रविवार, 11 अप्रैल 2021

$परिच्छेद ~20, [(? दिसम्बर 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *Free Will ** 'क्या ईश्वर निष्ठुर हैं ? श्रीरामकृष्ण का उत्तर' *आमार प्राण-पिंजरेर पाखी गाओ ना रे * 'क्या ईश्वर निष्ठुर हैं ?विद्यासागर और चंगेजखान (Chenghiz Khan)* *बाबूराम आदि के साथ 'Free Will' (स्वतन्त्र इच्छा) के सम्बन्ध में वार्तालाप ।* श्री तोतापुरी का आत्महत्या का संकल्प*कृपा की बंसरी बजाते हुए मेरे 'मन'-रूपी गाय को वशीभूत कर मेरे हृदयरूपी चरागाह में निवास करो । * दया (compassion) और माया (attachment)दो पृथक गुण हैं*

[*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ। ] 


 परिच्छेद~ २० 

*भक्तों के प्रति उपदेश* 

*बाबूराम आदि के साथ 'Free Will' (स्वतन्त्र इच्छा) के सम्बन्ध में वार्तालाप ।* 

*श्री तोतापुरी जी के आत्महत्या का संकल्प* 

श्रीरामकृष्ण तीसरे प्रहर के बाद दक्षिणेश्वर मन्दिर के अपने कमरे के पश्चिमवाले बरामदे में वार्तालाप कर रहे हैं । साथ बाबूराम, मास्टर, रामदयाल आदि हैं । दिसम्बर १८८२ ई. ।  (बंगला कथामृत में 14 दिसम्बर 1882 के वचनामृत का 8 वां पारा।)   बाबूराम, रामदयाल तथा मास्टर आज रात को यहीं रहेंगे। बड़े दिनों की छुट्टी हुई है । मास्टर कल भी रहेंगे । बाबूराम नये नये आये हैं । 
     श्रीरामकृष्ण (भक्तों के प्रति)- “ ईश्वर सब कुछ कर रहे हैं, यह ज्ञान होने पर मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है । केशव सेन शम्भु मल्लिक के साथ आया था । मैंने उससे कहा, वृक्ष के पत्ते तक ईश्वर की इच्छा बिना नहीं हिलते । 'Free will ' है कहाँ ?  [ " the power of acting without the constraints of necessity or fate;" भाग्य अथवा समय की अनिवार्य बाध्यता को नजरअंदाज करके श्रीराम की तरह अभिनय करने की क्षमता, " the ability to act at one's own discretion." अपने विवेक से कार्य करने की क्षमता।" ]  ‘स्वाधीन इच्छा’ है कहाँ? सभी ईश्वर के अधीन हैं । नंगाटा ^  उतने बड़े ज्ञानी थे जी, वे भी पानी में डूबने गए थे ! यहाँ पर ग्यारह महीने रहे। पेट की पीड़ा हुई, रोग की यन्त्रणा से घबड़ाकर गंगा में डूबने गए थे । घाट के पास काफी दूर तक जल कम था । जितना ही आगे बढ़ते हैं, घुटनेभर से अधिक जल नहीं मिलता । तब उन्होंने समझा; समझकर लौट आए ।  एक बार अत्यन्त अधिक बीमारी के कारण मैं बहुत ही जिद्दी हो गया था । गले में छुरी लगाने चला था ! इसलिए कहता हूँ, ‘माँ, मैं यन्त्र हूँ, तुम यंत्री; मैं रथ हूँ, तुम रथी; जैसा चलाती हो वैसा चलता हूँ, जैसा कराती हो वैसा ही करता हूँ’ ।” 

{ ^ श्री तोतापुरी (श्रीरामकृष्णदेव के वेदान्त-साधना के गुरु); नागा, सम्प्रदाय के होने कारण श्रीरामकृष्ण उन्हें ‘नंगाटा ’ कहते थे ।} 
MASTER (to the devotees): "A man becomes liberated even in this life when he knows that God is the Doer of all things. Once Keshab came here with Sambhu Mallick. I said to him, 'Not even a leaf moves except by the will of God.' Where is man's free will? All are under the will of God. Nangta was a man of great knowledge, yet even he was about to drown himself in the Ganges. He stayed here eleven months. At one time he suffered from stomach trouble. The excruciating pain made him lose control over himself, and he wanted to drown himself in the river. There was a long shoal (उथला जगह) near the bathing-ghat. However far he went into the river, he couldn't find water above his knees. Then he understood everything (He realized that man is not free even to kill himself, that everything depends on the will of the Divine Mother. See) and came back. At one time (EVEN?) I was very ill and was about to cut my throat with a knife. Therefore I say: 'O Mother, I am the machine and Thou art the Operator; I am the chariot and Thou art the Driver. I move as Thou movest me; I do as Thou makest me do."} 

