[(21 जुलाई 1883) परिच्छेद ~ 46, श्रीरामकृष्ण वचनामृत]
[*साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)* *साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ*]
परिच्छेद ~ ४६
(१)
[ कलकत्ते के राजपथ पर भक्तों के साथ ]
*भक्तों को भक्ति की प्रवृत्तियां पिछले जन्म से विरासत में मिलती हैं *
[Devotees inherit devotional tendencies from previous births]
श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर से गाड़ी पर कलकत्ते की ओर जा रहे हैं । साथ में रामलाल और दो-एक भक्त हैं। फाटक से निकलते ही आपने देखा कि मणि हाथ में चार फजली आम लिए हुए पैदल आ रहे हैं । मणि को देखकर गाड़ी को रोकने के लिए कहा । मणि ने गाड़ी पर सिर टेककर प्रणाम किया ।
आज शनिवार, २१ जुलाई १८८३ ई., आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा है । दिन के चार बजे हैं । श्रीरामकृष्ण अधर के मकान पर जाएँगे, उसके बाद यदु मल्लिक के घर और फिर खेलात घोष के यहाँ जाएँगे ।
श्रीरामकृष्ण (मणि से हँसते हुए)- तुम भी आओ न, हम अधर के यहाँ जा रहे हैं ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ (মণির প্রতি, সহাস্যে) — তুমিও এস না — আমরা অধরের বাড়ি যাচ্ছি।
(to M., with a smile): "Come with us. We are going to Adhar's house."]
मणि- ‘जैसी आपकी आज्ञा’ कहकर गाड़ी पर बैठ गये ।
मणि एक अंग्रेजी पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं, इसी से विरासत में मिले पुनर्जन्म (Rebirth) के संस्कार आदि पर विश्वास नहीं करते थे, लेकिन कुछ दिन हुए श्रीरामकृष्ण के पास यह स्वीकार कर गए थे कि अधर में अवश्य पूर्वजन्म (previous birth) के अच्छे संस्कार (good tendencies) रहे होंगे , इसी से वे उनकी इतनी भक्ति करते हैं । घर लौटकर विचार करने पर मास्टर ने जब आत्मनिरीक्षण किया तो पाया कि पूर्वजन्म के विरासत से मिली प्रवृत्तियों (inherited tendencies या प्रवृत्ति) के बारे में अभी तक उनको पूर्ण विश्वास नहीं हुआ है । यही कहने के लिए आज श्रीरामकृष्ण से मिलने आए हैं । श्रीरामकृष्ण बातें करने लगे ।
[ মণি ইংরেজী পড়িয়াছেন, তাই সংস্কার (inherited tendencies) মানিতেন না, কিন্তু কয়েকদিন হইল ঠাকুরের নিকটে স্বীকার করিয়া গিয়াছিলেন যে, অধরের সংস্কার ছিল তাই তিনি অত তাঁহাকে ভক্তি করেন। বাটীতে ফিরিয়া গিয়া ভাবিয়া দেখিলেন যে, সংস্কার সম্বন্ধে এখনও তাঁহার পূর্ণ বিশ্বাস হয় নাই। তাই ওই কথা বলিবার জন্যই আজ ঠাকুরকে দর্শন করিতে আসিয়াছেন। ঠাকুর কথা কহিতেছেন।
M got joyfully into the carriage. Having received an English education, he did not believe in the tendencies inherited from previous births. But he had admitted a few days before that it was on account of Adhar's good tendencies from past births that he showed such great devotion to the Master. Later on he had thought about this subject and had discovered that he was not yet completely convinced about inherited tendencies. He had come to Dakshineshwar that day to discuss the matter with Sri Ramakrishna. नवनीदा के जैसा ही ठाकुर के भक्त अधर का पुनर्जन्म (Rebirth) भी , पूर्वजन्म (previous birth) के विरासत में प्राप्त अच्छे संस्कारों (inherited good-tendencies) के साथ हुआ था! Mahamandal News : 19 मई 2021 / जगदीश दे +जुगल , मेदिनीपुर डिस्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग कमिटी कोबिड सर्विस विथ/ Oxygen/ पीपी-किट / वैन /चौबेरिया/ चकदह /}
श्रीरामकृष्ण- अच्छा, अधर को तुम कैसा समझते हो ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আচ্ছা, অধরকে তোমার কিরূপ মনে হয়?
"Well, what do you think of Adhar?"]
मणि- जी, उनमें ईश्वर के प्रति बहुत अनुराग है ।
श्रीरामकृष्ण- अधर भी तुम्हारी बड़ी प्रशंसा करता है ।
मणि कुछ देर तक चुप रहे, फिर पूर्वजन्म के संस्कार की बात उठायी ।
[মণি কিয়ৎক্ষণ চুপ করিয়া আছেন; এইবার পূর্বজন্মের কথা উত্থাপন করিতেছেন।
M. remained silent awhile and then began to speak of past tendencies.]
[बहुत गोपनीय उपदेश ~ " ईश्वर की सृष्टि में कुछ भी असम्भव नहीं !"]
*जन्मजात प्रवृत्तियों को भी बदला जा सकता है*
[Inherited Tendencies can also be changed]
मणि- मुझे ‘पूर्वजन्म’ (rebirth ) और ‘संस्कार’ (inherited tendencies) आदि पर उतना विश्वास नहीं है; क्या इससे मेरी भक्ति में कोई बाधा आएगी ?
{মণি — আমার ‘পূর্বজন্ম’ ও ‘সংস্কার’ এ-সব তাতে তেমন বিশ্বাস নাই; এতে কি আমার ভক্তির কিছু হানি হবে?
M: "I haven't much faith in rebirth and inherited tendencies. Will that in any way injure my devotion to God?"]
श्रीरामकृष्ण- " ईश्वर की सृष्टि में सब कुछ हो सकता है "- इतना विश्वास रखना ही पर्याप्त है । मैं जो सोचता हूँ वही सत्य है, और सब का मत मिथ्या है – ऐसा भाव मन में न आने देना बाकी ईश्वर ही समझा देंगे ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁর সৃষ্টিতে সবই হতে পারে এই বিশ্বাস থাকলেই হল; আমি যা ভাবছি — তাই সত্য; আর সকলের মত মিথ্যা; এরূপ ভাব আসতে দিও না। তারপর তিনিই বুঝিয়ে দিবেন।
"It is enough to believe that all is possible in God's creation. Never allow the thought to cross your mind that your ideas are the only true ones, and that those of others are false. Then God will explain everything.]
“ईश्वर के कार्यों को मनुष्य क्या समझेगा ? उनके कार्य अनन्त हैं । इसलिए मैं इनको समझाने का थोड़ा भी प्रयत्न नहीं करता । मैंने सुन रखा है कि उनकी सृष्टि में सब कुछ हो सकता है । इसीलिए मैं इन बातों की चिन्ता न कर केवल ईश्वर ही की चिन्ता करता हूँ । हनुमान से पूछा गया था, आज कौनसी तिथि है; हनुमान ने कहा था, मैं तिथि, नक्षत्र आदि नहीं जानता, केवल एक राम की चिन्ता करता हूँ ।
[“তাঁর কাণ্ড মানুষে কি বুঝবে? অনন্ত কাণ্ড! তাই আমি ও-সব বুঝতে আদপে চেষ্টা করি না। শুনে রেখেছি তাঁর সৃষ্টিতে সবই হতে পারে। তাই ও-সব চিন্তা না করে কেবল তাঁরই চিন্তা করি। হনুমানকে জিজ্ঞাসা করেছিল, আজ কি তিথি, হনুমান বলেছিল, ‘আমি তিথি নক্ষত্র জানি না, কেবল এক রাম চিন্তা করি।’
"What can a man understand of God's activities? The facets of God's creation are infinite. I do not try to understand God's actions at all. I have heard that everything is possible in God's creation, and I always bear that in mind. Therefore I do not give a thought to the world, but meditate on God alone. Once Hanuman was asked, 'What day of the lunar month is it?' Hanuman said: 'I don't know anything about the day of the month, the position of the moon and stars, or any such things. I think of Rama alone.']
