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सोमवार, 17 मई 2021

$$$$$ परिच्छेद ~ 43, [(25 जून, 1883) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Sri Ramakrishna-ism**श्री रामकृष्णवाद-नेति से इति * लीला धरे धरे नित्ये जेते होय ; जेमोन सिंड़ी धरे धरे छादे ओठा* It is like reaching the roof by the stairs* प्रार्थना करने से स्वरुप दर्शन -वासना के अनुपात में बाधा * अवतार गाय के स्तन हैं *श्री रामकृष्णवाद-नेति से इति * लीला (अवतारवरिष्ठ) के सहारे नित्य (सच्चिदानन्द) में जाना होता है – जिस प्रकार सीढ़ी पकड़-पकड़कर छत पर चढ़ना होता है ।

  [(25 जून, 1883) परिच्छेद ~ 43, श्रीरामकृष्ण वचनामृत:]

[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)*/*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]

*परिच्छेद ~ ४३* 

*प्रार्थना करने से स्वरुप (3rd'H') दर्शन  -वासना के अनुपात में बाधा * 

श्रीरामकृष्ण ने आज कलकत्ते में बलराम के मकान पर शुभागमन किया है । मास्टर पास बैठे हैं, राखाल भी हैं । श्रीरामकृष्ण भावमग्न हुए हैं । आज ज्येष्ठ कृष्ण पंचमी, सोमवार, 25 जून 1883 ई. । समय दिन के पाँच बजे का होगा ।

[Sri Ramakrishna was at Balaram Bose's house in Calcutta. Rakhal and M were seated near him. The Master was in ecstasy. He conversed with the devotees in an abstracted mood.

श्रीरामकृष्ण (भाव के आवेश में) - देखो, अन्तर से पुकारने पर अपने स्व-स्वरूप (आत्मा) को देखा जाता है, परन्तु विषयभोग की वासना जितनी रहती है, उतनी ही बाधा होती है ।

[ শ্রীরামকৃষ্ণ (ভাবাবিষ্ট) — দেখ, আন্তরিক ডাকলে স্ব-স্বরূপকে দেখা যায়। কিন্তু যতটুকু বিষয়ভোগের বাসনা থাকে, ততটুকু কম পড়ে যায়।

"Let me assure you that a man can realize his Inner Self through sincere prayer. But to the extent that he has the desire to 'enjoy worldly objects' (कामिनी -कांचन), his vision of the Self becomes obstructed."

मास्टर- जी, आप जैसा कहते हैं, ईश्वर में गोता लगाना पड़ता है ।

[মাস্টার — আজ্ঞা, আপনি যেমন বলেন ঝাঁপ দিতে হয়

M: "Yes, sir. You always ask us to PLUNGE INTO GOD !

(plunge: सच्चिदानन्द सागर में मछली जैसा गोता लगाना, कूदना,   )

श्रीरामकृष्ण (आनन्दित होकर)- बहुत ठीक ।

सभी चुप है; श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं । 

श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति) -देखो सभी को आत्मदर्शन हो सकता है ।

 (শ্রীরামকৃষ্ণ (আনন্দিত হইয়া, মাস্টারের প্রতি) — ইয়া!  — দেখ, সকলেরই আত্মদর্শন হতে পারে। (joyously): "Yes! That's it. Let me tell you that the realization of Self is possible for all, without any exception."

मास्टर- जी, परन्तु ईश्वर कर्ता हैं; वे अपनी इच्छानुसार भिन्न भिन्न प्रकार से लीला कर रहे हैं । किसी को चैतन्य दे रहे हैं, किसी को अज्ञानी बनाकर रखा है ।

{মাস্টার — আজ্ঞা, তবে ঈশ্বর কর্তা, তিনি যে ঘরে যেমন করাচ্ছেন। কারুকে চৈতন্য করছেন, কারুকে অজ্ঞান করে রেখেছেন।

M: "That is true, sir. But God is the Doer. He works through different beings in different ways, according to their capacity to manifest the Divine. God gives to some full spiritual consciousness, and others He keeps in ignorance."

*आत्मनिरीक्षण , आत्मविश्लेषण या आत्म-साक्षात्कार का तरीका -निश्छल प्रार्थना - नित्यालिला योग

श्रीरामकृष्ण- नहीं, उनसे व्याकुल होकर प्रार्थना करनी पड़ती है । आन्तरिक या निश्छल होने पर वे प्रार्थना अवश्य सुनेंगे ।

[শ্রীরামকৃষ্ণ — না। তাঁকে ব্যাকুল হয়ে প্রার্থনা করতে হয়। আন্তরিক হলে তিনি প্রার্থনা শুনবেই শুনবেন।

"No, that is not so. One should pray to God with a longing heart. God certainly listens to prayer if it is sincere. There is no doubt about it."

एक भक्त- जी हाँ, ‘मैं-पन’ है, इसलिए प्रार्थना करनी होगी ।

{একজন ভক্ত — আজ্ঞা হাঁ — ‘আমি’ যে রয়েছে, তাই প্রার্থনা করতে হবে।

"Yes, sir. There is this 'I-consciousness' in us; therefore we must pray."

