मेरे बारे में

मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

$$$$$$परिच्छेद~24, [(25 फरवरी 1883)श्रीरामकृष्ण वचनामृत] *Nityasiddha and Kripasiddha *अनन्त-चतुर्दशी का व्रत *जो गुरु (नेता CINC नवनीदा) हैं वे ही इष्ट-अवतारवरिष्ठ श्रीठाकुर देव हैं * *भीष्म का क्रंदन और भक्तों की सांसारिक अवस्था * गंगा जल पान करके या स्पर्श करके मरना (या सरजू नदी में श्रीराम का जलसमाधि लेना ) हिन्दुओं के लिए महान आध्यात्मिक सामर्थ्य और पवित्र जीवन का परिणाम माना जाता है*संन्यासी तथा कामिनी*सर्वधर्मसमन्वय*रागभक्ति-अहैतुकी भक्ति* सच्चिदानन्द ही गुरु है *गीत का मर्म :-‘मैं मुक्ति देने में कातर नहीं होता, किन्तु शुद्धा भक्ति देने में कातर होता हूँ ।’ “मूल बात है ईश्वर में रागानुराग भक्ति और विवेक-वैराग्य चाहिए ।”चौधरी- महाराज, गुरु के न होने से क्या नहीं होता?श्रीरामकृष्ण- सच्चिदानन्द ही गुरु है।

 [(25 फरवरी 1883) परिच्छेद~२४,श्रीरामकृष्ण वचनामृत]

*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ]

परिच्छेद २४ 

* नित्य सिद्ध और कृपा सिद्ध * 

श्रीरामकृष्ण अपने कमरे में दोपहर को भोजन करके भक्तों के साथ बैठे हुए हैं । आज २५ फरवरी १८८३ ई. है।

राखाल, हरीश, लाटू, हाजरा आजकल श्रीरामकृष्ण के पास ही रहते हैं । कलकत्ते से राम, केदार, नित्यगोपाल, मास्टर आदि भक्त आये हैं और चौधरी भी आये हैं ।

अभी अभी चौधरी की पत्नी का स्वर्गवास हो गया है । मन में शान्ति पाने के उद्देश्य से कुछ एक बार वे श्रीरामकृष्ण के दर्शन करने के लिए आ चुके हैं । उन्हें उच्च शिक्षा मिली है, सरकारी पद पर नौकरी करते हैं ।

श्रीरामकृष्ण (राम आदि भक्तों से)-राखाल, नरेन्द्र, भवनाथ, ये सब नित्यसिद्ध हैं, जन्म ही से इन्हें चैतन्य प्राप्त है । ये लोकशिक्षा के लिए ही शरीर धारण करते हैं ।

 {রাখাল, নরেন্দ্র, ভবনাথ এরা নিত্য সিদ্ধ — জন্ম থেকেই চৈতন্য আছে। লোকশিক্ষার জন্যই শরীরধারণ।

"Devotees like Rakhal, Narendra, and Bhavanath may be called nityasiddha. Their spiritual consciousness has been awake since their very birth. They assume human bodies only to impart spiritual illumination to others.

“एक श्रेणी के लोग और होते हैं । वे कृपासिद्ध कहलाते हैं । एकाएक उनकी कृपा हुई कि दर्शन हुए और ज्ञानलाभ हुआ । जैसे हजार वर्षों के अँधेरे कमरे में चिराग ले जाओ तो क्षण भर में उजाला हो जाता है-धीरे धीरे नहीं होता ।

{“আর-একথাক আছে কৃপাসিদ্ধ। হঠাৎ তাঁর কৃপা হল — অমনি দর্শন আর জ্ঞানলাভ। যেমন হাজার বছরের অন্ধকার ঘর — আলো নিয়ে গেলে একক্ষণে আলো হয়ে যায়! — একটু একটু করে হয় না

"There is another class of devotees, known as kripasiddha, that is to say, those on whom the grace of God descends all of a sudden and who at once attain His vision and Knowledge. Such people may be likened to a room that has been dark a thousand years, which, when a lamp is brought into it, becomes light immediately, not little by little.