“ईश्वर के कार्य क्या समझ में आ सकते हैं ? वे तो पास ही हैं – पर यह समझना कितना कठिन है ! बलराम कृष्ण को भगवान् नहीं जानते थे ।”
[“তাঁর কাণ্ড কি কিছু বুঝা যায় গা! কাছে তিনি — অথচ বোঝবার জো নাই, বলরাম কৃষ্ণকে ভগবান বলে জানতেন না।”
"Can one ever understand the work of God? He is so near; still it is not possible for us to know Him. Balarama did not realize that Krishna was God."]
मणि- जी हाँ ! जैसे आपने भीष्मदेव की बात कही थी ।
श्रीरामकृष्ण- हाँ, हाँ ! क्या कहा था, कहो तो !
मणि- भीष्मदेव शरशय्या पर पड़े रो रहे थे । पाण्डवों ने श्रीकृष्ण से कहा, ‘भाई, यह कैसा आश्चर्य है ! पितामह इतने ज्ञानी होकर भी मृत्यु का विचार कर रो रहे हैं !’ श्रीकृष्ण ने कहा, ‘उनसे पूछो न, क्यों रोते हैं ।’ भीष्मदेव बोले, ‘मैं यह विचार कर रोता हूँ कि भगवान् के कार्य को कुछ भी न समझ सका । हे कृष्ण, तुम इन पाण्डवों के साथ साथ फिरते हो, पग पग पर इनकी रक्षा करते हो, फिर भी इनकी विपद् का अन्त नहीं !’
श्रीरामकृष्ण- ईश्वर ने अपनी माया से सब कुछ ढक रखा है – कुछ जानने नहीं देते । कामिनी और कांचन ही माया है । इस माया को हटाकर जो ईश्वर के दर्शन करता है, वही उन्हें देख पाता है । एक आदमी को समझाते समय मुझे ईश्वर ने एक अद्भुत दृश्य दिखलाया । अचानक सामने देखा उस देश का एक तालाब, और एक आदमी ने काई हटाकर उससे जल पी लिया । जल स्फटिक की तरह साफ था । इससे यह सूचित हुआ कि वह सच्चिदानन्द मायारूपी काई से ढका हुआ है, - जो काई हटाकर जल पीता है, वही पाता है ।
{ তাঁর মায়াতে সব ঢেকে রেখেছেন — কিছু জানতে দেন না। কামিনী-কাঞ্চন মায়া। এই মায়াকে সরিয়ে যে তাঁকে দর্শন করে সেই তাঁকে দেখতে পায়। একজনকে বোঝাতে বোঝাতে (ঈশ্বর একটি আশ্চর্য ব্যাপার) দেখালেন, হঠাৎ সামনে দেখলাম, দেশের (কামারপুকুরের) একটি পুকুর, আর-একজন লোক পানা সরিয়ে যেন জলপান করলে। জলটি স্ফটিকের মতো। দেখালে যে, সেই সচ্চিদানন্দ মায়ারূপ পানাতে ঢাকা, — যে সরিয়ে জল খায় সেই পায়।
"God has covered all with His maya. He doesn't let us know anything. Maya is 'woman and gold'. He who puts maya aside to see God, can see Him. Once, when I was explaining God's actions to someone, God suddenly showed me the lake at Kamarpukur. I saw a man removing the green scum and drinking the water. The water was clear as crystal. God revealed to me that Satchidananda is covered by the scum of maya. He who puts the green scum aside can drink the water.}
“सुनो, तुमसे बड़ी गूढ़ बातें कहता हूँ ।
झाउओ के तले बैठे हुए देखा कि चोर दरवाजे (hidden door) का-सा एक दरवाजा सामने है । कोठरी के अन्दर क्या है, यह मुझे दिखायी नहीं पड़ा । मैं एक नहरनी से छेद करने लगा, पर कर न सका । मैं छेदता रहा, पर वह बार बार भर जाता था । परन्तु एक बार इतना बड़ा छेद बना !”
[“শুন, তোমায় অতি গুহ্য কথা বলছি! ঝাউতলার দিকে বাহ্যে করতে করতে দেখলাম — চোর কুঠরির দরজার মতো একটা সামনে, কুঠরির ভিতর কি আছে দেখতে পাচ্ছি না। আমি নরুন দিয়ে ছেঁদা করতে লাগলাম, কিন্তু পারলুম না। ছেঁদা করি কিন্তু আবার পুরে আসে! তারপর একবার এতখানি ছেঁদা হল!”
"Let me tell you a very secret experience. Once I had entered the wood near the pine-grove, and was sitting there, when I had a vision of something like the hidden door of a chamber. I couldn't see the inside of the chamber. I tried to bore a hole in the door with a nail-knife, but did not succeed. As I bored, the earth fell back into the hole and filled it. Then suddenly I made a very big opening."]
यह कहकर श्रीरामकृष्ण चुप रहे । फिर बोलने लगे – “ये सब बड़ी ऊँची बातें हैं । यह देखो, कोई मानो मेरा मुँह दबा देता है ।
“योनि में ईश्वर का वास प्रत्यक्ष देखा था ! – कुत्ता और कुतिया के समागम के समय देखा था ।
{ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ এই কথা বলিয়া মৌনাবলম্বন করিলেন। এইবার আবার কথা কহিতেছেন, “এ-সব বড় উঁচু কথা — ওই দেখ আমার মুখ কে যেন চেপে চেপে ধরছে!
“যোনিতে বাস স্বচক্ষে দেখলাম! — কুকুর-কুক্কুরীর মৈথুন সময়ে দেখেছিলাম।
"These are very profound words. I feel as if someone were pressing my mouth. ... I have seen with my own eyes that God dwells even in the sexual organ. I saw Him once in the sexual intercourse of a dog and a bitch.}
“ईश्वर के चैतन्य से जगत् चैतन्यमय है । कभी कभी (निराकार का ध्यान करते समय) देखता हूँ कि छोटी छोटी मछलियों में भी वही चैतन्य खेल रहा है ।”
[“তাঁর চৈতন্যে জগতের চৈতন্য। এক-একবার দেখি, ছোট ছোট মাছের ভিতর সেই চৈতন্য কিলবিল করছে!”
"The universe is conscious on account of the Consciousness of God. Sometimes I find that this Consciousness wriggles about, as it were, even in small fish.(रूपी घट)"]
गाड़ी शोभाबाजार के चौराहे पर से दरमाहट्टा के निकट पहुँची । श्रीरामकृष्ण फिर कह रहे हैं-
“कभी कभी देखता हूँ कि वर्षा में जिस प्रकार पृथ्वी जल से ओतप्रोत रहती है, उसी प्रकार इस चैतन्य से जगत् ओतप्रोत है ।
[“এক-একবার দেখি বরষায় যেরূপ পৃথিবী জরে থাকে, — সেইরূপ এই চৈতন্যতে জগৎ জরে রয়েছে।
"Sometimes I find that the universe is saturated with the Consciousness of God, as the earth is soaked with water in the rainy season.]
“इतना सब दिखलायी तो पड़ता है, पर मुझे अभिमान नहीं होता ।”
[“কিন্তু এত তো দেখা হচ্ছে, আমার কিন্তু অভিমান হয় না।”
"Well, I see so many visions, but I never feel vain about them."]
मणि (सहास्य)- आपका अभिमान कैसा !
श्रीरामकृष्ण- शपथ खाकर कहता हूँ, थोड़ा भी अभिमान नहीं होता ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — মাইরি বলছি, আমার যদি একটুও অভিমান হয়।
"Upon my word, I don't feel vanity even in the slightest degree."]