*श्री रामकृष्णवाद-नेति से इति * 

[Sri Ramakrishna-ism ] 

[ " लीला धरे धरे नित्ये जेते होय ; जेमोन सिंड़ी धरे धरे छादे ओठा।  नित्यदर्शनेर पोर नित्य थेके लीलाय एसे थाकते होय। भक्ति -भक्त निये।  एईटी पाका मत" ~ Ramakrishna-ism! ] 

श्रीरामकृष्ण (मास्टर के प्रति)- " लीला के सहारे नित्य में जाना होता है – जिस प्रकार सीढ़ी पकड़-पकड़कर छत पर चढ़ना होता है । 'नित्यदर्शन के बाद ; नित्य से लीला में आकर रहना होता है, भक्ति-भक्त लेकर 'यही मेरा परिपक्व मत ^ है ।" 

   শ্রীরামকৃষ্ণ (মাস্টারের প্রতি) — লীলা ধরে ধরে নিত্যে যেতে হয়; যেমন সিঁড়ি ধরে ধরে ছাদে উঠা। নিত্যদর্শনের পর নিত্য থেকে লীলায় এসে থাকতে হয়। ভক্তি-ভক্ত নিয়ে। এইটি পাকা মত।]

"A man (Ramakrishnaite) should reach the Nitya, the Absolute, by following the trail of the Lila, the Relative. It is like reaching the roof by the stairs. After realizing the Absolute, he should climb down to the Relative and live on that plane in the company of devotees, charging his mind with the love of God; This is my final and most mature opinion.

[ अर्थात किसी रामकृष्णवादी नेता (Ramakrishnaite)  को लीला के सहारे नित्य में जाना चाहिए  --जिस प्रकार सीढ़ियों को पकड़ पकड़ कर कोई छत पर पहुँच जाता है ! (अर्थात अर्थात 3-H विकास के 5 अभ्यास की पद्धति (मनःसंयोग , विवेक-प्रयोग आदि) या चरित्र-निर्माण की प्रक्रिया के प्रशिक्षण और अभ्यास या  "स्वामी विवेकानन्द - कैप्टन सेवियर Be and Make ''काली -श्रीरामकृष्ण ' वेदान्त शिक्षक-प्रशिक्षण परम्परा"  -में प्रशिक्षित होकर -नित्य वस्तु , इन्द्रियातीत सत्य (ब्रह्म) का साक्षात्कार करना चाहिए।) फिर अविनाशी ,नित्य वस्तु (ब्रह्म) का दर्शन करने के बाद, नित्य से लीला में उतर कर, भक्ति और भक्त को लेकर रहना पड़ता है ! यही मेरा परिपक्व मत है !      

   “उनके अनेक रूप, अनेक लीलाएँ हैं । ईश्वर-लीला, देव-लीला, नर-लीला, जगत्-लीला ।

        वे मानव बनकर, अवतार (गुरु -नेता -पैगम्बर वरिष्ठ)  होकर युग युग में आते हैं – प्रेम-भक्ति सिखाने के लिए । देखो न चैतन्यदेव को । अवतार द्वारा ही उनके प्रेम तथा भक्ति का आस्वादन किया जा सकता है । उनकी अनन्त लीलाएँ हैं – परन्तु मुझे आवश्यकता है प्रेम तथा भक्ति की । 

मुझे तो सिर्फ दूध चाहिए । गाय के स्तनों से ही दूध आता है । अवतार गाय के स्तन हैं ।”

{“তাঁর নানারূপ, নানালীলা — ঈশ্বরলীলা, দেবলীলা, নরলীলা, জগৎলীলা; তিনি মানুষ হয়ে অবতার হয়ে যুগে যুগে আসেন, প্রেমভক্তি শিখাবার জন্য। দেখ না চৈতন্যদেব। অবতারের ভিতরেই তাঁর প্রেম-ভক্তি আস্বাদন করা যায়। তাঁর অনন্ত লীলা — কিন্তু আমার দরকার প্রেম, ভক্তি। আমার ক্ষীরটুকু দরকার। গাভীর বাঁট দিয়েই ক্ষীর আসে। অবতার গাভীর বাঁট।”

"God has different forms, and He sports in different ways. He sports as Isvara, deva, man, and the universe. In every age He descends to earth in human form, as an Incarnation, to teach people love and devotion. There is the instance of Chaitanya. One can taste devotion and love of God only through His Incarnations. Infinite are the ways of God's play, but what I need is love and devotion. I want only the milk. The milk comes through the udder of the cow. The Incarnation is the udder."}

क्या श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं कि वे अवतीर्ण हुए हैं, उनका दर्शन करने से ही ईश्वर का दर्शन होता है ? चैतन्यदेव का उल्लेख कर क्या श्रीरामकृष्ण अपनी ओर संकेत कर रहे हैं ?

[ঠাকুর কি বলিতেছেন যে, আমি অবতীর্ণ হইয়াছি, আমাকে দর্শন করিলেই ঈশ্বরদর্শন করা হয়? চৈতন্যদেবের কথা বলিয়া ঠাকুর কি নিজের কথা ইঙ্গিত করিতেছেন?

Was Sri Ramakrishna hinting that he was an Incarnation of God? Did he suggest that those who saw him saw God? Did he thus speak about himself when speaking of Chaitanya?

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