*निर्जन में साधना* 

“जो लोग संसार में हैं, उन्हें साधना करनी चाहिए । निर्जन में व्याकुल होकर ईश्वर को बुलाना चाहिए ।

(चौधरी से)-“पाण्डित्य से वे नहीं मिलते ।

“और उन्हें विचार करके समझनेवाला है कौन? उनके पादपद्मों में जिस से भक्ति हो, सब को वही करना चाहिए ।

“उनका ऐश्वर्य अनन्त है- समझ में क्या आये? और उनके कार्यों को भी कोई क्या समझे?

{“যাঁরা সংসারে আছে তাদের সাধন করতে হয়। নির্জনে গিয়ে ব্যাকুল হয়ে তাঁকে ডাকতে হয়।“পাণ্ডিত্য দ্বারা তাঁকে পাওয়া যায় না।“আর তাঁর বিষয় কে বিচার করে বুঝবে? তাঁর পাদপদ্মে ভক্তি যাতে হয়, তাই সকলের করা উচিত।”“তাঁর অনন্ত ঐশ্বর্য — কি বুঝবে? তাঁর কার্যই বা কি বুঝতে পারবে?

"Those who lead a householder's life should practise spiritual discipline; they should pray eagerly to God in solitude. (To Mr. Choudhury) God cannot be realized through scholarship. Who, indeed, can understand the things of the Spirit through reason? No, all should strive for devotion to the Lotus Feet of God."Infinite are the glories of God! How little can you fathom them! Can you ever find out the meaning of God's ways?

*भीष्म का  क्रंदन और भक्तों की सांसारिक अवस्था * 

“भीष्मदेव जो साक्षात् अष्टवसुओं में एक हैं, शरशय्या पर रोने लगे; कहा, ‘क्या आश्चर्य ! पाण्डवों के साथ सदा स्वयं भगवान् रहते हैं, फिर भी उनके दुःख और विपत्तियों का अन्त नहीं ! – भगवान् के कार्यों को कोई क्या समझे !’

“कोई कोई सोचते हैं कि हम भजन-पूजन करते हैं-हम जीत गये । परन्तु हारजीत उनके हाथों में है । यहाँ एक वेश्या मरने के समय ज्ञानपूर्वक गंगा-स्पर्श ^ करके मरी ! 

{^ पूर्ण चेतना को बनाए रखते हुए गंगा जल  पान करके या स्पर्श करके (या सरजू नदी में श्रीराम का जलसमाधि लेना  मरना हिन्दुओं के लिए  महान आध्यात्मिक सामर्थ्य और पवित्र जीवन का परिणाम माना जाता है।} 

ভীষ্মদেব যিনি সাক্ষাৎ অষ্টবসুর একজন বসু — তিনিই শরশয্যায় শুয়ে কাঁদতে লাগলেন। বললেন — কি আশ্চর্য! পাণ্ডবদের সঙ্গে স্বয়ং ভগবান সর্বদাই আছেন, তবু তাদের দুঃখ-বিপদের শেষ নাই! ভগবানের কার্য কে বুঝবে!

“কেউ মনে করে আমি একটু সাধন-ভজন করেছি, আমি জিতেছি। কিন্তু হার-জিত তাঁর হাতে। এখানে একজন মাগী (বেশ্যা) মরবার সময় সজ্ঞানে গঙ্গালাভ করলে।”

"A man thinks, 'I have practised a little prayer and austerity; so I have gained a victory over others.' But victory and defeat lie with God. I have seen a prostitute dying in the Ganges and retaining consciousness ^  to the end." (Dying in the Ganges while retaining full consciousness is considered by the Hindus an act of great spiritual merit and the result of pious living.}

चौधरी- किस तरह उनके दर्शन हों ?

श्रीरामकृष्ण- इन आँखों से वे नहीं दीख पड़ते । वे दिव्यदृष्टि देते हैं, तब उनके दर्शन होते हैं ! अर्जुन को विश्वरूप-दर्शन के समय श्रीभगवान् ने दिव्यदृष्टि दी थी (भगवद गीता के 11 वें अध्याय को देखें)  

{ "Not with these eyes. God gives one divine eyes (एकाग्र मन को ही आत्मा का दिव्य चक्षु कहा गया है) ; and only then can one behold Him. God gave Arjuna divine eves so that he might see His Universal Form. (An allusion to the eleventh chapter of the Bhagavad Gita).

