१६.प्रश्न : वेदान्त के आदर्श को " सनातन " कहा जाता है. किन्तु वर्तमान युग के सामरिक-शक्ति का जो विध्वंशकारी रूप दिख रहा है, वह क्या सनातन भारतीय अध्यात्मिक प्रवाह को बचा रहने देगा ?
उनका यह
कथन मानव-चरित्र की दुर्बलता को उजागर करता है. " हमलोग मोहग्रस्त हो चुके
थे, विज्ञान का बहिर्गामी परिणाम ही हमलोगों को संचालित कर रहा था. हमलोग
यह समझ रहे थे कि यह अधर्म होगा, किन्तु फिर भी उस लालसा पूरी करने की
मनोवृत्ति से अपने को अलग नहीं कर पा रहे थे. " जिस समय मनुष्य के चरित्र में दुर्बलता आ जाती है, उस समय यह अवस्था हो सकती है. "
इस समय के वैज्ञानिक तो ' ऐन्टी-मैटर बम ' की बात कह रहे हैं ! वह केवल जीवन ही नहीं, पुरे प्रदेश के भूखण्ड को शून्य में विलीन कर सकता है. वे वैज्ञानिक गण यदि उस समय भारत के सनातन वेदान्त आदर्श को ग्रहण कर लेते, या आजकल के वैज्ञानिक गण भी इसे ग्रहण कर लें, तभी वे इस विनाशकारी खेल से अपने को अलग हटा सकते हैं।
चरित्र के गुणों को समझाया जाय, तभी वे समझ सकेंगे कि मनुष्य का क्या कर्तव्य होता है, और वे मानवता के कल्याण के लिये कार्य करेंगे. इसीलिए वेदान्त की ' सनातन ' भावना का कोई कभी, विनाश नहीं कर सकता, बल्कि क्रमशः सम्पूर्ण विश्व इसको स्वीकार कर लेगा, तथा वेदान्त की दिशा में अग्रसर होता रहेगा. सबसे अंतिम वैज्ञानिक आविष्कार के विषय में एक सबसे आधुनिक खगोल-वैज्ञानिक (Astronomer) ने एक पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसमें आधुनिक वैज्ञानिकों पर वेदान्त के प्रभाव को क्रमशः स्पष्टर होते देखा जा सकता है. इसीलिए वेदान्त की महिमा और किसी बात के लिये नहीं है, केवल मानव-जाती के कल्याण के लिये है- इस बात को बहुत से वैज्ञानिक स्वीकार करने लगे हैं, तथा इसे ग्रहण भी कर रहे हैं. इस पुस्तक में वेदान्त का इतने गहराई से विश्लेषण किया गया है, कि पढ़ने से आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है.
इसीलिए जड़-शक्ति के विध्वंशकारी रूप वेदान्त के सनातन प्रवाह को कभी रुद्ध नहीं कर सकता है, बल्कि केवल उसका अभ्यास करने से ही वैज्ञानिक आविष्कार यथार्थ मानव-कल्याण में नियोजित हो सकेगा, सच्ची शुभ शक्तियों के आविष्कार से ही मानव-समाज का कल्याण साधित हो सकता है.
उत्तर : इस
कथन को विपरीत दिशा से देखने की चेष्टा की जाय, तो शायद सही रूप में समझा
जा सकेगा. वर्तमान समय में सामरिक-शक्ति का जितना विध्वंशकारी रूप हमलोग
देख पा रहे हैं, उससे भी भयंकर विनाशकारी शक्तियों का आविष्कार हमलोगों ने
कर लिया है. रासायनिक हथियार, गैस एवं लेजर युक्ति (Laser Device) तो
न्यूक्लिअर बम से भी अधिक विध्वंशकारी हो जायेंगे.
जिनलोगों ने ऐटम बम का
अविष्कार किया था, उन्होंने हाल में ही कुछ अपराध-स्वीकरण भी किया है।
उनलोगों
ने कहा था- ' वे लोग जैसे जैसे इस दिशा में अग्रसर हो रहे थे, उनके समक्ष
इसके प्रयोग का विध्वंशकारी रूप भी प्रकट होता जा रहा था. इसके विनाशकारी
दुष्परिणाम को वे लोग पहले से ही जान चुके थे. मनुष्य के जीवन पर इसका कैसा
भयानक एवं कष्टदायक परिणाम होगा, इसका पूर्वानुमान उन्हें हो चूका था. उन्होंने कहा है- ' किन्तु उस समय हमलोगों के मन पर एक तरह का जूनून
(passion) सवार हो गया था, कि इस इस अविष्कार को प्रोयोग करना ही होगा.
