four classes of human beings * इस समय विजय साधारण ब्राह्मसमाज में आचार्य की नौकरी 😎करते हैं । उन्हें समाज की वेदी पर बैठकर उपदेश देना पड़ता है । *Paid Preacher is not a Leader* वेतनभोगी आचार्य (Paid Preacher ) 'नेता' नहीं होता* अतः भीतर से भक्त होते हुए भी उनको समाज की वेदी पर बैठकर निराकार ब्रह्म का उपदेश देना पड़ता है । क्या किया जाय- नौकरी करते हैं, इसलिए अपनी इच्छा के अनुसार न तो कुछ कह सकते हैं, और न कर ही सकते हैं । *मुक्त पुरुष का शरीरत्याग* शव-साधना की कहानी * स्वर्ण मूर्ति ढल जाने के बाद मिट्टी का साँचा कोई रख लेता है , कोई तोड़ देता है* Four classes of human beings > *मनुष्य की चार श्रेणियाँ । यह संसार माया -जाल है , मनुष्य मानो मछली है और यह संसार (गृहस्थी) जिनकी माया (शक्ति-Energy-जादू ) है -वे ईश्वर मछुआ (श्रीठाकुरदेव ही जादूगर) हैं! "This world is like a fishing net. Men are the fish, and God, whose maya has created this world, is the fisherman.
कामिनी-कांचन में आसक्त मनुष्य ही बद्ध -मनुष्य है । बद्ध जीवों के मन की कैसी अवस्था हो तो मुक्ति हो सकती है ? मनःसंयोग : अभ्यास और तीव्र वैराग्य श्रीरामकृष्ण- ईश्वर की कृपा से तीव्र वैराग्य होने पर इस कामिनी-कांचन की आसक्ति से निस्तार हो सकता है। *कामिनी-कांचन के लिए दासत्व* *1200 'नेड़ा ' मुण्डित -मस्तक त्यागी भगत और 1300 'नेड़ी ' (वैष्णवी भगतिन) *
God is the big magnet. Compared to Him, woman is a small one. What can 'woman' do?" *Don't look woman with the eye of lust *“বজ্জাৎ আমি” — “দাস আমি”‘अहं’ जाता नहीं है । ‘बदमाश मैं ।’ *व्युत्थान के बाद भक्त का अहं रहने में दोष नहीं *‘दास मैं ।’*भक्तियोग ही युगधर्म है । ज्ञानयोग की विशेष कठिनता* *ईश्वर-दर्शन उनकी कृपा बिना नहीं होता* *ईश्वर (गुरु-माँ काली ) से आदेश प्राप्त (C-IN-C का बिल्ला प्राप्त) होने के बाद आचार्य-पद* भक्तियोग ही युगधर्म है । ज्ञानयोग की विशेष कठिनता* ‘अहं’ जाता नहीं है । ‘बदमाश मैं ।’ ‘दास मैं ।’*सप्तभूमि - अहंकार कब जाता है ?- ब्रह्मज्ञान की अवस्था **माया या अहं-आवरण का नाश और ईश्वर-दर्शन* *सच्चिदानन्द ही गुरु और मुक्तिदाता है*
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$$ परिच्छेद ~20,[(? दिसम्बर 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Free Will *
* 'क्या ईश्वर निष्ठुर हैं ? श्रीरामकृष्ण का उत्तर' *आमार प्राण-पिंजरेर पाखी गाओ ना रे * 'क्या ईश्वर निष्ठुर हैं ?विद्यासागर और चंगेजखान (Chenghiz Khan)* *बाबूराम आदि के साथ 'Free Will' (स्वतन्त्र इच्छा) के सम्बन्ध में वार्तालाप ।* श्री तोतापुरी का आत्महत्या का संकल्प*कृपा की बंसरी बजाते हुए मेरे 'मन'-रूपी गाय को वशीभूत कर मेरे हृदयरूपी चरागाह में निवास करो । * दया (compassion) और माया (attachment)दो पृथक गुण हैं*
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$$$परिच्छेद ~ 21, [(14 दिसम्बर 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*प्रत्याहार (Withdrawal of mind)
*Four dimensions of one Rama*मारवाड़ी (अग्रवाल) भक्तों को उपदेश * मन की आसक्ति का मुँह घुमाने के लिए विवेकअंकुश (discretion) का -प्रयोग करो ! * Use discretion to make the mind introvert *" समय न होने पर (proper time) कुछ नहीं होता * किसी किसी का भोग-कर्म काफी बाकी रह जाता है । इसीलिए देरी होती है, फोड़ा कच्चा रहते चीरने पर हानि पहुँचाता है । [चौथा राम] सबसे न्यारा है , सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है। हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु को पा लें। *एक राम (परम् सत्य) के चार आयाम *देखो, व्यापार करने में सत्य की टेक नहीं रहती । व्यापार में तेजी-मन्दी होती रहती है । साधु को शुद्ध चीज देनी चाहिए । मिथ्या उपाय से प्राप्त की हुई चीजें नहीं देनी चाहिए । सत्यपथ द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।’सत्येन लभ्यस्तपसा ह्योष आत्मा /सत्यमेव जयते नानृतम । [1882 में कुल 21 परिच्छेद है ]
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$$ परिच्छेद ~22,[( 1 जनवरी 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Marwari devotees*
*Personal God श्री ठाकुर देव की पूजा का क्या अर्थ है? *अभ्यासयोग । दो पथ : ' मनःसंयोग (विवेक-प्रयोग का मार्ग) और भक्ति'* *Without 'one', zeros don't have any value*माँ काली ने श्रीठाकुर को चपरास देते हुए कहा -‘तू भाव में ही रह ।* (Lust and greed ) में आसक्ति के जाते ही तृष्णा (Thirst ) भी चली जाती है*चित्त शुद्ध हो जाने (अर्थात अहं का शवदाह हो जाने के बाद ) शुद्ध मन में जो कुछ भी प्रकट होता है, वह ईश्वर की वाणी है*
ब्रह्मज्ञान के उपरान्त ‘भक्ति का मैं’* कलकत्ते के आदमियों से क्या मजाल जो कहा जाय कि ईश्वर के लिए सब कुछ छोड़ो ! *पाण्डित्य- मैं कौन? मैं ही तुम* *भावराज्य व रूपदर्शन* *प्रकृतिभाव तथा कामजय । सरलता और ईश्वरलाभ* *ब्रह्मज्ञान के उपरान्त ~भक्ति का मैं * *श्रीरामकृष्ण का श्रीराधा-भाव*भावराज्य व रूपदर्शन* “कलिकाल में प्राण अन्नगत है, कलिकाल में नारदीय भक्ति चाहिए । “वह विषय भाव का है, बिना भाव के कौन पा सकता है ?” *गौरांग-दर्शन – रति की माँ के वेष में माँ* दो पथ : ' विवेक-विचार और भक्ति'*
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$$$$$$$परिच्छेद~23, [(18 फरवरी 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Bow before God* *नेता /गुरु को भक्ति पूर्वक साष्टांग प्रणाम क्यों करना चाहिए* परन्तु बाघरुपी नारायण ('tiger God'-1987- सेक्रेटरी /अमलानन्द/DKS/मौरी सिस्ट ) से आलिंगन करने की आवश्यकता नहीं है,*Hypnotized अवस्था में स्वयं को M/F समझने से विषय-बुद्धि होती ही है* [Form, taste, smell, sound, and touch — these are the 5 objects.] अली, पतंग, मृग, मीन, गज - जरै एक ही आँच |तुलसी वे कैसे जियें जिन्हें जरावें पाँच || “यही दो उपाय हैं, - अभ्यास और अनुराग (गीता के वैराग्य को ठाकुर ने अनुराग कहा ) , अर्थात् उन्हें देखने के लिए व्याकुलता ।” 'tiger God' से आलिंगन नहीं* गृहस्थों (संसारियों) ले लिए ‘दासोऽहं' *अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं~ # यदि मनुष्य 'जगत् की सेवा को ही ईश्वर की पूजा' समझकर करे ~ 'शिव ज्ञान से जीव सेवा करे ' तो शनैशनै उसकी कामिनी -कांचन में आसक्ति या भोग की तृष्णा समाप्त हो जाती है* बेलघड़िया में / “ईश्वर को प्रणाम करो ।” *जागो जागो जननी कुलकुण्डलिनि*, फिर कह रहे हैं, “वे ही सब रूपों में हैं । परन्तु किसी किसी स्थान पर उनका विशेष प्रकाश है- जैसे साधुओं में ।* “फिर देखो मैदान के तालाब का जल धूप से स्वयं ही सूख जाता है । इसी प्रकार उनके नाम-गुणकीर्तन से पापरूपी तालाब का जल स्वयं ही सूख जाता है ।
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$$$$$$ परिच्छेद~ 24 , [(25 फरवरी 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत] *Nityasiddha and Kripasiddha *अनन्त-चतुर्दशी का तो व्रत*जो गुरु (नेता CINC नवनीदा) हैं वे ही इष्ट-अवतारवरिष्ठ श्रीठाकुर देव हैं **सर्वधर्मसमन्वय ~बहिः शैव , हृदये काली , मुखे हरिबोल ! * [“বহিঃ শৈব, হৃদে কালী, মুখে হরিবোল।*] *संन्यासी जगद्गुरु /जीवनमुक्त लोकशिक्षक /नेता ~ कामिनी से सावधान !*
*भीष्म का क्रंदन और भक्तों की सांसारिक अवस्था * गंगा जल पान करके या स्पर्श करके मरना (या सरजू नदी में श्रीराम का जलसमाधि लेना ) हिन्दुओं के लिए महान आध्यात्मिक सामर्थ्य और पवित्र जीवन का परिणाम माना जाता है*संन्यासी तथा कामिनी*सर्वधर्मसमन्वय*रागभक्ति-अहैतुकी भक्ति* सच्चिदानन्द ही गुरु है *गीत का मर्म :-‘मैं मुक्ति देने में कातर नहीं होता, किन्तु शुद्धा भक्ति देने में कातर होता हूँ ।’ “मूल बात है ईश्वर में रागानुराग भक्ति और विवेक-वैराग्य चाहिए ।”चौधरी- महाराज, गुरु के न होने से क्या नहीं होता?श्रीरामकृष्ण- सच्चिदानन्द ही गुरु है।
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$$$/वीर भाव बदलो / परिच्छेद ~25,[( 9 मार्च 1883 )श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Do not reason too much **बान ^ * कैसे आता है? : *संसार किसलिए? निष्काम कर्म द्वारा चित्तशुद्धि के लिए*भक्तों के साथ श्रीरामकृष्ण का बान देखना* *अनन्नास को छोड़ लोग उसके कटीले पत्ते क्यों खाते हैं* वीर भाव बदलो , सन्तान भाव (दिव्य भाव) का हेतु है ! [साभार https://www.divyahimachal.com/2017/08/]
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$ परिच्छेद ~26, [ (Sri Ramakrishna's birthday :11 मार्च 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
"Thrice blessed is this day of joy! May all of us unite*सब मिले तोमार सत्यधर्म भारते प्रचारी । *अपने आदर्श -उद्देश्य के प्रति -लज्जा ,घृणा , भय -तीन थाकते नये * *Beware, holy man~Awtar * तन्त्रोक्त गुप्त वैष्णवी मुद्रा -नेता की अण्डे सेती हुई चिड़िया जैसी अन्तर्मुखी चितवन* नेता नित्य को पहुँचकर विलास के उद्देश्य से लीला लेकर रहता है * गृहस्थ लोकशिक्षक का कार्यक्षेत्र "शीक्षा" और संन्यासी लोकशिक्षक का कार्यक्षेत्र -"दीक्षा"* अनाहत शब्दब्रह्म ॐ (शाश्वत स्पंदन)के प्रतिपाद्य हैं अवतार वरिष्ठ ठाकुर देव **मार्गदर्शक नेता (जीवनमुक्त शिक्षक /C-IN-C/ नवनीदा) की संगत में निरंतर रहने की अनिवार्यता* *गृहस्थ (नेता / ईश्वर से मिलने का मार्ग बतला देते हैं। * CINC -नवनीदा जैसे सूर्य रूपी मनुष्य (नेता =अवतार = पैगम्बर - चार में एक जो दीवाल के उस पार नहीं कूदा जो वापस लौट आया) को देखने मात्र से ~ह्रदय कमल खिल जाता है , "the lotus of the heart burst into blossom * The darkness of the mind (मृत्यु का भय) disappears when God (माँ काली ) is realized. *साधारण लोग नेता (अवतार) के आगमन को नहीं जान सकते * "चौथा राम , जो सबसे न्यारा और जगत पसारा दोनों एक साथ हैं - माँ जगदम्बा की कृपा से समाधि से लौटा हुआ मनुष्य ! *
“श्यामा माँ ने एक कल (Automatic machine) बनायी है । कोन कलेर भक्ति डोरे आपनी श्यामा बाँधा आछे*कल कहती है, मैं खुद घूमती हूँ । वह यह नहीं जानती कि कौन उसे घुमा रहा है । **विषयी पिता के यहाँ भी नित्यसिद्ध श्रेणी के होमापक्षी जन्म ग्रहण कर सकते हैं * ईश्वर नित्य -साकार हैं अथवा नित्य -निराकार ?* ईश्वर साकार (देहधारी corporeal) भी हैं और निराकार (formless) भी और इससे परे भी ~ उनकी इति नहीं हो सकती !*‘नित्य साकार’ क्या हुआ ? ...किसी किसी भक्त के लिए वे (माँ-ठाकुर -स्वामीजी) नित्य साकार हैं ! FOR CERTAIN DEVOTEES GOD ASSUMES ETERNAL FORMS आप समझे ? "स्फटिक " -वाली बात?* माँ सारदा (उमा हैमवती; हिमशैल-आइसबर्ग ) अपने पुत्र के लिये नित्य साकार रहती हैं !*सर्वधर्म समन्वय ~ वैष्णवधर्म तथा साम्प्रदायिकता* *तालिबानी सोंच या धर्मान्धता (dogmatism ) ठीक नहीं * *पुत्रैषणा , वित्तैषणा और लोकैषणा में आसक्ति को कम करने की प्रार्थना* बिच्छू के काटने पर सिर्फ नाम ( magic words) काफी नहीं माँ काली में अनुरागअनिवार्य*जो मैं न था -तो खुदा था , जो मैं न होता तो खुदा होता। डुबोया मुझको होने ने , जो मैं न होता तो क्या होता ?] 'राधा' भाव है – 'माधव' बन जाने के लिए *
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परिच्छेद ~ 27, [(29 मार्च 188) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Raga-Bhakti*
*राग-भक्ति, अर्थात ईश्वर को (माँ काली को) अपनी माँ के रूप में प्यार करना*समाधितत्त्व (भ्रमर-कीट न्याय) सविकल्प और निर्विकल्प ~No trace of cockroach- ego?* *गृहस्थ शिक्षक के लिए व्हाइट ड्रेस ही सर्वोत्तम~ वेष के अनुकूल मन होना अनिवार्य* लोकैषणा- समाज में प्रतिष्ठा और यश की कामना को विषवत त्याग दो* नरेन्द्र इत्यादि नित्यसिद्ध —पाताल फोड़ शिव Hades burst Shiva उनमें भक्ति जन्मजात रहती है * नित्यसिद्ध तो मधुमक्खी की तरह होते हैं ,
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परिच्छेद ~ 28, [(7 अप्रैल 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Unattachment to 'woman and gold'
*न पाप करना ही अच्छा है और न पाप का अभिनय करना * संसारी तथा शास्त्रार्थ* *गगन की थाली , रवि चन्द्र दीपक जले * पान और मछली में क्या रखा है , कामिनी-कांचन का त्याग ही त्याग है *
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$$$$$$ परिच्छेद ~ 29 , [(8अप्रैल 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] No feeling of 'my-ness' toward the body *आध्यात्मिक चेतना जाग्रत होने से दृष्टि परिवर्तित * Awakening of spiritual consciousness ~ Sight changed * सिद्धों की दृष्टि में ईश्वर ही एकमात्र कर्ता हैं और सब उनके यंत्र हैं * (Free will-संकल्प स्वातंत्र्य सिद्धांत)’** प्रेम -तत्त्व (Love element) * प्रेम तो चैतन्यदेव को हुआ था ।*प्रेम के दो लक्षण-देहाध्यास और कामिनी कांचन में आसक्ति समूल नष्ट *[যার ভিতর অনুরাগের ঐশ্বর্য প্রকাশ হচ্ছে তার ঈশ্বরলাভের আর দেরি নাই।The man in whom longing for God manifests its glories is not far from attaining Him.*अनुराग ( longing for God ) और उसके ऐश्वर्य क्या क्या है ? * विवेक, वैराग्य, जीवों पर दया, साधुसेवा, साधुसंग, ईश्वर का नाम-गुणकीर्तन, सत्यवचन, यह सब । *[Discretion : the Art of suiting the action to particular circumstances. "विशेष परिस्थितियों में उचित- अनुचित बोधपूर्वक कार्रवाई करने का कौशल।भक्तिमार्ग से अन्तरिन्द्रिय-निग्रह (inner organs control )आप ही आप हो जाता है और सहज ही हो जाता है।] I do as He does through me.*नाम में रुचि होनी चाहिए, यदि अरुचि हो गयी तो फिर बचने की राह नहीं रह जाती **जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू,सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥*
'As is a man's feeling of love, so is his gain.'*मन ही मनुष्य के बन्धन और मुक्ति (मोक्ष) का कारण है* *ईश्वर दर्शन क्यों नहीं होते? – अहंभाव (अज्ञान से Hypnotized रहने) के कारण ।*
*साधुसंग तथा प्रार्थना- पाठचक्र में जाना क्यों जरुरी है ?* “जब तक अहंकार है तब तक अज्ञान (Ignorance-Hypnotized अवस्था ) है । ‘हृदयमन्दिर में ज्ञानदीप जलाकर ब्रह्ममयी का मुँह देखो न ।’**प्रार्थना -तत्व, अर्जी भेजो गैस का बन्दोबस्त हो जायगा*जिस व्यक्ति चैतन्य जाग्रत हो , उस मनुष्य के लक्षण * ‘अनुराग-अंजन ’ [सुरमा बरेली वाला-प्रेम का सुरमा लगाकर भी एक-दो ही भ्रममुक्त होते हैं !] ‘गोपी-प्रेम -अनुरागरूपी बाघ’**साधनसिद्ध, कृपासिद्ध और नित्यसिद्ध * *जीवन -लक्ष्य को पाने की ज़िद होनी चाहिए। **मनुष्य अपने ही कर्मों के फल को भोगता है, ईश्वर उसे सुख-दुःख नहीं देते। * *परब्रह्म ही जगत का कारण है जो आनंदमय है।* आनंद से भी प्राणी उत्पन्न होते हैं, आनंद में ही जीते हैं तथा अंत में आनंद में ही प्रविष्ट हो जाते हैं।*सब कुछ सोना (आनन्द) है" ~ इसे ज्ञान कहते है* *जीव ! समर के लिए तैयार हो जाओ ।* **आममुख्तारी (power of attorney) उस आनन्दमय परब्रह्म को ही दो- जो जगत का कारण है !* "डिप्टी मजिस्ट्रेट" श्री अधरचंद्र सेन को उपदेश -सब को एक ही रास्ते से जाना है **सकलेर एकपथे जेते होबे -एक पथे चोलिबो , एक कथा बोलिबो *
* *पद-पैसा आदि भी ईश्वर के अनुग्रह से मिलता है -यहाँ सिर्फ दो दिन के लिए आना हुआ है। *संसार में कर्म करना (पद-पैसा अर्जित करना) चित्तशुद्धि का साधन है**राजा जनक ने पहले ज्ञान और कर्म की तलवारें चलाई - फिर चित्त शुद्धि हो जाने के बाद ईश्वर पेन्शन भी देते हैं ! *
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$ परिच्छेद ~ 30, [(15 अप्रैल 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Ma Kali ~ All-pervasive Energy/Power * *ताकिया ठेसान दिया बोसा !~ पद-पैसे का अहंकार छोड़ना बड़ा कठिन है *
*तृणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना ~Lowlier than a straw and Patient as a tree* * नेता को ~ विनम्र भाव से, दुसरो को सदैव मान देकर सेवा करते रहना चाहिए* *सब कुछ ईश्वर (जगतजननी) की इच्छा के अधीन है !* स्वाधीन इच्छा या ईश्वर-इच्छा 'Free will or God's Will ?* *ज्ञान (भेंड़त्व से भ्रममुक्त) के लिए महावाक्य के प्रति अटूट श्रद्धा चाहिए तर्क नहीं* श्रद्धावान (faithful) की आध्यात्मिक उन्नति होती है, तार्किक (logical) की नहीं * *मनुष्य बनने (सूत का नम्बर पहचानने) के लिए सत्संग, गुरु-गृहवास की अनिवार्यता*(जो आत्मसाक्षात्कार के बाद माँ काली के द्वारा फिर से शरीर में वापस भेज दिया गया है- वह जानता है कि -I am the chariot and Thou art the Driver. मैं रथ हूँ, तुम रथी हो** खोल -मृदंग की थाप सुनकर श्रीराधा की कृष्ण-भक्ति का स्मरण और समाधि *" सखी ! रुपेर दोष , ना मनेर दोष ? " आन हेरिते, श्याममय - हेरि त्रिभुवन ! **आनन्दमयी दुर्गा माँ में क्या साकार -निराकार (formless Reality) के दर्शन नहीं होते?* *माँ गो आनंदमयी होये आमाय निरानंद कोरो ना।
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$$$$$$$ [परिच्छेद ~ 31, (22 अप्रैल 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] **Water and Ice*सच्चिदानन्द ही गुरु है * *पैगम्बर वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण तथा ब्राह्म पुरोहित बेचाराम* * मनुष्य का भारत में जन्म - वेदान्त और ब्रह्मतत्त्व का प्रचार-प्रसार करने के लिए ही होता *हांसिते खेलिते आसिनी ए जगते, कोरिते होबे मोदेर मायेर-ई -साधना। *गृहस्थ जीवन में मुक्ति का उपाय; रो-रो कर माँ दुर्गा को पुकारो *क्या सभी भावी गृहस्थ नेता (लोकशिक्षक) संसार त्याग करेंगे ?** भोगों का अन्त (तीनो ऐषणाओं का अन्त) हुए बिना त्याग नहीं होता * *विद्या रूपिनी पत्नी के लक्षण -5 विषय की आसक्ति प्राणघातक * *छिलका (अविद्यामाया ) रहने से ही आम (विद्यामाया) बढ़ता है और पकता है * वैराग्य कब होता है ?**गुरु रूप में कोई व्यक्ति तुम्हारे अन्दर आध्यात्मिक चेतना जाग्रत कर दे , तो जान लेना वही ईश्वर है !spiritual knowledge ^ इन्द्रियातीत सत्य का ज्ञान impossible without a guru*सात फाटकों से परे राजा है * त्रिगुणातीत न होने पर ब्रह्मज्ञान नहीं होता**त्रिगुणातीतं > जब तक कोई व्यक्ति माँ काली की कृपा से तीनों गुणों का अतिक्रमण नहीं कर लेता (देश-काल निमित्त से भी transcend-बढ़कर -बृहद नहीं हो जाता) उसे ब्रह्मज्ञान नहीं होता ! *पुरोहित और पैगम्बर का फर्क - तोमरा जाहाज आमरा जेले डिंगी *
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[(2 मई, 1883) परिच्छेद 32, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]**श्रीमन्दिर-दर्शन और उद्दीपन । प्रज्ज्वलित मन -Ignited Minds* * ठाकुरदेव, रवीन्द्रनाथ टैगोर,आदि-ब्राह्मसमाज की उपासना सभा में **वास्तविक और भ्रामक। श्रीराधा का प्रेमोन्माद*श्रीमन्दिर-दर्शन से ईश्वर -चैतन्य द्वारा 'मन' सुलग (ignite) उठता है * प्रेमोन्माद, ज्ञानोन्माद ; विषय-चिन्ता जन्य उन्माद से बिल्कुल भिन्न है * राधा जी का प्रेमोन्माद विषय चिन्ता से नहीं ईश्वर-चिन्तन से उत्पन्न होती है ! *उपाय- षड्रिपुओ की रुझान को ईश्वर को ओर मोड़ देना ; ताकि ईश्वर पर प्रेम हो *पापकर्मों का उत्तरदायित्व*त्वया हृषिकेश हृदि स्थितेन,-- ईश्वर ही कर्ता हैं और मैं उनका यंत्र हूँ, वह पाप नहीं कर सकता**ब्राह्म पुरोहित आचार्यों की ब्रह्मोपासना तथा पैगम्बर वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण* * अहेतुक कृपासिन्धु -अक्रोध परमानन्द स्वरूप -पैगम्बर वरिष्ठ श्री रामकृष्ण*
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[(13 मई, 20 मई,1883) परिच्छेद ~ 33, श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Rama and His name are identical
* 'चन्द्रावली' तो सेवा नहीं जानती ~ पालागान (Turn song)* " हरिभक्ति-प्रदायिनी सभा" (कोडरमा के हरिसभा ?)
