ब्रह्माण्ड किसके अधीन है ?
(वृहदारण्यक उपनिषद : यजुर्वेद )
" जो बोले सो रहे अभय, भगवान श्रीरामकृष्णदेव की जय ! "
प्राचीन युग में जनक नामक एक राजा भारतवर्ष में हुए थे। वे राजऋषि थे, इसीलिये किसी युग में उनकी राजसभा ज्ञान और कर्म की असाधारण समन्वय-भूमि के रूप में विख्यात थी। उनकी राजसभा को कितने ही ऋषि, कितने ही वेदज्ञ ब्राह्मण अपनी प्रतिभा से सदैव दैदीप्यमान बनाये रखते थे।
उन दिनों भारत में सर्वत्र स्त्रीशिक्षा का प्रचलन था। बहुत सी भारतीय-नारी पूर्णज्ञान की अधिकारी थीं। इसीलिये भारतीय सभ्यता को समृद्ध बनाने में स्त्रियों का योगदान भी कम नहीं रहा है। वेदों में बहुत सी नारी-ऋषि के नाम पाये जाते है। उनमें गार्गी, मैत्रेयी, वाक्, घोषा, अपाला, आदि नाम प्रसिद्द है।
एकदिन राजऋषि जनक की राजधानी में बहुत से ज्ञानी-गुनी सज्जन व्यक्ति, स्त्री एवं पुरुष ऋषि, बहुत से वेदज्ञ ब्राह्मण आदि एकत्रित हुए हैं। राजा जनक ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था, उसी अवसर पर वे सभी वहाँ एकत्रित हुए थे। इस यज्ञ में जनक प्रचूर दान करने वाले थे।
उन दिनों ब्राह्मण और ऋषि लोग ज्ञान और धर्म की चर्चा करने में अपना जीवन व्यतीत करते थे; और इसी प्रकार वे समाज में ज्ञान एवं उच्च भावों का वितरण निःशुल्क किया करते थे। वे रोजी-रोजगार करके धन नहीं कमाते थे। इसीलिये समाज भी विविध प्रकार के दान देकर, उनके थोड़े में ही सन्तुष्ट हो जाने वाले जीवन की समस्त आवश्यकताओं को परिपूर्ण कर देता था।
दान देने का कार्यक्रम लगभग समाप्त होने को था, उसी जनक के मन में एक विचार कौंध गया। एक साथ, एक ही स्थान पर इतने बड़े-बड़े, नामी-गिरामी ऋषियों एवं वेदज्ञ ब्राह्मणों का एकत्र होना भी कोई साधारण बात नहीं है। इसके अतिरिक्त ज्ञान के मार्ग का विभिन्न स्तर भी होता है। यहाँ उपस्थित वेदज्ञ ब्राह्मणों एवं ऋषियों में कौन सा व्यक्ति ज्ञान के सर्वोच्च शिखर पर प्रतिष्ठित है, आज इस बात की परीक्षा हो सकती है।
उनहोंने एक हजार सर्व-सूलक्षणा दुग्धवती, सुदर्शना गौओं के सींघों में सोने की एक एक अशर्फियाँ बंधवा दीं। फिर उन गौओं को सभा के सामने खड़ी करवाकर, राजा जनक ने सभा को संबोधित करके कहा: "हे महाज्ञानीयों, यह मेरा सौभाग्य
है कि आप सब आज यहाँ पधारे हैं। मैंने यहाँ पर १००० गायों को रखा है जिन पर
सोने की मुहरें जडित है। आप में से जो श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हो वह इन सब
गायों को ले जा सकता है।"
यह घोषणा सुनते ही सम्पूर्ण सभा में सन्नाटा सा छ गया। निर्णय लेना अति दुविधाजनक था, क्योंकि ब्रह्मज्ञानियों की इस विशाल सभा में, अगर कोई अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी कहने की हिम्मत करे, तो उसे ज्ञानी कैसे कहा जायेगा?
