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Tuesday, May 22, 2012

शिक्षा का मुख्य विषय: चरित्र-निर्माण ! [***2] परिप्रश्नेन

२. प्रश्न : मनुष्य को अच्छा क्यों बनना चाहिए ? इसके पीछे तर्क क्या है ? जब सभी लोग एन केन 
प्रकारेन धन कमाने की होड़ में दौड़ रहे हों, तब मुझी को अच्छा  क्यों बनना चाहिए ?
उत्तर :  अच्छा प्रश्न है. क्योंकि वर्तमान समाज ने हमलोगों को हर तरीके से यह समझा दिया है कि अच्छा लड़का बनने से कोई लाभ नहीं है, अच्छा बनना तो मुर्खता है, इसीलिए अब हमलोगों ने सदाचार के विचार को ही अपने जीवन से बाहर कर दिया है.पाश्चात्य सभ्यता की नकल करते हुए हमलोग भी अधिक से अधिक भोगवादी बनने के लिए आपस में स्पर्धा कर रहे हैं. तथा स्वयं को आधुनिक होने का दावा करते हैं, इसीलिए बिना युक्ति-तर्क किये किसी भी नये विचार को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। अतः यह बहुत स्वाभाविक है कि हमलोग यह जानना चाहें कि अच्छा बनने के पीछे तर्क क्या है ?  
तर्क अत्यन्त सरल है. यदि अच्छा मनुष्य नहीं बनेंगे तो यह जीवन (यह सुनहरा मौका ?) नष्ट हो जायेगा, व्यर्थ चला जायेगा, मनुष्य-जन्म सार्थक नहीं हो सकेगा. जीवन का मूल्य नहीं मिलेगा. बुरे कार्यों
का समर्थन करते करते, बुद्धि कुत्सित हो जाएगी, मन संकीर्ण हो जायेगा, स्वार्थपरता एवं प्रतियोगिता के विचारों से ग्रस्त होकर हम अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरों का अमंगल करने में करेंगे. मेरे द्वारा दूसरों का कल्याण होने के बजाय हानी होगी, और मेरा जीवन भी क्रमशः पूरी तरह से बर्बाद हो जायेगा. समाज में बुरे लोगों की संख्या में क्रमशः बढ़ोत्तरी होते रहने के कारण ही समाज में इतना दुःख-कष्ट है. जैसे जैसे अच्छे (चरित्रवान) मनुष्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, वैसे वैसे जनसाधारण के दुःख-कष्ट में भी कमी  होती जाएगी. इसीलिए सबसे पहले मुझे अच्छा (चरित्रवान ) मनुष्य बनने का प्रयास करना चाहिए. यदि हमलोग दूसरों का कल्याण करना चाहते हों तो स्वयं अच्छा मनुष्य बनने के सिवा अन्य कोई उपाय नहीं है. यदि मनुष्य अच्छा (चरित्रवान ) नहीं बन सका तो प्रजातंत्र, समाजवाद, कानून, सरकार, पुलिस  कुछ नहीं कर पायेगी. इसीलिए प्रत्येक को अच्छा बनने का प्रयास करने के आलावा अपना या समाज के कल्याण का दूसरा कोई उपाय नहीं है. जो लोग देश को चलाते हैं, या सामान्य नागरिक उनके मार्गदर्शन में चलते हैं, किसी की बुद्धि में यह साधारण सी युक्ति नहीं घुसती है. वे इस सरल युक्ति को समझने की चेष्टा करने भी कतराते हैं. क्योंकि राजनीती, राजनीती से प्रभावग्रस्त वर्तमान शिक्षा प्रणाली तथा जनसम्पर्क के समस्त माध्यम (मिडिया) इसके उलट विषयों को ही युवाओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं. चरित्रवान मनुष्य बनने की अनिवार्यता तथा उपायको, सम्पूर्ण विश्व की मानवता के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए ही १७५ वर्ष पूर्व (१८३६ ई० ) में श्रीरामकृष्ण आविर्भूत हुए थे. उनके साथ श्रीश्री माँ सारदा देवी तथा स्वामी विवेकानन्द भी आये थे. 
जिसके फलस्वरूप  केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अच्छा मनुष्य बनने की अनिवार्यता के पीछे क्या तर्क है, उसमें क्रमशः शक्ति संचारित हो रही है. जिसके कारण सर्व-मानव कल्याण की सम्भावना का अरुणोदय हो रहा है.यह सरल युक्ति भी जिसकी बुद्धि में प्रविष्ट नहीं होती, वे कैसे मनुष्य हैं- यह चिन्तनीय विषय है।

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