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ॐ परिच्छेद ~ 34, [(27 मई, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Mother is Destroyer of sufferings
**विद्वेषभाव अच्छा नहीं, लेकिन अपने इष्टदेव पर एकनिष्ठ भक्ति अनिवार्य है * ठाकुर देव पहलीबार जब कामारपुकुर से कलकत्ता आये तो झामापुकुर में रहे थे और घर घर में जाकर पूजा करते थे, उस समय कभी कभी नकुड़ वैष्णव की दुकान (ब्यूटीस्टोर?) में जाकर बैठते थे और आनन्द मनाते थे । **श्रीरामकृष्ण द्वारा माँ काली की पूजा तथा आत्मपूजा - 'माँ विपद्नाशिनी महामन्त्र'* गीत -(आमार) मा त्वं हि तारा* ब्रह्माण्ड छीलो ना जखोन (तुई) मुण्डमाला कोथाय पेलि। क्या श्रीरामकृष्ण गौरांग है ?
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$$ परिच्छेद ~ 35,[(2 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] (Inborn or Inherited tendencies of sensuality ) संन्यासी हो या गृहस्थ मनुष्य बनने के लिये दोनों को विषयासक्ति (जन्मजात या विरासत में मिली कामुकता की प्रवृत्ति (Inborn or Inherited tendencies of sensuality) छोड़ना अनिवार्य है* श्री ठाकुर देव की इष्टदेवी भवतारिणी माँ काली पर प्रेम हो जाने से पाप आदि स्वतः भाग जाते हैं * *जब माँ काली मुक्ति देना चाहेंगी -उस समय साधुसंग और व्याकुलता देंगी *“अवतारों को भी माँ कात्यायनी की पूजा करनी पड़ती है - पंच भूतेर फाँदे , ब्रह्म पड़े काँदे ।” शिव ने त्रिशूल से वराह अवतार का भ्रम मिटा दिया। [The Humanity of वराह-अवतार“ सच्चिदानन्द (ecstatic love-immortal Bliss) के मूर्त रूप (अवतार वरिष्ठ ठाकुरदेव) के प्रति प्रेमभक्ति* [प्रेमा-भक्ति और ज्ञानमिश्रित-भक्ति ] *बलराम के घर पर श्रीरामकृष्ण के नरलीला का दर्शन और अमर आनन्द का (Immortal Bliss) आस्वादन**मुक्ति और भक्ति - गोपीप्रेम* नरलीला का दर्शन और आस्वादन* *राजा हरिश्चन्द्र की कथा
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$$$ परिच्छेद ~ 36,[(4 जून, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Grass-eating tiger**कात्यायनी-पूजा* {मनःसंयोग के विषय में 3 गीत} (मनःसंयोग -प्रत्याहार , धारणा साकार या निराकार ?) ‘निर्गुण है सो पिता हमारा, और सगुण महतारी ।माँ से हाजरा की नालिश, श्री ठाकुरदेव और मनुष्य में ईश्वरदर्शन * किसी विशेष व्यक्ति को देखकर भक्ति भावना उद्दीप्त होने का कारण * मनुष्य में ईश्वरदर्शन ।*श्री रामकृष्ण की नरेंद्र के साथ पहली मुलाकात, माता-पिता मेरे या शरीर के हैं ? * श्रीरामकृष्ण और सतीत्व धर्म* "जीवनमुक्त " गृहस्थ आश्रम में भी रह सकता है !* पूरे ह्रदय से आस्तिक बनें - Be a whole hearted believer !* *वास्तविक घटनाओं के साथ सपनों का संयोग*संयोगवश नहीं ' ईश्वर ही कर्ता हैं' इस विश्वास से सबकुछ होता है !
*अहेतुक कृपासिन्धु’ श्रीरामकृष्ण का सिंह -शावकों को अभयदान* ~गुरु- कृपा से मुक्ति और स्वरूप दर्शन,ज्ञानलाभ होने पर मनुष्य संसार में भी (अर्थात गृहस्थ-जीवन में भी) 'जीवन्मुक्त' होकर रह सकता है ।” * पूर्वकथा-सुन्दरीपूजा-और कुमारीपूजा, रामलीला-दर्शन *श्रीरामकृष्ण का प्रेमोन्माद और रुपदर्शन*
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$$$$$$ परिच्छेद ~ 37, [(5 जून, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत] *Wholehearted Faith**ज्ञानपथ और नास्तिकता** भक्त नास्तिकता आने पर भी ईश्वर चिन्तन नहीं त्यागता । **श्रीरामकृष्ण -मणि (श्री 'म') गुरु-शिष्य वेदान्त शिक्षक -प्रशिक्षण परम्परा संवाद* सच्चिदानन्दरूपी सागर में आत्मारूपी मछली (नाम-रूप का कुम्भ) खेल रही है ।“ईश्वर ही कर्ता हैं, उन्हीं की इच्छा से सब कुछ हो रहा है ।” *साधु और अवतार में अन्तर * केवल ईश्वरकोटि ही समाधि से लौट सकता है~ मकरध्वज* बेलघरिया में मोती शील की झील**The Lila is real too~ पैगम्बर वरिष्ठ श्रीरामकृष्ण की लीला भी सत्य है *
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परिच्छेद ~ 38, [(8 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Go forward. Beyond the ... * "-केदार के queer practices सनकी कर्मकांड से " कामिनी और कांचन पर तुम्हारा मन अब भी खींचता है,आगे बढ़ चलो । चन्दन की लकड़ी के आगे और भी बहुतकुछ हैं, - *अन्तरंग पार्षद (भावी नेता-स्वामी शिवानन्द ) से - राखाल को देखकर “मैं यहाँ बहुत दिनों से आया हूँ- तू कब आया ?”*
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$$$$ परिच्छेद ~ 39, [(10 जून, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Autobiography & Concentration
*श्रीरामकृष्ण की आत्मकथा~autobiography~ सुखेर पायरा~ सौभाग्य का कबूतर * (गीता,6.10 )
आत्मोन्नति के साधन का उपदेश~ 3'H'-विकास के 5 अभ्यास* भक्ति प्राप्त करने के लिए ~ मनको निरन्तर परमात्मा में लगाये, मनःसंयोग (विवेक-दर्शन) का 5 अभ्यास करो* * सत्संग सदा ही आवश्यक है * आलस्य करने से कुछ नहीं होगा *गुरु या मार्गदर्शक नेता की आवश्यकता-(#आचार्यवान् पुरुषो वेद । .... अर्थात् आचार्य (C-IN-C या चपरास प्राप्त गुरु/मार्गदर्शक नेता ) से प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति ही परमात्मा को जान सकता है| - छान्दोग्य उपनिषद् ६/१४/२) गुरु (अपने C-IN-C नवनीदा) को ईश्वर मानना पड़ता है । *तभी लाभ होता है *नाम का माहात्म्य है*कदम- कदम बढ़ाये जा ये जिन्दगी है कौम की तू कौम पे लुटाये जा !*ज्ञान प्राप्ति के बाद (जीवनमुक्त होकर) संसार में रहने के लिए आगे बढ़ो ! ** ब्रह्मज्ञान होने के बाद 'अद्वैत' - अर्थात ब्रह्म और आद्याशक्ति (Primal Energy) दो नहीं रहते * माया तथा मुक्ति~“जागो, जागो, जननि” **भक्ति शास्त्र कहता है कि ईश्वर ही चौबीस तत्त्व बनकर विद्यमान हैं ।* माँ जगदम्बा का भक्त ईश्वर-माया-जीव-जगत् सब को एक देखता है ।गुरु/नेता क्या आवश्यक ही है ? *मनुष्यों के अष्टपाश खोलने के लिए मार्गदर्शक नेताओं का निर्माण करना अनिवार्य * पशुभाव -वीरभाव-पंचमकार -चौबीस तत्व *षट्चक्र-भेद** राजयोग में षड्चक्र की बातें हैं -त्रैलंगस्वामी उसके ज्ञाता थे * आचार्यवान् पुरुषो वेद ~ ईश्वर को जानने की प्रणाली~ (नेता द्वारा प्रदत्त माँ काली का नाम ~ श्रीरामकृष्ण है !) उनका नाम सदा ही लेना चाहिए । *ईश्वर-दर्शन के लक्षण* *श्रीमुख-कथित चरितामृत* ‘तुमने मुझे पैदा किया है-दर्शन देना ही होगा !’व्याकुलता के साथ मनःसंयोग आदि 5 अभ्यास करो*two schools of thought: the Vedanta and the Purana~भीतर-बाहर उन्हीं की पूजा करो । .*अवतार (ईश्वरकोटि) आँखों पर पट्टी बाँधते हैं, जैसे लड़के चोर-चोर खेलते हैं और माँ के पुकारते ही खेल बन्द कर देते हैं । जीव (कोटि) की बात अलग है । जो ईश्वरकोटि के नहीं होते उनकी ?) समाधि के बाद अन्त में इक्कीस दिन में मृत्यु हो जाती है * तुम ज्ञान के बाद भक्ति को लेकर रहो !*‘काली का भक्त जीवन्मुक्त है, नित्यानन्दमय है* श्रीकृष्ण ही जगत के आत्मा हैं, और आत्माकार वृत्ति ही श्रीराधा हैं* ]
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$$$$$परिच्छेद ~ 40,[(15 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *The devotee of Swan*
* राजहंस का भक्त 'कामिनी -कांचन ' से अनासक्त होने का दृढ़ संकल्प ले सकता है*गृहस्थ प्रवृत्ति से अनासक्त होकर निवृत्ति में स्थित हो जाये *लेकिन संकल्पशक्ति का तारतम्य होता है– विद्यासागर* साधना-सिद्ध और नित्य सिद्ध* *गृहस्थ के लिए भी उपाय है -छः दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में गुरुगृह वास* *ब्रह्मविद मनुष्य (नेता पैगम्बर) बनने के लिए तीन बार जन्म लेना पड़ता है* *मनुष्य बनने में बाधाएँ ,Obstacles in becoming Human Being* *गृहस्थ को फुफकारना अवश्य चाहिए* [A Householder Must Hiss] गृहस्थ के लिए भी उपाय है तीव्र वैराग्य *गुरुवाक्य (गुरुदेव से प्राप्त अपने इष्टदेव के नाम) में विश्वास । व्यास का विश्वास -ब्रह्मार्पणं *(गीता ४. २४) * भला और बुरा, पाप और पुण्य **ज्ञानयोग और भक्तियोग*
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$$$$ परिच्छेद ~ 41,[(17 जून, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत: ] "Faith! Faith! Faith! **विश्वास : ‘ওহি রাম ঘট্ ঘট্মে লেটা! ~ ओहि राम घोट घोट में लेटा " *.*विश्वास : श्री ठाकुरदेव ही सब कुछ (रेणु , कल्पना , Bh , ,RN,PDa,APe) बने हैं ! * 'Rama alone has become everything*कर्मफल । **माँ के भक्त पर कर्म का नियम (Law of Karma) लागु नहीं होता * कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति * अतिशय दुराचारी पुरुष भी (स्वामी विवेकानन्द की) भक्ति और (चरित्रवान मनुष्य बनने के ) सम्यक् निश्चय के द्वारा शाश्वत शान्ति को प्राप्त होता है। इस श्लोक की दूसरी पंक्ति भगवान् श्रीकृष्ण के अतुलनीय धर्म-प्रचारक (या मानवजाति का मार्गदर्शक नेता के ) व्यक्तित्व को उजागर करती है। पाप-पुण्य* सच्चे भक्त को कोई भय, कोई चिन्ता नहीं।माँ सब कुछ जानती है ।**भक्ति का तम लाओ !* *आत्मा का साक्षात्कार हुए बिना शंसय नहीं जाता ।* *Devotees of the Flamingo*Faith! Faith! Faith! in Gurus Words -स्त्री-पुरुष विवेक : एक राम घट-घट में लेटा*' जनक ! तुममें अभी भी 'स्त्रीपुरुष-बुद्धि' (Male-female distinction) विद्यमान है **तान्त्रिक क्रिया (पञ्चमकार साधना ?) आजकल सफल क्यों नहीं होती ?* अनासक्त को भी भय है/*परमहंस त्रिगुणातित होते हैं*
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$$ परिच्छेद ~ 42, [(18 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Devotees dwells in Rama
“ईश्वर तो सब प्राणियों में हैं -(एक राम घट-घट में लेटा) । फिर भक्त (रामभक्त) किसे कहते हैं ? *जो ईश्वर में रहता है वह है 'भक्त '- Rejoicing like these Pawapuri Temple fish in Chidanand Sagar.*as Fish in the Ocean of Bliss and Consciousness.^ नेता झील की मछली और निराकार का ध्यान ** जगतगुरु श्रीरामकृष्ण ,श्री नवद्वीप गोस्वामी (मणि सेन के गुरु) को शिक्षा~तुम लोग मन से त्याग करना! * गोस्वामी वंश (चपरास प्राप्त नेता ?) के लिए योग और भोग दोनों है * श्री गौरांग (नेता ) को - 'भाव , महाभाव और प्रेम ' *अंतरतम अवस्था, अर्धचेतन अवस्था और चेतन अवस्था*जारा आपनि केंदे जगत् कांदाय ,तारा तारा दुभाइ एसेछे रे !(The inmost state, the semi-conscious state, and the conscious state.)इन तीनों अवस्थाओं का अनुभव, साधारण जीवों को केवल भाव तक *शास्त्र -अध्यन पाण्डित्य प्रदर्शन के लिए नहीं, केवल शास्त्र का सार जानने के लिए * { ^ शास्त्र -सार जान लेने के बाद फिर ईश्वर का लाभ करने अर्थात ब्रह्मविद 'मनुष्य' बनने के लिए "3H विकास के 5 अभ्यास" में कूद पड़ना चाहिए ! * गीता का सार= हे जीव, सब त्यागकर भगवान् का लाभ करने के लिए साधना करो*गृही भक्त के लिए 'कामिनी -कांचन त्याग' का अर्थ है -मन से आसक्ति का त्याग*
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$$$$$ परिच्छेद ~ 43, [(25 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Sri Ramakrishna-ism** प्रार्थना करने से स्वरुप दर्शन ->>>>>वासना के अनुपात में बाधा *अवतार गाय के स्तन हैं *श्री रामकृष्णवाद-नेति से इति * लीला (अवतारवरिष्ठ) के सहारे नित्य (सच्चिदानन्द) में जाना होता है – जिस प्रकार सीढ़ी पकड़-पकड़कर छत पर चढ़ना होता है ।*एईटी पाका मत" ~ Ramakrishna-ism!-It is like reaching the roof by the stairs*>> मनुष्य बनने की पद्धति >>>?लीला धरे धरे नित्ये जेते होय ; जेमोन सिंड़ी धरे धरे छादे ओठा* श्री रामकृष्णवाद- नित्यदर्शनेर पोर नित्य थेके लीलाय एसे थाकते होय। भक्ति -भक्त निये।
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$$$$परिच्छेद ~ 44,[(hot? जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Leader removes all doubts!*अवतार ~ अर्थात नेतृत्व की उत्पत्ति (Genesis Of leadership)*जॉन स्टुअर्ट मिल (1806 - 1873) की आत्मकथा।
*जन्म मरण शरीर का है आत्मा का नहीं **श्रीरामकृष्ण-वादीयों (Ramakrishnaites) के सारे शंसय मिट जायेंगे * *अवतार , (पैगम्बर वरिष्ठ -गुरु, नेता, C-IN-C) के पास जाने से सारे संशय मिट जाते हैं! *छिद्यन्ते सर्वसंशयाः तस्मिन् दृष्टे परावरे *नेता /गुरु अष्टपाशों को काट देते है , सभी शंकाओं को दूर करते हैं !* पशु को मनुष्य में रूपायित करते हैं ; आत्मज्ञान होने पर सुख-दुःख, जन्म-मृत्यु स्वप्न जैसे लगते हैं *प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे *ज्ञानी इतना ही जानता है कि वह कुछ नहीं जानता* नमक का पुतला समुद्र नापने जाकर फिर खबर नहीं देता । गलकर उसी में मिल जाता है ।”
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परिच्छेद ~ 45, [(14,जुलाई 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Fearless feet of the Mother Kali*
*'माँ काली के निर्भय चरण* काली-नामरूपी कल्पतरु को हृदय में बो दिया है*वेदान्त साधना का क्रम~सुनना , समझना, त्यागना* !
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ॐ परिच्छेद ~ 46, [(21 जुलाई 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]Rebirth and Inherited Tendencies
*भक्तों को भक्ति की प्रवृत्तियां पिछले जन्म से विरासत में मिलती हैं * जन्मजात प्रवृत्तियों को भी बदला जा सकता है*ईश्वर की सृष्टि में -'पुनर्जन्म', 'पूर्वजन्म' सब कुछ हो सकता है*चोर दरवाजे (hidden door) का-सा एक दरवाजा सामने है * निराकर सच्चिदानन्द दर्शन - षड्चक्र भेदन - नादभेद-Bigbang- महाविस्फोट और समाधि*सिंहवाहिनी देवी के दर्शन के पहले कुछ प्रणामी चढ़ानी चाहिये * शराब की बोतलों को गंगा भी पवित्र नहीं कर सकती !* ‘मर्द का वचन जैसे हाथी का दाँत’- "मर्द वचन देकर पीछे नहीं हटता * ['रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई']रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्व दिया गया है*अधिकांश कट्टर वैष्णव, वेदांतवादियों, शैव और शाक्त मत के विरोधी*श्रीरामकृष्ण का सर्वधर्मसमन्वय* एक-एक धर्ममत एक-एक पथ है जो ईश्वर की और ले जाता है*जीवन्मुक्त । उत्तम भक्त । ईश्वरदर्शन के लक्षण*
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ॐपरिच्छेद ~ 47,[(22,जुलाई 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Leadership Qualities \
*‘अद्वैत-चैतन्य-नित्यानन्द’ *ज्ञानोयोग और निर्वाणमत *~ यदि संसार माया (मिथ्या) है तो गुरु भी उतना ही मायावी है *युवानेता श्रीरामकृष्ण के पास युवा भक्त, ज्यादातर छात्र, आमतौर पर रविवार को आते थे*यदि जगत् मिथ्या हुआ तो , तो जो शिक्षक यह उपदेश दे रहे हैं वे स्वयं मिथ्या हैं।* *आद्याशक्ति (Primal Energy) ही विद्यासागर की दया के रूप में। *निष्काम कर्म (Be and Make ) का फल *भीतर सोना छिपा है **दया (compassion) और माया (attachment)**नेतृत्व का उदगम- The Genesis of Leadership* 'रामप्रसाद' के व्यष्टि अहं (small 'i' ) का माँ काली के समष्टि अहं (Vast 'I') में रूपान्तरण* ‘कच्चा अहं’ त्याग दो, ‘पक्का अहं’ बनाए रखो * *I am a teacher.(Secretary/ गुरु /नेता/CINC) Renounce this "unripe I" and keep the "ripe I" * *लोकशिक्षा देने के लिए माँ काली ने शुकदेव में जीवनमुक्त शिक्षक या नेता 'ज्ञान का अहंकार' रहने दिया* Maa kali kept in Sukadeva the 'ego of Knowledge'.] *केशव को उपदेश ~orthodox Hindu./कट्टर हिन्दू के लिए *भागवत-भक्त-भगवान्। गुरु-कृष्ण-वैष्णव, एक हैं *गुटबाजी करना अच्छा नहीं * [Global religion ~ Be and Make ! ] * वैश्विक धर्म ~'मनुष्य बनो और बनाओ !' * का प्रचार-प्रसार *जगतजननी का आदेश (चपरास) प्राप्त होने के बाद ही करना उचित * शिष्य के लक्षणों का विचार (Leadership Qualities ) क्यों नहीं करते?**केशव को उपदेश * *तुम आद्याशक्ति (जगतजननी) को मानो* *संघ -नेता के लिए आवश्यक है कि वह माँ काली को ग्रहण करे * A Leader must accept the Divine Mother, the Primal Energy.=Mc2,duality **माया का खेल-‘मामा, बछड़े को घर (सिहोड़) भेजूँगा । बड़ा होने पर वह हल में जोता जाएगा ।’ देख श्रीरामकृष्ण की मूर्च्छा* *अन्तरंग भक्तों (भविनेताओं-LEADERS) में शक्तिसंचार* *ईश्वर का रूप मानना पड़ता है* [One has to believe in the form of God.] 'जनेऊधारी माँ जगद्धात्री ' नेतृत्व प्रशिक्षण कक्षा के बाद, मानव जाति के नेता-वरिष्ठ द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र*'जनेऊधारी माँ जगद्धात्री *माँ श्यामा काली पुरुष है या प्रकृति?* [Is Syama male or female? ]*
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परिच्छेद ~ 48,[(18 अगस्त, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Leaders live in the company of devotee*जीवन का उद्देश्य*ईश्वर का दर्शन * अवतार (नेता) -तत्त्व और गुरुगिरि का अंतर *'
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ॐपरिच्छेद ~ 49,[(19 अगस्त, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]All Good, All Beauty, and All Truth*
* Divine Presence in the image*Compassion and Attachment*Influence of tendencies inherited from past births *ज्ञानयोग और भक्तियोग का समन्वय* *ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं*ज्ञानी और भक्त में अन्तर* भक्त के लिए उसके इष्टदेव ही – सर्वशक्तिमान् षडैश्वर्यपूर्ण भगवान् हैं *काबुल के भक्त याकूब खां का सुख-दुःख**प्रारब्ध कर्म भोग कर ही क्षय होता है* (One must reap the result of the prarabdha karma.) 'Kavi Kankan's Chandi ' *सुख-दुःख देह के धर्म हैं । *भक्त के चेहरे पर हर परिस्थिति में ज्ञान-भक्ति का तेज चमकता है* " सत्यं शिव सुन्दर रूप भाति हृदि मन्दिरे,)*नारद,शुकदेव आदि नेता दूसरों के दुःख से कातर होकर उपदेश देते हैं *चिदानन्द तो है ही, - केवल आवरण और विक्षेप है*veiling and projecting power of maya*नदी जितनी ही समुद्र के समीप होती है उतना ही उसमें ज्वार-भाटा होता है *भक्त की गंगा एक गति से नहीं बहती * (ठाकुर के सभी पार्षद नित्यसिद्ध और ईश्वरकोटि के हैं) He "Narendra " is independent even of me.