मणि- ग्रीस देश में सुकरात नाम का एक आदमी था । यह दैववानी हुई थी कि सब लोगों में वही ज्ञानी है । उसे आश्चर्य हुआ । बहुत देर तक निर्जन में चिंतन-मनन करने पर उस कथन का मर्म समझ में आया। तब उसने अपने मित्रों से कहा, ‘सभी लोगों में केवल मुझे ही मालुम हुआ है कि मैं कुछ नहीं जानता',[ क्योंकि परम् सत्य को जानने वाला 'मैं ' (अहं) नहीं आत्मा था !] लेकिन सभी लोग समझते हैं कि हमें खूब ज्ञान हुआ है । परन्तु वास्तव में सभी अज्ञानी हैं ।’
[মণি — গ্রীস দেশে একটি লোক ছিলেন, তাঁহার নাম সক্রেটিস। দৈববাণী হয়েছিল যে, সকল লোকের মধ্যে তিনি জ্ঞানী। সে ব্যক্তি অবাক্ হয়ে গেল। তখন নির্জনে অনেকক্ষণ চিন্তা করে বুঝতে পারলে। তখন সে বন্ধুদের বললে, আমিই কেবল বুঝেছি যে, আমি কিছুই জানি না। কিন্তু অন্যান্য সকল লোকে বলছে, “আমাদের বেশ জ্ঞান হয়েছে।” কিন্তু বস্তুতঃ সকলেই অজ্ঞান।
M: "There once lived a man in Greece, Socrates by name. A voice from heaven said that he was wise among men. Socrates was amazed at this revelation. He meditated on it a long time in solitude and then realized its significance. He said to his friends, 'I alone of all people have understood that I do not know anything.' But every man believes he is wise. In reality all are ignorant."]
*ज्ञान की बातें तो शास्त्रों में हैं ही , फिर भी नेता के मुख से सुनना क्यों अनिवार्य है ?*
श्रीरामकृष्ण- मैं कभी कभी सोचता हूँ कि मैं जानता ही क्या हूँ कि इतने लोग यहाँ आते हैं ! वैष्णवचरण बड़ा पण्डित था । वह कहता था कि तुम जो कुछ कहते हो वह सब शास्त्रों में पाया जाता है । तो फिर तुम्हारे पास क्यों आता हूँ ? तुम्हारे मुँह से वही सब सुनने के लिए ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমি এক-একবার ভাবি যে, আমি কি জানি যে এত লোকে আসে! বৈষ্ণবচরণ খুব পণ্ডিত ছিল। সে বলত, তুমি যে-সব কথা বল সব শাস্ত্রে পাওয়া যায়, তবে তোমার কাছে কেন আসি জানো? তোমার মুখে সেইগুলি শুনতে আসি।
"Now and then I think, 'What is it I know that makes so many people come to me?' Vaishnavcharan was a great pundit. He used to say to me: 'I can find in the scriptures all the things you talk about. But do you know why I come to you? I come to hear them from your mouth.']
मणि- आपकी सब बातें शास्त्र से मिलती हैं । नवद्वीप गोस्वामी भी उस दिन पानीहाटी में यही बात कहते थे । आपने कहा कि ‘गीता’ ‘गीता’ बार बार कहने से ‘त्यागी’ ‘त्यागी’ हो जाता है । वास्तव में ‘तागी’ होता है, परन्तु नवद्वीप गोस्वामी ने कहा कि ‘तागी’ और ‘त्यागी’ दोनों का एक ही अर्थ है; ‘तग्’ एक धातु है, उसी से ‘तागी’ बनता है ।
[মণি — সব কথা শাস্ত্রের সঙ্গে মেলে। নবদ্বীপ গোস্বামীও সেদিন পেনেটীতে সেই কথা বলছিলেন। আপনি বললেন যে, “গীতা গীতা” বলতে বলতে “ত্যাগী ত্যাগী” হয়ে যায়। বস্তুতঃ তাগী হয়, কিন্তু নবদ্বীপ গোস্বামী বললেন, ‘তাগী’ মানেও যা ‘ত্যাগী’ মানেও তা, তগ্ ধাতু একটা আছে তাই থেকে ‘তাগী’ হয়।
M: "All your words tally with the scriptures. Navadvip Goswami also said that the other day at the festival at Panihati. You told us that day that by repeating the word 'Gita' a number of times one reverses it and it becomes 'tagi', which refers to renunciation. Renunciation is the essence of the Gita. Navadvip Goswami supported your statement from the grammatical standpoint."
*पैगम्बर वरिष्ठ श्री रामकृष्ण को माँ काली ने अपने हाथों से बनाया है *
श्रीरामकृष्ण- मेरे साथ क्या दूसरों का कुछ मिलता-जुलता है ? किसी पण्डित या साधु का ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — আমার সঙ্গে কি আর কারু মেলে? কোন পণ্ডিত, কি সাধুর সঙ্গে?
"Have you found anyone else resembling me — any pundit or holy man?"
मणि- आपको ईश्वर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया है । और दूसरों को मशीन में डालकर । -जैसे नियम के अनुसार सृष्टि होती है ।
[মণি — আপনাকে ঈশ্বর স্বয়ং হাতে গড়েছেন। অন্য লোকদের কলে ফেলে তয়ের করেছেন — যেমন আইন অনুসারে সব সৃষ্টি হচ্ছে।
M: "God has created you with His own hands, whereas He has made others by machine. All others He has created according to law."
श्रीरामकृष्ण (सहास्य, रामलाल आदि से)- अरे, कहता क्या है !
[শ্রীরামকৃষ্ণ — (সহাস্যে রামলালাদিকে) — ওরে, বলে কিরে!
(laughing, to Ramlal and the other devotees): "Listen to what he is saying!"
श्रीरामकृष्ण की हँसी रूकती ही नहीं । अन्त में उन्होंने कहा, “ शपथ खाता हूँ, मुझे तनिक भी अभिमान नहीं होता ।”
[ঠাকুরের হাস্য আর থামে না। অবশেষে বলিতেছেন, মাইরি বলছি, আমার যদি একটুও অভিমান হয়।
Sri Ramakrishna laughed for some time, and said at last, "Really and truly I have no pride — no, not even the slightest bit."
*विद्या विनयी बना देती है -ब्रह्मविद कहते हैं -'मैं कुछ नहीं जानता और मैं कुछ नहीं हूँ !'*
मणि- विद्या से एक लाभ होता है । उससे यह मालुम हो जाता है कि मैं कुछ नहीं जानता, और मैं कुछ नहीं हूँ ।
[মণি — বিদ্যাতে একটা উপকার হয়, এইটি বোধ হয় যে, আমি কিছু জানি না, আর আমি কিছুই নই।
M: "Knowledge does us good in one respect at least; it makes us feel that we do not know anything, that we are nothing."]
श्रीरामकृष्ण- ठीक है, ठीक है । मैं कुछ नहीं हूँ मैं कुछ नहीं हूँ ! अच्छा, अंग्रेजी ज्योतिष (astronomy) पर तुम्हें विश्वास है ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — ঠিক ঠিক। আমি কিছুই নই! — আমি কিছুই নই! — আচ্ছা, তোমার ইংরেজী জ্যোতিষে বিশ্বাস আছে?
"Right you are! I am nothing. I am nobody."Do you believe in English astronomy?"]