श्रीरामकृष्ण के कमरे में गाना हो रहा है । भक्तगण गाना गा रहे हैं;

हृदि- वृंदावने वास, जदि करो कमलापति। 
ओ हे भक्तिप्रिय, आमार भक्ति होबे राधासति।।

मुक्ति कामना आमारि, होबे वृन्दे गोपनारि, 
देह होबे नन्देर पूरि, स्नेह होबे मा जशोमोति।। 

आमाय धर धर जनार्दन, पापभार गोवर्धन। 
कामादि छय कःसचरे, ध्वंस कर सम्प्रति।। 

(मनःसंयोग) बाजाये कृपा बंशरी , मन धेनूके बस कोरि। 
तिष्ठे हृदिगोष्ठे पुराओ, ईष्ट एई मिनति।। 

आमार प्रेमरुप जमुनाकुले, आशा बंशी बटमूले। 
स्वदास भेबे सदयभावे, सतत कर बसति- 

जोदि बोलो राखाल-प्रेमे बन्दि थाकि ब्रजधामे। 
तबे ज्ञानहीन राखाल तोमार दास होबे हे दाशरथी।।  


उसका भावार्थ इस प्रकार है - 
(१)“हे कमलापति, यदि तुम हृदयरूपी वृन्दावन में निवास करो तो हे भक्तिप्रिय, मेरी भक्ति सती राधा बनेगी । मुक्ति की मेरी कामना गोपनारी बनेगी । देह नन्द की नगरी बनेगा, और प्रीति माँ यशोदा बन जाएगी । हे जनार्दन, मेरे पापसमूहरूपी गोवर्धन को धारण करो । इसी समय काम आदि कंस के छः चरों को विनष्ट करो। कृपा की बंसरी बजाते हुए मेरे 'मन'-रूपी गाय को वशीभूत कर मेरे हृदयरूपी चरागाह में निवास करोमेरी इस कामना की पूर्ति करो, यही प्रार्थना है । इस समय मेरे प्रेमरूपी यमुना के तट पर आशारूपी वट के नीचे कृपा करके प्रकट होकर निवास करो । यदि कहो कि गोपालों के प्रेम में बन्दी होकर ब्रजधाम में रहता हूँ, तो हे ‘दाशरथि’ (अपने दास -भक्त अर्जुन की रथ के सारथि) यह अज्ञानी  तुम्हारा गोपाल, तुम्हारा दास बनेगा ।” 
(२) 
आमार प्राण-पिंजरेर पाखी गाओ ना रे। 
ब्रह्म-कल्पतरु मूले बोसे रे पाखी,  

विभुगुण गाओ देखि (गाओ , गाओ),
    आर धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष,सूपक्व फल खाओ ना रे।।

बोल बोल आत्माराम, पोढो प्राणाराम। 
हृदय माझे, प्राण विहंग डाको अविराम।। 
डाको तृषित चातकेर मतो, पाखि अलस थेको ना रे।   