“तुम्हारी फिलासफी (Philosophy) में सिर्फ हिसाब-किताब होता है-सिर्फ विचार करते हैं । इससे वे नहीं मिलते ।  

*रागभक्ति-अहैतुकी भक्ति* 

“यदि रागभक्ति-अनुराग के साथ भक्ति-हो तो वे स्थिर नहीं रह सकते ।” 

“भक्ति उनको उतनी ही प्रिय है जितनी बैल को सानी ।”

“रागभक्ति-शुद्ध भक्ति-अहैतुकी भक्ति । जैसे प्रह्लाद की ।”

“तुम किसी बड़े आदमी से कुछ चाहते नहीं हो, परन्तु रोज आते हो, उन्हें देखना ही चाहते हो । पूछने पर कहते हो- ‘जी, कोई काम नहीं है, बस दर्शन के लिए आ गया ।’ इसे अहैतुकी भक्ति कहते हैं । तुम ईश्वर से कुछ चाहते नहीं, सिर्फ प्यार करते हो ।”

{“যদি রাগভক্তি হয় — অনুরাগের সহিত ভক্তি — তাহলে তিনি স্থির থাকতে পারেন না।“ভক্তি তাঁর কিরূপ প্রিয় — খোল দিয়ে জাব যেমন গরুর প্রিয় — গবগব করে খায়।“রাগভক্তি — শুদ্ধাভক্তি — অহেতুকী ভক্তি। যেমন প্রহ্লাদের।“তুমি বড়লোকের কাছে কিছু চাও না — কিন্তু রোজ আস — তাকে দেখতে ভালবাস। জিজ্ঞাসা করলে বল,  ‘আজ্ঞা, দরকার কিছু নাই — আপনাকে দেখতে এসেছি।’ এর নাম অহেতুকী ভক্তি। তুমি ঈশ্বরের কাছে কিছু চাও না — কেবল ভালবাস।”

"God cannot remain unmoved if you have raga-bhakti, that is, love of God with passionate attachment to Him. Do you know how fond God is of His devotees' love? It is like the cow's fondness for fodder mixed with oil-cake. The cow gobbles it down greedily."Raga-bhakti is pure love of God, a love that seeks God alone and not any worldly end. Prahlada had it. Suppose you go to a wealthy man every day, but you seek no favour of him; you simply love to see him. If he wants to show you favour, you say: 'No, sir. I don't need anything. I came just to see you.' Such is love of God for its own sake. You simply love God and don't want anything from Him in return."

यह कहकर श्रीरामकृष्ण गाने लगे : 

आमि मुक्ति दिते कातोर नेई, 

शुद्धा भक्ति दिते कातोर होई।  

आमार भक्ति जेबा पाय , तारे केबा पाय ,

 शे जे सेवा पाय , होये त्रिकालजयी।।  

शुन चन्द्रावली भक्तीर कथा कोई।

भक्तीर कारणे पाताल भवने,

बलिर द्वारे आमि द्वारपाल होये रोही ।।

शे जे सेवा पाय, होये त्रिलोकजयी।

शुद्धा भक्ती एक आछे वृन्दावने,

गोप- गोपी वीने अन्ये नाही जाने।

भक्तीर कारणे नन्देर भवने,

पिता ज्ञाने नन्देर बाधा माथाय बोई।

 আমি মুক্তি দিতে কাতর নই

শুদ্ধাভক্তি দিতে কাতর হই।

আমার ভক্তি যেবা পায়, তারে কেবা পায়,

সে যে সেবা পায়, হয়ে ত্রিলোকজয়ী ৷৷

শুন চন্দ্রাবলী ভক্তির কথা কই।

ভক্তির কারণে পাতাল ভবনে,

বলির দ্বারে আমি দ্বারী হয়ে রই ৷৷

শুদ্ধাভক্তি এক আছে বৃন্দাবনে,

গোপ-গোপী বিনে অন্যে নাহি জানে।

ভক্তির কারণে নন্দের ভবনে,

পিতাজ্ঞানে নন্দের বাধা মাথায় বই ৷৷

गीत का मर्म यह है:-

‘मैं मुक्ति देने में कातर नहीं होता, किन्तु शुद्धा भक्ति देने में कातर होता हूँ ।’ 

“मूल बात है ईश्वर में रागानुराग भक्ति और विवेक-वैराग्य चाहिए ।”

{“মূলকথা ঈশ্বরে রাগানুগা ভক্তি। আর বিবেক বৈরাগ্য।”

He continued, "The gist of  the whole thing is that one must develop passionate yearning for God and practise (मनःसंयोग) discrimination and renunciation."