मणि- उन लोगों के नियम के अनुसार नये-नए ग्रहों का अविष्कार हो सकता हैं; युरेनस (Uranus) ग्रह की अनियमित चाल देखकर उन्होंने दूरबीन से पता लगाकर देखा कि एक नया ग्रह (Neptune) चमक रहा है । फिर उससे ग्रहण की गणना भी हो सकती है ।
श्रीरामकृष्ण- हाँ, सो तो होती है ।
गाड़ी चल रही है – प्रायः अधर के मकान के पास आ गयी है । श्रीरामकृष्ण मणि से कहते हैं, “सत्य में रहना, तभी ईश्वर मिलेंगे ।”
मणि- एक और बात आपने नवद्वीप गोस्वामी से कही थी – ‘हे ईश्वर, मैं तुम्हीं को चाहता हूँ । देखना, भुवनमोहिनी माया के ऐश्वर्य से मुझे मुग्ध न करना । मैं तुम्हीं को चाहता हूँ ।’
श्रीरामकृष्ण- हाँ, यह दिल से कहना होगा ।
(२)
*अधर सेन के मकान पर, कीर्तनानन्द में*
श्रीरामकृष्ण अधर के मकान पर आए हैं । बैठकखाने में रामलाल, मास्टर, अधर तथा कुछ और भक्त आपके पास बैठे हुए हैं । मुहल्ले के दो-चार लोग श्रीरामकृष्ण को देखने आए हैं । राखाल के पिता कलकत्ते में रहते हैं – राखाल वहीँ हैं ।
श्रीरामकृष्ण(अधर के प्रति)- क्यों, राखाल को खबर नहीं दी ?
अधर- जी, उन्हें खबर दी है ।
राखाल के लिए श्रीरामकृष्ण को व्यग्र देखकर अधर ने राखाल को लिवा लाने के लिए एक आदमी के साथ अपनी गाड़ी भिजवा दी ।
अधर श्रीरामकृष्ण के पास आ बैठे । आप के दर्शन के लिए अधर आज व्याकुल हो रहे थे । आज आपके यहाँ आने के बारे में पहले से कुछ निश्चित नहीं था । ईश्वर की इच्छा से ही आप आ पहुँचे हैं ।
अधर- बहुत दिन हुए आप नहीं आए थे । मैंने आज आपको पुकारा था, - यहाँ तक कि आँखों से आँसू भी गिरे थे ।
श्रीरामकृष्ण (प्रसन्न होकर हँसते हुए)- क्या कहते हो !
শ্রীরামকৃষ্ণ (প্রসন্ন হইয়া, সহাস্যে) — বল কি গো!
शाम हुई । बैठकखाने में बत्ती जलायी गयी । श्रीरामकृष्ण ने हाथ जोड़कर जगज्जननी को प्रणाम कर मन ही मन शायद मूलमन्त्र का जाप किया । अब मधुर स्वर से नाम-उच्चारण कर रहे हैं – ‘गोविन्द ! गोविन्द ! सच्चिदानन्द ! हरि बोल ! हरि बोल !’ आप इतना मधुर नाम-उच्चारण कर रहे हैं कि मानो मधु बरस रहा है ! भक्तगण निर्वाक् होकर उस नामसुधा का पान कर रहे हैं ।
रामलाल गाना गा रहे हैं-....
भूवन भूलाईलि माँ, हरमोहिनी,
मूलाधारे महोत्पले, वीणावाद्य-विनोदिनी।
शरीर शारीर यन्त्रे, सुषुम्नादि-त्रय तन्त्रे,
गुणभेद महामन्त्रे गुणत्रय-विभागिनी।।
आधारे भैरवाकार, षडदले श्रीराग आर,
मणिपूरेते मल्हार, बसंते हृदप्रकाशिनी;
विशुद्ध हिन्दोल सूरे, कर्नाटक आज्ञापूरे,
तान-लय -मान-सूरे तीन ग्राम-संचारिणी ॥
महामाया मोहपाशे, बद्ध करो अनायासे,
तत्त्व लये तत्त्वाकाशे स्थिर आछे सौदामिनी।
श्रीनन्दकूमार कोय, तत्त्व ना निश्चय होय,
तव तत्त्व गुणत्रय, काकीमुख-आच्छादिनी॥
ভুবন ভুলাইলি মা, হরমোহিনী।
মূলাধারে মহোৎপলে, বীণাবাদ্য-বিনোদিনী।
শরীর শারীর যন্ত্রে সুষুম্নাদি ত্রয় তন্ত্রে,
গুণভেদ মহামন্ত্রে গুণত্রয়বিভাগিনী ৷৷
আধারে ভৈরবাকার ষড়দলে শ্রীরাগ আর,
মণিপুরেতে মহ্লার, বসন্তে হৃৎপ্রকাশিনী
বিশুদ্ধ হিল্লোল সুরে, কর্ণাটক আজ্ঞাপুরে,
তান লয় মান সুরে, তিন গ্রাম-সঞ্চারিণী।
মহামায়া মোহপাশে, বদ্ধ কর অনায়াসে,
তত্ত্ব লয়ে তত্ত্বাকাশে স্থির আছে সৌদামিনী।
শ্রীনন্দকুমারে কয়, তত্ত্ব না নিশ্চয় হয়,
তব তত্ত্ব গুণত্রয়, কাকীমুখ-আচ্ছাদিনী।
(भावार्थ)- “हे माँ हरमोहिनी, तूने संसार को भुलावे में डाल रखा है । मूलाधार महाकमल में तू वीणावादन करती हुई चित्तविनोदन करती है ।
महामन्त्र का अवलम्बन कर तू शरीररूपी यन्त्र के सुषुम्नादि तीन तारों में तीन गुणों के अनुसार तीन ग्रामों में संचरण करती है ।
मूलाधारचक्र में तू भैरव राग में अवस्थित है; स्वाधिष्ठानचक्र के षड्दल कमल में तू श्री राग तथा मणिपूरचक्र में मल्हार राग है । तू वसन्त राग के रूप में हृदयस्थ अनाहतचक्र में प्रकाशित होती है । तू विशुद्धचक्र में हिण्डोल तथा आज्ञाचक्र में कर्णाटक राग है । तान-मान-लय-सुर के सहित तू मन्द्र-मध्य-तार इन तीन सप्तकों का भेदन करती है ।
हे महामाया, तूने मोहपाश के द्वारा सब को अनायास बाँध लिया है । तत्त्वाकाश में तू मानो स्थिर सौदामिनी की तरह विराजमान है । ‘नन्दकुमार’ कहता है कि तेरे तत्त्व का निश्चय नहीं किया जा सकता। तीन गुणों के द्वारा तूने जीव की दृष्टि को आच्छादित कर रखा है ।”
रामलाल ने फिर माँ काली का स्तुति गान गाया-
भवदारा भय हरा नाम सुनेछि तोमार ,
ताईते एबार दियेछि भार, तारो तारो ना तारो माँ।
ভবদারা ভয়হরা নাম শুনেছি তোমার,
তাইতে এবার দিয়েছি ভার তারো তারো না তারো মা।
তুমি মা ব্রহ্মাণ্ডধারী ব্রহ্মাণ্ড ব্যাপিকে,
কে জানে তোমারে তুমি কালী কি রাধিকে,
ঘটে ঘটে তুমি ঘটে আছ গো জননী,
মূলাধার কমলে থাক মা কুলকুণ্ডলিনী।
(भावार्थ)- “हे भवानी, मैंने तुम्हारा भयहर नाम सुना है, इसीलिए तो अब मैंने तुम पर अपना भार सौंप दिया है । अब तुम मुझे तारो या न तारो !
माँ, तुम ब्रह्माण्ड-जननी हो, ब्रह्माण्ड-व्यापिनी हो । तुम 'काली' हो या 'राधिका' –? यह कौन जाने ! हे जननी, तुम घट घट में विराजमान हो । Art Thou Kali? Art Thou Radha? Who can ever rightly say?