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परिच्छेद ~ 50, [(20 अगस्त, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Elder, the pumpkin-cutter'
*सत्संग । गृहस्थ के कर्तव्य*भक्तिशास्त्र पढ़ा करो – जैसे श्रीमद्भागवत या चैतन्यचरितामृत आदि * कुम्हड़ा काटनेवाले जेठजी~ और अच्छे 'मनुष्य' का स्वभाव*
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ॐपरिच्छेद ~ 51,[(7 सितम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Vision of non-dual and indivisible Consciousness * *अवतार क्यों होते हैं* * मनुष्य रूप में अवतरित होने पर, गोप-भक्त भी आसानी से 'गोपाल' की धारणा कर सकते हैं *गोपाल अर्थात सभी दिव्य- शक्तियों से रहित बालक श्रीकृष्ण*Loves God for the sake of love does not care to see God's powers.*शौक़-ए-दीदार है अगर, - तो 'नज़र' पैदा कर* सब भूतों में एक चैतन्य दर्शन*My very Own.~I am dying to see you!'*जो शुद्धा भक्ति चाहते हैं वे सिद्धियाँ नहीं चाहते अंग्रेजों का अनुकरण -भोग-विलास - Stomach-Worry * *महानगरों में सभी का ध्यान - पेट की चिन्ता तथा कामिनी-कांचन पर ! * हाँ, दो-एक को देखा कि वे ऊर्ध्वदृष्टि हैं – ईश्वर की ओर उनका मन है ।*सब भूतों में एक चैतन्य का दर्शन*सत्य, असत्य , मिथ्या का विवेक हुआ है !* चित्त का विज्ञान :विचारों के बीच के अन्तराल का आनंद'* चित्त की चंचलता का रूपांतरण है समाधि !योगसूत्र (3.52 ) क्षणतत्क्रमयोः – क्षण और उसके क्रम में, संयमात् – संयम करने से, विवेकजम् – विवेकजनित, ज्ञानम् – ज्ञान उत्पन्न होता है।श्रीरामकृष्ण अपनी ब्रह्मज्ञानदशा का वर्णन कर रहे हैं ।*ब्रह्मज्ञान और अभेदबुद्धि । अवतार क्यों होते हैं**क्या ठाकुर एक ‘अनचीन्हा पेड़’ अर्थात अवतार हैं?अगर तुम्हे एक बार भी विचारों के बीच के अन्तराल का आनंद मालूम हो जाता है तो एक अदभुत आनंद (नित्यानन्द) की वर्षा हो जाती है।
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ॐ परिच्छेद ~ 52, [(9 सितम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]Attitude of a "Hero" toward Women* *सच्ची चालाकी कौनसी है ?*या राका शशिशोभना गतघना सा यामिनी यामिनी !या लोकद्वय साधिनी चतुरता, सा चातुरी चातुरी ! * तान्त्रिक अचलानन्द वीरभाव की साधना तुम क्यों नहीं मानोगे ? / और श्रीरामकृष्ण का सन्तान-भाव (दिव्यभाव)*आत्मश्रद्धा या अपने आप पर विश्वास का मूल है ईश्वर में विश्वास ! * ईश्वर ही वस्तु है और सब अवस्तु । माँ काली का चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है ?- ज्ञान और विज्ञान - ‘ईश्वर ही वस्तु है’* कर्ताभजा दल की-भगवतिया तेलिन/“चोर धर्म की बात नहीं सुनते ।’* अपने-आप पर विश्वास (आत्मश्रद्धा) का मूल~ ईश्वर में विश्वास !* कृष्णकिशोर की आत्मश्रद्धा - हलधारी के पिता का विश्वास।*ज्ञान और विज्ञान * ब्रह्मज्ञान के बाद विज्ञान (ऋतम्भरा प्रज्ञा?) - उनके साथ वार्तालाप, उन्हें लेकर आनन्द करना-चाहे जिस भाव से हो, दास्य या सख्य या वात्सल्य या मधुर से-इसका नाम है विज्ञान ।*"What is vijnana? It is knowing God in a special way. "चिन्मय रूप (The Spirit-form of God ) क्या है ?
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$$$$$$$परिच्छेद ~ 53, [(22 सितम्बर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Vedanta stories*
*वेदान्त बोधक कहानियाँ **बालक का विश्वास- 'बालक ने ईश्वर को पत्र भेजा' *अशौच (सूतक) में कर्मत्याग* मृताशौच तथा जन्मशौच, (सूतक अवस्था) ^*^(मैत्रेयी उपनिषद --२.१३,१४) * चाण्डाल का स्पर्श और शंकराचार्य ।*"मनीषा पंचकम्" की कथा * बाबा हरिहरनाथ 'धर्मों में सामंजस्य (harmony -समन्वय) के प्रतीक-'* * असुरों के राजा बलि की कथा *"विष्णु का पद" (गया ) साधु के हृदय में है > इसलिए साधु का हृदय सब से बड़ा है *कलियुग में वेदमत नहीं चलता ,आद्याशक्ति की उपासना से ही ब्रह्म की उपासना होती है * गायत्री भी ब्रह्म-मंत्र है , सीधा माँ काली की उपासना करो* * ^ परम् सत्य की खोज और एथेंस का सत्यार्थी > 'ईशान चन्द्र मुखोपाध्याय" का परिचय * जलके भाबले'ई जलेर हिमशक्ति (icebergs) के भावते होय* निराकार आत्मा के विषय में सोचने पर उसके नामरूप धारण करने की शक्ति के विषय में भी सोचना ही पड़ता है ! * *आद्याशक्ति (हिमशक्ति ~ महामाया या आवरण और विक्षेप शक्ति) ने ब्रह्म को आवृत्त कर रखा है* जब तक आवरण है (देहात्मबोध बना हुआ है), तब तक ‘माँ माँ’ कहकर पुकारना अच्छा है ।*अवतार-लीला चित्शक्ति या आद्याशक्ति (Divine Power) का ऐश्वर्य है !* (अवतार लीला और ईशान >अज्ञान शब्दमें जो नञ् समास है> वेद, पुराण एवं तन्त्रों का समन्वय -‘हे रामकृष्णदेव , हमें अपनी भुवनमोहिनी माया द्वारा मुग्ध न करो ।’*अज्ञान शब्दमें जो नञ् समास है-- वह ज्ञानके अभावका वाचक नहीं है प्रत्युत अल्पज्ञान अर्थात् अधूरे ज्ञानका वाचक है।* कामिनी-कांचन ही माया का आवरण है ।* अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।गीता 5.15।।*मनुष्य वही है जो अपने विवेक को महत्त्व देता है।* निराकारवादियों (कट्टर सुन्नी इस्लाम) की भूल*“मैं जानता हूँ, वे साकार निराकार दोनों ही हैं, और भी कितने प्रकार के बन सकते हैं ! वे सब कुछ बन सकते हैं ।”नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां परंतप। गीता 10.40।। # श्रीरामकृष्ण और प्रत्यभिज्ञा दर्शन-‘मैं जो था, वही बन गया ।’ # 'अछूत' में भगवान ~ God in the 'Untouchables' # पुराणों में मां धूमावती की कथा # “उसी चित्शक्ति के, उसी महामाया के शरणागत होना पड़ता है ।”# * विवेक-प्रयोग के बिना शास्त्राध्ययन (Mere Book-Learning)व्यर्थ- गुरु का प्रयोजन । * *[ईशान को लीडरशिप ट्रेनिंग -“ডুব দাও”---‘डुबकी लगाओ !’** और गुरु से बाणलिंग या नर्मदेश्वर लिंग का पता पूछलो ! * छूतधर्मी का आचरण मत करो ।* *सिद्धावस्था में कर्मत्याग हो जाता है !* "मैं नश्वर देह-मन नहीं , अजर-अमर अविनाशी आत्मा हूँ" - इस विश्वास से ही सब कुछ मिलता है । * सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।- अर्थात देहात्मबोध (नामरूप का अहंकार) की जड़ उपाधियों के साथ मिथ्या तादात्म्य का त्याग करना।*राजर्षि जनक के समान पहले साधना-बाद में गृहस्थाश्रम में ईश्वरलाभ *जनक राजा महातेजा, तार वा किसे छिल त्रुटि।* " देखो न, कार्तिक, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती सभी विद्यमान हैं, परन्तु शिव कभी समाधिस्थ, तो कभी ‘राम राम’ कहते हुए नृत्य कर रहे हैं ।” *नॉर्मन विन्सेंट पेले ने 1952 * "When life gives you lemons, make lemonade" ‘जब जिंदगी आपको नींबू थमाती है, तो नींबू का शरबत (lemonade) बनाइये !’*" परमेश्वर (अर्थात आत्मा की शक्ति-माँ जगदम्बा ) के लिए सब कुछ संभव है"- (मत्ती 19:26)। *परमेश्वर (आत्मा की शक्ति) से सब कुछ हो सकता है (लूका 1:37) 'जनक राजा ' जैसा बनने में सहायता कर सकता है। नहीं तो कैसे होगा ? इसलिए हमारा आदर्श वाक्य है - Be and Make '*
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$$$$$####परिच्छेद ~ 54 , [(23 सितम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]Don't hate anyone ~ gangrene [नित्यगोपाल बोस , (Nityagopal Basu) - ज्ञानानन्द अवधूत (Jnanananda Abadhuta)(1855 - 1911) 'कांकुरगांछी के योगोद्यान मठ' में ठाकुर का अस्थिकलश रखा गया था तब पॉँच -छः महीनों तक नित्यगोपाल उस कलश की पूजा-अर्चना रोजाना किये करते थे।*तुलसीदल और शक्ति का कट्टर उपासक गौरी पंडित (bigoted worshipper of Sakti)* ‘हा रे रे रे, निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ।’*हाजरा को उपदेश – घृणा व निन्दा छोड़ दो* तमोगुण को कुम्भकर्ण, रजोगुण को
रावण और सतोगुण को विभीषण *श्रीरामकृष्ण की कर्मत्याग की अवस्था *शरीर में थोड़ा बल दो माँ ! जिससे आजीवन कैम्प जा सकूँ * *ईशान को उपदेश - "कलीयुग में वेदमत नहीं चलता - मातृभाव से साधना करो !*ठाकुर देव माँ काली के साथ बातचीत कैसे कर रहे हैं ? ^* विद्वान् पथः पुरएत ऋजु नेषति। विद्वान गण पुरोगामी होकर सरल पथ से मनुष्यों का नेतृत्व करें।* विद्वान भक्त लोग गगन में निबद्ध दृष्टि के समान विष्णु के उस परम पद को सदैव देखते रहते हैं* *लीनं + गमयति = लिंग। ३ प्रकार के लिंग हैं-*(क) स्वयम्भू लिङ्ग-लीनं गमयति यस्मिन् मूल स्वरूपे। (ख) बाण लिंग-लीनं गमयति यस्मिन् दिशायाम्। (ग) इतर लिंग-लीनं गमयति यस्मिन् बाह्य स्वरूपे। अव्यक्त स्वयम्भू लिंग भुवनेश्वर का लिंगराज है। व्यक्त स्वयम्भू लिंग ब्रह्मा के पुष्कर क्षेत्र की सीमापर मेवाड़ का एकलिंग है।शरीर में मूलाधार में स्वयम्भू लिंग है। अनाहत चक्र बाण लिंग है। आज्ञा चक्र में इतर लिंग है।शब्द लिंग-अव्यक्त शब्दों को व्यक्त अक्षरों द्वारा प्रकट करना भी लिंग (Lingua = language) है। #नंदी अनंत प्रतीक्षा के प्रतीक हैं, क्योंकि भारतीय संस्कृति में #प्रतीक्षा को सबसे बड़ा गुण माना जाता है।भगवान #शिव की प्रतिमा में साथ साथ... अगर छाती से पेट का भाग देखें तो आपको #नंदी जी भी दिखेंगे।तस्मै नकाराय नमः शिवाय।१।दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै य काराय नमः शिवाय।५।# शंकर = शं + कं + रं। प्राण रूप-किसी भी पिण्ड में स्थित ब्रह्म ॐ है। "उमा" शब्द की व्याख्या :
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ॐ परिच्छेद ~ 55, [(26 सितम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]Scholar (priest) and a Prophet (Leader) *कलियुग माँ भवतारिणी के मन्दिर जाना ईश्वर-कृपा है *विद्यासागर और सत्यनिष्ठा ** “सत्यवचन- अधीनता, परस्त्री मातृसमान *सत्यनिष्ठ रहने (चरित्र के गुणों को अर्जित करने) से ही ईश्वर मिलते हैं * ऐसेहु हरि न मिलै, तो तुलसी झूठ जबान ॥ (God is found only by having integrity. God is found only by being honest.)*मास्टर के प्रति उपदेश~ चरित्रवान मनुष्य बनने और बनाने से ही ईश्वर मिलते हैं ! * “पण्डित (Scholar ) और साधु (Prophet) में बड़ा अन्तर है *"सर्वं विष्णुमयं जगत् " ~सच्चिदानन्द सागर से आया हुआ मण्डूक और कूपमण्डूक * महन्त (PR) को देखा जैसे एक गृहिणी (housewife (Pda)* साकार-निराकार। सारे मजहब, मत, पंथ उस सच्चिदानंदघन परमात्मा के ही प्रसाद हैं। सनातन सत्य (Existence-consciousness-bliss ) है।*कलियुग में नारदीय भक्ति की शिक्षा देने वाला ही युगनायक (नेता ) है * कलियुग में वेदमत नहीं~ ‘उपाय है नारदीय भक्ति’ *गायत्री ब्रह्ममन्त्र है , 'पुरश्चरण' तन्त्रोक्त (शाक्त) मत से भी होता है * कर्तव्य बुद्धि* *सच्चिदानन्द ही गुरु, उनकी कृपा से ही मुक्ति*गुरु के रूप में सच्चिदानन्द स्वयं चेक पास करते हैं ...*कलियुग में नारदीय भक्ति की शिक्षा देने वाला ही युगनायक (नेता ) है * नौकरी -ना करी ! 12 साल नौकरी के बाद,पेंशन खाने वाला मनुष्य दास बन जाता है* *जादूगर ही सत्य है , उसका जादू नहीं* *चित्तभ्रम का रोग माँ काली -कृपा की औषधि से दूर होगा* *जिस मन से मैं आकाश को नहीं समझता , उस मन की सम्मोहित अवस्था *No one knows what they quarrel about* जगतरूपी धोखे की टट्टी को निरवच्छिन्न आनन्द (unbroken bliss) की हवेली में रूपान्तरित करो *[गृहस्थ जीवन में निरवच्छिन्न आनन्द (unbroken bliss) — संसार मजार कुटी]गृहस्थ भक्त को अखण्ड आनन्द (निरवच्छिन्न आनन्द) प्राप्त करने के लिए 'बी एंड मेक लीडरशिप ट्रेनिंग' लेना जरूरी है।**क्या यह मानव-शरीर केवल प्रारब्ध कर्मों का भोग करने के लिए मिला है ?* ब्रह्म वेद ब्रह्मैव भवति"* श्रीरामकृष्ण के सभी भक्त शाक्त (follower of Sakti) हैं ! **सच्चिदानन्द ही गुरु (पैगम्बर वरिष्ठ CINC) उनकी कृपा से ही मुक्ति**मैं केवल इतना जानता हूँ , कि मैं कुछ नहीं जानता !** केशवसेन के चरित्र में परिवर्तन का कारण जगतगुरु श्री रामकृष्ण **भक्त के लिए माँ जगदम्बा अवतार देह धारण करती हैं *
*सही मार्ग है ---पहले भक्ति फिर कर्म--> *काली-प्रतिमा में जगन्माता के दर्शन- कर्तव्य बुद्धि* *क्या ईश्वर को जाना जा सकता है ? उपाय शरणागति। * *गुरु /नेता का दर्शन स्वप्न में भी होता है*
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ॐपरिच्छेद ~ 56, [(10 अक्टूबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 'Why should I be one-sided?'**अधर के मकान पर दुर्गापूजा-महोत्सव में** श्रीरामकृष्ण द्वारा श्रीदुर्गामाई की का संध्या आरती का दर्शन *"अद्वैतस्वरूप श्रीरामकृष्ण " के निकट 'वैष्णव, शाक्त, शैव और वेदान्तवादी,' सभी पथों तथा सभी मतों के लोग आएँगे और आत्मज्ञान प्राप्त करेंगे! * * दुर्गापूजा-महोत्सव के समय अधर के मकान पर श्रीरामकृष्ण **भावावेश में जगनमाता के साथ श्री रामकृष्ण का वार्तालाप**मैंने भोजन कर लिया ,अब तुमलोग प्रसाद पाओ ! **बलराम के पिता को उपदेश - *अधिक पुस्तकें न पढ़ो केवल भक्तिशास्त्र (चैतन्य चरितामृत) का अध्ययन करो !"* तीर्थाटन, गले में माला , वैष्णव- भेष धारण कब तक ? * *आत्मज्ञानी को एक पक्षीय क्यों रहना चाहिए ? * तुम स्वयं जिस रंग से रंगे हो वही रंग (मातृ-भक्ति) मुझे दो ।”" ईश्वर सगुण हैं और निर्गुण भी हैं, निराकार हैं और साकार भी *सर्वधर्म-समन्वय *2.** राधा-कृष्ण लीला का अर्थ -वे अपने माधुर्य का आस्वादन लेने के दो बने हैं- रस और रसिक [रस (=भगवान ,कमल ,कृष्ण,ठाकुर) और रसिक (=भक्त,भँवरा ,राधा, माँ सारदा ] *
3साईं के बाद और कुछ नहीं रह जाता *5 - व्याकुल होओ !*श्री रामकृष्ण द्वारा एक वैरागी वैष्णव का वेश-धारण और राम-मंत्र ग्रहण* *श्रीरामकृष्ण के 'व्यष्टि अहं' का, माँ जगदम्बा के सर्वव्यापी विराट 'मैं '-बोध में रूपांतरण**सर्वधर्म-समन्वय और श्रीरामकृष्ण* "वैष्णव, शाक्त, शैव और वेदान्तवादी " भक्त चार प्रकार के होते हैं । प्रवर्तक, साधक, सिद्ध और सिद्ध का सिद्ध । सभी पथों तथा सभी मतों के लोग, श्रीरामकृष्ण के पास आएँगे और आत्मज्ञान प्राप्त करेंगे!"
