54. प्रश्न : स्वामीजी की जीवनी में पढ़ा हूँ, ठाकुर कह रहे हैं-" अभी तक तुम्हें संदेह है ? जो राम, जो कृष्ण वही वर्तमान समय में रामकृष्ण हैं, किन्तु तुम्हारे वेदांत की दृष्टि से नहीं। " - इस कथन का मर्म क्या है?
उत्तर : संक्षेप में कहने से हमलोग राम, कृष्ण आदि को भगवान का अवतार मानते हैं। ' तुम्हे अभी तक
संदेह है ? ' का अर्थ है - उनके गुरु ' ठाकुर ' भी अवतार हैं, इस विषय में स्वामीजी के मन में अंतिम समय तक, संदेह रह गया है, उसे स्वामीजी अपने मुख से बोल नहीं रहे हैं, किन्तु ठाकुर अपनी बोध-शक्ति से अनुभव कर लिए हैं। उनकी उसी शंका के विषय में अपनी बोध-शक्ति के द्वारा जानकर पूछते हैं- 'तुम्हें अभी
तक संदेह है ? '
संदेह है ? ' का अर्थ है - उनके गुरु ' ठाकुर ' भी अवतार हैं, इस विषय में स्वामीजी के मन में अंतिम समय तक, संदेह रह गया है, उसे स्वामीजी अपने मुख से बोल नहीं रहे हैं, किन्तु ठाकुर अपनी बोध-शक्ति से अनुभव कर लिए हैं। उनकी उसी शंका के विषय में अपनी बोध-शक्ति के द्वारा जानकर पूछते हैं- 'तुम्हें अभी
तक संदेह है ? '
जो राम हुए थे, जो कृष्ण हुए थे, वे ही अभी एक आधार में रामकृष्ण हुए हैं। वे अभी इस शरीर में हैं-अर्थात
वे लोग जिस प्रकार अवतार थे, वे भी उसी प्रकार अवतार हैं, ठाकुर अपने ही बारे में बता रहे हैं।
वे लोग जिस प्रकार अवतार थे, वे भी उसी प्रकार अवतार हैं, ठाकुर अपने ही बारे में बता रहे हैं।
किन्तु इसके साथ थोडा जोड़ दे रहे हैं- ' किन्तु तेरे वेदांत की दृष्टि से नहीं।' क्योंकि वेदांत के मतानुसार
प्रत्येक मनुष्य ही ब्रह्म है। शंकराचार्य के अनुसार वेदांत का संदेश, एक ही श्लोक में सिमटा हुआ है।
प्रत्येक मनुष्य ही ब्रह्म है। शंकराचार्य के अनुसार वेदांत का संदेश, एक ही श्लोक में सिमटा हुआ है।
" ब्रह्म सत्यम जगन मिथ्या,जिवो ब्रम्हैव ना परः "
उसके आधार पर तुम्हारे राम जो हैं, कृष्ण भी वे ही हैं, इतना ही क्यों समस्त अवतार भी वे ही हैं। समस्त
मनुष्य भी वे ही हैं। अवतार का अर्थ है- भगवान मनुष्य का रूप धारण कर स्वयं अवतार लिए हैं। नर रूप
धारण करके अवतरित हुए हैं। प्रत्येक मनुष्य भगवान का ही रूप है इसमें कोई संदेह नहीं है। किन्तु मनुष्य में वे भगवान या ब्रह्म परिपूर्ण रूप से प्रकशित नहीं हैं।
ठाकुर के कथन ' वेदांत की दृष्टि से नहीं .' का अर्थ है- जिस अर्थ में राम को अवतार कहा जाता है, कृष्ण को
अवतार कहा जाता है, जिस अर्थ में अवतार को अवतार कहकर स्वीकृत किया जाता है, उसी अर्थ में किसी
अवतार कहा जाता है, जिस अर्थ में अवतार को अवतार कहकर स्वीकृत किया जाता है, उसी अर्थ में किसी
मंगरा-बुधना-शुक्रा को भी अवतार नहीं कहा जाता,- वे उसी अर्थ में अवतार हैं ! वेदांत के मतानुसार जो कहा
गया कि सबों के भीतर ब्रह्म हैं- उस अर्थ में नहीं।जिस अर्थ में श्रीराम और श्रीकृष्ण को अवतार कहा जाता है, श्रीरामकृष्ण भी उसी अर्थ में अवतार है।
सच्चिदानन्द का घनीभूत समुद्र क्या धरती पर अवतरित हो सकता है? इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने श्रीरामकृष्ण को अवतार-वरिष्ठ कहा है।
सच्चिदानन्द का घनीभूत समुद्र क्या धरती पर अवतरित हो सकता है? इसीलिये स्वामी विवेकानन्द ने श्रीरामकृष्ण को अवतार-वरिष्ठ कहा है।
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भगवान् को लाभ करना हो तो संसार से तीव्र-वैराग्य चाहिये। जो कुछ ईश्वर के मार्ग के विरोधी मालूम हो, उसे तत्क्षण त्यागना चाहिये। पीछे होगा यह सोच कर छोड़ रखना ठीक नहीं है। काम-काँचन ईश्वर-मार्ग के विरोधी हैं। उनसे मन हटा लेना चाहिये। भगवान् को लाभ करना हो तो संसार से तीव्र-वैराग्य चाहिये। जो कुछ ईश्वर के मार्ग के विरोधी मालूम हो, उसे तत्क्षण त्यागना चाहिये। पीछे होगा यह सोच कर छोड़ रखना ठीक नहीं है। कामिनी-काँचन ईश्वर-मार्ग के विरोधी हैं। उनसे मन हटा लेना चाहिये।
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