मूलाधार-चक्र के चतुर्दल कमल में तुम कुल-कुण्डलिनी के रूप में विद्यमान हो । तुम्हीं सुषुम्ना मार्ग से ऊपर उठती हुई स्वाधिष्ठान-चक्र के षड्दल तथा मणिपुर-चक्र के दश-दल कमल में पहुँचती हो ।
हे कमलकामिनी, तुम ऊर्ध्वोर्ध्व कमलों में निवास करती हो ।
हृदयस्थित अनाहतचक्र के द्वादश-दल कमल को अपने पादपद्म के द्वारा प्रस्फुटित कर तुम हृदय के अज्ञानतिमिर का विनाश करती हो । इसके ऊपर कण्ठस्थित विशुद्धचक्र में धूम्रवर्ण षोडश-दल कमल है । इस कमल के मध्यभाग में जो आकाश है, वह यदि अवरुद्ध हो जाय तो सर्वत्र आकाश ही रह जाता है । [Transcending which, one sees at length the universe in Space dissolve.]
इसके ऊपर ललाट में अवस्थित आज्ञाचक्र के द्विदल कमल में पहुँचकर मन आबद्ध हो जाता है – वह वहीँ रहकर मजा देखना चाहता है, और ऊपर नहीं उठना चाहता ।
इससे ऊपर मस्तक में सहस्त्रारचक्र है । वहाँ अत्यन्त मनोहर सहस्त्रदल कमल है, जिसमें परमशिव स्वयं विराजमान हैं । हे शिवानी, तुम वही शिव के निकट जा विराजो !
हे माँ, तुम आद्याशक्ति हो । योगी तथा मुनिगण तुम्हारा नगेन्द्रनन्दिनी उमा के रूप में ध्यान करते है । तुम शिव की शक्ति हो ।
तुम मेरी वासनाओं का हरण करो ताकि मुझे फिर इस भवसागर में पतित न होना पड़े । माँ, तुम्हें पंचतत्त्व हो, फिर तुम तत्त्वों के अतीत हो । तुम्हें कौन जान सकता है !
हे माँ, संसार में भक्तों के हेतु तुम साकार बनी हो, परन्तु पंचेन्द्रियाँ पंचतत्त्व में विलिन हो जाने पर तुम्हारे निराकार स्वरूप का ही अनुभव होता है ।”
[षड्चक्र भेदन - नादभेद और समाधि- निराकर सच्चिदानन्द दर्शन]
*नादभेद -Big Bang - महाविस्फोट और समाधि !*
रामलाल जिस समय गा रहे थे-
“তদূর্ধ্বেতে আছে মাগো নাম কণ্ঠস্থল,
ধূম্রবর্ণের পদ্ম আছে হয়ে ষোড়শদল।
সেই পদ্ম মধ্যে আছে অম্বুজে আকাশ,
সে আকাশ রুদ্ধ হলে সকলি আকাশ।”
‘इसके ऊपर कण्ठस्थित विशुद्धचक्र में धूम्रवर्ण षोडशदल कमल है । इस कमल के मध्यभाग में जो आकाश है वह यदि अवरुद्ध हो जाय तो सर्वत्र आकाश ही रह जाता है’ (Transcending which, one sees at length the universe in Space dissolve.)– उस समय श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से कहा-“ यह सुनो, इसी का नाम है निराकार सच्चिदानन्द-दर्शन । विशुद्धचक्र का भेदन होने पर ‘सर्वत्र आकाश ही रह जाता है ।”
[“এই শুন, এরই নাম নিরাকার সচ্চিদানন্দ-দর্শন। বিশুদ্ধচক্র ভেদ হলে সকলি আকাশ।”
the Master said to M: "Listen. This is known as the vision of Satchidananda, the Formless Brahman. The Kundalini, rising above the Visuddha chakra, enables one to see everything as akasa."]
मास्टर- जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण- इस मायामय जीव-जगत् (देश-काल-निमित्त) के पार हो जाने पर तब कहीं नित्य स्वरूप में पहुँचा जा सकता है। नाद-भेद (होने पर ही समाधि लगती है । ओंकार-साधना करते करते नाद-भेद होता है और समाधि लगती है ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এই মায়া-জীব-জগৎ পার হয়ে গেলে তবে নিত্যতে পৌঁছানো যায়। নাদ ভেদ হলে তবে সমাধি হয়। ওঁকার সাধন করতে করতে নাদ ভেদ হয়, আর সমাধি হয়।
"One attains the Absolute by going beyond the universe and its created beings conjured up by maya. By passing beyond the Nada one goes into samadhi. By repeating 'Om' one goes beyond the Nada and attains samadhi." 'चिदानन्द रूपः शिवोहं -शिवोहं'..... जपते -जपते नादभेद -Big Bang - महाविस्फोट होता है और समाधि लगती है ! (14.4.1992 -बनारस कबीर चौरा ]
अधर ने फलमिष्टान्न आदि के द्वारा श्रीरामकृष्ण की सेवा की । श्रीरामकृष्ण ने कहा, “आज यदु मल्लिक के यहाँ जाना पड़ेगा ।”
(३)
*यदु मल्लिक के मकान पर*
*सिंहवाहिनी देवी के दर्शन के पहले कुछ प्रणामी चढ़ानी चाहिये *
श्रीरामकृष्ण यदु मल्लिक के मकान पर आए । कृष्णा प्रतिपदा है । चाँदनी रात है ।
जिस कमरे में सिंहवाहिनी देवी की नित्यसेवा होती है उस कमरे में श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ उपस्थित हुए । सचन्दन पुष्पों और मालाओं द्वारा पूजित और विभूषित होकर देवी ने अपूर्व शोभा धारण की है । सामने पुजारी बैठे हुए हैं । प्रतिमा के सम्मुख दीप जल रहा है । सहचरों में से एक को श्रीरामकृष्ण ने रुपया चढ़ाकर प्रणाम करने कहा, क्योंकि देवता के दर्शन के लिए आने पर कुछ प्रणामी चढ़ानी चाहिए।
श्रीरामकृष्ण सिंहवाहिनी के सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं । आपके पीछे भक्तगण हाथ जोड़कर खड़े हैं। श्रीरामकृष्ण बड़ी देर तक दर्शन कर रहे हैं ।
क्या आश्चर्य है ! दर्शन करते हुए आप सहसा समाधिमग्न हो गए । पत्थर की मूर्ति की तरह निःस्तब्ध खड़े हैं । नेत्र निष्पलक हैं ।
काफी समय के बाद आपने लम्बी साँस छोड़ी । समाधि छूटी । नशे में मस्त हुए-से कह रहे हैं - “माँ चलता हूँ !” परन्तु चल नहीं पाते – उसी प्रकार खड़े हैं ।
फिर रामलाल से कहा, “तुम वह गाना गाओ – तभी मैं ठीक होऊँगा ।”
[যেন নেশায় মাতোয়ারা হইয়া বলিতেছেন, মা, আসি গো!কিন্তু চলিতে পারিতেছেন না — সেই একভাবে দাঁড়াইয়া আছেন।তখন রামলালকে বলিতেছেন — “তুমি ওইটি গাও — তবে আমি ভাল হব।”
With a long sigh he came back to the world of the senses and said, still intoxicated with divine fervour, "Mother, good-bye." But he could not leave the place. He remained standing there. Addressing Ramlal, he said: "Please sing that song. Then I shall be all right."]
