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मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

$$$परिच्छेद ~ 21, [(14 दिसम्बर 1882) श्रीरामकृष्ण वचनामृत ] *प्रत्याहार (Withdrawal of mind) *Four dimensions of one Rama*एक राम (परम् सत्य) के चार आयाम *[चौथा राम] सबसे न्यारा है , सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी ताकत है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है।*मारवाड़ी (अग्रवाल) भक्तों को उपदेश * मन की आसक्ति का मुँह घुमाने के लिए विवेकअंकुश (discretion) का -प्रयोग करो ! * Use discretion to make the mind introvert *" समय न होने पर (proper time) कुछ नहीं होता * किसी किसी का भोग-कर्म काफी बाकी रह जाता है । इसीलिए देरी होती है, फोड़ा कच्चा रहते चीरने पर हानि पहुँचाता है । हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु को पा लें। देखो, व्यापार करने में सत्य की टेक नहीं रहती । व्यापार में तेजी-मन्दी होती रहती है । साधु को शुद्ध चीज देनी चाहिए । मिथ्या उपाय से प्राप्त की हुई चीजें नहीं देनी चाहिए । सत्यपथ द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।’सत्येन लभ्यस्तपसा ह्योष आत्मा /सत्यमेव जयते नानृतम । [1882 में कुल 21 परिच्छेद है ]

*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत {श्री महेन्द्रनाथ गुप्त (बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}*साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ। 

*परिच्छेद ~ २१* 

*मारवाड़ी (अग्रवाल) भक्तों को उपदेश 

* मन की आसक्ति का मुँह घुमाने के लिए विवेकअंकुश (discretion) का -प्रयोग करो ! *

[प्रत्याहार (Withdrawal of mind from 'Kamini-Kanchan' Lust and Greed) : अर्थात मन को  कामिनी -कांचन में जाने से खींचकर अन्तर्मुखी बनाने के लिए विवेकअंकुश -प्रयोग करो ! *To pull the mind from going into Kamini-Kanchan (lust and greed) and make it introvert - use discretion! ]

तीसरा पहर बीत गया है । मास्टर तथा दो-एक भक्त बैठे हैं । कुछ मारवाड़ी भक्तों  ने आकर प्रणाम किया । वे कलकत्ते में व्यापार करते हैं । उन्होंने श्रीरामकृष्ण से कहा, “आप हमें कुछ उपदेश कीजिए।’ श्रीरामकृष्ण हँस रहे हैं ।

{It was afternoon. The Master was sitting in his room at Dakshineswar with M. and one or two other devotees. Several Marwari devotees (Most Intelligent and Rich Businessman devotees) ​arrived and saluted the Master. They requested Sri Ramakrishna to give them spiritual instruction. He smiled.

श्रीरामकृष्ण (मारवाड़ी भक्तों के प्रति) - देखो ‘मैं और मेरा’ (feeling of 'I' and 'mine' ) दोनों अज्ञान हैं। ‘हे ईश्वर, तुम कर्ता हो और यह सब तुम्हारा है’ इसका नाम ज्ञान है । और ‘मेरा’ क्यों कर कहोगे? बगीचे का कर्मचारी कहता है, ‘मेरा बगीचा’, परन्तु कोई अपराध करने पर मालिक उसे निकाल देता है। 

उस समय ऐसा साहस नहीं होता कि वह आम की लकड़ी का बना अपना सन्दूक भी बगीचे से बाहर ले जाय ! काम, क्रोध  (Lust and Greed) आदि जाने के नहीं । ईश्वर की और उनका मुँह घुमा दो । कामना, लोभ करना हो तो ईश्वर को पाने के लिए कामना, लोभ करो । विवेकअंकुश -प्रयोग  करके उन्हें भगा दो । जैसे हाथी जब दूसरों के केले के पेड़ खाने जाता है, तो महावत उसे अंकुश मारता है ।

{MASTER (to the Marwari devotees): "You see, the feeling of 'I' and 'mine' is the result of ignorance. But to say, 'O God, Thou art the Doer; all these belong to Thee' is the sign of Knowledge. How can you say such a thing as 'mine'? The superintendent of the garden says, This is my garden.' But if he is dismissed because of some misconduct, then he does not have the courage to take away even such a worthless thing as his mango-wood box. Anger and lust cannot be destroyed. Turn them toward God. If you must feel desire and temptation, then desire to realize God, feel tempted by Him. Discriminate and turn the passions away from worldly objects. When the elephant is about to devour a plaintain-tree in someone's garden, the mahut strikes it with his iron-tipped goad.

" यथोचित समय (proper time) आये बिना कुछ नहीं होता"

“तुम लोग तो व्यापार करते हो । जानते हो कि धीरे धीरे उन्नति करनी होती है । कोई पहले अरण्डी पिसने की घानी ( castor-oil factory) खोलता है और फिर अधिक धन होने पर कपड़े की दुकान खोलता है । इसी प्रकार ईश्वर के पथ में आगे बढ़ना पड़ता है । बने तो बीच बीच में कुछ दिन निर्जन में रहकर (गुरु-गृहवास करके) उन्हें अच्छी तरह से पुकारो ।

{ "You are merchants. You know how to improve your business gradually. Some of you start with a castor-oil factory (or Flour grinding machine). After making some money at that, you open a cloth shop (Plastic Manufacturing industries) . In the same way, one makes progress toward God. It may be that you go into solitude (Mahamandal Youth Training Camp) , now and then, and devote more time to prayer.

“फिर भी जानते हो ? समय न होने पर (proper time) कुछ नहीं होता । किसी किसी का भोग-कर्म काफी बाकी रह जाता है । इसीलिए देरी होती है, फोड़ा कच्चा रहते चीरने पर हानि पहुँचाता है । पककर जब मुँह निकलता है, उस समय डाक्टर चीरता है । लड़के ने कहा था, ‘माँ, अब मैं सोता हूँ । जब मुझे शौच लगे तब तुम जगा देना ।’ माँ ने कहा, ‘बेटा, शौच लगने पर तुम खुद ही उठ जाओगे मुझे उठाना न पड़ेगा ।” (सब हँसते हैं ।)

.{"But you must remember that nothing can be achieved except in its proper time. Some persons must pass through many experiences and perform many worldly duties before they can turn their attention to God; so they have to wait a long time. If an abscess is lanced before it is soft, the result is not good; the surgeon makes the opening when it is soft and has come to a head. Once a child said to its mother: 'Mother, I am going to sleep now. Please wake me up when I feel the call of nature.' 'My child,' said the mother, 'when it is time for that, you will wake up yourself. I shan't have to wake you."}

*मारवाड़ी भक्त और व्यापार में मिथ्या वचन- एक राम के चार आयाम * 

मारवाड़ी भक्तगण बीच बीच में श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए मिठाई, फल सुगंधि मिश्री आदि लाते हैं । परन्तु श्रीरामकृष्ण साधारणतः उन चीजों का सेवन नहीं करते । कहते हैं, वे लोग अनेक झूठी बातें कहकर धन कमाते हैं । इसलिए उपस्थित मारवाड़ियों को वार्तालाप के भीतर से उपदेश दे रहे हैं ।

श्रीरामकृष्ण-  देखो, व्यापार करने में सत्य की टेक नहीं रहती । व्यापार में तेजी-मन्दी होती रहती है । नानंक की कहानी में है, उन्होंने कहा, “असाधु की चीजें खाने गया तो मैंने देखा कि वे सब खून से लथपथ हो गयी हैं ! साधु को शुद्ध चीज देनी चाहिए । मिथ्या उपाय से प्राप्त की हुई चीजें नहीं देनी चाहिए । सत्यपथ द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है ।’^  

^ सत्येन लभ्यस्तपसा ह्योष आत्मा 

सम्यक् ज्ञानेन ब्रह्मचर्येण नित्यम् । 

(मुण्डकोपनिषद् ३/१/५) 

[यह 'आत्मा' सत्य से, आत्म-संयम (तप) से, सम्पूर्ण एवं सम्यक् ज्ञान से, ब्रह्मचर्य से सर्वदा लभ्य है यह 'आत्मा' जो अन्तःशरीर में है शुभ एवं ज्योतिर्मय है जिसे वे तपस्वीजन (यतिजन) देखते हैं जो दोषमुक्त हो चुके हैं।]

सत्यमेव जयते नानृतम । 

(मुण्डकोपनिषद् ३/१/६)

'सत्य' की ही विजय होती है असत्य की नहीं; 'सत्य' के द्वारा ही देवों का यात्रा-पथ विस्तीर्ण हुआ, जिसके द्वारा आप्तकाम ऋषिगण वहां आरोहण करते हैं जहाँ 'सत्य' का परम धाम है।

* एक राम (परम् सत्य) के चार आयाम *

(Four dimensions of one Rama)

“सदा उनका नाम लेना चाहिए । काम के समय मन को उनके हवाले कर देना चाहिए । जिस प्रकार मेरी पीठ पर फोड़ा हुआ है, सभी काम कर रहा हूँ, परन्तु मन फोड़े में ही है । रामनाम लेना अच्छा है । जो राम दशरथ का बेटा है, उन्होंने जगत् की सृष्टि की है, वे सर्वभूतों में हैं । और वे अत्यन्त निकट हैं, वे ही भीतर और बाहर हैं ।

 It is good to repeat the name of Rama. 'The same Rama who was the son of King Dasaratha has created this world. Again, as Spirit, He pervades all beings. He is very near us; He is both within and without."

कबीर साहब के कथनानुसार राम चार प्रकार के हैं , उन्होंने फ़रमाया है :-

“ एक राम दशरथ का बेटा , वही राम घट-घट में लेटा ।

 एक राम का जगत् पसारा, वही राम सबहूँ ते  न्यारा ॥”

(संत कबीर वाणी)

[ एक राम] तो राजा दशरथ के पुत्र थे जिन्होंने यहाँ राज किया।  वो एक आदर्श पुत्र , आदर्श पति ,आदर्श भाई तथा आदर्श राजा थे।  जब भी हम अपने मुल्क की बेहतरी की दुआ करते हैं तो यही कहते हैं कि यहाँ राम राज्य हो जाए। 

[दूसरा वो राम है,] जो हमारे घट – घट में बैठा है और वो है हमारा मन।   उसका`काम है कि वो हमें परमार्थ के रास्ते में तरक्की न करने दे , यद्यपि हमारा मन भी ब्रह्म का अंश है , ब्रह्म का स्रोत है,परन्तु वह अपने स्रोत को भूल चूका है; इसीलिए  संत हमें समझाते हैं कि- ” मन बैरी को मीत कर ”

[ तीसरा वो मायापति राम है] जिसका ये सारा पसारा है इसमें माया (अविद्या) भी है , काम – क्रोध – लोभ – मोह – अहंकार भी है, बाकि भी हर तरह की कशिश है , हमें इनसे बचने का प्रयास करना है।  

[चौथा राम] सबसे न्यारा है , सबसे ऊंचा है ,सबसे बड़ी शक्ति है , वही इस सृष्टि का कर्ता-धर्ता है।  हमारे जीवन का लक्ष्य तभी पूरा होता है जब हम , जितनी भी अवस्थाएँ हैं , उन सबसे गुजरकर प्रभु को पा लें। इसलिए कोई  संत जब भी बात करते हैं , वो उसी 'राम'  (माँ काली) का जिक्र करते हैं..... जो सूर्य के पहले भी थे , सूर्य जब हैं तब भी हैं ! सूर्य -चंद्र जब नहीं रहते हैं -तब भी वे रहते हैं ! 

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