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ॐ ॐ ॐ परिच्छेद ~ 57, [(16 अक्टूबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]the Relative from the Absolute. *दक्षिणेश्वर में -कोजागरी लक्ष्मी पूर्णिमा (कार्तिकी पूर्णिमा)**एक स्वामी भिन्न पोशाक ~ उदार भक्त सभी देवी-देवताओं को मानते हैं*Liberal-minded devotees *परन्तु निष्ठाभक्ति (single-minded devotion) एक चीज है*हनुमान की निष्ठाभक्ति* द्वापर युग में , जब हनुमान द्वारका में आए तो कृष्ण ने 'रुक्मिणी' से कहा, 'तुम 'सीता' बनकर बैठो ! निरपेक्ष सत्य से ही सापेक्षिक सत्य निकला *Relative truth emerges from absolute truth***श्रीरामकृष्ण का नित्य-लीलायोग (Annual Camp में C-IN-C नवनीदा के सानिध्य में 6 दिन गुजारिये तो सही !)’*** नित्य से ही लीला है : ~ एक हो गया/गयी अनेक*( “तत् ज्योतिषां ज्योतिः ।” एक ऐसी अवस्था (शाश्वत चैतन्य -स्पंदन की अवस्था) है जिसमें ‘अनेक’ (Relative) का बोध नहीं रहता और न ‘एक’ (Absolute) का ही; क्योंकि ‘एक’ (भगवान-रस -कृष्ण ) के रहते ही ‘दो’ (भक्त-रसिक -राधा) आ जाता/जाती है ।) [the Relative (नश्वर,परिवर्तनशील ) from the Absolute.(अविनाशी )~ The One has become Many ]* [The One has become Many ] [ त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः॥ -You are born with your face to every side.”] *हे ईश्वर ! तुम ही कर्ता हो और यह जगत भी तुम्हारा है * बागवान और उसका बगीचा* [Owner and his garden] ““मैं और मेरा’ (माया =आवरण और विक्षेप शक्ति) ने सत्य को छिपा रखा है- जानने नहीं देता ! ("The feeling of 'I and mine' has covered the Reality. ) (‘আমি আর আমার’ সত্যকে আবরণ করে রেখেছে — জানতে দেয় না।**अद्वैत ज्ञान और चैतन्य दर्शन ( vision of Divine Consciousness )***मनुष्यों में रत्न ही अवतार या नेता (पैगम्बर वरिष्ठ -CINC नवनीदा) हैं ** more clay there is in the jar, the less water*इस ‘अहं’ ज्ञान ने ही आवरण बनाकर रखा है ।* घड़े के भीतर जितनी अधिक मिट्टी रहेगी” अन्दर उतना ही जल कम रहेगा ।* अद्वैत -चैतन्य -नित्यानन्द* वेदों का मार्ग कलियुग के लिए नहीं है। तंत्र का मार्ग प्रभावशाली है।]*ईश्वर ही कर्ता*चित्तशुद्धि के बाद ईश्वरदर्शन *अवतार-पुरुष में ईश्वर का दर्शन । अवतार चैतन्यदेव***हरिभक्ति होने से जातिभेद नहीं रहता , भक्ति की अनन्यता के लिये चातक का उदाहरण*पाश्चात्य बुढ़ऊ लोगों के लिए विशेष अनिवार्य उपदेश - एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास [Example of Chatak for the uniqueness of love* *मृत्यु समय के लिए तैयार होना अच्छा है * [ It is good to prepare for death.] *तुलसी राम भजन बिन, चारों बरन चमार-ईश्वर का नाम-जप करने से मनुष्य पवित्र बनता है **साधक अवस्था में परिवार - 'धोखे की टट्टी' और सिद्धावस्था में - "आनन्द की हवेली' *[योगवाशिष्ठ का प्रसंग-क्या संसार ईश्वर से अलग है ?*Follow your own intuition. *अपने स्वयं के intuition-अंतःस्फुरण का पालन करें।*
*कलियुग में 'निगम' का नहीं -'आगम' का मार्ग लाभदायक है
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ॐपरिच्छेद ~ 58,[(26 नवम्बर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]*Touch Paras Be Gold-मनःसंयोग
*Horses in my uncle's cow-shed.*सिन्दुरिया पट्टी ब्रह्मसमाज के नेताओं द्वारा के वार्षिक अधिवेशन में श्री रामकृष्ण का सम्मान * महिलाओं के प्रति उनका सम्मान तथा माता मानकर स्त्री-जाति की पूजा *शिवनाथ एवं सत्य बोलना कलिकाल की तपस्या * माँ को भी सत्य न दे सका *गृहस्थों के प्रति उपदेश-छः दिवसीय वार्षिक शिविर में रहना अनिवार्य क्यों ?* * अहंकार की महाऔषधि — 'तुम से भी बड़े लोग हैं*निर्जन में साधना और साधुसंग **प्रवृति मार्ग का उपाय निष्काम- कर्म (Be and Make), निवृत्ति मार्ग का उपाय वासना त्याग।*भाव, कुम्भक तथा ईश्वरदर्शन*
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ॐ $$$$$$परिच्छेद ~ 59, [(28 नवम्बर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Altogether different person**कमल-कुटीर (Lily Cottage) में केशव को बीमारी देखने जाना ; सामने – रचयति शयनं सचकित-नयनं पश्यति तव पन्थानम् तव पन्थानम्* *श्रीरामकृष्ण का विवाह और साधारण गृहस्थों का विवाह *गृहस्थाश्रम में एक हाथ से श्रीरामकृष्ण के चरणों को पकड़ो -दूसरे से कर्म करो **गृहस्थाश्रम में ईश्वरलाभ का उपाय : मनःसंयोग, विवेक-प्रयोग -(Prerequisite for 'C-IN-C')देह को त्यागकर मनुष्य कहाँ जाता है ?*सत्संग के लिए साधु-महात्मा *नेता (पारस C-IN-C, आद्याशक्ति) को पहचाने कैसे* *सिद्ध और साधक में भेद :-नित्य से लीला में आने के बाद सतोगुणी पार्षद आवश्यक *[ नर में नारायण दृष्टि - पूर्ण (नेता) और (साधक -भाविनेता) के बीच अंतर] * केशब श्री ठाकुर को छूकर सोना बन गए हैं *जगन्माता के साथ वार्तालाप-आत्मा पृथक है और देह भी**ब्रह्म और शक्ति अभेद । नरलीला । सिद्ध और साधक में भेद*[ईश्वर का मातृत्व - विश्व की माता * “वे जिस आधार में अपनी लीला का विकास दिखलाते हैं, वहाँ शक्ति की विशेषता रहती है ।*ब्राह्मसमाज और वेदोल्लिखित देवता । 'गुरूगीर' नीच बुद्धि** ईश्वर के अस्पताल में आत्मा की रोग-चिकित्सा* *ब्राह्मसमाज और ईश्वर का ऐश्वर्य-वर्णन ।* *बगीचा बड़ा है या मालिक ?**सिद्ध और साधक में भेद*विशिष्टाद्वैतवाद और श्रीरामकृष्ण*विवेकज -ज्ञान हो जाने पर- बेल का खोपडा ,गूदा और बीज सब एक जान पड़ता है ] *भवरोग (संसारविकार) की दवा – ‘मामेकं शरणं व्रज’**ब्रह्म और शक्ति अभेद । नरलीला । सिद्ध और साधक में भेद*पापबोध तथा जवाबदेही — Sense of Sin and Responsibility. *क्या “Unknown and Unknowable” अज्ञात और अज्ञेय को जाना जा सकता है ?]*भवरोग की रामबाण दवा – ‘मामेकं शरणं व्रज’*
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परिच्छेद ~ 60, [(9 दिसंबर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]* [THE CAUSAL BODY AND GREAT CAUSE] Chief AIM of Human Life-God vision*🌼भक्ति की शिक्षा, समाधितत्त्व, और महाप्रभु की उच्च अवस्था ।🌼चैतन्यदेव को तीन अवस्थाएँ *हठयोग और राजयोग* *महाप्रभु की उच्च अवस्था*🌼पंचकोष🌼 🌼अवतार वरिष्ठ की भक्ति से सब कुछ मिलता है ~ वेदान्ती हठयोग नहीं राजयोग मानते हैं 🌼 प्राणवायु की करामात --'आबड़ा का डाबड़ा' 🌼मनःसंयोग (राजयोग) का प्रशिक्षण सर्वोत्तम है 🌼वेदान्ती हठयोग नहीं मानते राजयोग मानते हैं 🌼ईश्वर दर्शन ही मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य है 🌼*अद्भुत मूर्तिदर्शन - हरिकथा (श्यामलसुन्दर) -प्रसंग* 🌼श्रीरामकृष्ण के अन्तरंग भक्त और भविष्यत् महातीर्थ 🌼 {बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।* 🌼अन्तरंग भक्त के देखकर उठखड़ा होना - पूर्व जन्म की पहचान है🌼श्रीमहाराज श्रीजयमल कथा 🌼 भक्तमाल की कथायें एक-पक्षीय हैं 🌼 सेवक के ह्रदय में - जिव,जगत 24 तत्व के निर्माता अवतार वरिष्ठ
श्रीरामकृष्ण (ठाकुरदेव) ही पुरुषोत्तम हैं *
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ॐपरिच्छेद ~ 61,[(14 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Actions drop when one realizes God *🌺मणि का प्रथम गुरुगृहवास - निर्जन में साधना 🌺 अध्यात्मरामायण 'गुहराज-निषाद' की कथा 🌺 सन्ध्यादि कर्म आजीवन नहीं करना पड़ता ;फल होने पर फूल आप ही झड़ जाते हैं🌺*यदृच्छालाभ* वास्तविक राजा का लड़का (राजपुत्र) मासिक भत्ता पाता है* 🌺 (The son of a real king gets his monthly allowance.) *‘यदृच्छालाभ’ : जिसे रुपये -पैसे में आसक्ति नहीं, रुपया उसके पास ही आता है* कामिनी-कांचन (में आसक्ति) यही माया है । माया को अगर पहचान सको तो वह आप लज्जा से भाग खड़ी होगी* 🌺अध्यात्मरामायण में कहा है -“जितनी स्त्रियाँ हैं सब शक्तिरूपिणी हैं । वही आदिशक्ति स्त्री का रूप धारण किए हुए है । * 🌺प्रारब्ध कर्म ( पूर्वजन्म के संस्कार inherited tendencies) क्षय हुए बिना त्याग असम्भव 🌺 *कर्ताभजा सम्प्रदाय वाले वामाचार-साधन का निषेध* 🌺 नारी को स्त्री-भाव (पत्नी भाव ) से देखने पर शीघ्र पतन होता है । मातृभाव शुद्ध भाव है । 🌺 When a woman is seen from the woman's sense (wife's sense), there is a quick fall, But to regard her as mother is a pure attitude."🌺 *जगतगुरु श्रीरामकृष्ण और शिक्षक में वार्तालाप * 🌺 मूर्तिपूजा का अर्थ - जहाँ ‘अस्ति, भाति और प्रिय’ (Existence, Light, and Love) वहीँ उनका प्रकाश 🌺 बालकों जैसा विश्वास और दर्शन की व्याकुलता होने से ईश्वर लाभ 🌺 कहानी : अब गोविन्दजी पति हैं 🌺 कहानी :बालक जटिल के दादा मधुसूदन 🌺 कहानी : पिताजी ने भोग लगाने को कहा है , मुझसे भी खाओ ! 🌺गुरुगृहवास प्रशिक्षण से पूर्व श्री ठाकुर द्वारा मन्दिर के खजांची से कक्ष आवंटन🌺 मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य- ईश्वर से प्रेम 🌺 आमि ^ मुक्ती दिते कातोर नेई ,शुद्धा भक्ती दिते कातोर होई। 🌺
🌺निर्जन (प्रशिक्षण-शिविर) में मणि का मनःसंयोग 🌺 ‘कहाँ हो दादा मधुसूदन ! 🌺
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ॐ परिच्छेद ~ 62, [(15 दिसंबर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]Nrisimha, the Man-lion🔆 प्रह्लादचरित्र-श्रवण, नृसिंह की रुद्र मूर्ति द्वारा भक्त प्रह्लाद का देह चाटना 🔆 भक्तवत्सल नृसिंग प्रह्लाद की देह पर जीभ फिरा रहे हैं *तथा भावावेश🔆ईश्वर के मार्ग पर रहकर भी स्त्रीसंग की निन्दा 🔆[विवेक-दर्शन का अभ्यास करने पर परम् सुन्दरी स्त्री भी चिताभस्म के समान जान पड़ती हैं] 🔆 (By practicing Vivek-darshan, even a most beautiful woman seems to be like pyre ashes)🔆विवेक-दर्शन का अभ्यास करने पर स्त्रीसंग और धनदौलत में आसक्ति तुच्छ जान पड़ते हैं 🔆
[By practicing Vivek-darshan, (or Mental Concentration on Swami Vivekananda)
, attachment to women and gold seems to be insignificant. By practicing Vivek-darshan, even a beautiful woman seems to be like pyre ashes.)🔆प्रेमदाता ठाकुरदेव मातृ-भक्ति की खुमारी में अपने मस्तक पर फूल रखकर ध्यान करते हैं ! 🔆 निष्काम कर्म - पूर्णज्ञानी ~ अपनी ग्रन्थ नहीं पढ़ते 🔆
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ॐपरिच्छेद ~ 63, [(16 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]' 🌻Bird imprisoned in a cage' * ईश्वर दर्शन के उपाय 🌻🌻*'लंका में कैद सीता की सी व्याकुलता' के साथ श्रीराम-दर्शन' का अभ्यास * मनःसंयोग *किस तरह व्याकुल होने पर ईश्वरलाभ होता है*सीता राममय-जीविता थीं* 🌻भला 'पिंजरे के पंछी' की तरह मैं रहूँगा ही क्यों ? छिः ! 🌻श्री रामकृष्ण अवतार के बाद ऐहिक और पारमार्थिक (Sacred)का भेद समाप्त🌻 ब्रह्मज्ञान का उपाय : साधु (नेता) संग और कामिनी-कंचन में अनासक्ति🌻 माँ यदि चाहें ब्रह्मज्ञान के पश्चात् के बाद भी संसार में (गृहस्थ-जीवन) में रख सकती हैं 🌻 🌻 >माँ जगदम्बा इच्छामयी (Self-willed)हैं <🌻 इच्छामयी माँ तारा ही वराह (सूकर-शिशु ), भेंड़-शिशु, सिंह-शावक सब कुछ बनी हैं 🌻 🌻 वह परब्रह्म भी पूर्ण है और यह कार्यब्रह्म भी पूर्ण है 🌼🐬योगभ्रष्ट न होने का उपाय -क्रंदन ,भक्ति और मनःसंयोग 🌼🐬दाई (Midwife) ने नाड़ी (navel cord) की बेड़ी काट दी अब कामिनी -कांचन बेड़ी कैसे काटूँ 🌼🐬काव्य : जब ह्रदय 'अहं' की भावना का परित्याग करके, (व्यष्टि अहं को माँ जगदम्बा के मातृहृदय सर्वव्यापी विराट अहं में रूपांतरित करके) विशुद्ध अनुभूतिमात्र रह जाता है तब वह मुक्त ह्रदय (नर-मादा भ्रम से मुक्त हृदय 'D-Hypnotized' Heart ) हो जाता है। ह्रदय की इस मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान (क्रंदन) करती आयी है उसे -काव्य (अर्थात श्रीरामकृष्ण वचनामृत) कहते हैं !🌼🐬] *श्री रामकृष्ण के अवतरित होने के बाद ऐहिक और पारमार्थिक (Sacred)का भेद समाप्त* *ब्रह्मज्ञान का एकमात्र उपाय : साधु(नेता) संग और कामिनी-कंचन में अनासक्ति [कामिनी = ऐसी स्त्री जिसके मन में काम-वासना हो।/मैथुन की अभिलाषा करनेवाली स्त्री/वह सुंदर स्त्री जिसकी कामना की जाए/ रसिक व कामी नारी। /प्रेम करने वाली स्त्री/ कृपालु या स्नेहमी स्त्री।/वह स्त्री जो रूपवती या खूबसूरत हो/]-🌼🐬" गर्भे छिलाम योगे छिलाम , भूमे पोड़े खेलाम माटी। ओरे धात्रीति केटेछे नाड़ी , मायार बेड़ी किसे काटी।🌼🐬 "माँ के लिए क्रंदन करने से कुम्भक, उसके बाद समाधि 🌼🐬 भक्तियोग और मनःसंयोग * *Identity of the Undifferentiated and Differentiated* 🌼साधु-संग करो और आम-मुखतारी ('C-IN-C'= नवनीदा) को दे दो 🌼 *राम का ध्यान -सीता की तरह व्याकुलता* 🌼साधक अवस्था में 3H विकास के 5 अभ्यास अनिवार्य 🌼*श्रीरामकृष्ण और 'वेदान्ततत्त्वों-अनेकता में एकता' की गूढ़ व्याख्या* 🌼परिवर्तनशीलता (लीला) और अपरिवर्तनीयता (नित्य) एक ही सत्य माँ काली के दो पहलु हैं🌼* 🌼जड़ कुछ नहीं, सब कुछ चिन्मय है 🌼 🌼रस (रसो वै सः -श्री कृष्ण) और रसिक (भक्त -श्रीराधा) 🌼 🐬मथुरबाबू ने खजांची को पत्र लिख कर ठाकुर-कार्य में बाधा डालने से मना किया 🌼🐬शिव (समय , महाकाल , चैतन्य) के मन की दो अवस्थाएँ हैं *(Siva has two states of mind) *
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परिच्छेद ~ 64, [(17 दिसंबर, 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 🌼राम (पुरुष) को जानने के लिए सीता (प्रकृति भाव) का आश्रय लेना पड़ता है🌼 पूर्णज्ञान होने पर वासना चली जाती है । 🌼माया को जीत न पाया तो केवल संन्यासी होकर क्या होगा ? 🌼*त्रिगुणातीत भक्त बालक के समान सब कुछ चिन्मय देखता है 🌼* *चिन्मय श्याम, चिन्मय धाम 🌼 संन्यासी के देवता चिन्मय रामलला 🌼 Aim of Life - Ishvaradarshan, Remedy - Ecstatic love ** जीवन का उद्देश्य - ईश्वरदर्शन, उपाय - उन्मत्त प्रेम (ecstatic love)*
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परिच्छेद ~ 65, [(18 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 🌼Blessed is Narendranath, a recluse since adolescence! जो किशोरावस्था (adolescence-उठती जवानी,कौमार अवस्था) में वैराग्यवान् हैं -वे धन्य हैं ! देवेन्द्रनाथ टैगोर जैसा वृद्धावस्था में वैराग्यवान होने की अपेक्षा किशोरावस्था से ही वैराग्यवान नरेन्द्रनाथ धन्य हैं ! 🙏 वैष्णव या शाक्त के प्रति एकांगी दृष्टिकोण नहीं ; गायत्रीमंत्र की सार्थकता 🔆🙏 ` रे संगिनिया, से बन कोतो दूर ! जेखाने आमार श्यामसुन्दर ?' अरी सखी , वह वन और कितनी दूर है , जहाँ मेंरे श्यामसुन्दर हैं ? ] 🌼गोपियों जैसी श्रीकृष्णभक्ति🌼🌼 कालीमन्दिर में ईश्वर चिन्तन या ताशखेल ? ~ नेतृत्व का उद्गम ! 🌼[কালীমন্দিরে তাস খেলা! এখানে ঈশ্বরচিন্তা করতে হয় -নেতৃত্বের উত্স][ God contemplating or playing cards in Kalimandir? ~ The Genesis of Leadership!] 🌼Flatterer - Jackal & Bullock/ चापलूस धनी के पीछे पीछे चलते हैं -बैल और सियार की कथा
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🌝🌞🌝परिच्छेद ~ 66, [(19 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 🌝🌞पंचवटी में बेल-पेड़ के नीचे श्रीरामकृष्ण-श्रीम वेदान्त शिक्षक प्रशिक्षण परम्परा/वेदान्त लीडरशिप ट्रेनिंग 🌝🌞🌝 राम- विवाह का उद्देश्य था -रावणवध / मनुष्य-निर्माण और चरित्रनिर्माणकारी युवा आन्दोलन का प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से राम -श्रीम गृहस्थ (नेता > C-IN-C ) बने 🌝🌞🌝 ईश्वरकोटि (अवतार-CINC) में चन्द्र (भक्ति) और सूर्य (ज्ञान) का सम्मिलित प्रकाश होता है /অবতারাদির ভক্তিচন্দ্র জ্ঞানসূর্য একাধারে দেখা যায় ][Leadrship of C-IN-C: combined light of the sun and the moon.] 🌝🌞🌝(दादा कहते थे :-) आधारों की भी विशेषता है -मलय पवन लगने से सभी पेड़ चन्दन नहीं होते 🔆🙏गुरु विवेकानन्द की कृपा होने से कैप्टन सेवियर को अगले जन्म में 'C-IN-C' नवनीदा का देह धारण करने पर यह ज्ञान और भक्ति दोनों ही - प्राप्त हो सकता है। 🌝🌞🌝
देहात्मबोध रखने वालों के लिए निराकार साधना बहुत कठिन है 🌞🌝🌞 শুধু জানলে হবে না; ধারণা করা চাই।[To know Brahman is not enough, One must assimilate its meaning.🌝🌞🌝🌞स्थित समाधि और उन्मना समाधि में जो फर्क है उसकी धारणा भी होनी चाहिए🔆🙏स्थित समाधि :‘ईश्वर ही कर्ता हैं, मैं अकर्ता हूँ ।’ सुख में भी और दुःख में भी ~‘जिन्होंने मुझे मारा था वे ही मुझे दूध पिला रहे हैं ।’'उन्मना-समाधि' ~ विषयों में बिखरे हुए मन को एकाएक समेट लेना'🌝🌞🌝शिष्य के प्रति करुणाशील श्री रामकृष्ण🌼 🌼*वृन्दावन में कृष्ण-लीला की आध्यात्मिक व्याख्या*🌝🌞🌝`ब्रह्मज्ञान होने पर - ब्रह्म और उनकी शक्ति दनों एक ही जान पड़ते हैं ~ ‘एकमेवाद्वितीयम् ।’/ব্রহ্মজ্ঞান হলে ব্রহ্ম আর শক্তি এক বোধ হয় ! After Brahmajnana, a man realizes Brahman and Its Power is the 'One' that has no two."]🔆🙏 षट्चक्र क्या है : पंचवटी के कमरे में श्री `म' का निर्जनवास 🌝🌞🌝पहले साकार में डुबकी लगाओ,*'रूप सागर में डुबकी लगाओ '*भीष्मदेव की कथा । फिर निराकार का चिंतन🔆🙏चिट्ठी को पढ़ने के बाद उसको फेंको और तद-निर्देशानुसार काम करो 🌝🌞🌝 সাকার চিন্তা - শীঘ্র ভক্তি- তখন আবার নিরাকার চিন্তা।/Throw letter after learning its contents then follow its instructions.
योग कब सिद्ध होता है**जीवकोटि की स्थित-समाधि में देह छूट जाती है, नेता की उन्मनी-समाधि * *वृन्दावन में कृष्ण-लीला की आध्यात्मिक व्याख्या*
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ॐपरिच्छेद ~ 67, [(22 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] God incarnates Himself as man
🔆🙏नेता (अवतार) के प्रति उन्मत्तप्रेम (ecstatic love) और भक्ति मानो चारा हैं🔆🙏ईश्वर (जगन्माता-काली) को खोजना है तो अवतारों (नेता-कृष्ण) के भीतर खोजो /[ ঈশ্বরকে খুঁজতে হলে অবতারের ভিতর খুঁজতে হয়। If you seek God, you must seek Him in the Incarnations.]🔆🙏साढ़ेतीन हाथ की मानव देह में जगन्माता काली (universal ego) अवतीर्ण होती हैं/ওই চৌদ্দপোয়া মানুষের ভিতরে জগন্মাতা প্রকাশ হন।/ The Divine Mother of the Universe manifests Herself through this three-and-a-half cubit man./🔆🙏`भक्ति और ज्ञान' एक ही आधार में रखने वाले 'ब्रह्मविद मनुष्य (theologian) बनो और बनाओ ! '/ खड़दह के 'ब्राह्मण पाड़ा' ['भुवन-भवन ' -कुलीन पाड़ा] में जाना है, तो पहले खड़दह पहुंचना होगा/খড়দা বামুনপাড়া যেতে হলে আগে তো খড়দায় পৌঁছুতে হবে।/If you want to go to Kharada Bamunpara, you have to reach Kharada first.] 🔆🙏नेता (पैगम्बर ,अवतार,ईश्वरकोटि) के देह की विशेषता- एक ही आधार में जगत्जननी की भक्ति और ज्ञान /[Characteristic of the leader (Prophet, Avatar,C-IN-C)-devotion and knowledge ] बद्री-केदार के उस पार जाने से , अर्थात ब्रह्म-ज्ञान के बाद- जीवकोटि का शरीर नहीं रहता, इक्कीस दिनों में मृत्यु हो जाती है ।विवेकानन्द- कैप्टन सेवियर वेदांत नेतृत्व प्रशिक्षण परम्परा-- [Vivekananda - Captain Sevier Be and Make Vedanta Leadership Training]🔆🙏 ईश्वर अवतीर्ण होकर भक्ति का उपदेश देते हैं – शरणागत होने के लिए कहते हैं/[माँ जगदम्बा सारदा - भक्त की भक्तिरूपी रस्सी से स्वयं बँधी हुई हैं ।/ঈশ্বর অবতীর্ণ হয়ে ভক্তির উপদেশ দেন -“কোন কলের ভক্তিডোরে আপনি শ্যামা বাঁধা আছে! ]God incarnates Himself as man and teaches people the path of devotion.] 🔆🙏राम सीता के खोज में रोये थे – ‘पंचभूत के फन्दे में पड़कर ब्रह्म भी रोते हैं'/ [अवतार को सभी लोग नहीं पहचान सकते -`पञ्चभूतेर फाँदे , ब्रह्म पड़े काँदे'][“অবতারকে সকলে চিনতে পারে না — ‘পঞ্চভূতের ফাঁদে, ব্রহ্ম পড়ে কাঁদে।’Not all, by any means, can recognize an Incarnation of God. /Brahman weeps, entrapped in the snare of the five elements.]🔆🙏अवतार (नेता,C-IN-C,नवनीदा) का शरीर रहते उनकी पूजा-सेवा करनी चाहिए 🔆🙏प्रेमोन्मत्त नेता (अवतार,C-IN-C,नवनीदा) पर प्रेम होने से ही सब हो गया / অবতারের উপর ভালবাসা এলেই হল।]"To love an Incarnation of God — that is enough. ]🔆🙏नेता (पैगम्बर ,अवतार) के देह की विशेषता🔆🙏 हिन्दी 'जीवन-नदी के हर मोड़ पर' नामक पुस्तक के संस्मरणात्मक निबंध पृष्ठ ४० पर , लेख १८-`दर्शन बनाम फिलॉसफी' तथा 'लेख ५६-अल्मोड़ा यात्रा' में] "....." যাই হোক, I had small pox ডিসেম্বরের শেষের দিকে। ১লা জানুয়ারী আমি আর উঠতে পারছি না।
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ॐपरिच्छेद ~ 68,[(23 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] I have become! I am here! )🔆🙏गुरु/C-IN-C/-रुपी श्रीरामकृष्ण के सानिध्य में - मणि के गुरुगृहवास का 10 वां दिन🔆🙏`72 नौट ऑउट ' -पर खेल रहे हो ?–'जीव साज समरे , रणवेशे काल प्रवेशे तोर घरे ।' 🔆🙏 जीव तू अमरत्व प्राप्त करने की साधना में जुट जा ; काल तेरे घर में प्रवेश कर रहा है ; 'नरकान्तकारी श्रीकान्त का चिन्तन' करो ! 🔆🙏मणि का लीडरशिप ट्रेनिंग> विशिष्ट द्वैतवाद-'एक' ही 'अनेक' बन गया है !/भारतीय ईश्वर दर्शन (God-vision) ‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी’ :' One has become many > Unity in Diversity ) की विशेषता- 'एक' ही 'अनेक' बन गया है ~ 'अनेकता में एकता।" ब्रह्म ही जीव-जगत सब कुछ बन गए हैं !] 🙏वेदान्त सूत्र - २/१/२८ कहता है `आत्मनि चैवं विचित्राश् च हि ।।' जीवात्मा स्वप्न में दृश्य रचती है; परमात्मा (जादूगर) अपनी माया (जादू) से सृष्टि रचता है./अवयव रहित परब्रह्म से इस विचित्र जगत का उत्पन्न होना असंगत नहीं है! 🔆🙏 'अद्वैत – चैतन्य – नित्यानन्द C-IN-C' रूपी श्रीरामकृष्ण की परमहंस-अवस्था🔆🙏 क्रोध, वासना समाप्त होते ही परमहंस अवस्था 🔆🙏“केवल अद्वैत ज्ञान ! थू थू ! जब तक ‘मैं’ रखा है, तब तक 'तुम' मेरी माँ हो, मैं तुम्हारा बच्चा । 🔆🙏 ईश्वरकोटि-अवतार के अलावा दूसरा कोई निर्विकल्प समाधि से लौट नहीं सकता 🔆 ঈশ্বরকোটি না হলে নির্বিকল্পসমাধি হতে নেমে আসতে পারে না।] No one but an Incarnation can come down ,to the phenomenal plane from the state of nirvikalpa samadhi.)
