*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
*षड्भुजदर्शन ! राजमोहन के मकान पर शुभागमन-नरेन्द्र*
श्रीरामकृष्ण ने जिस दिन किलेवाले मैदान में सर्कस देखा उसके दूसरे दिन फिर कलकत्ते में शुभागमन किया था । बृहस्पतिवार, 16 नवम्बर, 1882 ई., कार्तिक शुक्लाषष्ठी । आते ही पहले-पहल गरानहट्टा (अभी नीमतल्ला स्ट्रीट) में षड्भुज महाप्रभु का दर्शन किया । वैष्णव साधुओं का अखाड़ा है, महन्त हैं श्री गिरिधारीदास । षड्भुज महाप्रभु की सेवा बहुत दिनों से चल रही है । श्रीरामकृष्ण ने तीसरे प्रहर दर्शन किया ।
सायंकाल के कुछ देर बाद श्रीरामकृष्ण शिमुलिया-निवासी श्री राजमोहन के मकान पर गाड़ी से आ पहुँचे । श्रीरामकृष्ण ने सुना है कि यहाँ पर नरेन्द्र आदि युवक मिलकर ब्राह्मसमाज की उपासना करते हैं । इसीलिए वे देखने आए हैं । मास्टर तथा और भी दो-एक भक्त साथ हैं । श्री राजमोहन पुराने ब्राह्मभक्त हैं ।
{The Master had come to Calcutta. In the evening he went to the house of Rajmohan, a member of the Brahmo Samaj, where Narendra and some of his young friends used to meet and worship according to the Brahmo ceremonies. Sri Ramakrishna wanted to see their worship. He was accompanied by M. and a few other devotees.}
*ब्राह्मभक्त और सर्वत्याग या संन्यास*
श्रीरामकृष्ण नरेन्द्र को देख आनन्दित हुए और बोले, “तुम लोगों की उपासना देखूँगा ।” नरेन्द्र गाना गाने लगे । युवकों में से श्री प्रिय आदि कोई कोई उपस्थित थे ।
अब उपासना हो रही है । नवयुवकों में से एक व्यक्ति उपासना कर रहे हैं । वे प्रार्थना कर रहे हैं- ‘भगवान्, सब कुछ त्याग कर तुम में मग्न हो जाऊँ ।’ – श्रीरामकृष्ण को देख सम्भवतः उनका उद्दीपन हुआ है । इसीलिए सर्वत्याग की बात कह रहे हैं ! मास्टर, श्रीरामकृष्ण के बहुत ही निकट बैठे थे । उन्होंने ही केवल सुना, श्रीरामकृष्ण मृदु स्वर में कह रहे हैं-“তা আর হয়েছে!” “सो तो हो चूका!” श्री राजमोहन श्रीरामकृष्ण को जलपान के लिए मकान के भीतर ले जा रहे हैं ।
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[श्री रामकृष्ण वचनामृत (1९ नवम्बर 1882) ]
[*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ]
परिच्छेद ~ १७
*मनोमोहन तथा सुरेन्द्र के मकान पर श्रीरामकृष्ण*
रविवार, 19 नवम्बर 1882 ई. । आज श्रीजगद्धात्री-पूजा है । सुरेन्द्र ने निमन्त्रण दिया है । वे भीतर बाहर हो रहे हैं-कब श्रीरामकृष्ण आते हैं । मास्टर को देख वे कह रहे हैं, “तुम आए हो, और वे कहाँ हैं?” इतने में श्रीरामकृष्ण की गाड़ी आ खड़ी हुई । पास श्री मनोमोहन का मकान है । श्रीरामकृष्ण पहले वहीँ पर उतरे, वहाँ पर जरा विश्राम करके सुरेन्द्र के मकान पर जाएँगे ।
मनोमोहन के बैठकखाने में श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं, “जो असहाय, दीन, दरिद्र है उसकी भक्ति ईश्वर को प्यारी है, जिस प्रकार खली मिला हुआ चारा गाय को प्यारा है । दुर्योधन उतना धन, उतना ऐश्वर्य दिखाने लगा पर उसके घर पर भगवान् न गए । वे विदुर के घर गए । वे भक्तवत्सल हैं । जिस प्रकार गाय अपने बच्चे के पीछे पीछे दौड़ती है, उसी प्रकार वे भी भक्तों के पीछे पीछे दौड़ते हैं ।”
{ "God very much relishes the bhakti of the poor and the lowly, just as the cow relishes fodder mixed with oil-cake. King Duryodhana showed Krishna the splendour of his wealth and riches, but Krishna accepted the hospitality of the poor Vidura. God is fond of His devotees. He runs after the devotee as the cow after the calf."
