३२.प्रश्न : हमलोग अपनी अन्तर्निहित असीम शक्ति को अपने दैनंदिन जीवन में किस प्रकार प्रयुक्त कर सकते हैं ?
उत्तर
: उसी प्रकार प्रयोग करेंगे, जिस प्रकार हमलोग सर्वदा उसे अपने समस्त
क्रिया-कलाप में प्रयोग कर रहे हैं. क्या हमलोग अपनी शक्ति को प्रयुक्त
किये बिना एक क्षण भी जीवित रह सकते हैं ? हमलोग सो रहे हैं, जागे हुए हैं,
विभिन्न प्रकार के कार्यों को कर रहे हैं, विद्या अर्जित कर रहे हैं, अर्थ
उपार्जन कर रहे हैं, विभिन्न प्रकार के भोगों को भोग रहे हैं,जीवन में जो
कुछ भी कर रहे हैं, वह सब हम अपनी शक्ति
का व्यवहार करके ही कर रहे हैं। क्योंकि बिना शक्ति को खर्च किये कोई कार्य नहीं किया जा सकता है; विज्ञान के छात्र इस बात को आसानी से समझ सकते हैं।
का व्यवहार करके ही कर रहे हैं। क्योंकि बिना शक्ति को खर्च किये कोई कार्य नहीं किया जा सकता है; विज्ञान के छात्र इस बात को आसानी से समझ सकते हैं।
इसी
लिए हमलोग अपने जीवन में जो कुछ भी कर रहे हैं, उसमें किसी न किसी प्रकार से शक्ति खर्च हो ही
रही है, किसी शक्ति का क्षय हो रहा है।शक्ति को सर्वदा ही हमलोग किसी न किसी क्रिया-कलाप में खर्च करते ही रहते हैं। तो कुछ लोग सोच सकते हैं, कि हमलोगों के लिये इसमें सीखने जैसी की क्या बात है ?
हमें यही सीखना है, कि हमें अपनी शक्ति किस कार्य में खर्च करनी चाहिए, और किस कार्य में कितनी शक्ति खर्च करनी चाहिए? इसी औचित्य-बोध या विवेक-विचार का प्रयोग कैसे किया जाता है, इसी को सीखना
होगा। इसके साथ साथ यह कौशल भी सीखना होगा कि कैसे मैं अपनी शक्ति को और अधिक प्रकट कर सकता हूँ, तथा शक्ति को और अधिक कैसे बढ़ा सकता हूँ ?
[ " दाद को खुजलाने समय तो आराम मालूम होता है पर बाद में उस जगह असह्य जलन होने लगती है। संसार के भोग भी ऐसे ही हैं, शुरू-शुरू में तो वे बड़े ही सुखप्रद मालूम होते हैं परन्तु बाद में उनका परिणाम अत्यन्त भयंकर और दुःख मय होता है। " ॐ तत सत ]
रही है, किसी शक्ति का क्षय हो रहा है।शक्ति को सर्वदा ही हमलोग किसी न किसी क्रिया-कलाप में खर्च करते ही रहते हैं। तो कुछ लोग सोच सकते हैं, कि हमलोगों के लिये इसमें सीखने जैसी की क्या बात है ?
हमें यही सीखना है, कि हमें अपनी शक्ति किस कार्य में खर्च करनी चाहिए, और किस कार्य में कितनी शक्ति खर्च करनी चाहिए? इसी औचित्य-बोध या विवेक-विचार का प्रयोग कैसे किया जाता है, इसी को सीखना
होगा। इसके साथ साथ यह कौशल भी सीखना होगा कि कैसे मैं अपनी शक्ति को और अधिक प्रकट कर सकता हूँ, तथा शक्ति को और अधिक कैसे बढ़ा सकता हूँ ?
[ " दाद को खुजलाने समय तो आराम मालूम होता है पर बाद में उस जगह असह्य जलन होने लगती है। संसार के भोग भी ऐसे ही हैं, शुरू-शुरू में तो वे बड़े ही सुखप्रद मालूम होते हैं परन्तु बाद में उनका परिणाम अत्यन्त भयंकर और दुःख मय होता है। " ॐ तत सत ]
शक्ति
को वास्तव में बढ़ाया नहीं जा सकता है। इसका रूपांतरण हो जाता है। हमलोग
जो बीच बीच में कहते हैं- विदुत का निर्माण हो रहा है. क्या विद्युत् का
निर्माण किया जाता है ? नहीं, इसका निर्माण नहीं किया जाता. किसी पहाड़ी
झरने के मुख को खोल देने जैसा. झरने का स्रोत है, उसका प्रवाह कहीं से भी
फूट सकता है, केवल उसके मुख को खोल देने की जरूरत है।
उसी तरह हमारी शक्ति बाँधा नहीं जा सकता, हमारे भीतर में अनन्त शक्ति का स्रोत है, केवल उसके प्रस्रवण के द्वार को खोल देना है। जैसे ही हम उस द्वार को ( अहम् को) खोल देंगे, शक्ति का झरना फूट पड़ेगा.
उसी तरह हमारी शक्ति बाँधा नहीं जा सकता, हमारे भीतर में अनन्त शक्ति का स्रोत है, केवल उसके प्रस्रवण के द्वार को खोल देना है। जैसे ही हम उस द्वार को ( अहम् को) खोल देंगे, शक्ति का झरना फूट पड़ेगा.
शक्ति
को कैसे बढ़ाया जा सकता है, का अर्थ हुआ यह जान लेना कि उस प्रवाह
के द्वार को किस प्रकार चौड़ा करके खोला जा सकता है?
फिर भी यह ध्यान रखना होगा, कि उसको खोल देने पर वह कहीं अपनी इच्छा से सबकुछ को बहाती हुई न निकल जाये? इसीलिए उस शक्ति को खीँच कर बाहर प्रवाहित कराने के साथ साथ, उसको नष्ट होने से बचा कर रखना, तथा उसको औचित्य-बोध की सहायता से विवेक-विचार करके किसी विशिष्ट कार्य में कैसे नियोजित किया जाय? उर्जा का सदुपयोग कैसे करें,यही सीखने की आवश्यकता है। परिप्रश्नेन
फिर भी यह ध्यान रखना होगा, कि उसको खोल देने पर वह कहीं अपनी इच्छा से सबकुछ को बहाती हुई न निकल जाये? इसीलिए उस शक्ति को खीँच कर बाहर प्रवाहित कराने के साथ साथ, उसको नष्ट होने से बचा कर रखना, तथा उसको औचित्य-बोध की सहायता से विवेक-विचार करके किसी विशिष्ट कार्य में कैसे नियोजित किया जाय? उर्जा का सदुपयोग कैसे करें,यही सीखने की आवश्यकता है। परिप्रश्नेन
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