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ॐ परिच्छेद- 69,[(24 दिसंबर, 1883 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] (गीता विभूति योग - १०/१२ -१३)🔆🙏श्रीरामकृष्ण के गूढ़ उपदेश -(गीता विभूति योग - १०/१२ -१३)/उसे (मणि को) समझ में नहीं आता कि वह अपने रथ-सारथि श्रीकृष्ण (C-IN-C नवनीदा) को विश्व के आदिकारण के रूप में किस प्रकार जाने ?🔆🙏तोतापुरी ^***-श्रीरामकृष्ण 'Be and Make' वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा/[नमक का पुतला समुद्र की थाह लेने गया था । लौटकर उसने (जीवकोटि ने) खबर नहीं दी । 🔆🙏`द्वे वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च मर्त्यं चामृतं च ; नित्य और लीला -दोनों ही सत्य हैं !अवतारी पुरुषों को सभी पहचान नहीं सकते🔆🙏🌼अवतार लोग (ईश्वरकोटि) ज्ञान -भक्ति का उपदेश अवश्य देते हैं. 🔆🙏श्रीरामकृष्ण देव का आत्मपरिचय~ देह तो आवरण मात्र है🔆🙏 ईश्वर ही गुरु/नेता के रूप में अवतरित होकर व्यक्ति को उसका स्वरुप बता देते हैं।🔆🙏बाघ-शावक द्वारा मन-दर्पण में अपना सच्चा मुँह देखना – स्वरूप को पहचानना है !🔆आनन्दं ब्रह्मणो विद्वान् । न बिभेति कुतश्चन। एतꣳ ह वाव न तपति - किमहꣳसाधु नाकरवम् ? अहं किं पापम् अकरवम् इति। [1. घास खाना = कामिनी-कांचन में आसक्त रहना। 2. ‘में में’ करना और भागना' > मिमियाना (To bleat) > शिकायत भरी आह निकालना= नेता के समान सत्तावान होकर भी (ईश्वरकोटि/ C-IN- C नवनीदा का अंतरंग सम्बन्धी निर्विकल्प से लौट आने पर भी ) अपने को सामान्य 'जीवकोटि' का मनुष्य समझकर मृत्यु से भयभीत बने रहना। 3. बाघ के साथ जाना= गुरु (नेता /C-IN-C/) , जिन्होंने ज्ञान की आँखें खोल दीं, उनके शरणागत होना, उन्हें ही आत्मीय समझना । 4.अपना सच्चा मुँह देखना= अपने अविनाशी स्वरूप को पहचानना। 🔆🙏श्री रामकृष्ण की तपोस्थली - पंचवटी के वटवृक्ष के नीचे बने चबूतरे को प्रणाम 🔆🙏 🌼शिवसंहिता में योग की बातें हैं – षट्चक्रों की बात है 🌼 🔆🙏 अवतार और नरलीला>ईश्वर जब मनुष्य बनतें हैं, तब ठीक मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं🔆🙏 🌼 किसी 'मंगता' के सामने आने पर, कार का शीशा नहीं चढ़ाना चाहिए दान देना चाहिये 🌼🔆🙏 1868 में श्रीरामकृष्ण का मथुरबाबू और ह्रदय के साथ श्री वृंदावन-दर्शन (मथुरा का ध्रुवघाट, द्वादशवन ,श्यामकुण्ड और राधाकुण्ड आदि का दर्शन) 🔆🙏जगतजननी माँ काली के भक्त को चारो पुरुषार्थ प्राप्त होता है🔆🙏 माँ तारा का पुत्र 'धर्म और मोक्ष' दोनों पाता है, तथा 'अर्थ' और 'काम' का भोग भी करता है] 🌼🔆🙏श्रीरामकृष्ण को घाट पर एक देवीभक्त का दर्शन- नवीन नियोगी को योग और भोग 🌼🌼यदि देवीभक्त नहीं रहो और अत्यधिक धन हो जाये- तब अहं बढ़ जायेगा 🌼🔆🙏माँ जगदम्बा का स्मरण-मनन (विवेक-दर्शन) करते रहने से ध्यान हो जाता है🔆🙏 शिवसंहिता- छह मानसिक केन्द्र (The six psychic centers )🔆🙏 जागो माँ कुलकुण्डलिनी, तुमि ब्रह्मानन्दस्वरूपिणी, तुमि नित्यानन्दस्वरूपिणी, प्रसुप्त्-भुजगाकारा आधारपद्मवासिनी। 🔆🙏 आध्यात्मिक उन्नति के लिए उचित समय आने पर गुरु (=T) ही सब कुछ करते हैं !![Proper time for spiritual unfoldment.as soon as he gets rid of ego]🔆🙏अहं मिटते ही नित्यानित्य विवेक होता है, विवेक हुए बिना महावाक्य ग्रहण नहीं/[ সংসার , দর্শন, — স্পর্শন, — সম্ভোগ! অনিত্য — এর নাম বিবেক][Vision — touch — enjoyment- the world is illusory' — that is discrimination.]🔆🙏जो अपना आदमी है, उसको तिरस्कार करने पर भी वह नाराज नहीं होता 🔆🙏`एकादशी करने से मन बहुत पवित्र होता है और ईश्वर पर भक्ति होती है'🔆🙏 मथुरा का ध्रुवघाट ^* -/ बाँकेबिहारी जी का मंदिर ^**श्याम कुंड और राधा कुण्ड *****द्वादशवन।/उड़ीसा और श्री जगन्नाथ का सम्बन्ध :🔆🙏चैतन्य-भागवत' ^*शिवसंहिता संक्षिप्त भविष्य पुराण 🔆🙏
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ॐ परिच्छेद ~70, [ (26 दिसंबर 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] 🔆🙏🔆🙏श्रीरामकृष्ण के गूढ़ उपदेश 🔆🙏`एकादशी करने से मन बहुत पवित्र होता है और ईश्वर पर भक्ति होती है'🔆🙏 जो अपना आदमी है, उसको तिरस्कार करने पर भी वह नाराज नहीं होता 🔆🙏अहं मिटते ही नित्यानित्य विवेक होता है, विवेक हुए बिना महावाक्य ग्रहण नहीं🔆🙏 आध्यात्मिक उन्नति के लिए उचित समय आने पर गुरु (=T) ही सब कुछ करते हैं !!🔆🙏 शिवसंहिता- छह मानसिक केन्द्र (The six psychic centers )🔆🙏माँ जगदम्बा का स्मरण-मनन (विवेक-दर्शन) करते रहने से ध्यान हो जाता है🔆🙏 🌼यदि देवीभक्त नहीं रहो और अत्यधिक धन हो जाये- तब अहं बढ़ जायेगा 🌼🌼श्रीरामकृष्ण को घाट पर एक देवीभक्त का दर्शन- नवीन नियोगी को योग और भोग 🌼🔆🙏जगतजननी माँ काली के भक्त को चारो पुरुषार्थ प्राप्त होता है 🔆🙏 🌼 1868 में श्रीरामकृष्ण का मथुरबाबू और ह्रदय के साथ श्री वृंदावन-दर्शन 🌼 🌼 किसी 'मंगता' के सामने आने पर, कार का शीशा नहीं चढ़ाना चाहिए दान देना चाहिये 🌼[AGM प्रमोद दा , अजय अग्रवाल के साथ टैक्सी हिजड़ा गाली] 🌼 ईश्वर मनुष्य के रूप में नेता / गुरुरूप में अवतीर्ण होते हैं, उस समय ध्यान करने की विशेष सुविधा होती है ।🌼 अवतार और नरलीला>ईश्वर जब मनुष्य बनतें हैं, तब ठीक मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं/[नेता जैसा रोल मिला है , वैसी एक्टिंग करते हैं ,Leaders act as they have got the role.] 🔆🙏श्री रामकृष्ण की तपोस्थली - पंचवटी के वटवृक्ष के नीचे बने चबूतरे को प्रणाम 🔆🙏रामबाबू ठाकुरदेव को अवतार मानते थे, लेकिन ब्रह्मसमाज वाले अवतार नहीं मानते 🔆🙏ईश्वर ही गुरु/नेता के रूप में अवतरित होकर व्यक्ति को उसका स्वरुप बता देते हैं।🌼अवतार लोग (ईश्वरकोटि) ज्ञान -भक्ति का उपदेश अवश्य देते हैं 🌼 🔆🙏 नित्य और लीला -दोनों ही सत्य हैं ! अवतारी पुरुषों को सभी पहचान नहीं सकते🔆🙏🔆🙏बाघ शिशु की चार अवस्थायें और श्रीरामकृष्ण के जन्मतिथि से स्वर्णयुग का प्रारम्भ🔆🙏बाघ-शावक द्वारा मन-दर्पण में अपना सच्चा मुँह देखना – स्वरूप को पहचानना है !🔆🙏 तोतापुरी ^***-श्रीरामकृष्ण 'Be and Make' वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा 🔆🙏
श्रीरामकृष्ण देव का आत्मपरिचय~ देह तो आवरण मात्र है🔆🙏 🔆आद्याशक्ति और ब्रह्म अभिन्न हैं । ब्रह्म को छोड़कर शक्ति नहीं होती । जब तक उन्होंने इस लीला में रखा है, तब तक द्वैत ज्ञान होता है । शक्ति को मानने से ही ब्रह्म को मानना पड़ता है;देह आवरण है, मानो लालटेन के भीतर बत्ती जल रही है,वही जो वाणी व मन से परे हैं, नाना रूप धारण करके अवतीर्ण होकर काम कर रहे हैं । निमन्त्रण में मालिक ने एक छोटे लड़के को भेज दिया है – उसका कितना मान है, क्योंकि वह अमुक का नाती या पोता है।”]
उसी ‘ॐ’ से ‘ॐ शिव’ ‘ॐ काली’ व ‘ॐ कृष्ण’ हुए हैं 🔆 तुलसी-कानन का महत्व 🔆 🔆जिनका नित्य है, उन्हीं की लीला है 🔆VVI🔆सर्वदा अद्वैत-दृष्टि रखनी चाहिये। "श्रीमद्भागवतमहापुराण" स्कन्ध 11; अध्याय 28,श्रलोक..(01-44) का हिन्दी अनुवाद
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ॐ परिच्छेद ~71,[(27 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ]"How long man perform his duties🔆श्री रामकृष्ण (ठाकुर देव) का श्री ईशान मुखर्जी के घर पर कलकत्ता शुभागमन; *CINC के सानिध्य में मणि के गुरुगृह वास का 14 वां दिन * 🔆 कर्म कब तक हैं ? – जब तक उन्हें प्राप्त न कर सको । 🔆कर्म (टेण्डर भरना) कब तक हैं ? – जब तक उन्हें प्राप्त न कर सको । 🔆
उन्हें प्राप्त कर लेने पर सब चले जाते हैं । तब पाप-पुण्य के पार जाया जाता है । 🔆देवीपुत्र (माँ तारा का बेटा) योग और भोग (पेंशन) दोनों पाता है 🔆 🔆अभ्यास-योग (yoga of practice-3H विकास के 5 अभ्यास) और निर्जन में साधना 🔆 🔆मनुष्य जीवन का उद्देश्य है - ईश्वर प्राप्ति — परा और अपरा विद्या —विज्ञानी दूध पिता है 🔆 “जिस विद्या के प्राप्त करने पर मनुष्य उन्हें पा सकता है, वही यथार्थ विद्या है, और सब मिथ्या है । 🔆 🔆मुमुक्षुत्वं या ईश्वर (परम् सत्य) को देखने की व्याकुलता -समय सापेक्ष 🔆 🔆अपने गुरु (नेता/CINC- नवनीदा) को आम मुखतारी (Power of Attorney) दे दो 🔆 🔆शिष्य दो प्रकार के होते हैं - बन्दर का बच्चा और बिल्ली का बच्चा 🔆 🔆ईश्वर कर्ता हैं, तथापि कर्मों के लिए जीव उत्तरदायी है 🔆 🔆जो साकार (अवतार वरिष्ठ) हैं , वे ही निराकार हैं !! नाम-महात्म्य 🔆 🔆ईशान चन्द्र मुखर्जी -क्षेत्रनाथ चटर्जी मकान के बीच परमहंस मार्ग 🔆 🔆 सच्चा वैष्णव, शैव -शाक्त किसी भी मार्ग की निन्दा नहीं करता 🔆 🔆ईश्वर-कोटि (नेता -जीवनमुक्त शिक्षक) से अपराध नहीं होता 🔆 गृहस्थों (प्रवृत्ति मार्ग) के लिए- ज्ञानयोग या भक्तियोग ? **ईश्वर कर्ता हैं, तथापि कर्मों के लिए जीव उत्तरदायी है*[शिष्य दो प्रकार के होते हैं - बन्दर का बच्चा और बिल्ली का बच्चा] *मुमुक्षुत्वं या ईश्वर को देखने की व्याकुलता -समय सापेक्ष* [मनुष्य जीवन का उद्देश्य है - ईश्वर प्राप्ति — परा और अपरा विद्या —विज्ञानी दूध पिता है ! ]भुक्ति और मुक्ति ( 'भोग- desire-अर्थ और काम' तथा 'योग-liberation- धर्म और मोक्ष') दोनों के सामने अपने सिर को झुकाता हूँ;[अपने गुरु (नेता/CINC- नवनीदा) को आम मुखतारी (Power of Attorney) दे दो ! अभ्यास-योग = 'नेतृत्व करना तथा -'CS को DS' तक ले जाना !'
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ॐपरिच्छेद ~72, [ (29-30-31 दिसंबर, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Kali is supreme 🔆शनिवार की अमावस्या को श्री ठाकुरदेव कालीमाता का दर्शन करने- कालीघाट जायेंगे 🔆 [गुरुगृह -वास में रहते हुए प्रशिक्षु को घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए।] 🔆 वेदान्तवादी संन्यासी के साथ श्रीरामकृष्ण द्वारा हिन्दी में ब्रह्मज्ञान पर चर्चा 🔆 जब तक ‘हम’ और ‘तुम’ यह भाव है, तब तक 'माँ' भी हैं 🔆
🔆गृहत्यागी प्रवर्तक -संन्यासी भी गृहस्थों के लिए सम्मान के पात्र होते हैं 🔆 🔆जो मन का मीत होता है वह देखते ही पहचान में आ जाता है 🔆 मन के बहिर्मुख रहते हुए वेदान्ती साधु भी माँ काली को प्रधान मानते हैं🔆 हलधारी संसार को मिथ्या बोलता है , उधर बच्चा पैदा करना चाहता है 🔆अवतार वरिष्ठ श्रीरामकृष्णदेव की भक्ति करना ही उनके भक्तों का भक्ति-वेदान्त है ! 🔆
जब तक गृहस्थ/त्यागी उपदेशक का मन बहिर्मुख बना हुआ है तब तक उसे माँ काली को मानना ही होगा । नहीं तो भ्रष्टाचार फैलेगा ।”
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🔆<> 🔆<>🔆परिच्छेद ~73,[(2, 4 जनवरी, 1884 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Enjoy spontaneous Divine Bliss🔆सहजानन्द (spontaneous Divine Bliss ~ सहज दिव्य आनन्द)- शाश्वत चैतन्य का निरंतर स्मरण तांत्रिक के साथ वार्तालाप🔆 षट्कमल में पद्म मृणाल-शिव (पुरुष) और पद्म कर्णिका -शक्ति (प्रकृति) के प्रतीक हैं 🔆 श्री जय गोपाल सेन के साथ वार्तालाप 🔆 नित्यप्रभु -नित्यदास (Eternal Lord and His Eternal Servant) वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा है~ 'Be and Make' 🔆 एक बार छत पर चढ़ जाने के बाद, किसी भी पथ से उतरा जा सकता है🔆*ज्ञान-पथ और विचार-पथ । भक्तियोग और ब्रह्मज्ञान 🔆 पहले बड़े बाबू के साथ साक्षात्कार करना चाहिए, बड़ा -बाबू सब बता देंगे उनकी (गुरु / नेता की) कृपा होने पर भक्त सब कुछ जान सकता है 🔆ईश्वर-दर्शन के उपाय~ 'यम,नियम' 24 X 7 तथा 'आसन, प्रत्याहार,धारणा' दो बार🔆कामिनी -कांचन में आसक्ति के रहते योग नहीं होता 🔆मणि के गुरुगृहवास का 21 वां दिन 🔆 पहले जगत जननी हैं, फिर जगत , माँ काली के विषय में ज्यादा तर्क-विचार ठीक नहीं-To indulge in reasoning about the Mother Kali is forbidden. पहले मुर्गी हुआ या अण्डा ? पहले पुरुष हुआ या प्रकृति ? दोनों एक हैं -ब्रह्म और शक्ति अभिन्न हैं ! ] 🔆 कृष्णकिशोर के साथ 'मरा -मरा ' मंत्र के रहस्य पर चर्चा 🔆 ‘मरा-मरा शुद्ध मन्त्र है; क्योंकि वह ऋषि का दिया हुआ है 🔆उल्टा नाम जपत जग जाना। वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।🔆हे माँ ! मेरी तर्क करने की इच्छा पर (desire to reason) तुम वज्राघात करो 🔆 ঠাকুরের রাস্তায় ক্রন্দন — “মা বিচার-বুদ্ধিতে বজ্রাঘাত দাও” — ১৮৬৮ 'O Mother, blight with Thy thunderbolt my desire to reason!' 🔆 इष्टदेव पर पूरा विश्वास रखें -भक्ति से ही सब कुछ प्राप्त होता है 🔆 अवतार वरिष्ठ (माँ काली-सच्चिदानन्द नेता,गुरु,ठाकुरदेव,) के भीतर ही ब्रह्माण्ड है🔆 उनकी निष्काम भक्ति को अहेतुकी भक्ति कहते हैं । 🔆 कार्तिकेय के नहीं गणेश के गले में माता भगवती की मणिमाला पड़ी~ अर्थात कार्तिकेय को नहीं ,गणेश-को चपरास मिला 🔆 सच्चिदानन्द गुरु (कर्णधार) की कृपा से थाह लेते समय 'नमक' का पुतला 'पत्थर' बन गया 🔆 'सन्तान भाव', 'वीरभाव' से क्यों अच्छा है ? मायादेवी (Bh) शर्म से रास्ता छोड़ देती है 🔆सिद्ध स्थिति के प्रेम में काम (lust) की गन्ध तक नहीं रहेगी 🔆 * चण्डीदास और धोबिन की कथा*(চন্ডীদাস ও রজকিনীর কথা)🔆 सिद्ध-स्थिति में प्रकृतिभाव होता है; ~ अपने को 'पुरुष' मानने की बुद्धि नहीं रहती 🔆रूप गोस्वामी को मीराबाई की शिक्षा - वृन्दावन में कृष्ण के सिवा सभी स्त्रियाँ 🔆 धर्म (सनातन) क्या है ?🔆 सनातन धर्म तथा अन्य सम्प्रदायों के विषय में श्रीरामकृष्ण देव की भविष्यवाणी 🔆 🔆केशव के साथ चिदाकाश और कुण्डलिनी जागरण पर चर्चा 🔆
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ॐ परिच्छेद ~74,[ (5 जनवरी, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] God without renunciation?
🔆मणि ' को मनुष्य 'बनने और बनाने~Be and Make' का प्रशिक्षण* मणि का गुरु (नेता -CINC) गृहवास में 23 वाँ दिन* 🔆कामिनी-कांचन त्याग ~ बुलकनि देवी का X-ray vision 🔆 रघुबीर के जमीन की रजिस्ट्री - (1878 -80)] 🔆ईश्वर की कृपा से बालक ध्रुव की 'सकाम भक्ति भी निष्काम भक्ति में रूपान्तरित' हुई थी 🔆 अन्नदान की अपेक्षा ज्ञानदान और भक्तिदान अधिक ऊँचा है 🔆 ज्ञान-भक्ति दान देते समय भी - 'मैं अकर्ता हूँ ; दाता एक राम' यह बोध रहना चाहिए 🔆[लेकिन गुरु /नेता (चैतन्य महाप्रभु) को 'दासोअहं या 'विद्या का अहं' रखना पड़ता है] 🔆'स्वाधीन इच्छा' भी उन्होंने ही दे रखी है, यह धारणा होने पर पैर कभी बेताल नहीं पड़ सकता 🔆 ईश्वर ऑपरेटर है मनुष्य मशीन, ईश्वर ड्राइवर है, मनुष्य गाड़ी 🔆 हमेशा भक्ति और भक्तों की संगत में ही रहना चाहिए 🔆 श्रीराधा और यशोदा संवाद - ठाकुर के 'अपने लोग' 🔆आद्यशक्ति काली अपरिवर्तनशील को भी परिवर्तनशील बना देती हैंचिदात्मा पुरुष (श्रीकृष्ण) हैं और चित्-शक्ति प्रकृति (श्रीराधा) 🔆 भक्तगण उसी चित्-शक्ति (श्रीराधा) के एक-एक रूप हैं 🔆 🔆सात जन्मों की तर्क-बुद्धि तुम्हारी एक झलक से चली जाती है ! 🔆भक्तों के प्रति आशीर्वाद -“माँ, तुम्हारे पास जो लोग आते हैं उनका मनोरथ पूर्ण करो ! 🔆जिस नेता (C-IN-C) को बकलमा दिया है -वे तो त्रिकालदर्शी है !🔆 जगतजननी माँ सारदा और जन्मदेनेवाली माँ (तारा माँ) - नरलीला क्यों ?🔆[काली-भक्तों और श्रीगौरांग के भक्तों के बीच कट्टर शत्रुता क्यों है ? 🔆गौरी पण्डित का कथन ~ काली और श्रीगौरांग तो एक हैं ! 🔆 जो नित्य हैं , उन्हीं की लीला है , नित्य भी सत्य और लीला भी !🔆[अवतारवरिष्ठ क्यों आते हैं ? पंच -पुरुषार्थ सिखलाने आते हैं !] ईश्वर (सच्चिदानन्द-Substance) ही वस्तु है, और सब अवस्तु (illusory)🔆' तुम्हारे लड़के हुए हैं, सुनकर तुम्हें फटकारा था – अब जाकर घर में रहो * * डाकू रत्नाकर की स्वाधीन इच्छा (Free Will) भी केवल प्रतीति मात्र है **हमेशा भक्ति गीत ही गाने चाहिए ** निष्काम कर्म करना ही अच्छा है , actions without motives are good."** चिदात्मा श्रीकृष्ण हैं और चित्-शक्ति श्रीराधा !* भक्तगण उसी चित्-शक्ति के एक-एक स्वरूप हैं ।काली जड़ को भी चेतन बना देती हैं*
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ॐ परिच्छेद ~75,[(2,3 फरवरी, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Garden and its Owner ?
