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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

ॐपरिच्छेद ~18,[( 26 नवम्बर 1882) श्री रामकृष्ण वचनामृत ] Kali's vision First ' *Before that one should not 'lecture'.* श्री विजय गोस्वामी जैसे ब्राह्मभक्तों को उपदेश । वेद में कहा है, ‘अवाङ्मानसगोचरम् ।’ इसका अर्थ यह है कि वे विषयासक्त मन के अगोचर हैं । वैष्णवचरण कहा करता था, ‘वे शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि द्वारा प्राप्त करने योग्य हैं ।* attainment of Command~ then 'lecture‘* ’पहले ईश्वर-दर्शन और आदेश प्राप्ति, तब लोकशिक्षा॥* पहले ईश्वर (माँ काली) --दर्शन और आदेश प्राप्ति, तब लोकशिक्षा One can teach others if one receives that command from God after seeing Him.

*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ ]  

परिच्छेद~ १८ 

*मणि मल्लिक के वार्षिक ब्राह्मोत्सव में श्रीरामकृष्ण* 

श्रीरामकृष्ण ने कलकत्ते में श्री मणिलाल मल्लिक के सिन्दुरियापट्टी वाले मकान पर भक्तों के साथ शुभागमन किया है । वहाँ पर ब्राह्मसमाज का प्रतिवर्ष उत्सव होता है । दिन के चार बजे का समय होगा। यहाँ पर आज ब्रह्मसमाज का वार्षिक उत्सव है । 26 नवम्बर 1882  ई. । श्री विजयकृष्ण गोस्वामी तथा अनेक ब्राह्मभक्त और श्री प्रेमचन्द्र बड़ाल तथा गृहस्वामी के अन्य मित्रगण आए हैं । मास्टर आदि साथ हैं । 

श्री मणिलाल ने भक्तों की सेवा के लिए अनेक प्रकार का आयोजन किया है । प्रह्लाद-चरित्र की कथा होगी, उसके बाद ब्राह्मसमाज की उपासना होगी, अन्त में भक्तगण प्रसाद पायेंगे । श्री विजय अभी तक ब्राह्मसमाज में ही हैं । वे आज की उपासना करेंगे उन्होंने अभी तक गैरिक वस्त्र धारण नहीं किया है

कथक महाशय प्रह्लाद-चरित्र की कथा कह रहे हैं । पिता हिरण्यकशिपु हरि की निन्दा करते हुए पुत्र प्रह्लाद को बार बार क्लेशित कर रहे हैं । प्रह्लाद हाथ जोड़कर हरि से प्रार्थना कर रहे हैं और कह रहे हैं, “हे हरि, पिता को सद्बुद्धि दो ।”

{The kathak recited the life of Prahlada from the Purana. Its substance was as follows: Hiranyakasipu, Prahlada's father, was king of the demons. He bore great malice toward God and put his own son through endless tortures for leading a religious life. Afflicted by his father, Prahlada prayed to God, "O God, please give my father holy inclinations."

 श्रीरामकृष्ण इस बात को सुनकर रो रहे हैं । श्री विजय आदि भक्तगण श्रीरामकृष्ण के पास बैठे हैं । श्रीरामकृष्ण को भावावस्था हो गयी है । {At these words the Master wept. He went into an ecstatic mood. Afterwards he began to talk to the devotees.  

श्री विजय गोस्वामी जैसे ब्राह्मभक्तों को उपदेश । 

*पहले ईश्वर (माँ काली) -दर्शन और आदेश प्राप्ति, तब लोकशिक्षा * 

कुछ देर बाद विजय आदि भक्तों से कह रहे हैं, “भक्ति ही सार है । उसके नामगुण का कीर्तन सदा करते करते भक्ति प्राप्त होती है । अहा, शिवनाथ की कैसी भक्ति है । मानो, रस में पड़ा हुआ रसगुल्ला। 

[“ভক্তিই সার। তাঁর নামগুণকীর্তন সর্বদা করতে করতে ভক্তিলাভ হয়। আহা! শিবনাথের কি ভক্তি! যেন রসে ফেলা ছানাবড়া

“ऐसा समझना ठीक नहीं कि मेरा धर्म ही ठीक है तथा दूसरे सभी का धर्म असत्य है । सभी पथों से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है । हृदय में व्याकुलता रहनी चाहिए । *अनन्त पथ, अनन्त मत*।

{"One should not think, 'My religion alone is the right path and other religions are false.' God can be realized by means of all paths. It is enough to have sincere yearning for God. Infinite are the paths and infinite the opinions.

“এরকম মনে করা ভাল নয় যে, আমার ধর্মই ঠিক, আর অন্য সকলের ধর্ম ভুল। সব পথ দিয়েই তাঁকে পাওয়া যায়। আন্তরিক ব্যাকুলতা থাকলেই হল। অনন্ত পথ — অনন্ত মত।”

“देखो, ईश्वर (माँ काली)  को देखा जा सकता है । वेद में कहा है, ‘अवाङ्मानसगोचरम् ।’ इसका अर्थ यह है कि वे विषयासक्त मन के अगोचर हैं । वैष्णवचरण कहा करता था, ‘वे शुद्ध मन, शुद्ध बुद्धि द्वारा प्राप्त करने योग्य हैं ।’^* इसीलिए साधुसंग, प्रार्थना, गुरु का उपदेश-यह सब आवश्यक है । तभी चित्तशुद्धि होती है, तब उनका दर्शन होता है । मैले जल में निर्मली डालने से वह साफ होता है, तब मुँह देखा जाता है मैले आईने में भी मुँह नहीं देखा जा सकता । (^ * मन एवं मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बन्धाय विषयासंगि मोक्षे निर्विषयं स्मृतम् ॥ - मैत्रायषी उपनिषद)  

{"Let me tell you one thing. God can be seen. The Vedas say that God is beyond mind and speech. The meaning of this is that God is unknown to the mind attached to worldly objects. Vaishnavcharan (A noted devotee of the Vaishnava sect and an admirer of Sri Ramakrishna.) used to say, 'God is known by the mind and intellect that are pure.' Therefore it is necessary to seek the company of holy men, practise prayer, and listen to the instruction of the guru. These purify the mind. Then one sees God. Dirt can be removed from water by a purifying agent. Then one sees one's reflection in it. One cannot see one's face in a mirror if the mirror is covered with dirt.}“দেখ! ঈশ্বরকে দেখা যায়। ‘অবাঙ্মনসোগোচর’ বেদে বলেছে: এর মানে বিষয়াসক্ত মনের অগোচর। বৈষ্ণবরচণ বলত, তিনি শুদ্ধ মন, শুদ্ধ বুদ্ধির গোচর।১ তাই সাধুসঙ্গ, প্রার্থনা, গুরুর উপদেশ এই সব প্রয়োজন। তবে চিত্তশুদ্ধি হয়। তবে তাঁর দর্শন হয়। ঘোলা জলে নির্মলি ফেললে পরিষ্কার হয়। তখন মুখ দেখা যায়। ময়লা আরশিতে ও মুখ দেখা যায় না।

“चित्तशुद्धि के बाद भक्ति प्राप्त करने पर, उनकी कृपा से उनका दर्शन होता है । दर्शन के बाद ‘आदेश’ पाने पर तब लोकशिक्षा दी जा सकती है । पहले से ही लेक्चर देना ठीक नहीं है । एक गाने में कहा है कि-

{"After the purification of the heart (अहंकार का शवदाह हो जाने पर) one obtains divine love. Then one sees God, through His grace. One can teach others if one receives that command from God after seeing Him. Before that one should not 'lecture'. There is a song that says:

“চিত্তশুদ্ধির পর ভক্তিলাভ করলে, তবে তাঁর কৃপায় তাঁকে দর্শন হয়। দর্শনের পর আদেশ পেলে তবে লোকশিক্ষা দেওয়া যায়। আগে থাকতে লেকচার দেওয়া ভাল নয়। একটা গানে আছে:

भाबछो की मन एकला बोशे, 

अनुराग बिने  की चांद गौर मिले। 

मंदिरे तोर नाईको माधव,

पोदो शांख फुंके तुई कोरलि गोल। 

ताय चामचीके एग्यारो जना,  

दिवा- निशी दिच्छे थाना।।

 ভাবছো কি মন একলা বসে,

অনুরাগ বিনে কি চাঁদ গৌর মিলে।

মন্দিরে তোর নাইকে মাধব,

পোদো শাঁক ফুঁকে তুই করলি গোল।

তায় চামচিকে এগারজনা,

দিবানিশি দিচ্ছে থানা।

‘मन अकेले बैठे क्या सोच रहे हो? क्या कभी प्रेम के बिना ईश्वर मिल सकता है?’ 

“फिर कहा है, ‘तेरे मन्दिर में माधव (माँ काली) नहीं हैं । शंख बजाकर तूने हल्ला मचा दिया । उसमें तो ग्यारह चमगीदड़ रातदिन मँडराते रहते हैं ।’ 

“पहले हृदय-मन्दिर को साफ करना होता है । ठाकुरजी की प्रतिमा को लाना होता है । पूजा की तैयारी करनी होती है । कोई तैयार नहीं, भों भों करके शंख बजाने से क्या होगा?” 

{You have set up no image माँ काली here, Within the shrine, O fool! Blowing the conch, you simply make, Confusion worse confounded. "You should first cleanse the shrine of your heart. Then you should install the Deity (ठाकुर =माँ काली) and arrange worship. As yet nothing has been done. What can you achieve by blowing the conch-shell (The conch-shell is blown during the temple service.) and simply making a loud noise?"

अब श्री विजय गोस्वामी वेदी पर बैठे ब्राह्मसमाज की पद्धति के अनुसार उपासना कर रहे हैं । उपासना के बाद वे श्रीरामकृष्ण के पास जाकर बैठे ।

*स्व-परामर्श सूत्र से देह-मन-जिह्वा (3H) को पवित्र करो *

[Purify the Body-Mind-Tongue (3H)  with Auto-Suggestion formula]  

श्रीरामकृष्ण (विजय के प्रति)- अच्छा, तुम लोगों ने उतना पाप, पाप क्यों कहा? सौ बार ‘मैं पापी हूँ, मैं पापी हूँ’, ऐसा कहने से वैसा ही हो जाता है । ऐसा विश्वास करना चाहिए कि उनका नाम (ठाकुर माँ काली का नाम ) लिया- है, मेरा फिर पाप कैसा? वे हमारे माँ-बाप हैं; 'उनसे  कहो' कि पाप किया है, अब कभी नहीं करूँगा और 'उनका नाम' लो । सब मिलकर उनके नाम से देह-मन को पवित्र करो- जिव्हा को पवित्र करो । 

{MASTER (to Vijay): "Will you tell me one thing? Why did you harp so much on sin? By repeating a hundred times, 'I am a sinner', one verily becomes a sinner. One should have such faith as to be able to say, 'What? I have taken the name of God; how can I be a sinner?' God is our Father and Mother. Tell Him, 'O Lord, I have committed sins, but I won't repeat them.' Chant His name and purify your body and mind. Purify your tongue by singing God's holy name."

শ্রীরামকৃষ্ণ (বিজয়ের প্রতি) — আচ্ছা, তোমরা অত পাপ পাপ বললে কেন? একশোবার “আমি পাপী” “আমি পাপী” বললে তাই হয়ে যায়। এমন বিশ্বাস করা চাই যে, তাঁর নাম করেছি — আমার আবার পাপ কি? তিনি আমাদের বাপ-মা; তাঁকে বল যে, পাপ করেছি, আর কখনও করব না। আর তাঁর নাম কর, তাঁর নামে সকলে দেহ-মন পবিত্র কর — জিহ্বাকে পবিত্র কর।

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