रामलाल गाने लगे – “हे माँ हरमोहिनी, तूने संसार को भुलावे में डाल रखा है ।”
गीत समाप्त हुआ । अब श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ बैठकखाने की ओर आ रहे हैं । चलते हुए बीच बीच में कहते हैं – “माँ, मेरे हृदय में रहो, माँ ।”
यदु मल्लिक अपने लोगों के साथ बैठकखाने में बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण भावावस्था में ही हैं । आकर गा रहे हैं –গো আনন্দময়ী হয়ে আমায় নিরানন্দ করো না।
(भावार्थ)- “हे माँ, तुम आनन्दमयी होते हुए मुझे निरानन्द मत करना ।”
गीत समाप्त होने पर भावोन्मत्त होकर यदु से कहते हैं, “क्यों बाबू, क्या गाऊँ? – यह गाना गाऊँ? .... “माँ, आमिकि आटाशे छेले, आमि भय करिने चोख रांगाले ’ यह कहकर गाने लगे –
মা আমি কি আটাশে ছেলে।
আমি ভয় করিনে চোখ রাঙালে ৷৷
সম্পদ আমার ও রাঙাপদ শিব ধরেন যা হৃৎকমলে।
আমার বিষয় চাইতে গেলে বিড়ম্বনা কতই ছলে ৷৷
শিবের দলিল সই রেখেছি হৃদয়েতে তুলে।
এবার করব নালিশ নাথের আগে, ডিক্রি লর এক সওয়ালে ৷৷
জানাইব কেমন ছেলে মোকদ্দমায় দাঁড়াইলে।
যখন গুরুদত্ত দস্তাবিজ, গুজরাইব মিছিল চালে ৷৷
মায়ে-পোয়ে মোকদ্দমা, ধুম হবে রামপ্রসাদ বলে।
আমি ক্ষান্ত হব যখন আমায় শান্ত করে লবে কোলে ৷৷
[says Ramprasad. I shall not cease tormenting Thee; Till Thou Thyself shall yield the fight and take me in Thine arms at last.]
माये -पाये मुकदद्मा, धूम होबे रामप्रसाद बोले।
आमि क्षान्त होबो (और परेशान नहीं करूँगा) , जखन शान्त कोरे लेबे कोले !
(भावार्थ)-“माँ, क्या मैं तेरा अठमासा ^ बालक हूँ ? तेरे आँखें तरेरने से मैं नहीं डरता । शिव जिन्हें अपने हृदयकमल पर धारण करते हैं ,माँ , तेरे वही आरक्त चरण मेरी सम्पदा हैं ।.......”
(^समय से पहले का बच्चा आमतौर पर कमजोर और डरपोक होता है^A premature child is generally weak and fearful)
Mother, am I Thine eight-months4 child? Thy red eyes cannot frighten me!My riches are Thy Lotus Feet, which Siva holds upon His breast; Yet, when I seek my heritage, I meet with excuses and delays. A deed of gift I hold in my heart, attested by Thy Husband Siva; I shall sue Thee, if I must, and with a single point shall win. If Thou dost oppose me, Thou wilt learn what sort of mother's son I am. This bitterly contested suit between the Mother and Her son —What sport it is! says Ramprasad. I shall not cease tormenting Thee Till Thou Thyself shall yield the fight and take me in Thine arms at last.")
भाव का किंचित उपशम होने पर श्रीरामकृष्ण कहते हैं, “माँ का प्रसाद खाऊँगा ।” तब आपको सिंहवाहिनी का प्रसाद ला दिया गया ।
*The water of the Ganges cannot purify a wine-jar.*
यदु मल्लिक बैठे हैं । पास ही कुछ मित्र बैठे हुए हैं; कुछ खुशामद करनेवाले (flatterers) चाटुकार भी हैं, यदु मल्लिक की ओर मुँह कर श्रीरामकृष्ण कुर्सी पर बैठे हैं, और हँसते हुए बातचीत कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण के साथ आये हुए भक्तों में से कोई कोई बाजू के कमरे में हैं । मास्टर तथा और दो-एक भक्त श्रीरामकृष्ण के पास ही बैठे हैं ।
श्रीरामकृष्ण (सहास्य)— अच्छा, तुम भाँड़ (मुसाहब) क्यों रखते हो ?
['আচ্ছা, তুমি ভাঁড় রাখ কেন?
"Well, why do you keep these buffoons with you?" ']
यदु(सहास्य) — मुसाहब रखने में क्या हर्ज है ! क्या तुम उनका उद्धार नहीं करोगे ?
[ভাঁড় হলেই বা, তুমি উদ্ধার করবে না !
"Suppose they are. Won't you redeem them?"
श्रीरामकृष्ण(सहास्य)- शराब की बोतलों को गंगा भी पवित्र नहीं कर सकती !
( গঙ্গা মদের কুপোকে পারে না !
"The water of the Ganges cannot purify a wine-jar."
*‘मर्द का वचन जैसे हाथी का दाँत’- "मर्द वचन देकर पीछे नहीं हटता "*
['रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई']
[रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्व दिया गया है। In the Raghukul tradition, words have always been given more importance than life.]
यदु ने श्रीरामकृष्ण के सम्मुख घर में चण्डी-गान का आयोजन करने का वचन दिया था । बहुत दिन बीत गये, पर चण्डी-गान नहीं हुआ ।
[Jadu had promised the Master that he would arrange a recital of the Chandi in his house. Some time had elapsed, but he bad not yet kept his promise.
श्रीरामकृष्ण- क्यों जी, चण्डी-गान का क्या हुआ ?
यदु- कई तरह के काम-काज थे, इसीलिए इतने दिन नहीं हो पाया ।
"I have been busy with many things; I haven't been able to arrange it."
श्रीरामकृष्ण — यह क्या ! मर्द आदमी की एक जबान चाहिए ! ‘पुरुष की बात, हाथी का दाँत ।’ मर्द का वचन जैसे हाथी का दाँत , एक बार निकल गया तो भीतर नहीं होता , अर्थात मर्द की जबान एक होनी चाहिए – क्यों, ठीक है न ?
[ সে কি! পুরুষ মানুষের এককথা!“পুরুষ কি বাত, হাতি কি দাঁত। “কেমন, পুরুষের এককথা, কি বল?”
"How is that? A man gives his word and doesn't take it back! 'The words of a man are like the tusks of the elephant: they come out but do not go back.' A man must be true to his word. What do you say?"
यदु(सहास्य)- सो तो ठीक है ।
श्रीरामकृष्ण- तुम बड़े हिसाबी आदमी हो । बहुत हिसाब करके काम करते हो । ब्राह्मण की गाय-खाये कम, गोबर ज्यादा करे, और धर-धर दूध दे ! (सब हँसते हैं ।)
{ তুমি হিসাবী লোক। অনেক হিসাব করে কাজ কর, — বামুনের গড্ডী খাবে কম, নাদবে বেশি, আর হুড়হুড় করে দুধ দেবে! (সকলের হাস্য)
"You are a shrewd man. You do a thing after much calculation. You are like the brahmin who selects a cow that eats very little, supplies plenty of dung, and gives much milk." (All laugh.)
कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण यदु से कहते हैं, “समझ गया । तुम रामजीवनपुर की सिल के जैसे हो – आधी गरम, आधी ठण्डी । तुम्हारा मन ईश्वर की भी ओर है, और संसार की भी ओर ।
श्रीरामकृष्ण ने एक–दो भक्तों के साथ यदु के मकान पर फल, मिष्टान्न, खीर आदि प्रसाद ग्रहण किया । अब आप खेलात घोष के यहाँ जायेंगे ।
(४)
*खेलात घोष के मकान पर*
*अधिकांश कट्टर वैष्णव, वेदांतवादियों, शैव और शाक्त मत के विरोधी*
[Most of the staunch Vaishnavas are opponents of Vedantaists, Shaivism and Shakta school]
श्रीरामकृष्ण खेलात घोष के मकान में प्रवेश कर रहे हैं । रात के दस बजे होंगे । मकान और बड़ा आँगन चन्द्र के प्रकाश से आलोकित हो रहा है । भीतर प्रवेश करते हुए श्रीरामकृष्ण भावाविष्ट हो गए । साथ में रामलाल, मास्टर तथा और भी एक-दो भक्त हैं । मकान बहुत बड़ा और पक्का है । दुमँजले पर पहुँचने पर बरामदे से दक्षिण की ओर बहुत लम्बा जाकर, फिर पूर्व की ओर मुड़कर फिर उत्तर की ओर लम्बा रास्ता चलकर मकान के भीतरी हिस्से में पहुँचने पर ऐसा मालुम होने लगा कि मानो घर में कोई नहीं है – बड़े बड़े कमरे और सामने लम्बा बरामदा – सब खाली पड़ा है ।
श्रीरामकृष्ण को उत्तर-पूर्व ओर के एक कमरे में बैठाया गया । आप अब भी भावमग्न हैं । घर के जिन भक्त ने आपको बुला लाया है, उन्होंने आकर स्वागत किया । ये वैष्णव हैं । देह पर तिलक की छाप है और हाथ में जपमाला की गोमुखी । ये प्रौढ़ हैं । खेलात घोष के सम्बन्धी हैं । ये बीच बीच में दक्षिणेश्वर जाकर श्रीरामकृष्ण के दर्शन कर आते हैं । परन्तु किसी किसी वैष्णव का भाव अत्यन्त संकीर्ण होता है । वे शाक्तों या ज्ञानियों की बड़ी निन्दा किया करते हैं । श्रीरामकृष्ण अब वार्तालाप कर रहे हैं ।
[Their host was Khelat Ghosh's brother-in-law. He was an old man, a Vaishnava. His body was stamped with the name of God, according to the Vaishnava custom, and he carried in his hand a small bag containing his rosary. He had visited the Master, now and then, at Dakshineswar. But most of the Vaishnavas held narrow religious views; they criticized the Vedantists and the followers of the Siva cult. Sri Ramakrishna soon began to speak. ]
*श्रीरामकृष्ण का सर्वधर्मसमन्वय*
[एक-एक धर्ममत एक-एक पथ है जो ईश्वर की और ले जाता है]
*Every religion is a path that leads to God.*
श्रीरामकृष्ण(भक्तों के प्रति)- मेरा धर्म ठीक है और दूसरों का गलत – यह मत अच्छा नहीं । ईश्वर एक ही हैं, दो नहीं । उन्हीं को भिन्न भिन्न व्यक्ति भिन्न भिन्न नामों से पुकारते हैं । कोई कहता है गाड तो कोई अल्लाह, कोई कहता है कृष्ण, कोई शिव तो कोई ब्रह्म । जैसे तालाब में जल है । एक घाट पर लोग उसे कहते हैं, ‘जल’, दूसरे घाट पर कहते हैं ‘वाटर’, और तीसरे घाट पर ‘पानी’ । हिन्दू कहते हैं, ‘जल’, ख्रिश्चन कहते हैं ‘वाटर’ और मुसलमान ‘पानी’ – परन्तु वस्तु एक ही है । मत तो पथ हैं ।
एक-एक धर्ममत एक-एक पथ है जो ईश्वर की और ले जाता है । जैसे नदियाँ नाना दिशाओं से आकर सागर में मिल जाती हैं ।
[ শ্রীরামকৃষ্ণ (বৈষ্ণবভক্ত ও অন্যান্য ভক্তদের প্রতি) — আমার ধর্ম ঠিক, আর অপরের ধর্ম ভুল — এ মত ভাল না। ঈশ্বর এক বই দুই নাই। তাঁকে ভিন্ন ভিন্ন নাম দিয়ে ভিন্ন ভিন্ন লোকে ডাকে। কেউ বলে গড, কেউ বলে আল্লা, কেউ বলে কৃষ্ণ, কেউ বলে শিব, কেউ বলে ব্রহ্ম। যেমন পুকুরে জল আছে — একঘাটের লোক বলছে জল, আর-একঘাটের লোক বলছে ওয়াটার, আর-একঘাটের লোক বলছে পানি — হিন্দু বলছে জল, খ্রীষ্টান বলছে ওয়াটার, মুসলমান বলছে পানি, — কিন্তু বস্তু এক। মত — পথ। এক-একটি ধর্মের মত এক-একটি পথ, — ঈশ্বরের দিকে লয়ে যায়। যেমন নদী নানাদিক থেকে এসে সাগরসঙ্গমে মিলিত হয়।
"It is not good to feel that one's own religion alone is true and all others are false. God is one only, and not two. Different people call on Him by different names: some as Allah, some as God, and others as Krishna, Siva, and Brahman. It is like the water in a lake. Some drink it at one place and call it 'jal', others at another place and call it 'pani', and still others at a third place and call it 'water'. The Hindus call it 'jal', the Christians 'water', and the Mussalmans 'pani'. But it is one and the same thing. Opinions are but paths. Each religion is only a path leading to God, as rivers come from different directions and ultimately become one in the one ocean.]
“वेद, पुराण, तन्त्र – सब का प्रतिपाद्य विषय वही एक सच्चिदानन्द है । वेदों में सच्चिदानन्द ब्रह्म, पुराणों में सच्चिदानन्द कृष्ण, तन्त्रों में सच्चिदानन्द शिव कहा है । सच्चिदानन्द ब्रह्म, सच्चिदानन्द कृष्ण, सच्चिदानन्द शिव – एक ही हैं ।” सब चुप हैं ।
[“বেদ-পুরাণ-তন্ত্রে, প্রতিপাদ্য একই সচ্চিদানন্দ। বেদে সচ্চিদানন্দ (ব্রহ্ম)। পুরাণেও সচ্চিদানন্দ (কৃষ্ণ, রাম প্রভৃতি)। তন্ত্রেও সচ্চিদানন্দ (শিব)। সচ্চিদানন্দ ব্রহ্ম, সচ্চিদানন্দ কৃষ্ণ, সচ্চিদানন্দ শিব।”
"The Truth established in the Vedas, the Puranas, and the Tantras is but one Satchidananda. In the Vedas It is called Brahman, in the Puranas It is called Krishna, Rama, and so on, and in the Tantras It is called Siva. The one Satchidananda is called Brahman, Krishna, and Siva." ]
वैष्णव भक्त- महाराज, ईश्वर का चिन्तन भला क्यों करें ?
*जीवन्मुक्त । उत्तम भक्त । ईश्वरदर्शन के लक्षण*
श्रीरामकृष्ण- ईश्वर है, उन्हीं की इच्छा से सब कुछ हो रहा है – यह बोध यदि रहे तो फिर वह जीवन्मुक्त ही है । परन्तु सब में यह विश्वास नहीं होता, केवल मुँह से कहते हैं । यह विषयासक्त लोग सुन भर लेते हैं, इस पर विश्वास नहीं रखते ।
[শ্রীরামকৃষ্ণ — এ-বোধ যদি থাকে, তাহলে তো জীবন্মুক্ত। কিন্তু সকলের এটি বিশ্বাস নাই, কেবল মুখে বলে। ঈশ্বর আছেন, তাঁর ইচ্ছায় এ-সমস্ত হচ্ছে, বিষয়ীরা শুনে রাখে — বিশ্বাস করে না।
They simply talk. The worldly-minded have heard from someone that God exists and that everything happens by His will; but it is not their inner belief.
“विषयासक्त लोगों का ईश्वर कैसा होता है, जानते हो ? जैसे माँ-काकी का झगड़ा सुनकर बच्चे भी झगड़ते हुए कहते हैं, मेरे ईश्वर हैं ।
“क्या सभी लोग ईश्वर की धारणा कर सकते हैं? उन्होंने भले आदमी भी बनाए हैं और बुरे आदमी भी, भक्त भी बनाए हैं और अभक्त भी, विश्वासी भी बनाए हैं और अविश्वासी भी । उनकी लीला, में सर्वत्र विविधता है । उनकी शक्ति कहीं अधिक प्रकाशित है तो कहीं कम । सूर्य का तेज मिट्टी की अपेक्षा जल में अधिक प्रकाशित होता है, फिर जल की अपेक्षा दर्पण में अधिक प्रकाशित होता है ।
“फिर भक्तों के बीच अलग अलग श्रेणियाँ हैं – उत्तम भक्त, मध्यम भक्त, अधम भक्त । गीता में ये सब बातें हैं ।
[“সব্বাই কি তাঁকে ধরতে পারে? তিনি ভাল লোক করেছেন, মন্দ লোক করেছেন, ভক্ত করেছেন, অভক্ত করেছেন — বিশ্বাসী করেছেন, অবিশ্বাসী করেছেন। তাঁর লীলার ভিতর সব বিচিত্রতা, তাঁর শক্তি কোনখানে বেশি প্রকাশ, কোনখানে কম প্রকাশ। সূর্যের আলো মৃত্তিকার চেয়ে জলে বেশি প্রকাশ, আবার জল অপেক্ষা দর্পণে বেশি প্রকাশ।
“আবার ভক্তদের ভিতর থাক থাক আছে, উত্তম ভক্ত, মধ্যম ভক্ত, অধম ভক্ত। গীতাতে এ-সব আছে।
"Is it possible for all to comprehend God? God has created the good and the bad, the devoted and the impious, the faithful and the sceptical. The wonders that we see all exist in His creation. In one place there is more manifestation of His Power, in another less. The sun's light is better reflected by water than by earth, and still better by a mirror. Again, there are different levels among the devotees of God: superior, mediocre, and inferior. All this has been described in the Gita."