🔆श्री रामकृष्ण के हाथ में चोट - समाधि और जगतजननी से वार्तालाप 🔆'यदि सचमुच तुम ऑपरेटर और मैं मशीन हूँ '- तो 'मेरा' हाथ क्यों टूटा ? 🔆 श्री रामकृष्ण का सन्तानभाव - "ब्रह्मज्ञान को मेरा करोड़ों नमस्कार" 🔆वे अपने बाप, अपनी माँ हैं – उन पर अपना जोर चल सकता है ।- व्याकुल होओ । 🔆Be and Make के लिए -राष्ट्र को आह्वान किस तरह करना चाहिये 🔆 शिवपुर के भक्तगण आध्यात्मिक जीवन के आधारभूत तथ्य (essentials of spiritual life) 🔆सत्य,असत्य,मिथ्या में विवेक करो, 🔆 'गंगा की तरंगें हैं , तरंगों की गंगा नहीं' 🔆 🔆समय नहीं है ,तो दोनों समय भक्तिपूर्वक दो बार प्रणाम करें 🔆[समय नहीं है, तो आममुख्तारी (power of attorney) दे दो]🔆अहंकार बिना गए कोई उन्हें पा नहीं सकता 🔆 गृहस्थ जीवन क्यों मिला ? भोग के बाद व्याकुलता होगी ,तब ईश्वरलाभ की इच्छा 🔆 उनके सच्चिदानन्द स्वरुप का चिन्तन करने पर रम्भा -तिलोत्तमा चिता की भष्म🔆 🔆भोगों (Bh) का अन्त हुए बिना जगन्माता (माँ काली) की याद नहीं आती🔆 [या बिना पहचान का आदमी (अवतार ,नेता ,गुरु) पर विश्वास नहीं होता] 🔆नारदादि नित्यसिद्ध नेता माया-जाल में क्यों नहीं फँसते? 🔆 डॉ श्रीमधुसूदन का आगमन - श्रीकृष्ण का मधुसूदन नाम कैसे पड़ा ? 🔆नाम और नामी एक हैं ! God is not different from His name. 🔆 ऑपरेशन टेबल (रिकवरी रूम में ): राधिका की दशम दशा 🔆 अधर की गुरु भक्ति -चरण सेवा ही हाथ के चोटपर हाथ फेरना है 🔆 महिमाचरण को उपदेश~ "अपने-स्वरुप को जानो"🔆अहं के चले जाने पर ब्रह्म की साक्षात् अनुभूति होती है 🔆 पत्नी के सिवा अन्य स्त्रियों के निकट बहुत सावधान रहे बिना, ब्रह्मज्ञान होना सम्भव नहीं 🔆 संन्यासियों के लिए स्त्रीप्रसंग, थूककर चाटने के बराबर 🔆 रूपये के अहंकार से ही दुश्चिन्ता और क्रोध होता है 🔆कामिनी-कांचन त्याग की शिक्षा अगर संन्यासी नहीं देगा तो कौन देगा ? 🔆जनक जैसे 'ज्ञानी-गृहस्थ' (राजा +ऋषि=राजर्षि) दो तलवारें चलाते हैं – ज्ञान की और कर्म की 🔆संन्यासी के पास एक ही तलवार है -केवल ज्ञान की 🔆 ‘মা, আমি শুঁটকে সাধু হব না; माँ आमि शूँटके साधु ( dry sadhu) होबो ना !]🔆ब्रह्मानन्द की अनुभूति होने के बाद ब्रह्मज्ञानी -ऋषि शूकरमांस तक खा सकते थे 🔆 ईश्वर के साथ मिलन (Union) के दो सिस्टम है - कर्मयोग (तंत्र) और मनःसंयोग 🔆 चार आश्रम, योगतत्त्व और श्रीरामकृष्ण 🔆 अविद्या माँ के मर जाने और ब्रह्मज्ञान रूपी सन्तान होने की सूतक अवस्था में कर्म समाप्त 🔆महिमाचरण द्वारा उत्तरगीता से स्तवपाठ और ठाकुर की समाधि 🔆नारदपंचरात्र के अनुसार पहले गुरु/नेता की शरण में जाकर हरिभक्ति प्राप्त करो 🔆 श्री काशी जी का चिन्मय-रूप : भाण्ड (microcosm) और ब्रह्माण्ड (macrocosm) 🔆काली की सन्तान श्री रामकृष्ण कहते हैं - नाहं, नाहं – तुम, तुम – चिदानन्द हो । 🔆 साधु सन्तों से ठाकुरदेव का राम-गीता पाठ सुनना 🔆श्री रामकृष्ण की बालकों जैसी जैसी सरलता और सत्यवादिता🔆
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परिच्छेद ~76, [ (24 फरवरी, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] NO Samkhya or the Patanjal , but I can swim.'"🔆ठाकुर के पास इंग्लिशमैन का आना प्रमाणित करता है कि उनको मतिभ्रम नहीं था 🔆 🔆ठाकुर में माँ के आश्रित बच्चे जैसी अधीरता क्यों हैं? मणि मलिक को उपदेश 🔆
जगत्जननी रूपी पिण्ड (microcosm) में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (macrocosm) है ! 🔆 🔆ठाकुर के मन की यात्रा (Tour mind) क्षणमात्र में -अद्वैत (नित्य) से लीला तक 🔆 🔆ठाकुर द्वारा ज़ूलॉजिकल गार्डन की यात्रा और ~Exhibition देखने का प्रस्ताव 🔆 🔆प्रौढ़ अवस्था में यूरोप-अमेरिका घूमने की अपेक्षा ईश्वर -चिन्तन अच्छा 🔆 🔆 भवनदी किस तरह पार की जाती है, यही जानना आवश्यक है🔆 दार्शनिक और नौका-यात्री' वाली लघुकथा। 🔆जो देखता है, ईश्वर ही वस्तु है और सब अवस्तु हैं, वही चतुर है 🔆*“ईश्वर ही मनुष्य बनकर लीला कर रहे हैं – वे ही मणि मल्लिक हुए हैं । 🔆नर-लीला (अवतार-वरिष्ठ) पर विश्वास होने से पूर्ण ज्ञान हो जाता है 🔆🔆सिक्ख लोगों की शिक्षा - तू ही सच्चिदानन्द है ! अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बन्दे,एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौ मंदे ||🔆 कुमारी पूजा क्यों करते हैं ? 🔆यो मे प्रतिबलो लोके, स मे भर्ता भविष्यति।।स्त्रियः समस्ता सकला जगत्सु **(श्री दुर्गा सप्तशती -11 /6)जो इस लोक में मेरे समकक्ष होगा, वही मेरा पति होगा।"--भर्त्ता (पति) = जो भरण करे। 🔆1881 ई.राधाबाजार स्टूडियो में सुरेन्द्र द्वारा ठाकुर का फोटो -राजेन्द्र मित्र के घर जाते समय 🔆🔆माँ सरस्वती के भक्त की अवस्था ही 'विज्ञानी की अवस्था' है 🔆 State of a Vijnani : No Exclusion - Each soul is potentially Divine 🔆विज्ञानी की अवस्था : कोई बहिष्करण नहीं - प्रत्येक आत्मा अव्यक्त ब्रह्म है !🔆
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ॐ परिच्छेद ~77, [ ( ॐ 2, ॐ 9-मार्च, 1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Involution and Evolution. 🔆नरेन्द्र आदि भक्त भी माँ रसेश्वरि (ठाकुरदेव) की लीला के साक्षीगोपाल (onlooker) मात्र हैं ! 🔆
हरि ही सेव्य (गुरु) और हरि सेवक (शिष्य) बने हैं।🔆नेति से इति [निषेध (negation) से हाँ स्वीकरण (affirmation)]🔆 एक बार अखण्ड सच्चिदानन्द तक पहुँचकर फिर वहाँ से उतरकर यह सब देखो 🔆 जगत ईश्वर से भिन्न नहीं है 🔆अनुलोम (involution-enfolding) और विलोम (evolution-unfolding) की प्रक्रिया 🔆 'योगी और माँ काली के भक्त' ~ के बीच अंतर योगी परमात्मा में पहुँचकर वापस नहीं लौटता , भक्त लोकसेवा के लिए लौटता है ! 🔆[XXXX लेकिन माँ काली के भक्त का मार्ग अलग है !! भक्त इन सब को मानते हैं *'भक्त तीन श्रेणी के होते हैं । अधम, मध्यम और उत्तम * 🔆उत्तम भक्त के लिए -'लोटा ब्रह्म , थाली ब्रह्म' 🔆 'face to face' ईश्वरदर्शन होते ही सब संशय दूर हो जाते हैं 🔆 ईश्वरदर्शन होने पर कर्मों का त्याग हो जाता है 🔆 🔆काव्यरस और ईश्वर-दर्शन में भेद 🔆 ठाकुर ने शरीर धारण क्यों किया ?- ठाकुर के मन की साध क्या थी ? 🔆 नरेन्द्र के सुख-दुःख ~देह का सुख-दुःख 🔆काशी में अन्नपूर्ण के यहाँ कोई भूखा नहीं रहता, परन्तु किसी किसी को शाम तक बैठा रहना पड़ता हैं 🔆नरेन्द्र और नास्तिकवाद - ईश्वर का काम और भीष्मदेव 🔆 शुद्ध आत्मा ही एकमात्र अपरिवर्तनीय है -सुमेरुवत 🔆धन रहते हुए कंजूसी करना ठीक नहीं, क्या ठिकाना धन मेरे बाद किसका होगा ? 🔆 "चिदानन्द सिन्धु नीरे प्रेमानन्देर लहरी। 🔆 (ईसा, मूसा ,बुद्ध और गौरांग) श्रीरामकृष्णदेव के शिष्यों की आनन्द मयी मण्डली तथा केशव के शिष्य का अन्तर 🔆 प्रदर्शनी में सोने का पलंग देखने से बड़ा लाभ - राजामहाराजा की चीजें क्षुद्र-असार (trash) हैं! 🔆🔆जादूगर (भगवान) ही सत्य है- ऐश्वर्य दो दिन के लिए है !🔆 साधुसंग का परिणाम - योगी की छवि देखने से भी श्रद्धा जाग्रत होती है🔆🔆 चित्त शुद्ध होने पर योग होता है, इसके लिए निर्जनवास और साधुसंग आवश्यक
🔆 कपटीपन त्याग दो ! (Give up hypocrisy)🔆आध्यात्मिक ज्ञान से सम्पन्न स्त्री यह जानती है कि ईश्वर ही एकमात्र अपना है🔆 गृहस्थ -जीवन में रमें लोगों का ईश्वर-प्रेम क्षणिक है 🔆 गुलाम मानसिकता के भारतीय घर में साधुओं के नहीं बाइबिल से जुड़े चित्र रखते हैं 🔆 🔆विवेक, वैराग्य, गुरु- वाक्य पर विश्वास है तो पाप -पुण्य सब भूल जाता है 🔆🔆श्री रामकृष्ण और ध्यानयोग, शिवयोग, विष्णुयोग - निराकार ध्यान और साकार ध्यान🔆परछाई के सूर्य को पकड़ पकड़ कर वास्तव सूर्य के पास जाया जाता है🔆 [लीला (अवतार) को पकड़ कर नित्य (सच्चिदानन्द) तक पहुँचा जा सकता है🔆विज्ञानी होने के बाद की अवस्था 🔆ज्ञानी साधु और विज्ञानी साधु में अन्तर 🔆ईश्वर -दर्शन के बाद का 'मैं' उबला हुआ धान जैसा🔆 गुरुगिरि करने वाले मैं को त्याग दो - श्री रामकृष्ण और केशव सेन🔆 नरलीला ,अवतार का सिद्धांत🔆 नर ही नारायण है, शालग्राम से भी मनुष्य बड़ा है! मानवमात्र के समक्ष शीश झुकाओ 🔆सनातन धर्म के विषय में श्री रामकृष्ण की भविष्यवाणी🔆
*नित्यलीला योग - पूर्ण ज्ञान अथवा विज्ञान*नर ही नारायण हैं । “प्रतिमा में उनका आविर्भाव होता है और भला मनुष्य में नहीं होगा ?श्रीमुख से उच्चारित - ईश्वरदर्शन के बाद की अवस्था“विद्यारुपिणी स्त्री वास्तव में सहधर्मिणी है ।एक बार अखण्ड सच्चिदानन्द तक पहुँचकर फिर वहाँ से उतरकर जगत को देखो -पाओगे दोनों बिल्कुल (identical) अभिन्न है !
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🔆🔆🔆🔆🔆 परिच्छेद ~78, [ (23 मार्च, 1884*) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] KartaBhaJa: faithful to one man ? 🔆 नरेन्द्र का विवाह ठीक हो रहा है । बहुत धन देने को कहता है 🔆ईश्वर ही डॉक्टर के का रूप धारण किये हैं,मनुष्य सोचने पर विश्वास नहीं होता 🔆 समाचारपत्र में नाम छपवाकर नेता (लोकशिक्षक) नहीं बना जाता 🔆ईश्वर की शक्ति बिना अविद्या पर विजय असम्भव - हनुमान सिंह और मुस्लिम पहलवान🔆 त्यागी हुए बिना लोक-शिक्षक बनना और बनाना सम्भव नहीं🔆 पाण्डित्य नहीं , ईश्वरलाभ ही जीवन का उद्देश्य है- मूर्खों पर भी ईश्वर की समान कृपा है🔆'नरलीला' ~ ईश्वर ही डॉक्टर , नर्स, रोगी बनकर खेल रहे हैं🔆 वैष्णवचरण - फुलुई श्यामबाजार के कर्ताभजा-सम्प्रदाय की बात🔆"हलधारी के पिता " और "मेरे पिता" का आनन्दातिरेक (ecstasy)🔆 भगवान माँ काली के रूप में नाचते हैं और देवीपुत्र आनन्द से ताली बजाता है 🔆कथावाचक ठाकुरदादा और महिमाचरण को उपदेश🔆 शिल्पी -दन्तचिकित्स्क ~ मन्त्र में विश्वास और हरिभक्ति; ज्ञान के दो लक्षण🔆['शं करोति सः शंकरः'- भगवान शंकर विष्णुभक्ति देकर परमकल्याण करते हैं, इसलिए शंकर] 🔆(ज्ञानसिन्धु) शंकर हरि-भक्ति (विष्णु-भक्ति) देंगे 🔆 भवबंधन काटने के लिए आचार्य शकंर से भगवान विष्णु की भक्तिरूपी कटार प्राप्त करो 🔆'अब लौं नसानी, अब न नसैहों ' जैसी जिद्दी हरि -भक्ति से अष्टपाश कट जाते हैं🔆 तीव्र वैराग्य (Intense renunciation ) माया पाश को तुरन्त काट देता है🔆मर्कट-वैराग्य या कायरों (अंगूर खट्टे हैं ) का पलायनवादी वैराग्य 🔆 राजर्षि जनक निर्जन में जाकर विवेकज-ज्ञान लाभ करके गृहस्थी में रहते थे!🔆[निर्जन में जाकर, ज्ञान-लाभ करके ^* : यम-नचिकेता परम्परा में 'आत्मा के रहस्य का ज्ञान' ~ प्राप्त करने के बाद🔆आत्मा का रहस्य नहीं जानने कारण ही मनुष्य कामिनी-कांचन की आसक्ति में फँस जाता है🔆 🔆 मेधानाड़ी ( nerve of memory.) ऊर्ध्वरेता (A man of unbroken and complete continence.), धैर्यरेता (previously have had discharges of semen but who later on have controlled them.) 🔆 ईश्वरलाभ ~ संन्यासी के लिए सख्त नियम 🔆उपमा - कृष्णकिशोर की एकादशी - राजेंद्र मित्रा 🔆अखण्ड सच्चिदानन्द (मार्गदर्शक नेता -ठाकुरदेव) जो हैं वही माँ काली भी हैं🔆 रजोगुण होने से पाण्डित्य प्रदर्शन की इच्छा , सतोगुण से मनुष्य अन्तर्मुख हो जाता है🔆भगवत्प्राप्ति के लिए अभ्यास करने में शीघ्रता करो~ make haste to worship God.🔆केवल पाश्चात्य शिक्षा पद्धति में पढ़नेवाले भ्रष्टाचारी होते हैं 🔆*धैर्यरेता* यम-नियम का पालन किये बिना - मनःसंयोग की धारणा नहीं होती🔆पाशमुक्तः सदा शिवः ।[शिवजी (CINC -नवनीदा ) रामजी (इष्टदेव-अवतारवरिष्ठ) की भक्ति देंगे] My Chosen Ideal is God'नरलीला' ~“मिट्टी की मूर्ति में तो उनकी पूजा होती है और मनुष्यों में नहीं हो सकती ? *ईश्वरलाभ ही जीवन का उद्देश्य है ~धैर्यरेता !“उन्हें पाने ही से काम हो गया ! – संस्कृत न पढ़ी तो क्या हुआ है ?* “मैं हूँ मूर्खोत्तम !" (मूर्ख पुरुषों का सिरमौर) 16 स्त्रियों को एक-एक कर छोड़ने वाला वैराग्य ? आदमी की शक्ति से लोक-शिक्षा नहीं होती । ईश्वर की शक्ति के बिना अविद्या नहीं जीती जा सकती ।*त्यागी हुए बिना लोक-शिक्षा नहीं होती/ ऊर्ध्वरेता, धैर्यरेता और ईश्वरलाभ ~ संन्यासी के लिए सख्त नियम/साधुओं को अगर कोई रुपया-पैसा न देगा तो वे खायेंगे क्या ? [या मति सा गति - सोचोगे मैं धैर्यरता -त्यागी हूँ , तो त्यागी बन जाओगे !]
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ॐ परिच्छेद 79,[(5 अप्रैल 1884), श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Chaitanya is 'Undivided Consciousness'.*🔆'पंचभूतेर फाँदे ब्रह्म पड़े कांदे'🔆अवतार श्रीराम और श्री वाराह के मानवीयगुण >'पंचभूतेर फाँदे ब्रह्म पड़े कांदे' 🔆 अनाहत शब्द क्या है ? तथा पिण्ड और ब्रह्माण्ड में इस ध्वनि का श्रोत कहाँ है ?🔆परलोक (the Life after Death) के सम्बन्ध में श्री केशव सेन का प्रश्न 🔆वेदांत और अहंकार - वेदांत और 'अवस्थात्रय-साक्षी' 🔆 ज्ञान और विज्ञान🔆क्या गृहस्थ को विज्ञान हो सकता है ? साधना चाहिए🔆 स्वदारा सहवास शास्त्र निषिद्ध नहीं - a man may live with his wife.🔆श्री रामकृष्ण और सत्यवादिता (सत्यमेव जयते नानृतं) 🔆'नर-लीला में विश्वास'-ईश्वर ही मनुष्य बनकर घूम रहे हैं 🔆 नररूपी नारायण को देखने और सेवा करने का गुरुगृहवास युवा-प्रशिक्षण शिविर🔆गृहस्थ लोगों के लिए हठात ,एक दम से विषय-कर्म त्याग देना कठिन है🔆विवेक-वैराग्य के बिना पण्डित (शिक्षक) का लेक्चर प्रभावहीन होता है🔆[विवेक-वैराग्य रहित सिंह-शावक अपने को भेंड़ समझकर कर में में करता है !] 🔆 माँ काली के एक ही आधार में दो भाव-'दयामयी ,भयंकरा' क्यों है -वे ही जानती हैं 🔆संयुक्त परिवार में ईश्वर-आराधन (महामण्डल आन्दोलन में भाग लेने) की बहुत सुविधा है !🔆केशवचन्द्र सेन और ‘नवविधान’ । ‘नवविधान (New Dispensation Church) में सार है’🔆वैराग्य (कामिनी-कांचन में लालच का त्याग) के बिना आचार्य /नेता नहीं बन सकते!🔆 'ज्ञान और भक्ति का समन्वय' नवविधान से भी बहुत पहले 'अध्यात्म रामायण' में है🔆 " गेड़े डोबाय दल होय " 🔆बँधी तलैया (जमे हुए पानी) में ही दल* ("hedge" and "sect") होता है🔆 ब्रह्म-समाजी, वैष्णव-पन्थी और शाक्त को साम्प्रदायिक गुटबन्दी पर उपदेश🔆"मैं तुम्हारे दासों का दास, रेणु की रेणु हूँ ।"'I am the servant of your servant, the dust of the dust of your feet.' 🔆सच्चा नेता लोकेषणा (नाम-यश) नहीं चाहता अपने को जनताजनार्दन का सेवक समझता है🔆 महामण्डल घराना के संगीत शिक्षक का महत्व 🔆एक ही अनेक बन गया है - एक राम हजार नाम 🔆पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिताहि परमं तपः 🔆 गुरुदेव (नेता) को साक्षात् अपना ईष्टदेव मानकर पूजा करनी चाहिए🔆चैतन्यदेव और माँ । मनुष्य के ऋण🔆सभी ऋणों से मुक्त कौन है? संन्यासी और कर्तव्य 🔆श्रीयुक्त बूड़ो गोपाल और तीर्थयात्रा - जब ठाकुरदेव शरीर में मौजूद हैं, तब तीर्थ क्यों? 🔆[अधर का निमंत्रण - राम का अहंकार और निर्णायक पंच की भूमिका में श्रीठाकुरदेव🔆
बहूदक संन्यास और कुटीचक संन्यास- 'जैसे उड़ी जहाज को पंछी' 🔆 *जो लोग सन्मार्ग में हैं, वे अपना जूठा किसी को खाने के लिए नहीं देते ।ब्राह्म लोग कहते हैं, परमहंसदेव में Faculty of organisation नहीं है ।आचार्य (C-IN-C) बनने की पूर्वशर्त ~ *कामिनी-कांचन में आसक्ति का त्याग !* श्रीभवतारिणी माता के- भयंकरा मूर्ति हैं और दूसरी ओर भक्तवत्सलता मातृमूर्ति,-एक ही आधार में ये दो भाव क्यों मनुष्य के भीतर जब ईश्वर के दर्शन होंगे, तब पूर्ण ज्ञान होगा ।*क्या गृहस्थ को विज्ञान हो सकता है ? साधना चाहिए*
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🔆 🔆 🔆 🔆 🔆ॐपरिच्छेद- 80 , [( 24 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] 🔆आत्मदर्शन के उपाय 🔆 फलहारिणी काली पूजा का प्रसाद और जात्रा (opera) में विद्यासुन्दर का अभिनय]🔆