“हे मेरे प्राणरूपी पिंजरे के पक्षी, गाओ ना ब्रह्मरुपी कल्पतरु के पदपद्मों में बैठकर, हे पक्षी, तुम प्रभु के गुण गाओ न । और साथ ही साथ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-रूपी पके फलों को भी खाओ न ।” प्यासे चातक की भाँति बिना आलस्य किये  स्वाति नक्षत्र की बूंदों को पीने के लिए बादलों से कहो न रे।  
. {Sing, O bird that nestles deep within my heart! Sing, O bird that sits on the Kalpa-Tree of Brahman! Sing God's everlasting praise.Taste, O bird, of the four fruits of the Kaipa-Tree, Dharma, artha, kama, moksha.Sing, O bird, "He alone is the Comfort of my soul!"Sing, O bird, "He alone is my life's enduring Joy!" O thou wondrous bird of mv life, Sing aloud in my heart! Unceasingly sing, O bird! Sing for evermore, even as the thirsty chatak, Sings for the raindrop from the cloud.
 नन्दनबागान के श्रीनाथ मित्र अपने मित्रों के साथ आये हैं । श्रीरामकृष्ण उन्हें देखकर कहते हैं, “यह देखो, इनकी आँखों में से भीतर का सब कुछ दिखायी पड़ रहा है, खिड़की के काँच में से जिस प्रकार कमरे के भीतर की सभी चीजें देखी जाती हैं ।’ श्रीनाथ, यज्ञनाथ ये लोग नन्दनबागान के ब्राह्मपरिवार के हैं । इनके मकान पर प्रतिवर्ष ब्राह्मसमाज का उत्सव होता था । बाद में श्रीरामकृष्ण उत्सव देखने गए थे। 
सायंकाल को मन्दिर में आरती होने लगी । कमरे में छोटे तखत पर बैठकर श्रीरामकृष्ण ईश्वर-चिन्तन कर रहे हैं । धीरे धीरे भावमग्न हो गए । भाव शान्त होने पर कहते हैं, “माँ, उसे भी खींच लो । वह इतने दीन भाव से रहता है, तुम्हारे पास आना-जाना कर रहा है ।” 
श्रीरामकृष्ण भाव में - क्या बाबूराम की बात कह रहे हैं ? 
बाबूराम, मास्टर, रामदयाल आदि बैठे हैं । रात के आठ-नौ बजे का समय होगा । श्रीरामकृष्ण समाधि-तत्त्व समझा रहे हैं । जड़ समाधि, चेतन समाधि, स्थित समाधि, उन्मना समाधि ।  

*विद्यासागर और चंगेजखान (Chenghiz Khan)*

 * 'क्या ईश्वर (माँ काली)  निष्ठुर हैं ? श्रीरामकृष्ण का उत्तर' *
 
सुख-दुःख की बात चल रही है । ईश्वर ने इतना दुःख क्यों बनाया ?
मास्टर- एक बार विद्यासागर ने प्रेमकोप से कहा था, “ईश्वर को पुकारने की क्या आवश्यकता है ! देखो चंगेजखाँ ने जिस समय लूटमार करना आरम्भ किया उस समय उसने अनेक लोगों को बन्द कर दिया । धीरे धीरे करीब एक लाख कैदी इकट्ठे हो गए । तब सेनापतियों ने आकर कहा, ‘हुजूर, इन्हें खिलाएगा कौन? इन्हें साथ रखने पर भी हमारे लिए विपत्ति है । क्या किया जाए? छोड़ने पर भी विपत्ति है ।’ उस समय चंगेजखाँ ने कहा, ‘तो फिर क्या किया जाए? उनका वध कर डालो ।’ इसलिए कचाकच काट डालने का आदेश हो गया ! इस हत्याकाण्ड को तो ईश्वर ने देखा । कहाँ, निवारण भी तो नहीं किया । वे हैं, तो रहें । मुझे उनकी आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । मेरा तो कोई भला न हुआ !”
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श्रीरामकृष्ण- क्या ईश्वर का काम, वे किस उद्देश्य से क्या करते हैं समझा जा सकता है? वे सृष्टि, पालन, संहार सभी कर रहे हैं । वे क्यों संहार कर रहे हैं, हम क्या समझ सकते हैं? मैं कहता हूँ, मुझे समझने की आवश्यकता भी नहीं है । बस, अपने चरणकमल में भक्ति दो । मनुष्य-जीवन का उद्देश्य है इसी भक्ति को प्राप्त करना । और सब माँ जानें । बगीचे में आम खाने को आया हूँ, कितने पेड़, कितनी शाखाएँ, कितने करोड़ पत्ते हैं-यह सब हिसाब करने से मुझे क्या मतलब? मैं आम खाता हूँ, पेड़ और पत्तों के हिसाब से मेरा क्या सम्बन्ध है । 
{MASTER: "Is it possible to understand God's action and His motive? He creates, He preserves, and He destroys. Can we ever understand why He destroys? I say to the Divine Mother: 'O Mother, I do not need to understand. Please give me love for Thy Lotus Feet.' The aim of human life is to attain bhakti.
As for other things, the Mother knows best. I have come to the garden to eat mangoes. What is the use of my calculating the number of trees, branches, and leaves? I only eat the mangoes; I don't need to know the number of trees and leaves.}