वैष्णव भक्त- जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण- अधम भक्त कहता है, - ईश्वर बहुत दूर आकाश में हैं । मध्यम भक्त कहता है, - ईश्वर सर्वभूतों में चेतना के रूप में, प्राण के रूप में विद्यान हैं। उत्तम भक्त कहता है, - ईश्वर स्वयं ही सब कुछ हुए हैं; जो भी कुछ दीख पड़ता है वह उन्हीं का एक एक रुप है; वे ही माया, जीव, जगत् आदि बने हैं; उनके सिवा दूसरा कुछ भी नहीं है ।
[ শ্রীরামকৃষ্ণ — অধম ভক্ত বলে, ঈশ্বর আছেন — ওই আকাশের ভিতর অনেক দূরে। মধ্যম ভক্ত বলে, ঈশ্বর সর্বভূতে চৈতন্যরূপে — প্রাণরূপে আছেন। উত্তম ভক্ত বলে, ঈশ্বরই নিজে সব হয়েছেন, যা কিছু দেখি ঈশ্বরের এক-একটি রূপ। তিনিই মায়া, জীব, জগৎ এই সব হয়েছেন — তিনি ছাড়া আর কিছু নাই।
"The inferior devotee says, 'God exists, but He is very far off, up there in heaven.' The mediocre devotee says, 'God exists in all beings as life and consciousness.' The superior devotee says: 'It is God Himself who has become everything; whatever I see is only a form of God. It is He alone who has become maya, the universe, and all living beings. Nothing exists but God.'"
वैष्णव भक्त- क्या ऐसी अवस्था किसी को प्राप्त होती है ?
[VAISHNAVA: "Does anyone ever attain that state of mind?"
श्रीरामकृष्ण- उनके दर्शन हुए बिना ऐसी अवस्था नहीं हो सकती । परन्तु दर्शन हुए हैं या नहीं इसके लक्षण हैं । दर्शन होने पर मनुष्य कभी उन्मत्तवत् हो जाता है – हँसता, रोता, नाचता, गाता है । फिर कभी बालकवत् हो जाता है – पाँच साल के बच्चे जैसी अवस्था ! सरल, उदार, अहंकार नहीं, किसी चीज पर आसक्ति नहीं, किसी गुण का वशीभूत नहीं, सदा आनन्दमय अवस्था है ! कभी वह पिशाचवत् बन जाता है – शुचि-अशुचि का भेद नहीं रहता, आचार अनाचार सब एक हो जाता है । फिर कभी वह जड़वत् हो जाता है – मानो कुछ देखकर स्तब्ध हो गया है ! इसी से किसी भी प्रकार का कर्म, किसी भी प्रकार की चेष्टा नहीं कर सकता ।
क्या श्रीरामकृष्ण स्वयं की ही अवस्थाओं की ओर संकेत कर रहे हैं ?
[শ্রীরামকৃষ্ণ — তাঁকে দর্শন না করলে এরূপ অবস্থা হয় না, কিন্তু দর্শন করেছে কিনা তার লক্ষণ আছে। কখনও সে উন্মাদবৎ — হাঁসে কাঁদে নাচে গায়। কখনও বা বালকবৎ — পাঁচ বৎসরের বালকের অবস্থা। সরল, উদার, অহংকার নাই, কোন জিনিসে আসক্তি নাই, কোন গুণের বশ নয়, সদা আনন্দময়। কখনও পিশাচবৎ — শুচি-অশুচি ভেদবুদ্ধি থাকে না, আচার-অনাচার এক হয়ে যায়! কখনও বা জড়বৎ, কি জেন দেখেছে! তাই কোনরূপ কর্ম করতে পারে না — কোনরূপ চেষ্টা করতে পারে না।
ঠাকুর শ্রীরামকৃষ্ণ কি নিজের অবস্থা সমস্ত ইঙ্গিত করিতেছেন?
One cannot attain it unless one has seen God. But there are signs that a man has had the vision of God. A man who has seen God sometimes behaves like a madman: he laughs, weeps, dances, and sings. Sometimes times he behaves like a child, a child five years old — guileless, generous, without vanity, unattached to anything, not under the control of any of the gunas, always blissful. Sometimes he behaves like a ghoul: he doesn't differentiate between things pure and things impure; he sees no difference between things clean and things unclean. And sometimes he is like an inert thing, staring vacantly: he cannot do any work; he cannot strive for anything."
Was the Master making a veiled reference to his own states of mind?
श्रीरामकृष्ण(वैष्णव भक्त से)- ‘तुम और तुम्हारा’ – यह ज्ञान है; ‘मैं और मेरा’ – यह अज्ञान ।
“हे ईश्वर तुम कर्ता हो, मैं अकर्ता’ – यही ज्ञान है । ‘हे ईश्वर, सब कुछ तुम्हारा है; देह, मन, घर, परिवार, जीव, जगत् – यह सब तुम्हारा ही है, मेरा कुछ नहीं’ – इसी का नाम ज्ञान है ।
“जो अज्ञानी है, वही कहता है कि ईश्वर ‘वहाँ’ – बहुत दूर हैं । जो ज्ञानी है, वह जानता है कि ईश्वर ‘यहाँ’ – अत्यन्त निकट, हृदय के बीच अन्तर्यामी के रूप में विराजमान हैं, फिर उन्होंने स्वयं भिन्न भिन्न रूप भी धारण किये हैं ।”
[ শ্রীরামকৃষ্ণ (বৈষ্ণবভক্তের প্রতি) — “তুমি আর তোমার” — এইটি জ্ঞান। “আমি আর আমার” — এইটি অজ্ঞান।“হে ঈশ্বর, তুমি কর্তা, আর আমি অকর্তা — এইটি জ্ঞান। হে ইশ্বর, তোমার সমস্ত — দেহ, মন, গৃহ, পরিবার, জীব, জগৎ — এ-সব তোমার, আমার কিছু নয় — এইটির নাম জ্ঞান।“যে অজ্ঞান সেই বলে, ঈশ্বর ‘সেথায় সেথায়’, — অনেক দূরে। যে জ্ঞানী, সে জানে ঈশ্বর ‘হেথায় হেথায়’ — অতি নিকটে, হৃদয়মধ্যে অন্তর্যামীরূপে, আবার নিজে এক-একটি রূপ ধরে রয়েছেন।”
"The feeling of 'Thee and Thine' is the outcome of Knowledge; 'I and mine' comes from ignorance. Knowledge makes one feel: 'O God, Thou art the Doer and I am Thy instrument. O God, to Thee belongs all — body, mind, house, family, living beings, and the universe. All these are Thine. Nothing belongs to me.'
"An ignorant person says, 'Oh, God is there — very far off.' The man of Knowledge knows that God is right here, very near, in the heart; that He has assumed all forms and dwells in all hearts as their Inner Controller."
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