गायन-वादन -नृत्य या अन्य कला में में पारंगत हो , तो उसे आत्मदर्शन शीघ्र होगा 🔆आत्मदर्शन (विवेकदर्शन) का अभ्यास के कौशल को मनःसंयोग कहते हैं ! 🔆 गृहस्थी में फँसकर स्वरुप न भूलो! 'सांज सकाले भातार मोरलो कान्दबो कोतो रात !' 🔆 नट (acrobat-कलाबाज ) के गृहस्थ जीवन में सुख ! मानो हो आमड़ा, केवल आँठी चमड़ा ! 🔆[बुढ़ापे में नट का हुलिया मुँह सूखा , पेट मोटा , बाँह पर ताबीज] 🔆विद्यासुन्दर नट के रूप में नारायण ही हैं -उनका ताल, मान, बोल सब एकदम सही 🔆मायावृक्ष का मूल है 'काम प्रवृत्ति (Lust)' , 'कामना (Desires लालसा, वासना )' मानो शाखा -प्रशाखायें हैं🔆 मनःसंयोग की प्रथम शर्त है-वैराग्य और (षडरिपुओं का मुख मोड़ने का) अभ्यास 🔆 चित्त नदी नामो उभयतो वाहिनी 🔆 गृहस्थ को नट (acrobat, कलाबाज) का काम कबतक करना पड़ता है ? 🔆[भ्रातृप्रेम और संयुक्त-परिवार के बलपर भोग त्यागने से योग🔆 लीडरशिप -एक साथ उड़ो और जाल को एक दिशा में खींचो ! 🔆 कलाकारों और बारूदघर के सिपाहियों को उपदेश~अभ्यासयोग- 'मृत्यु की याद करो' 🔆 [उत्तिष्ठत जाग्रत -अभिः, अभिः; 'मृत्युरूपी मूसल' हाथ पर पड़ेगा' परन्तु आत्मा अविनाशी है][वेदान्त-दुन्दुभि का स्पष्ट उद्घोष है--'अभिः,अभिः'! 'डरो नहीं','डरो नहीं'।]🔆आत्मदर्शन या ईश्वरदर्शन का उपाय है -साधुसंग,निर्जनवास , साइन्स नहीं 🔆 संघनेता (गुरु) श्री रामकृष्ण राखाल का जीवनगठन यशोदा के वात्सल्य भाव से करते थे 🔆 कैम्प में आगन्तुक स्पीकर्स , आर्टिस्ट के साथ संघनेता श्रीरामकृष्ण का व्यवहार 🔆 आत्मदर्शन होने पर अहं अपने वश में आ जाता है, बुद्धत्व की प्राप्ति होती है 🔆 सूर्य सिर पर ,अपनी परछाई आधे हाथ के भीतर 🔆 ईश्वर के दर्शन का उपाय ~ साधु-संग (महापुरुषों की संगति) सदैव ही आवश्यक 🔆 ईश्वर 'कल्पतरु' हैं - सकाम प्रार्थना में खतरा, Hear the Holy,पूर्णाहुति मंत्र 🔆 घूँघटवाली भक्त-स्त्रियों को उपदेश-शिवपूजा और देवताओं पर चर्चा करो🔆 'तेल धारवत भक्ति के साथ' प्रतिमापूजा करो ,उनकी कृपा से ईश्वरदर्शन हो सकता है 🔆 मैं स्त्रियों को उपवासी नहीं देख सकता ”सभी स्त्रियाँ मेरी माँ जगदम्बा का एक -एक रूप हैं 🔆 मनुष्य में परमेश्वर की सर्वोच्च अभिव्यक्ति—दिव्य अवतार का रहस्य 🔆 ईश्वर (माँ जगदम्बा) अवतार-वरिष्ठ में अधिक प्रकट हैं ! 🔆 तुमने (अवतार) शरीर धारण किया है, साकार नर-रूपों के साथ आनन्द करो 🔆 केशव चंद्र सेन तथा ब्रह्मसमाज के (शुष्क -ज्ञान) पर श्री रामकृष्ण (भक्ति) का प्रभाव 🔆 साधु के सामने पैर पर पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए; उससे रजोगुण की वृद्धि होती है 🔆 पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित ब्रह्मसमाज में 'हरिनाम और कालीकीर्तन' का प्रवेश 🔆 ॐ 🔆मुल्तान ^* (सूर्य मन्दिर) के साधु ने उपाय बताया था- नारदीय भक्ति 🔆ॐ 🔆कामिनी-कंचन मछली की गंध - साधुसंग फूल की सुगंध - बीचबीच में गुरुगृहवास 🔆पक्के होकर (अवतार वरिष्ठ में नारदीय भक्ति प्राप्त कर) संसार (गृहस्थ जीवन में) में रहो ! 🔆ठाकुदेव का भक्तों को उपदेश - " आगे बढ़ो !" जब तक नवनीदा जैसे नेता न मिलें रुको मत 🔆गृहस्थ भक्त को उपदेश - 'देखो एक कौपीन के वास्ते यतो कष्ट' 🔆 कुछ लोगों को आत्मदर्शन में उतना विलम्ब क्यों होता है ?🔆श्रीरामकृष्ण की विज्ञानि स्थिति-विज्ञानी देखता है कि वे ही यह सब बने हुए हैं 🔆 महाभाव की अवस्था 'लोटा ब्रह्म -थाली ब्रह्म ' के सामने भक्ति फीकी है 🔆
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🔆ॐपरिच्छेद- 81, [ (25 मई ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] 🔆 जन्मोत्सव दिन । श्रीरामकृष्ण
पंचवटी में केदार,विजय , भवनाथ आदि भक्तों के संग 🔆 हमारा विलायत ईश्वर के पास है~ God is our England ! 🔆 Gopal or herd of cows*🔆ऊँचे विचार ~ lofty thoughts ~ अष्टपाश और तीन गुण 🔆कामिनी और कांचन ही माया की आवरण शक्ति है🔆[जिसने स्त्री का सुख छोड़ा उसने संसार का सुख छोड़ा🔆तुम्हारी तो 'नत्थूलाल जैसी' बड़ी-बड़ी मूँछें है , फिरभी तुम माया -मुक्त न हो सके ? 🔆 (তোমাদের তো এত বড় বড় গোঁফ, তবু তোমরা ওইতেই রয়েছ! বল!) 🔆तुम इतने बड़े 'वैरागी ' कैसे बन गए कि तुम्हारी कमाई के दो रूपये भी पॉकेट में नहीं ?🔆 [‘গোলাপীকে ধর, তবে কর্ম হবে।’ গোলাপী বড়বাবুর রাঁড়।”🔆 महिलाओं के प्रति असावधानी मानो कलकत्ता फ़ोर्ट का "ढलान वाला रोड" 🔆[পূর্বকথা — ফোর্টদর্শন — স্ত্রীলোক ও “কলমবাড়া রাস্তা” 🔆काम-प्रवृत्ति (Lust) के नशे में 'Hypnotized' सिंह-शावक अपने को भेंड़ समझता है 🔆 सत् (Real)-असत् (unreal) विवेक के लिए एक-दो दिन गुरुगृहवास आवश्यक 🔆 संयुक्त परिवार में रहने से आध्यात्मिक साधना में सुविधा होती है 🔆 🔆पंचवटी में सहचारी का कीर्तन - अचानक वर्षा और तूफान (rain-storm) 🔆[পঞ্চবটীতে সহচরীর কীর্তন — হঠাৎ মেঘ ও ঝড় 🔆 'कानू कोथाय ? --'कान्हा कहाँ है ? किशोर विवेक-वाहिनी कैसा है ? ' 🔆 सहचरी का गौरांग-संन्यास गीत-'नारी को वासना की नजर से नहीं देखना' 🔆 [বিজয়াদি ভক্তসঙ্গে সংকীর্তনানন্দে — সহচরীর গৌরাঙ্গসন্ন্যাস গান]🔆 श्रीरामकृष्ण की श्रीकृष्ण से बातचीत- अखण्ड सच्चिदानन्द ही जीव-जगत् बने हैं 🔆 [কৃষ্ণ ,সচ্চিদাননদ! — কই তোমার রূপ আজকাল দেখি না!🔆प्रेम में शरीर और जगत खो जाता है - ठाकुर का भक्तों के साथ नृत्य और समाधि 🔆[প্রেমে দেহ ও জগৎ ভুল — ঠাকুরের ভক্তসঙ্গে নৃত্য ও সমাধি 🔆संन्यासी का कठिन व्रत । संन्यासी और लोकशिक्षा 🔆 🔆मारवाड़ी द्वारा धन देने और मथुर के जमीन लिखने का प्रस्ताव 🔆 श्री केशब सेन के द्वारा लोक-शिक्षा देना क्यों सम्भव नहीं हुआ ? 🔆[श्री चैतन्यदेव ने घर क्यों छोड़ा][শ্রীচৈতন্যদেব কেন সংসারত্যাগ করিলেন ][नवनीदा ने घर क्यों छोड़ा ?]*चैतन्यदेव ( 1486 -1534 )
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परिच्छेद -82, [ (15 जून ,1884)श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Om Tat Sat/Right to Preach ds/Ag 🔆घोर विषयासक्त लोगों को घर में बुलाकर भोजन नहीं कराना चाहिये 🔆 केशव चन्द्र सेन के जीवन का उद्देश्य गृहस्थों को आध्यात्मिकता से परिचित कराना था?🔆 गुरुगिरि का अहंकार- "मैं नेता/गुरु हूं" रखने वालों की हम्मा -हम्मा बैल जैसी दुर्गति🔆कर्तापन का अहंकार कैसे दूर होता है ? और अहंकार- राहित्य के लक्षण क्या हैं ? 🔆ईश्वरदर्शन के बाद का अहंकार अनिष्टकारक नहीं होता 🔆 पाश्चात्य सभ्यता (रजोगुणी संस्कृति) में 'कांचन' की ही पूजा होती है🔆 पाश्चात्य सभ्यता में में कर्म पर जोर - किन्तु कर्म तो भक्ति का आदिकाण्ड है🔆बिलकुल अनासक्त होना केवल उसके लिए ही सम्भव है जिसे ईश्वर के दर्शन हो चुके हैं 🔆 जिस अनुपात में भक्ति बढ़ती है, उसी अनुपात में कर्म घटते हैं-हे ईश्वर मेरे कर्म घटा दो ! 🔆[सार उपदेश ~ abstract sermon] परीक्षित सत्य (tested truth): विवेक-दर्शन (मनःसंयोग) का परिणाम- जगतजननी माँ काली और उनकी सन्तानों के प्रति भक्ति की प्राप्ति 🔆 'Be and Make जीवन का उद्देश्य नहीं , ईश्वरलाभ (भारत-कल्याण) का उपाय है 🔆 कर्म तो आदिकाण्ड (preliminary step in spiritual life) है चित्त-शुद्धि का उपाय है🔆एकमात्र ईश्वर वस्तु (real) है, और सब अवस्तु (unreal), ईश्वरलाभ ही जीवन का उद्देश्य है🔆🔆उठो, जागो ~ आगे बढ़ो; लक्ष्य तक पहुंचे बिना रुको मत !🔆[Arise , Awake - go Onwards ; and stop not till the goal is reached ! [कहानी :- ब्रह्मचारी ने लकड़हारे (wood-cutter) को आगे बढ़ने के लिए क्यों कहा ?]['ओ हे , एगिए पोड़ो' <>ওহে, এগিয়ে পড়ো]['सुनो जी, आगे बढ़ो' <>'My good man, go forward.'🔆अच्छी गुणवत्ता के शंख (conch shell) जोर से बजते हैं 🔆 🔆ब्रह्म समाज और श्री रामकृष्ण - प्रताप को उपदेश 🔆'मैं कर्ता, मेरा घर' अज्ञान । जीवन का उद्देश्य 'डुबकी लगाना' 🔆 तारा -निकेतन में ठाकुर आगमन के अवसर पर- 'वेंकट महाराज' (स्वामी आत्मविदानन्द) 🔆 माया ईश्वर से विमुख करती है और दया (करुणा -compassion) से ईश्वर की प्राप्ति होती है 🔆 ठाकुर स्थापना के अवसर प्रवचन : वेंकट महाराज (स्वामी आत्मविदानन्द) 🔆*प्रताप को उपदेश - ब्राह्म समाज और कामिनी-कांचन**ईश्वर उसी वंश में अवतार लेते हैं जहाँ सरलता पायी जाती है । संसार (वैवाहिक जीवन) में रहो, इसमें दोष नहीं; परन्तु मन ईश्वर पर रखो । वन देखकर उन्होंने उसे वृन्दावन सोचा था और समुद्र देखकर यमुना/ इसी का नाम है-दिव्य प्रेम (divine love), 🔆यह न सोचना की ज्यादा ईश्वर ईश्वर करने से आदमी पागल हो जाता है ।सच्चिदानन्द-समुद्र डुबकी लगाने से मृत्यु नहीं होती आदमी अमर हो जाता है ! 🔆मैं और मेरा, इसे अज्ञान कहते हैं । 'मैने किया' यह अज्ञान से होता है । 'हे ईश्वर तुम्हीं ने ऐसा किया', यही ज्ञान है । 🔆 ईश्वर ही कर्ता हैं, और सब अकर्ता ।लोग कहते हैं , 'रासमणि ने कालीमन्दिर की प्रतिष्ठा की', कहना चाहिए ईश्वर की प्रेरणा से हुआ। 🔆अमुक व्यक्ति ने 'ब्राह्म समाज' की स्थापना नहीं की थी , ईश्वर की इच्छा से यह हुआ था। यह स्त्री, पुत्र, परिवार, कुछ भी मेरा नहीं । सब तुम्हारी चीज़े हैं; इसी का नाम ज्ञान है। 🔆कोरोना-काल में- संसार की घटनाओं के पीछे एक कोई महान् शक्ति है, यह बात बहुतों को माननी पड़ी है* 🔆केशव के स्वर्गलाभ के पश्चात् मन्दिर की वेदी (व्यासपीठ पर बैठने का अधिकारी) को लेकर विवाद* ।
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🔆 🔆 🔆 🔆 🔆परिच्छेद- 83, [ (20 जून ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Sumbha and Nisumbha*🔆लोक-शिक्षण के लिए रामकृष्ण के त्यागी शिष्यों की जीवनी का अध्यन करना आवश्यक है 🔆 गृहस्थ जीवन में संसार के कर्तव्य भी करो और आध्यात्मिक साधना भी 🔆मनुष्य अपनी जन्मजात-प्रवृत्तियों के अनुसार प्रवृत्ति या निवृत्ति मार्ग पर चलने को बाध्य है 🔆 [महामण्डल के सदस्यों को दो बातें जाननी हैं -नवनीदा कौन हैं ? उनके साथ मेरा सम्बन्ध क्या है ?]🔆दो श्रेणी के भक्त -'मुक्ति' चाहने वाले और 'भक्ति' चाहने वाले !🔆 नरेंद्र, राखाल, निरंजन का 'बेटा छेलेर भाव' और बाबूराम, भवनाथ का प्रकृति भाव🔆 हाथ तोड़ने का राज है -अहंकार निर्मूलन 🔆 सिद्धाई (Miracles) और श्री रामकृष्ण 🔆साकार निराकार दोनों ही सत्य हैं ~ भक्त का घर (ह्रदय) ठाकुर का अड्डा 🔆 भक्तों के संग लीला पर्यन्त जादूगर (चण्डी) का खेल है, माँ काली की कृपा है 🔆 कालीब्रह्म - थोड़ा भी अहं रहने तक , आद्याशक्ति का क्षेत्र - कल्कि अवतार 🔆केशव सेन की माँ और बहन - धाई भुवनमोहिनी 🔆सप्त्काण्डात्मक नाम-रामयण ^* Nama Ramayanam
साभार -http://satyamparamdheemahi.blogspot.com/2016/04/nama-ramayanam.htmlदया मनुष्य की नहीं, दया ईश्वर की है ।🔆 आद्याशक्ति जब ब्रह्मज्ञान देगी तब ब्रह्मज्ञान होगा - तभी तमाशा देखा जाता है, नहीं तो नहीं।आद्याशक्ति की सहायता से ही अवतारलीला होती है ।विद्या के 'मैं' के भीतर ही दया है । विद्या का 'मैं' वे ही हुए हैं ।निराकार के बाद साकार ।चिड़िया ऊपर उड़ती हुई जब थक जाती है, तब फिर डाल पर आकर विश्राम करती है ।बाजीगर ही नित्य है और उसका खेल अनित्य – स्वप्नवत् ।जब तक अपना 'मैं' रहता है, तब तक वे भी रहते हैं ।ज्ञानरूपी खड्ग के द्वारा उन्हें काट डालने पर फिर कुछ नहीं रह जाता । तब अपना 'मैं' भी बाजीगर का तमाशा हो जाता है ।/अहेतुकी भक्ति सब से अच्छी/ निष्काम भक्ति -अभी 'यह' भी करो और 'वह' भी करो /तू लोक-शिक्षण के लिए पढ़/ मूर्खों को शिक्षा देने के लिए तुम राज्य करो/पान-तम्बाकू के छोड़ने से क्या होगा ? कामिनी और कांचन का त्याग ही त्याग है । संसार के कर्तव्य भी करो और आध्यात्मिक साधना भी ।अन्तरंग भक्त -(श्रीरामकृष्ण -नेता CINC ) कौन हूँ, दूसरी यह कि वे कौन हैं - मुझसे उनका क्या सम्बन्ध है । दो बातें जानने से ही उनकी बन जाती है।एक बार भावावस्था में दाँत टूट गया था । अबकी बार भावावस्था में हाथ टूट गया ।"हाथ टूटा सब अहंकार निर्मूल करने के लिए । अब भीतर 'मैं' कहीं खोजने पर भी नहीं मिलता ।[हाथ टूटने का अर्थ - अष्टसिद्धों का चमत्कार और श्री रामकृष्ण] जो हीनबुद्धि हैं वे ही विभूतियाँ चाहते हैं ।
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परिच्छेद- 84,[ (25 जून ,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत]Head and tail of fish* 🔆 जीवन का उद्देश्य ईश्वर-भक्ति लाभ है, तो फिर नरेन्द्र को नौकरी क्यों तलाश करनी पड़ी ?🔆खाली पेट धर्म (भक्ति-योग) नहीं होता - अन्नचिन्ता चमत्कारा🔆युवाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न- “आपनी की सार मोने कोरेछो ? ”🔆[चरित्रवान 'मनुष्य ' बनना या 'कैरियर' में से किसे तुम सबसे जरूरी चीज समझते हो ?জীবনের সবচেয়ে প্রয়োজনীয় জিনিস সম্পর্কে আপনার ধারণা কি?What is your idea about the most essential thing in life?] 🔆मनुष्य योनि में जन्म ईश्वर से (अवतार वरिष्ठ से) भक्ति- प्रेम करने के लिए हुआ है।🔆 ईशान का परिवार विद्या का परिवार (धार्मिक परिवार) साधारण गृहस्थों के लिए आदर्श 🔆[एक धार्मिक परिवार, जिसमें सभी सदस्य भगवान (अवतार वरिष्ठ) के प्रति समर्पित हों ! ][A religious family :- in which all the members are devoted to God ] [माँ अविलम्ब मेरे मन का मोड़ घुमा दो :उसे कामिनी -कांचन से खींचकर ठाकुर के ओर कर दो !] 'O Mother, turn my mind at once from the world to God.'}🔆संसारी गृहस्थ (वीरभाव) से सद्गृहस्थ (सन्तान भाव) बनना बड़ा कठिन है !🔆बड़ा कठिन ^*शनिवार, 26 अक्तूबर 2019 का ब्लॉग 'निवृत्तिस्तु महाफला' :श्री शंकराचार्य के पूर्व ही प्रचलित हुए वैदिक धर्म के अनुसार दो मार्ग हैं। 🔆कलि काल में - कर्मयोग नहीं भक्तियोग🔆आधुनिक समय में भक्ति (fever mixture) ही फलदायी है - भक्ति के कर्मकाण्डीय अनुष्ठानों में से ^ अनावश्यक (non-essential) बातों को छाँट दो : संकेत मछली के सिर और पूंछ के लिए है, जो मछली खाने के लिए गैर-जरूरी हैं।] [ আজকাল ফিবার মিক্শ্চার- তো নেজামুড়া বাদ দিয়ে বলবে।] 🔆Efficacy of bhakti for modern times — Futility of lecturing🔆विषयी लोग और व्याख्यान/ ऑनलाइन स्टडी सर्कल' से लाभ नहीं होता 🔆 [বিষয়ী লোক ও লেকচার = 'Online Study Circle' ]🔆आँधी के पहले झोंका में आम (भक्त) -इमली (विषयी) विवेक सम्भव नहीं 🔆[নবানুরাগ ও বিচার ~ New passion and conscience]
🔆आत्मसाक्षात्कार के बाद कर्मत्याग - योग और समाधि🔆 ঈশ্বরলাভ হলে কর্মত্যাগ — যোগ ও সমাধি 🔆भक्ति फल हैं, कर्म फूल, कर्म तो आदिकाण्ड है !🔆वैराग्य के बिना , केवल पाण्डित्य व्यर्थ है । साधना तथा विवेक-वैराग्य🔆वैराग्य के बिना लोकशिक्षक/नेता नहीं बना जा सकता 🔆 🔆बिना माँ (गुरु, C-IN-C) से चपरास प्राप्त किये कोई आचार्य (नेता) नहीं बन सकता🔆[আদেশ না পেলে আচার্য হওয়া যায় না ]🔆चपरास प्राप्त नेता को स्थायी विशेष आमंत्रित (online Whatsapp Group) बनाना नहीं पड़ता🔆 जिसने आदेश नहीं पाया वो नेता लेक्चर देगा -भाई रे ,पहले मैं Bh -दारू पीता था🔆 🔆मानवजाति के मार्गदर्शक नेता से चपरास कैसे प्राप्त किया जाता है🔆[কিরূপে আদেশ পাওয়া যায় ]🔆नरेन्द्र को भावी नेता बनने और बनाने का प्रशिक्षण - ईश्वर अमृत के समुद्र हैं !🔆[নরেন্দ্রকে শিক্ষা ("Be and Make -Leadership Training) — ঈশ্বর অমৃতের সাগর ]🔆ईश्वर-लाभ के अनन्त मार्ग : अवतार नेता की भक्ति ही युगधर्म है🔆🔆आत्मसाक्षात्कार हुए बिना कोई अनासक्त नहीं हो सकता🔆 देहबुद्धि के गये बिना ज्ञान होने का नहीं 🔆भक्तवत्सल (अवतार वरिष्ठ) यदि चाहें तो अपने भक्त को ज्ञान भी दे सकते हैं🔆 [জ্ঞানযোগ বা কর্মযোগ যুগধর্ম নহে ][ज्ञानयोग या कर्मयोग ~ वर्तमानसमय का युगधर्म नहीं है]🔆क्या भक्त को भी ब्रह्मज्ञान होता है? भक्त किस प्रकार कर्म और प्रार्थना करता है ?🔆[ভক্তের কি ব্রহ্মজ্ঞান হয়? ভক্ত কিরূপ কর্ম ও কি প্রার্থনা করে ]🔆भावसमाधि में माँ के रूपों का दर्शन और निर्विकल्प समाधि में अखण्ड सच्चिदानन्द दर्शन🔆हाजरा की हृषिकेश तक ऊँची तीर्थयात्रा ,कामारपुकुर तीर्थ -उद्देश्य श्रीरामकृष्ण भक्ति🔆भगवान श्रीरामकृष्ण को पाने की व्याकुलता ठीक समय आने पर होगी🔆 [बर्तन देखकर उपदेश, निवृत्ति-प्रवृत्ति का अधिकारी समझकर उपदेश - क्या भगवान दयालु हैं? ]🔆आचार्यों की तीन श्रेणियाँ🔆[পাত্রাপাত্র দেখে উপদেশ — ঈশ্বর কি দয়াময়? ]🔆जो माँ काली की इच्छा से शिक्षित बेरोजगार हैं वे ईश्वर को दयामय कैसे कहें ?🔆🔆श्री रामकृष्ण की भक्ति शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि का अर्धचंद्र के समान है 🔆[crescent moon of the second day of the bright fortnight.][अलविदा -বিদায়-Goodbye]🔆 गुरुगिरि करने वाला नेता सोचता है कि वह 'दूसरों को' (M/F को ) प्रबुद्ध कर रहा है।🔆‘Hey firefly -O glow-worm, हे जोनाकि पोका (जुगनू) तुमि आबार आलो कि देबे ? 🔆[হে জোনাকি পোকা, তুমি আবার আলো কি দেবে!]ॐ 🔆घर-गृहस्थी में रहते हुए ब्रह्मज्ञान पाने वाले पतिव्रता रमणी और धर्मव्याध 🔆ॐ 🔆गृहस्थ जीवन में किस तरह रहना चाहिए ?🔆घर-गृहस्थी में किस प्रकार रहना चाहिए* घर-गृहस्थी में रहकर जो उन्हें पुकारता है, वह वीर भक्त है ।“गोलमाल में 'माल' (सत्य) है, 'गोल' (make-believe-मिथ्या) निकालकर 'माल' (सत्य) ले लेना ।”[मानवजाति के मार्गदर्शक नेता 'C-IN-C' से चपरास कैसे प्राप्त किया जाता है ] [नरेन्द्र को भावी नेता बनने और बनाने का प्रशिक्षण - ईश्वर अमृत के समुद्र हैं !]जब पेट भूखा हो तब काव्य, गीत, नारी, कुछ भी अच्छा नहीं लगता अन्नचिन्ता चमत्कारा !-आप किस वस्तु को जीवन में सबसे जरूरी चीज समझते हैं ?(मनुष्य का जन्म ईश्वर से भक्ति- प्रेम करने के लिए हुआ है। सब का मन ईश्वर पर - विद्या का संसार - ऐसा अक्सर नहीं दीख पड़ता । ऐसे दो ही चार घर देखे ।"फल के होने पर ही फूल गिर जाता है; भक्ति फल हैं, कर्म फूल ।ज्ञानियों के कर्म छूट जाते हैं/ (चरित्रवान मनुष्य बने बिना) लेक्चर से कोई उपकार नहीं होता।[ज्ञानयोग या कर्मयोग ~ वर्तमानसमय का युगधर्म नहीं है][क्या भक्त को भी ब्रह्मज्ञान होता है? भक्त किस प्रकार कर्म और प्रार्थना करता है ?"भक्त कहता है, 'माँ, सकाम कर्मों से मुझे बड़ा भय लगता है । जब तक तुम्हें न पाऊँ तब तक किसी नये कर्म में न फँसू ।जब तुम स्वयं कोई आज्ञा दोगी तब काम करूंगा, अन्यथा नहीं ।’बर्तन देखकर उपदेश,]आज मेरा बड़ा अच्छा दिन था । मैंने दूज का चाँद देखा ।कभी तो भगवान चुम्बक हैं और भक्त सुई - और कभी भक्त चुम्बक और भगवान सुई,