आज रात में बाबूराम, मास्टर और रामदयाल श्रीरामकृष्ण के कमरे में जमीन पर सोये । आधी रात के बाद , दो-तीन बजे का समय होगा, श्रीरामकृष्ण के कमरे में बत्ती बुझ गयी है । वे स्वयं बिस्तर पर बैठे बीच बीच में भक्तों के साथ बातें कर रहे हैं ।
*श्रीरामकृष्ण और भक्त * 

* दया (compassion) और माया (attachment) दो पृथक गुण हैं *
 
श्रीरामकृष्ण ( बाबूराम, मास्टर इत्यादि भक्तों के प्रति)- देखो, दया और माया ये दो पृथक पृथक चीजें हैं । माया का अर्थ है, आत्मीयों के प्रति ममता-जैसे बाप, माँ, भाई, बहन, स्त्री, पुत्र इन पर प्रेम । दया का अर्थ है सर्व भूतों में प्रेम, समदृष्टि । किसी में यदि दया देखो, जैसे विद्यासागर में, तो उसे ईश्वर की दया जानो । दया से सर्वभूतों की सेवा होती है । माया भी ईश्वर की ही है । माया द्वारा वे आत्मीयों की सेवा करा लेते हैं । पर इसमें एक बात है । माया अज्ञानी बनाकर रखती और बद्ध बनाती है । परन्तु दया से चित्तशुद्धि होती है और धीरे धीरे बन्धन-मुक्ति होती है । 
MASTER: "Remember that daya, compassion, and maya, attachment, are two different things. Attachment means the feeling of 'my-ness' toward one's relatives. It is the love one feels for one's parents, one's brother, one's sister, one's wife and children. Compassion is the love one feels for all beings of the world. It is an attitude of equality. If you see anywhere an instance of compassion, as in Vidyasagar, know that it is due to the grace of God. Through compassion one serves all beings. Maya also comes from God. Through maya God makes one serve one's relatives. But one thing should be remembered: maya keeps us in ignorance and entangles us in the world, whereas daya makes our hearts pure and gradually unties our bonds.
चित्तशुद्धि हुए बिना भगवान् के दर्शन नहीं होते । काम, क्रोध, लोभ, इन सब पर विजय प्राप्त करने से उनकी कृपा होती है, तब उनके दर्शन होते हैं ।

 'তোমাদের অতি গুহ্যকথা (secret) বলছি, কাম জয় করবার জন্য আমি অনেক কাণ্ড করেছিলাম। ' तुम लोगों को बहुत ही गुप्त बातें बता रहा हूँ । काम पर विजय प्राप्त करने के लिए मैंने बहुत कुछ किया था । आनन्द-आसन के चारों ओर ‘जय काली’ ‘जय काली’ कहते हुए कई बार प्रदक्षिणा की थी । 
{"God cannot be realized without purity of heart. One receives the grace of God by subduing the passions — lust, anger, and greed. Then one sees God. I tried many things in order to conquer lust.} 
“मेरी दस-ग्यारह वर्ष की उम्र थी, जब उस देश में था, उस समय वह स्थिती-समाधि की स्थिति-प्राप्त हुई थी । मैदान में से जाते जाते जो कुछ देखा उससें मैं विह्वल हो पड़ा था । ईश्वरदर्शन के कुछ लक्षण हैं। ज्योति देखने में आती है, आनन्द होता है, हृदय के बीच में गुर-गुर करके महावायु उठती है ।”
{"When I was ten or eleven years old and lived at Kamarpukur, I first experienced samadhi. As I was passing through a paddy-field, I saw something and was overwhelmed. There are certain characteristics of God-vision. One sees light, feels joy, and experiences the upsurge of a great current in one's chest, like the bursting of a rocket."

दूसरे दिन (Two days Camp के बाद ?) बाबूराम , रामदयाल घर लौट गए । मास्टर ने वह दिन व रात्रि श्रीरामकृष्ण के साथ बितायी । उस दिन उन्होंने मन्दिर में ही प्रसाद पाया ।
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