*जो गुरु (नेता CINC नवनीदा) हैं वे ही इष्ट-अवतारवरिष्ठ श्रीठाकुर देव हैं * 

चौधरी- महाराज, गुरु (नेता ) के न होने से क्या ईश्वर-दर्शन नहीं होता?

{MR. CHOUDHURY: "Sir, is it not possible to have the vision of God without the help of a guru?"}

श्रीरामकृष्ण- सच्चिदानन्द ही गुरु है । 

शवसाधना (हृदय श्मशान में अहं का शवदाह करते समय करते समय जब इष्टदर्शन का मौका आता है, तब गुरु सामने आकर कहते हैं, ‘यह देख अपना इष्ट ।’ फिर गुरु इष्ट में लीन हो जाते हैं । जो गुरु हैं वे ही इष्ट हैं । गुरु मार्ग पर लगा देते हैं ।

{সচ্চিদানন্দই গুরু।“শবসাধন করে ইষ্টদর্শনের সময় গুরু সামনে এসে পড়েন — আর বলেন, ‘ওই দেখ্‌ তোর ইষ্ট।’ — তারপর গুরু ইষ্টে লীন হয়ে যান। যিনি গুরু তিনিই ইষ্ট। গুরু খেই ধরে দেন।

MASTER: "Satchidananda Himself is the Guru. At the end of the sava-sadhana (अहंकाररूपी शव का दाहसंस्कार करते ही) , just when the vision of the Ishta is about to take place, the guru appears before the aspirant and says to him, 'Behold! There is your Ishta.' Saying this, the guru merges in the Ishta. He who is the guru is also the Ishta (माँ काली) . The guru is the thread that leads to God. 

“अनन्त-चतुर्दशी का तो व्रत है, पर पूजा विष्णु की की जाती है । उसी में ईश्वर का अनन्त रूप विराजमान है ।”


अनन्त चतुर्दशी व्रतकथा 

“অনন্তব্রত করে। কিন্তু পূজা করে — বিষ্ণুকে। তাঁরই মধ্যে ঈশ্বরের অনন্তরূপ!”

[Women perform a ritualistic worship known as the 'Ananta-vrata', the object of worship being the Infinite. But actually the Deity worshipped is Vishnu. In Him are the 'infinite' forms of God.] 

*सर्वधर्मसमन्वय ~बहिः शैव , हृदये काली , मुखे हरिबोल ! *

 [“বহিঃ শৈব, হৃদে কালী, মুখে হরিবোল।*] 

(रामादी भक्तों से) यदि कहो किस मूर्ति का चिन्तन करेंगे, तो जो मूर्ति अच्छी लगे, उसी का ध्यान करना। परन्तु समझना कि सभी एक हैं ।

[(রামাদি ভক্তদের প্রতি) — “যদি বল কোন্‌ মূর্তির চিন্তা করব; যে-মূর্তি ভাল লাগে তারই ধ্যান করবে। কিন্তু জানবে যে, সবই এক।

(To Ram and the other devotees) "If you asked me which form of God you should meditate upon, I should say: Fix your attention on that form which appeals to you most; but know for certain that all forms are the forms of one God alone.

“किसी से द्वेष न करना चाहिए । शिव, काली, हरि-(अल्लाह?) सब एक ही के भिन्न भिन्न रूप हैं । वह धन्य है जिसको उनके एक होने का ज्ञान हो गया है ।”

(“কারু উপর বিদ্বেষ করতে নাই। শিব, কালী, হরি — সবই একেরই ভিন্ন ভিন্ন রূপ। যে এক করেছে সেই ধন্য।

"Never harbour malice toward anyone. Siva, Kali, and Hari are but different forms of that One. He is blessed indeed who has known all as one.)

“बाहर शैव, हृदय में काली, मुख में हरिनाम ।”

{“বহিঃ শৈব, হৃদে কালী, মুখে হরিবোল।

Outwardly he appears as Siva's (S.V.) devotee, But in his heart he worships Kali (Ma Sarda), the Blissful Mother, And with his tongue he chants aloud Lord Hari's name (Sri Thakur).