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The Mother of many universes ][माँ काली असंख्य ब्रह्माण्डों की जननी हैं, उनके अनन्त ऐश्वर्य के ज्ञान से हमें क्या जरूरत है ?]🔆 ईश्वर (माँ काली) कल्पतरु हैं । उनके पास (दक्षिणेश्वर) पहुँचकर माँगना चाहिए 🔆[ঈশ্বর কল্পতরু। তাঁর কাছে থেকে চাইতে হয়।][God is the Kalpataru (the Wish-fulfilling Tree).. One should pray standing near It.] 🔆जीवन का उद्देश्य ईश्वर को देखना है - उसका मार्ग चाहे जो भी हो ! 🔆[ঈশ্বরদর্শন জীবনের উদ্দেশ্য — তাহার উপায়][ऐश्वर्य और माधुर्य - कोई कोई ऐश्वर्यज्ञान नहीं चाहता][ঐশ্বর্য ও মাধুর্য — কেহ কেহ ঐশ্বর্যজ্ঞান চায় না ]🔆C-IN-C से घनिष्ट परिचय रहने कारण उनके अधिकारी भी नरेन्द्र का सम्मान करते थे 🔆[আবার বাবুর সঙ্গে আলাপ হলে আমলারাও মানে।] [If acquainted with the (C-IN-C) then one is respected by his officers too. ]🔆भक्ति का मार्ग सीधा है ,ज्ञानयोग बहुत कठिन है - अवतार नित्यसिद्ध हैं 🔆[জ্ঞানযোগ বড় কঠিন — অবতারাদি নিত্যসিদ্ধ ]🔆 रामगीता के अनुसार लक्षणों देखकर अवतार-वरिष्ठ को स्वयं पहचानना होता है 🔆 [ব্রহ্ম কি মুখে বলা যায় না। রামগীতায় আছে, কেবল তটস্থ লক্ষণে তাঁকে বলা যায়] (Brahman has only been indirectly hinted (approaching signs) at by the scriptures. 🔆नित्यसिद्ध ईश्वर (ब्रह्ममयी -the Blissful Mother) को पा लेने पर साधना करते हैं । 🔆🔆धनुर्विद्या का प्रशिक्षण-साकार से निराकार पर जाओ 🔆🔆भक्तों के लिए ही अवतार हैं , ज्ञानियों के लिए नहीं, वे सोऽहं ' 'I am He'जो बने हैं !"🔆 🔆साधना किये बिना शास्त्र पढ़ने का दोष है कि वह तर्क और विचार में डाल देता है 🔆[The harmful effect of the study of the scriptures-it encourages reasoning and arguing.]🔆तोतापुरी का उपदेश - शास्त्रों के सार को समझकर उसे पूरा करने में लग जाओ ! 🔆[जैसे गीता का सार है - त्यागी बनो ! (कामिनी-कांचन में आसक्ति का त्याग)-व्याकुल होओ ] [পূর্বকথা — তোতাপুরীর উপদেশ — গীতার অর্থ — ব্যাকুল হও ]🔆चैतन्य देव के भीतर ब्रह्मज्ञान और भक्ति-प्रेम, दोनों थे । 🔆[ চৈতন্যদেবের ভিতর ব্রহ্মজ্ঞান, ভক্তিপ্রেম, দুইই ছিল।” [चैतन्य देव के भीतर ज्ञानसूर्य के प्रकाश के साथ भक्तिचन्द्र की ठण्डी किरणें भी थीं ! ]🔆ज्ञानयोग नहीं भक्ति योग - कलियुग का धर्म है नारदीय भक्ति 🔆[জ্ঞানযোগ ভক্তিযোগ — কলিতে নারদীয় ভক্তি ]"तुमि नेजा-मूड़ा बाद दिये बोलबे हे ! "🔆कालीब्रह्म - ब्रह्म शक्ति अभेद 🔆[ वीरभाव -क्यों री (श्याली), मेरा परलोक बरबाद करने चली है ? अभी तुझे काट डालूँगा ।🔆जबरन धर्मान्तरण न हो , इसीलिए साकार पूजन की व्यवस्था की गयी है 🔆[सभी आदमी ब्रह्मज्ञान के अधिकारी नहीं होते ।][সকলে ব্রহ্মজ্ঞানের অধীকারী নয়, তাই আবার তিনি সাকারপূজার ব্যবস্থা করেছেন।] [By no means all are fit for the Knowledge of Brahman. Therefore the worship of God with form has been provided.]]🔆पहले ब्रह्म के मूर्त रूप ' चिन्मयी ब्रह्ममयी' पर मन को एकाग्र करो 🔆🔆ईश्वरलाभ और कर्मत्याग ~ नयी हण्डी~ गृहस्थभक्त और भ्रष्ट स्त्री 🔆[ঈশ্বরলাভ ও কর্মত্যাগ — নূতন হাঁড়ি — গৃহীভক্ত ও নষ্টা স্ত্রী ]🔆'तुम्हारा घोड़ा जितना खींच सके, उससे अधिक लोगों को न बैठाना ।' 🔆🔆श्राद्ध का अन्न खाने से भक्ति चली जाती है 🔆विज्ञानी - (भक्त या 'नेता') कौन है ? जो ईश्वरदर्शन कर उनके आदेश को पाने के बाद शिक्षा देता है। विज्ञानी , भक्त या चपरास प्राप्त नेता आँखें खोलकर भी ईश्वर के दर्शन करता है । नित्य से लीला में आ जाता है और कभी लीला से नित्य में चला जाता है ।
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परिच्छेद- 86 [(3 जुलाई, 1884 ) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Brahman is self-willed (इच्छामय)*
भक्ति एकमात्र सार वस्तु है । * Attachment to 'woman and gold' > man small-minded.*श्रीरामकृष्ण का समन्वयवादी दृष्टिकोण*श्री दरियाव साहेब **श्री रामकृष्ण की वह परमहंस अवस्था- जहाँ कर्मत्याग स्वतः हो जाता है।* * अवतार -वरिष्ठ के चरणों में भक्ति ही एकमात्र सार वस्तु**कालीरूप-कल्पना ब्रह्म स्वयं करते हैं ?* *ज्ञान के दो लक्षण - स्वभाव शान्त हो, अहंकार न रहे । ** ज्ञानी और विज्ञानी का अन्तर * पूर्णज्ञानी पागल से मुलाकात* साधना की आवश्यकता*बलराम के पिता को सर्वधर्म -समन्वय की शिक्षा, भक्तमाल और श्रीमद्भागवत का प्रसंग] [मथुर बाबू के सामने पण्डित वैष्ण्वचरण द्वारा शाक्त मत की निंदा करने की घटना ] [ वैष्णव-मतावलम्बी ताँति लोगों का अहंकार - समन्वय की शिक्षा] *भजनानन्द -विषयानन्द -ब्रह्मानन्द*
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🔆🙏🔆🙏$$$~परिच्छेद ~ 87, [(3 अगस्त, 1884)श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Yoga and The Six centres🔆🙏कुण्डलिनी और षट्चक्र-भेद🔆🙏🔆षट्चक्र क्या है ?🔆मनःसंयोग का विधिवत प्रशिक्षण द्वारा गुरुदेव की कृपा से कुण्डलिनी शक्ति जागती है🔆 वेदमतानुसार सहस्रार के साथ षट्चक्र को मिलाकर सप्तभूमि कहा जाता है🔆 जब मन पाँचवी भूमि कण्ठ (विशुद्धचक्र) में पहुँचता है -ईश्वरीय प्रसंग सुनने की व्याकुलता🔆 छठी भूमि -आज्ञाचक्र दोनों भौंहों के बीच स्थित होता है यह दो पंखुड़ियों वाला कमल है।🔆सप्तम भूमि सहस्रार - तंत्र के अनुसार यह हजार पंखुड़ियों वाले कमल का स्थान है🔆 केवल नेता या ईश्वरकोटि ही समाधि से व्युत्थान की अवस्था में लौट सकते हैं🔆 नेता को पुनः शरीर में लौटना पड़ता है, ताकि वे जहाज के सामान दूसरों को पार ले जा सकें🔆आप्तसारा श्रेणी के निराकारवादी परमहंस केवल अपनी मुक्ति की चिन्ता करते हैं ।🔆साकारवादी परमहंस ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी मनुष्य रूपी ईश्वर से प्रेम बनाये रखते हैं🔆वृन्दावन की गोपियाँ सत्यार्थी नहीं कृष्ण की भक्त थीं 🔆 श्रीरामकृष्ण की समाधि , जगतजननी के साथ बातचीत - प्रेमतत्त्व🔆चरित्रवान 'मनुष्य' बनने में विवेक और वैराग्य का महत्व🔆 मर्कटवैराग्य और राजर्षि जनक का सच्चा वैराग्य 🔆 आध्यात्मिक ज्ञान में बाधक तो कामिनी और कांचन की आसक्ति ही है🔆प्रेम तो केवल ईश्वरकोटि को - जैसे अवतारों (नवनीदा जैसे नेता) को होता है !🔆शरीर की सबसे गहराई - चौथे भूमि (ह्रदय) में प्रेम (आत्मा) रहता है ! 🔆 ईश्वर (काली अवतार वरिष्ठ) के प्रति अनन्य प्रेम ही वस्तु है बाकि सब मिथ्या🔆{हरे आम और पके आम का फर्क -“শুদ্ধাভক্তিই সার, আর সব মিথ্যা!} 🔆श्रद्धा -भक्ति (प्रेम) के लिये साधुसंग (जीवनमुक्तC-IN-Cनवनीदा का संग) करना अनिवार्य 🔆🙏सांसारिक व्यक्ति का ज्ञान, भक्त का ज्ञान और अवतार (जीवनमुक्त नेता) के ज्ञान में अन्तर🙏 🔆🙏अवतारों के उपदेश को सुनना आवश्यक, लेकिन फल समय-सापेक्ष * है🔆🙏 अवतार आदि को सहजावस्था में भी अपने अवतार होने का बोध बना रहता है 🔆🙏🔆झाउतला और पंचवटी में अवतार वरिष्ठ श्री रामकृष्ण के सुंदर रूप का दर्शन🔆🔆सब मनुष्य-रूप ईश्वर ने स्वयं धारण किये हैं, गृहस्थ लाल धोती- हर देश में तूँ हर भेष में तूँ ! 🔆🔆🙏देह (Matter) धारण करके शक्ति (Energy-माँ) मानना अनिवार्य🔆🙏 🔆एक वैष्णव मत में ईश्वर को सहज कहते हैं । श्री रामकृष्ण की सहज अवस्था🔆 🔆🙏श्री रामकृष्ण और अभिमान तथा माँ का पिउन होने अहंकार। "मैं यंत्र हूं वे यंत्री हैं"🔆🙏🔆🙏 ईश्वर अनन्त हैं और ईश्वर तक पहूँचने के मार्ग भी अनन्त हैं ।🔆🙏🔆🙏तुम अशोक-वाटिका में आये हो तो हनुमान- दृष्टिकोण का पालन बुद्धिमानी है🔆🙏🔆🙏वैराग्य का अर्थ । गृहस्थ भक्त के लिए संचय या यादृच्छिक लाभ? 🔆🙏🔆कथकता या नाट्यगीति में प्रह्लाद-चरित्र, श्रीकृष्ण की जन्मकथा आदि का वर्णन 🔆🔆ठाकुर का प्रश्न - क्या छाया-वृक्ष" ("पत्नी") के पास बैठना आनन्दकारी है?🔆🔆आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध पिता बच्चे के संस्कार अनुरूप प्रवृत्ति- निवृत्ति का प्रबंध🔆 🔆चिटगाँव (पूबंगलादेश) सीताकुण्ड के पानी में जिह्वा जैसी अग्नि की शिखाएँ उठती रहती हैं🔆🔆🙏सम्भ्रान्त मनुष्य का आचरण (*राखाल और एम. दोनों विवाहित थे।) *नित्य-लीला योग : श्यामा माँ कि कल करेछे, काली माँ कि कल करेछे। *'मनुष्य' बनने में विवेकअभ्यास और वैराग्य का महत्व * *श्रद्धा भक्ति के लिये सत्संग करना अनिवार्य* गृहस्थ होकर लाल धोती *[श्री रामकृष्ण और अभिमान तथा माँ का पिउन होने अहंकार। "मैं यंत्र हूं वे यंत्री हैं"श्रीकृष्ण चिदात्मा हैं और श्रीराधा चित्शक्ति या श्रीकृष्ण ही काली भी हैं ?वैराग्य का अर्थ । भक्त के लिए संचय या यादृच्छिक लाभ?
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परिच्छेद ~ 88, [(6सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Sweet is Thy name -दीनशरण हे !
*दीनशरण हे ! --O Refuge of the humble! *ठाकुर अन्तर्यामी हैं -जाति नहिं चरित्र देखते हैं *जाबे कि हे दिन आमार विफले चलिये,आछि नाथ, दिवानिशि आशापथ निरखिये। *श्रीगौरांग सुन्दर नव नटवर तप्तकांचनकाय' सुनते ही ठाकुर की मुहूर्मुहु समाधि और नृत्य *शास्त्र-निषिद्ध कर्म नहीं करना *श्री रामकृष्ण के भक्तों में जातिभेद नहीं होता *गुरु-शिष्य व्यवहार
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$$$$ परिच्छेद ~ 89,[(7 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] Kartabhaja of Ghosh Para
*नौकरी की निन्दा* माँ, यहीं से मन को मोड़ दो ! महिमाचरण ~*प्रवृत्ति से निवृत्ति ही बेहतर * ( महामण्डल के संस्थापक सचिव श्री नवनीदा का जन्म इन्हीं के घर, 100 न ० काशीपुर रोड में हुआ था। "बाउल लोग मूर्तिपूजा नहीं करते – जीता-जागता आदमी चाहते हैं । वे लोग सिद्धावस्था को सहज अवस्था कहते हैं । सहज अवस्था के दो लक्षण - (1) " कृष्ण की गन्ध भी न रहेगी " (2) "पद्म पर भौंरा बैठेगा, परन्तु मधुपान न करेगा-जितेन्द्रियता "इसीलिए 'कर्ताभजा' ~ अर्थात् गुरु नेता (C-IN-C) को ईश्वर समझते और इसी भाव से उनकी पूजा करते हैं ।""*बाउल-साधना , the task of "refining the syrup" का अन्त कब होता है* 'भोजन-मंत्र ' ~ स्वयं खाते हो या किसी को खिलाते हो *कामारपुकुर की ' बाउल साधिका-'सरी' के घर ढेरों तुलसी के पौधे लगे थे और दादा के घर के तालाब में दो लाख तुलसी के पौधे उनके प्रमातामही ने लगवाये थे ?*असंख्य मत हैं और असंख्य पथ हैं।* अच्छा, मैं किस मार्ग का हूँ ?* ज्वार-भाटा क्यों होते हैं ? * एक बात देखो, समुद्र के पास ही नदियों में ज्वार-भाटा होते हैं । परन्तु समुद्र से बहुत दूर होने पर उसी नदी में ज्वार-भाटा नहीं होता, बल्कि एक ही ओर बहाव रहता है । इसका क्या अर्थ?* ~किसी किसी को ईश्वरकोटि को महाभाव, प्रेम, यह सब होता है*"मन ! आदरणीया श्यामा माँ को यत्नपूर्वक हृदय में रखना । तू देख और मैं देखूँ, कोई दूसरा उन्हें न देखने पाये ।”*महानिर्वाण तन्त्र (Mahanirvana Tantra ) *जो बिल्कुल निःस्वार्थी है उसका सारा भार ईश्वर लेते हैं - 'अनन्याश्चिन्तयन्तो'*
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$$, परिच्छेद ~ 90, [(14 सितंबर,1884) श्रीरामकृष्ण वचनामृत] Pay carriage hire of a Guru /Leader🔆संसारधोखे की टट्टी है या 'आनन्द की हवेली ' (mansion of mirth) 🔆🔆🙏निर्लिप्त गृहस्थ - ठाकुर की जन्मस्थली कामारपुकुर की बढ़ई- कन्या का कार्यदर्शन🔆🙏🔆🙏नेता (विज्ञानी) नित्य से लीला में आता है और पुनः लीला से नित्य में भी उठ सकता है🔆🙏🔆🙏प्रेम सच्चिदानन्द को पकड़ने की रस्सी है ।🔆🙏🔆🙏श्री रामकृष्ण की भाव-समाधि और नरेंद्र के गीत 🔆🙏🔆🙏नरेन्द्र ही निवृत्ति मार्ग के सप्त ऋषियों में से एक नारायण ऋषि थे🔆🙏🔆🙏विज्ञानी नेता माँ जगदम्बा की कृपा से प्रतिकूलता को भी अवसर में बदल सकता है🔆🙏 [ठाकुर CIC ने स्वयं उसे अपने बगल वाली कुर्सी पर बिठाया था !][Thakur CIC himself had seated him in the chair next to him!]🔆🙏* ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य (CINC की शिक्षाओं ) पर विश्वास *🔆🙏 [साधना (3H विकास के 5 अभ्यास) किये बिना शास्त्रों की अवधारणा नहीं होती !][ঈশ্বরদর্শনের উপায়, গুরুবাক্যে বিশ্বাস — শাস্ত্রের ধারণা কখন ]🔆🙏"क्या भगवान को देखना संभव है?"🔆🙏[हम जानते हैं कि दूध में घी है -पर क्या खुली आँखों से घी दीखता है ?] [ह्रदय में आत्मा है -ह्रदय में आत्मा है -3H -3H करने से क्या होगा ? विवेकदर्शन का अभ्यास करो तब विवेकज ज्ञान होगा] ! 🔆🙏मार्गदर्शक नेता की आवश्यकता :- केमन घी , ना जेमन घी 🔆🙏[नेता /गुरु / शिक्षक मक्खन से घी निकालने की पद्धति बतलाते हैं][কেমন ঘি, না যেমন ঘি!} 'Ghee tastes like ghee.]🔆🙏 ईश्वर-प्राप्ति के बाद की अवस्था का वर्णन केवल संकेत से किया जा सकता है 🔆🙏🔆🙏कोन्ननगर के जिज्ञासु साधक के प्रति ठाकुर का स्नेह🔆🙏 वेद-वेदान्त में ब्रह्म , ईश्वर , भगवान को केवल आभास (hint) या संकेत मात्र कहा गया है ]🔆🙏 हे चिदानन्दघन ! जो तुम्हारा नाम जपता है वह अमर हो जाता है !🔆🙏🔆🙏चौथी भूमि से मनःसंयोग (प्रत्याहार -धारणा) का अभ्यास प्रारम्भ करने की पद्धति🔆🙏 🔆🙏अपने सहोदर भाई पर या ब्रह्ममयी के पुत्र पर दूसरे पुत्र का जोर चलता है !🔆🙏 [चरवाहे ने अपने गुरु से कहा था - 'तुम्हें पीटकर मंत्र लूँगा !] "माँ ,शब्दब्रह्म को सुनता कौन है ? मैं या तुम ?"🔆🙏 शब्दब्रह्म में आनंद किसने लिया ?- 'माँ, आलाप क्या मैंने सुना ? या तुम ने ?'🔆🙏🙏🔆🙏🔆🙏🔆শব্দব্রহ্মে আনন্দ — ‘মা, আমি না তুমি?’🔆🙏 ठाकुर को साधु का उपदेश-तीन तरह के साधु ,नेता ,CINC-जीवनमुक्त शिक्षक? 🔆🙏[रजोगुणी और तमोगुणी साधु या नेता का भी सम्मान करो ! ][আমি সবরকম সাধুকে মানি।][Respect Holy Men of all classes.][ लक्ष्मी और अलक्ष्मी : माता लक्ष्मी के एकदम विपरीत हैं उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी🔆🙏श्रीरामकृष्ण के 'अप्रतिरोध 'का सिद्धान्त -सत्व गुण का तम-हरिनाम का महात्म्य🔆🙏 [ नरेंद्र को शिक्षा -सत्त्व (निःस्वार्थपरता) का तम रखना चाहिए ][Doctrine of Non-resistance and Sri Ramakrishna — নরেন্দ্রের প্রতি উপদেশ —সত্ত্বের তমঃ — হরিনাম-মাহাত্ম্য ]🔆🙏 नरेन्द्र के प्रति उपदेश- the glory of God's name -हरिनाम का माहात्म्य। 🔆🙏 घी कैसे बनाया जाता है ?🔆🙏निराकारवादी ब्राह्म शिवनाथ क्या मूर्तिपूजक ठाकुरदेव को लाइक करेगा ?🔆🙏🔆🙏 महेन्द्र का तीर्थ यात्रा प्रस्ताव-'अंकुर' होगा, फिर 'पेड़' होगा, तब 'फल' होंगे🔆🙏त्रिफला सेवन : 🔆🙏1884 के निराकारवादी नरेंद्र ने आगमनी ~ माँ दुर्गा के पदार्पण का गीत गाया 🔆🙏 🔆🙏जदु मल्लिक के बगीचे में भक्तों के साथ🔆🙏🔆🙏यदु मल्लिक के साथ अधर की नौकरी और चैतन्यलीला पर चर्चा🔆🙏$ 🔆🙏 राखाल के लिए चिन्ता-यदु मल्लिक - भोलानाथ का बयान 🔆🙏भवनाथ (भवनाथ चट्टोपाध्याय : (1863 - 1896)
*श्रीरामकृष्ण के 'अप्रतिरोध' (Non-resistance) का सिद्धान्त -सत्व गुण का तम *विद्या और अविद्या के रूपों से वे ही लीला कर रहे हैं ।* Mother, why do You make me argue?* राई बोलिले बोलिते पारे ! (कृष्णेर जोन्ने जेगे आछे) (सारा रात जेगे आछे ! ) (मान कोरिले करिते पारे। )*माँ , तुम मुझसे तर्क क्यों करवाती हो ? * "माँ, मुझे पागल कर दे । ज्ञान और तर्क के द्वारा या शास्त्रों का पाठ करके कोई ईश्वर की अनुभूति नहीं प्राप्त कर सकता ।” ईश्वर दर्शन का उपाय है ~ गुरुवाक्य पर विश्वास * [साधना (3H विकास के 5 अभ्यास) किये बिना शास्त्रों की अवधारणा नहीं होती !] कामारपुकुर की बढ़ई- कन्या का कार्यदर्शन"दूध में मक्खन है, दूध में मक्खन है, [महावाक्य -तत्त्वमसि ] इस तरह चिल्लाते रहने से क्या होता है ? उसे निकालने की चेष्टा करनी पड़ेगी। दूध में जोरन डालो , दही जमाओ, मथो, तब होगा * आपने निकाला है मक्खन ? मक्खन निकालकर मुँह के सामने रखो । न तालाब में चारा (मछलियों का) छोडेगा - न बंसी लेकर बैठा रहेगा - बस, मछली पकड़कर उसके हाथ में रख दो ! कैसा उत्पात है ! *मार्गदर्शक नेता की आवश्यकता :- केमन घी , ना जेमन घी *नारद और शुकदेव आदि ने ब्रह्मज्ञान के पश्चात् भक्ति ली थी, उनका ईश्वर पर प्रेम हुआ था । प्रेम ही सच्चिदानन्द को पकड़ने की रस्सी है ।" इसी का नाम विज्ञान है ।*जो नित्य (the Absolute)में पहुँचकर लीला (the Relative)लेकर रहता है, और पुनः लीला से नित्य में उठ सकता है उसीका नाम है -विज्ञानी !* ज्ञानी संसार को धोखे की टट्टी (माया -भ्रम framework of illusion) समझता है, और विज्ञानी 'आनन्द की हवेली ' (mansion of mirth) *तुमि त्रिभुवन नाथ, आमि भिखारि अनाथ *बल करे , केशे धरे, दाओ चरणे आश्रय।* वेदों में आभास (hint) मात्र है ।" वे पाप का हरण करते हैं, इसीलिए उन्हें "हरि "कहते हैं ।चैतन्य देव ने इस नाम [हरिबोल -हरिबोल] का प्रचार किया था*अतएव यह बहुत ही अच्छा है *[नरेंद्र का आगमनी संगीत ~ माँ दुर्गा के पदार्पण का गीत* * राखाल के लिए चिन्ता-यदु मल्लिक - भोलानाथ का बयान *।
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