कुछ देर बाद लोगों ने देखा कि ऋषि याज्ञवल्क्य ऋषि अपने स्थान से उठकर अपने शिष्य सोमश्रवा से
कह रहे हैं- "हे शिष्य! इन गायों को हमारे आश्रम की और हाँक ले चलो।"
यह सुनते ही सभा में शोर होने होने लगा। ब्राह्मण-पण्डित लोग आवेश में आ गये। उन्होंने सोचा," हमलोगों के यहाँ उपस्थित रहते, याज्ञवल्क्य को इतना कहने का साहस कैसे हुआ, कि वे ही सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हैं ! उनमें इतना घमण्ड है ! "
किन्तु जिन ऋषियों को याज्ञवल्क्य की उपलब्धियों की गहराई का थोडा-बहुत पता था, उनको इस बात से ईर्ष्या या क्रोध तो नहीं हुआ, किन्तु उनमें से कई लोगों के मन में भी इस बात की परीक्षा करके देखने की हुई, कि सचमुच याज्ञवल्क्य जी ही ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं भी या नहीं ? किन्तु जब जनक के राजपुरोहित अश्वल से और अधिक बर्दास्त नहीं हुआ, तो वे उठकर खड़े हुए और याज्ञवल्क्य से प्रश्न किये-" हमलोगों के बीच, क्या आप ही श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हैं ? "
याज्ञवल्क्य ने प्रशान्त मुखमंडल से विनम्र होकर उत्तर दिया-" सभी ब्रह्मज्ञानियों के चरणों में, मेरा प्रणाम निवेदित है ! मुझे इन गौओं की आवश्यकता थी, इसीलिये लिया हूँ।"
उनकी इस विनम्रता और धीरस्थिर भाव-भंगिमा को देखकर, जिन लोगों के जीवन में सत्य की अनुभूति का थोड़ा भी अंश समाहित हुआ था, वे यह समझ गये कि सचमुच ऋषि याज्ञवल्क्य ही श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हैं। और यह देखकर कि योग्य पात्र को ही गो-धन प्राप्त हुआ है, राजा जनक भी बहुत प्रसन्न हुए।
क्योंकि चाहे कोई कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो, आत्मसाक्षात्कार हुए बिना, या अपने सच्चे स्वरूप की अनुभूति किये बिना, केवल शास्त्रज्ञान को बुद्धिगत कर लेने से ही हमलोगों का क्रोध,अहंकार, शेखी बघारने की आदत आदि दूर नही होते हैं।
इसीलिये राजपुरोहित अश्वलजी रुके नहीं, एक प्रश्न के बाद दूसरा प्रश्न पूछते रहे। किन्तु याज्ञवल्क्य ने उनके सभी प्रश्नों का सही सही उत्तर दे दिया तो अन्त में उनको रुकना ही पड़ा।
उनके बाद एक एक करके कई लोग उठे, और याज्ञवल्क्य के उपर धारदार प्रश्नों के अनेक वाणों का प्रहार करने लगे। कोई तो यथार्थ जिज्ञासु के रूप से पूछ रहे थे, और कोई केवल याज्ञवल्क्य को परास्त कर गौओं को जब्त कराने की इच्छा से पूछ रहे थे।
उनके सभी प्रश्नों का बिल्कुल सही सही उत्तर याज्ञवल्क्य जी ने दिया था। उन्होंने जो उत्तर दिया था, उसी से वृहदारण्यक उपनिषद का एक विशाल अध्याय तैयार हो गया है। उन्हीं प्रश्नों में से कुछ का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है।
ऋषि कहोल उस जमाने के एक सच्चे तत्व-अन्वेषी जिज्ञासु थे। उन्होंने पूछा, " जो सबों के भीतर अन्तरात्मा रूप से विद्यमान हैं, उनके सम्बन्ध में बताइये।"
ऋषि याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया," आत्मा ही सबों के अन्तर्यामी हैं। भूख-प्यास, जरा-मृत्यु, शोक-दुःख कोई भी उनको स्पर्श नहीं कर सकता, वे इन सब चीजों से अतीत हैं ! उनको प्राप्त कर लेने से पुत्र-परिजन,धन-दौलत, यहाँ तक कि स्वर्ग भी तूच्छ प्रतीत होता है। उनको प्राप्त करने की इच्छा से ही लोग दर-दर के भिखारी का वेश धारण कर लेते हैं।"
उनके बाद एक नारी ऋषि प्रश्न करने के लिये उठ खड़ी हुईं, उनका नाम था वाचकन्वी गार्गी। उन्होंने दो बार उठकर प्रश्न किया था। जगत का मूल उपादान क्या है, मूल कारण क्या है, इसी के सम्बन्ध में गार्गी प्रश्न पूछने लगीं। वे हमलोगों द्वारा इन्द्रिय-ग्राह्य स्थूल जड़ पदार्थों से आरम्भ करके क्रमशः सूक्ष्म से सूक्ष्मतर विषयों में प्रवेश करने लगीं।
गार्गी ने पूछा था, " हे ऋषिवर! जगत के सभी पदार्थ ' क्षिति ' ( मिट्टी या स्थूल कड़ा पदार्थ ) ' अप ' या जल में घुलमिल जाता है तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है? याज्ञवक्ल्य ने उत्तर दिया कि जल अन्तत: ' वायु ' (वाष्पीय पदार्थ) में ओतप्रोत हो जाता है। फिर गार्गी ने पूछ लिया कि
वायु किसमें जाकर मिल जाती है और याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक
में।
इसी प्रकार गार्गी एक प्रश्न का उत्तर पाने के बाद दूसरा प्रश्न पूछते हुए मूल कारण की ओर जाते जाते, वस्तु की सूक्ष्म अवस्था से सूक्ष्मतर अवस्था की ओर बढ़ते हुए, याज्ञवल्क्य का उत्तर अन्त में जगत के चरम सत्य ब्रह्म तक आ पहुँचता है।
इसके बाद भी गार्गी ने फिर वही सवाल पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक
किसमें जाकर मिल जाता है? इस पर याज्ञवक्ल्य ने
कहा-’गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्’ यानी गार्गी, इतने
सवाल मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा भेजा ही फट जाए।
इसके बाद गार्गी को बहुत प्रेम से समझाते हुए, याज्ञवल्क्यजी ने कहा- " देखो गार्गी, प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व ' ब्रह्म ' या शुद्ध चेतना (शाश्वत चैतन्य स्पंदन ) के उपर ही टिका हुआ है। सभी कार्य अपने कारण में जाकर घुलमिल जाते हैं, ब्रह्म ही चरम सत्य हैं, वे ही समस्त कारणों के कारण हैं। उनका कोई कारण नहीं है, वे स्वयंभू हैं ! " इस प्रकार वे इस दृष्टिगोचर जगत की विभिन्नता को ब्रह्म के एकत्व में प्रतिष्ठित करा देते हैं।
प्राचीन ऋषियों ने जगत के पदार्थों को पाँच मूल तत्वों- ' क्षिति,अप,तेज,मरुत ओर व्योम ' में विभक्त किया था। इन सबके भी स्थूल और सूक्ष्म अवस्थायें होती हैं। आधुनिक विज्ञान की भाषा में स्थूल पदार्थों के अन्तर्गत ' क्षिति ' को पदार्थ या मैटर की कठोर अवस्था या ' सॉलिड ' कहा जा सकता है। ' अप ' को तरल अवस्था या ' लिक्विड ' कहते हैं। ' मरुत ' को गैसीय अवस्था तथा ' तेज ' को शक्ति या ' एनर्जी ' कहा जा सकता है।
एवं ' व्योम ' या आकाश को ' एनर्जी ' से भी सूक्ष्म पदार्थों (हिग्स बोसोन या God particle ) से परिपूर्ण
' स्पेस ' कहा जा सकता है, जिसकी छाती पर पैर रख कर शक्ति के अर्धनारीश्वर रूप में ' नटराज ' के चपल नृत्य के एक एक ताल पर कई विविधतायें ( ब्रह्म की इच्छाएँ ?) इस स्थूल जगत-प्रपंच के रूप में दृष्टिगोचर होने लगती हैं।
[श्रीरामकृष्णदेव कहते हैं, " सच्चिदानन्द (ब्रह्म) कैसे हैं, कोई नहीं बता सकता। इसीलिये वे पहले अर्धनारीश्वर बने। जानते हो, उन्होंने ऐसा क्यों किया ? -यह दिखाने के लिये कि वे स्वयं ही प्रकृति, पुरुष दोनों हैं। फिर एक सीढ़ी नीचे उतर आकर वे अलग-अलग पुरुष और प्रकृति (M /F) बने। " मेरी ब्रह्ममयी माँ ही सबकुछ बनी हैं। वह आदिशक्ति ही जिव-जगत बनी है। वही अनन्त-शक्ति-स्वरूपिणी माँ जगत में दैहिक,बौद्धिक, नैतिक, अध्यात्मिक आदि विविध शक्तियों के रूप में प्रकाशित हैं। मेरी माँ ही वेदान्त का ब्रह्म है। वह " माँ काली " - ब्रह्म का व्यक्त रूप है ! " ]
आधुनिक विज्ञान ( 4 जुलाई 2012 तक सर्न प्रयोग शाला में हिग्स बोसोन खोजने बाद भी ) जगत के मूल कारण को जानने की दिशा में इससे आगे नहीं बढ़ पाया है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ' एनर्जी ' से ही - ईंट, पत्थल, सोना, चाँदी, वायु, ताप, विद्युत् आदि सबकुछ बना है। तथा यह सब कुछ यदि नष्ट भी हो जाये तो ये सभी पदार्थ बिल्कुल शून्य नहीं हो जायेंगे, बल्कि सभी पुनः ' एनर्जी ' में परिणत हो जायेंगे। इस बात को केवल कहकर ही नहीं, बल्कि जापान पर परमाणु बम का विस्फोट करके विज्ञान ने जगत को भली-भाँति समझा भी दिया है।
आधुनिक विज्ञान की भाषा में सृष्टि का अर्थ है- ' जैसे किसी अनन्त शक्ति के सागर में प्राकृतिक नियम के अनुसार तरंग, बुलबुला और फेन (झाग) उठती हैं, कुछ क्षणों तक अस्तित्व में रहकर फिर से सागर के जल में मिल जाती हैं। झाग, तरंग आदि नाम और रूप में अलग अलग होने पर भी सत्ता की दृष्टि से, ये सभी वस्तुयें सागर के जल के अतिरिक्त, ' एनर्जी ' के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हैं। '
किन्तु हमारे ऋषि-गण जगत के मूल कारण की ओर ( अवश्य बहिर्मुखी मार्ग से नहीं अन्तर्मुखी होकर ) आगे तक पहुँच गये थे। इस अचेतन पदार्थ (जड़ वस्तु) ' एनर्जी ' का भी जो उपादान कारण है, तथा हमलोगों का मन, बुद्धि, आदि चेतन से प्रतीत होने वाले सूक्ष्मतर पदार्थों का भी जो मूल उपादान है उसका आविष्कार करके, उसका साक्षात्कार करने के बाद हमारे ऋषियों ने यह घोषणा किया है कि सभी पदार्थों का मूल उपादान केवल एक ही सत्ता है। विश्व-ब्रह्माण्ड में चेतन-अचेतन सब कुछ की मूल सत्ता की खोज करते हुए, वे ऋषि केवल शुद्ध चेतना (शाश्वत चैतन्य स्पन्दन- सच्चिदानन्द ) के अतिरिक्त अन्य किसी सत्ता को खोज ही नहीं सके। वेदान्त में उसी सत्ता को ब्रह्म कहा गया है।
वेदान्त के अनुसार सृष्टि का अर्थ है एक असीम, अविनाशी, आनन्द-घन चेतना के सागर, सच्चिदानन्द समुद्र में मानो अलग अलग नामों अलग अलग रूपों के तरंग, झाग, बुलबले इत्यादि उठ रहे हैं; इनमें से किसी का नाम शक्ति या ' एनर्जी ', किसी का नाम आकाश (या हिग्स बोसोन से परिपूर्ण स्पेस ), किसी का नाम वायू, किसी का नाम जल, किसी का मिट्टी है। फिर उसी चेतना सागर एक लहर का नाम मन, किसी तरंग का नाम बुद्धि, तो किसी को हमलोग अपना ससीम पृथक ' मैं '-बोध कहते हैं। देश-काल एवं प्राकृतिक नियम भी इसी चेतना-सागर से उठ रहे हैं।
गार्गी ने बाण
की तरह पैने अपने दूसरे प्रश्न में पूछा कि यह सारा विश्व-ब्रह्माण्ड किसके
अधीन है? "ऋषिवर सुनो। जिस प्रकार काशी या विदेह
का राजा अपने धनुष पर डोरी चढ़ाकर, एक साथ दो अचूक बाणों को धनुष पर चढ़ाकर
अपने दुश्मन पर सन्धान करता है, वैसे ही मैं आपसे दूसरा प्रश्न पूछती हूँ।"
याज्ञवल्क्य ने कहा- ‘पृच्छ गार्गी’ हे गार्गी, पूछो।
याज्ञवल्क्य ने कहा- ‘पृच्छ गार्गी’ हे गार्गी, पूछो।
गार्गी ने कहा, " स्वर्गलोक से
ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों के मध्य ( जो खाली स्थान देश या Space ) जो
कुछ भी है; और जो हो चुका है और जो अभी होना है (काल समय या Time ), ये दोनों किसमें ओतप्रोत
हैं? यह दृष्टिगोचर जगत ' स्पेस और टाइम ' के भीतर ही वास्तविक प्रतीत होता है, तो इसके परे भी कुछ है क्या; जो इस ' स्पेस और टाइम ' को भी नियन्त्रित कर रहा है ? "
याज्ञवल्क्य बोले, ‘एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी।’ यानी कोई
अक्षर, अविनाशी तत्व है जिसके प्रशासन में, अनुशासन में सभी कुछ ओतप्रोत
है। गार्गी ने पूछा कि यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है ? तो याज्ञवल्क्य का
उत्तर था- अक्षरतत्व के! इसी प्रसंग में उन्होंने कहा था, " गार्गी इस अक्षर तत्व को जाने बिना
यज्ञ और तप सब बेकार है। इस अक्षर पुरुष को जो व्यक्ति जान लेते हैं, वे ही ब्राह्मण हैं।"
थोड़ी गहराई से चिन्तन करने पर यह बात समझ में आ जाती है कि आधुनिक विज्ञान का बड़ा से बड़ा आविष्कार भी वेदान्त के सत्य के विरुद्ध तो जाते ही नहीं हैं, उल्टे उस सत्य का समर्थन ही करते हैं।
अर्थात ' हिग्स बोसोन ' जैसे आविष्कार भी हमारी बुद्धि को उस सत्य के सम्बन्ध में स्पष्ट धारणा बनाने में सहायता ही करते हैं।
नारी ऋषि गार्गी वाचकन्वी के साथ शास्त्रार्थ करने के बाद ऋषि उद्दालक ने भी याज्ञवल्क्य से प्रश्न किया था। उन्होंने यह जानना चाहा था कि - वर्तमान में जो कुछ घटित हो रहा है, और भविष्य में जो भी घटनाएँ घटने वाली हैं, वे समस्त घटनाएँ किसके द्वारा नियन्त्रित हो रही हैं? उन्होंने पूछा -" किस अन्तर्यामी या सूत्र में ये सभी बन्धे हैं, या किस नियम के अनुसार ये सब घटित होती हैं ? "
याज्ञवल्क्य ने उत्तर में कहा था, " पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, सूर्य, चन्द्र, स्थूल और सूक्ष्म लोक, देश-काल सभी कुछ के साथ तुम्हारी अपनी आत्मा ही जुड़ी हुई है। सबकुछ के नियन्ता वे ही हैं। आत्मा से अलग कोई श्रोता नहीं है, कोई मनन करने वाला भी नहीं है, तथा कोई अनुभव करने वाला भी नहीं है। "
याज्ञवल्क्य ने उत्तर में कहा था, " पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, सूर्य, चन्द्र, स्थूल और सूक्ष्म लोक, देश-काल सभी कुछ के साथ तुम्हारी अपनी आत्मा ही जुड़ी हुई है। सबकुछ के नियन्ता वे ही हैं। आत्मा से अलग कोई श्रोता नहीं है, कोई मनन करने वाला भी नहीं है, तथा कोई अनुभव करने वाला भी नहीं है। "
[ एक भक्त ने श्रीरामकृष्णदेव से पूछा था - ' कालीमाता ' को योगमाया क्यों कहते हैं ?
श्रीरामकृष्ण- " योगमाया अर्थात पुरुष और प्रकृति का योग। तुम जो कुछ देख रहे हो वह सभी कुछ पुरुष-प्रकृति का योग है। देखा नहीं, शिव-काली की मूर्ति में शिव के उपर काली खड़ी हुई है। शिव शव के जैसे पड़े हैं; काली शिव की ओर देख रही है। यह सभी पुरुष-प्रकृति का योग है। पुरुष निष्क्रिय है, इसीलिये शिव शव जैसे पड़े हैं। पुरुष के साथ युक्त होकर प्रकृति सृष्टि-स्थिति-प्रलय आदि सभी कार्य कर रही है। राधा-कृष्ण की युगल-मूर्ति का भी यही अर्थ है। " ]
आत्मा या शुद्ध चेतना के संसर्ग में रहने से ही मन बुद्धि आदि जड़ होकर भी चैतन्यमय जैसे प्रतीत होते हैं। इस विश्व-ब्रह्माण्ड में आत्मा के अतिरिक्त अन्य किसी की अपनी चेतना नहीं है।
-----------------------------------------------------------------------------
अब यह पता लगाना है कि ब्रह्माण्ड के कुल भार का एक चौथाई हिस्सा डार्क मैटर क्या है ? तथा ब्रह्माण्ड के विस्तार के लिए जिम्मेदार डार्क एनर्जी क्या है ? हमारा निर्माण मैटर या पदार्थ (पंच भूतों) से हुआ है, तो एंटी मैटर से क्यों नहीं ? गॉड पार्टिकल के गुणों और संरचना के विश्लेष्ण करने का काम अभी बाकी है।
यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के जिनीवा के पास स्थित फिजिक्स रिसर्च सेंटर के साइंटिस्टों का कहना है कि गॉड पार्टिकलों को उन्होंने खोज तो लिया है , लेकिन वे इनकी मौजूदगी का कोई ठोस सुबूत अभी पेश नहीं कर सकते. गॉड पार्टिकल का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोगों से जुड़े साइंटिस्टों ने लार्ज हैड्रोन कॉलाइडर को तेज स्पीड में चलाकर कई कणों को आपस में टकराया. इस दौरान बोसोन के चमकते हुए अंश सामने आए, लेकिन उन्हें पकडऩा मुमकिन नहीं था. सीएमएस से जुड़े साइंटिस्ट ओलिवर बकमुलेर ने बताया, ये दोनों ही प्रयोग एक ही मास लेवल पर गॉड पार्टिकलों के वजूद का संकेत दे रहे थे. एटलस से जुड़ी रहीं साइंटिस्ट फैबिओला गियानोती के मुताबिक , 126 गीगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट के पास पाए गए हिग्स बोसोन की मात्रा काफी ज्यादा हो सकती है , लेकिन इस बारे में कुछ भी दावे से कहने के लिए यादा स्टडी और आंकड़ों की जरूरत है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर हिग्स बोसोन के वजूद की पुष्टि आगे की रिसर्च में भी होती है , तो यह ब्रह्मांड के सभी मूलभूत तत्वों के रहस्यों को सामने लाने की शुरुआत होगी और यह पिछले 100 सालों में सबसे अहम खोज कही जाएगी. हालांकि , माना जा रहा है कि इस बारे में की जा रही रिसर्च का ठोस नतीजा अगले साल के अंत तक ही आ पाएगा.
CERN scientists find the God of all particles
4 July 2012
Press trust of India
GENEVA, 4 JULY: The five-decade-long
hunt for the elusive Higgs boson or the “God particle” has reached a
milestone, with scientists at the European Center for Nuclear Research
(CERN) claiming today that they have discovered a new subatomic particle
that looks like the one believed to be crucial for formation of the
universe.
Mr Joe Incandela, leader of one of the two independent
teams at the world's biggest atom smasher, told a packed audience of
scientists at CERN that the data had reached the level of certainty
needed for a discovery. But he has not yet confirmed that the new
particle is indeed the tiny and elusive, Higgs boson which is believed
to give all matter in the universe size and shape. Meanwhile, the second
team of physicists also claimed they have observed a new particle,
probably the elusive Higgs boson.
The announcements were made to
huge applause by scientists including Mr Peter Higgs who first suggested
the existence of the particle in 1964. In a statement, CERN said the
particle they found at LHC is “consistent with (the) long-sought
Higgs boson,” but more data was needed to identify the find.
“We have reached a milestone in our understanding of nature,” said CERN director-general Mr Rolf Heuer.
“The
discovery of a particle consistent with the Higgs boson opens the way
to more detailed studies, requiring larger statistics, which will pin
down the new particle's properties, and is likely to shed light on other
mysteries of our Universe,” Mr Heuer said. Finding the Higgs would
validate the Standard Model, a theory which identifies the building
blocks for matter and the particles that convey fundamental forces.
Higgs boson
is believed to exist in an invisible field created by the Big Bang some
13.7 billion years ago. When some particles encounter the Higgs, they
slow down and acquire mass, according to theory. Others, such as
particles of light, encounter no obstacle.
स्विट्जरलैंड स्थित यूरोपियन सेंटर फ़ॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के वैज्ञानिकों ने बुधवार, 4 जुलाई 2012 को दावा किया कि उन्हें हिग्स बोसोन कण या ' गॉड पार्टिकल ' मिल गया है। लेकिन यह इस खोज का महज एक पड़ाव है और मुख्य काम अभी बाकि है। नोबेल पुरस्कार विजेता साइंटिस्ट स्टीवन वियेनबर्ग कहते हैं, कि इस सूक्ष्म कण के मिलने से यह साबित होता है कि ब्रह्माण्ड में दिखने वाले खाली क्षेत्र में भी उर्जा क्षेत्र मौजूद है। यह कण उप अणुओं को भार देने में अहम भूमिका निभाता है, जो पदार्थ के मूल हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के लिये जिम्मेवार महाविस्फोट के तुरन्त बाद ही हिग्स फील्ड बन गया था।अब यह पता लगाना है कि ब्रह्माण्ड के कुल भार का एक चौथाई हिस्सा डार्क मैटर क्या है ? तथा ब्रह्माण्ड के विस्तार के लिए जिम्मेदार डार्क एनर्जी क्या है ? हमारा निर्माण मैटर या पदार्थ (पंच भूतों) से हुआ है, तो एंटी मैटर से क्यों नहीं ? गॉड पार्टिकल के गुणों और संरचना के विश्लेष्ण करने का काम अभी बाकी है।
सुलझा जीवन का रहस्य
वाशिंगटन, 14 दिसंबर. इंसान ब्रह्मांड की मौजूदगी के रहस्य के काफी करीब पहुंच चुका है. साइंटिस्टों ने दावा किया कि उन्होंने गॉड पार्टिकल की पहली झलक देखी है. गॉड पार्टिकल या हिग्स बोसोन वे कण है , जिसकी ब्रह्मांड के बनने में अहम भूमिका मानी जाती है. फिजिक्स के नियमों के मुताबिक धरती पर हर चीज को मास देने वाले यही कण हैं. लोगों को 1960 के दशक में इनके बारे में पहली बार पता चला. तब से ये फिजिक्स की अबूझ पहेली बने हुए हैं.यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के जिनीवा के पास स्थित फिजिक्स रिसर्च सेंटर के साइंटिस्टों का कहना है कि गॉड पार्टिकलों को उन्होंने खोज तो लिया है , लेकिन वे इनकी मौजूदगी का कोई ठोस सुबूत अभी पेश नहीं कर सकते. गॉड पार्टिकल का पता तब चला, जब एटलस और सीएमएस प्रयोगों से जुड़े साइंटिस्टों ने लार्ज हैड्रोन कॉलाइडर को तेज स्पीड में चलाकर कई कणों को आपस में टकराया. इस दौरान बोसोन के चमकते हुए अंश सामने आए, लेकिन उन्हें पकडऩा मुमकिन नहीं था. सीएमएस से जुड़े साइंटिस्ट ओलिवर बकमुलेर ने बताया, ये दोनों ही प्रयोग एक ही मास लेवल पर गॉड पार्टिकलों के वजूद का संकेत दे रहे थे. एटलस से जुड़ी रहीं साइंटिस्ट फैबिओला गियानोती के मुताबिक , 126 गीगा इलेक्ट्रॉन वोल्ट के पास पाए गए हिग्स बोसोन की मात्रा काफी ज्यादा हो सकती है , लेकिन इस बारे में कुछ भी दावे से कहने के लिए यादा स्टडी और आंकड़ों की जरूरत है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर हिग्स बोसोन के वजूद की पुष्टि आगे की रिसर्च में भी होती है , तो यह ब्रह्मांड के सभी मूलभूत तत्वों के रहस्यों को सामने लाने की शुरुआत होगी और यह पिछले 100 सालों में सबसे अहम खोज कही जाएगी. हालांकि , माना जा रहा है कि इस बारे में की जा रही रिसर्च का ठोस नतीजा अगले साल के अंत तक ही आ पाएगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें