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गुरुवार, 24 मई 2012

' नागरिकों का चरित्र-निर्माण किये बिना महान भारत के सपने देखना '

९प्रश्न: क्या केवल एक एक व्यक्ति की उन्नति होने से समाज की सामग्रिक उन्नति होना कभी संभव हो सकता है  ?
उत्तर : मैं थोड़े में उत्तर देने की चेष्टा करता हूँ. व्यक्ति के मन को 
परिवर्तित करने या संयमित रखने में प्रगति करने के साथ ही साथ सामाज की सामग्रिक उन्नति हो ही जाएगी, ऐसी कोई बात नहीं है। किन्तु यह बात बिलकुल तय है कि- 'व्यक्ति'  की उन्नति न होने से ' समाज ' की उन्नति कभी नहीं हो सकती है।  क्योंकि व्यक्तियों के द्वारा ही समाज बनता है. 

व्यक्ति यदि स्वयं नीचे (पशु अवस्था में ) पड़ा रहे तो समाज कभी उन्नत नहीं हो सकता है। किन्तु यदि किसी समाज में कुछ थोड़े से व्यक्ति ही उन्नत हों, तो उतने से ही समस्त समाज उन्नत होगया -ऐसा नहीं कहा जा सकता है। ' नागरिकों का चरित्र-निर्माण किये बिना महान भारत के सपने देखना ' अव्यवहारिक विचार है।

 यदि बहुत से लोग व्यक्तिगत तौर पर उन्नत हो चुके हैं, तो समाज अवश्य उन्नत हो जायेगा।क्या केवल व्यक्ति की उन्नति समाज को उन्नत बनाने में सहायक हो सकती है? अवश्य हो सकती है. क्योंकि व्यक्ति के उन्नत होने से ही उसका प्रभाव समाज के उपर अवश्य पड़ता है। तथा व्यक्ति की उन्नति नहीं होने से समाज की उन्नति कभी नहीं हो सकती. 
व्यक्ति जिस अवस्था में पड़ा हुआ है, उसे वैसा ही पड़ा छोड़ कर केवल समाज की उन्नति की परियोजना बनाना हवा में महल खड़ा करने जैसा है, पूरी तरह से ' Utopian-idea ' (अव्यवहारिक विचार) है, वैसा कभी नहीं हो सकता है।

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