श्रीरामकृष्ण गाने लगे
जे भाब लागि परम योगी , योग करे युग-युगान्तरे ।
होले भाबेर उदय लय से , जेमोन लोहाके चुम्बक धोरे।।
भावार्थ यह है-
“ ‘उस भाव (पराभक्ति या प्रेम) के लिए परम योगी युगयुगान्तर तक योग करते हैं । भाव (प्रेम) का उदय होने पर वे (भगवान) आत्मा को अपनी ओर ऐसे खींच लेते हैं जैसे लोहे को चुम्बक ।’
{And, for that love, the mighty yogis practise yoga from age to age; When love awakes, the Lord, like a magnet, draws to Him the soul.
“चैतन्यदेव की आँखों से कृष्णनाम से आँसू गिरने लगते थे । ईश्वर ही वस्तु है, शेष सब अवस्तु । मनुष्य चाहे तो ईश्वर को प्राप्त कर सकता है; परन्तु वह कामिनी-कांचन का भोग करने में ही मस्त रहता है । सिर पर मणि रहते भी साँप मेंढक खाता रहता है ।
{ "Chaitanya used to shed tears of joy at the very mention of Krishna's name. God alone is the real Substance; all else is illusory. Man can realize God if he wants to, but he madly craves the enjoyment of 'woman and gold'. The snake has a precious stone ( A folk belief in Bengal.) in its head, but it is perfectly satisfied to eat a mere frog.
“भक्ति ही सार है । ईश्वर का विचार करके भी उन्हें कौन जान सकेगा? मुझे भक्ति चाहिए । उनका अनन्त ऐश्वर्य है । उतना जानने की मुझे क्या आवश्यकता है? एक बोतल शराब से यदि नशा आ जाए तो फिर यह जानने की क्या आवश्यकता है कि कलार की दुकान में कितने मन शराब है । एक लोटा जल से मेरी तृष्णा शान्त हो सकती है; पृथ्वी में कितना जल है यह जानने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं ।”
{"Bhakti is the one essential thing. Who can ever know God through reasoning? I want love of God. What do I care about knowing His infinite glories? One bottle of wine makes me drunk. What do I care about knowing how many gallons there are in the grog-shop? One jar of water is enough to quench my thirst. I don't need to know the amount of water there is on earth."
* सुरेन्द्र के भाई और जज-का पद । जातिभेद *
श्रीरामकृष्ण अब सुरेन्द्र के मकान पर आये हैं । आकर दुमँजले के बैठकघर में बैठे हैं । सुरेन्द्र के मँझले भाई जज हैं । वे भी बैठे हैं । अनेक भक्त कमरे में इकट्ठे हुए हैं । श्रीरामकृष्ण सुरेन्द्र के भाई से कह रहे हैं, “आप जज हैं, बहुत अच्छी बात है । इतना जानिएगा, सभी कुछ ईश्वर की शक्ति है । बड़ा पद उन्होंने ही दिया है तभी बना है । लोग समझते हैं, ‘हम बड़े आदमी हैं ।’ छत पर का जल शेर के मुँहवाले परनाले से गिरता है । ऐसा लगता है, मानो शेर मुँह से पानी उगल रहा है । परन्तु देखो, कहाँ का जल है । कहाँ आकाश में बादल बना, उसका जल छत पर गिरा और उसके बाद लुढ़ककर परनाले में जा रहा है और फिर शेर के मुँह से होकर निकल रहा है।”
{"You are a judge. That is very good. But remember, everything happens through God's power. It is He who has given you your high position; that is how you became a judge. People think it is they who are great. The water from the roof flows through a spout that is shaped like a lion's head. It looks as if the lion were bringing the water out through its mouth. But look at the source of the water! A cloud gathers in the sky and rain falls on the roof; then the water flows through the pipe and at last comes out through the spout."
सुरेन्द्र के भाई- महाराज, ब्राह्मसमाजवाले स्त्री-स्वाधीनता की बात कहते हैं, और कहते हैं जातिभेद उठा दो । यह सब आपको कैसा लगता है?
श्रीरामकृष्ण- ईश्वर से नया नया प्रेम होने पर वैसा हो सकता है । आँधी आने पर धूल उडती है, समझ में नहीं आता कि कौन आम का पेड़ है और कौन इमली का । आँधी शान्त होने पर फिर समझ में आता है। नये प्रेम की आँधी शान्त होने पर (विवेक-प्रयोग का अभ्यास करने से) धीरे-धीरे यह समझ में आ जाता है कि ईश्वर ही श्रेयः (Highest Good) नित्य पदार्थ है और सभी कुछ जो प्रेयः है वो अनित्य ( transitory) है । साधुसंग और तपस्या न करने पर ठीक ठीक धारणा नहीं होती ! तबले के बोल 'तिरकिट धुम ता ता ' मुँह से बोलना- आसान है , पर हाथों से निकालना कठिन। पखावज का बोल मुँह से बोलने से क्या होगा? हाथ पर आना बहुत कठिन है । केवल लेक्चर देने से क्या होगा? तपस्या चाहिए, तब धारणा होगी ।
{ "Men feel that way when they are just beginning to develop spiritual yearning. A storm raises clouds of dust, and one cannot distinguish between the different trees — the mango, the hog plum, and the tamarind. But after the storm blows over, one sees clearly. After the first storm of divine passion is quelled, one gradually understands that God alone is the Highest Good, the Eternal Substance, and that all else is transitory. One cannot grasp this without tapasya and the company of holy men. What is the use of merely reciting the written parts for the drum? It is very difficult to put them into practice on the instrument. What can be accomplished by a mere lecture? It is austerity that is necessary. By that alone can one comprehend.
“ जातिभेद ? केवल एक उपाय से जातिभेद उठ सकता है । वह है भक्ति । भक्ति के जाति नहीं हैं। भक्ति से अछूत भी शुद्ध हो जाता है – भक्ति होने पर चाण्डाल फिर चाण्डाल नहीं रहता। चैतन्यदेव ने चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण तक सभी को शरण दी थी ।
{"You asked about caste distinctions. There is only one way to remove them, and that is by love of God. Lovers of God have no caste. Through this divine love the untouchable becomes pure, the pariah no longer remains a pariah. Chaitanya embraced all, including the pariahs.}
“ ब्रह्मज्ञानी भी हरिनाम करते हैं, बहुत अच्छी बात है । व्याकुल होकर पुकारने पर उनकी कृपा होगी, ईश्वरलाभ होगा ।
{"The members of the Brahmo Samaj sing the name of Hari. That is very good. Through earnest prayer one receives the grace of God and realizes Him. God can be realized by means of all paths. The same God is invoked by different names."
“ सभी पथों से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है । एक ईश्वर को अनेक नामों से पुकारते हैं । जिस प्रकार एक घाट का जल हिन्दू लोग पीते हैं, कहते हैं जल; दूसरे घाट में ईसाई लोग पीते हैं, कहते हैं वाटर; और तीसरे घाट में मुसलमान पीते हैं, कहते हैं पानी ।”
सुरेन्द्र के भाई- थिओसफी (Theosophy) कैसी लगती है?
श्रीरामकृष्ण- सुना है लोग कहते हैं कि उससे अलौकिक शक्ति (superhuman powers ) प्राप्त होती है। देव मोड़ोल नामक व्यक्ति के मकान पर देखा था कि एक आदमी पिशाचसिद्ध है । पिशाच कितनी ही चीजें ला देता था । अलौकिक शक्ति लेकर क्या करूँगा? क्या उससे ईश्वरप्राप्ति होती है? यदि ईश्वर-प्राप्ति न हुई तो सभी मिथ्या है !
{ "I have heard that man can acquire superhuman powers through it and perform miracles. I saw a man who had brought a ghost under control. The ghost used to procure various things for his master. What shall I do with superhuman powers? Can one realize God through them? If God is not realized then everything becomes false."
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