इसका परिणाम समाज के लिए अत्यन्त विनाशकारी होगा, यह जानबूझ कर भी हमलोग हर
हाल में इसका आखिरी पर्दा उठा कर देखने के जूनून के वशीभूत हो गये थे.'
इस समय के वैज्ञानिक तो ' ऐन्टी-मैटर बम ' की बात कह रहे हैं ! वह केवल जीवन ही नहीं, पुरे प्रदेश के भूखण्ड को शून्य में विलीन कर सकता है. वे वैज्ञानिक गण यदि उस समय भारत के सनातन वेदान्त आदर्श को ग्रहण कर लेते, या आजकल के वैज्ञानिक गण भी इसे ग्रहण कर लें, तभी वे इस विनाशकारी खेल से अपने को अलग हटा सकते हैं।
चरित्र के गुणों को समझाया जाय, तभी वे समझ सकेंगे कि मनुष्य का क्या कर्तव्य होता है, और वे मानवता के कल्याण के लिये कार्य करेंगे. इसीलिए वेदान्त की ' सनातन ' भावना का कोई कभी, विनाश नहीं कर सकता, बल्कि क्रमशः सम्पूर्ण विश्व इसको स्वीकार कर लेगा, तथा वेदान्त की दिशा में अग्रसर होता रहेगा. सबसे अंतिम वैज्ञानिक आविष्कार के विषय में एक सबसे आधुनिक खगोल-वैज्ञानिक (Astronomer) ने एक पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसमें आधुनिक वैज्ञानिकों पर वेदान्त के प्रभाव को क्रमशः स्पष्टर होते देखा जा सकता है. इसीलिए वेदान्त की महिमा और किसी बात के लिये नहीं है, केवल मानव-जाती के कल्याण के लिये है- इस बात को बहुत से वैज्ञानिक स्वीकार करने लगे हैं, तथा इसे ग्रहण भी कर रहे हैं. इस पुस्तक में वेदान्त का इतने गहराई से विश्लेषण किया गया है, कि पढ़ने से आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है.
इसीलिए जड़-शक्ति के विध्वंशकारी रूप वेदान्त के सनातन प्रवाह को कभी रुद्ध नहीं कर सकता है, बल्कि केवल उसका अभ्यास करने से ही वैज्ञानिक आविष्कार यथार्थ मानव-कल्याण में नियोजित हो सकेगा, सच्ची शुभ शक्तियों के आविष्कार से ही मानव-समाज का कल्याण साधित हो सकता है.
{ इसलिए स्वामी विवेकानन्द ने कहा था- " क्या भारत मर जायेगा?
तब तो संसार से सारी आध्यात्मिकता का समूल नाश हो जायेगा, सारे
सदाचारपूर्ण आदर्श जीवन का विनाश हो जायेगा, धर्मों के प्रति सारी मधुर
सहानुभूति नष्ट हो जाएगी, सारी संवेदनशीलता का भी लोप हो जायेगा. और उसके
स्थान में कामरूपी देव और विलासितारुपी देवी राज्य करेगी. धन उनका पुरोहित होगा.प्रतारणा,पाशविक बल और प्रतिद्वंद्विता, ये ही उनकी पूजा-पद्धति होगी और मानव-आत्मा उनकी बलि-सामग्री हो जाएगी.
ऐसी दुर्घटना कभी हो नहीं सकती....क्या वह कभी मर जायेगा ?..वह देश जिसमें ऋषिगण विचरण करते रहे हैं, जिस भूमि में देवतुल्य मनुष्य अभी भी जीवित और जाग्रत हैं, क्या मर जायेगा ? ..मुझे अगर आप दिखा सकते हों तो ऐसे पुरुष (नवनीदा) दूसरे देशों में भी दिखा दीजिये;..मैं आपके पीछे पीछे ..चलूँगा. ")
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