२ अक्टूबर को ही मोहनदास करमचन्द गाँधी एवं स्वामी अभेदानन्द दोनों का जन्मदिन है. साल-तारीख की दृष्टि से गाँधीजी, स्वामी अभेदानांदजी से ३ वर्ष छोटे थे. स्वामी अभेदानन्दजी का जन्म, २अक्तूबर, सन १८६६ ई० को हुआ था, एवम् गाँधीजी १८६९ ई० को उसी दिन जन्म ग्रहण किए थे.
स्वामी अभेदानन्दजी के समान गाँधीजी में भी बचपन से ही, एक आध्यात्मिक मानसिकता दिखाई देती है. गाँधीजी
को बचपन से ही रामायण की कथा-कहानियों को सुनने का मौका मिला था. पढ़ने
लिखने में अच्छे छात्र थे. किन्तु बचपन से ही 'सत्य-निष्ठा' के प्रति उनमें
विशेष अभिरुचि दिखाई देती थी. इसीलिए बिलायत से लॉ (बैरिस्टरी की परीक्षा)
पास करने पर भी, आध्यात्मिक चेतना के माध्यम से सत्य को प्रतिष्ठित करना
ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था.
इसीलिए
परवर्तिकाल में उन्होंने 'सत्याग्रह' को एक नीति के रूप में परिणत कर दिया
था . उनकी यही नीति देश के स्वतंत्रता संग्रामियों को अनुप्रेरित करती थी.
उन्होंने अहिंसा के मार्ग से लड़े जाने वाले संग्राम के इतिहास में
'नमक-सत्याग्रह', 'असहयोग आन्दोलन', ' विदेशी सामग्री-वर्जन' अभियान एवम्
सबसे अंत में ' भारत छोड़ो' आन्दोलन आदि के मध्यम से विश्व के समक्ष नये
विचार प्रस्तुत किए थे. स्वदेशी मनोभावापन्न भारत वासियों को इस संग्रामी
देशसेवक गाँधीजी ने आन्दोलित किया था.
उसि
प्रकार स्वामी अभेदानन्द भारतमाता के एक विशिष्ठ आध्यात्मवादी सन्तान थे.
उन्होंने ' India and her people ' - नामक पुस्तक की रचना की थी. इस पुस्तक
को पढ़ने से भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में स्वदेश-प्रेम की वृद्धि
होती थी. इसीलिए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक को निसिद्ध (Band)
घोषित कर दिया था. स्वामी अभेदानन्दजी एवम् महात्मा गाँधी दोनों का हृदय
आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था. एवम् सत्य को प्रतिष्ठित करने के लिये दोनों
में एक विशेष निष्ठा थी.
स्वामी अभेदानन्दजी का जन्म कोलकाता में हुआ था, किन्तु परवर्तिकाल में वे श्रीरामकृष्ण का शिष्यत्व ग्रहण करके अपने गुरुभाई स्वामी विवेकानन्द के आह्वान पर, पाश्चात्य देशों में भारत के वेदान्तिक धर्म-दर्शन एवं संस्कृति का प्रचार करने में १८९६ से १९२१ ई० तक व्यस्त रहे थे.
स्वामी अभेदानन्दजी का जन्म कोलकाता में हुआ था, किन्तु परवर्तिकाल में वे श्रीरामकृष्ण का शिष्यत्व ग्रहण करके अपने गुरुभाई स्वामी विवेकानन्द के आह्वान पर, पाश्चात्य देशों में भारत के वेदान्तिक धर्म-दर्शन एवं संस्कृति का प्रचार करने में १८९६ से १९२१ ई० तक व्यस्त रहे थे.
उधर
धार्मिक-गाँधीजी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर में होने के कारण,
आध्यात्मवादी अभेदानन्दजी के साथ उतना घनिष्ट परिचय होने का अवसर नहीं मिला
था. अमेरिका में दीर्घकाल तक प्रचार-कार्य करने के बाद १९२१ ई० में स्वामी अभेदानन्दजी भारत लौट आये थे. तत्पश्चात १९२५ ई० में उन्होंने दार्जलींग में ' रामकृष्ण वेदान्त आश्रम ' की स्थापना की थी.
दार्जलींग में रहते समय ही वे देशबन्धु चितरंजन दास को उनके दार्जलींग वाले निवास पर देखने के लिए गये थे. क्योंकि ' स्वराज्य पार्टी ' के प्रमुख सदस्य चितरंजन दास उस समय बहुत बीमार थे.
किन्तु
महात्मा गाँधी के साथ भी चितरंजन दास का बहुत घनिष्ट सम्बंध था. इसीलिए वे
भी देशबन्धु चितरंजन दास को देखने के लिए उनके दार्जलींग स्थित निवास पर
गये थे. इसी समय चितरंजन दास के आवास पर उन दोनों का परिचय हुआ था. यहाँ के
एकांत वातावरण में उन दोनों के बीच जो बातें हुई थीं, उनको
अभेदानन्दजी ने अपने डायरी में लिख लिया था. गाँधीजी के साथ उनकी बातचीत
अँग्रेज़ी में हुई थी, किन्तु वे स्वयम् ही उस पूरे वार्तालाप को बांग्ला
में अनुवाद करके लिख लिए थे.
{Gandhiji at the Hill Cart Road near Kak Jhora }
with
Anne Beasant and Deshbandhu Chitranjan Das in 1924. One can see the
Toy Train track running alongside the road as well as a hand-driven
rickshaw behind. Fallen Cicada - Unwritten History of Darjeeling Hills by Barun Roy}
[ In the Swami’s Bengali Biography by Swami Sankrananda, the following conversation between Swami Avedananda and Mahatma Gandhi which took place in Darjeeling has been recorded.] Swami Abhedadananda - “I have come from America to become personally acquainted with you and your movement.”
१९२४
ई० में जब देशबंधु चितरंजन दास के निवास पर अभेदानन्दजी के साथ जब
गाँधीजी की पहली मुलाकात हुई थी, अभेदानन्दजी ने उनसे कहा था- " मैं आपसे
तथा आपके आन्दोलन से, प्रत्यक्ष रूप से परिचित होने के लिए अमेरिका से आया
हूँ . " Gandhiji - “Why have you come from America to see me?”
इस
बात को सुन कर गाँधीजी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था- " केवल मेरे
साथ परिचित होने के लिए आप, इतनी दूर - अमेरिका से यहाँ क्यों आये हैं ? "
अभेदानन्दजी १८९६ से लेकर १९२१ ई० तक, कुल २५ वर्षों तक अमेरिका में थे. किन्तु इसी दौरान भारतवासियों में स्वदेशप्रेम जाग्रत कराने के उद्देश्य से सन् १९०६ ई० में ६ महीने के लिये भारतवर्ष आये थे.
Swami Avedananda, “To learn the truth of the Non-cooperation movement which you have started in India. My friends in America asked me about it but I could not muster much information from the scanty reports which were published in American newspapers. I came just before you were put in the jail, but the things have changed since?”
अभेदानन्दजी १८९६ से लेकर १९२१ ई० तक, कुल २५ वर्षों तक अमेरिका में थे. किन्तु इसी दौरान भारतवासियों में स्वदेशप्रेम जाग्रत कराने के उद्देश्य से सन् १९०६ ई० में ६ महीने के लिये भारतवर्ष आये थे.
Swami Avedananda, “To learn the truth of the Non-cooperation movement which you have started in India. My friends in America asked me about it but I could not muster much information from the scanty reports which were published in American newspapers. I came just before you were put in the jail, but the things have changed since?”
.इसीलिये उन्होंने गाँधी को कहा- " आपने भारत में जो असहयोग-आन्दोलन आरम्भ किया है, मैं उसका यथार्थ तथ्य जानने के लिये आया हूँ.
अमेरिका में रहने वाले मेरे मित्रगण जब इस सम्बन्ध में मुझसे प्रश्न करते
थे, तो मैं उनको ठीक से कुछ बता नहीं पाता था. क्योंकि अमेरिका से
प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में इस आन्दोलन के बारे में जो जानकारी
दी जाती थी, वह बहुत संक्षिप्त होती थी. आपके जेल जाने से कुछ दिनों पहले
ही मैं भारत आया था.
किन्तु आने के बाद देखा क़ि आन्दोलन में महापरिवर्तन हो चुका है. "
Gandhiji, “How have the things changed !? ”
किन्तु आने के बाद देखा क़ि आन्दोलन में महापरिवर्तन हो चुका है. "
Gandhiji, “How have the things changed !? ”
स्वामी अभेदानन्दजी की बातों को सुन कर गाँधीजी आश्चर्य से बोले- ' आपने क्या परिवर्तन देखा ? '
Swami Avedananda, “At first you were a non-cooperator, but now you are only a social reformer. Is it not a big fall?”
Swami Avedananda, “At first you were a non-cooperator, but now you are only a social reformer. Is it not a big fall?”
अभेदानन्दजी ने कहा- "
आप पहले एक ' असहयोगी ' थे, किन्तु इस समय तो आप केवल एक समाज-सुधारक की
भूमिका निभा रहे हैं. क्या इसे अपने आदर्श से पीछे हटना नहीं कहा जायेगा ?
"
Gandhiji, “My principles are still the same but as the country is not ready some portions of my work had to be changed.”
Gandhiji, “My principles are still the same but as the country is not ready some portions of my work had to be changed.”
तब गाँधीजी थोडा संकुचित हो कर बोले-
' मेरा आदर्श तो अब भी वही है, किन्तु देश अभी उसे ग्रहण के लिए तैयार
नहीं हो सका है, यही देख कर मैं अपनी शक्ति के कुछ अंश को अभी समाज-सुधार
में नियोजित कर रहा हूँ.'
Swami Abhedananda, “In America you have many friends who admire you because you have started the Non-Cooperation movement among the mass which nobody had done before you.”
Swami Abhedananda, “In America you have many friends who admire you because you have started the Non-Cooperation movement among the mass which nobody had done before you.”
तब अभेदानन्दजी ने कहा- " जिस काम को आज तक किसी ने भी भी अपने हाथों में नहीं लिया था, उसी काम को- अर्थात साधारण
जनता के भीतर राजनैतिक-चेतना का संचार कराने के लिये आपने जो
'असहयोग-आन्दोलन' आरम्भ किया है, इसके लिये अमेरिका में आपके बहुत से
प्रसंशक आपकी तारीफ किया करते हैं. किन्तु वही लोग अब आपके इस समाज-सुधार
के कार्य के लिये भी आपकी तारीफ ही करेंगे, इसमें थोड़ा संशय है.
(The subject changes suddenly!)
Swami
Abhedananda, “You are doing the work started by Sri Ramakrishna and
Vivekananda in the lines of removing untouchability and in encouraging
cottage industries, therefore, I bring to you blessings.
किन्तु छुआछूत-वाद या अस्पृश्यता को दूर करने के लिये तथा कुटीर-उद्द्योग को स्थापित करने के लिये आप
ने श्रीरामकृष्ण - विवेकानन्द के द्वारा प्रवर्तित धर्म-मार्ग का ही
अनुसरण किये हैं, इसीलिए मैं आपको विशेष रूप से आशीर्वाद देता हूँ."
You know that though a high caste Brahmin
by birth, RamaKr.s.na once prayed to the Divine Mother to take away
Ahankara from his mind had such lies as Brahmins are superior to a
sweeper on account of their birth He also wanted the Divine mother to
enable him to realize that the
Âtman of a sweeper is just as divine as that of a high cast Brahmin.(The subject changes suddenly!)
तत्पश्चात बातचीत के क्रम में हठात विषयान्तर करते हुए अभेदानन्दजी ने कहा-
" आप जानते हैं कि श्रीरामकृष्ण ने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था,
इसीलिए एक बार वे अपने मन से इस मिथ्या अहंकार कि- ' ब्राह्मण वंश में
जन्म लेने मात्र से ही कोई मेहतर से श्रेष्ठ होता है ', को मिटा देने के
लिए माँ जगदंबा से प्रार्थना किए थे.
उनहोंने माँ भवतारिणी - ' दक्षिणेश्वर की काली मईया ' से यह वरदान भी माँगा था, कि माँ
मुझमें इतनी शक्ति दो, यह विश्वास मुझमे सदा बना रहे- कि मेहतर की आत्मा
भी ठीक उतनी ही पवित्र है, जितनी किसी उंच्च कुल में जन्में ब्राह्मण की
होती है !
It is said that such a realization dawned upon him that he practically went to the door of lowly sweeper and wiped the dirt of the door with his flowing long hair. Thus setting an example for the removal of untouchability which is higher religion of this age…”
ऐसा कहा जाता है माँ जगदम्बा ने उनकी यह प्रार्थना सुन ली थी, एवं उनको ' ब्राह्मण एवं मेहतर ' की आत्मा के अभेदत्व (पवित्रता) का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ था, इसीलिए अपने इस ब्राह्मणत्व के श्रेष्टत्व के झूठे अहंकार को मिटा देने के लिए एक दिन श्रीरामकृष्ण ने अपने सिर के लम्बे बालों से एक मेहतर के घर के दरवाज़ों और खिड़कियों की साफ किया था.इस प्रकार उन्होंने अपने आचरण से
' अस्पृश्यता और छुआछूतवाद ' को मिटाने का उदहारण - प्रस्तुत करते हुए एक नवीन युग-धर्म का प्रचार किया था. "
It is said that such a realization dawned upon him that he practically went to the door of lowly sweeper and wiped the dirt of the door with his flowing long hair. Thus setting an example for the removal of untouchability which is higher religion of this age…”
ऐसा कहा जाता है माँ जगदम्बा ने उनकी यह प्रार्थना सुन ली थी, एवं उनको ' ब्राह्मण एवं मेहतर ' की आत्मा के अभेदत्व (पवित्रता) का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ था, इसीलिए अपने इस ब्राह्मणत्व के श्रेष्टत्व के झूठे अहंकार को मिटा देने के लिए एक दिन श्रीरामकृष्ण ने अपने सिर के लम्बे बालों से एक मेहतर के घर के दरवाज़ों और खिड़कियों की साफ किया था.इस प्रकार उन्होंने अपने आचरण से
' अस्पृश्यता और छुआछूतवाद ' को मिटाने का उदहारण - प्रस्तुत करते हुए एक नवीन युग-धर्म का प्रचार किया था. "
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' दृष्टि-भंगी ' नामक पत्रिका में प्रकाशित निबन्ध .
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