“कुछ कुछ काम-क्रोधादि के न रहने से शरीर नहीं रहता । परन्तु तुम लोग घटाने ही की चेष्टा करना ।”

(“একটু কাম-ক্রোধাদি না থাকলে শরীর থাকে না। তাই তোমরা কেবল কমাবার চেষ্টা করবে।”

"The body does not endure without a trace of lust, anger, and the like. You should try to reduce them to a minimum.")

श्रीरामकृष्ण केदार को देखकर कह रहे हैं- “ये अच्छे हैं । नित्य भी मानते हैं, लीला भी मानते हैं । एक ओर ब्रह्म और दूसरी ओर देवलीला से लेकर मनुष्यलीला तक !”

{“ইনি বেশ। নিত্যও মানেন, লীলাও মানেন। একদিকে ব্রহ্ম, আবার দেবলীলা-মানুষলীলা পর্যন্ত।”

Looking at Kedar, the Master said: "He is very nice. He accepts both the Absolute and the Relative. He believes in Brahman, but he also accepts the gods and Divine Incarnations in human form."

केदार कहते हैं कि श्रीरामकृष्ण के रूप में भगवान् मनुष्यदेह धारण कर अवतीर्ण हुए हैं । 

(কেদার বলেন যে, ঠাকুর মানুষদেহ লইয়া অবতীর্ণ হইয়াছেন।

In Kedar's opinion Sri Ramakrishna was such an Incarnation.)

*संन्यासी जगद्गुरु /जीवनमुक्त लोकशिक्षक /नेता ~  कामिनी से सावधान !

नित्यगोपाल को देखकर श्रीरामकृष्ण बोले-“इसकी अच्छी अवस्था है । (नित्यगोपाल से) तू 'वहाँ' ज्यादा न जाना । कहीं एक-आध बार चले गए । भक्त है तो क्या हुआ-स्त्री है न? इसीलिए सावधान रहना ।”

{“তুই সেখানে বেশি যাসনি। — কখনও একবার গেলি। ভক্ত হলেই বা — মেয়েমানুষ কিনা। তাই সাবধান।

"Don't go there too often. You may go once in a while. She may be a devotee, but she is a woman too. Therefore I warn you.

“संन्यासी के नियम बड़े कठिन हैं । उसके लिए स्त्रियों के चित्र देखने की भी मनाही है । यह संसारियों के लिए नहीं है ।”

“स्त्री यदि भक्त भी हो तो भी उससे ज्यादा न मिलना चाहिए ।”

“जितेन्द्रिय होने पर भी संन्यासी को लोकशिक्षा के लिए यह सब करना पड़ता है ।”

“साधुपुरुष का सोलहों आना त्याग देखने पर दूसरे लोग त्याग की शिक्षा लेंगे, नहीं तो वे भी डूब जायेंगे । संन्यासी जगद्गुरु हैं ।”

[“সন্ন্যাসীর বড় কঠিন নিয়ম। স্ত্রীলোকের চিত্রপট পর্যন্ত দেখবে না। এটি সংসারী লোকেদের পক্ষে নয়। স্ত্রীলোক যদি খুব ভক্তও হয় — তবুও মেশামেশি করা উচিত নয়। জিতেন্দ্রিয় হলেও — লোকশিক্ষার জন্য ত্যাগীর এ-সব করতে হয়।“সাধুর ষোল আনা ত্যাগ দেখলে অন্য লোকে ত্যাগ করতে শিখবে। তা না হলে তারাও পড়ে যাবে। সন্ন্যাসী জগদ্‌গুরু।”

"The sannyasi must observe very strict discipline. He must not look even at the picture of a woman. But this rule doesn't apply to householders. An aspirant should not associate with a woman, even though she is very much devoted to God. A sannyasi, even though he may have subdued his passions, should follow this discipline to set an example to householders.

अब श्रीरामकृष्ण और भक्तगण उठकर घूमने लगे । मास्टर प्रह्लाद के चित्र के सामने खड़े होकर देख रहे हैं-श्रीरामकृष्ण ने कहा है कि प्रह्लाद की भक्ति अहैतुकी भक्ति है।  

=============

  


कोई टिप्पणी नहीं: