गुरुवार, 24 मई 2012

ज्ञान के प्रति प्रेम उत्पन्न करो

८प्रश्न : मैं कभी कभी पढाई-लिखाई करने में आनन्द खो देता हूँ, ऐसा लगता है कि यदि पढाई-लिखाई नहीं करनी पड़ती तो अच्छा होता.लेकिन यह भी समझता हूँ कि पढाई-लिखाई करना आवश्यक है. इसीलिए यह जानना चाहता हूँ कि कैसे पढ़ते-लिखते समय भी आनन्द प्राप्त कर सकता हूँ, तथा कैसे पढ़ाई-लिखाई एवं समस्त कार्यों को खेल जैसा बना कर कर सकता हूँ.यदि मैं इसे जान जाऊंगा तो मेरे ही जैसा दुसरे जो लोग इस कठिनाई को भोग रहे हैं, तो उन्हें भी बता सकूँगा.
उत्तर : तुम यह बात समझते हो कि पढाई-लिखाई करना आवश्यक है. जिस कार्य कोबोझ उठाने जैसा 
मजबूरी में  आवश्यक समझ कर करना पड़ता हो, उसे करने में क्या आनन्द प्राप्त हो सकता है ? किसी प्रिय या मनचाही वस्तु को प्राप्त करने से ही आनन्द प्राप्त हो सकता है.

इसीलिए तुम यदि ज्ञानलाभ करने के प्रति लालायित हो सको, ज्ञान के प्रति प्रेम उत्पन्न कर सको, तभी तुम पढ़ने में आनन्द प्राप्त कर सकते हो. और यदि यह समझ कर पढना-लिखना जरुरी समझता हूँ कि - यदि नहीं पढूंगा तो आमदनी नहीं होगी, अच्छी कमाई नहीं होने से अच्छा खाना नहीं मिलेगा, भोग की वस्तुएं नहीं मिलेंगी; इस प्रकार की धारणा रहने से पढ़ने में आनन्द नहीं मिल सकता है. 

पहले स्वयं इस तथ्य को समझने की चेष्टा करो. जिस बात को तुम स्वयं नहीं समझते, उसे दूसरों से सुन कर, किसी अन्य को समझाने के लिए अधीर मत बनो. पढ़ने-लिखने का उद्देश्य है- ज्ञान की प्राप्ति करना. जीवन को सुगठित करना तथा उसका सदुपयोग करना चाहते हो, तो उसके लिए ज्ञान आवश्यक है. किसी उद्देश्य को सामने रख कर, उसे प्राप्त करने के लिए जो कुछ किया जाता है, उसे कार्य कहते हैं. खेलने में कोई उद्देश्य नहीं रहता. इसलिए पढ़ने का कार्य खेल के समान नहीं हो सकता है. 
 
 खेलते समय उद्देश्य के बिना भी आनन्द प्राप्त होता है. जिस कार्य का उद्देश्य महान होता है, उस कार्य में सफल होने पर आनन्द प्राप्त होता है. इसीलिए कार्य करके जो आनन्द प्राप्त होता है, वह खेल से मिलने वाला आनन्द जैसा नहीं होता. इन सब बातों को महामण्डल की पुस्तिकाओं तथा ' विवेक-जीवन ' में लगातार पढ़ते रहने से, बहुत कुछ जान सकते हो. इन सबको मन लगा कर पढना.

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